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  • ‘एक बहुमूल्य मोती पाना’
    प्रहरीदुर्ग—2005 | फरवरी 1
    • ‘एक बहुमूल्य मोती पाना’

      “लोग स्वर्गराज्य के लिए बहुत प्रयत्न कर रहे हैं और जिन में उत्साह है, वे उस पर अधिकार प्राप्त करते हैं।”—मत्ती 11:12, बुल्के बाइबिल।

      1, 2. (क) यीशु ने राज्य के बारे में बताए एक दृष्टांत में किस खूबी का ज़िक्र किया जो बहुत कम लोगों में होती है? (ख) यीशु ने कीमती मोती का क्या दृष्टांत बताया?

      क्या दुनिया में ऐसी कोई चीज़ है जिसे आप दिलो-जान से चाहते हैं और उसे पाने के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर करने को तैयार हैं? कुछ लोगों का कहना है कि उन्होंने ज़िंदगी में किसी मुकाम तक पहुँचने के लिए अपने आपको पूरी तरह अर्पित कर दिया है, जैसे दौलत, शोहरत, ताकत या ओहदा पाने के लिए। मगर उनके लिए दुनिया में शायद ही ऐसी कोई नायाब चीज़ हो जिसे पाने के लिए जो भी उनके पास है, वह सब कुरबान करने को राज़ी हो जाएँ। किसी चीज़ की खातिर अपना सबकुछ न्यौछावर करना एक ऐसी खूबी है जो बहुत कम लोगों में होती है। यीशु मसीह ने परमेश्‍वर के राज्य के बारे में ऐसे कई दृष्टांत बताए थे जो हमें कुछ अहम बातों पर सोचने को मजबूर करते हैं। उन्हीं में से एक दृष्टांत में उसने ऊपर बतायी खूबी का ज़िक्र किया था।

      2 यीशु ने यह दृष्टांत सिर्फ अपने चेलों को बताया था, जिसे अकसर कीमती मोतीवाला दृष्टांत कहा जाता है। यीशु ने कहा: “स्वर्ग का राज्य एक ब्योपारी [“सौदागर”, हिन्दुस्तानी बाइबल] के समान है जो अच्छे मोतियों की खोज में था। जब उसे एक बहुमूल्य मोती मिला तो उस ने जाकर अपना सब कुछ बेच डाला और उसे मोल ले लिया।” (मत्ती 13:36, 45, 46) इस दृष्टांत के ज़रिए यीशु अपने चेलों को क्या सिखाना चाहता था? और हम यीशु के इन शब्दों से कैसे फायदा पा सकते हैं?

      मोतियों की ऊँची कीमत

      3. पुराने ज़माने में बेहतरीन किस्म के मोती क्यों इतने अनमोल माने जाते थे?

      3 प्राचीन समय से ही मोतियों को साज-सजावट में इस्तेमाल किया जाता रहा है और बहुत ही अनमोल माना गया है। एक किताब कहती है कि रोमी विद्वान प्लिनी दी ऐल्डर के मुताबिक, मोती “महँगी चीज़ों में सबसे पहले नंबर पर” आता था। सोना, चाँदी और दूसरे कई अनमोल रत्नों से मोती बिलकुल अलग हैं क्योंकि इन्हें जीवित प्राणी बनाते हैं। यह एक जानी-मानी बात है कि कुछ तरह के घोंघों की सीप में जब पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े या दूसरे कण चले जाते हैं, तो घोंघे उन पर नेकर नाम के तरल पदार्थ की परतें चढ़ाते रहते हैं। और इस तरह बेहद खूबसूरत दमकते मोती तैयार होते हैं। पुराने ज़माने में खासकर लाल सागर, फारस की खाड़ी और हिंद महासागर से सबसे बेहतरीन किस्म के मोती इकट्ठे किए जाते थे। ये सागर इस्राएल देश से काफी दूर हैं। तभी तो यीशु ने दृष्टांत में कहा कि “सौदागर” “अच्छे मोतियों की खोज में” था। वाकई, सच्चे और नायाब मोतियों को पाने में कितनी मेहनत लगती है।

      4. सौदागर के बारे में यीशु के बताए दृष्टांत का खास मुद्दा क्या था?

      4 हालाँकि बढ़िया मोती हमेशा से ही ऊँचे दाम पर बिकते रहे हैं, मगर यीशु के दृष्टांत का खास मुद्दा यह नहीं कि वे कितने कीमती होते हैं। उसने परमेश्‍वर के राज्य की तुलना सिर्फ बेशकीमती मोती से नहीं की। इसके बजाय, उसने चेलों का ध्यान इस बात की तरफ खींचा कि कैसे एक ‘सौदागर अच्छे मोतियों की खोज’ में था और उसने मोती मिलने पर कैसा रवैया दिखाया। जगह-जगह सफर करनेवाला मोतियों का सौदागर या दलाल, एक आम दुकानदार जैसा नहीं होता था, बल्कि वह इस सौदे में बड़ा माहिर होता था। वह अपनी पारखी नज़रों से एक मोती की उन बारीकियों और छिपे हुए गुणों को देख सकता था जिनसे पता चलता है कि वह दूसरे मोतियों से बेजोड़ है। वह एक ही नज़र में बता सकता था कि चीज़ असली है या नहीं, इसलिए उसे नकली या घटिया किस्म का मोती बेचकर कोई बेवकूफ नहीं बना सकता था।

      5, 6. (क) यीशु के दृष्टांत के सौदागर के बारे में क्या बात खासकर गौर करने लायक है? (ख) छिपे हुए खज़ाने का दृष्टांत, सफर करनेवाले सौदागर के बारे में क्या ज़ाहिर करता है?

