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  • “तेरी उपस्थिति का . . . चिह्न क्या होगा?”
    प्रहरीदुर्ग—1994 | फरवरी 1
    • १६. लूका २१:२४ यीशु की भविष्यवाणी से कौन-सा पहलू जोड़ता है, और इसका महत्त्व क्या है?

      १६ यदि हम मत्ती २४:१५-२८ और मरकुस १३:१४-२३ की तुलना लूका २१:२०-२४ से करें, तो हमें एक दूसरा संकेत मिलता है कि यीशु का भविष्यकथन यरूशलेम के विनाश से बहुत आगे तक जाता है। याद कीजिए कि केवल लूका ने ही मरियों का उल्लेख किया था। इसी तरह, केवल उसी ने इस भाग को यीशु के शब्दों से समाप्त किया: “जब तक जातियों का नियुक्‍त समय [“अन्यजातियों का समय,” King James Version] पूरा न हो, तब तक यरूशलेम अन्य जातियों द्वारा रौंदा जाएगा।”e (लूका २१:२४, NW) बाबुली लोगों ने सा.यु.पू. ६०७ में यहूदियों के अंतिम राजा को हटा दिया, और उसके पश्‍चात्‌, यरूशलेम, जो परमेश्‍वर के राज्य का प्रतिनिधित्व करता था, रौंदा गया। (२ राजा २५:१-२६; १ इतिहास २९:२३; यहेजकेल २१:२५-२७) लूका २१:२४ में यीशु ने संकेत दिया कि यह स्थिति भविष्य में भी जारी रहेगी जब तक कि परमेश्‍वर के राज्य को पुनःस्थापित करने का समय न आए।

  • “तेरी उपस्थिति का . . . चिह्न क्या होगा?”
    प्रहरीदुर्ग—1994 | फरवरी 1
    • e कई लोग लूका २१:२४ के बाद लूका के वृत्तान्त में एक परिवर्तन देखते हैं। डॉ. लिऑन मॉरिस नोट करता है: “यीशु अन्यजातियों के समय के बारे में आगे कहता है। . . . अधिकांश विद्वानों की राय में अब मनुष्य के पुत्र के आने की ओर ध्यान जाता है।” प्रोफ़ेसर आर. गिनस्‌ लिखता है: “मनुष्य के पुत्र का आना—(मत्ती २४:२९-३१; मर. १३:२४-२७)। ‘अन्यजातियों के समय’ का उल्लेख इस विषय को प्रस्तावना प्रदान करता है; [लूका का] परिप्रेक्ष्य अब यरूशलेम के विनाश से आगे भविष्य की ओर जाता है।”

      f प्रोफ़ेसर वॉल्टर लीफेल्ड लिखता है: “यह मान लेना निश्‍चित रूप से संभव है कि यीशु के भविष्यकथनों ने दो स्थितियों को समाविष्ट किया: (१) मंदिर को शामिल करनेवाली ई. स. ७० की घटनाएँ और (२) दूरस्थ भविष्य की घटनाएँ, जिनका विवरण ज़्यादा भविष्यसूचक शब्दों में किया गया है।” जे. आर. डमलो द्वारा सम्पादित एक व्याख्या कहती है: “इस महान भाषण की सबसे गंभीर मुश्‍किलें ग़ायब हो जाती हैं जब यह समझा जाता है कि हमारे प्रभु ने किसी एक घटना का नहीं लेकिन दो घटनाओं का ज़िक्र किया था, और कि पहली दूसरी का प्रतीक है। . . . विशेषकर [लूका] २१:२४, जो ‘अन्यजातियों के समय’ के बारे में कहता है, . . . यरूशलेम के पतन और संसार के अन्त के बीच एक अनिश्‍चित अन्तराल रखता है।”

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