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  • बाग़ में व्यथा
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय ११७

      बाग़ में व्यथा

      जब यीशु प्रार्थना करना समाप्त करते हैं, वे और उनके ११ वफादार प्रेरित यहोवा को स्तुति के गीत गाते हैं। फिर वे ऊपरी कमरे से उतरकर, रात की ठण्डे अन्धकार में निकलते हैं, और किद्रोन तराई से होकर बैतनियाह के तरफ चल पड़ते हैं। लेकिन रास्ते में, वे एक मन पसन्द जगह, गतसमनी का बाग़, में रुकते हैं। यह जैतून पहाड़ पर या उसके आसपास स्थित है। अक़सर यीशु अपने प्रेरितों के साथ यहाँ जैतून के पेड़ों के बीच मिला करते थे।

      आठ प्रेरितों को—शायद बाग़ के प्रवेश द्वार के निकट—छोड़कर वे उन्हें आदेश देते हैं: “यहीं बैठे रहना, जब कि मैं वहाँ जाकर प्रार्थना करूँ।” फिर वह अन्य तीन—पतरस, याकूब और यूहन्‍ना—को साथ लेकर बाग़ में और आगे जाता है। यीशु उदास और हद से ज़्यादा बेक़रार होते हैं। वे उन्हें कहते हैं, “मेरा जी मौत तक बहुत उदास है, तुम यहीं ठहरो और मेरे साथ जागते रहो।”—NW.

      थोड़ा और आगे बढ़कर यीशु मुँह के बल गिर जाते हैं और गम्भीरता से प्रार्थना करने लगते हैं: “हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए। तौभी, जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।” उनके कहने का मतलब क्या है? क्यों वह “मौत तक बहुत उदास है”? क्या वह मरने और छुटकारे का प्रबन्ध प्रदान करने के फ़ैसले से पीछे हट रहा है?

      बिलकुल नहीं! यीशु मौत से बचने की विनती नहीं कर रहे हैं। यहाँ तक कि एक बलिदान रूपी मौत को टालने का ख़्याल, जिसका सुझाव पतरस ने एक बार दिया था, उसके लिए घृणित है। इसके बजाय, वह इसलिए व्यथा में है क्योंकि वह डर रहा है कि मरने का तरीका—एक तुच्छ अपराधी के समान—पिता के नाम पर कलंक लाएगा। वह अब यह महसूस कर रहा है कि कुछ ही घंटों में उसे एक बदतरीन क़िस्म का व्यक्‍ति—परमेश्‍वर के ख़िलाफ़ एक निन्दक—के जैसे स्तंभ पर चढ़ाया जाएगा! यह बात उसे अत्यधिक व्याकुल कर रही है।

      देर तक प्रार्थना करने के बाद, यीशु वापस आकर तीनों प्रेरितों को सोते हुए पाते हैं। पतरस को संबोधित करते हुए, वे कहते हैं: “क्या तुम मेरे साथ एक घड़ी भी न जाग सके? जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।” तो भी उनके ऊपर आए तनाव और घड़ी की देरी को मानते हुए, वह कहता है: “आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।”

      यीशु फिर दूसरी बार जाकर परमेश्‍वर से “यह कटोरा,” अर्थात, उसके लिए यहोवा का नियत भाग, या इच्छा, हटाने की विनती करते हैं। जब वह वापस आता है, वह दोबारा तीनों को सोता हुआ पाता है जबकि उन्हें प्रार्थना करनी चाहिए थी कि वे प्रलोभन में न पड़े। जब यीशु उन से बात करते हैं, वे यह नहीं जानते कि क्या जवाब दें।

      अन्त में, तीसरी बार, यीशु कुछ दूरी तक जाते हैं और घुटने टेककर ऊँची आवाज़ से और आसुओं के साथ प्रार्थना करते हैं: “हे पिता, यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले।” एक अपराधी के समान मृत्यु से अपने पिता के नाम पर आनेवाली बदनामी के कारण, यीशु तीव्रता से दर्द महसूस कर रहे हैं। अजी, ईश-निन्दक—वह जो परमेश्‍वर को शाप देता है—होने का इलज़ाम सहा नहीं जाता!