      5 इस सौदागर की एक और खासियत गौर करने लायक है। एक आम सौदागर, पहले बाज़ार का भाव पता करेगा ताकि वह तय कर सके कि किस कीमत पर मोती को खरीदने से उसे ज़्यादा मुनाफा होगा। वह यह भी देखेगा कि बाज़ार में उसकी माँग कितनी है ताकि वह उसे जल्द-से-जल्द बेच सके। दूसरे शब्दों में कहें तो, उसे इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं रहती कि मोती उसके हाथ में आ गया है। इसके बजाय, वह मोती को जल्द-से-जल्द बेचकर मुनाफा कमाना चाहेगा। लेकिन यीशु के दृष्टांत का सौदागर बिलकुल अलग है। उसे पैसे या दौलत का नशा नहीं है। दरअसल, उसे जिस चीज़ की तलाश थी, उसे पाने के लिए उसने “अपना सब कुछ” यानी अपनी सारी ज़मीन-जायदाद और दौलत न्यौछावर कर दी।

      6 ज़्यादातर सौदागरों को शायद लगे कि यीशु के दृष्टांत में उस आदमी ने जो किया वह मूर्खता का काम है। एक समझदार सौदागर ऐसा जोखिम उठाने की कभी सोच भी नहीं सकता। लेकिन यीशु के दृष्टांत के सौदागर के उसूल बिलकुल अलग थे। उसे मुनाफे से ज़्यादा एक ऐसी बेशकीमती चीज़ पाने में दिलचस्पी थी, जिससे उसे खुशी और संतुष्टि मिलती। यह मुद्दा यीशु के एक और दृष्टांत से साफ ज़ाहिर होता है जो मोती के दृष्टांत से मिलता-जुलता है। यीशु ने कहा: “स्वर्ग का राज्य खेत में छिपे हुए धन के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने पाकर छिपा दिया, और मारे आनन्द के जाकर और अपना सब कुछ बेचकर उस खेत को मोल लिया।” (मत्ती 13:44) जी हाँ, उस आदमी को छिपा हुआ धन ढूँढ़ निकालने और उसका मालिक बनने से जो खुशी मिलती, उसे पाने की चाहत ने उसे अपना सबकुछ बेच देने के लिए उभारा। क्या आज दुनिया में ऐसे लोग हैं? क्या आज ऐसा कोई खज़ाना है जिसे पाने के लिए सबकुछ त्याग देने से फायदा होगा?

      जिन्होंने उसकी कीमत जानी

      7. यीशु ने कैसे दिखाया कि राज्य उसके लिए बेहद अनमोल है और वह उसकी गहरी कदर करता है?

      7 यीशु ने ‘स्वर्ग के राज्य’ के सिलसिले में बात करते वक्‍त मोती का दृष्टांत बताया था। बेशक, यीशु जानता था कि यह राज्य कितनी अहमियत रखता है। सुसमाचार की किताबों में दर्ज़ वृत्तांत इस सच्चाई के ज़बरदस्त सबूत हैं। सामान्य युग 29 में अपने बपतिस्मे के बाद, यीशु ने “प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, कि मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।” साढ़े तीन साल तक, उसने लोगों की भीड़ को राज्य के बारे में सिखाया। उसने इस्राएल देश के कोने-कोने तक प्रचार किया। “वह नगर नगर और गांव गांव प्रचार करता हुआ, और परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाता हुआ, फिरने लगा।”—मत्ती 4:17; लूका 8:1.

      8. परमेश्‍वर के राज्य में होनेवाले कामों की झलक देने के लिए यीशु ने क्या किया?

      8 यीशु ने इस्राएल का दौरा करते वक्‍त कई चमत्कार किए। जैसे उसने बीमारों को चंगा किया, भूखों को खिलाया, कुदरती शक्‍तियों को काबू किया, यहाँ तक कि मरे हुओं को ज़िंदा किया। (मत्ती 14:14-21; मरकुस 4:37-39; लूका 7:11-17) ऐसे चमत्कारों के ज़रिए यीशु ने यह भी दिखाया कि परमेश्‍वर के राज्य में कैसे-कैसे काम किए जाएँगे। आखिर में, वह यातना स्तंभ पर एक शहीद की मौत मरा। इस तरह अपनी जान देकर उसने परमेश्‍वर और राज्य की खातिर अपनी वफादारी का सबूत दिया। जिस तरह उस सौदागर ने “बहुमूल्य मोती” के बदले अपना सबकुछ खुशी-खुशी दे दिया, उसी तरह यीशु, राज्य लिए जीया और उसी के लिए अपनी जान कुरबान कर दी।—यूहन्‍ना 18:37.

      9. यीशु के शुरूआती चेलों में ऐसी क्या खूबी थी जो बहुत कम लोगों में पायी जाती है?

      9 यीशु ने अपनी ज़िंदगी में राज्य को पहली जगह देने के अलावा चेलों के एक छोटे-से समूह को भी इकट्ठा किया। इन चेलों ने भी राज्य को अनमोल समझा और उसकी बहुत कदर की। इनमें से एक था, अन्द्रियास जो पहले यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का चेला हुआ करता था। उसने और यूहन्‍ना के एक और चेले ने यूहन्‍ना को यीशु के बारे में यह गवाही देते सुना कि वह “परमेश्‍वर का मेम्ना” है। तब वे दोनों फौरन यीशु की तरफ खिंचे चले आए और विश्‍वासी बन गए। यह दूसरा चेला शायद जब्‌दी का एक बेटा था और उसका नाम भी यूहन्‍ना था। इतना ही नहीं, अन्द्रियास फौरन अपने भाई शमौन के पास गया और उससे बोला: ‘हम को मसीह मिल गया।’ फिर जल्द ही शमौन (जो कैफा और पतरस कहलाया), साथ ही फिलिप्पुस और उसके दोस्त नतनएल ने भी जान लिया कि यीशु ही मसीहा है। यीशु को पाकर नतनएल का दिल इस कदर खुशी से भर गया कि उसने यीशु से कहा: “तू परमेश्‍वर का पुत्र है; तू इस्राएल का महाराजा है।”—यूहन्‍ना 1:35-49.

      काम करने के लिए उकसाए गए

      10. पहली मुलाकात के कुछ समय बाद, जब यीशु ने चेलों के पास आकर उन्हें बुलाया तो उन्होंने क्या किया?

