दरअसल किसे स्वर्गीय बुलाहट है?
यहोवा मानवजाति से प्रेम करते हैं। अजी, यह प्रेम इतना महान् है कि जो कुछ हमारे पूर्वज आदम ने खो दिया था उसे दोबारा पाने के लिए उन्होंने छुड़ौती के रूप में अपने पुत्र, यीशु मसीह, को दे दिया! और वह क्या था? अपने सारे अधिकारों और प्रत्याशाओं के साथ अनन्त, सिद्ध मानव जीवन। (यूहन्ना ३:१६) छुड़ौती मनुष्यजाति के ख़ातिर यीशु के प्रेम की भी एक अभिव्यक्ति थी।—मत्ती २०:२८.
दैविक प्रेम यीशु की छुड़ौती की बलिदान के मूल्य पर आधारित परमेश्वर द्वारा दी गयी दो आशाओं को विस्तृत करने में प्रदर्शित की गयी। (१ यूहन्ना २:१, २) यीशु एक मनुष्य होकर मरने से पहले, जिन लोगों को दैविक स्वीकृति मिली उनके सामने एकमात्र आशा पार्थिव परादीस में जीवन व्यतीत करने की थी। (लूका २३:४३) तथापि, पिन्तेकुस्त सा.यु. ३३ के बाद, यीशु ने एक “छोटे झुण्ड” को स्वर्गीय आशा दी थी। (लूका १२:३२) परन्तु हाल के समय में क्या हुआ है? १९३१ से राज्य संदेश “अन्य भेड़” पर अधिक ध्यान केन्द्रित करती है, और १९३५ से परमेश्वर नम्र लोगों में से “एक बड़ी भीड़” अपने लिए मसीह के द्वारा एकत्रित कर रहे हैं। (यूहन्ना १०:१६; प्रकाशितवाक्य ७:९) उनके हृदय में, परमेश्वर ने एक पार्थिव परादीस में अनन्त जीवन की आशा दी है। वे हमेशा के लिए सिद्ध भोजन खाना, जानवरों पर नियंत्रण रखना और धर्मी लोगों के साथ संगति का आनंद उठाना चाहते हैं।
सहानुभूतिशील याजक और राजाएँ
चूँकि प्रेम ने यीशु को छुड़ौती के रूप में अपना जीवन देने के लिए प्रेरित किया था, निश्चय ही वह एक सहानुभूतिशील स्वर्गीय राजा होगा। फिर भी, यीशु मनुष्यजाति को अपने हज़ार वर्ष के शासन के दौरान सिद्धता की ओर उन्नत करने में अकेला नहीं होगा। यहोवा ने स्वर्ग में दूसरे सहानुभूतिशील राजाओं का भी प्रबन्ध किया है। हाँ, “वे परमेश्वर और मसीह के याजक होंगे, और उसके साथ हज़ार वर्ष तक राज्य करेंगे।—प्रकाशितवाक्य २०:१-६.
मसीह के साथ कितने सह-शासक होंगे, और कैसे वे ऐसे एक विस्मयकारी सुअवसर के लिए चुने जाते हैं? खैर, प्रेरित यूहन्ना ने स्वर्गीय सिय्योन पर्वत पर मेम्ने, यीशु मसीह, के साथ १,४४,००० लोगों को देखा था। “मनुष्यों में से मोल लिए” जाने पर, वे इस बात को जानेंगे कि मनुष्य होकर संकट अनुभव करने, असिद्धता के बोझ को सहने, दुःख उठाने और मर जाने का अर्थ क्या है। (प्रकाशितवाक्य १४:१-५; अय्यूब १४:१) इसलिए, वे कितने सहानुभूतिशील राजा-याजक होंगे!
आत्मा की गवाही
१,४४,००० जन यहोवा “उस पवित्र से अभिषिक्त” हुए हैं। (१ यूहन्ना २:२०) यह स्वर्गीय आशा के लिए अभिषेक है। परमेश्वर ने ‘उन पर छाप लगा दी है और जो कुछ आनेवाला है, अर्थात आत्मा जो उनके हृदयों में आने वाला है, उसका प्रमाण दिया है।’—२ कुरिन्थियों १:२१, २२.
