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  • महासभा के सामने, फिर पीलातुस के पास
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १२१

      महासभा के सामने, फिर पीलातुस के पास

      रात बीतने वाली है। पतरस यीशु को तीन बार इनक़ार कर चुका है, और महासभा के सदस्यों ने अपना बनावटी परीक्षण कर लिया है और बिखर चुके हैं। तथापि, जैसे ही शुक्रवार का भोर होता है, वे फिर इकट्ठे होते हैं, इस बार अपने महासभा के सभा-भवन में। शायद रात का परीक्षण को क़ानूनियत का रूप देना उनका मक़सद है। जब यीशु को उनके सामने लाया जाता है, वे वैसे ही कहते हैं जैसे उन्होंने रात को कहा था: “अगर तू मसीह है, हमें बता दे।”

      “यदि मैं तुम से कहूँ, तो तुम मेरा यक़ीन नहीं करोगे,” यीशु जवाब देते हैं। “और यदि पूछूँ, तो जवाब न दोगे।” (NW) बहरहाल, यीशु साहसपूर्वक यह कहते हुए अपना परिचय देते हैं: “अब से मनुष्य का पुत्र सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर की दाहिनी ओर बैठा रहेगा।”

      “तो, क्या तू परमेश्‍वर का पुत्र है?” सब जानना चाहते हैं।

      “तुम आप ही कहते हो, कि मैं हूँ।” यीशु जवाब देते हैं।

      क़त्ल का इरादा करनेवाले आदमियों के लिए यह जवाब काफी है। वे इसे ईश-निन्दा मानते हैं। “अब हमें गवाही का क्या प्रयोजन?” वे पूछते हैं। “क्योंकि हम ने आप ही उसके मुँह से सुन लिया है।” इसलिए वे यीशु को बाँधकर ले जाते हैं और उसे रोमी हाकिम पुन्तियुस पीलातुस को सौंप देते हैं।

      यीशु का पकड़वानेवाला, यहूदा, घटनाओं को देख रहा है। जब वह देखता है कि यीशु को दोषी ठहराया गया है, वह पश्‍चात्ताप महसूस करता है। इसलिए वह ३० चाँदी के सिक्के वापस करने महायाजक और पुरनियों के पास जाकर समझाता है: “मैं ने निर्दोषी को घात के लिए पकड़वाकर पाप किया है।”

      “हमें क्या? तू ही जान!” वे निर्दयता से जवाब देते हैं। इसलिए यहूदा चाँदी के सिक्के मंदिर में फेंककर चला जाता है और अपने आपको फाँसी लगाने का प्रयास करता है। लेकिन, जिस टहनी से यहूदा रस्सी बाँधता है वह स्पष्टतया टूट जाती है, और उसका शरीर नीचे चट्टानों पर गिरता है, जहाँ वह फट पड़ता है।

      महायाजक निश्‍चित नहीं है कि चाँदी के सिक्कों से क्या किया जाए। “इन्हें भण्डार में रखना उचित नहीं,” वे निष्कर्ष निकालते हैं “क्योंकि यह लोहू का दाम है।” इसलिए आपस में सम्मति के बाद, वे परदेसियों के गाड़ने के लिए कुम्हार का खेत मोल ले लेते हैं। इस कारण वह खेत “लोहू का खेत” कहलाया।

      जब यीशु को हाकिम के महल ले जाया जाता है, अभी तक भोर का समय है। परन्तु उसके साथ आए यहूदी प्रवेश करने से इनकार करते हैं क्योंकि वे विश्‍वास करते हैं कि अन्य जातियों के साथ ऐसी घनिष्टता उन्हें अपवित्र कर देगी। सो उन्हें लिहाज़ दिखाने, पीलातुस बाहर आ जाता है। “तुम इस मनुष्य पर किस बात की नालिश करते हो?” वह पूछता है।

      “अगर वह कुकर्मी न होता तो हम उसे तेरे हाथ न सौंपते,” वे जवाब देते हैं।

      उलझन से बचने की इच्छा करते हुए, पीलातुस जवाब देता है: “तुम ही इसे ले जाकर अपनी व्यवस्था के अनुसार उसका न्याय करो।”

      अपने ख़ूनी इरादों को ज़ाहिर करते हुए, यहूदी दावा करते हैं: “हमें अधिकार नहीं की किसी का प्राण लें।” वाक़ई, अगर वे फसह के पर्व के दौरान यीशु को मार देते हैं, तो संभवतः इससे लोगों में हंगामा पैदा हो जाएगा, चूँकि बहुत से लोग यीशु का आदर करते हैं। लेकिन अगर वे राजनीतिक इलज़ामों पर रोमीयों के द्वारा उसे मार डाल सकते हैं, तो यह लोगों के सामने उन्हें निरपराध ठहराएगा।

