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  • परमेश्‍वर पक्षपाती नहीं है
    प्रहरीदुर्ग—1989 | जुलाई 1
    • परमेश्‍वर पक्षपाती नहीं है

      “परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उससे डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।”​—प्रेरितों के काम १०:३४, ३५.

      १. प्राचीन एथन्स में, जाति के विषय में पौलुस ने कौनसी महत्त्वपूर्ण बात कही?

      “जिस परमेश्‍वर ने पृथ्वी और उसकी सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी होकर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता . . . उसने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं।” (प्रेरित १७:२४-२६, फिलिप्स) उन शब्दों को किस ने कहा? मार्स पहाड़ी पर या यूनान के, एथन्स में एरोपॅगस पर उनके प्रसिद्ध भाषण के दौरान मसीही प्रेरित पौलुस ने कहा।

      २. जीवन को रंगीन और दिलचस्प बनाने के लिए क्या सहायक बनता है, और दक्षिण अफ्रीका की किस बात से एक जापानी दर्शक प्रभावित हुआ?

      २ पौलुस का कथन हमें इस सृष्टि का प्रशंसनीय विविधता के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है। यहोवा परमेश्‍वर ने कितने विभिन्‍न प्रकार के मनुष्यों, जानवरों, पक्षियों, कीड़ों और पौधों की सृष्टि की है। जीवन कितना मन्द होता अगर वे सब समान होते! उनकी विविधता जीवन को रंगीन और दिलचस्प बनाती है। उदाहरणार्थ, दक्षिण अफ्रीका में यहोवा के गवाहों के एक सम्मेलन में उपस्थित एक जापानी दर्शक, वहाँ देखी गयी जाति और रंग की विविधता से प्रभावित हुआ। उन्होंने कहा कि यह जापान से कितना भिन्‍न था जहाँ अधिकांश लोगों में समान जातीय विशेषताएं हैं।

      ३. कुछ लोग एक अलग चर्म रंग को किस रीति से देखते हैं, जो क्या उत्पन्‍न करता है?

      ३ लेकिन जातियों में रंग की विविधता बहुधा गम्भीर समस्याओं को उत्पन्‍न करती हैं। कई उन लोगों को घटिया समझते हैं जिनके चर्म का एक अलग रंग है। यह विद्वेष, घृणा और जातीय पक्षपात की महाविपत्ति को भी उत्पन्‍न करती है। क्या हमारे सृष्टिकर्ता का यह इरादा था? क्या कुछ जातियाँ उसकी नज़रों में श्रेष्ठ हैं?

      हमारे सृष्टिकर्ता​—पक्षपाती?

      ४-६. (अ) राजा यहोशापात ने पक्षपात के बारे में क्या कहा? (ब) दोनों मूसा और पौलुस ने यहोशापात के कथन की पुष्टि कैसे की? (क) कुछ लोग कौनसे प्रश्‍नों को उठाएंगे?

      ४ इतिहास में वापस कदम रखने के द्वारा हम, सम्पूर्ण मानव-जाति के विषय में, हमारे सृष्टिकर्ता के दृष्टिकोण का कुछ अनुमान लगा सकते हैं। राजा यहोशापात ने, जो सामान्य युग पूर्व ९३६ से ९११ तक यहूदा का शासन किया, कई सुधार किए और ईश्‍वरीय नियम के आधार पर न्यायिक व्यवस्था का सही कार्य-कारिणी का प्रबन्ध किया। उन्होंने न्यायियों को यह उत्कृष्ट सलाह दी: “सोचो कि क्या करते हो क्योंकि तुम जो न्याय करोगे, वह मनुष्य के लिए नहीं, यहोवा के लिए करोगे . . . चौकसी से काम करना क्योंकि हमारे परमेश्‍वर यहोवा में कुछ कुटिलता नहीं है, और न वह किसी का पक्ष करता है।”​—२ इतिहास १९:६, ७.

      ५ कई शतकों पहले, भविष्यवक्‍ता मूसा ने इस्राएल की जातियों से कहा था: “तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा . . . किसी का पक्ष नहीं करता।” (व्यवस्थाविवरण १०:१७) और रोमियों के लिए अपनी चिट्ठी में पौलुस ने चिताया: “क्लेश और संकट हर एक मनुष्य के प्राण पर जो बुरा करता है आएगा, पहिले यहूदी पर फिर यूनानी पर . . . क्योंकि परमेश्‍वर के कोई प्रीतिभजन नहीं है।”​—रोमियों २:९-११, न्यू इंग्लिश बाइबल।

      ६ लेकिन कुछ शायद पूछेंगे: ‘इस्राएलियों के बारे में क्या? क्या वे परमेश्‍वर के चुने हुए लोग नहीं थे? क्या वह उनकी ओर पक्षपाती नहीं था? क्या सम्पूर्ण इस्राएल से मूसा ने नहीं कहा था: “तू अपने परमेश्‍वर यहोवा की पवित्र प्रजा हैं, यहोवा ने पृथ्वी भर के सब देशों के लोगों में से तुझ को चुन लिया है कि तू उसकी प्रजा और निज धन ठहरे”?’​—व्यवस्थाविवरण ७:६.

      ७. (अ) जब यहूदियों ने मसीहा को अस्वीकार किया तब परिणाम क्या निकला? (ब) आज कौन परमेश्‍वर की ओर से अद्‌भुत आशीषों का आनन्द उठा सकेंगे और कैसे?

      ७ नहीं, एक विशेष उद्देश्‍य के लिए इस्राएलियों का उपयोग करने में परमेश्‍वर पक्षपाती नहीं था। एक ऐसे लोग को चुनने के लिए, जिनसे मसीहा को उत्पन्‍न करना था यहोवा ने विश्‍वासी इब्रानी कुलपतियों के वंशज को चुना था। लेकिन जब यहूदियों ने मसीहा, यीशु मसीह, को अस्वीकार किया, और उसका वध करवाया, उन्होंने परमेश्‍वर की कृपा खो दी। किन्तु, आज, वे जो किसी भी जाति या राष्ट्र के हैं, जो यीशु में विश्‍वास करते हैं, अद्‌भुत आशीषों का अनुभव कर सकेंगे और अनन्त जीवन की प्रत्याशा रख सकते हैं। (यूहन्‍ना ३:१६; १७:३) अवश्‍य, यह सिद्ध करता है कि परमेश्‍वर की ओर से कोई भी पक्षपात नहीं। इसके अतिरिक्‍त, यहोवा ने इस्राएलियों को “परदेशियों से प्रेम भाव रखने” और “उसको दुःख न देने” की आज्ञा दी थी, चाहे उसकी जाति या राष्ट्रीयता कुछ भी हो। (व्यवस्थाविवरण १०:१९; लेव्यव्यवस्था १९:३३, ३४) फिर तो, सचमुच ही स्वर्ग का हमारा प्रेममय पिता पक्षपाती नहीं है।

      ८. (अ) क्या सिद्ध करता है कि यहोवा ने इस्राएल की ओर पक्षपात नहीं दिखाया? (ब) यहोवा ने इस्राएल का किस रीति से उपयोग किया?