      10 मसीहा को पाने पर अन्द्रियास, पतरस, यूहन्‍ना और दूसरे चेले बिलकुल उसी तरह उमंग से भर गए जैसे दृष्टांत में बताया सौदागर, बहुमूल्य मोती पाने पर उमंग से भर गया था। अब ये चेले आगे क्या करते? सुसमाचार की किताबें इस बारे में ज़्यादा रोशनी नहीं डालतीं कि यीशु से हुई इस पहली मुलाकात के फौरन बाद उन्होंने क्या किया। ज़ाहिर है कि उनमें से ज़्यादातर चेले दोबारा अपने रोज़मर्रा के कामों में लग गए। लेकिन, इस पहली मुलाकात के करीब एक साल के अंदर, यीशु एक बार फिर गलील सागर के पास आया जहाँ अन्द्रियास, पतरस, यूहन्‍ना और उसका भाई याकूब मछुवाई कर रहे थे।a उन्हें देखकर यीशु ने कहा: “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊंगा।” इस पर उन्होंने क्या किया? पतरस और अन्द्रियास के बारे में मत्ती का वृत्तांत कहता है: “वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।” याकूब और यूहन्‍ना के बारे में हम पढ़ते हैं: “वे तुरन्त नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।” लूका का वृत्तांत यह भी कहता है कि वे “सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए।”—मत्ती 4:18-22; लूका 5:1-11.

      11. शायद किस वजह से यीशु के चेलों ने फौरन उसका न्यौता कबूल किया?

      11 क्या ये चेले बिना सोचे-समझे उतावली में यीशु के पीछे हो लिए थे? बिलकुल नहीं! हालाँकि यीशु से पहली मुलाकात के बाद वे मछुवाई करने लौट गए थे, फिर भी उस मौके पर उन्होंने जो देखा और सुना था, उसका उनके दिलो-दिमाग पर गहरा असर पड़ा। यीशु की पहली मुलाकात से लेकर न्यौता देने के समय तक करीब एक साल हो चुका था, इसलिए उन्हें यीशु की बातों पर गहराई से सोचने का काफी वक्‍त मिला। अब फैसला करने की घड़ी आ पहुँची थी। क्या वे दृष्टांत में बताए सौदागर जैसा नज़रिया दिखाते? यीशु ने बताया कि बहुमूल्य मोती पाने पर वह इस कदर जोश से भर गया कि “उसने फौरन जाकर” (NW) उसे खरीदने के लिए ज़रूरी कदम उठाया। जी हाँ, चेले भी ऐसा ही करते। यीशु की कही बातों और कामों ने उन्हें अंदर तक झकझोरकर रख दिया था। उन्होंने समझ लिया कि अब वक्‍त आ गया है कि वे सीखी हुई बातों पर चलें। इसलिए जैसा वृत्तांत कहता है, वे बेझिझक सब कुछ छोड़-छाड़कर यीशु के पीछे हो लिए।

      12, 13. (क) यीशु का संदेश सुनने पर कई लोगों ने क्या किया? (ख) यीशु ने अपने वफादार चेलों के बारे में क्या कहा, और उसके शब्दों का क्या मतलब है?

      12 ये वफादार लोग, सुसमाचार की किताबों में बताए दूसरे कई लोगों से कितने अलग थे! यीशु ने कइयों को चंगा किया और खिलाया, मगर वे एहसानफरामोश निकले और अपने रोज़मर्रा के कामों में मशगूल हो गए। (लूका 17:17, 18; यूहन्‍ना 6:26) यीशु ने जब लोगों को चेला बनने का न्यौता दिया तो कुछ ने बहाने बनाकर इनकार कर दिया। (लूका 9:59-62) मगर ये वफादार चेले उनसे बिलकुल जुदा थे। आगे चलकर यीशु ने उनके बारे में कहा: “[यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले] के समय से आज तक लोग स्वर्गराज्य के लिए बहुत प्रयत्न कर रहे हैं और जिन में उत्साह है, वे उस पर अधिकार प्राप्त करते हैं।”—मत्ती 11:12, बुल्के बाइबिल।

      13 “बहुत प्रयत्न कर रहे हैं”—इन शब्दों का क्या मतलब है? जिस यूनानी क्रिया से ये शब्द निकले हैं, उनके बारे में वाइन्स्‌ एक्सपॉज़िट्री डिक्शनरी ऑफ ओल्ड एण्ड न्यू टेस्टामेंट वर्ड्‌स्‌ कहती है: “इस क्रिया का मतलब है पुरज़ोर कोशिश करना।” और उस आयत के बारे में बाइबल विद्वान हाइनरिख मेयर कहते हैं: “इस आयत के ज़रिए समझाया गया है कि आनेवाले मसीहाई राज्य के लिए कैसी गर्मजोशी और संघर्ष की ज़रूरत है और काम करने की ऐसी लौ होनी चाहिए जो किसी भी हाल में बुझने न पाए, . . . राज्य के लिए वाकई पूरी उमंग और जोशो-खरोश से काम करना होगा (अब यह वक्‍त आराम से बैठकर इंतज़ार करने का नहीं)।” उस सौदागर की तरह, यीशु के ये चंद चेले भी फौरन जान गए कि कौन-सी चीज़ सही मायनों में अनमोल है, और इस अनमोल चीज़ यानी राज्य के लिए उन्होंने खुशी-खुशी अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया।—मत्ती 19:27, 28; फिलिप्पियों 3:8.

      दूसरे भी खोज में शामिल हो गए

      14. यीशु ने राज्य के प्रचार काम के लिए प्रेरितों को कैसे तैयार किया, और इसका नतीजा क्या हुआ?

      14 जैसे-जैसे यीशु अपनी सेवा करता रहा, उसने और भी कइयों को तालीम और मदद दी, ताकि वे राज्य में अधिकार पाने के काबिल बन सकें। सबसे पहले उसने अपने चेलों में से 12 को चुना और उन्हें प्रेरित ठहराया। प्रेरित का मतलब है, भेजा हुआ। इन प्रेरितों को यीशु ने साफ-साफ हिदायतें दीं कि उन्हें प्रचार काम कैसे करना चाहिए। साथ ही, उसने आनेवाली चुनौतियों और मुश्‍किलों के बारे में उन्हें आगाह भी किया। (मत्ती 10:1-42; लूका 6:12-16) इसके बाद, प्रेरितों ने करीब दो साल तक यीशु के साथ पूरे इस्राएल देश में प्रचार किया। इस दौरान वे यीशु के बहुत करीब आ गए। उन्होंने यीशु का उपदेश सुना, उसके चमत्कार देखे और जीवन के हर पहलू में उसकी मिसाल पर गौर किया। (मत्ती 13:16, 17) बेशक ये सारी बातें उनके दिलो-दिमाग में इस कदर उतर गयीं कि उनमें राज्य की खातिर तन-मन से काम करने का जोश भर आया, ठीक जैसे दृष्टांत के सौदागर में मोती पाने की लगन थी।

      15. यीशु ने अपने चेलों को आनंदित होने की कौन-सी ठोस वजह बतायी?