      फिर भी, यीशु प्रार्थना जारी रखते हैं: “जो मैं चाहता हूँ, वह नहीं, परन्तु जो तू चाहता है।” यीशु आज्ञाकारिता से अपनी इच्छा परमेश्‍वर के आधीन करते हैं। इस पर, स्वर्ग से एक दूत दिखायी देता है और उसे प्रोत्साहनदायक शब्दों से सामर्थ देता है। संभवतः, स्वर्गदूत यीशु को बताता है कि पिता की स्वीकृती उस पर है।

      तो भी, यीशु के कन्धों पर कितना बोझ! उसका अपना और सम्पूर्ण मानवजाति का अनन्त जीवन तराज़ू पर लटका हुआ है। भावनात्मक तनाव बहुत है। इसलिए यीशु अधिक गंभीरता से प्रार्थना करते हैं, और उनका पसीना रक्‍त की बूँदों के जैसे ज़मीन पर गिरते हैं। अमेरिकन चिकित्सा-समुदाय का जर्नल (The Journal of the American Medical Association) नामक पत्रिका अवलोकन करती है, “हालाँकि यह एक बहुत ही विरल दृश्‍यघटना है, रक्‍त का पसीना . . . अत्यन्त भावनात्मक अवस्था में आ सकते हैं।”

      इसके बाद, यीशु तीसरी बार अपने प्रेरितों के पास लौटते हैं, और एक बार फिर उन्हें सोए हुए पाते हैं। वे शोक के वजह से थक गए हैं। वह चिल्ला उठता है, “ऐसे समय पर तुम सो रहे हो और विश्राम करते हो! बहुत हो गया! घड़ी आ पहुँची है! देखो! मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाता है। उठो, चलें! देखो, मेरा पकड़वानेवाला निकट आ पहुँचा है।”—NW.

      जब वे बोल ही रहे हैं, एक बड़ी भीड़ यहूदा इस्करियोती के साथ मशाल और बत्ती और हथियार लिए आती है। मत्ती २६:३०, ३६-४७; १६:२१-२३; मरकुस १४:२६, ३२-४३; लूका २२:३९-४७; यूहन्‍ना १८:१-३; इब्रानियों ५:७.

      ▪ ऊपरी कमरा छोड़ने के बाद, यीशु प्रेरितों को कहाँ ले जाते हैं, और वह वहाँ क्या करता है?

      ▪ जब यीशु प्रार्थना कर रहे हैं, प्रेरित क्या कर रहे हैं?

      ▪ यीशु व्यथा में क्यों हैं, और वह परमेश्‍वर से क्या विनती करता है?

      ▪ यीशु का पसीना रक्‍त की बूँद बनने से क्या सूचित होता है?

  • विश्‍वासघात और गिरफ़्तारी
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय ११८

      विश्‍वासघात और गिरफ़्तारी

      जब यहूदा सैनिक, महायाजक, फरीसी और अन्य जनों की बड़ी भीड़ को गतसमनी के बाग़ में ले आता है, तब आधी रात से अधिक वक़्त गुज़र चुका है। यीशु का विश्‍वासघात करने के लिए याजकों ने यहूदा को ३० चाँदी के सिक्के देने में सहमत हुए हैं।

      इससे पहले, जब यहूदा को फसह के भोजन से विदा किया गया था, वह स्पष्टतया सीधे महायाजकों के पास गया था। इन्होंने तुरन्त अपने अफ़सर, और इनके अतिरिक्‍त सैनिकों का दल को भी इकट्ठा किया। शायद यहूदा उन्हें पहले वहाँ ले गया होगा जहाँ यीशु और उसके प्रेरितों ने फसह मनाया था। यह पता लगाने पर कि वे वहाँ से निकल चुके हैं, हथियार और बत्ती और मशाल लिए हुई बड़ी भीड़ यहूदा का पीछा यरूशलेम से बाहर और किद्रोन तराई के पार करती है।

