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  • “उन्हें देखकर तड़प उठा”
    मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले
    • 15, 16. उन दो घटनाओं के बारे में बताइए जिनसे पता चलता है कि यीशु उन लोगों को किस नज़र से देखता था, जिन्हें वह प्रचार करता था।

      15 यीशु को प्रचार काम करते करीब दो साल हो गए थे, वह इस काम में जी-जान से लगा हुआ था। ईसवी सन्‌ 31 में उसने प्रचार काम को और बढ़ाया, वह गलील के “सब शहरों और गाँवों का दौरा करने निकला।” लोगों की हालत देखकर उसका दिल रो पड़ा। इस बारे में प्रेषित मत्ती ने लिखा: “जब उसने भीड़ को देखा तो वह तड़प उठा, क्योंकि वे उन भेड़ों की तरह थे जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो।” (मत्ती 9:35, 36) यीशु को आम लोगों के लिए हमदर्दी थी। वह अच्छी तरह जानता था कि उनकी आध्यात्मिक हालत कितनी खराब है। उसे मालूम था कि जिन्हें उनकी देखभाल करने की ज़िम्मेदारी दी गयी है, यानी धर्म-गुरु ही उनके साथ बुरा सलूक कर रहे हैं और उनका खयाल नहीं रख रहे हैं। लोगों के लिए गहरी करुणा होने की वजह से यीशु ने उन तक आशा का संदेश पहुँचाने में जी-तोड़ मेहनत की। उन्हें परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी।

  • “उन्हें देखकर तड़प उठा”
    मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले
    • 18 यीशु ने लोगों को जिस नज़र से देखा, हमें भी उन्हें उसी नज़र से देखना चाहिए, यानी ‘उन भेड़ों की तरह जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो।’ कल्पना कीजिए कि आपको एक मेम्ना मिलता है, जो भटक गया है। उसके पास कोई चरवाहा नहीं जो उसे हरी-हरी तराइयों में और पानी के पास ले जाए। वह नन्हा-सा मेम्ना भूखा और प्यासा है। क्या आपको उस पर तरस नहीं आएगा? क्या आप उसे चारा और पानी देने के लिए अपना भरसक नहीं करेंगे? उस मेम्ने की तुलना उन लोगों से की जा सकती है, जिन्हें अभी तक खुशखबरी के बारे में पता नहीं है। झूठे धार्मिक चरवाहों ने उन्हें यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया है। वे आध्यात्मिक तौर पर भूखे और प्यासे हैं। उनके पास भविष्य की कोई सच्ची आशा नहीं है। लेकिन हमारे पास वह चीज़ है जिसकी उन्हें ज़रूरत है, परमेश्‍वर के वचन में मिलनेवाला पोषण से भरा आध्यात्मिक भोजन और तरोताज़ा करनेवाला सच्चाई का पानी। (यशायाह 55:1, 2) जब हम अपने आस-पास के लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों पर गौर करते हैं, तो हमें उन पर बहुत तरस आता है। अगर यीशु की तरह हमारे दिल में भी लोगों के लिए हमदर्दी होगी, तो हम उन्हें राज की आशा देने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे।

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