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  • अविश्‍वास से चौकस रहो
    प्रहरीदुर्ग—1998 | जुलाई 15
    • “अपने मन [हृदय] को कठोर न करो”

      १३. पौलुस ने कौन-सी चेतावनी दी, और उसने भजन ९५ को कैसे लागू किया?

      १३ इब्रानी मसीहियों की अच्छी स्थिति पर गौर करने के बाद, पौलुस ने यह चेतावनी दी: “जैसा पवित्र आत्मा कहता है, कि यदि आज तुम उसका शब्द सुनो। तो अपने मन [हृदय] को कठोर न करो, जैसा कि क्रोध दिलाने के समय और परीक्षा के दिन जंगल में किया था।” (इब्रानियों ३:७, ८) पौलुस यहाँ भजन के ९५ अध्याय से कुछ बातें उद्धृत कर रहा था, और इसलिए कह सकता था कि “पवित्र आत्मा कहता है।”b (भजन ९५:७, ८; निर्गमन १७:१-७) शास्त्र परमेश्‍वर द्वारा उसकी पवित्र आत्मा के ज़रिए प्रेरित किया गया है।—२ तीमुथियुस ३:१६.

      १४. यहोवा ने इस्राएलियों के लिए जो कुछ किया था, उसके प्रति उन्होंने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी, और क्यों?

      १४ मिस्र की गुलामी से छुड़ाए जाने के बाद, इस्राएलियों को यहोवा के साथ वाचा के रिश्‍ते में लाकर उन्हें बड़ी इज़्ज़त बख्शी गयी। (निर्गमन १९:४, ५; २४:७, ८) उनके लिए परमेश्‍वर ने जो कुछ किया था, उसके लिए कदरदानी दिखाने के बजाय, उन्होंने जल्द ही बगावत करनी शुरू कर दी। (गिनती १३:२५-१४:१०) मगर ऐसा कैसे हुआ होगा? पौलुस ने इसकी वज़ह बतायी: हृदय का कठोर होना। मगर वे हृदय जो परमेश्‍वर के वचन के प्रति संवेदनशील और प्रतिक्रियाशील हैं, कठोर कैसे बन सकते हैं? और इससे बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

      १५. (क) बीते हुए समय में और आज ‘परमेश्‍वर के अपने शब्द’ कैसे सुने जा रहे हैं? (ख) ‘परमेश्‍वर के शब्द’ के सिलसिले में हमें खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए?

      १५ पौलुस ने इस चेतावनी की शुरुआत इस शर्त के साथ की ‘यदि तुम उसका शब्द सुनो।’ परमेश्‍वर ने अपने लोगों के साथ मूसा और बाकी नबियों के ज़रिए बात की। बाद में यहोवा ने उनके साथ अपने बेटे, यीशु मसीह के ज़रिए बात की। (इब्रानियों १:१, २) आज हमारे पास परमेश्‍वर का पूरा प्रेरित वचन, पवित्र बाइबल है। हमारे साथ “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” भी है, जिसे यीशु ने ‘समय पर भोजन देने’ के लिए नियुक्‍त किया है। (मत्ती २४:४५-४७) सो परमेश्‍वर अब भी बात कर रहा है। मगर क्या हम सुन रहे हैं? मिसाल के तौर पर, हम कपड़ों और बनाव-श्रंगार या मनोरंजन और संगीत के चुनाव के बारे में दी गयी सलाह पर कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं? क्या हम ‘सुनते’ हैं, यानी जो कुछ कहा गया है उस पर ध्यान देकर उसका पालन करते हैं? अगर हमें बहाने बनाने या सलाह पर एतराज़ करने की आदत पड़ गयी है, तो हम अपने हृदय को कठोर करने के धूर्त खतरे में पड़ रहे हैं।

      १६. कौन-सा एक तरीका है जिससे हमारे हृदय कठोर बन सकते हैं?

      १६ हमारे हृदय तब भी कठोर हो सकते हैं अगर हम उस काम से कन्‍नी काटने लगें जिसे हम कर सकते हैं और जो हमें करना चाहिए। (याकूब ४:१७) यहोवा ने इस्राएलियों के लिए जो कुछ किया था, उन सब के बावजूद उन्होंने विश्‍वास नहीं किया, मूसा के खिलाफ बगावत की, कनान के बारे में बुरी रिपोर्ट पर कान दिया, और प्रतिज्ञात देश में कदम रखने से इंकार कर दिया। (गिनती १४:१-४) सो यहोवा ने हुक्म दिया कि वो लोग वीराने में ४० साल बिताएँगे—इतना समय जो उस पीढ़ी के अविश्‍वासी लोगों के मर जाने के लिए काफी था। उनसे चिढ़कर, परमेश्‍वर ने कहा: “इन के मन [हृदय] सदा भटकते रहते हैं, और इन्हों ने मेरे मार्गों को नहीं पहिचाना। तब मैं ने क्रोध में आकर शपथ खाई, कि वे मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाएंगे।” (इब्रानियों ३:९-११) क्या इसमें आज हमारे लिए कोई सबक है?

  • अविश्‍वास से चौकस रहो
    प्रहरीदुर्ग—1998 | जुलाई 15
    • १९. सलाह को न मानना गंभीर परिणामों की ओर कैसे ले जा सकता है? समझाइए।

      १९ सो फिर, सबक यह है कि अगर हम ‘उसका शब्द न सुनने’ की आदत डाल लेते हैं, और बाइबल और विश्‍वासयोग्य दास वर्ग के ज़रिए आनेवाली यहोवा की सलाह को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो जल्द ही हमारे हृदय कठोर, और निष्ठुर हो जाएँगे। मिसाल के तौर पर, शायद एक अविवाहित जोड़ा कुछ ज़्यादा ही करीब आ जाए। अगर वे इस बात को बस नज़रअंदाज़ कर देंगे तो क्या होगा? क्या यह उन्हें यही गलती दोबारा करने से बचाएगा या क्या वे फिर एक बार आसानी से वही गलती कर बैठेंगे? उसी तरह, जब दास वर्ग हमें संगीत और मनोरंजन, वगैरह-वगैरह के बारे में चुनिंदा होने की सलाह देता है, तो क्या हम शुक्रगुज़ार होकर उसे कबूल कर लेते हैं और जहाँ ज़रूरी है वहाँ सुधार करते हैं? पौलुस ने हमसे आग्रह किया कि “एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें।” (इब्रानियों १०:२४, २५) इस सलाह के बावजूद, कुछ लोग मसीही सभाओं को हलकी बात समझते हैं। शायद उन्हें लगे कि कुछेक सभाओं को मिस करने या फलानी सभाओं में जाना पूरी तरह से बंद कर देने से कोई फरक नहीं पड़ेगा।

  • अविश्‍वास से चौकस रहो
    प्रहरीदुर्ग—1998 | जुलाई 15
    • b ज़ाहिर है, पौलुस ने यहाँ यूनानी सॆप्टूजिंट से उद्धृत किया, जो “मरीबा” और “मस्सा” के लिए इब्रानी शब्दों को “झगड़ा करना” और “परीक्षा करना” अनुवादित करता है। वॉचटावर बाइबल एंड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌ का खंड २, पेज ३५० और ३७९ देखिए।

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