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  • आप अंत तक धीरज धर सकते हैं
    प्रहरीदुर्ग—1999 | अक्टूबर 1
    • १० तो फिर, जिस ज़िंदगी की दौड़ में मसीही हिस्सा ले रहे हैं, उसमें दर्शक कौन हैं? इब्रानियों ११ अध्याय में पहली सदी से पहले के यहोवा के वफादार साक्षियों का ज़िक्र करने के बाद, पौलुस ने लिखा: “इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हम को घेरे हुए है, तो आओ, . . . वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, [हम] धीरज से दौड़ें।” (इब्रानियों १२:१) बादल का ज़िक्र करते समय, पौलुस ने वह यूनानी शब्द इस्तेमाल नहीं किया जिसका मतलब उन बादलों से था जो आसमान में बस यहाँ-वहाँ छाए हुए होते हैं और जिनका आकार साफ दिखता है। इसके बजाय, उसने जो शब्द इस्तेमाल किया उसके बारे में विद्वान डब्ल्यू. ई. वाईन बताता है, “बहुत विशाल और घने बादल, जिनसे पूरा आसमान ढक जाता है।” इससे साफ-साफ पता चलता है कि पौलुस यहाँ पर गवाहों की एक बहुत बड़ी भीड़ की बात कर रहा था, इतनी बड़ी भीड़ जो विशाल और घने बादलों की तरह होती है।

      ११, १२. (क) धीरज के साथ अपनी दौड़ पूरी करने के लिए साक्षियों का बड़ा बादल कैसे हमारा हौसला बढ़ा सकता है? (ख) ‘साक्षियों के बड़े बादल’ से हम और भी ज़्यादा फायदा कैसे उठा सकते हैं?

      ११ लेकिन, क्या पहली सदी से पहले के वफादार साक्षी आज दर्शकों के तौर पर हमारे बीच मौजूद हो सकते हैं? हरगिज़ नहीं। वे तो सब मौत की नींद सो रहे हैं, और पुनरुत्थान का इंतज़ार कर रहे हैं। लेकिन जब वे ज़िंदा थे, तब वे खुद कामयाब धावक थे, और आज उनकी मिसाल बाइबल के पन्‍नों में हमारे लिए बिलकुल ज़िंदा है। सो, जब हम बाइबल का अध्ययन करते हैं, तो ये वफादार गवाह हमारे मनो में ज़िंदा हो सकते हैं और हमारी दौड़ को पूरा करने के लिए मानो हमारा हौसला बढ़ा सकते हैं।—रोमियों १५:४.a

      १२ उदाहरण के लिए, जब दुनिया हमें ललचाने लगती है, तो हम मूसा की मिसाल देख सकते हैं कि कैसे उसने मिस्र की शानो-शौकत को ठुकरा दिया था। क्या इससे हमें अपनी दौड़ से गुमराह न होने के लिए मदद नहीं मिलेगी? अगर हमारे सामने बहुत कड़ी परीक्षा हो, तो हम इब्राहीम की परीक्षा याद कर सकते हैं जब उससे अपने बेटे, इसहाक को बलि चढ़ाने के लिए कहा गया था। उसकी यह मिसाल यकीनन हमारा हौसला बढ़ाएगी कि हम अपने विश्‍वास की लड़ाई में कभी हार न मानें। साक्षियों का यह “बड़ा बादल” किस हद तक हमारा हौसला बढ़ाएगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपने मन की आँखों से उन लोगों को कितनी अच्छी तरह देखते हैं।

      १३. इस ज़माने के यहोवा के साक्षी ज़िंदगी की दौड़ में कैसे हमारा हौसला बढ़ाते हैं?