      इसलिए यह धार्मिक अगुए अपने पहले की गयी परीक्षण का ज़िक्र न करते हुए, जिसके दौरान उन्होंने यीशु पर ईश-निन्दा का इलज़ाम लगाया था, अब अनेक इलज़ाम गढ़ते हैं। वे तीन-भाग इलज़ाम लगाते हैं: “हम ने इसे [१] लोगों को बहकाते और [२] कैसर को कर देने से मना करते और [३] अपने आप को मसीह राजा कहते हुए सुना है।”

      यह इलज़ाम कि यीशु राजा होने का दावा करते हैं पीलातुस को चिन्तित करता है। इसलिए, वह दुबारा महल में आकर यीशु को अपने पास बुलाता है, और पुछता है: “क्या तू यहुदियों का राजा है?” दूसरे शब्दों में, क्या तू ने अपने को कैसर के विरूद्ध में राजा कहकर क़ानून तोड़ा है?

      यीशु जानना चाहते हैं कि पीलातुस पहले से उनके बारे में कितना जान चुका है, इसलिए वे पुछते हैं: “क्या तू यह बात अपनी ओर से कहता है या औरों ने मेरे विषय में तुझ से कही?”

      पीलातुस उसके बारे में अज्ञान है और तथ्यों को जानने की इच्छा दिखाता है। “क्या में यहूदी हूँ?” वह कहता है। “तेरी ही जाति और महायाजकों ने तुझे मेरे हाथ में सौंपा। तू ने क्या किया है?”

      यीशु किसी भी तरह से राजत्व के मसले से बच जाने की कोशिश नहीं करते। बेशक जो जवाब यीशु अब देते हैं वह पीलातुस को आश्‍चर्यचकित करता है। लूका २२:६६-२३:३; मत्ती २७:१-११; मरकुस १५:१; यूहन्‍ना १८:२८-३५; प्रेरितों के काम १:१६-२०.

      ▪ महासभा सुबह दुबारा किस उद्देश्‍य के लिए मिलती है?

      ▪ यहूदा किस तरह मरता है, और ३० चाँदी के सिक्कों से क्या किया जाता है?

      ▪ यीशु को ख़ुद मार डालने के बजाय, यहूदी क्यों चाहते हैं कि उसे रोमी मारे?

      ▪ यीशु के ख़िलाफ़ यहूदी क्या इलज़ाम लगाते हैं?

  • पीलातुस से हेरोदेस के पास और वापस
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १२२

      पीलातुस से हेरोदेस के पास और वापस

      हालाँकि यीशु पीलातुस से यह छिपाने कि कोई कोशिश नहीं करता कि वह राजा है, वह व्याख्या करता है कि उसका राज्य रोम के लिए कोई ख़तरा नहीं है। “मेरा राज्य इस जगत का नहीं,” यीशु जवाब देते हैं, “अगर मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते कि मैं यहुदियों के हाथ सौंपा न जाता। परन्तु, अब मेरा राज्य यहाँ का नहीं।” यीशु तीन बार मान लेते हैं कि उसका एक राज्य है, हालाँकि वह पार्थिव स्रोत से नहीं है।

      फिर भी, पीलातुस उसे और ज़्यादा आग्रह करता है: “तो क्या तू राजा है?” यानी, क्या तू राजा है जबकि तेरा राज्य इस जगत का नहीं?

      यीशु पीलातुस को जवाब देते हुए यह बताते हैं कि उसने सही निष्कर्ष निकाला है: “तू ख़ुद कहता है कि मैं राजा हूँ। मैं ने इसलिए जन्म लिया और इसलिए जगत में आया कि सत्य पर गवाही दूँ। जो कोई सत्य का पक्ष पर है, वह मेरी आवाज़ सुनता है।”—NW.

      जी हाँ, पृथ्वी पर यीशु के अस्तित्व का मक़सद ही “सत्य” की गवाही देना है, ख़ासकर अपने राज्य के विषय में सत्य। यीशु इस सत्य के लिए वफादार बने रहने को तैयार हैं, चाहे इसकी क़ीमत उनकी जान ही क्यों न हो। यद्यपि पीलातुस पूछता है: “सत्य क्या है?” वह अधिक स्पष्टीकरण के लिए नहीं रुकता। न्याय देने के लिए उसने काफी सुन लिया है।

      पीलातुस महल के बाहर इंतज़ार कर रही भीड़ के पास लौटता है। स्पष्टतया यीशु उसके बग़ल में है, वह महायाजक और उनके साथ रहे लोगों को कहता है: “मैं इस मनुष्य में कोई दोष नहीं पाता।”

      इस फ़ैसले से क्रोधित होकर भीड़ ज़ोर देने लगती है: “यह गलील से लेकर यहाँ तक सारे यहूदिया में उपदेश दे देकर लोगों को उकसाता है।”

