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एक धर्मविज्ञानी दुविधाप्रहरीदुर्ग—1995 | मार्च 1
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कैथोलिक चर्च की प्रश्नोत्तरी (अंग्रेज़ी) कहती है: “मसीह के साथ उठने के लिए, हमें मसीह के साथ मरना है: हमें ‘देह से अलग होना है और प्रभु के साथ रहना’ है। [२ कुरिन्थियों ५:८] उस ‘कूच’ में, जो मृत्यु है, प्राण शरीर से अलग किया जाता है। [फिलिप्पियों १:२३] शरीर के साथ उसका पुनर्मिलन मृतकों के पुनरुत्थान के दिन होगा।” लेकिन यहाँ उद्धृत शास्त्रवचनों में क्या प्रेरित पौलुस कहता है कि प्राण शरीर की मृत्यु से बचता है और फिर शरीर के साथ पुनर्मिलन के लिए “आख़िरी न्याय” का इंतजार करता है?
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एक धर्मविज्ञानी दुविधाप्रहरीदुर्ग—1995 | मार्च 1
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दूसरा कुरिन्थियों ५:८ में पौलुस कहता है: “हम ढाढ़स बान्धे रहते हैं, और देह से अलग होकर प्रभु के साथ रहना और भी उत्तम समझते हैं।” कुछ लोग विश्वास करते हैं कि ये शब्द इंतज़ार की एक मध्यवर्ती स्थिति का ज़िक्र करते हैं। ऐसे लोग यीशु की उस प्रतिज्ञा का भी ज़िक्र करते हैं जो उसने अपने विश्वासी अनुयायियों को दी कि वह एक जगह तैयार करने जा रहा था जहाँ वह उन्हें ‘अपने यहां ले जाएगा।’ लेकिन ऐसी प्रत्याशाएँ कब पूरी होंगी? मसीह ने कहा कि यह तब होगा जब वह अपनी भावी उपस्थिति में ‘फिर आएगा।’ (यूहन्ना १४:१-३) समान तौर पर, २ कुरिन्थियों ५:१-१० में पौलुस कहता है कि अभिषिक्त मसीहियों की समान आशा थी कि एक स्वर्गीय निवास प्राप्त करें। यह उन्हें किसी तथाकथित प्राण के अमरत्व से नहीं, बल्कि यीशु की उपस्थिति के दौरान पुनरुत्थान के द्वारा प्राप्त होगा। (१ कुरिन्थियों १५:२३, ४२-४४) समीक्षक शार्ल मॉसोन निष्कर्ष निकालता है कि २ कुरिन्थियों ५:१-१० को “तब ‘मध्यवर्ती स्थिति’ की परिकल्पना का प्रयोग किए बग़ैर अच्छी तरह समझा जा सकता है।”
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