      15 बारह प्रेरितों के अलावा, यीशु ने “सत्तर और मनुष्य नियुक्‍त किए और जिस जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर था, वहां उन्हें दो दो करके अपने आगे भेजा।” उसने इन चेलों को यह भी बताया कि उन्हें भविष्य में कैसी परीक्षाओं और तकलीफों का सामना करना पड़ेगा। और उसने हिदायत दी कि वे लोगों को यह संदेश सुनाएँ: “परमेश्‍वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुंचा है।” (लूका 10:1-12) जब ये 70 चेले प्रचार से लौटे तो वे खुशी से फूले न समा रहे थे। उन्होंने यीशु को यह रिपोर्ट दी: “हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्टात्मा भी हमारे वश में हैं।” मगर यीशु ने कहा कि भविष्य में उन्हें और भी ज़्यादा खुशी मिलनेवाली है, क्योंकि उनमें राज्य के लिए इतनी धुन है। यह बात सुनकर वे ज़रूर हैरत में पड़ गए होंगे। यीशु ने उनसे कहा: “इस से आनन्दित मत हो, कि आत्मा तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इस से आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।”—लूका 10:17, 20.

      16, 17. (क) यीशु ने अपने वफादार प्रेरितों के साथ बितायी आखिरी रात को उनसे क्या कहा? (ख) यीशु के शब्दों से प्रेरितों को कैसी खुशी मिली और किस बात का यकीन हुआ?

      16 यीशु ने अपने प्रेरितों के साथ सा.यु. 33 के निसान 14 को जो आखिरी रात बितायी, उस वक्‍त उसने एक समारोह की शुरूआत की जो बाद में प्रभु का संध्या भोज कहलाया। उसने प्रेरितों को आज्ञा दी कि वे इस समारोह की यादगार मनाया करें। उस शाम यीशु ने बचे हुए ग्यारह प्रेरितों से कहा: “तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे। और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिये एक राज्य ठहराया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिये ठहराता हूं, ताकि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज पर खाओ-पिओ; बरन सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करो।”—लूका 22:19, 20, 28-30.

      17 यीशु के इन शब्दों को सुनकर प्रेरितों को कितनी खुशी और कामयाबी का एहसास हुआ होगा! उन्हें दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान और सबसे सुनहरा मौका जो दिया जा रहा था। (मत्ती 7:13, 14; 1 पतरस 2:9) दृष्टांत के सौदागर की तरह, उन्होंने राज्य में अधिकार पाने के लिए अपना काफी कुछ त्याग दिया था। अब उन्हें यकीन दिलाया जा रहा था कि उन्होंने जो-जो त्याग किए, वे बेकार नहीं गए।

      18. ग्यारह प्रेरितों के अलावा, बाद में और किन लोगों को राज्य से फायदा होता?

      18 उस रात यीशु के साथ जो प्रेरित मौजूद थे, सिर्फ उन्हीं को राज्य से फायदा नहीं होता। यहोवा की मरज़ी थी कि कुल मिलाकर 1,44,000 जनों के साथ राज्य की वाचा बाँधी जाए, ताकि वे स्वर्ग के वैभवशाली राज्य में यीशु मसीह के साथी राजा बन सकें। इनके अलावा, यूहन्‍ना ने दर्शन में देखा कि “एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था . . . सिंहासन के साम्हने और मेम्ने के साम्हने खड़ी है। और . . . कहती है, कि उद्धार के लिये हमारे परमेश्‍वर का जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने का जय-जय-कार हो।” इस बड़ी भीड़ के लोग राज्य की प्रजा के नाते धरती पर जीएँगे।b—प्रकाशितवाक्य 7:9, 10; 14:1, 4.

      19, 20. (क) सभी जातियों के लोगों के लिए कौन-सा मौका खुला है? (ख) अगले लेख में किस सवाल पर चर्चा की जाएगी?

      19 यीशु ने स्वर्ग लौटने से कुछ ही समय पहले, अपने वफादार चेलों को यह हुक्म दिया: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।” (मत्ती 28:19, 20) यह दिखाता है कि भविष्य में सब जातियों के लोग यीशु मसीह के चेले बनते। जिस तरह सौदागर ने बहुमूल्य मोती पर अपना मन लगाया था, उसी तरह वे भी पूरे दिल से राज्य पर आस लगाए रहते, फिर चाहे उनकी आशा स्वर्ग में इनाम पाने की होती या धरती पर।

      20 यीशु ने जो कहा, उससे ज़ाहिर हुआ कि चेले बनाने का काम “जगत के अन्त” तक जारी रहता। तो सवाल यह है कि क्या आज हमारे ज़माने में भी ऐसे लोग हैं जो उस सौदागर की तरह परमेश्‍वर के राज्य की खातिर अपना सबकुछ त्यागने को तैयार हैं? इस सवाल का जवाब अगले लेख में दिया जाएगा।

      [फुटनोट]

      a यीशु से इन चेलों की पहली मुलाकात के बाद, शायद जब्‌दी का बेटा यूहन्‍ना, यीशु के पीछे हो लिया था। उसने यीशु के कुछ काम अपनी आँखों से देखे होंगे। इसी वजह से वह यीशु के इन कामों का जीता-जागता ब्यौरा अपनी सुसमाचार की किताब में लिख सका। (यूहन्‍ना, अध्याय 2-5) मगर वह भी अपने परिवार का मछुवाई व्यापार सँभालने लौट गया और इसके कुछ समय बाद यीशु ने उसे अपने पीछे हो लेने का न्यौता दिया।

      b इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब का 10वाँ अध्याय देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

  • आज “बहुमूल्य मोती” के लिए कड़ी मेहनत करना
    प्रहरीदुर्ग—2005 | फरवरी 1
    • आज “बहुमूल्य मोती” के लिए कड़ी मेहनत करना

      “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो।”—मत्ती 24:14.

      1, 2. (क) परमेश्‍वर के राज्य के बारे में, यीशु के दिनों के यहूदियों का क्या खयाल था? (ख) यीशु ने राज्य के बारे में सही समझ देने के लिए क्या किया, और नतीजा क्या हुआ?

