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धार्मिकता मौखिक परंपराओं के ज़रिए नहींप्रहरीदुर्ग—1991 | नवंबर 1
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१६. कौनसी यहूदी प्रथा से शपथ खाना निरर्थक बन गया था, और यीशु ने कौनसी स्थिति ली?
१६ इसी ढंग से, यीशु ने आगे कहा: “फिर तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि ‘झूठी शपथ न खाना’ . . . परन्तु मैं तुम से कहता हूँ, कि कभी शपथ न खाना।” इस समय तक यहूदी शपथों का दुरुपयोग कर रहे थे और तुच्छ बातों के बारे में शपथ ले रहे थे पर उन्हें पूरा नहीं कर रहे थे। लेकिन यीशु ने कहा: “कभी शपथ न खाना . . . परन्तु तुम्हारी बात हाँ की हाँ, या नहीं की नहीं हो।” उसका नियम सरल था: हर समय सत्यवादी रहो, ताकि शपथ खाकर अपने शब्दों की गारंटी न देनी पड़े। महत्त्वपूर्ण मामलों में ही शपथ लो।—मत्ती ५:३३-३७; और २३:१६-२२ से तुलना करें।
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धार्मिकता मौखिक परंपराओं के ज़रिए नहींप्रहरीदुर्ग—1991 | नवंबर 1
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२०. मूसा की व्यवस्था को छोड़ने के बजाय, यीशु ने उसके प्रभाव को ज़्यादा विस्तृत और गहरा बनाकर उसे एक और भी ज़्यादा ऊँचे स्तर पर कैसे रखा?
२० इसलिए जब यीशु ने व्यवस्था के कुछ हिस्सों का ज़िक्र किया और कहा, “परन्तु मैं तुम से कहता हूँ,” वह मूसा की व्यवस्था को छोड़कर उसकी जगह में कुछ और नहीं ला रहा था। नहीं, पर वह उसके पीछे की मनोवृत्ति दिखाकर उसकी ताक़त को और अधिक गहरा और विस्तृत बना रहा था। भाईचारे के एक ज़्यादा ऊँचे नियम में निरन्तर दुर्भावना को हत्या ही माना जाता है। शुद्धता के एक ज़्यादा ऊँचे नियम के अनुसार निरन्तर आनेवाले हवस-भरे विचारों को व्यभिचार ही माना जाता है। विवाह के एक ज़्यादा ऊँचे नियम से छिछोरे रूप से किए गए तलाक़ ठुकरा दिए जाते हैं क्योंकि इन की वजह से व्यभिचारी पुनर्विवाह होते हैं। सच्चाई के एक ज़्यादा ऊँचे नियम से दिखायी देता है कि बार-बार शपथ खाना फ़ुज़ूल है। कोमलता के एक ज़्यादा ऊँचे नियम का पालन करने से बदले की भावना को निकाल दिया जाता है। प्रेम के एक ज़्यादा ऊँचे नियम से एक ऐसा ईश्वरीय प्रेम आवश्यक हो जाता है जिसकी कोई सीमा नहीं।
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