      ८ यह सच है कि इस्राएलियों ने खास विशेषाधिकारों का आनन्द उठाया। लेकिन उन पर एक भारी जिम्मेदारी भी थी। उन पर यहोवा के नियमों का पालन करने का दायित्व था, और वे जो उनका पालन करने में असफल होते एक शाप के अधीन हो जाते थे। (व्यवस्थाविवरण २७:२६) वस्तुतः, परमेश्‍वर की व्यवस्था की अवज्ञा करने के कारण इस्राएलियों को बार-बार दण्डित किया गया। इसलिए, यहोवा उनके साथ तरफ़दारी से पेश नहीं आया। बल्कि उस ने उन्हें भविष्यसूचक प्रतिरूपों को बनाने और चेतावनेवाले उदाहरणों को प्रस्तुत करने के लिए उपयोग किया। सौभाग्यवश, यह इस्राएल के द्वारा था, कि परमेश्‍वर ने सम्पूर्ण मानवजाति के स्वस्त्ययन के लिए उद्धारक, यीशु मसीह को उत्पन्‍न किया।​—गलतियों ३:१४; उत्पत्ति २२:१५-१८ से तुलना करें।

      क्या यीशु पक्षपाती था?

      ९. (अ) यहोवा और यीशु किस प्रकार समान है? (ब) यीशु के बारे में कौनसे प्रश्‍न उठते हैं?

      ९ चूँकि यहोवा के साथ कोई पक्षपात नहीं था, क्यों यीशु पक्षपाती हो सकता है? खैर, इस पर विचार कीजिए: यीशु ने एक बार कहा था: “मैं अपनी इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूँ।” (यूहन्‍ना ५:३०) यहोवा और उसके प्रिय बेटे के बीच में परिपूर्ण एकता है, और यीशु हर बात में अपने पिता की इच्छा करता है। असल में, वे दृष्टि और उद्देश्‍य में इतने समान थे कि यीशु यह कह सका: “जिसने मुझे देखा है, उसने पिता को देखा है।” (यूहन्‍ना १४:९) ३३ से अधिक वर्षों से यीशु को एक मनुष्य के रूप में पृथ्वी में रहने का वास्तविक अनुभव था और बाइबल बताती है कि कैसे उसने सह-मनुष्यों के साथ बर्ताव किया। दूसरी जातियों की ओर उसकी क्या मनोवृत्ति थी? क्या वह पूर्वाग्रही या पक्षपाती था? क्या यीशु जातिवादी था?

      १०. (अ) मदद के लिए एक कनानी औरत के अनुरोध का यीशु ने कैसे उत्तर दिया? (ब) क्या अन्य जातियों का “छोटे कुत्तों” के रूप में संकेत करने के द्वारा यीशु पक्षपात दिखा रहा था? (क) कैसे वह औरत इस आपत्ति पर विजयी हुई, और इसका परिणाम क्या निकला?

      १० यीशु ने अपने पार्थिव जीवन के अधिकांश को यहूदी लोगों के साथ बिताया। लेकिन एक दिन, उसके पास एक कनानी औरत, एक गैर-यहूदी, आयी और उससे उसकी बेटी को चंगा करने के लिए प्रार्थना की। उत्तर में यीशु ने कहा: “इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों को छोड़ मैं किसी के पास नहीं भेजा गया।” फिर भी उस औरत ने विनती की: “हे प्रभु, मेरी सहायता कर।” तब उसने आगे कहा: “लड़कों की रोटी लेकर छोटे कुत्तों के आगे डालना अच्छा नहीं।” यहूदियों के लिए कुत्ते अपवित्र जानवर थे। इसलिए क्या अन्य जातियों का “छोटे कुत्तों” के रूप में संकेत करने के द्वारा यीशु पक्षपात दिखा रहा था? जी नहीं, क्योंकि उसने परमेश्‍वर से अर्पित ‘इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों’ की देख-भाल के विशेष कार्य के बारे में अभी-अभी कह चुका था। इसके अतिरिक्‍त, गैर-यहूदियों की तुलना जंगली कुत्तों से नहीं बल्कि “छोटे कुत्तों” से करने के द्वारा, यीशु ने इस तुलना को हलका कर दिया। निस्सन्देह, उसने जो कहा, वह उस औरत की परीक्षा की। इस आपत्ति पर विजय पाने के लिए निश्‍चित होने पर भी, नम्रतापूर्वक, उसने कार्यकुशलता से उत्तर दिया: “सत्य है प्रभु, पर छोटे कुत्ते भी वह चूरचार खाते हैं, जो उन के स्वामियों की मेज से गिरते हैं।” उस औरत के विश्‍वास से प्रभावित होने पर, यीशु ने उसकी बेटी को तुरन्त चंगा कर दिया।​—मत्ती १५:२२-२८, न्यू.व.

      ११. जैसे एक घटना के द्वारा चित्रित किया गया, जिस में यीशु अन्तर्ग्रस्त था, एक दूसरे की ओर, यहूदियों और सामरियों की क्या मनोवृत्ति थी?

      ११ कुछ सामरियों के साथ यीशु की भेंटों पर भी विचार कीजिए। यहूदियों और सामरियों के बीच में गहरा वैर-भाव था। एक अवसर पर, यीशु ने एक अमुक सामरी गाँव में, उसके लिए तैयारियाँ करने के लिए, संदेशवाहकों को भेजा। परन्तु, उन सामरियों ने “उसे उतरने न दिया, क्योंकि वह यरूशलेम को जा रहा था।” यह याकूब और यूहन्‍ना को इतना परेशान कर दिया कि वे आकाश से आग गिराकर उन्हें नाश कर देना चाहते थे। लेकिन यीशु ने उन दो शिष्यों को फटकारा और वे सब एक अन्य गाँव चले गए।​—लूका ९:५१-५६.

      १२. एक अमुक सामरी औरत यीशु के निवेदन पर आश्‍चर्यचकित क्यों हुई?