हाँ, जिनकी स्वर्गीय बुलाहट है उन पर परमेश्वर के आत्मा के होने का प्रमाण है। इसके सम्बन्ध में, पौलुस ने रोमियों ८:१५-१७ में लिखा था: “क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली, कि फिर भयभीत हो परन्तु लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिससे हम ‘हे अब्बा, हे पिता’ कहकर पुकारते हैं। आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की संतान हैं। और यदि संतान हैं, तो वारिस भी, बरन परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, जबकि हम उसके साथ दुःख उठाएँ कि उसके साथ महिमा भी पाएँ।” ऐसा परमेश्वर के आत्मा, या सक्रिय शक्ति के द्वारा होता है, कि अभिषिक्त जन पुकार उठते हैं, “हे अब्बा, हे पिता!”
मुख्य प्रमाण कि एक व्यक्ति स्वर्गीय बुलाहट के लिए अभिषिक्त किया गया है, पुत्रत्व का आत्मा, या प्रबल भाव है। (गलतियों ४:६, ७) ऐसा व्यक्ति बिलकुल निश्चित रहता है कि वह स्वर्गीय राज्य के १,४४,००० संगी वारिसों में से एक होने के नाते आत्मिक पुत्र होने के लिए परमेश्वर द्वारा चुन लिया गया है। वह प्रमाणित कर सकता है कि उसकी स्वर्गीय आशा उसकी अपने परिष्कृत इच्छा या उसकी कल्पना नहीं है; बल्कि, उसके प्रति परमेश्वर की आत्मा की कार्रवाई के परिणामस्वरूप यह यहोवा की ओर से है।—१ पतरस १:३, ४.
परमेश्वर के पवित्र आत्मा के प्रभाव में, अभिषिक्त जनों की आत्मा, या प्रबल मनोवृत्ति, एक प्रेरक शक्ति के रूप में काम करती है। परमेश्वर का वचन स्वर्गीय आशा के बारे में जो कुछ कहता है उसका उत्तर सकारात्मक रूप से देने के लिए यह उन्हें प्रेरित करती है। यहोवा पवित्र आत्मा के द्वारा जैसा सम्बन्ध उनके साथ रखते हैं उसका उत्तर भी वे सकारात्मक रीति से देते हैं। इस प्रकार, वे निश्चित हैं कि वे परमेश्वर की आत्मिक संतान और वारिस हैं।
जब अभिषिक्त जन परमेश्वर के आत्मिक पुत्र और स्वर्गीय आशा के बारे में उसका वचन जो कुछ कहता है पढ़ते हैं, तब उनकी स्वाभाविक मनोवृत्ति अपने आप से कहती है, ‘इसका अर्थ में हूँ!’ हाँ, जब उनके पिता का वचन एक स्वर्गीय इनाम की प्रतिज्ञा करता है, तब वे आनंदपूर्वक प्रतिक्रिया दिखाते हैं। जब वे पढ़ते हैं: “हे प्रियों, अभी हम परमेश्वर की संतान हैं,” तब वे कहते हैं, ‘इसका अर्थ मैं हूँ!’ (१ यूहन्ना ३:२) और जब अभिषिक्त जन पढ़ते हैं कि परमेश्वर ने “उसकी सृष्टि की हुई वस्तुओं में से एक प्रकार के प्रथम फल” होने के लिए लोगों को चुन लिया है, तब उनकी मानसिक प्रवृत्ति उत्तर देती है, ‘हाँ, उसने उस मक़सद के लिए मुझे चुन लिया है।’ (याकूब १:१८) वे जानते हैं कि उन्होंने “यीशु मसीह” और उसकी मत्यु में बपतिस्मा लिया है। (रोमियों ६:३) इसलिए उनको मसीह की आत्मिक देह का हिस्सा बनने और उसके समान मरने और स्वर्गीय जीवन के लिए पुनरूत्थान प्राप्त करने की आशा प्राप्त करने का दृढ़ विश्वास है।
स्वर्गीय राज्य का वारिस बनने के लिए, अभिषिक्त जनों को ‘अपने बुलाए जाने, और चुन लिए जाने को निश्चित करने का यत्न’ करना है। (२ पतरस १:५-११) जैसा पार्थिव आशा रखने वाले करते हैं वे भी विश्वास से चलते हैं और आत्मिक रूप से बढ़ते जाते हैं। अतः, आत्मा की गवाही में और क्या शामिल है?
