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  • अपुल्लोस मसीही सत्य का एक वाक्पटु उद्‌घोषक
    प्रहरीदुर्ग—1996 | अक्टूबर 1
    • “पवित्र शास्त्र को अच्छी तरह से जानता था”

      लगभग सा.यु. वर्ष ५२ में, बाइबल लेखक लूका के अनुसार, “अपुल्लोस नाम एक यहूदी जिस का जन्म सिकन्दरिया में हुआ था, जो विद्वान पुरुष [“कुशल वक्‍ता,” NHT] था और पवित्र शास्त्र को अच्छी तरह से जानता था इफिसुस में आया। उस ने प्रभु के मार्ग की शिक्षा पाई थी, और मन लगाकर यीशु के विषय में ठीक ठीक सुनाता, और सिखाता था, परन्तु वह केवल यूहन्‍ना के बपतिस्मा की बात जानता था। वह आराधनालय में निडर होकर बोलने लगा।”—प्रेरितों १८:२४-२६.

      सिकन्दरिया, मिस्र, रोम के बाद संसार का दूसरा सबसे बड़ा नगर था और यहूदियों और यूनानियों दोनों के लिए उस समय के सबसे महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक केंद्रों में से एक था। संभवतः, अपुल्लोस ने इब्रानी शास्त्र का ठोस ज्ञान और कुछ वाक्पटुता उस नगर के बड़े यहूदी समुदाय में शिक्षा के फलस्वरूप प्राप्त की थी। यह अनुमान लगाना और कठिन है कि अपुल्लोस ने यीशु के बारे में कहाँ सीखा था। “प्रत्यक्षतः वह एक यात्री था—शायद एक व्यापार यात्री,” विद्वान एफ. एफ. ब्रूस का सुझाव है, “और हो सकता है कि वह मसीही प्रचारकों को उन अनेक स्थानों में से किसी एक में मिला हो जहाँ वह यात्रा करता था।” बात जो भी हो, हालाँकि वह यीशु के बारे में ठीक-ठीक बोलता और सिखाता था, ऐसा लगता है कि सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त से पहले उसे साक्षी दी गयी थी, चूँकि वह “केवल यूहन्‍ना के बपतिस्मा की बात जानता था।”

      यीशु का अग्रदूत होने के कारण, यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले ने पूरी इस्राएली जाति को सशक्‍त साक्षी दी थी, और अनेकों ने पश्‍चाताप के प्रतीक के रूप में उसके हाथों बपतिस्मा लिया था। (मरकुस १:५; लूका ३:१५, १६) कई इतिहासकारों के अनुसार, रोमी साम्राज्य की यहूदी जनता के बीच, यीशु के बारे में अनेक लोगों का ज्ञान उस तक ही सीमित था जो यरदन के किनारे प्रचार किया गया था। “उनकी मसीहियत उसी बिन्दु पर थी जिस पर वह हमारे प्रभु की सेवकाई के आरंभ के समय थी,” डब्ल्यू. जे. कानीबार और जे. एस. हाउसन कहते हैं। “वे मसीह की मृत्यु के पूर्ण अर्थ से अनजान थे; संभव है कि वे उसके पुनरुत्थान की सच्चाई को भी नहीं जानते थे।” ऐसा लगता है कि अपुल्लोस सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त पर पवित्र आत्मा के उण्डेले जाने के बारे में भी अनजान था। फिर भी, उसने यीशु के बारे में कुछ ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त की थी, और उसने उसे अपने तक ही नहीं रखा। असल में, जो वह जानता था उसे बताने के लिए उसने निडर होकर अवसर ढूँढे। लेकिन, उसका जोश और उत्साह अभी यथार्थ ज्ञान के अनुसार नहीं था।

  • अपुल्लोस मसीही सत्य का एक वाक्पटु उद्‌घोषक
    प्रहरीदुर्ग—1996 | अक्टूबर 1
    • लूका का वृत्तान्त आगे कहता है: “प्रिस्किल्ला और अक्विला उस की बातें सुनकर, उसे अपने यहां ले गए, और परमेश्‍वर का मार्ग उस को और भी ठीक ठीक बताया।” (प्रेरितों १८:२६) अक्विला और प्रिस्किल्ला ने पहचान लिया होगा कि अपुल्लोस का विश्‍वास उनके विश्‍वास से काफ़ी मिलता-जुलता था, लेकिन बुद्धिमानी से उन्होंने उसकी अपूर्ण समझ को सब के सामने ठीक करने का प्रयास नहीं किया। हम संभवतः कल्पना कर सकते हैं कि अपुल्लोस की मदद करने के लक्ष्य से, उनकी उसके साथ कई बार आपस की बातचीत हुई होगी। “शास्त्र में . . . सशक्‍त” व्यक्‍ति, अपुल्लोस ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? (प्रेरितों १८:२४, किंग्डम इंटरलीनियर, अंग्रेज़ी) हर संभावना है कि अक्विला और प्रिस्किल्ला से मिलने से पहले अपुल्लोस कुछ समय से सब के सामने अपने अपूर्ण संदेश का प्रचार कर रहा था। एक घमंडी व्यक्‍ति कोई भी सुधार स्वीकार करने से बड़ी आसानी से इनकार कर सकता था, लेकिन अपुल्लोस नम्र था और अपना ज्ञान पूर्ण करने में समर्थ होने के लिए आभारी था।

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