      १२ क्या यीशु यहूदियों और सामरियों के बीच के वैर-भाव का भागी हुआ? खैर, एक और घटना में क्या हुआ, इस पर ध्यान दीजिए। यीशु और उसके शिष्य यहूदिया से गलील की ओर जा रहे थे और सामरिया से गुज़रना था। यात्रा से थक जाने पर यीशु विश्राम करने के लिए याकूब के कुए के पास बैठ गया, जब उसके शिष्य सूखार शहर में भोजन खरीदने गए थे। इस बीच, सामरी औरत पानी निकालने आयी। अब, यीशु खुद एक और अवसर पर सामरियों को “एक अन्य जाति” का होने के रूप में वर्गीकरण कर चुका था। (लूका १७:१६-१८ किंगडम इन्टरलीनियर ट्रान्सलेशन ऑफ द ग्रीक स्क्रिपचर्स) लेकिन उसने उससे कहा: “मुझे पानी पिला।” क्योंकि यहूदियों को सामरियों के साथ कुछ भी सम्पर्क नहीं था, उस आश्‍चर्यचकित औरत ने उत्तर दिया: “तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्यों माँगता है?”​—यूहन्‍ना ४:१-९.

      १३. (अ) उस सामरी औरत के आक्षेप की ओर यीशु ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई, और उस औरत की क्या प्रतिक्रिया थी? (ब) अन्तिम परिणाम क्या था?

      १३ लेकिन यीशु ने उस औरत की आपत्ति पर ध्यान नहीं दिया। इसके बदले, उसने इस अवसर को उसे एक गवाही देने के लिए उपयोग किया, यह भी स्वीकार करते हुए कि वही मसीहा है। (यूहन्‍ना ४:१०-२६) यह आश्‍चर्यचकित औरत अपने जल मर्तबान को कुए के पास छोड़कर, वापस शहर की ओर दौड़ चली, और जो हुआ था, उसके बारे में दूसरों से कहने लगी। हालाँकि, उसने अनैतिक जीवन बिताया था, उसने आध्यात्मिक विषयों में उसकी रुचि को यह कहने के द्वारा प्रकट की: “कहीं यही तो मसीह नहीं है?” अन्तिम परिणाम क्या था? उस औरत ने जो उत्कृष्ट गवाही दी थी, उसके कारण, स्थानीय लोगों में से बहुतों ने यीशु पर विश्‍वास करने लगे। (यूहन्‍ना ४:२७-४२) दिलचस्पी की बात है, कि अपने अ बिब्लिकल पर्सपेक्टीव ऑन द रेस प्रॉब्लम, इस पुस्तक में सामुदायिक धर्मविज्ञानी थॉमस ओ. फिगार्ट ने यह मत प्रकट किया: “अगर हमारे प्रभु ने यह महत्त्वपूर्ण समझा कि एक गुमराह जातीय रिवाज को एक दयामय कृत्य के द्वारा हटा देना है, तो हमें यह ध्यान देना है, कि हम जातिवाद की इस नदी में आज खो न जाए।”

      १४. सुसमाचारक फिलिप्पुस की सेवकाई के दौरान यहोवा की निष्पक्षता का कौनसा प्रमाण प्रकट हुआ?

      १४ यहोवा परमेश्‍वर की निष्पक्षता ने विभिन्‍न जातियों के लोगों को धर्मान्तरित यहूदियाँ बनने की अनुमति दी। १९ शतकों पहले यरूशलेम और अज्जाह के बीच के बंजर मार्ग में जो हुआ, उस पर भी विचार कीजिए। एक काला आदमी जो कूश की रानी की सेवा में था, अपने रथ में यशायाह की भविष्यवाणी को पढ़ते हुए यात्रा कर रहा था। यह अफ़सर एक धर्मान्तरित खतनावाला था, क्योंकि वह “भजन करने को यरूशलेम आया था।” यहोवा का दूत यहूदी सुसमाचारक फिलिप्पुस को प्रकट हुआ और उससे कहा: “निकट जाकर इस रथ के साथ हो ले।” क्या फिलिप्पुस ने ऐसे कहा: “ओह नहीं! वह तो एक और जाति का पुरुष है?” इसका विपरीत! क्यों, फिलिप्पुस तो रथ में चढ़ने, उसके साथ बैठा और यीशु मसीह के बारे में यशायाह की भविष्यवाणी को समझाने के लिए प्रसन्‍न था। जब वे जल का एक स्थान पर पहुँचे, तो उस कूशी ने पूछा: “मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रोक है!” क्योंकि इसे रोकने के लिए कुछ भी बात नहीं थी, फिलिप्पुस ने खुश होकर उस कूशी को बपतिस्मा दिया और यहोवा ने उस प्रसन्‍न आदमी को उसका निष्पक्ष बेटा, यीशु मसीह के अभिषिक्‍त शिष्य के रूप में स्वीकार किया। (प्रेरित ८:२६-३९) लेकिन ईश्‍वरीय निष्पक्षता का अधिक प्रमाण जल्द ही अपने आप को प्रकट किया।

      एक महान परिवर्तन

      १५. यीशु के मरण के बाद कौनसा परिवर्तन हुआ और पौलुस यह कैसे स्पष्ट करता है?

      १५ मसीह की मृत्यु ने सांसारिक जातीय पक्षपात को समाप्त नहीं किया। लेकिन उस बलि मृत्यु के द्वारा परमेश्‍वर ने यीशु के यहूदी शिष्यों का उसके गैर-यहूदी शिष्यों के साथ के सम्बन्ध को अवश्‍य बदल दिया। प्रेरित पौलुस ने इफिसुस के गैर-यहूदी मसीहियों को लिखते समय यह सूचित किया और कहा: “स्मरण करो कि तुम जो शारीरिक रीति से अन्यजाति हो . . . तुम लोग उस समय मसीह से अलग और इस्राएल की प्रजा के पद से अलग किए हुए, और प्रतिज्ञा की वाचाओं के भागी न थे, और आशाहीन और जगत में ईश्‍वररहित थे। पर अब तो मसीह के लोहू के द्वारा निकट हो गए हो। क्योंकि वही हमारा मेल है, जिसने दोनों को एक कर लिया, और अलग करनेवाली दीवार को जो बीच में थी ढा दिया।” वह “दीवार” या विभाजन का प्रतीक नियम वाचा की व्यवस्था थी जो यहूदियों और अन्य जातियों के बीच एक व्यवधान के रूप में कार्य की। वह मसीह के मरण के आधार पर समाप्त किया गया ताकि उसके द्वारा दोनों यहूदियों और अन्य जातियों को “एक आत्मा में पिता के पास पहुँच” हो सकती थी।”​—इफिसियों २:११-१८.

      १६. (अ) राज्य की कुंजियाँ पतरस को क्यों दी गईं? (ब) कितनी कुंजियाँ थीं और उनके उपयोग से क्या परिणाम हुआ?