क्यों वे हिस्सा लेते हैं?
अभिषिक्त मसीही वर्त्तमान समय के पार्थिव जीवन से असंतुष्ट होने के कारण स्वर्ग जाना नहीं चाहते हैं। (यहूदा ३, ४, १६ से तुलना करें.) इसके बजाय, पवित्र आत्मा उनके आत्मा के साथ गवाही देता है कि वे परमेश्वर की संतान हैं। वे निश्चित हैं कि वे नयी वाचा के लिए चुन लिए गए हैं। इस वाचा के समर्थक यहोवा परमेश्वर और आत्मिक इस्राएल हैं। (यिर्मयाह ३१:३१-३४; गलतियों ६:१५, १६; इब्रानियों १२:२२-२४) यह वाचा, यीशु के बहाए हुए लोहू के द्वारा सक्रिय, यहोवा के नाम के लिए लोगों को चुन लेता है और इन अभिषिक्त मसीहियों को इब्राहीम के “वंश” का हिस्सा बनाता है। (गलतियों ३:२६-२९; प्रेरितों के काम १५:१४) नयी वाचा तब तक सक्रिय है जब तक सभी आत्मिक इस्राएल स्वर्ग में अविनाशी जीवन के लिए जिलाए न जाते हैं।
इसके अलावा, जिनकी सचमुच स्वर्गीय बुलाहट है उन्हें कोई संदेह नहीं है कि वे भी स्वर्गीय राज्य की वाचा में हैं। यीशु स्वयं और अपने अनुयायियों के बीच इस वाचा का उल्लेख यह कहते हुए करते हैं: “परन्तु तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे। और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिए एक राज्य ठहराया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिए ठहराता हूँ, ताकि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज पर खाओ-पिओ; बरन सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करो।” (लूका २२:२८-३०) यह वाचा यीशु के चेलों के साथ, पिन्तेकुस्त सा.यु. ३३ के दिन उनको पवित्र आत्मा से अभिषिक्त करने के द्वारा प्रारम्भ की गयी। यह मसीह और उसके संगी राजाओं के साथ हमेशा सक्रिय रहती है।—प्रकाशितवाक्य २२:५.
वे जो स्वर्गीय बुलाहट के हिस्सेदार हैं इस बात से निश्चित हैं कि वे एक नयी वाचा और एक राज्य के लिए वाचा में है। इसलिए, वे उचित रीति से प्रभु के शाम की भोज, या यीशु मसीह की मृत्यु के यादगार के वार्षिक स्मरणोत्सव में प्रतीकात्मक रोटी और दाखरस के हिस्सेदार होते हैं। अखमीरी रोटी यीशु की पापरहित मानव देह, और दाखरस मृत्यु में बहाया गए उसके सिद्ध लोहू को चित्रित करता है और नयी वाचा को मान्यता देता है।—१ कुरिन्थियों ११:२३-२६.
यदि यहोवा आप में स्वर्गीय जीवन की सुस्पष्ट आशा को उत्पन्न करते हैं, तब आप उसको समझ जाते हैं। आप उस आशा की अभिव्यक्ति में प्रार्थनाएँ करते हैं। यह आपको तल्लीन कर देता है, और आप इसे अपने से अलग नहीं कर सकते। आप आत्मिक अभिलाषओं को पाते हैं। परन्तु यदि आप विभाजित और अनिश्चित हैं, तब निश्चय ही आपको प्रभु के शाम की भोज के प्रतीकों में हिस्सा नहीं लेना चाहिए।
क्यों ग़लत धारणाएँ?
