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  • यहोवा पर भरोसा प्रकट करें सीखी हुई बातों पर अमल करने से
    प्रहरीदुर्ग—1989 | नवंबर 1
    • ११. भौतिक चीज़ों की खोज में कुछेक किस तरह फँस गए हैं, और यह अविवेकी क्यों है?

      ११ “इसलिए पहले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करते रहो, तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी।” (मत्ती ६:३३, न्यू.व.) जब कुछ लोग उन शब्दों की ओर ध्यान देने से रह जाते हैं, तो यह कितनी दुःखी बात है! आर्थिक सुरक्षा की कल्पित कथा को तत्काल मानकर, वे अत्यधिक उत्तेजन से धन-दौलत, सांसारिक शिक्षा, और दुनियावी पेशों की खोज में लगे रहते हैं, और “अपनी सम्पत्ति पर भरोसा रखते” हैं। (भजन ४९:६) सुलैमान चिताता है: “धनी होने के लिए परिश्रम न करना। . . .  क्या तू अपनी दृष्टि उस वस्तु पर लगाएगा, जो है ही नहीं? वह उकाब पक्षी की नाईं पंख लगाकर निःसन्देह आकाश की ओर उड़ जाता है।”​—नीतिवचन २३:४, ५.

  • यहोवा पर भरोसा प्रकट करें सीखी हुई बातों पर अमल करने से
    प्रहरीदुर्ग—1989 | नवंबर 1
    • १३. “खाने और पहनने” से संतुष्ट होना सबसे बेहतर क्यों है?

      १३ जो लोग अपने भरण-पोषण के लिए यहोवा पर भरोसा रखते हैं, वे खुद को बहुत सारे दुःख और परेशानी से बचाते हैं। सच, मात्र “खाने और पहनने” से संतुष्ट होने का मतलब शायद एक ज़्यादा मर्यादित जीवन-स्तर होगा। (१ तीमुथियुस ६:८) मगर “कोप के दिन धन से तो कुछ लाभ नहीं होता।” (नीतिवचन ११:४) इसके अतिरिक्‍त, जब हम यहोवा के लिए अपनी सेवा बढ़ाते हैं, तब हम खुद को “यहोवा की आशीष” पाने की स्थिति में पाते हैं, जिस ‘से धन मिलता है, और वह उसके साथ दुःख नहीं मिलाता।’​—नीतिवचन १०:२२.

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