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  • “मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!”
    ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
    • 5. जब पौलुस को फेस्तुस के सामने लाया गया तो फेस्तुस ने क्या किया?

      5 कुछ दिन बाद फेस्तुस कैसरिया में ‘न्याय-आसन पर बैठता है।’b फेस्तुस के सामने पौलुस और वे यहूदी खड़े हैं जो यरूशलेम से आए हैं। वे पौलुस पर बेबुनियाद इलज़ाम लगाने लगते हैं। जवाब में पौलुस कहता है, “मैंने किसी के खिलाफ कोई पाप नहीं किया, न यहूदियों के कानून के खिलाफ, न मंदिर के खिलाफ और न ही सम्राट के खिलाफ।” यह बात साफ है कि पौलुस बेकसूर है और उसे कैद से रिहा कर देना चाहिए। मगर फेस्तुस क्या फैसला सुनाएगा? वह पौलुस से पूछता है, “क्या तू यरूशलेम जाना चाहता है ताकि वहाँ मेरे सामने इन मामलों के बारे में तेरा न्याय किया जाए?” (प्रेषि. 25:6-9) फेस्तुस ने यह कैसी बेतुकी बात कही! अगर पौलुस वापस यरूशलेम जाता तो उसके दुश्‍मन खुद उसका न्याय करते और बेशक उसे मौत की सज़ा सुनाते। यह बात कहकर फेस्तुस ने दिखाया कि उसे सच्चा इंसाफ करने से ज़्यादा, लोगों को खुश करने की पड़ी थी। कुछ समय पहले एक और राज्यपाल पुन्तियुस पीलातुस ने भी यीशु के साथ कुछ ऐसा ही किया था। (यूह. 19:12-16) आज भी हो सकता है कुछ जज, अधिकारियों को खुश करने के लिए, यहोवा के लोगों के मुकदमों में सच्चा न्याय ना करें। इसलिए हमारी बेगुनाही के पक्के सबूत होते हुए भी अगर अदालत हमारे खिलाफ फैसला करती है तो हमें ताज्जुब नहीं करना चाहिए।

  • “मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!”
    ‘परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
    • b यहाँ बताया गया “न्याय-आसन” एक कुर्सी थी जो ऊँचे चबूतरे पर रखी जाती थी। इसे ऊँचे पर रखने का यह मतलब था कि इस पर बैठकर न्यायी जो फैसला सुनाता है, वह पत्थर की लकीर होता है। पीलातुस ने भी एक “न्याय-आसन” पर बैठकर यीशु के मुकदमे की सुनवाई की थी।

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