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लहू–जीवन के लिये आवश्यकआपके जीवन को लहू कैसे बचा सकता है?
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ध्यान दें, यीशु की मृत्यु के सालों बाद क्या हुआ, जब एक प्रश्न उठा कि क्या मसीही बनने पर एक व्यक्ति को सारे इस्त्राएली नियमों का पालन करना है या नहीं। मसीही शासी निकाय की एक सभा में इसपर विचार-विमर्श हुआ, जिसमें प्रेरित भी उपस्थित थे। यीशु के सौतेले भाई याकूब ने उन लेखों का उल्लेख किया, जिनमें लहू से सम्बन्धित, नूह और इस्राएल राष्ट्र को दी गई आज्ञाएँ थी। क्या यह आज्ञाएँ मसीहियों पर बाध्यकारी होना था?—प्रेरितों के काम १५:१-२१.
उस सभा ने अपना निर्णय सारी कलीसियों को भेज दिया: मसीहियों के लिये यह आवश्यक नहीं है कि वह मूसा को दी गई नियम संहिता का पालन करें, लेकिन उनके लिये यह “आवश्यक” है कि “मूरतों के बलि किए हुओं से, और लहू से और गला घोंटे हुओं के माँस से (लहू सहित माँस) और व्यभिचार से परे रहो।” (प्रोरितों के काम १५:२२-२९) प्रोरित केवल एक विधि या एक आहार सम्बन्धी अध्यादेश ही नहीं प्रस्तुत कर रहे थे। इस आज्ञप्ति में मौलिक नीतियों से सम्बन्धित सिद्धान्त थे, जिनका प्रारम्भिक मसीहियों ने अनुपालन किया। लगभग एक दशक बाद भी उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें, “मूरतों के सामने बलि किए हुए माँस से और लहू से . . . और व्यभिचार से बचे रहना” है।—प्ररितों के काम २१:२५.
आप जानते हैं कि लाखों लोग गिरजा जाते हैं। उनमे से अधिकतर शायद इससे सहमत होंगे कि मसीही नीतियों में यह शामिल है कि मूर्तियों की उपासना और अश्लील अनैतिकता गलत है। लेकिन हमें यहाँ ध्यान देना है कि प्रोरितों ने लहू से परे रहने को उसी उच्च नैतिक स्तर पर रखा, जिसपर उन अन्य गलत कामों को रखा था, जिनसे दूर रहना है। उनकी आज्ञप्ति के अन्त में कहा गया: “यदि तुम ध्यानपूर्वक अपने आप को इन बातों से दूर रखोगे, तो तुम समृद्ध होंगे। तुम्हे अच्छी सेहत मिले।”—प्रोरितों के काम १५:२९. न्यू.व.
यह प्रोरितीक आज्ञप्ति बहुत समय तक बाध्यकारी समझी जाती रही। यूसीबिअस ने दूसरी शताब्दी के अन्त में, एक युवा स्त्री के बारे में बताया जिसने यातना से मरने के पहले यह कहा कि मसीहियों “को अविवेकी जानवरों का लहू भी खाने की आज्ञा नहीं है।” वह मरने के अधिकार का प्रयोग नहीं कर रही थी। वह जीना चाहती थी, लेकिन अपने सिद्धान्तों से समझौता नहीं कर सकती थी। क्या आप उन लोगों का आदर नहीं करते, जो व्यक्तिगत लाभ से ऊँचा दर्जा, सिद्धान्त को देते हैं?
विज्ञानी जोज़फ प्रीस्टली ने निर्णीत किया: “नूह को दिया गया, लहू खाने का निषेध उसकी आने वाली सभी पीढ़ियों के लिये बाध्य मालूम पड़ता है . . . यदि हम प्रारम्भिक मसीहियों के आचरण का अर्थ, प्रोरितों पर लगाए गए प्रतिबन्ध को समझते हैं, और उन मसीहियों को ऐसा नहीं समझा जा सकता कि वह उस बात के सार और विस्तार को न समझे हों, तो हम केवल इसी परिणाम पर पहुँचते हैं, कि इसका अभिप्राय सुनिश्चित तथा नित्य था; क्योंकि कई शताब्दियों तक मसीहियों ने लहू को खाने में प्रयोग नहीं किया।”
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“यह उपदेश जो सुस्पष्ट तथा सुव्यवस्थित ढंग से [प्रोरितों के काम १५ में] दिए गए हैं, अनिवार्य माने जाते हैं, इस बात का ठोस सबूत देते हुए कि प्रोरितों के मनों में यह अस्थायी व्यवस्था या एक अनन्तिम उपाय नहीं था।”—प्रोफेसर एडोआर्ड रिअस, युनिवर्सिटी ऑफ स्टैर्सबर्ग।
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