      जैसे यहूदा जुलूस को जैतून के पहाड़ पर ले जाता है, उसे यक़ीन होता है कि उसे यीशु का पता चल गया है। पिछले सप्ताह के दौरान, जैसे यीशु और प्रेरित बैतनियाह और यरूशलेम के दरमियान आगे-पीछे यात्रा करते, वे अक़सर विश्राम और बातचीत करने गतसमनी के बाग़ में रुकते थे। लेकिन, अब, यीशु जैतून के पेड़ों के नीचे अन्धकार में शायद छिपे होने के वजह से, सैनिक उसे कैसे पहचानेंगे? उन्होंने उसे पहले कभी देखा भी नहीं होगा। इसलिए यहूदा यह कहते हुए एक चिह्न देता है: “जिस को मैं चूमूँ, वही है, उसे पकड़कर यतन से ले जाना।”—NW.

      यहूदा उस बड़ी भीड़ को बाग़ में ले जाता है, यीशु को अपने प्रेरितों के साथ देखकर सीधे उनके पास जाता है। “हे रब्बी, नमस्कार!” और उसे कोमलता से चूमता है।

      यीशु प्रत्युत्तर देते हैं, “हे मित्र, तू किस उद्देश्‍य से उपस्थित है?” (NW) फिर, अपने ही सवाल का जवाब देते हुए वे कहते हैं: “यहूदा, क्या तू चूमा लेकर मनुष्य के पुत्र को पकड़वाता है?” लेकिन उनके विश्‍वासघात करनेवाले का बहुत हो चुका! यीशु जलती बत्ती और मशालों की रोशनी में आगे बढ़ते हुए पूछते हैं: “तुम किसे ढूँढ़ते हो?”

      जवाब मिलता है, “यीशु नासरी को।”

      यीशु साहसीपूर्वक सबके सामने खड़े होकर जवाब देते हैं, “वह मैं हूँ।” उनकी निडरता से अचंभित होकर और यह नहीं जानते हुए कि क्या होगा, वे मनुष्य पीछे हटते हैं और ज़मीन पर गिर पड़ते हैं।

      यीशु शान्ति से बात जारी रखते हैं, “मैं तुम्हें बता चुका हूँ कि वह मैं हूँ, यदि मुझे ढूँढ़ते हो तो इन्हें जाने दो।” कुछ देर पहले ऊपरी कमरे में यीशु ने प्रार्थना में अपने पिता से कहा था कि उसने अपने वफादार प्रेरितों को साथ रखा है और “विनाश के पुत्र को छोड़कर” उन में से एक भी खोया नहीं था। इसलिए, अपने वचनों की पूर्ति के लिए वह पूछता है कि अपने शिष्यों को जाने दे।

      जैसे सैनिक अपने आत्मसंयम दोबारा प्राप्त करके, खड़े होकर यीशु को बाँधने लगते हैं, क्या होनेवाला है यह प्रेरित जान लेते हैं। वे पूछते हैं, “हे प्रभु, क्या हम तलवार चलाएँ?” यीशु जवाब देने से पहले, पतरस, प्रेरितों द्वारा लायी गयी दो तलवारों में से एक को निकालकर, महायाजक के एक दास मलखुस पर हमला करता है। पतरस का हमला दास का सिर चूकता है पर उसका दाहिना कान उड़ा देता है।

      यीशु दख़ल देते हुए कहते हैं, “अब बस करो।” मलखुस के कान को छुते हुए वे ज़ख़्म को चंगा कर देते हैं। फिर पतरस को हुक़्म देते हुए, वे एक महत्त्वपूर्ण सबक़ सिखाते हैं, “अपनी तलवार काठी में रख ले, क्योंकि जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएँगे। और क्या तू नहीं समझता, कि मैं अपने पिता से बिनती कर सकता हूँ, और वह स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा?”