      यहुदियों का तर्कहीन हठधर्म तो पीलातुस को विस्मित करता है। इसलिए, जब कि महायाजक और पुरनिए चिल्लाना जारी रखते हैं, पीलातुस यीशु की तरफ मुड़कर पूछता है: “क्या तू नहीं सुनता कि ये तेरे विरोध में कितनी गवाहियाँ दे रहे हैं?” तब भी, यीशु जवाब देने का प्रयास नहीं करते। निराधार इलज़ामों के बावजूद उसकी शान्ति पीलातुस को आश्‍चर्यचकित करती है।

      यह जानकर की यीशु गलीली है, पीलातुस को अपनी ज़िम्मेदारी से छुटने का उपाय नज़र आता है। गलील का शासक, हेरोदेस अन्तिपास (हेरोदेस महान का पुत्र) फसह के लिए यरूशलेम आया हुआ है, इसलिए पीलातुस यीशु को उसके पास भेज देता है। इससे पहले, हेरोदेस अन्तिपास ने यूहन्‍ना बप्तिस्मा देनेवाले का सिर कटवा दिया था, और फिर यीशु द्वारा किए गए चमत्कारिक कर्मों को सुनकर डर गया, चूँकि वह भयभीत था कि यीशु दरअसल यूहन्‍ना है जिसे मृतों में से जिलाया गया है।

      अब, हेरोदोस यीशु को देखने की प्रत्याशा से अतिप्रसन्‍न है। यह इसलिए नहीं कि वह यीशु की ख़ैरियत के बारे में चिंतित है या यह जानने की कोशिश कर रहा है कि उसके ख़िलाफ इलज़ाम सही है या नहीं। बल्कि, वह केवल जिज्ञासु है और यह आशा करता है कि यीशु कोई चमत्कार दिखाएँगे।

      बहरहाल, यीशु हेरोदेस की जिज्ञासा को संतुष्ट करना अस्वीकार करते हैं। दरअसल, हेरोदेस के सवालों को वे एक लफ़्ज़ भी नहीं कहते। निराश होकर, हेरोदेस और उसके पहरेदार सैनिक यीशु का मज़ाक उड़ाने लगते हैं। वे उसे चटकीले वस्त्र पहनाते हैं और उनका मज़ाक उड़ाते हैं। फिर वे उसे पीलातुस के पास भेज देते हैं। परिणामस्वरूप, हेरोदेस और पीलातुस, जो पहले दुश्‍मन थे, अच्छे दोस्त बन जाते हैं।

      जब यीशु वापस आते हैं, तो पीलातुस महायाजक, यहूदी शासक, और लोगों को एकत्र बुलाकर कहता है: “तूम इस मनुष्य को लोगों का बहकानेवाला ठहराकर मेरे पास लाए हो, और, देखो, मैं ने तुम्हारे सामने उसकी जाँच की पर जिन बातों को तुम उस पर दोष लगाते हो, उन बातों के विषय में मैं ने उस में कुछ दोष नहीं पाया है। न हेरोदेस ने, क्योंकि उसने उसे हमारे पास लौटा दिया है, और, देखो, उससे ऐसा कुछ नहीं हुआ कि वह मृत्यु के दण्ड के योग्य ठहराया जाए। इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।”

      इस प्रकार पीलातुस ने यीशु को दो बार बेक़सूर ठहराया है। वह उसे छोड़ने के लिए आतुर है, क्योंकि वह समझ जाता है कि केवल जलन की वजह से याजकों ने उसे सौंपा है। जैसे पीलातुस यीशु को छुड़ाने की कोशिश कर रहा है, उसे ऐसा करने की और अधिक प्रेरणा मिलती है। जब वह न्याय की गद्दी पर बैठा है, उसकी पत्नी आग्रह करते हुए एक पैग़ाम भेजती है: “तू उस धर्मी के मामले में हाथ न डालना, क्योंकि मैं ने आज स्वप्न में [स्पष्टतया दिव्य उद्‌गम का] उसके कारण बहुत दुःख उठाया है।”

      फिर भी, पिलातुस इस बेक़सूर आदमी को कैसे छुड़ा सकता है, जो वह करना चाहता है? यूहन्‍ना १८:३६-३८; लूका २३:४-१६; मत्ती २७:१२-१४, १८, १९; १४:१, २; मरकुस १५:२-५.

      ▪ अपने राजत्व से संबंधित सवाल का यीशु किस तरह जवाब देते हैं?

      ▪ वह “सत्य” क्या है जिसके बारे में गवाही देते हुए यीशु ने अपनी पार्थिव जीवन बितायी?

      ▪ पीलातुस का न्याय क्या है, लोग कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं, और पीलातुस यीशु के साथ क्या करता है?

      ▪ हेरोदेस अन्तिपास कौन है, क्यों वह यीशु को देखकर अतिप्रसन्‍न है, और वह उस के साथ क्या करता है?

      ▪ क्यों पीलातुस यीशु को छोड़ने के लिए आतुर है?

  • “देखो! वह मनुष्य!”
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १२३

      “देखो! वह मनुष्य!”