      १३ हम आज भी यहोवा के ढेरों साक्षियों से घिरे हुए हैं। हमारे ज़माने में अभिषिक्‍त मसीहियों ने और “बड़ी भीड़” के बाकी भाई-बहनों ने विश्‍वास की कितनी बढ़िया मिसाल कायम की है! (प्रकाशितवाक्य ७:९) हम उनकी कहानियों को इस पत्रिका में और वॉच टावर संस्था की दूसरी किताबों में अकसर पढ़ सकते हैं।b जब हम उनके विश्‍वास पर गहराई से सोचते हैं, तो हमें भी अंत तक धीरज धरने के लिए हौसला मिलता है। और ऐसे करीबी दोस्तों और रिश्‍तेदारों का सहारा मिलना कितना बढ़िया होता है, जो खुद वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं! जी हाँ, ज़िंदगी की दौड़ में हमारा हौसला बढ़ाने के लिए काफी लोग हैं!

      अपनी रफ्तार पर ध्यान दीजिए

      १४, १५. (क) यह क्यों ज़रूरी है कि हम बुद्धिमानी से एक रफ्तार कायम करें? (ख) हमें अपने लक्ष्य रखते समय समझदारी क्यों बरतनी चाहिए?

      १४ जब कोई व्यक्‍ति लंबी दौड़ में हिस्सा लेता है, जैसे मैराथॉन में, तो उसे बुद्धिमानी से एक रफ्तार कायम करनी पड़ती है जो न एकदम तेज़ हो ना ही एकदम धीमी। न्यू यॉर्क रनर नाम की पत्रिका कहती है, “अगर आप बहुत ही तेज़ दौड़ते हैं, तो आप हार सकते हैं। हो सकता है कि आपको दौड़ के आखिरी कुछ किलोमीटर दौड़ने में बहुत मुश्‍किल होगी या आप दौड़ से ही बाहर निकल जाएँगे।” मैराथॉन दौड़ में हिस्सा लेनेवाला एक व्यक्‍ति अपने बारे में कहता है: “दौड़ की तैयारी के लिए एक लॆक्चर दिया गया था। मैं वह लॆक्चर सुनने गया था, और उस लॆक्चर में साफ-साफ चेतावनी दी गयी: ‘तेज़ दौड़नेवालों की देखा-देखी आप भी तेज़ मत दौड़िए। एक खास रफ्तार से दौड़िए जो न एकदम तेज़ हो ना ही एकदम धीमी। नहीं तो आप इतने थक जाएँगे कि आपको दौड़ से ही बाहर होना पड़ेगा।’ मैंने वह सलाह मानी और मैं वह दौड़ पूरी कर सका।”

      १५ इसी तरह ज़िंदगी की दौड़ में परमेश्‍वर के सेवकों को बहुत यत्न करना होगा। (लूका १३:२४) लेकिन शिष्य याकूब ने लिखा: “जो ज्ञान ऊपर से आता है वह . . . कोमल . . . होता है।” (याकूब ३:१७) सो, जबकि दूसरों का अच्छा उदाहरण हमें और भी ज़्यादा करने के लिए उकसा सकता है, फिर भी कोमलता, या दूसरे शब्दों में समझदारी ऐसे लक्ष्य रखने में हमारी मदद करेगी जो हमारी काबिलीयत और परिस्थिति के अनुसार हों और जिन्हें हम पा सकें। बाइबल हमें याद दिलाती है: “हर एक अपने ही काम को जांच ले, और तब दूसरे के विषय में नहीं परन्तु अपने ही विषय में उसको घमण्ड करने का अवसर होगा। क्योंकि हर एक व्यक्‍ति अपना ही बोझ उठाएगा।”—गलतियों ६:४, ५.

      १६. नम्रता हमें अपनी रफ्तार कायम करने में कैसे मदद कर सकती है?