      समय के जिस दौर में यीशु धरती पर आया, उस वक्‍त यहूदियों के बीच परमेश्‍वर का राज्य एक दिलचस्प विषय था। (मत्ती 3:1, 2; 4:23-25; यूहन्‍ना 1:49) मगर शुरू-शुरू में ज़्यादातर यहूदियों को इस बारे में पूरी समझ नहीं थी कि राज्य कितने बड़े पैमाने पर और कैसे हुकूमत करेगा; ना ही उन्होंने समझा कि राज्य एक स्वर्गीय सरकार होगा। (यूहन्‍ना 3:1-5) यहाँ तक कि यीशु के कुछ चेले भी ठीक-ठीक नहीं जानते थे कि परमेश्‍वर का राज्य क्या है और मसीह के साथी राजा बनने की आशीष पाने के लिए उन्हें क्या करना होगा।—मत्ती 20:20-22; लूका 19:11; प्रेरितों 1:6.

      2 समय के गुज़रते यीशु ने धीरज से अपने चेलों को राज्य के बारे में कई बातें सिखायीं। उसने बहुमूल्य मोती का वह दृष्टांत भी बताया जिस पर पिछले लेख में चर्चा की गयी थी। इस तरह कई सीख देकर यीशु ने चेलों को एहसास दिलाया कि स्वर्ग के राज्य के लिए उन्हें जी-जान से मेहनत करनी होगी। (मत्ती 6:33; 13:45, 46; लूका 13:23, 24) यीशु की बातों ने चेलों के दिल पर ज़रूर गहरा असर किया होगा। ऐसा हम इसलिए कह सकते हैं क्योंकि उन्होंने बिना देर किए पूरी निडरता से और दिन-रात एक करके राज्य की खुशखबरी पृथ्वी की छोर तक पहुँचायी। इसके ढेरों सबूत हमें प्रेरितों के काम की किताब से मिलते हैं।—प्रेरितों 1:8; कुलुस्सियों 1:23.

      3. यीशु ने हमारे ज़माने का ज़िक्र करते हुए राज्य के बारे में क्या कहा?

      3 मगर आज के बारे में क्या? आज भी करोड़ों लोगों तक यह संदेश पहुँचाया जा रहा है कि वे राज्य के अधीन धरती पर फिरदौस में आशीषें पाने की आशा रख सकते हैं। यीशु ने “जगत के अन्त” के बारे में अपनी महान भविष्यवाणी में यह साफ-साफ कहा था: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती 24:3, 14; मरकुस 13:10) उसने यह भी समझाया कि इस बड़े काम को पूरा करने में पहाड़ समान रुकावटों और चुनौतियों का, यहाँ तक कि ज़ुल्मों का भी सामना करना पड़ेगा। मगर उसने हिम्मत दिलाते हुए कहा: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।” (मत्ती 24:9-13) यह सब करने के लिए बिलकुल वैसी ही त्याग की भावना और अटल इरादे की ज़रूरत है, जैसा यीशु के दृष्टांत के सौदागर में था। क्या आज ऐसे लोग हैं जो मज़बूत विश्‍वास और जोश के साथ राज्य की खातिर काम करते हों?

      सच्चाई पा लेने की खुशी

      4. आज राज्य की सच्चाई का लोगों पर कैसा असर हो रहा है?

      4 यीशु के दृष्टांत में सौदागर को जब मनचाहे “बहुमूल्य मोती” का पता चला, तो वह फूला न समाया। वह इस कदर उमंग से भर गया कि मोती को पाने के लिए उससे जो कुछ बन पड़ा उसने किया। (इब्रानियों 12:1) उसी तरह, आज जब लोग परमेश्‍वर और उसके राज्य के बारे में सच्चाई जान लेते हैं तो वे उसकी तरफ खिंचे चले आते हैं और उनमें जोश भर आता है। इससे हमें भाई ए. एच. मैकमिलन की कही बात याद आती है। इस भाई ने आगे बढ़ता विश्‍वास (अँग्रेज़ी) किताब में बताया कि उन्होंने परमेश्‍वर को और इंसानों के वास्ते ठहराए उसके मकसद को जानने के लिए कैसी खोजबीन की थी। उन्होंने कहा: “जो मैंने पा लिया है, उसे आज भी हर साल हज़ारों लोग पा रहे हैं। और वे भी मेरे और आपके जैसे लोग हैं। वे दुनिया के सभी देशों, जातियों, अलग-अलग पेशों से आए हैं और हर उम्र के हैं। सच्चाई किसी तरह का भेद-भाव नहीं रखती। यह हर तरह के लोगों को अपनी तरफ खींचती है।”

      5. सन्‌ 2004 के सेवा वर्ष की रिपोर्ट से कौन-से बढ़िया नतीजे देखने को मिलते हैं?

      5 भाई मैकमिलन के उन शब्दों की सच्चाई आज भी साफ देखी जा सकती है। साल-दर-साल लाखों नेकदिल लोगों पर राज्य की खुशखबरी का इतना बढ़िया असर हो रहा है कि वे अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करके उसकी मरज़ी पूरी कर रहे हैं। सन्‌ 2004 के सेवा वर्ष में भी ऐसा ही हुआ, जो सितंबर 2003 से अगस्त 2004 तक जारी रहा। इन 12 महीनों के दौरान 2,62,416 लोगों ने पानी में बपतिस्मा लेकर यहोवा को किए अपने समर्पण का सबूत दिया। ऐसा 235 देशों में हुआ, जहाँ यहोवा के साक्षी हर हफ्ते 60,85,387 बाइबल अध्ययन चलाते हैं। इस तरह वे कई जातियों, कबीलों और भाषाओं के लोगों को बाइबल की जीवनदायी सच्चाई सिखाते हैं, फिर चाहे इन लोगों का पेशा और समाज में दर्जा जो भी हो।—प्रकाशितवाक्य 7:9.

      6. बीते सालों में लगातार जो तरक्की हुई है, उसके पीछे क्या कारण हैं?