      १६ इसके अतिरिक्‍त प्रेरित पतरस को “स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ” दी गयीं ताकि किसी भी जाति के लोग परमेश्‍वर के उद्देश्‍यों के बारे में सीख सकें, पवित्र आत्मा के साथ “नए सिरे से जन्म” ले सकें, और मसीह के साथ आत्मिक वारिस बन सकें। (मत्ती १६:१९; यूहन्‍ना ३:१-८) पतरस ने तीन प्रतीकात्मक कुंजियों का उपयोग किया। पहली कुंजी यहूदियों के लिए थी, दूसरी सामरियों के लिए, और तीसरी अन्य जातियों के लिए थी। (प्रेरित २:१४-४२; ८:१४-१७; १०: २४-२८, ४२-४८) इस तरह, निष्पक्ष परमेश्‍वर, यहोवा ने सभी जाति के चुने हुओं को यीशु के आध्यात्मिक भाई और राज्य के सह-वारिस होने का मार्ग खोल दिया।​—रोमियों ८:१६, १७; १ पतरस २:९, १०.

      १७. (अ) पतरस को कौनसा असाधारण दर्शन दिया गया और क्यों? (ब) कुछ पुरुषों ने पतरस को किस के घर ले गए और वहाँ उनकी प्रतीक्षा कौन कर रहे थे? (क) पतरस ने उन गैर-यहूदियों को किस विषय का स्मरण दिलाया और फिर भी परमेश्‍वर ने स्पष्ट रूप से उसे क्या सिखाया था?

      १७ पतरस को तीसरी कुंजी​—अन्य जातियों के लिए​—उपयोग करने के लिए तैयार करने के उद्देश्‍य से उसे अपवित्र जानवरों का एक असाधारण दर्शन दिया गया और कहा गया: “हे पतरस उठ, मार और खा।” सबक यह था: “जो कुछ परमेश्‍वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे अशुद्ध मत कह।” (प्रेरित १०:९-१६) पतरस इस दर्शन के अर्थ के सम्बन्ध में बड़ी परेशानी में था। लेकिन जल्द ही, वहाँ, कैसरिया में स्थित एक रोमी सेना अफ़सर, कुरनेलियुस, के घर ले जाने के लिए तीन मनुष्य पहुँच गए। क्योंकि वह शहर यहूदिया में रोमी सेना का मुख्यालय था, कुरनेलियुस के लिए इस जगह में अपना घर होना स्वाभाविक था। पतरस के लिए, उस बहुत ही गैर-यहूदी वातावरण में, कुरनेलियुस, उसके रिश्‍तेदारों और घनिष्ठ मित्रों के साथ इंतज़ार कर रहा था। उस प्रेरित ने उन्हें स्मरण दिलाया: “तुम जानते हो, कि अन्यजाति की संगति करना या उसके यहाँ जाना यहूदी के लिए अधर्म है, परन्तु परमेश्‍वर ने मुझे बताया है, कि किसी मनुष्य को अपवित्र या अशुद्ध न कहूँ, इसलिए मैं जब बुलाया गया, तो बिना कुछ कहे चला आया।”​—प्रेरित १०:१७-२९.

      १८. (अ) कुरनेलियुस और उनके मेहमानों के सामने पतरस ने कौनसी महत्त्वपूर्ण घोषणा की? (ब) यीशु के बारे में पतरस की गवाही के बाद, कौन-सी प्रभावशाली घटना घटित हुई (क) उन विश्‍वासी गैर-यहूदियों के सम्बन्ध में कौनसा कदम उठाया गया?

      १८ कुरनेलियुस, विषयों के बारे में परमेश्‍वर के निर्देशन को स्पष्ट करने के बाद, पतरस ने कहा: “अब मुझे निश्‍चय हुआ, कि परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरित १०:३०-३५) फिर, जैसे प्रेरित यीशु मसीह के बारे में गवाही देने लगा कुछ असाधारण घटित हुई! “पतरस ये बातें कह ही रहा था, कि पवित्र आत्मा वचन के सब सुननेवालों पर उतर आया।” पतरस के यहूदी साथियाँ “चकित हुए, कि अन्य जातियों पर भी पवित्र आत्मा का दान उंड़ेला गया है। क्योंकि उन्होंने उन्हें भांति भांति की भाषा बोलते और परमेश्‍वर की बड़ाई करते सुना।” पतरस ने जवाब दिया: “क्या कोई जल की रोक कर सकता है, कि ये बपतिस्मा न पाएं, जिन्हों ने हमारी नाईं पवित्र आत्मा पायी हैं?” कौन विरोध कर सकता था, क्योंकि स्वर्ग के निष्पक्ष परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा उन विश्‍वासी गैर-यहूदियों पर उंडेला गया था। इसलिए पतरस ने आदेश दिया कि उन्हें “मसीह के नाम में बपतिस्मा दिया जाए।”​—प्रेरित १०:३६-४८.

      “हर एक जाति से”

      १९. जातीय विद्वेष क्यों बढ़ रहा है और किस कदर तक?

      १९ हम अपने आप को “अन्तिम दिनों” में पाते हैं और “कठिन समय” जीवन की एक वास्तविकता है। अन्य बातों के अलावा, लोग अपस्वार्थी, निन्दक, मयारहित, क्षमारहित, असंयमी, कठोर, ढीठ और घमण्डी है। (२ तीमुथियुस ३:१-५) ऐसे सामाजिक वातावरण में, यह कोई आश्‍चर्य की बात नहीं, कि जातीय विद्वेष और संघर्ष विश्‍व भर बढ़ रहा है। कई राष्ट्रों में भिन्‍न जाति या रंग के लोग एक दूसरे को तुच्छ समझते हैं या घृणा तक करते हैं। यह वास्तविक युद्ध की ओर और कुछ देशों में भयंकर क्रूरताओं की ओर ले गया है। कुछ तथाकथित ज्ञानसम्पन्‍न समाजों में भी, कई लोग इस जातीय पूर्वधारणा से निकलने में कठिनाई अनुभव कर रहे हैं। और यह बीमारी कुछ ऐसे क्षेत्रों में फैल रही है जहाँ कोई इस की अपेक्षा बिल्कुल नहीं करते, जैसे सागर के द्वीप जो कभी उनकी शान्ति के कारण करीब-करीब ग्रामीण प्रतीत होते थे।

      २०. (अ) यूहन्‍ना ने कौनसा उत्प्रेरित दर्शन देखा? (ब) यह भविष्यसूचक दर्शन किस कदर तक पूर्ण हो रहा है? (क) कुछों को अब भी कौन-सी कठिनाई है जिससे पूर्ण रूप से निकलना है और एक समाधान के लिए उन्हें कहाँ खोज करनी है?

