गीत 3
“परमेश्वर प्यार है”
1. याह है प्यार, क-हे वो हम-से
‘तुम अप-ना लो राह प्यार की।’
जी-वन के स-फ़र में मिल-ते
अप-ने भी, प-रा-ए भी।
प्यार ज़ा-हिर क-रें हम उन-पे
कर-के काम भ-ला-ई के।
दे-खे-गी तब दुन्-या सा-री
यी-शु-सा है प्यार हम-में।
2. इस राह की ना मं-ज़िल को-ई
चल-ना है बि-ना रु-के।
थक जा-एँ, फिर भी ना हा-रें
याह दे-ता म-दद ह-में।
याह का प्यार उ-भा-रे हर-दम
बढ़-ते जा-एँ प्यार में हम।
ना ये फूल-ता, ना ये जल-ता
सह ले-ता है हर सि-तम।
3. दिल में रं-जि-शें ना पा-लें
घर ना कर ले ये हम-में।
प्यार दि-खा-ना फ़र्ज़ ह-मा-रा
याह का है हु-कुम भी ये।
प्यार की राह गर हम च-लें तो
उम्-मी-दें ना छो-ड़ें-गे।
याह-सा प्यार दि-खा-एँ हर पल
प्यार ऐ-सा जो दिल छू ले।
(मर. 12:30, 31; 1 कुरिं. 12:31-13:8; 1 यूह. 3:23 भी देखिए।)