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यहोवा से आनेवाली सांत्वना के सहभागी होनाप्रहरीदुर्ग—1996 | नवंबर 1
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आसिया में पौलुस का क्लेश
१३, १४. (क) पौलुस ने उस तीव्र क्लेश के समय का वर्णन कैसे किया जो उसने आसिया में अनुभव किया था? (ख) पौलुस के मन में शायद कौन-सी घटना रही होगी?
१३ कुरिन्थ की कलीसिया ने जिस प्रकार का दुःख अब तक अनुभव किया था उसकी तुलना पौलुस के उन अनेक क्लेशों के साथ नहीं की जा सकती थी जो उसे सहन करने पड़े थे। अतः, वह उन्हें याद दिला सकता था: “हे भाइयो, हम नहीं चाहते कि तुम हमारे उस क्लेश से अनजान रहो, जो आसिया में हम पर पड़ा, कि ऐसे भारी बोझ से दब गए थे, जो हमारी सामर्थ से बाहर था, यहां तक कि हम जीवन से भी हाथ धो बैठे थे। बरन हम ने अपने मन में समझ लिया था, कि हम पर मृत्यु की आज्ञा हो चुकी है कि हम अपना भरोसा न रखें, बरन परमेश्वर का जो मरे हुओं को जिलाता है। उसी ने हमें ऐसी बड़ी मृत्यु से बचाया, और बचाएगा; और उस से हमारी यह आशा है, कि वह आगे को भी बचाता रहेगा।”—२ कुरिन्थियों १:८-१०.
१४ कुछ बाइबल विद्वान मानते हैं कि पौलुस इफिसुस के एक दंगे का उल्लेख कर रहा था, जिसमें पौलुस साथ ही उसके दो मकिदुनी संगी यात्रियों, गयुस और अरिस्तरखुस को अपनी जानें गवाँनी पड़ सकती थीं। इन दो मसीहियों को ऐसे जनसमूह से भरी एक रंगशाला में ज़बरदस्ती ले जाया गया जो “कोई दो घंटे तक चिल्लाते रहे, कि इफिसियों की [देवी] अरतिमिस महान है।” आख़िरकार, नगर का एक अधिकारी उस भीड़ को शान्त करने में सफल हुआ। गयुस और अरिस्तरखुस की जानों के लिए इस ख़तरे से पौलुस बहुत ही व्यथित हुआ होगा। असल में, वह अन्दर जाकर उस पागल जनसमूह से तर्क करना चाहता था, लेकिन इस तरीक़े से अपनी जान को जोखिम में डालने से उसे रोका गया।—प्रेरितों १९:२६-४१.
१५. पहला कुरिन्थियों १५:३२ में शायद कौन-सी गंभीर स्थिति का वर्णन है?
१५ लेकिन, पौलुस शायद इस पूर्वोक्त घटना से कहीं ज़्यादा गंभीर स्थिति का वर्णन कर रहा होगा। कुरिन्थियों को अपनी पहली पत्री में, पौलुस ने पूछा: “यदि मैं मनुष्य की रीति पर इफिसुस में बन-पशुओं से लड़ा, तो मुझे क्या लाभ हुआ?” (१ कुरिन्थियों १५:३२) इसका शायद यह अर्थ हो कि पौलुस की जान को न सिर्फ़ पशु-समान मनुष्यों से बल्कि इफिसुस के अखाड़े में वास्तविक जंगली जानवरों से ख़तरा आया था। अपराधियों को कभी-कभी बन-पशुओं से लड़ने के लिए मजबूर किए जाने के द्वारा सज़ा दी जाती थी जबकि रक्त-पिपासु भीड़ तमाशा देखती। यदि पौलुस का अर्थ था कि उसने वास्तविक जंगली पशुओं का सामना किया था, तो आख़िरी क्षण में उसे एक क्रूर मृत्यु से चमत्कारिक रीति से छुड़ा लिया गया होगा, ठीक जैसे दानिय्येल को वास्तविक सिंहों के मुँह से बचा लिया गया था।—दानिय्येल ६:२२.
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यहोवा से आनेवाली सांत्वना के सहभागी होनाप्रहरीदुर्ग—1996 | नवंबर 1
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१६. (क) अनेक यहोवा के साक्षी क्यों पौलुस द्वारा सहन किए गए क्लेशों को समझ सकते हैं? (ख) अपने विश्वास के कारण मरनेवालों के सम्बन्ध में हम किस बात के बारे में निश्चित हो सकते हैं? (ग) कौन-सा अच्छा प्रभाव हुआ है जब मसीही मृत्यु से बाल-बाल बचने का अनुभव करते हैं?
१६ वर्तमान दिनों के अनेक मसीही पौलुस द्वारा सहन किए गए क्लेशों को समझ सकते हैं। (२ कुरिन्थियों ११:२३-२७) आज भी, मसीही ‘ऐसे भारी बोझ से दबाए गए हैं, जो उनकी सामर्थ से बाहर था,’ और उनमें से अनेकों ने ऐसी स्थितियों का सामना किया है जिनमें वे ‘अपने जीवन से भी हाथ धो बैठ’ सकते थे। (२ कुरिन्थियों १:८) कुछ व्यक्ति सामूहिक हत्यारों और क्रूर सतानेवालों के हाथों मारे गए हैं। हम निश्चित हो सकते हैं कि परमेश्वर के सांत्वना देनेवाले सामर्थ्य ने उन्हें धीरज धरने के लिए समर्थ किया और कि अपनी आशा, चाहे वह स्वर्गीय हो या पार्थिव, की पूर्ति पर उनके हृदय और मन दृढ़तापूर्वक केन्द्रित रखते हुए उनकी मृत्यु हुई। (१ कुरिन्थियों १०:१३; फिलिप्पियों ४:१३; प्रकाशितवाक्य २:१०) अन्य मामलों में, यहोवा ने बातों को नियंत्रित किया है, और हमारे भाई मृत्यु से बच गए हैं। निःसंदेह जिनका इस प्रकार से बचाव हुआ है उनका भरोसा “परमेश्वर [पर] जो मरे हुओं को जिलाता है,” और बढ़ा है। (२ कुरिन्थियों १:९) उसके बाद, जब उन्होंने दूसरों के साथ परमेश्वर के सांत्वनादायक संदेश को बाँटा तो वे और अधिक निश्चय के साथ बात कर सकते थे।—मत्ती २४:१४.
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