      यीशु गिरफ़्तार होने राज़ी हैं, चूँकि वे समझाते हैं: “पवित्र शास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्‍य है, कैसे पूरी होंगी?” और वे आगे कहते हैं, “जो कटोरा पिता ने मुझे दिया है, उसे मैं क्यों न पीऊँ?” उनके लिए परमेश्‍वर की इच्छा से वे पूरी तरह सहमत हैं!

      फिर यीशु भीड़ को संबोधित करते हैं। वे पूछते हैं, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू के समान पकड़ने के लिए निकले हो? मैं हर दिन मंदिर में बैठकर उपदेश दिया करता था, और तुम ने मुझे नहीं पकड़ा। परन्तु यह सब इसलिए हुआ है कि भविष्यवक्‍ताओं के वचन पूरे हों।”

      इस पर सैनिकों का दल और सेनापति और यहूदियों के अफ़सर यीशु को पकड़ते हैं और उन्हें बाँध देते हैं। यह देखकर, प्रेरित यीशु को त्यागकर भाग जाते हैं। बहरहाल, एक युवक—शायद यह शिष्य मरकुस है—भीड़ के साथ रहता है। शायद वह उस घर में था जहाँ यीशु ने फसह मनाया था और बाद में वहाँ से भीड़ के पीछे आया होगा। तथापि, अब, वह पहचान लिया जाता है, और उसे पकड़ने की कोशिश की जाती है। पर वह अपने वस्त्र पीछे छोड़कर भाग जाता है। मत्ती २६:४७-५६; मरकुस १४:४३-५२; लूका २२:४७-५३; यूहन्‍ना १७:१२; १८:३-१२.

      ▪ यहूदा को क्यों यक़ीन होता है कि वह यीशु को गतसमनी के बाग़ में पाएगा?

      ▪ यीशु अपने प्रेरितों के लिए चिन्ता कैसे ज़ाहिर करते हैं?

      ▪ यीशु के बचाव में पतरस क्या कार्यवाही करता है, लेकिन इसके बारे में यीशु पतरस सें क्या कहते हैं?

      ▪ यीशु कैसे प्रकट करते हैं कि उनके लिए परमेश्‍वर की इच्छा से वे पूरी तरह सहमत हैं?

      ▪ जब प्रेरित यीशु को त्याग देते हैं, कौन रह जाता है, और उसके साथ क्या होता है?

  • हन्‍ना के पास, फिर काइफ़ा के पास ले जाया गया
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय ११९

      हन्‍ना के पास, फिर काइफ़ा के पास ले जाया गया

      यीशु, एक सामान्य अपराधी के जैसे बँधा, प्रभावकारी भूतपूर्व महायाजक हन्‍ना के पास ले जाया जाता है। हन्‍ना तब महायाजक था जब १२-वर्षीय बालक के रूप में यीशु ने मंदिर के रब्बी पद के शिक्षकों को चकित किया था। बाद में हन्‍ना के कई बेटों ने महायाजक का काम सँभाला, और अब उसका दामाद काइफ़ा उस पद पर है।

      यहूदी धार्मिक जीवन में हन्‍ना की लंबी अवधि के लिए ऊँचा स्थान के वजह से यीशु को संभवतः पहले हन्‍ना के घर ले जाया गया। हन्‍ना को देखने के लिए ले जाने से महायाजक काइफ़ा को महासभा, ७१-सदस्यों का यहूदी उच्च-न्यायालय, एकत्र करने के अलावा झूठे गवाह इकट्ठा करने का वक़्त भी मिलता है।

      मुख्य याजक हन्‍ना अब यीशु से उनके शिष्य और शिक्षाओं के बारे में सवाल पुछता है। बहरहाल, यीशु जवाब में कहते हैं: “मैं ने जगत से खोलकर बातें की है। मैं ने सभाओं और आराधनालय में जहाँ सब यहूदी इकट्ठे हुआ करते हैं सदा उपदेश किया; और गुप्त में कुछ भी नहीं कहा। तू मुझ से क्यों पूछता है? सुननेवालों से पूछ कि मैं ने उन से क्या कहा? देख, वे जानते हैं, कि मैं ने क्या क्या कहा।”

      इस पर, यीशु के समीप खड़ा एक अफ़सर उसे मुँह पर थप्पड़ मारकर कहता है: “क्या तू महायाजक को इस प्रकार उत्तर देता है?”