      6 यह सब कैसे मुमकिन हुआ है? इसमें शक नहीं कि सही मन रखनेवाले इन लोगों को यहोवा ने ही अपनी तरफ खींचा है। (यूहन्‍ना 6:65; प्रेरितों 13:48) लेकिन हम उन प्रचारकों की त्याग की भावना और कड़ी मेहनत को भी नहीं भूल सकते जिन्होंने राज्य की खातिर खुद को पूरी तरह लगा दिया है। भाई मैकमिलन ने 79 साल की उम्र में लिखा: “जब मुझे पहली बार पता चला कि मौत के कगार पर खड़ी इस रोगी मानवजाति के लिए उज्ज्वल भविष्य के वादे किए गए हैं, तब से लेकर आज तक बाइबल के उस संदेश पर मेरी आशा ज़रा भी धुँधली नहीं हुई। जब मैंने पहली बार इसे जाना, तभी मैंने ठान लिया था कि बाइबल जो सिखाती है, उसे जानने की मैं और भी कोशिश करूँगा, ताकि मैं उन लोगों की मदद करने के काबिल बनूँ जो सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर यहोवा के बारे में और इंसानों के लिए उसके भले मकसद के बारे में जानना चाहते हैं।”

      7. कौन-सा अनुभव दिखाता है कि बाइबल की सच्चाई पाने पर लोगों में खुशी और जोश भर आता है?

      7 आज भी यहोवा के सेवकों में ऐसा ही जोश देखने को मिलता है। मसलन, ऑस्ट्रिया के वीएना शहर की डान्येला को लीजिए। उसने कहा: “बचपन से परमेश्‍वर मेरा जिगरी दोस्त रहा है। मैं शुरू से ही उसका नाम जानना चाहती थी, क्योंकि मुझे लगता था कि सिर्फ ‘परमेश्‍वर’ कहने से उसके साथ करीबी रिश्‍ता नहीं जोड़ा जा सकता। लेकिन 17 साल की उम्र में कहीं जाकर मेरी मुलाकात यहोवा के साक्षियों से हुई, जो मेरे घर आए थे। उन्होंने परमेश्‍वर के बारे में मुझे वो सारी बातें समझायी जो मैं जानना चाहती थी। आखिकार मुझे सच्चाई मिल गयी और उस वक्‍त मुझे इतनी खुशी हुई कि क्या बताऊँ! मैं इतनी उमंग से भरी थी कि मैं हर किसी को प्रचार करने लगी।” मगर इस जोश पर उसके स्कूल के साथी उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। डान्येला आगे कहती है: “लेकिन मैं खुश भी थी और हैरान भी, क्योंकि उनका मज़ाक उड़ाना देखकर मुझे ऐसा लगा मानो मैं बाइबल की एक भविष्यवाणी पूरी होते देख रही हूँ। मैंने सीखा कि यीशु ने कहा था, उसके चेले उसके नाम की खातिर नफरत और ज़ुल्म का शिकार होंगे।” कुछ ही समय बाद, डान्येला ने अपना जीवन यहोवा को समर्पित कर दिया, बपतिस्मा लिया और मिशनरी सेवा का लक्ष्य हासिल करने में जुट गयी। शादी के बाद, डान्येला अपने पति हेलमूट के साथ वीएना में रहनेवाले अफ्रीकी, चीनी, फिलिपीनो और भारतीय लोगों को प्रचार करने लगी। आज डान्येला और हेलमूट दक्षिण-पश्‍चिमी अफ्रीका में मिशनरी सेवा कर रहे हैं।

      वे हार नहीं मानते

      8. एक तरीका क्या है जिससे कई लोगों ने परमेश्‍वर के लिए प्यार और राज्य के लिए अपनी वफादारी दिखायी है, जिससे उन्हें आशीषें मिली हैं?

      8 सचमुच, मिशनरी सेवा उन कई तरीकों में से एक है जिनसे आज यहोवा के लोग उसके लिए प्यार और उसके राज्य के लिए अपनी वफादारी का सबूत देते हैं। यीशु के दृष्टांत के सौदागर की तरह, जो लोग मिशनरी काम हाथ में लेते हैं, वे राज्य की खातिर दूर-दूर तक सफर करने को तैयार रहते हैं। इन मिशनरियों को राज्य की खुशखबरी की तलाश नहीं, बल्कि वे तो धरती के दूर-दराज़ इलाकों तक जाकर लोगों को खुशखबरी दे रहे हैं। साथ ही, वे लोगों को यीशु मसीह के चेले बनने के लिए तालीम और मदद दे रहे हैं। (मत्ती 28:19, 20) कई देशों में उन्हें बड़ी-बड़ी मुश्‍किलों से गुज़रना पड़ता है। मगर ऐसे हालात में धीरज धरने से उन्हें ढेरों आशीषें भी मिलती हैं।

      9, 10. मध्य अफ्रीकी गणराज्य जैसी दूर-दराज़ जगहों में मिशनरियों को किस तरह के रोमांचक अनुभव मिल रहे हैं?

      9 इसका एक उदाहरण है, मध्य अफ्रीकी गणराज्य। यहाँ पिछले साल मसीह की मौत के स्मारक में 16,184 लोग हाज़िर हुए थे, यानी यहाँ के राज्य प्रचारकों की गिनती से करीब सात गुना ज़्यादा लोग। इस देश के कई हिस्सों में बिजली की सहूलियत नहीं है, इसलिए लोग आम तौर पर अपने रोज़मर्रा के काम घर से बाहर किसी पेड़ की छाँव में करते हैं। यह देखकर ताज्जुब नहीं होता कि मिशनरी भी अपना काम उन्हीं की तरह बाहर करते हैं। वे किसी पेड़ की छाँव में बैठकर बाइबल अध्ययन चलाते हैं। इससे न सिर्फ अच्छी रोशनी और ठंडी हवा मिलती है, बल्कि एक और फायदा होता है। अकसर जब कोई राही बाइबल अध्ययन होते देखता है, तो वह भी वहाँ आकर बैठ जाता है, क्योंकि यहाँ के लोगों को बाइबल से काफी लगाव है। यहाँ धार्मिक विषयों पर बातचीत करना उतना ही आम है, जितना दूसरे देशों में खेल-कूद या मौसम के बारे में चर्चा करना।