      यीशु के आचरण से प्रभावित होकर और उसकी निर्दोषता को पहचानकर, पीलातुस उनको छुड़ाने का एक और तरीक़ा अपनाता है। “तुम्हारी यह रीति है,” वह भीड़ से कहता है, “कि मैं फसह में तुम्हारे एक व्यक्‍ति को छोड़ दूँ।”

      बरअब्बा, एक बदनाम ख़ूनी, भी कैद में है, इसलिए पीलातुस पूछता है: “तुम किसे चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिए छोड़ दूँ, बरअब्बा या यीशु को, जो मसीह कहलाता है?”

      क़ायल किए गए लोग, जिन्हें महायाजकों ने भड़काया है, बरअब्बा को छोड़ देने की माँग करते हैं पर यीशु को मार डाला जाए। हार न मानते हुए, पीलातुस दुबारा पुछता है: “इन दोनों में से किस को चाहते हो कि तुम्हारे लिए छोड़ दूँ?”

      वे चिल्लाते हैं, “बरअब्बा।”

      “यीशु, जो मसीह कहलाता है, से मैं क्या करूँ?” पीलातुस निराश होकर पूछता है।

      एक बहरा कर देनेवाली चिल्लाहट से, वे जवाब देते हैं: “वह स्तंभ पर चढ़ाया जाए!” “उसे स्तंभ पर चढ़ा दे!”—NW.

      यह जानते हुए कि वे एक बेक़सूर मनुष्य की मौत की माँग कर रहे हैं, पीलातुस विनती करता है: “क्यों उसने क्या बुराई की है? मैं ने उस में मृत्यु के दण्ड के योग्य कोई बात नहीं पाई; इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।”

      उसकी कोशिशों के बावजूद, अपनी धार्मिक अगुओं द्वारा उकसायी गयी क्रोधित भीड़ चिल्लाती रहती है: “वह स्तंभ पर चढ़ाया जाए!” याजकों द्वारा उकसायी गयी पागल भीड़ ख़ून चाहती है। और यह सोचने की बात है कि सिर्फ़ पाँच दिन पहले, इन में शायद वे लोग थे जिन्होंने यरूशलेम में यीशु को राजा के तरह स्वागत किया था! इस समय के दौरान, यीशु के शिष्य, यदि वे उपस्थित हैं, शांत और छिपे हुए रहते हैं।

      पीलातुस, यह देखकर कि उसके निवेदनों से कुछ भी लाभ नहीं हो रहा, पर, इसके बजाय, हुल्लड़ मच रहा है, पानी लेता है और भीड़ के सामने अपने हाथ धोते हुए कहता है: “मैं इस धर्मी के लोहू से निर्दोष हूँ, तुम ही जानो।” इस पर, लोग जवाब देते हैं: “इस का लोहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो।”

      सो, उनकी माँगों के अनुसार—और जो सही है उसे करने के बजाय भीड़ को ज़्यादा संतुष्ट करने की इच्छा रखकर—पीलातुस उन को बरअब्बा छुड़ा देता है। वह यीशु को ले जाकर उसके वस्त्र निकलवाता है और फिर कोड़े लगवाता है। यह कोई सामान्य कोड़ों की मार नहीं। अमेरिकन चिकित्सा-समुदाय का जर्नल (The Journal of the American Medical Association) कोड़े मारने की रोमी प्रथा का वर्णन करती है:

      “अकसर उपयोग किया गया उपकरण एक छोटा चाबुक था (कोड़ा या कशा) जिस में कई एक या गोटा लगाया हुआ अलग-अलग लम्बाइयों में चमड़े के पट्टे होते हैं, जिन में छोटी-छोटी लोहे के गोले या भेड़ की हड्डी के नुकीले टुकड़े कुछ अंतर पर बाँधे जाते हैं। . . . जब रोमी सैनिक पूरे ज़ोर से पीठ पर लगातार मारते, तो लोहे के गोलों से गहरे चोट हो जाते थे, और चमड़े के पट्टे और भेड़ की हड्डियों से चमड़ी और अवत्वचीय ऊतक के अन्दर तक कट जाते थे। फिर, जैसे कोड़ों का मार जारी रहता है, चिरी हुई ज़ख़्म निचली कंकालीय माँसपेशियों तक कटती और माँस का स्रावी थरथराते हुए पतला टुकड़े उत्पन्‍न होते हैं।”

      इस दुःखदायी मार के बाद, यीशु को हाकिम के महल में ले जाया जाता है, और सैनिकों का पूरा दल इकट्ठा किया जाता है। वहाँ सैनिक काँटों का मुकुट गूँथकर और इसे उनके सिर पर घुसेड़ने से उनके साथ और ज़्यादा दुर्व्यवहार करते हैं। वे उनके दाहिनी हाथ में सरकण्डा देते हैं, और उसी तरह का बैंगनी रंग का वस्त्र पहनाते हैं जिसे कोई राजा पहनता है। फिर वे उसकी मज़ाक उड़ाते हुए कहते हैं: “हे यहूदियों के राजा, प्रणाम!” इसके अलावा, वे उनके मुँह पर थप्पड़ मारते और थूकते हैं। उनके हाथ से मज़बूत सरकण्डा लेकर, उनके सिर पर मारते हैं, जिससे वे उनके अपमानजनक “मुकुट” के नुकीला काँटो को उनकी सिर की खाल में और अन्दर घुसेड़ते हैं।