      “यदि मै ने गलत कहा,” यीशु जवाब देते हैं, “तो यह गलती पर गवाही दे; परन्तु यदि सही कहा, तो मुझे क्यों मारता है?” इस आदान-प्रदान के बाद, हन्‍ना यीशु को बँधे हुए काइफ़ा के पास भेजता है।

      अब तक सभी महायाजक और पुरनिए और शास्त्री, हाँ, पूरी महासभा, एकत्र हो रही है। उनका मिलनस्थान स्पष्टतया काइफ़ा का घर है। फसह की रात ऐसी परीक्षा चलाना यहूदी क़ानून के साफ-साफ़ ख़िलाफ़ है। लेकिन यह धार्मिक अगुओं को उनके दुष्ट उद्देश्‍य से नहीं रोक पाता।

      कई सप्ताह पहले, जब यीशु ने लाज़र का पुनरुत्थान किया था, महासभा ने पहले से आपस में फ़ैसला कर लिया था कि उसने ज़रूर मरना चाहिए। और सिर्फ़ दो दिन पहले, बुधवार के रोज़, धार्मिक अधिकारियों ने यीशु को चालबाज़ युक्‍ति से पकड़कर मार डालने की योजना बनायी। कल्पना करें, उसे दरअसल अपने परीक्षण से पहले ही अपराधी ठहराया गया!

      गवाह ढूँढ़ने की कोशिशें जारी है जिनके झूठी गवाही से यीशु के ख़िलाफ मुक़दमा तैयार हो सके। लेकिन, ऐसा कोई गवाही प्राप्त नहीं होता जो अपनी गवाही से सहमत हैं। आख़िरकार, दो व्यक्‍ति सामने आकर दावे के साथ कहते हैं: “हम ने इसे यह कहते सुना, ‘मैं इस हाथ के बनाए हुए मंदिर को ढ़ा दूँगा, और तीन दिन में दूसरा बनाऊँगा जो हाथ से न बना हो।’”

      “तू कोई उत्तर नहीं देता?” काइफ़ा पुछता है। “ये लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते हैं?” परन्तु यीशु चुप रहते हैं। इस झूठे आरोप में भी, महासभा का अवमान होता है, चूँकि गवाहों की अपनी कहानियाँ बनती नहीं। इसलिए महायाजक एक और चाल चलता है।

      काइफ़ा जानता है कि परमेश्‍वर का पुत्र होने का दावा करनेवाले के बारे में यहूदी कितने तुनक-मिज़ाज हैं। पहले दो मौकों पर, उन्होंने यीशु पर मौत के योग्य ईश्‍वर-निन्दक का बेहिसाब इलज़ाम लगाया। एक बार तो उन्होंने गलती से यह मान लिया कि वह परमेश्‍वर के बराबर होने का दावा कर रहा है। काइफ़ा अब चालाकी से माँगता है: “मैं तुझे जीवते परमेश्‍वर की शपथ देता हूँ, कि यदि तू परमेश्‍वर का पुत्र मसीह है, तो हम से कह दे।”

      यहूदी चाहे कुछ भी सोचते हों, यीशु असल में परमेश्‍वर का बेटा है। वह मसीह होने से नकारता है यह अर्थ चुप रहने से लगाया जा सकता है। इसलिए यीशु साहसपूर्वक जवाब देते हैं: “मैं हूँ; और तुम लोग मनुष्यों के पुत्र को सर्वशक्‍तिमान के दहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों पर आते देखोगे।”

      इस पर, काइफ़ा, नाटकीय दिखावे में, अपने वस्त्र फाड़ता है और चिल्लाता है: “इस ने परमेश्‍वर की निन्दा की है! अब हमें गवाही का क्या प्रयोजन? देखो! तुम ने अभी यह निन्दा सुनी है। तुम क्या समझते हो?”