      10 एक दिन जब एक मिशनरी भाई घर के बाहर बाइबल अध्ययन चला रहा था, तो सड़क की दूसरी तरफ रहनेवाला एक नौजवान उसके पास आया। उसने कहा कि अब तक उसके पास कोई साक्षी नहीं आया है, इसलिए वह मिशनरी उसके घर ज़रूर आए और उसके साथ भी बाइबल अध्ययन करे। कहने की ज़रूरत नहीं, मिशनरी ने खुशी-खुशी उसकी गुज़ारिश मानी और अब वह नौजवान बड़ी तेज़ी से तरक्की कर रहा है। उस देश में पुलिस अकसर साक्षियों को रास्ते पर रोक लेती है, उनको सम्मन जारी करने या उनसे जुरमाना वसूल करने के लिए नहीं, बल्कि यह पूछने के लिए कि क्या उनके पास प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! के नए अंक हैं, या फिर उन्हें किसी ऐसे लेख के लिए शुक्रिया कहने, जिसे पढ़ने में उन्हें बहुत आनंद आया हो।

      11. लंबे समय से मिशनरी सेवा करनेवाले भाई-बहन, मुश्‍किलों के बावजूद अपनी सेवा के बारे में कैसा महसूस करते हैं?

      11 जिन लोगों ने 40 या 50 साल पहले मिशनरी सेवा शुरू की थी, उनमें से ज़्यादातर आज भी वफादारी से यह सेवा कर रहे हैं। वे हम सभी के लिए विश्‍वास और लगन की क्या ही उम्दा मिसाल हैं! एक शादीशुदा जोड़ा पिछले 42 से ज़्यादा सालों से मिशनरी है और उन्होंने तीन देशों में यह सेवा की है। पति कहता है: “हमें कुछ तकलीफें भी सहनी पड़ीं। मसलन, हमने 35 साल तक मलेरिया के प्रकोप से संघर्ष किया। मगर हमें कभी-भी पछतावा नहीं हुआ कि हमने मिशनरी बनने का फैसला क्यों किया।” पत्नी कहती है: “हमें इतनी आशीषें मिली हैं कि दिल यहोवा के लिए एहसान से उमड़ पड़ता है। यहाँ प्रचार काम से बड़ी खुशी मिलती है और बाइबल अध्ययन शुरू करना बहुत आसान है। हर बार अपने विद्यार्थियों को सभाओं में आते और एक-दूसरे से जान-पहचान बढ़ाते देखकर ऐसा लगता है मानो परिवार के सदस्य आपस में मिल रहे हैं।”

      वे ‘सब बातों को हानि समझते हैं’

      12. राज्य के लिए सच्ची कदरदानी कैसे दिखायी जाती है?

      12 जब सौदागर को बहुमूल्य मोती का पता चला, तो “उस ने जाकर अपना सब कुछ बेच डाला और उसे मोल ले लिया।” (मत्ती 13:46) इंसान की नज़र में जो चीज़ें बहुत मोल रखती हैं, उन्हें न्यौछावर कर देना ऐसे लोगों की खूबी है जो सच्चे दिल से राज्य की कदर करते हैं। प्रेरित पौलुस एक ऐसा इंसान था जिसे मसीह के साथ परमेश्‍वर के राज्य में महिमा पाने की आशा मिली थी। उसने कहा: “मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूं: जिस के कारण मैं ने सब वस्तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूं, जिस से मैं मसीह को प्राप्त करूं।”—फिलिप्पियों 3:8.

      13. चेक गणराज्य में एक आदमी ने परमेश्‍वर के राज्य के लिए अपना प्यार कैसे दिखाया?

      13 उसी तरह, आज बहुत-से लोग राज्य की आशीषें पाने के लिए खुशी से ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव करते हैं। इसकी एक मिसाल है, चेक गणराज्य के एक स्कूल का हैडमास्टर। साठ साल के इस आदमी को सन्‌ 2003 के अक्टूबर में ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब मिली जो बाइबल अध्ययन करने में मददगार है। इसे पढ़ने के बाद, उसने फौरन अपने इलाके के यहोवा के साक्षियों से संपर्क किया ताकि वह बाइबल अध्ययन कर सके। उसने बढ़िया आध्यात्मिक तरक्की की और जल्द ही वह सभी सभाओं में आने लगा। उसका पहले यह लक्ष्य था कि वह मेयर पद के लिए चुनाव लड़ेगा और बाद में सीनेटर पद के लिए। अब वह क्या करता? अब उसने एक अलग लक्ष्य पाने का, जी हाँ, जीवन की दौड़ में राज्य के प्रचारक के नाते मेहनत करने का फैसला किया। वह कहता है: “मैंने अपने विद्यार्थियों को बाइबल की कई किताबें-पत्रिकाएँ दी हैं।” उसने यहोवा को किया अपना समर्पण ज़ाहिर करने के लिए सन्‌ 2004 की जुलाई को पानी में बपतिस्मा लिया।

      14. (क) राज्य की खुशखबरी ने लाखों लोगों को क्या करने के लिए उभारा है? (ख) हममें से हरेक जन खुद से कौन-से गंभीर सवाल पूछ सकता है?

      14 दुनिया में ऐसे और भी लाखों लोग हैं जिन्होंने राज्य की खुशखबरी सुनने पर ऐसा ही कदम उठाया है। वे इस दुष्ट संसार से बाहर निकल आए हैं। उन्होंने अपना पुराना मनुष्यत्व उतार फेंका है, पुराने साथियों और दुनियावी पेशों को छोड़ दिया है। (यूहन्‍ना 15:19; इफिसियों 4:22-24; याकूब 4:4; 1 यूहन्‍ना 2:15-17) इतने सारे त्याग आखिर किस लिए? क्योंकि यह दुनिया जो भी देने की पेशकश करती है, उससे कहीं ज़्यादा वे परमेश्‍वर के राज्य में मिलनेवाली आशीषों की कदर करते हैं। क्या आप भी राज्य की खुशखबरी के बारे में ऐसा ही महसूस करते हैं? क्या राज्य के लिए कदरदानी आपको ज़िंदगी में ज़रूरी बदलाव करने के लिए उकसाती है, ताकि आपके जीने का तरीका, आपके उसूल और लक्ष्य यहोवा की माँगों से मेल खाएँ? ऐसे बदलाव करने से आपको अभी और भविष्य में बेशुमार आशीषें मिलेंगी।

      कटनी का काम खत्म होने पर है

      15. अंतिम दिनों में रहनेवाले परमेश्‍वर के लोगों के बारे में क्या भविष्यवाणी की गयी थी?