      इस दुर्व्यवहार के बावजूद यीशु की उल्लेखनीय गरिमा और ताकत से पीलातुस इतना प्रभावित होता है कि वह उन्हें छुड़ाने का एक और प्रयास के लिए प्रेरित होता है। “देखो, मैं उसे तुम्हारे पास फिर बाहर लाता हूँ, ताकि तुम जानो कि मैं कुछ भी दोष नहीं पाता,” वह भीड़ को बताता है। शायद वह सोचता है कि यीशु की दुःखदायी हाल देखकर उनके दिल नरम हो जाएँगे। जैसे यीशु उस निर्दय भीड़ के सामने, काँटों का मुकुट और बैंगनी रंग का बाहरी वस्त्र पहने हुए दर्द से भरा और खून से बहता चेहरा लेकर खड़े रहते हैं, पीलातुस घोषणा करता है: “देखो! वह मनुष्य!”—NW.

      यद्यपि यह मनुष्य घायल और पीटा मारा गया है, सारे इतिहास का सब से उत्कृष्ट व्यक्‍ति यहाँ खड़ा है, सचमुच वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा! हाँ, यीशु एक शांत गरिमा और शान्ति दिखाते हैं जो ऐसी महानता सूचित करती है जिसे पीलातुस भी मंज़ूर करता है, चूँकि उसके शब्द स्पष्टतया दोनों आदर और दया का मिश्रण है। यूहन्‍ना १८:३९-१९:५; मत्ती २७:१५-१५, २०-३०; मरकुस १५:६-१९; लूका २३:१८-२५.

      ▪ पीलातुस यीशु को छुड़ाने का प्रयास किस तरह करता है?

      ▪ अपने आप को जिम्मेदारी से मुक्‍त करने के लिए पीलातुस कैसे प्रयास करता है?

      ▪ कोड़े मारने में क्या शामिल है?

      ▪ कोड़े मारे जाने के बाद यीशु का किस तरह ठट्टा उड़ाया जाता है?

      ▪ यीशु को छुड़ाने के लिए पीलातुस कौनसा अतिरिक्‍त प्रयास करता है?

  • सौंपा जाकर ले जाया गया
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १२४

      सौंपा जाकर ले जाया गया

      जब पीलातुस, उत्पीड़ित यीशु के शांत गरिमा से प्रभावित होकर, फिर से उसे मुक्‍त करने की कोशिश करता है, तो महायाजक और भी क्रोधित होते हैं। उन्होंने निर्धारित किया है कि उनके दृष्ट लक्ष्य में कोई भी दख़ल न दें। अतः वे अपने चिल्लाहट को दोबारा शुरू करते हैं: “उसे स्तंभ पर चढ़ा! उसे स्तंभ पर चढ़ा!”—NW.

      “तुम ही उसे लेकर स्तंभ पर चढ़ाओ,” पीलातुस जवाब देता है। (अपने पहले किए दावों के प्रतिकूल, यहूदियों को काफी गंभीर धार्मिक अपराधों के लिए अपराधियों को प्राणदण्ड देने का अधिकार हो सकता है।) फिर, कम से कम पाँचवे बार, पीलातुस यह कहकर उसे बेक़सूर ठहराता है, “मैं उस में कोई दोष नहीं पाता।”

      यहूदी, यह देखते हुए कि उनके राजनीतिक आरोप परिणाम लाने में असफल हुए हैं, कुछ घंटों पहले महासभा के सम्मुख उपयोग किए गए ईश-निन्दा के आरोप की मदद लेते हैं। “हमारी भी व्यवस्था है,” वे कहते है, “और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है, क्योंकि उसने अपने आप को परमेश्‍वर का पुत्र बनाया।”

      यह आरोप पीलातुस के लिए नया है, और उसे और भी भयभीत कर देता है। अब तक उसे एहसास हो चुका है कि यीशु कोई आम आदमी नहीं, जैसा कि उसकी पत्नी का ख़्वाब और यीशु के व्यक्‍तित्व का अनोखा बल सूचित करता है। पर “परमेश्‍वर का पुत्र”? पीलातुस जानता है कि यीशु गलील से है। फिर भी, यह मुमकिन है कि वह पहले भी ज़िंदा रहा हो? उसे एक बार फिर अपने महल में वापस ले जाकर पीलातुस पूछता है: “तू कहाँ का है?”