      “वह वध होने के योग्य है,” महासभा घोषणा करती है। फिर वे उसका मज़ाक उड़ाने लगते हैं, और वे उसकी निन्दा में बहुत कुछ कहते हैं। वे उसके मुँह पर थप्पड़ मारते हैं और थूकते हैं। दूसरे उसके चेहरे को ढ़ाँककर अपने घूँसों से मारकर व्यंगात्मक रूप से कहते हैं, “हे मसीह, हम से भविष्यवाणी कर, किस ने तुझे मारा?” यह निन्दात्मक, ग़ैर-क़ानूनी बरताव रात के परीक्षण के दौरान घटित होती है। मत्ती २६:५७-६८; २६:३, ४; मरकुस १४:५३-६५; लूका २२:५४, ६३-६५; यूहन्‍ना १८:१३-२४; ११:४५-५३; १०:३१-३९; यूहन्‍ना ५:१६-१८.

      ▪ यीशु को पहले कहाँ ले जाया जाता है, और वहाँ उनके साथ क्या होता है?

      ▪ इसके बाद यीशु को कहाँ ले जाया जाता है, और किस उद्देश्‍य के लिए?

      ▪ यीशु मौत के योग्य है, महासभा द्वारा यह घोषणा करवाने में काइफ़ा किस तरह सफल होता है?

      ▪ परीक्षण के दौरान किस तरह का निन्दात्मक, ग़ैर-क़ानूनी बरताव घटित होती है?

  • आँगन में इनक़ार
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १२०

      आँगन में इनक़ार

      गतसमनी के बाग में यीशु को छोड़ने और डर के वजह से बाकी प्रेरितों के साथ भागने के बाद, पतरस और यूहन्‍ना अपने पलायन में रुक जाते हैं। शायद वे यीशु के पास आ जाते हैं जब उसे हन्‍ना के घर ले जाया जाता है। जब हन्‍ना उसे महायाजक काइफ़ा के पास भेजता है, पतरस और यूहन्‍ना काफी दूरी पर रहकर पीछा करते हैं, स्पष्टतः वे अपनी जान संकट में पड़ने के डर से और गुरु के साथ क्या होगा इसके प्रति गहरा फ़िक्र के मानसिक संघर्ष में पड़े हुए हैं।

      काइफ़ा के विस्तृत मकान पहुँचने पर, यूहन्‍ना आँगन में प्रवेश करने में समर्थ है क्योंकि महायाजक उसे जानता है। लेकिन, पतरस, दरवाज़े पर खड़ा रह जाता है। परन्तु जल्द ही यूहन्‍ना वापस आकर द्वारपालिन, एक दासी, से बात करता है, और पतरस को अन्दर जाने की इजाज़त मिलती है।

      अब, ठंड पड़ने लगी है, और घर के सेवक और महायाजक के अफ़सरों ने कोयले की आग जला ली है। जबकि पतरस यीशु का परीक्षण का परिणाम का इंतज़ार कर रहा है वह तापने के लिए उनके साथ मिल जाता है। वह द्वारपालिन, जिसने पतरस को अन्दर आने दिया, तेज़ आग की रोशनी में उसे अच्छी तरह देख लेती है। “तू भी, यीशु गलीली के साथ था!” वह चिल्लाती है।

      पहचाने जाने पर परेशान होकर, पतरस सब के सामने यीशु को जानने से इनकार करता है। वह कहता है: “मैं तो उसे नहीं जानता और नहीं समझता कि तू क्या कह रही है।”

      इस पर, पतरस दरवाज़े के पास चला जाता है। उधर, एक और लड़की उसे पहचानकर पास खड़े जनों से कहती है। “यह तो यीशु नासरी के साथ था।” एक बार फिर पतरस इनकार करते हुए शपथपूर्वक कहता है: “मैं उस मनुष्य को नहीं जानता!”

