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  • “समुद्र के जोखिमों में”
    प्रहरीदुर्ग—1999 | मार्च 15
    • पहली सदी में जहाज़ चलानेवालों के पास यंत्रों की कमी थी—उनके पास कंपास भी नहीं था जो उन्हें दिशा बताता—जहाज़ चलाने के लिए उन्हें अपनी नज़र पर ही भरोसा करना पड़ता था। इसलिए यात्रा तभी सुरक्षित होती जब मौसम अच्छा रहता—यानी ज़्यादातर मई के आखिरी दिनों से लेकर सितंबर महीने के बीच तक। इससे पहले के दो महीनों या इसके बाद के दो महीनों में व्यापारी समुद्री यात्रा करने का जोखिम उठा सकते थे। लेकिन सर्दियों के मौसम में कोहरे और बादलों की वज़ह से ज़मीन और सूरज नज़र नहीं आते थे और रात के वक्‍त तारे नहीं दिखते थे। नवंबर ११ से मार्च १० के बीच समुद्री यात्राएँ पूरी तरह बंद (लातीनी में, मारे क्लाउसम) की जाती थीं। बहुत ज़रूरी काम पड़ने पर ही जहाज़ चलते थे। जो इस मौसम में यात्रा करते उन्हें सर्दी के दिन काटने के लिए किसी दूसरे बंदरगाह में ठहरना पड़ सकता था।—प्रेरितों २७:१२; २८:११.

  • “समुद्र के जोखिमों में”
    प्रहरीदुर्ग—1999 | मार्च 15
    • ज़ाहिर है कि पौलुस खराब मौसम में जहाज़ से यात्रा करने के खतरों से वाकिफ था। उसने यह सलाह भी दी कि सितंबर महीने के आखिरी दिनों या अक्‍तूबर महीने की शुरूआत में यात्रा नहीं करनी चाहिए। उसने कहा: “हे सज्जनो मुझे ऐसा जान पड़ता है, कि इस यात्रा में बिपत्ति और बहुत हानि न केवल माल और जहाज की बरन हमारे प्राणों की भी होनेवाली है।” (प्रेरितों २७:९, १०) लेकिन सेना-नायक ने उसकी बात नहीं मानी इसलिए जहाज़ माल्टा के पास टूट गया।

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