वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • ‘यहोवा जो एक है,’ अपने परिवार को एक करता है
    प्रहरीदुर्ग—2012 | जुलाई 15
    • 7. ‘पवित्र शक्‍ति की तरफ से मिलनेवाली एकता में रहने’ का क्या मतलब है?

      7 यहोवा मसीह के फिरौती बलिदान के आधार पर हम सभी को नेक ठहराता है। वह अभिषिक्‍त लोगों को नेक ठहराकर बेटा मानता है और दूसरी भेड़ के लोगों को अपना दोस्त कहता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमारे बीच कोई अनबन नहीं होगी। जब तक धरती पर यह व्यवस्था रहेगी तब तक हमारे बीच मतभेद तो होगा ही। (रोमि. 5:9; याकू. 2:23) अगर ऐसा नहीं होता, तो बाइबल हमें यह सलाह ही न देती कि “एक-दूसरे की सहते रहो।” तो फिर हम अपने भाई-बहनों के साथ एकता कैसे बनाए रख सकते हैं? इसके लिए हमें “मन की पूरी दीनता” और “कोमलता” पैदा करनी चाहिए। इसके अलावा, जैसे पौलुस ने हमें बढ़ावा दिया, हमें शांति और एकता बनाए रखने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। पौलुस ने कहा था, “शांति के एक करनेवाले बंधन में बंधे हुए उस एकता में रहने की जी-जान से कोशिश करते रहो जो पवित्र शक्‍ति की तरफ से मिलती है।” (इफिसियों 4:1-3 पढ़िए।) इस सलाह पर अमल करने के लिए ज़रूरी है कि हम पवित्र शक्‍ति को खुद पर असर करने दें ताकि यह हममें अपना फल पैदा करे। पवित्र शक्‍ति का फल दो लोगों के बीच आयी दरार को भरता है, जबकि शरीर के काम हमेशा फूट डालते हैं।

  • ‘यहोवा जो एक है,’ अपने परिवार को एक करता है
    प्रहरीदुर्ग—2012 | जुलाई 15
    • 9. हम कैसे पता लगा सकते हैं कि हम एकता और शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं?

      9 शरीर के काम हमारी एकता को भंग कर सकते हैं इसलिए बेहद ज़रूरी है कि हममें से हरेक खुद से पूछे: ‘क्या मैं भाई-बहनों के साथ शांति और एकता बनाए रखने की पूरी कोशिश करता हूँ? जब कोई अनबन हो जाती है, तो क्या मैं लोगों के सामने अपना दुखड़ा रोता हूँ ताकि मुझे सबकी हमदर्दी मिले? क्या मैं चाहता हूँ कि दूसरों के साथ मेरी जो अनबन हुई है, उसे प्राचीन सुलझाएँ ताकि मुझे खुद उनसे बात न करनी पड़े? अगर किसी को मुझसे शिकायत है, तो क्या मैं उसकी नज़रों से बचने की कोशिश करता हूँ, ताकि उससे मेरा सामना ना हो और मुझे उससे बात न करनी पड़े?’ अगर हम ऐसा करते हैं, तो क्या हम यह कह सकते हैं कि मसीह में सबकुछ इकट्ठा करने के यहोवा के मकसद का हम साथ दे रहे हैं?

      10, 11. (क) अपने भाइयों के साथ शांति बनाए रखना इतना ज़रूरी क्यों है? (ख) सच्ची शांति और यहोवा की आशीषें पाने के लिए क्या करना ज़रूरी है?

      10 यीशु ने कहा: “अगर तू मंदिर में वेदी के पास अपनी भेंट ला रहा हो और वहाँ तुझे याद आए कि तेरे भाई को तुझसे कुछ शिकायत है, तो तू अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे और जाकर पहले अपने भाई के साथ सुलह कर और जब तू लौट आए तब अपनी भेंट चढ़ा। . . . जल्द-से-जल्द सुलह कर ले।” (मत्ती 5:23-25) याकूब ने लिखा, “जो शांति कायम करनेवाले हैं, वे शांति के हालात में बीज बोते हैं और नेकी के फल काटते हैं।” (याकू. 3:17, 18) अगर हम दूसरों के साथ शांति न बनाए रखें, तो हम सही मायनों में नेक काम नहीं कर सकते।

      11 इसे समझने के लिए एक मिसाल लीजिए। कुछ देशों में युद्ध के दौरान बारूदी सुरंगें बिछायी गयी थीं। कहा जाता है कि इनकी वजह से इन देशों में करीब 35 प्रतिशत ज़मीन पर खेती नहीं की जाती। जब कहीं बारूदी सुरंग फटता है, तो किसान उस खेत को छोड़ देते हैं, वे न तो वहाँ कोई बीज बोते हैं ना ही कुछ उगाते हैं। इसकी वजह से गाँव के किसानों की रोज़ी-रोटी छिन जाती है। शहर में रहनेवालों पर भी इसका असर होता है क्योंकि उन तक फल-सब्ज़ियाँ नहीं पहुँचतीं। उसी तरह, अगर हमारा रवैया बारूदी सुरंग जैसा हो, तो हम अपने अंदर मसीही गुणों को नहीं बढ़ा पाएँगे। इसका असर दूसरों पर भी होगा। उनके लिए हमारे साथ शांति बनाए रखना बहुत मुश्‍किल होगा। लेकिन अगर हम आसानी से दूसरों को माफ करें और दूसरों के साथ भलाई करें, तो सभी को सच्ची शांति और यहोवा की तरफ से आशीषें मिलेंगी।

हिंदी साहित्य (1972-2025)
लॉग-आउट
लॉग-इन
  • हिंदी
  • दूसरों को भेजें
  • पसंदीदा सेटिंग्स
  • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
  • इस्तेमाल की शर्तें
  • गोपनीयता नीति
  • गोपनीयता सेटिंग्स
  • JW.ORG
  • लॉग-इन
दूसरों को भेजें