      पतरस आँगन में रहता है, और जहाँ तक हो सके वह अप्रकट होने की कोशिश करता है। शायद इस समय पर वह भोर के अन्धेरे में मुर्ग की बाँग से चौंक जाता है। इस बीच, यीशु का परीक्षण जारी है, शायद घर के उस भाग में जो आँगन के ऊपर है। बेशक पतरस और नीचे इंतज़ार कर रहे अन्य जन गवाही के लिए लाए अनेक गवाहों को आते-जाते देखते हैं।

      तब से क़रीब एक घंटा बीत चुका है जब पतरस को आख़री बार यीशु का साथी करके पहचाना गया। अब आस-पास खड़े हुए अनेक जन उसके पास आकर कहते हैं: “सचमुच तू भी उन में से एक है, क्योंकि तेरी बोली तेरा भेद खोल देती है।” उस दल में मलखुस, जिसका कान पतरस ने काटा था, का रिश्‍तेदार है। “क्या मैं ने तुझे उसके साथ बाग़ में न देखा था?” वह कहता है।

      “मैं उस मनुष्य को नहीं जानता!” पतरस प्रबलता से दावा करता है। दरअसल, इस मामले को धिक्कारने और शपथ खाने से वह उनको क़ायल करने की कोशिश करता है कि वे भूल कर रहे हैं, वस्तुतः, अगर वह सच नहीं बोल रहा तो अपने ऊपर अनिष्ट ला रहा है।

      जैसे ही पतरस यह तीसरा इनक़ार करता है, एक मुर्गा बाँग देता है। और उसी क्षण, यीशु, जो प्रत्यक्षतः आँगन के ऊपर छज्जे पर निकल आए हैं, घूमकर उसे देखते हैं। फ़ौरन, पतरस यीशु द्वारा कुछ घंटों पहले ऊपरी कमरे में कहे शब्दों को याद करता है: “मुर्ग के दो बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इनक़ार करेगा।” (NW) अपने पाप के भार में दब जाने से, पतरस बाहर जाकर फूट-फूट कर रोता है।

      यह कैसे हो सकता है? अपनी आध्यात्मिक बल पर इतना निश्‍चित होने के बावजूद, पतरस कुछ ही समय के अंदर लगातार तीन बार अपने गुरु को कैसे इनकार कर सकता है? बेशक हालात पतरस को अनजाने में पकड़ लेती है। सत्य को एक ग़लत अर्थ दिया जा रहा है, और यीशु को एक नीच मुजरिम के रूप में चित्रित किया जा रहा हैं। जो सही है उसे ग़लत, बेक़सूर को मुल्जिम दिखाया जा रहा है। इसलिए हालात के दबावों के कारण, पतरस संतुलन खो बैठा। एकाएक उसकी वफादारी की सही समझ अस्त-व्यस्त हो जाती है; वह लोगों के डर के कारण अशक्‍त हो जाता है। ऐसा हमारे साथ कभी न हो! मत्ती २६:५७, ५८, ६९-७५; मरकुस १४:३०, ५३, ५४, ६६-७२; लूका २२:५४-६२; यूहन्‍ना १८:१५-१८, २५-२७.

      ▪ पतरस और यूहन्‍ना महायाजक के आँगन में कैसे प्रवेश प्राप्त करते हैं?

      ▪ जब पतरस और यूहन्‍ना आँगन में हैं, घर में क्या चल रहा है?

      ▪ एक मुर्गा कितनी बार बाँग देता है, और कितनी बार पतरस मसीह को जानने से इनक़ार करता है?

      ▪ पतरस धिक्कारता है और शपथ खाता है, इसका क्या अर्थ है?

      ▪ यीशु को जानने से इनक़ार करने में पतरस को क्या प्रेरित करता है?

हिंदी साहित्य (1972-2025)
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