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  • ‘एक दूसरे के अपराध क्षमा करते रहो’
    प्रहरीदुर्ग—1997 | दिसंबर 1
    • १. (क) जब पतरस ने यह सुझाव दिया कि हम दूसरों को “सात बार” क्षमा करें, तो उसने शायद यह क्यों सोचा हो कि वह बहुत उदारता दिखा रहा था? (ख) यीशु का क्या मतलब था जब उसने कहा कि हमें “सात बार के सत्तर गुने तक” क्षमा करना चाहिए?

      “हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करू, क्या सात बार तक?” (मत्ती १८:२१) पतरस ने शायद सोचा हो कि अपने सुझाव में वह बहुत उदारता दिखा रहा था। उस समय पर, रब्बीनी परंपरा कहती थी कि एक व्यक्‍ति को एक ही अपराध के लिए तीन बार से ज़्यादा क्षमा नहीं दी जानी चाहिए।a तब, पतरस के आश्‍चर्य की कल्पना कीजिए जब यीशु ने जवाब दिया: “मैं तुझ से यह नहीं कहता, कि सात बार, बरन सात बार के सत्तर गुने तक”! (मत्ती १८:२२) सात को दोहराने का मतलब था “हमेशा।” यीशु की नज़र में, दरअसल इसकी कोई सीमा नहीं है कि एक मसीही दूसरों को कितनी बार क्षमा करे।

  • ‘एक दूसरे के अपराध क्षमा करते रहो’
    प्रहरीदुर्ग—1997 | दिसंबर 1
    • a बाबुलीय तालमूद के मुताबिक़, एक रब्बीनी परंपरा ने कहा: “अगर एक मनुष्य एक, दो या तीन बार अपराध करता है तो उसे क्षमा किया जाएगा, लेकिन चौथी बार उसे क्षमा नहीं मिलेगी।” (योमा ८६ख) यह कुछ हद तक आमोस १:३; २:६; और अय्यूब ३३:२९ जैसे पाठों की ग़लत समझ पर आधारित था।

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