वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • विश्‍व शक्‍तियों की लम्बी दौड़ अपने अन्त के समीप पहुँचती हैं
    प्रहरीदुर्ग—1990 | फरवरी 1
    • प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में इसी एन्गलो-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति को एक पशु के समान बताया है, जिसके “दो सींग” है। यह दो भागीय विश्‍व-शक्‍ति “पृथ्वी के रहनेवालों से कहती है कि वे” उस राजनैतिक पशु की जो सारी सात विश्‍व शक्‍तियों का प्रतिनिधित्व करता है, “मूर्ति बनाए।”—प्रकाशितवाक्य १३:११, १४.

  • विश्‍व शक्‍तियों की लम्बी दौड़ अपने अन्त के समीप पहुँचती हैं
    प्रहरीदुर्ग—1990 | फरवरी 1
    • जैसे ही पहले विश्‍व युद्ध का चार वर्षीय संन्‍नास समाप्त हुआ, अमरीकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन और ब्रिटेन के प्रधान मंत्री डेविड लॉयड जॉर्ज ने राष्ट्रों के संघटन का प्रस्ताव रखा। इसका लक्ष्य था कि वह “अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को हासिल करें” और इस प्रकार के युद्ध के संन्‍नास को फिर कभी घटित न होने दें।

      यह दिलचस्पी की बात है कि किसने पहल की। ये दो नेता अंग्रेज़ी भाषा बोलनेवाली एन्गलो-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति के दो भाग, जो बाइबल इतिहास में सातवीं शक्‍ति है, इसके प्रधान थे। इस अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की संस्था आश्‍चर्यजनक रीति से इस और दूसरी बात के अनुकूल है, जो बाइबल पुस्तक प्रकाशितवाक्य ने अल्पकाल के लिए मौजूद रहने वाले “आठवें राजा” के बारे में बताती है जो हमारे समय में उदय होगा और अस्त भी होगा। इनमें कौनसी कुछेक दिलचस्प समानान्तर बातें है?—प्रकाशितवाक्य १७:११.

      प्रकाशितवाक्य में हुई भविष्यवाणी बताती है कि एक “पशु” जिसके “मेम्ने के से दो सींग हैं,” “पृथ्वी के रहनेवालों” से कहता है कि वे उस वन्य पशु की, बाइबल इतिहास के सात महान विश्‍व-शक्‍तियाँ रही हैं, “सिर मूर्ति बनाएँ।”

      एन्गलो-अमरीकी विश्‍व-शक्‍ति ने ठीक यही किया। उसने “पृथ्वी के रहनेवालों” को उत्तेजित किया कि वे एक संघटन की स्थापना करें जो उसी प्रकार दिखाई दे और कार्य करें जैसा कि महान सरकारें दिखाई देती हैं और कार्य करती हैं। परन्तु वास्तव में मात्र “वन्य पशु की मूर्ति” थी। उसकी अपने आप में कोई शक्‍ति नहीं थी, वह शक्‍ति हासिल थी जो उसके सदस्य राष्ट्रों ने उसे प्रदान की थी। उसे किसी महान सैनिक विजय के द्वारा शक्‍ति प्राप्त नहीं हुई थी, जैसे कि विश्‍व शक्‍तियों ने प्राप्त किया था। इसके बजाय, वे इन सात विश्‍व शक्‍तियों में से उदय या अस्तित्व में आती है। उसका अस्तित्व मात्र इन में से सातवीं पर ही आधारित नहीं है बल्कि दूसरे सदस्य राष्ट्रों पर भी आधारित है, जिनमें पिछले छः विश्‍व-शक्‍तियों के कुछ अवशेष हैं। क्या यह राजनैतिक मूर्ति उन उच्च लक्ष्यों तक पहुँचेगी जिसकी आशा उसके संस्थापनों ने की थी?—प्रकाशितवाक्य १३:११, १४; १७:११.

हिंदी साहित्य (1972-2025)
लॉग-आउट
लॉग-इन
  • हिंदी
  • दूसरों को भेजें
  • पसंदीदा सेटिंग्स
  • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
  • इस्तेमाल की शर्तें
  • गोपनीयता नीति
  • गोपनीयता सेटिंग्स
  • JW.ORG
  • लॉग-इन
दूसरों को भेजें