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  • आज यहोवा हमसे क्या माँग करता है?
    प्रहरीदुर्ग—1999 | सितंबर 15
    • ३, ४. (क) आज यहोवा हमसे क्या माँग करता है? (ख) हमें यीशु के आदर्श पर क्यों चलना चाहिए?

      ३ पृथ्वी पर यीशु की सेवा के आखिरी साल में, वह और उसके प्रेरित पतरस, याकूब और यूहन्‍ना एक ऊँचे पहाड़ पर, शायद हर्मोन पर्वत की एक चोटी पर गए। वहाँ चेलों ने एक दर्शन में, राजा के रूप में यीशु का वैभव और उसकी महिमा देखी और उन्होंने खुद परमेश्‍वर को यह ऐलान करते हुए सुना: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं प्रसन्‍न हूं: इस की सुनो।” (मत्ती १७:१-५) आज, यहोवा हमसे भी यही माँग करता है कि हम उसके बेटे की सुनें, उसके आदर्श पर चलें और उसकी शिक्षाओं को मानें। (मत्ती १६:२४) इसलिए, प्रेरित पतरस ने लिखा: “मसीह . . . तुम्हारे लिये दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो।”—१ पतरस २:२१.

  • आज यहोवा हमसे क्या माँग करता है?
    प्रहरीदुर्ग—1999 | सितंबर 15
    • ५. मसीही किस व्यवस्था के अधीन हैं और यह व्यवस्था कब से लागू होना शुरू हुई?

      ५ यीशु की सुनने और उसके आदर्श पर चलने के लिए हमें क्या करना होगा? क्या हमें व्यवस्था को मानना होगा? पौलुस ने लिखा: “मैं व्यवस्था के आधीन न[हीं हूँ]।” यहाँ पौलुस “पुरानी वाचा” की या इस्राएल के साथ की गयी व्यवस्था वाचा की बात कर रहा था। लेकिन, पौलुस ने यह भी कहा कि वह “मसीह की व्यवस्था के आधीन” है। (१ कुरिन्थियों ९:२०, २१; २ कुरिन्थियों ३:१४) पुरानी व्यवस्था वाचा के खत्म होने पर, “नई वाचा” लागू हो गयी, जिसमें “मसीह की व्यवस्था” थी। आज यहोवा के सभी सेवकों के लिए ज़रूरी है कि ‘मसीह की इस व्यवस्था’ को मानें।—लूका २२:२०; गलतियों ६:२; इब्रानियों ८:७-१३.

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