      २० किन्तु, इस संसार के विभिन्‍न भागों में जातीय सामंजस्य के अभाव के बावजूद निष्पक्ष परमेश्‍वर, यहोवा ने सभी जातियों और राष्ट्रों से निष्कपट लोगों को एक विशिष्ट अन्तर्राष्ट्रीय एकता में लाने की भविष्यवाणी की थी। ईश्‍वरीय प्रेरणा के द्वारा प्रेरित यूहन्‍ना ने देखा कि यहोवा की स्तुति करते हुए “हर एक जाति, और कुल और लोग और भाषा में से एक बड़ी भीड़ जिसकी गणना करना असम्भव है, सिंहासन के सामने और मेम्ने के सामने खड़ी थी।” (प्रकाशितवाक्य ७:९, जेरूसलेम बाइबल) इस भविष्यवाणी की पूर्ति हो रही है। आज, २१२ देशों में, सभी राष्ट्रों और जातियों में से, ३५,००,००० से अधिक यहोवा के गवाह एकता और जातीय सामंजस्य का आनन्द उठा रहे हैं। लेकिन वे अब भी असम्पूर्ण हैं। इन में से कुछों को जातीय पूर्वधारणा से पूर्ण रूप से निकलने के लिए कठिनाई महसूस हो रही है, हालाँकि वे इस बात से अनजान होंगे। इस समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है? हम इस विषय की चर्चा अगले अंक में निष्पक्ष परमेश्‍वर यहोवा के उत्प्रेरित वचन के सहायक सलाहों के आधार पर करेंगे।

  • सर्वसम्मति से यहोवा की सेवा करो
    प्रहरीदुर्ग—1989 | अगस्त 1
    • सर्वसम्मति से यहोवा की सेवा करो

      “फिर मैं देश-देश के लोगों से एक शुद्ध भाषा बुलवाऊँगा, कि वे सब के सब यहोवा से प्रार्थना करें, और एक मन से उसकी सेवा करें।”​—सपन्याह ३:९, अमेरिकन स्टॅन्डर्ड वर्शन।

      १, २. (अ) यहोवा अब कौन-सी भविष्यवाणी की पूर्ति ला रहा है? (ब) यह भविष्यवाणी कौन-से प्रश्‍नों को उठाती है?

      यहोवा परमेश्‍वर आज ऐसा कुछ कर रहा है जो मानव अकेले कभी नहीं कर सकेंगे। इस विभाजित संसार में कुछ ३,००० भाषाएं बोली जा रही हैं, लेकिन परमेश्‍वर अब इस भविष्यवाणी को पूर्ण कर रहा है: “मैं देश-देश के लोगों से एक नई और शुद्ध भाषा बुलवाऊँगा, कि वे सब के सब यहोवा से प्रार्थना करें, और एक मन से कन्धे से कन्धा मिलाए हुए उसकी सेवा करें।”​—सपन्याह ३:९.

      २ यह “शुद्ध भाषा” क्या है? कौन इसे बोलते हैं? और ‘कन्धे से कन्धा मिलाए हुए परमेश्‍वर की सेवा’ करने का अर्थ क्या है?

      वे “शुद्ध भाषा” बोलते हैं

      ३. “शुद्ध भाषा” क्या है और उसे बोलनेवाले विभाजित क्यों नहीं?

      ३ सामान्य युग पिन्तेकुस्त ३३ के दिन परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा यीशु मसीह के शिष्यों पर उँडेल दी गई, जिससे वे ऐसी भाषाएं बोलने में समर्थ हो गए जो वे नहीं जानते थे। यह उन्हें अनेक भाषाओं के लोगों से “परमेश्‍वर के बड़े बड़े कामों” के बारे में कहने के योग्य बनें। इस तरह, यहोवा सभी जातीय पृष्ठभूमि के लोगों को एकता में लाना आरम्भ कर दिया। (प्रेरित २:१-२१, ३७-४२) बाद में, जब विश्‍वास करनेवाले गैर-यहूदी लोग यीशु के शिष्य बन गए, तब परमेश्‍वर के सेवक सचमुच एक अनेक जिह्वीय, अनेक जातीय लोग थे। किन्तु, उन में, सांसारिक बाधाओं के कारण कभी भी फूट उत्पन्‍न नहीं हुए क्योंकि वे सब “शुद्ध भाषा” बोलते हैं। आध्यात्मिक सच्चाई की यही पारस्परिक भाषा की भविष्यवाणी सपन्याह ३:९ में की गई है। (इफिसियों ४:२५) वे जो यह “शुद्ध भाषा” बोलते हैं, विभाजित नहीं, बल्कि “एक ही मन और एक ही मत होकर मिले” रहने से “एक ही बात” कहते हैं।​—१ कुरिन्थियों १:१०.

      ४. सपन्याह ३:९ कैसे अनेक-जिह्वीय और अनेक-जातीय सहयोग सूचित करता है, और यह आज कहाँ पाया गया है?

      ४ यह “शुद्ध भाषा” सभी राष्ट्र और जाति के लोगों को “कँधे से कँधा” मिलाकर, अक्षरशः ‘एक कँधे से’ यहोवा की सेवा करने में समर्थ बनाने के लिए था। वे परमेश्‍वर की सेवा ‘पूरी सहमति से’ (द न्यू इंग्लिश बाइबल); ‘सर्वसम्मति से’ (द न्यू अमेरिकन बाइबल); या ‘एकमत मंजूरी और एक संगठित कँधे’ से करेंगे। (द ॲम्पलिफाइड बाइबल) एक और वृत्तान्त ऐसे कहता है: “फिर मैं सभी लोगों के होंठों को साफ कर दूँगा, कि वे सब यहोवा के नाम से प्रार्थना करें और उसकी सेवा मिलकर करें।” (बायिंगटन) परमेश्‍वर की सेवा में ऐसा अनेक​—जिह्वीय और अनेक-जातीय सहयोग केवल यहोवा के गवाहों में पाया गया है।

      ५. यहोवा के गवाह किसी भी मानवीय भाषा का कैसे उपयोग करते हैं?

      ५ इसलिए कि सभी यहोवा के गवाह शास्त्रीय सच्चाई की शुद्ध भाषा बोलते हैं, वे किसी भी मानवीय भाषा का सब से उत्तम उपयोग​—परमेश्‍वर की स्तुति करना और राज्य के सुसमाचार घोषित करना। (मरकुस १३:१०; तीतुस २:७, ८; इब्रानियों १३:१५) यह कितना अत्त्युत्तम है कि यह “शुद्ध भाषा” इस तरह सभी जातीय समूहों के लोगों को सर्वसम्मति से यहोवा की सेवा करने के योग्य बनाती है!

      ६. यहोवा लोगों को कैसे देखता है, लेकिन क्या सहायक होगा अगर एक अमुक मसीही के हृदय में पक्षपात का एक अंश रह जाता है?

