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तीतुस—“तुम्हारे लिये मेरा सहकर्मी”प्रहरीदुर्ग—1998 | नवंबर 15
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कुरिन्थियों को लिखी पौलुस की पत्री से ज़ाहिर होता है कि पहले पौलुस ने उन्हें ‘व्यभिचारियों की संगति न करने’ के लिए कहा था। पौलुस को उनसे कहना पड़ा कि वे अपने बीच से पश्चाताप न दिखानेवाले, ढीठ व्यभिचारी को निकाल दें। जी हाँ, पौलुस ने उन्हें एक ज़बरदस्त चिट्ठी लिखी और “बहुत से आंसू” बहाते हुए लिखी। (१ कुरिन्थियों ५:९-१३; २ कुरिन्थियों २:४) इस बीच ज़रूरतमंद यहूदी मसीहियों की खातिर चंदा जमा करने के लिए तीतुस को कुरिन्थ भेजा गया। शायद उसे यह भी जानने के लिए भेजा गया था कि पौलुस की चिट्ठी पाकर कुरिन्थियों ने कोई कदम उठाया या नहीं।—२ कुरिन्थियों ८:१-६.
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तीतुस—“तुम्हारे लिये मेरा सहकर्मी”प्रहरीदुर्ग—1998 | नवंबर 15
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कुरिन्थ जाने के तीतुस के दूसरे मकसद यानी यहूदा के पवित्र लोगों के लिए चंदा जमा करने के बारे में क्या? दूसरे कुरिन्थियों में बताई गई जानकारी से यह पता लग सकता है कि तीतुस यह काम भी कर रहा था। यह पत्री संभवतः सा.यु. ५५ की शरद ऋतु में मकिदुनिया से लिखी गई थी, यानी तीतुस और पौलुस के मिलने के तुरंत बाद। पौलुस ने लिखा कि चंदा जमा करने का काम शुरू करनेवाले तीतुस को वापस भेजा जा रहा है। इस काम को पूरा करने में तीतुस के साथ उसकी मदद के लिए अब दो अनाम व्यक्ति भेजे जा रहे हैं। कुरिन्थियों में खासी दिलचस्पी के कारण ही तीतुस वहाँ खुशी-खुशी जाने के लिए राज़ी था। इसलिए कुरिन्थ वापस जाते वक्त तीतुस शायद कुरिन्थियों को लिखी पौलुस की दूसरी ईश्वरप्रेरित पत्री भी साथ ले जा रहा था।—२ कुरिन्थियों ८:६, १७, १८, २२.
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