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“प्रचार किए जा, चुप मत रह”‘परमेश्वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
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“इस शहर में मेरे बहुत-से लोग हैं” (प्रेषि. 18:9-17)
12. यीशु एक दर्शन में पौलुस को क्या यकीन दिलाता है?
12 पौलुस शायद इस उलझन में है कि उसे कुरिंथ में प्रचार करते रहना चाहिए या नहीं। पर अब जो होता है उससे उसकी उलझन दूर हो जाती है। रात में प्रभु यीशु उसे दर्शन देता है और कहता है, “मत डर, प्रचार किए जा, चुप मत रह। इस शहर में मेरे बहुत-से लोग हैं जिन्हें इकट्ठा करना बाकी है। इसलिए मैं तेरे साथ हूँ और कोई भी तुझ पर हमला करके तुझे चोट नहीं पहुँचाएगा।” (प्रेषि. 18:9, 10) ज़रा सोचिए इस दर्शन से पौलुस को कितनी हिम्मत मिली होगी! यीशु खुद उसे यकीन दिलाता है कि उस पर कोई आँच नहीं आएगी और शहर में अब भी बहुत-से लोग हैं जिन्हें खुशखबरी सुनाना बाकी है। दर्शन के बाद पौलुस क्या करता है? आयत बताती है, “पौलुस डेढ़ साल तक वहीं रहा और उनके बीच परमेश्वर का वचन सुनाता रहा।”—प्रेषि. 18:11.
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“प्रचार किए जा, चुप मत रह”‘परमेश्वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
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16. यीशु ने पौलुस से जो कहा था, उससे आज हमें क्या बढ़ावा मिलना चाहिए?
16 याद कीजिए कि जब यहूदियों ने पौलुस का संदेश ठुकरा दिया, तो उसके बाद ही प्रभु यीशु ने उसे यकीन दिलाया, “मत डर, प्रचार किए जा, चुप मत रह। . . . मैं तेरे साथ हूँ।” (प्रेषि. 18:9, 10) हमें भी यीशु के इन शब्दों को याद रखना चाहिए, खासकर तब जब लोग हमारा संदेश ठुकरा देते हैं। कभी मत भूलिए कि यहोवा इंसानों का दिल पढ़ सकता है और नेकदिल लोगों को अपने पास खींच सकता है। (1 शमू. 16:7; यूह. 6:44) इससे हमें क्या बढ़ावा मिलना चाहिए? यही कि हम प्रचार काम में लगे रहें। हर साल लाखों लोग बपतिस्मा लेते हैं यानी हर दिन सैकड़ों लोग। यीशु ने आज्ञा दी थी, “सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।” जो इस आज्ञा को मानते हैं उन्हें वह यकीन दिलाता है, “मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त तक हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।”—मत्ती 28:19, 20.
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