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  • अविश्‍वास से चौकस रहो
    प्रहरीदुर्ग—1998 | जुलाई 15
    • मूसा से बड़ा

      ८. इब्रानियों ३:१ की बात कहकर पौलुस संगी मसीहियों से क्या करने के लिए आग्रह कर रहा था?

      ८ एक बहुत ही ज़रूरी बात का ज़िक्र करते हुए, पौलुस ने लिखा: “उस प्रेरित और महायाजक यीशु पर जिसे हम अंगीकार करते हैं ध्यान करो।” (इब्रानियों ३:१) “ध्यान करो” का मतलब है “साफ-साफ बोध करना . . . पूरी तरह से समझना, बारीकी से ध्यान देना।” (वाईन्स एक्सपोज़िटरी डिक्शनरी ऑफ ओल्ड ऎंड न्यू टॆस्टमॆन्ट वड्‌र्स) सो पौलुस अपने साथी विश्‍वासियों से कह रहा था कि उनके विश्‍वास और उद्धार में यीशु ने जो किरदार अदा किया था उसे अच्छी तरह समझने के लिए कड़ा प्रयास करें। ऐसा करने से विश्‍वास में मज़बूत खड़े रहने का उनका संकल्प और पक्का होगा। तो फिर, यीशु ने कौन-सा किरदार अदा किया, और हमें उस पर क्यों ‘ध्यान करना’ चाहिए?

      ९. पौलुस ने यीशु को “प्रेरित” और “महायाजक” क्यों कहा?

      ९ पौलुस ने यीशु के लिए शब्द, “प्रेरित” और “महायाजक” इस्तेमाल किए। “प्रेरित” वो होता है जिसे भेजा गया हो और यहाँ वो इंसानों के साथ बात करने के परमेश्‍वर के ज़रिए को सूचित करता है। “महायाजक” वो होता है जिसके द्वारा इंसान परमेश्‍वर तक जा सकते हैं। ये दोनों ही प्रबंध सच्ची उपासना के लिए ज़रूरी हैं, और यीशु इन दोनों का साकार रूप है। यीशु ही वो व्यक्‍ति है जिसे इंसानों को परमेश्‍वर के बारे में सच्चाई सिखाने के लिए स्वर्ग से भेजा गया। (यूहन्‍ना १:१८; ३:१६; १४:६) पाप की माफी के लिए यहोवा के आध्यात्मिक मंदिर की व्यवस्था में यीशु को प्रतिरूपी महायाजक के तौर पर भी नियुक्‍त किया गया है। (इब्रानियों ४:१४, १५; १ यूहन्‍ना २:१, २) अगर हम उन आशीषों की सचमुच कदर करें जो हमें यीशु के ज़रिए मिलती हैं, तो हमारे पास विश्‍वास में मज़बूत खड़े रहने के लिए साहस और संकल्प होगा।

  • अविश्‍वास से चौकस रहो
    प्रहरीदुर्ग—1998 | जुलाई 15
    • ११, १२. पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को किस बात को “अन्त तक दृढ़ता” से थामे रहने का आग्रह किया, और हम उसकी सलाह को कैसे लागू कर सकते हैं?

      ११ सचमुच, इब्रानी मसीही एक बहुत ही खास स्थिति में थे। पौलुस ने उन्हें याद दिलाया कि वे लोग “स्वर्गीय बुलाहट में भागी” हैं। (इब्रानियों ३:१) और ये एक ऐसा विशेषाधिकार था जो यहूदी व्यवस्था में किसी भी विशेषाधिकार से बढ़कर था। पौलुस की इन बातों से उन अभिषिक्‍त मसीहियों ने शुक्रगुज़ार महसूस किया होगा, क्योंकि यहूदी विरासत से संबंधित बातों को छोड़ने का अफसोस करने के बजाय, अब वे लोग नयी विरासत हासिल करने की स्थिति में थे। (फिलिप्पियों ३:८) पौलुस ने उन्हें उस विशेषाधिकार को थामे रहने और उसे हलका न समझने का आग्रह किया, और कहा: “मसीह पुत्र की नाईं [परमेश्‍वर के] घर का अधिकारी है, और उसका घर हम हैं, यदि हम साहस पर, और अपनी आशा के घमण्ड पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहें।”—इब्रानियों ३:६.

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