      ६ जब पतरस कुरनेलियुस और अन्य गैर-यहूदियों को गवाही दे रहा था, उसने कहा: “अब मुझे निश्‍चय हुआ, कि परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता बरन, हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है वह उसे भाता है।” (प्रेरित १०:३४, ३५, बायिंगटन) अन्य वृत्तान्तों के अनुसार यहोवा “पक्षपाती नहीं,” “लोगों के बीच भेदभाव नहीं रखता” और “तरफ़दारी नहीं दिखाता।” (एम्फाटिक डायग्लट; फिलिप्स; न्यू इन्टरनॅशनल वर्शन) यहोवा के सेवक होने के नाते, हमें सभी जातीय समूहों के लोगों को जैसे वह देखता है, वैसे देखना है। लेकिन क्या होगा, अगर एक अमुक मसीही के हृदय में पक्षपात का एक अंश रह जाता है? तो इस पर ध्यान देना लाभदायक होगा कि कैसे हमारा निष्पक्ष परमेश्‍वर हर राष्ट्र, जाति, लोग और भाषा में के अपने सेवकों के साथ व्यवहार करता है।​—नवम्बर ८, १९८४ का अवेक!, पृष्ठ ३-११ भी देंखें।

      वे वांछनीय हैं

      ७. परमेश्‍वर के साथ के सम्बन्ध के विषय में, कैसे एक मसीही किसी दूसरे से अलग नहीं जो अन्य राष्ट्र या जाति का हो?

      ७ अगर आप यहोवा का बपतिस्मा पाया हुआ एक गवाह है, तो बहुत सम्भव है कि कभी आप भी इस दुष्ट व्यवस्था में ‘किए जानेवाले सब घृणित कामों के कारण सांसे भरते और दुःख के मारे चिल्लाते’ थे।’ (यहेजकेल ९:४) आप ‘अपने पापों के कारण मरे हुए’ थे लेकिन परमेश्‍वर दयालु होकर यीशु मसीह के द्वारा आपको अपनी ओर खींच लिया है। (इफिसियों २:१-५; यूहन्‍ना ६:४४) इन विषयों में आप उन लोगों से अलग नहीं थे जो अब आपके सह-विश्‍वासी हैं। वे भी दुष्टता के कारण दुःखी थे, ‘अपने पापों के कारण मरे हुए थे, और यीशु मसीह के द्वारा परमेश्‍वर की दया पानेवाले बनें। और हमारी जाति और राष्ट्रीयता जो भी हो, हम में से किसी को भी यहोवा परमेश्‍वर के साथ उसके गवाहों के रूप में एक स्तर होना केवल विश्‍वास के द्वारा है।​—रोमियों ११:२०.

      ८. हग्गै २:७ की पूर्ति अब कैसे हो रही है?

      ८ यह देखने के लिए कि सह-विश्‍वासियों की ओर हमारा दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए, हग्गै २:७ के भविष्यसूचक शब्द हमें मदद करेंगे। वहाँ यहोवा ने घोषित किया: “मैं सारी जातियों को कम्पकपाउँगा, और सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं आएंगी, और मैं इस भवन को अपनी महिमा के तेज से भर दूँगा।” यह भविष्यवाणी किया गया सच्चे धर्म का उन्‍नयन, परमेश्‍वर के सच्चे मन्दिर, उसकी उपासना के क्षेत्र में, घटित हो रहा है। (यूहन्‍ना ४:२३, २४) लेकिन “सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं” क्या हैं? वे उन हज़ारों धार्मिकता के प्रेमी हैं जो राज्य-प्रचार की ओर अनुक्रिया दिखाते हैं। सभी राष्ट्रों और जातियों से, वे उसके बपतिस्मा पाए हुए गवाह और अन्तर्राष्ट्रीय “बड़ी भीड़” का हिस्सा बनते हुए ‘यहेवा के भवन के पर्वत’ की ओर निकल रहे हैं। (यशायाह २:२-४; प्रकाशितवाक्य ७:९) यहोवा की पार्थिव संस्था के भाग के रूप में जो उसकी स्तुति कर रहे हैं, वे साफ, नैतिक, धार्मिक लोग हैं​—सचमुच वांछनीय। निश्‍चय ही, फिर हर सच्चा मसीही इन अभिष्ट लोगों की ओर, जो हमारे स्वर्ग के पारस्परिक पिता के सामने स्वीकार्य हैं, भ्रातृवत्‌ प्रेम दिखाना चाहेंगे।

      उनका व्यक्‍तित्व नया है

      ९. अतीत में, अगर हम भी विदेशियों की क़दर नहीं करते थे, अब हम मसीही होने के नाते स्थिति क्यों बदलनी चाहिए?

      ९ सारी पृथ्वी के हमारे भाई और बहन भी वांछनीय हैं, क्योंकि उन्होंने ‘पुराने मनुष्यत्व को उसके कामों समेत उतारकर, नए मनुष्यत्व को पहिन लेने’ के आदेश का पालन किए हैं। “अपने सृजनहार के स्वरूप के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिए [वह] नया बनता जाता है। उस में न तो यूनानी रहा, न यहूदी, न खतना, न खतनारहित, न जंगली, न स्कूती, न दास और न स्वतंत्र, केवल मसीह सब कुछ और सब में है। (कुलुस्सियों ३:९-११) अगर कोई व्यक्‍ति पहले, एक यहूदी, एक यूनानी, या अन्य विदेशियों की कदर नहीं करता था, तो अब एक मसीही होने के नाते स्थिति बदल चुकी होगी। चाहे जो भी जाति, राष्ट्र या संस्कृति हो, जो “नए मनुष्यत्व” का धारण करते हैं, परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा के फल​—प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम उत्पन्‍न और प्रदर्शित करते हैं। (गलतियों ५:२२, २३) यह उन्हें, यहोवा के सह-उपासकों के सामने प्रिय बनाते हैं।

      १०. अगर हम किसी भी जाति या राष्ट्र के सह-विश्‍वासियों के बारे में भारी अनुचित बातें कहने के लिए प्रलोभित होते हैं तो तीतुस १:५-१२ हमारी मदद कैसे कर सकता है?

      १० यहोवा के सेवकों के असमान, कुछ सांसारिक लोग अन्य जातीय पृष्ठभूमि के लोगों के बारे में अपमानजनक बातें कहते हैं। क्यों! अपने ही लोगों के बारे में एक क्रेती भविष्यवक्‍ता ने एक बार कहा था: “क्रेती लोग सदा झूठे, दुष्ट पशु और आलसी पेटू होते हैं।” प्रेरित पौलुस ने उन शब्दों की याद की जब क्रेत द्वीप पर के मसीहियों के बीच में के झूठे शिक्षकों के मुँह बन्द कर देना आवश्‍यक बन गया। परन्तु, निश्‍चित रूप से, पौलुस नहीं कह रहा था कि: ‘सभी क्रेती मसीही झूठ बोलते हैं, और अपमानिक हैं, आलसी हैं और पेटू हैं।’ (तीतुस १:५-१२) नहीं, क्योंकि मसीही दूसरों के विषय में अपमानजनक रूप से बात नहीं करते। इसके अतिरिक्‍त उन क्रेती मसीहियों में से अधिकांश ने “नए मनुष्यत्व” का धारण कर चुके थे और कुछ प्राचीनों के रूप में नियुक्‍ति के लिए आध्यात्मिक रूप से योग्य बने थे। यह गम्भीर सोच-विचार के योग्य हैं अगर हम कभी भी एक अमुक जाति या राष्ट्र के हमारे भाइयों और बहनों के बारे में भारी अनुचित बातें कहने के लिए प्रलोभित होते हैं।

      औरों को श्रेष्ठ समझें

      ११. अगर एक मसीही के हृदय में किसी भी प्रकार का पक्षपात हो, तो वह क्या कर सकता है?