कुछ लोग स्मारक प्रतीकों में ग़लत रीति से हिस्सा ले सकते हैं क्योंकि वे वास्तव में यह स्वीकार नहीं करते कि अभिषिक्त “न तो चाहनेवाले की, न दौड़नेवाले की परन्तु दया करनेवाले परमेश्वर की बात” पर निर्भर करता है। (रोमियों ९:१६) यह किसी व्यक्ति विशेष के इस निर्णय पर निर्भर नहीं करता कि वह नयी वाचा में लिया जाना और स्वर्गीय राज्य में मसीह के साथ संगी वारिस बनना चाहता है या चाहती है। यहोवा का चुनाव महत्त्वपूर्ण है। प्राचीन इस्राएल में, परमेश्वर ने उनको चुना था जो उसके लिए याजक का काम करते, और उसने कोरा को हारून के परिवार को दी गयी परमेश्वरीय याजकत्व का धृष्टता से उपयोग करने के लिए दण्ड दिया। (निर्गमन २८:१; गिनती १६:४-११, ३१-३५; २ इतिहास २६:१८; इब्रानियों ५:४, ५) इसी प्रकार, यहोवा अप्रसन्न होगा यदि एक व्यक्ति जिसे परमेश्वर ने ऐसी बुलाहट के लिए हिस्सेदार नहीं बनाया था, स्वयं को स्वर्गीय राजाओं और याजकों के मध्य होने के लिए प्रस्तुत करता है।—१ तीमुथियुस ५:२४, २५ से तुलना करें.
एक व्यक्ति ग़लत धारणा बना सकता है कि कठिन समस्याओं से उत्पन्न दृढ़ भावनाओं के कारण उसे स्वगीर्य बुलाहट हुई है। जीवन-साथी की मृत्यु या किसी दूसरी दुर्घटना से एक व्यक्ति पृथ्वी पर जीने की दिलचस्पी नहीं रख सकता है। या एक निकट साथी अभिषिक्त होने का दावा कर सकता है, और वह व्यक्ति भी वैसी ही स्थिति की इच्छा रख सकता है। ऐसे कारणों से वह महसूस कर सकता है कि स्वर्ग में उसके लिए जीवन है। परन्तु यह परमेश्वर का तरीक़ा नहीं है कि किसी को भी पुत्रत्व की आत्मा दे दे। यदि एक व्यक्ति पार्थिव जीवन से सम्बन्धित अनचाही स्थितियों या भावात्मक कष्ट के कारण स्वर्ग जाने को इच्छुक है तब यह पृथ्वी के सम्बन्ध में परमेश्वर के उद्देश्य के प्रति कृतज्ञता की कमी दिखाएगा।
भूतपूर्व धार्मिक दृष्टिकोण के कारण भी एक व्यक्ति ग़लत रीति से निष्कर्ष निकाल सकता है कि उसे स्वर्गीय बुलाहट है। शायद वह कभी झूठे धर्म से सम्बन्धित था जिस में विश्वस्त लोगों के ख़ातिर स्वर्गीय जीवन का एकमात्र आशा बतलाया था। तथापि, एक मसीही को ज़ज़बात और अतीत के ग़लत दृष्टिकोण से बचने की आवश्यकता है।
सावधानीपूर्वक जाँच आवश्यक है
प्रेरित पौलुस ने एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात बतायी जब उसने ऐसा लिखा: “इसलिए जो कोई अनुचित रीति से प्रभु की रोटी खाए, या उसके कटोरे में से पीए, वह प्रभु की देह और लोहू का अपराधी ठहरेगा। इसलिए मनुष्य अपने आप को जाँच ले और इसी रीति से इस रोटी में से खाए, और इस कटोरे में से पीए। क्योंकि जो खाते-पीते समय प्रभु की देह को न पहचाने, वह इसे खाने और पीने से अपने ऊपर दण्ड लाता है।” (१ कुरिन्थियों ११:२७-२९) इसलिए, एक बपतिस्मा प्राप्त मसीही जिसने हाल के वर्षों में ऐसा सोचना शुरू किया था कि उसे स्वर्गीय बुलाहट हुई थी इस विषय पर बहुत सावधानीपूर्वक और प्रार्थना करते हुए ध्यान देना चाहिए।
