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सर्वसम्मति से यहोवा की सेवा करोप्रहरीदुर्ग—1989 | अगस्त 1
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औरों को श्रेष्ठ समझें
११. अगर एक मसीही के हृदय में किसी भी प्रकार का पक्षपात हो, तो वह क्या कर सकता है?
११ दूसरी ओर, अगर एक मसीही एक अमुक जाति के राष्ट्र की ओर पक्षपाती है, तो वह सम्भवतः शब्दों या कार्यों के द्वारा इसे प्रकट करेगा। परिणामस्वरूप यह दुःखी भावनाओं को उत्पन्न कर सकता है, विशेष रूप से ऐसी एक सभा में जो विभिन्न जातीय पृष्ठभूमि के लोगों से बनी है। निश्चय ही, कोई भी मसीही परमेश्वर के लोगों की एकता पर ऐसा एक तनाव डालना नहीं चाहेगा। (भजन १३३:१-३) इसलिए अगर एक मसीही के हृदय में पक्षपात है, वह ऐसे प्रार्थना कर सकता है: “हे ईश्वर मुझे जांचकर जान ले। मुझे परखकर मेरी चिन्ताओं को जान ले। और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर।”—भजन १३९:२३, २४.
१२. हम हमारी जातीय पृष्ठभूमि के बारे में अपने में या दूसरों में घमण्ड क्यों नहीं करना चाहिए?
१२ यह यथार्थवादी दृष्टि रखना अच्छा होगा कि हम सब असम्पूर्ण मानव है जिनका, अगर यीशु मसीह का बलिदान न होता तो परमेश्वर के सामने कोई भी स्तर न होता। (१ यूहन्ना १:८-२:२) फिर, दूसरों से हमें क्या अलग बनाता है? इसलिए कि हमारे पास कुछ ही नहीं, जो हम पाए नहीं, क्योंकर हम अपने में या दूसरों में हमारी जातीय पृष्ठभूमि के विषय में घमण्ड करें?—१ कुरिन्थियों ४:६, ७ से तुलना करें।
१३. हम मण्डली की एकता में कैसे सहयोग दे सकते हैं और फिलिप्पियों २:१-११ से क्या सीख सकते हैं?
१३ हम सभा की एकता में सहयोग दे सकते हैं, अगर हम दूसरों के अच्छे गुणों को मान लेंगे और मूल्यांकन दिखाएंगे। यहूदी प्रेरित पौलुस ने हम सभों को विचार करने के लिए प्रेरित किया जब उसने गैर-यहूदी फिलिप्पियों से कहा: ‘मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त और एक ही मनसा रखो। विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।” हमें, किसी भी जाति या राष्ट्र के सह-मानवों की जो सही मनोवृत्ति दिखानी है, वह यीशु मसीह में प्रदर्शित की गई। हालाँकि वह एक शक्तिशाली आत्मिक सृष्टि था, वह “मनुष्य की समानता में हो गया,” और हर जाति और राष्ट्र के पाप मनुष्यों के लिए एक खम्बे पर, आज्ञाकारी रहकर, मृत्यु भी सह ली। (फिलिप्पियों २:१-११) तो फिर यीशु के शिष्य होने के नाते क्या हम, यह स्वीकार करते हुए कि दूसरे हम से श्रेष्ठ हैं, प्रेमी, नम्र और दयालु नहीं बनना है?
सुनो और ध्यान से देखो
१४. दूसरों को हम से श्रेष्ठ समझने के लिए हमारी क्या मदद कर सकता है?
१४ दूसरों को हम से श्रेष्ठ समझने के लिए हमें मदद मिलेगी अगर हम, जब वे बोलते हैं, सचमुच सुनेंगे और ध्यानपूर्वक उनके आचरण को देखेंगे। उदाहरणार्थ, हमें ईमानदारी से यह मानना होगा कि एक सह-प्राचीन—शायद कोई और जाति का—थियोक्रेटिक मिनिस्ट्री स्कूल में प्रभावशाली सलाह देने की योग्यता में हम से श्रेष्ठ हैं। हम यह देख सकेंगे कि यह अनिवार्यतः उसकी शब्द-योजना या भाषण-शैली नहीं बल्कि उसकी आध्यात्मिकता है, जो उसे सह-विश्वासियों को समर्थ राज्य प्रचारक बनाने में मदद करने से अच्छे परिणाम मिलने के योग्य बनाता है। और यह स्पष्ट है कि यहोवा उसके प्रयत्नों पर आशीष दे रहा है।
१५. जब हम सह-विश्वासियों की टिप्पणियाँ सुनते हैं, हम क्या देख सकते हैं?
१५ जब हम हमारे भाइयों और बहनों से बात करते हैं या सभाओं में उनकी टिप्पणियों को सुनते हैं, हम जान सकेंगे कि उन में से कुछों को अमुक शास्त्रीय सच्चाइयों के बारे में हम से बेहतर समझ है। हम देख सकेंगे कि उनका भ्रातृवत् प्रेम अधिक मज़बूत प्रतीत हो रहा है, उन में अधिक विश्वास प्रतीत हो रहा है, या वे यहोवा में अधिक विश्वास का प्रमाण दे रहे हैं। इसलिए वे चाहे हमारी जातीय पृष्ठभूमि के हो या ना हो, वे हमें प्रेम और भले कामों में उकसाते हैं, हमारे विश्वास को मज़बूत करने में मदद करते हैं, और हमारे स्वर्गीय पिता में और अधिक पूर्ण रूप से भरोसा रखने के लिए प्रेरित करते हैं। (नीतिवचन ३:५, ६; इब्रानियों १०:२४, २५, ३९) प्रत्यक्षतः यहोवा उनके निकट गए हैं, और इस प्रकार हमें भी जाना है।—याकूब ४:८ से तुलना करें।
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सर्वसम्मति से यहोवा की सेवा करोप्रहरीदुर्ग—1989 | अगस्त 1
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२०. प्रत्येक जाति और राष्ट्र के सह-विश्वासियों की ओर हमारा आदर कैसे बढ़ाया जा सकता है?
२० निस्सन्देह, यहोवा प्रत्येक राष्ट्र और जाति के उसके गवाहों को आशीष देता है और संपोषित करता है। वह पक्षपाती नहीं और हमें उसके समर्पित सेवकों के रूप में पक्षपात दिखाने का कोई बहाना या कारण नहीं। इसके अतिरिक्त, सभी जाति और राष्ट्र के हमारे भाइयों और बहनों के लिए हमारा आदर बढ़ेगा, अगर हम उन विशेषताओं पर विचार करेंगे जिन में वे हम से श्रेष्ठ हैं। वे भी स्वर्गीय विवेक का उपयोग करते हैं, जो पक्षपाती भेद नहीं करता बल्कि उत्कृष्ट फल उत्पन्न करता है। (याकूब ३:१३-१८) जी हाँ, और उनकी दयालुता, उदारता, प्रेम, और अन्य दैवी गुण हमें उत्तम उदाहरण प्रदान करते हैं।
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