      यीशु चुप रहते हैं। इससे पहले उसने पीलातुस को बताया था कि वह एक राजा है लेकिन उसका राज्य इस जगत का कोई भाग नहीं है। अब कोई अतिरिक्‍त स्पष्टीकरण किसी लाभदायक उद्देश्‍य को पूरा नहीं कर सकेगा। बहरहाल, जवाब देने के इनकार से पीलातुस का अहंकार को ठेस पहुँचती है, और वह यीशु पर यह कहकर भड़कता है: “मुझ से क्यों नहीं बोलता? क्या तू नहीं जानता कि तुझे छोड़ देने का अधिकार मुझे है और तुझे स्तंभ पर चढ़ाने का भी मुझे अधिकार है?”

      यीशु आदरपूर्ण तरह का जवाब देते है: “यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता, तो तेरा मुझ पर कुछ अधिकार न होता।” वे परमेश्‍वर द्वारा मानव शासकों को पार्थिव मामलों पर प्रशासन करने का अधिकारदान का ज़िक्र कर रहे हैं। “इसलिए जिसने मुझे तेरे हाथ पकड़वाया है, उसका पाप अधिक है,” यीशु आगे कहते हैं। सचमुच, महायाजक काइफ़ा और उसके सहकर्मी और यहूदा इस्करियोती यीशु का अन्यायपूर्ण व्यवहार के लिए पीलातुस से और भारी ज़िम्मेदारी ढोते हैं।

      यीशु से और अधिक प्रभावित होकर और यह डर महसूस करते हुए कि यीशु का दिव्य उद्‌गम हो सकता है, पीलातुस उसे मुक्‍त करने के प्रयत्नों को दोबारा शुरू करता है। परन्तु, यहूदी पीलातुस को झिड़कते हैं। वे अपने राजनीतिक आरोप दोहराते हुए चालाकी से धमकी देते है: “यदि तू इस मनुष्य को छोड़ देगा, तू कैसर का मित्र नहीं। जो कोई अपने आप को राजा बनाता है वह कैसर के विरूद्ध बोलता है।”—NW.

      इन घोर उलझनों के बावजूद, पीलातुस यीशु को फिर एक बार बाहर लाता है। “देखो! तुम्हारा राजा!” वह फिर से अनुरोध करता है।

      “ले जा! ले जा! उसे स्तंभ पर चढ़ा!”

      पीलातुस निराशा से पूछता है, “क्या मैं तुम्हारे राजा को स्तंभ पर चढ़ाऊँ?”—NW.

      रोमियों की हुकूमत के अधीन यहूदी खिजते आए हैं। वाक़ई, वे रोम के प्रभुत्व को तुच्छ समझते हैं! फिर भी, ढोंगी तरीक़े से, महायाजक कहते हैं: “कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।”

      अपने राजनीतिक पद और प्रतिष्ठा के लिए डर कर पीलातुस अंत में यहूदियों की कठोर माँगों के सामने झुक जाता है। वह यीशु को सौंप देता है। सैनिक यीशु पर से बैंगनी वस्त्र उतारकर उसे उनके ही बाहरी वस्त्र पहनाते हैं। जैसे यीशु को स्तंभ पर लटकाने ले जाया जाता है, उन पर उनका अपना ही यातना स्तंभ लादा जाता है।

      अभी शुक्रवार, निसान १४, की मध्यप्रातः हो चुकी है; शायद दोपहर हो रहा है। यीशु गुरुवार तड़के से जागे हुए हैं, और उन्होंने एक के बाद एक तड़पाने वाले अनुभवों को झेला है। स्वाभाविक है, स्तंभ के वजन के नीचे उनका ताक़त ज़्यादा देर तक क़ायम नहीं रहती। सो, एक राही, अफ्रीका में कुरेनी का निवासी शमौन, को उसके लिए उठाने बेगार में पकड़ा जाता है। जैसे वे आगे बढ़ते हैं, बहुत से लोग, जिन में स्त्रियाँ भी शामिल है, शोक से छाती पीटते हुए और यीशु के लिए विलाप करते हुए, पीछे-पीछे चलते हैं।

      उन स्त्रियों की ओर मुड़कर यीशु कहते हैं: “हे यरूशलेम की पुत्रियों, मेरे लिए मत रोओ। परन्तु, अपने और अपने बालकों के लिए रोओ; क्योंकि, देखो! वे दिन आते हैं जिन में लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे जो बांझ है, और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्होंने दूध न पिलाया।’ . . . क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साथ ऐसा करते हैं, तो सूखे के साथ क्या कुछ न किया जाएगा?”