      ११ दूसरी ओर, अगर एक मसीही एक अमुक जाति के राष्ट्र की ओर पक्षपाती है, तो वह सम्भवतः शब्दों या कार्यों के द्वारा इसे प्रकट करेगा। परिणामस्वरूप यह दुःखी भावनाओं को उत्पन्‍न कर सकता है, विशेष रूप से ऐसी एक सभा में जो विभिन्‍न जातीय पृष्ठभूमि के लोगों से बनी है। निश्‍चय ही, कोई भी मसीही परमेश्‍वर के लोगों की एकता पर ऐसा एक तनाव डालना नहीं चाहेगा। (भजन १३३:१-३) इसलिए अगर एक मसीही के हृदय में पक्षपात है, वह ऐसे प्रार्थना कर सकता है: “हे ईश्‍वर मुझे जांचकर जान ले। मुझे परखकर मेरी चिन्ताओं को जान ले। और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर।”​—भजन १३९:२३, २४.

      १२. हम हमारी जातीय पृष्ठभूमि के बारे में अपने में या दूसरों में घमण्ड क्यों नहीं करना चाहिए?

      १२ यह यथार्थवादी दृष्टि रखना अच्छा होगा कि हम सब असम्पूर्ण मानव है जिनका, अगर यीशु मसीह का बलिदान न होता तो परमेश्‍वर के सामने कोई भी स्तर न होता। (१ यूहन्‍ना १:८-२:२) फिर, दूसरों से हमें क्या अलग बनाता है? इसलिए कि हमारे पास कुछ ही नहीं, जो हम पाए नहीं, क्योंकर हम अपने में या दूसरों में हमारी जातीय पृष्ठभूमि के विषय में घमण्ड करें?​—१ कुरिन्थियों ४:६, ७ से तुलना करें।

      १३. हम मण्डली की एकता में कैसे सहयोग दे सकते हैं और फिलिप्पियों २:१-११ से क्या सीख सकते हैं?

      १३ हम सभा की एकता में सहयोग दे सकते हैं, अगर हम दूसरों के अच्छे गुणों को मान लेंगे और मूल्यांकन दिखाएंगे। यहूदी प्रेरित पौलुस ने हम सभों को विचार करने के लिए प्रेरित किया जब उसने गैर-यहूदी फिलिप्पियों से कहा: ‘मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त और एक ही मनसा रखो। विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।” हमें, किसी भी जाति या राष्ट्र के सह-मानवों की जो सही मनोवृत्ति दिखानी है, वह यीशु मसीह में प्रदर्शित की गई। हालाँकि वह एक शक्‍तिशाली आत्मिक सृष्टि था, वह “मनुष्य की समानता में हो गया,” और हर जाति और राष्ट्र के पाप मनुष्यों के लिए एक खम्बे पर, आज्ञाकारी रहकर, मृत्यु भी सह ली। (फिलिप्पियों २:१-११) तो फिर यीशु के शिष्य होने के नाते क्या हम, यह स्वीकार करते हुए कि दूसरे हम से श्रेष्ठ हैं, प्रेमी, नम्र और दयालु नहीं बनना है?

      सुनो और ध्यान से देखो

      १४. दूसरों को हम से श्रेष्ठ समझने के लिए हमारी क्या मदद कर सकता है?

      १४ दूसरों को हम से श्रेष्ठ समझने के लिए हमें मदद मिलेगी अगर हम, जब वे बोलते हैं, सचमुच सुनेंगे और ध्यानपूर्वक उनके आचरण को देखेंगे। उदाहरणार्थ, हमें ईमानदारी से यह मानना होगा कि एक सह-प्राचीन​—शायद कोई और जाति का​—थियोक्रेटिक मिनिस्ट्री स्कूल में प्रभावशाली सलाह देने की योग्यता में हम से श्रेष्ठ हैं। हम यह देख सकेंगे कि यह अनिवार्यतः उसकी शब्द-योजना या भाषण-शैली नहीं बल्कि उसकी आध्यात्मिकता है, जो उसे सह-विश्‍वासियों को समर्थ राज्य प्रचारक बनाने में मदद करने से अच्छे परिणाम मिलने के योग्य बनाता है। और यह स्पष्ट है कि यहोवा उसके प्रयत्नों पर आशीष दे रहा है।

      १५. जब हम सह-विश्‍वासियों की टिप्पणियाँ सुनते हैं, हम क्या देख सकते हैं?

      १५ जब हम हमारे भाइयों और बहनों से बात करते हैं या सभाओं में उनकी टिप्पणियों को सुनते हैं, हम जान सकेंगे कि उन में से कुछों को अमुक शास्त्रीय सच्चाइयों के बारे में हम से बेहतर समझ है। हम देख सकेंगे कि उनका भ्रातृवत्‌ प्रेम अधिक मज़बूत प्रतीत हो रहा है, उन में अधिक विश्‍वास प्रतीत हो रहा है, या वे यहोवा में अधिक विश्‍वास का प्रमाण दे रहे हैं। इसलिए वे चाहे हमारी जातीय पृष्ठभूमि के हो या ना हो, वे हमें प्रेम और भले कामों में उकसाते हैं, हमारे विश्‍वास को मज़बूत करने में मदद करते हैं, और हमारे स्वर्गीय पिता में और अधिक पूर्ण रूप से भरोसा रखने के लिए प्रेरित करते हैं। (नीतिवचन ३:५, ६; इब्रानियों १०:२४, २५, ३९) प्रत्यक्षतः यहोवा उनके निकट गए हैं, और इस प्रकार हमें भी जाना है।​—याकूब ४:८ से तुलना करें।

      अनुगृहीत और संपोषित

      १६, १७. इस तथ्य को चित्रित करें कि यहोवा किसी भी राष्ट्र या जाति के उसके सेवकों को आशीष देने में पक्षपाती नहीं।

