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  • आशा के लंगर से स्थिर रहना, प्रेम के पाल से बढ़ते रहना
    प्रहरीदुर्ग—1999 | जुलाई 15
    • लंगर की तरह हमारी आशा

      १०, ११. पौलुस ने हमारी आशा की तुलना किससे की और यह तुलना उचित क्यों है?

      १० पौलुस ने बताया कि यहोवा ने इब्राहीम के ज़रिये आशीषें देने का वादा किया। फिर पौलुस ने कहा कि परमेश्‍वर ने “शपथ का उपयोग किया, कि हमें दो अटल बातों [उसका वचन और उसकी शपथ] के द्वारा, जिनमें परमेश्‍वर का झूठ बोलना असम्भव है, दृढ़ प्रोत्साहन मिले—अर्थात्‌ हमें जो शरण पाने के लिए दौड़ पड़े हैं कि उस आशा को प्राप्त करें जो सामने रखी है। यह आशा मानो हमारे प्राण के लिए लंगर है—ऐसी आशा जो निश्‍चित और दृढ़ है।” (इब्रानियों ६:१७-१९, NHT; उत्पत्ति २२:१६-१८) अभिषिक्‍त मसीहियों के सामने स्वर्ग में अमर जीवन पाने की आशा रखी हुई है। और यहोवा के बाकी के सेवकों के सामने नई दुनिया में सदा तक जीने की शानदार आशा है। (लूका २३:४३) विश्‍वास को अटल बनाए रखने के लिए आशा बेहद ज़रूरी है।

      ११ जहाज़ की सुरक्षा के लिए लंगर का होना निहायत ज़रूरी है। लंगर ही जहाज़ को स्थिर रखता है और उसे अपनी जगह से बहने नहीं देता। ऐसा कोई भी मल्लाह नहीं होगा जो बिना लंगर के जहाज़ को बंदरगाह से ले जाए। पौलुस ने जिन जहाज़ों से सफर किया था उनमें से कई जहाज़ टूटकर डूब गए थे। इसलिए वह भली-भाँति जानता था कि समुद्र में सफर करनेवालों की ज़िंदगी ज़्यादातर जहाज़ के लंगरों पर टिकी होती है। (प्रेरितों २७:२९, ३९, ४०; २ कुरिन्थियों ११:२५) पहली सदी में जहाज़ों में इंजन नहीं हुआ करते थे कि मल्लाह जहाज़ को जहाँ चाहे वहाँ मोड़ ले। पतवारों से चलाए जानेवाले लड़ाकू जहाज़ों के अलावा, बाकी सब जहाज़ हवा के सहारे ही चलते थे। तूफान में अगर जहाज़ को चट्टानों से टकराने का खतरा है तो कप्तान के लिए सिर्फ एक ही रास्ता होता है कि वह लंगर डालकर तूफान के थम जाने का इंतज़ार करे, इस उम्मीद के साथ कि समुद्रतल पर लंगर की पकड़ मज़बूत बनी रहेगी। इसलिए पौलुस ने एक मसीही की आशा की तुलना ‘प्राण बचानेवाले लंगर’ से की, “जो निश्‍चित और दृढ़ है।” (इब्रानियों ६:१९, NHT) जब हम विरोध के तूफानों से घिर जाते हैं या दूसरे क्लेशों में पड़ जाते हैं, तब हमारी शानदार आशा हमारे लिए लंगर का काम करती है। यह हमें स्थिर रखती है, जिससे हमारा विश्‍वास रूपी जहाज़ शक के रेतीले टीले के पास या धर्मत्याग की खतरनाक चट्टानों के पास न चला जाए।—इब्रानियों २:१; यहूदा ८-१३.

      १२. कौन-सी बातें हमारी मदद करेंगी ताकि हम यहोवा से दूर न हट जाएँ?

      १२ पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को चेतावनी दी: “हे भाइयो, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्‍वासी न मन हो, जो जीवते परमेश्‍वर से दूर हट जाए।” (इब्रानियों ३:१२) यूनानी भाषा में “दूर हट जाने” का मतलब है “अलग खड़े होना” यानी धर्मत्यागी हो जाना। मगर हम धर्मत्यागी होकर अपने विश्‍वास के जहाज़ को डूबने से बचा सकते हैं। कैसे? विश्‍वास और आशा हमारी मदद करेंगी ताकि परीक्षा के सबसे प्रचंड तूफान में भी हम यहोवा से दूर न हट जाएँ मगर उससे लिपटे रहें। (व्यवस्थाविवरण ४:४; ३०:१९, २०) हमारा विश्‍वास रूपी जहाज़ धर्मत्यागियों की शिक्षाओं के तूफान में उछाला नहीं जाएगा। (इफिसियों ४:१३, १४) और हमारी आशा के लंगर के साथ हम उन सभी तूफानों का सामना कर सकते हैं जो यहोवा के सेवक होने के नाते हमारी ज़िंदगी में आते हैं।

  • आशा के लंगर से स्थिर रहना, प्रेम के पाल से बढ़ते रहना
    प्रहरीदुर्ग—1999 | जुलाई 15
    • अपनी मंज़िल की ओर

      १८. भविष्य में हमारे विश्‍वास की परीक्षाओं में धीरज धरने के लिए कौन-सी बात हमारी मदद करेगी?

      १८ नई दुनिया तक पहुँचने से पहले हो सकता है कि हमारे विश्‍वास और प्रेम की कड़ी परीक्षा हो, लेकिन यहोवा ने हमें एक “निश्‍चित और दृढ़” लंगर दिया है, यानी हमारी शानदार आशा। (इब्रानियों ६:१९, NHT; रोमियों १५:४, १३) इसलिए अगर हमारी यह आशा का लंगर दृढ़ है तो हम विरोध या क्लेशों के थपेड़े खाते हुए भी धीरज धर सकते हैं। एक तूफान का सामना कर लेने के बाद आइए हम अपने विश्‍वास और आशा को और भी पक्का करें ताकि आनेवाले दूसरे तूफानों का डट कर सामना कर सकें।

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