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  • यहोवा—सच्चे न्याय और धार्मिकता का स्रोत
    प्रहरीदुर्ग—1998 | अगस्त 1
    • ११. (क) फरीसियों ने सब्त के दिन चंगा करने पर यीशु से सवाल क्यों पूछा? (ख) यीशु के जवाब ने क्या दिखाया?

      ११ सामान्य युग ३१ के वसंत में यीशु ने गलील में अपनी सेवकाई के वक्‍त आराधनालय में एक आदमी को देखा जिसका हाथ सूख गया था। क्योंकि वह सब्त का दिन था तो फरीसियों ने यीशु से पूछा: “क्या सब्त के दिन चंगा करना उचित है?” इस गरीब आदमी की पीड़ा के लिए दर्द महसूस करने के बजाय, वे यीशु को किसी कारण दोषी ठहराने की मंशा रखते थे और यह बात उनके सवाल से साफ जाहिर होती है। इसमें ताज्जुब नहीं कि यीशु उनके हृदय की कठोरता को देखकर दुःखी हुआ! फिर उसने फरीसियों से उनके जैसा ही एक तीखा सवाल पूछा: “क्या सब्त के दिन भला करना उचित है या बुरा करना?” जब वे चुप रहे तब यीशु ने अपने सवाल का जवाब यह पूछते हुए दिया कि क्या वे सब्त के दिन गड़हे में गिरी अपनी भेड़ को नहीं निकालते।b “भला, मनुष्य का मूल्य भेड़ से कितना बढ़ कर है”! यीशु ने बेजोड़ तर्क के साथ जवाब दिया। “इसलिये सब्त के दिन भलाई करना उचित [या, सही] है” उसने निष्कर्ष दिया। परमेश्‍वर के न्याय को इंसानों के रीति-रिवाज़ों की ज़ंजीरों में कभी-भी जकड़ना नहीं चाहिए। यह बात सही तरह समझाने के बाद, यीशु ने उस आदमी के हाथ को चंगा किया।—मत्ती १२:९-१३; मरकुस ३:१-५.

  • यहोवा—सच्चे न्याय और धार्मिकता का स्रोत
    प्रहरीदुर्ग—1998 | अगस्त 1
    • b यीशु ने बढ़िया उदाहरण चुना था क्योंकि यहूदियों का मौखिक नियम खासतौर पर उन्हें सब्त के दिन मुसीबत में फँसे किसी जानवर को बचाने की इज़ाज़त देता था। और कई अवसरों पर, इसी बात को लेकर आमना-सामना हुआ, जैसे कि क्या सब्त के दिन चंगा करना उचित है या नहीं।—लूका १३:१०-१७; १४:१-६; यूहन्‍ना ९: १३-१६.

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