      १६ यहोवा किसी भी राष्ट्र या जाति के उसके सेवकों को आशीष देने में पक्षपाती नहीं। उदाहरणार्थ, ब्राज़िल देश की ओर ध्यान दें। लगभग वर्ष १९२० में, विदेशी मिशनरियों से नहीं बल्कि ब्राज़िल के आठ नाविकों से पहली बार ब्राज़िल के लोगों ने राज्य संदेश सुना। परमेश्‍वर की आशीष सुस्पष्ट थी क्योंकि १९८७ सेवकाई वर्ष तक १४,१३,०२,००० निवासियों के उस देश में २१६,२१६ राज्य प्रचारकों का एक शिखर था​—जो ६५४ के विरुद्ध एक प्रचारक का अनुपात है।

      १७ एक और ईश्‍वरीय आशीष के उदाहरण की ओर ध्यान दें। अप्रैल १९२३ में करीबियन के ट्रिनिदाद द्वीप के दो अश्‍वेत यहोवा के गवाहों को पश्‍चिम अफ्रीका में राज्य संदेश घोषित करने के लिए भेजे गए। इस तरह भाई और बहन डब्लू. आर. ब्रौन ने वहाँ वर्षों तक सेवा की, वह भाई “बाइबल ब्रौन” के नाम से ज्ञान हो गया। उन्होंने “लगाया” और “परमेश्‍वर ने बढ़ाया,” जैसे दूसरे भी उस विस्तृत क्षेत्र में कार्य किए। (१ कुरिन्थियों ३:५-९) आज घाना में ३४,५०० से अधिक और केवल नायजीरिया में १३४,५०० से अधिक राज्य प्रचारक हैं।

      १८, १९. उदाहरण दे कि कैसे सभी जाति और राष्ट्र के उसके सेवकों को, हमारा निष्पक्ष परमेश्‍वर, संपोषित करता है।

      १८ यहोवा सभी राष्ट्रों और जातियों के उसके सेवकों को न केवल आशीष देता है बल्कि उन्हें सम्पोषित करता है। उदाहरणार्थ यहोवा के दो जापानी गवाहों के उदाहरण पर ध्यान दें। जून २१, १९३९ को, कतसुओ मियुरा और उसकी पत्नी अन्याय से गिरफ्तार किए गए, कैद किए गए और उनके पाँच-वर्षीय बेटे से अलग रखे गए जिसकी देख-रेख उसकी नानी को करनी पड़ी। आठ महीनों के बाद बहन मियुरा को रिहा कर दिया गया, लेकिन भाई मियुरा को मुक़दमा शुरू होने से पहले दो साल से अधिक समय हवालाव में रखा गया। उसने दुर्व्यवहार का अनुभव किया, दोषी पाया गया, और एक पाँच-वर्षीय दण्डादेश पाया। हिरोशिमा के कैदखाने में परमेश्‍वर ने, उसे शास्त्रों के द्वारा, जो अविरत सांत्वना और शक्‍ति देते हैं, संपोषित रखा। एक प्रतीयमान चमत्कार के द्वारा, भाई मियुरा अगस्त ६, १९४५ को बच निकले, जब एक अणु-बम विस्फोट ने उसके कैदखाने को विध्वंस कर दिया। दो महीनों बाद, वह जापान के उत्तरी भाग में, अपनी पत्नी और अपने बेटे से फिर मिल सका।

      १९ विश्‍व युद्ध II के दौरान कई देशों में यहोवा के गवाहों द्वारा सख्त उत्पीड़न अनुभव किए गए। उदाहरणार्थ, रॉबर्ट. ए. विन्क्लर एक जर्मन भाई थे जो जर्मनी और नेदरलैन्ड के नाज़ी नज़रबन्दी-शिविरों में कष्ट पाया। इसलिए कि वह अपने सह-विश्‍वासियों से विश्‍वासघात नहीं करता, उसे इतनी निर्दयता से मारा गया कि उसे पहचाना नहीं जा सकता था। लेकिन उस ने लिखा: “सभी प्रकार की समस्याओं में मदद करने की यहोवा की प्रतिज्ञाओं के विचारों ने मुझे यह सब कुछ सहने की सांत्वना और शक्‍ति दी। . . . शनिवार को मुझे मारा गया, और आगामी सोमवार को उनके द्वारा वापस मुझ से पूछ-ताछ की जानेवाली थी। अब क्या होगा और मुझे क्या करना था? मैं उसकी प्रतिज्ञाओं में भरोसा रखते हुए, प्रार्थना में यहोवा की ओर फिरा। मैं जानता था कि इसका अर्थ, राज्य कार्य और मेरे मसीही भाइयों की सुरक्षा के निमित्त, ईश्‍वरशासित युद्ध-कला का उपयोग करना था। सहन करने के लिए यह मेरे लिए एक बड़ी परीक्षा थी और सत्तरहवाँ दिन मैं पूर्ण रूप से थक गया, लेकिन मैंने यहोवा को धन्यवाद दिया कि उसकी शक्‍ति से मैं इस परीक्षा को सह सका और मेरी खराई बनाए रख सका।​—भजन १८:३५; ५५:२२; ९४:१८.

      हमारे भाईचारे के लिए एहसानमन्द

      २०. प्रत्येक जाति और राष्ट्र के सह-विश्‍वासियों की ओर हमारा आदर कैसे बढ़ाया जा सकता है?

      २० निस्सन्देह, यहोवा प्रत्येक राष्ट्र और जाति के उसके गवाहों को आशीष देता है और संपोषित करता है। वह पक्षपाती नहीं और हमें उसके समर्पित सेवकों के रूप में पक्षपात दिखाने का कोई बहाना या कारण नहीं। इसके अतिरिक्‍त, सभी जाति और राष्ट्र के हमारे भाइयों और बहनों के लिए हमारा आदर बढ़ेगा, अगर हम उन विशेषताओं पर विचार करेंगे जिन में वे हम से श्रेष्ठ हैं। वे भी स्वर्गीय विवेक का उपयोग करते हैं, जो पक्षपाती भेद नहीं करता बल्कि उत्कृष्ट फल उत्पन्‍न करता है। (याकूब ३:१३-१८) जी हाँ, और उनकी दयालुता, उदारता, प्रेम, और अन्य दैवी गुण हमें उत्तम उदाहरण प्रदान करते हैं।

      २१. क्या करने के लिए हमें निश्‍चित होना है?

      २१ तो फिर, हम हमारे इस अनेक-जातीय, अनेक राष्ट्रीय भाईचारे के लिए कितना एहसानमन्द होना चाहिए। हमारे स्वर्गीय पिता की मदद और आशीष के साथ, भ्रातृवत्‌ प्रेम में और पारस्परिक आदर के साथ हम “कँधे से कँधा मिलाए हुए उसकी सेवा करें।” सचमुच, सर्वसम्मति से यहोवा की सेवा करना, हमारी गम्भीर अभिलाषा और दृढ़ लक्ष्य होना चाहिए।

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