      यीशु यहूदी राष्ट्र को पेड़ का हवाला दे रहे हैं, जिस में यीशु की उपस्थिति और उन में विश्‍वास रखनेवाले लोगों का एक अवशेष के अस्तित्व के कारण अब जीवन की कुछ नमी बची है। परन्तु जब इनको राष्ट्र से निकाल लिया जाएगा, तो केवल एक आध्यात्मिक रूप से मृत पेड़ ही बचेगा, हाँ, एक कुम्हलायी हुई राष्ट्रीय संगठन। आह, रोने का क्या ही कारण होगा जब रोमी फ़ौज, परमेश्‍वर के जल्लाद की हैसियत से, यहूदी राष्ट्र का सर्वनाश करेगी! यूहन्‍ना १९:६-१७; १८:३१; लूका २३:२४-३१; मत्ती २७:३१, ३२; मरकुस १५:२०, २१.

      ▪ जब उनके राजनीतिक आरोप परिणाम उत्पन्‍न करने में विफल होते हैं, तो धार्मिक नेता यीशु के ख़िलाफ़ क्या आरोप लगाते हैं?

      ▪ क्यों पीलातुस और भयभीत हो जाता है?

      ▪ यीशु के साथ जो होता है उसके लिए कौन ज़्यादा पापी है?

      ▪ आख़िरकार, यीशु को मार डालने के लिए याजक पीलातुस को किस तरह राज़ी करते हैं?

      ▪ अपने लिए रोती हुई स्त्रियों को यीशु क्या कहते हैं, और पेड़ का ज़िक्र “हरा” और फिर “सूखा” करने से उनका क्या अर्थ है?

  • स्तंभ पर व्यथा
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १२५

      स्तंभ पर व्यथा

      यीशु के साथ-साथ दो डाकुओं को भी मार डालने ले जाया जा रहा है। शहर से थोड़ी दूरी पर, गुलगुता, या खोपड़ी का स्थान, नामक जगह पर जुलूस रुक जाता है।

      क़ैदियों के कपड़े उतारे जाते हैं। फिर गंधरस मिलाया हुआ दाखरस का प्रबंध किया जाता है। यह प्रत्यक्षतः यरूशलेम की स्त्रियों द्वारा तैयार किया गया है, और रोमी अफ़सर स्तंभ पर चढ़ाए हुओं को यह दर्द-मंदक दवा देने की इजाज़त देते हैं। तथापि, जब यीशु उसे चखते हैं, तो पीने से इनकार करते हैं। क्यों? स्पष्टतया वे अपने विश्‍वास की इस उच्चतम परीक्षा के दौरान अपने सभी मनःशाक्‍तियों पर पूरा अधिकार रखना चाहते हैं।

      स्तंभ पर यीशु अब पसारे हुए हैं, और उनके हाथ उनके सर के ऊपर रखे गए हैं। उनके हाथों में और उनके पैरों में सैनिक लंबे कीलों को तड़ातड़ मारते हैं। जैसे कीला माँस और स्नायु को चीरती है वे दर्द के कारण ऐंठते हैं। जब स्तंभ को सीधा खड़ा किया जाता है, तो दर्द बहुत ज़्यादा है, क्योंकि शरीर का वज़न कीलों के घावों को चीरता है। फिर भी, धमकी देने के बजाय, यीशु रोमी सैनिकों के लिए प्रार्थना करते हैं: “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि वे जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।”

      पीलातुस ने स्तंभ पर एक चिह्न लगा दी है जिस पर लिखा है: “यीशु नासरी यहूदियों का राजा।” प्रत्यक्षतः, वह ऐसा केवल इसलिए ही नहीं लिखता कि वह यीशु की इज़्ज़त करता है पर इसलिए भी कि वह यहूदी याजकों से यीशु की मृत्यु की सज़ा उससे ऐंठ लेने के वजह से घृणा करता है। ताकि सभी इस चिह्न को पढ़ सकें, पीलातुस उसे तीन भाषाओं में लिखवाता है—इब्रानी में, सरकारी लैटिन में, और सामान्य यूनानी में।

      महायाजक, काइफ़ा और हन्‍ना सहित, निराश हैं। यह स्वीकारात्मक घोषणा उनकी विजय की घड़ी को बिगाड़ देती है। इसलिए वे एतराज़ करते हैं: “‘यहूदियों का राजा’ मत लिख, परन्तु यह कि उसने कहा, ‘मैं यहूदियों का राजा हूँ।’” खिजते हुए कि वह याजकों का कठपुतली बना, पीलातुस दृढ़ अवहेलना के साथ जवाब देता है: “मैं ने जो लिख दिया, वह लिख दिया।”

      याजक, एक बड़ी भीड़ के साथ, अब प्राणदंड के स्थान पर एकत्रित होते हैं, और याजक उस चिह्न की घोषणा का खण्डन करते हैं। वे महासभा के परीक्षा में दी झूठी गवाही को दोहराते हैं। इसलिए आश्‍चर्य की बात नहीं कि राह जाते राही भी अपमानजनक रूप से बात करते हैं, और अपने सर हिलाकर हँसी उडाते हुए कहते हैं: “हे मंदिर को ढानेवाले और तीन दिन में बनानेवाले, अपने आप को तो बचा! यदि तू परमेश्‍वर का पुत्र है, तो स्तंभ पर से उतर आ!”—NW.