ऐसा व्यक्ति स्वयं से यह भी पूछ सकता है: ‘क्या दूसरे लोग स्वर्गीय जीवन के विचार का आनन्द उठाने के लिए मुझे प्रभावित करते हैं?’ यह अनुचित होगा, क्योंकि परमेश्वर ने किसी को ऐसे सुअवसर के लिए दूसरों को भरती करने के लिए नियुक्त नहीं किया है। किसी भ्रांति के प्रति झुकाव इस बात का संकेत नहीं है कि वह परमेश्वर द्वारा नियुक्त है, और उस सम्बन्ध में वह किसी संदेश को सुनने के द्वारा उन्हें राज्य का वारिस नियुक्त नहीं करता है।
कुछ लोग स्वयं से पूछ सकते हैं: ‘एक मसीही बनने से पहले, क्या मैं नशीली पदार्थों में अंतर्ग्रस्त था? क्या मैं ऐसा चिकित्सा कर रहा हूँ जो भावनाओं को प्रभावित करता है? क्या मूझे मानसिक या भावनात्मक समस्याओं के लिए चिकित्सा मिली है? कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने पहले उसके विरूद्ध लड़ाई की जिसे वे स्वर्गीय आशा समझते थे। दूसरे कहते हैं कि एक बार परमेश्वर ने उनकी पार्थिव आशा ले ली थी और अंत में उन्हें स्वर्गीय आशा दी। परन्तु ऐसी प्रक्रिया परमेश्वर के सम्बन्धों के विरूद्ध है। इसके अलावा, विश्वास अनिश्चित नहीं है; यह निश्चित है।—इब्रानियों ११:६.
एक व्यक्ति स्वयं से पूछ सकता है: ‘क्या मैं ऊँचा स्थान चाहता हूँ? क्या मैं अभी अधिकार के पद के लिए या मसीह के साथ संगी राजा और याजक बनने के लिए महत्त्वाकांक्षी हूँ? सामान्य युग के पहली शताब्दी में, जब स्वर्गीय राज्य में प्रवेश पाने के लिए आम नियंत्रण दिया जा रहा था, सब अभिषिक्त मसीहियों को शासी निकाय का सदस्य होने या प्राचीन या सेवकाई सेवक के रूप में उत्तरदायी होने का अधिकार प्राप्त नहीं था। कई स्त्रियाँ थीं, और उन्हें कोई विशेष अधिकार प्राप्त नहीं था; न ही आत्मा से अभिषिक्त होने के कारण परमेश्वर के वचन की असाधारण समझ उन्हें थी, क्योंकि पौलुस ने कुछ अभिषिक्त जनों को शिक्षा और सलाह देना आवश्यक समझा था। (१ कुरिन्थियों ३:१-३; इब्रानियों ५:११-१४) जिन्हें स्वर्गीय बुलाहट है वे स्वयं को प्रमुख व्यक्ति नहीं समझते, और वे अपने अभिषिक्त होने की ओर ध्यान नहीं देते हैं। इसके बजाय, वे नम्रता दिखाते हैं जैसा “मसीह का मन” रखनेवाले से उचित रीति से आशा की जाती है। (१ कुरिन्थियों २:१६) वे यह भी अनुभव करते हैं कि सभी मसीहियों को, चाहे उनकी आशा स्वर्गीय है या पार्थिव परमेश्वर की धार्मिक माँगों को पूरी करनी है।
