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विभाजित संसार में मसीही पहुनाईप्रहरीदुर्ग—1996 | अक्टूबर 1
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“इसलिये ऐसों का स्वागत करना चाहिए, जिस से हम भी सत्य के पक्ष में उन के सहकर्मी हों।”—३ यूहन्ना ८.
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विभाजित संसार में मसीही पहुनाईप्रहरीदुर्ग—1996 | अक्टूबर 1
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३. हम सच्चा आनन्द और संतुष्टि कैसे पा सकते हैं?
३ स्थिति कितनी भिन्न होती यदि लोग दूसरों के साथ व्यवहार करने के यहोवा के तरीक़े का अनुकरण करते—कृपालु, उदार, पहुनाई करनेवाले होते! उसने स्पष्ट कर दिया कि स्वयं अपनी इच्छाओं को संतुष्ट करने की कोशिश करने में सच्चे सुख का रहस्य नहीं है। इसके बजाय, कुंजी यह है: “लेने से देना धन्य है।” (प्रेरितों २०:३५) सच्चा आनन्द और संतुष्टि पाने के लिए, हमें उन बाधाओं और विभाजनों को पार करना है जो हमें रोक के रख सकते हैं। और हमें उनकी ओर बढ़ना है जो हमारे साथ-साथ यहोवा की सेवा कर रहे हैं। इस सलाह को मानना अत्यावश्यक है: “इसलिये ऐसों का स्वागत करना चाहिए, जिस से हम भी सत्य के पक्ष में उन के सहकर्मी हों।” (३ यूहन्ना ८) जिस हद तक हमारी परिस्थितियाँ अनुमति देती हैं, योग्य जनों की पहुनाई करना दो तरीक़ों से फल देता है—इससे देनेवाले और प्राप्त करनेवाले दोनों को लाभ होता है। तो, उन योग्य जनों में कौन हैं जिनका हमें “स्वागत करना चाहिए”?
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