      15 भजनहार ने लिखा: “तेरी प्रजा के लोग तेरे पराक्रम के दिन स्वेच्छाबलि बनते हैं।” जिन्होंने खुद को इस तरह अर्पित किया है, उनमें ‘भोर की ओस के समान जवान लोग’ और “शुभ समाचार सुनानेवालियों की बड़ी सेना” भी शामिल है। (भजन 68:11; 110:3) इन अंतिम दिनों के दौरान, स्त्री-पुरुष, जवान-बूढ़े, सभी ने जो मेहनत की और त्याग की भावना दिखायी है, उसका क्या नतीजा निकला है?

      16. एक मिसाल देकर समझाइए कि परमेश्‍वर के सेवक किस तरह दूसरों को राज्य के बारे में सिखाने के लिए मेहनत कर रहे हैं।

      16 भारत के बैंगलोर शहर की एक पायनियर यानी पूरे समय की सेवा करनेवाली बहन को चिंता होने लगी कि इस देश में जो 20 लाख से ज़्यादा बधिर हैं, उन्हें राज्य के बारे में सीखने में कैसे मदद दी जाए। (यशायाह 35:5) उसने साइन लैंगवेज सिखानेवाले एक संस्थान में दाखिला लेने का फैसला किया। बहन ने वहाँ कई बधिरों को राज्य की आशा बतायी और इस तरह बाइबल अध्ययन के कई समूह तैयार हुए। कुछ ही हफ्तों में, 12 से ज़्यादा लोग सभाओं के लिए राज्य घर आने लगे। कुछ समय बाद जब वह पायनियर बहन एक शादी में गयी, तो उसकी मुलाकात एक जवान बधिर से हुई जो कोलकाता का रहनेवाला है। उसके कई सवाल थे और उसने यहोवा के बारे में ज़्यादा जानने की गहरी दिलचस्पी दिखायी। मगर एक समस्या थी। उस जवान को कॉलेज की पढ़ाई के लिए कोलकाता लौटना था, जो कि बैंगलोर से करीब 1,600 किलोमीटर दूर है और वहाँ साइन लैंगवेज जाननेवाला एक भी साक्षी नहीं था। इसलिए उस जवान ने बाइबल अध्ययन जारी रखने के इरादे से अपने पिता को बड़ी मुश्‍किल से राज़ी कराया कि उसे आगे की पढ़ाई के लिए बैंगलोर जाने की इजाज़त दे दें। उसने बढ़िया आध्यात्मिक तरक्की की और करीब एक साल बाद अपना जीवन यहोवा को समर्पित कर दिया। फिर उसने भी कई बधिरों के साथ बाइबल अध्ययन किया, जिनमें उसका एक बचपन का दोस्त भी है। भारत का शाखा दफ्तर अब बधिरों की मदद करने के लिए पायनियरों को साइन लैंगवेज सिखाने का इंतज़ाम कर रहा है।

      17. पेज 19 से 22 पर सन्‌ 2004 की जो सेवा वर्ष रिपोर्ट दी गयी है, उसकी किस बात ने खासतौर पर आपका हौसला बढ़ाया?

      17 इस पत्रिका के पेज 19 से 22 पर सन्‌ 2004 के सेवा वर्ष की रिपोर्ट दी गयी है। यह दिखाती है कि सारी दुनिया में यहोवा के साक्षियों का प्रचार काम कैसा रहा। समय निकालकर उसकी जाँच कीजिए और खुद इस बात का सबूत देखिए कि आज धरती के हर हिस्से में यहोवा के लोग “बहुमूल्य मोती” पाने के लिए कैसी मेहनत कर रहे हैं।

      ‘पहिले राज्य की खोज’ करते रहिए

      18. यीशु ने सौदागर के दृष्टांत में कौन-सी जानकारी नहीं दी, और इसकी वजह क्या थी?

      18 एक बार फिर अगर हम सौदागर के दृष्टांत पर गौर करें, तो पता चलता है कि यीशु ने इस बारे में कुछ नहीं बताया कि सौदागर ने अपना सबकुछ बेच देने के बाद गुज़ारा कैसे किया। इसलिए कुछ लोगों का यह पूछना वाजिब होगा: ‘अब उसके पास कुछ नहीं बचा तो उसे खाने-पहनने की चीज़ें और सिर छिपाने की जगह कैसे मिलती? वह बहुमूल्य मोती उसके किस काम आता?’ इंसानी नज़रिए से देखा जाए तो ऐसे सवाल पूछना सही लग सकता है। मगर क्या यीशु ने अपने चेलों को यह कहकर बढ़ावा नहीं दिया था, “पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी”? (मत्ती 6:31-33) दृष्टांत का खास मुद्दा यह था कि हमें तन-मन से परमेश्‍वर की भक्‍ति करने और राज्य के लिए जोश दिखाने की ज़रूरत है। क्या इससे हमें कोई सबक मिलता है?

      19. बहुमूल्य मोती के बारे में यीशु के दृष्टांत से हम कौन-सा खास सबक सीखते हैं?

      19 हो सकता है, हमने हाल ही में खुशखबरी के बारे में सीखा हो या फिर दशकों से राज्य की खातिर मेहनत करते और दूसरों को उसकी आशीषों के बारे में बताते आए हों। बात चाहे जो भी हो, हमें आगे भी ज़िंदगी में राज्य को पहला स्थान देते रहना चाहिए। यह सच है कि आज हम मुश्‍किल समय में जी रहे हैं। मगर हमारे पास यह मानने के ठोस कारण हैं कि हम जिस चीज़ के लिए मेहनत कर रहे हैं, वह सचमुच अनमोल है और उसकी बराबरी दुनिया की किसी भी चीज़ से नहीं की जा सकती, बिलकुल उस मोती की तरह जिसे सौदागर ने पा लिया था। दुनिया की घटनाएँ और बाइबल की भविष्यवाणियों का पूरा होना इस बात का पक्का सबूत है कि आज हम “जगत के अन्त” के समय में जी रहे हैं। (मत्ती 24:3) इसलिए आइए उस सौदागर की तरह, परमेश्‍वर के राज्य के लिए तन-मन से और जोश से काम करें और इस बात से मगन हों कि हमें खुशखबरी सुनाने का सम्मान मिला है।—भजन 9:1, 2.

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