स्वर्गीय बुलाहट के लिए स्वीकृति एक व्यक्ति के लिए विशेष प्रकटन नहीं लाती। परमेश्वर ने एक संचार माध्यम का प्रबन्ध किया है जिसके द्वारा वह अपनी पार्थिव संस्था को आध्यात्मिक भोजन देते हैं। (मत्ती २४:४५-४७) अतः किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि एक अभिषिक्त मसीही होने से उसे पार्थिव आशा रखनेवाली “बड़ी भीड़” से श्रेष्ठ बुद्धि मिलती है। (प्रकाशितवाक्य ७:९) आत्मा से अभिषिक्त होने का संकेत गवाही देने, पवित्र-शास्त्र के प्रश्नों को उत्तर देने, या बाइबल से भाषण देने में प्रवीणता द्वारा नहीं मिलता, क्योंकि पार्थिव आशा रखनेवाले मसीही भी इन क्षेत्रों में बहुत अच्छा काम करते हैं। अभिषिक्त जनों के समान, वे भी आदर्श मसीही जीवन व्यतीत करते हैं। इसी कारणवश, समसुन और पूर्व-मसीही समय के दूसरे लोगों को परमेश्वर की आत्मा मिली थी और वे उत्साह और समझ से भर गए थे। फिर भी, ‘गवाहों के उस बड़े बादल’ में से किसी को स्वर्गीय आशा नहीं थी।—इब्रानियों ११:३२-३८; १२:१; निर्गमन ३५:३०, ३१; न्यायियों १४:६, १९; १५:१४; १ शमूएल १६;१३; यहेजकेल २:२.
जो चुनाव करता है उसे याद रखना
यदि एक संगी विश्वासी स्वर्गीय बुलाहट के बारे में पूछता है, तो एक नियुक्त प्राचीन या दूसरे प्रौढ़ मसीही उसके साथ इस विषय पर विचार-विमर्श कर सकते हैं। परन्तु एक व्यक्ति दूसरे के लिए ऐसा निर्णय नहीं कर सकता, और यहोवा वह व्यक्ति है जो स्वर्गीय आशा प्रदान करते हैं। एक व्यक्ति जिसे सचमुच स्वर्गीय बुलाहट है यदि ऐसी आशा है तो उसे संगी मसीहियों से पूछने की आवश्यकता कभी नहीं होगी। अभिषिक्त लोगों ने “नाशमान नहीं पर अविनाशी बीज से परमेश्वर के जीवते और सदा ठहरनेवाले वचन के द्वारा नया जन्म पाया है।” (१ पतरस १:२३) अपने आत्मा और वचन के द्वारा, परमेश्वर “बीज” बोता है जो एक व्यक्ति में स्वर्गीय आशा की “एक नयी सृष्टि” करता है। (२ कुरिन्थिंयों ५:१७) हाँ, यहोवा चुनाव करते हैं।
इसलिए, जब आप नए व्यक्ति के साथ बाइबल अध्ययन करते हैं, यह सलाह देना अच्छा नहीं है कि वे निर्णय करने की कोशिश करें कि उन्हें स्वर्गीय बुलाहट है या नहीं। परन्तु क्या होगी यदि एक अभिषिक्त व्यक्ति अविश्वसनीय प्रमाणित होता है और प्रतिस्थापन की आवश्यकता होती है? तब यह निष्कर्ष निकालना उचित होगा कि परमेश्वर किसी दूसरे की स्वर्गीय बुलाहट देंगे जो अनेक वर्षों से हमारे स्वर्गीय पिता की विश्वस्ततापूर्वक सेवकाई करने में अनुकरणीय रहा है।
आज, परमेश्वर के संदेश का मुख्य दबाव लोगों को मसीह की स्वर्गीय दुल्हन का सदस्य बनना नहीं है। इसके बजाय, “आत्मा और दुल्हन दोनों कहती है: ‘आ!’” यह पार्थिव परादीस में जीवन बिताने के लिए निमंत्रण है। (प्रकाशितवाक्य २२:१, २, १७) जैसे अभिषिक्त जन इस कार्य में अगुवाई करते हैं, वे “दीनता” दिखाते हैं और ‘अपने बुलाहट और चुने जाने को निश्चित करने के लिए’ काम करते हैं।—इफिसियों ४:१-३; २ पतरस १:५-११.