      १६ मीका ६:८ में हमसे यह सवाल पूछा गया है जो हमें सोचने पर मज़बूर करता है: “यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू . . . अपने परमेश्‍वर के साथ नम्रता से चले?” नम्रता का मतलब है अपनी कमज़ोरियों और हदों का एहसास होना। क्या तबियत खराब रहने की वज़ह से या उम्र ढलने की वज़ह से हम परमेश्‍वर की सेवा में उतना नहीं कर पा रहे हैं जितना हम चाहते हैं? अगर ऐसा है तो हमें निराश नहीं होना चाहिए। क्योंकि यहोवा हमारी हर कोशिश और तमाम कुर्बानियों की कदर करता है। वह “उसके अनुसार” स्वीकार करता है “जो हमारे पास है न कि उसके अनुसार जो हमारे पास नहीं” है।—२ कुरिन्थियों ८:१२. लूका २१:१-४ से तुलना कीजिए।

  • आप अंत तक धीरज धर सकते हैं
    प्रहरीदुर्ग—1999 | अक्टूबर 1
    • जैसे-जैसे अंत नज़दीक आता है

      २०. जैसे-जैसे अंत नज़दीक आता जा रहा है, हमारी ज़िंदगी की दौड़ और भी मुश्‍किल कैसे हो सकती है?

      २० ज़िंदगी की दौड़ में हमें अपने सबसे बड़े दुश्‍मन, शैतान से भी जूझना पड़ता है। क्योंकि जैसे-जैसे अंत नज़दीक आता जा रहा है, वह भी जी-जान से इस कोशिश में जुटा हुआ है कि हमें गिराए या हमारी रफ्तार को धीमा कर दे। (प्रकाशितवाक्य १२:१२, १७) दुनिया में चारों तरफ युद्ध, अकाल, महामारियाँ और “अन्त समय” के बारे में भविष्यवाणी की सारी घटनाएँ घट रही हैं, इसलिए पूरी वफादारी से, और दिल लगाकर राज्य का प्रचार करना आसान नहीं है। (दानिय्येल १२:४; मत्ती २४:३-१४; लूका २१:११; २ तीमुथियुस ३:१-५) इसके अलावा, अगर हमने कई साल पहले यह दौड़ शुरू की थी तो आज हमें यह लग सकता है कि हमारे हिसाब से अब तक अंत आ जाना चाहिए था मगर नहीं आया। लेकिन परमेश्‍वर का वचन, बाइबल यह कहकर हमारा हौसला बढ़ाता है कि अंत ज़रूर आएगा। खुद यहोवा कहता है कि इसमें देर न होगी। देखिए! अंत, एकदम नज़दीक है।—हबक्कूक २:३; २ पतरस ३:९, १०.

      २१. (क) ज़िंदगी की दौड़ में टिके रहने के लिए किन चीज़ों से हमारा हौसला बढ़ सकता है? कौन हमें सामर्थ दे सकता है? (ख) जैसे-जैसे अंत नज़दीक आता जा रहा है, हमारा संकल्प क्या होना चाहिए?

      २१ तो फिर, ज़िंदगी की अपनी दौड़ में जीत हासिल करने के लिए यहोवा ने हमारी आध्यात्मिक खुराक के लिए जो प्यार-भरे इंतज़ाम किए हैं, उनसे हमें पूरा-पूरा फायदा उठाना चाहिए। साथ ही हमारे साथ ज़िंदगी की दौड़ में दौड़ रहे अपने संगी विश्‍वासियों से लगातार मिलते रहना चाहिए और उनसे हौसला लेते रहना चाहिए। और अगर बहुत ही कड़ी सताहट या किसी समय और संयोग की वज़ह से हमारी दौड़ और भी मुश्‍किल हो जाती है, तब भी हम अंत तक धीरज धर सकते हैं, क्योंकि यहोवा हमें “असीम सामर्थ” देता है। (२ कुरिन्थियों ४:७) यह जानकर कितना हौसला मिलता है कि खुद यहोवा यह चाहता है कि हम ज़िंदगी की इस दौड़ को जीतें! तो फिर, आइए हम संकल्प करें कि “वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें” और पूरा यकीन रखें कि “यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।”—इब्रानियों १२:१; गलतियों ६:९.

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