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अपुल्लोस मसीही सत्य का एक वाक्पटु उद्घोषकप्रहरीदुर्ग—1996 | अक्टूबर 1
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इफिसुस के भाइयों ने कुरिन्थ की कलीसिया को जो सिफ़ारिश की पत्री भेजी उसे स्वीकार करने के लिए अपुल्लोस की तत्परता में भी उसकी वही विनीत मनोवृत्ति प्रकट है। वृत्तान्त आगे बताता है: “और जब उस ने निश्चय किया कि पार उतरकर अखाया को जाए तो भाइयों ने उसे ढाढ़स देकर चेलों को लिखा कि वे उस से अच्छी तरह मिलें।” (प्रेरितों १८:२७; १९:१) अपुल्लोस ने यह माँग नहीं की कि उसे उसकी योग्यताओं पर स्वीकार किया जाए बल्कि विनम्रता से मसीही कलीसिया के प्रबन्ध का पालन किया।
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अपुल्लोस मसीही सत्य का एक वाक्पटु उद्घोषकप्रहरीदुर्ग—1996 | अक्टूबर 1
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कुरिन्थ में अपुल्लोस की सेवकाई के आरंभिक परिणाम बहुत अच्छे थे। प्रेरितों की पुस्तक रिपोर्ट करती है: “उस ने पहुंचकर वहां उन लोगों की बड़ी सहायता की जिन्हों ने [परमेश्वर के] अनुग्रह के कारण विश्वास किया था। क्योंकि वह पवित्र शास्त्र से प्रमाण दे देकर, कि यीशु ही मसीह है; बड़ी प्रबलता से यहूदियों को सब के साम्हने निरुत्तर करता रहा।”—प्रेरितों १८:२७, २८.
अपुल्लोस ने अपने आपको कलीसिया की सेवा में लगाया, और अपनी तैयारी और जोश के द्वारा भाइयों को प्रोत्साहन दिया। उसकी सफलता की कुंजी क्या थी? निश्चित ही अपुल्लोस के पास स्वाभाविक क्षमता थी और यहूदियों के साथ जन वाद-विवाद करने का साहस था। लेकिन उससे अधिक महत्त्वपूर्ण, उसने शास्त्र का प्रयोग करके तर्क किया।
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