      “इसने औरों को बचाया; अपने को नहीं बचा सकता!” महायाजक और उनके धार्मिक मित्र सुर में सुर मिलाते हैं। “यह तो इस्त्राएल का राजा है; अब यातना स्तंभ पर से उतर आए, तो हम उस पर विश्‍वास करें। उसने परमेश्‍वर पर भरोसा रखा है; यदि वह इसको चाहता है तो अब इसे छुड़ा ले, क्योंकि इसने कहा था, ‘मैं परमेश्‍वर का पुत्र हूँ।’”—NW.

      इस मनोभाव में फँस जाने से सैनिक भी यीशु का मज़ाक उड़ाते हैं। प्रत्यक्षतः खट्टा दाखरस उसके सूखे होठों की पहुँच से थोड़ा दूर रखते हुए, वे उसका मज़ाक उड़ाते हैं। “यदि तू यहूदियों का राजा है,” वे ताना मारते हैं, “तो अपने आप को बचा।” डाकू भी—जो यीशु के दाहिनी ओर, और दूसरा उनके बाएँ ओर स्तंभ पर लटके हुए हैं—उनका उपहास करते हैं। ज़रा सोचिए! वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा, हाँ, वह जिन्होंने यहोवा परमेश्‍वर के साथ सभी चीज़ों की सृष्टि में भाग लिया, दृढ़ता से इन सभी अपमानों को सहता है!

      सैनिक यीशु का बाहरी वस्त्र लेते हैं और उसे चार हिस्सों में बाँट देते हैं। वे चिट्ठी डालते हैं यह देखने कि ये किसके होंगे। बढ़िया प्रकार का होने के कारण भीतरी वस्त्र सिलाई का जोड़ के बिना है। इसलिए सैनिक आपस में कहते है: “हम इसको न फाडें, परन्तु इस पर चिट्ठी डालें कि यह किसका होगा।” इस तरह, अनजाने में, वे उस शास्त्रपद की पूर्ति करते हैं जो कहता है: “उन्होंने मेरे बाहरी कपड़े आपस में बाँट लिए, और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली।”—NW.

      कुछ समय बाद, एक डाकू क़दर करता है कि यीशु सचमुच एक राजा होंगे। इसलिए, अपने साथी को डाँटते हुए, वह कहता है: “क्या तू परमेश्‍वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है। और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इसने कोई अनुचित काम नहीं किया।” फिर वह इस याचना से यीशु को संबोधित करता है: “जब तू अपने राज्य में आए, तो मुझे याद करना।”—NW.

      “आज मैं तुझसे सच कहता हूँ,” यीशु जवाब देते हैं, “तू मेरे साथ परादीस में होगा।” (NW) यह वादा तब पूरी होगी जब यीशु स्वर्ग में राजा की हैसियत से राज्य करेंगे और इस पश्‍चात्तापी कुकर्मी को उस परादीस पृथ्वी में पुनरुत्थित करेंगे जिसका परिष्कार करने का ख़ास अनुग्रह आरमगिदोन से बच निकलनेवाले और उनके साथियों को प्राप्त होगा। मत्ती २७:३३-४४; मरकुस १५:२२-३२; लूका २३:२७, ३२-४३; यूहन्‍ना १९:१७-२४.

      ▪ यीशु गंधरस मिलाया हुआ दाखरस पीने से इनकार क्यों करते हैं?

      ▪ प्रत्यक्षतः, यीशु के स्तंभ पर एक चिह्न क्यों लगाया गया है, और इससे पीलातुस और महायाजकों के बीच क्या वार्तालाप प्रवर्तित होती है?

      ▪ स्तंभ पर यीशु को क्या अपमान प्राप्त होता है, और इसे स्पष्टतया क्या प्रेरित करता है?

      ▪ यीशु के वस्त्रों के साथ जो कुछ किया गया, उससे भविष्यवाणी कैसे पूरी होती है?

      ▪ एक डाकू क्या परिवर्तन करता है, और यीशु उसके निवेदन को कैसे पूरा करेंगे?

  • “बेशक यह परमेश्‍वर का पुत्र था”
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १२६

      “बेशक यह परमेश्‍वर का पुत्र था”

      यीशु स्तंभ पर ज़्यादा देर तक रहा नहीं कि, मध्याह्न को, एक रहस्यपूर्ण तीन-घंटे-लंबा अंधकार छा जाता है। यह कोई सूर्यग्रहण के वजह से नहीं हुआ, चूँकि वह सिर्फ़ अमावास्य के समय होता है और फ़सह के समय पूर्णिमा होती है। इसके अतिरिक्‍त, सूर्यग्रहण केवल चंद मिनटों तक रहता है। सो यह अंधकार का दिव्य उद्‌गम है! शायद यह यीशु का उपहास करनेवालों को विराम देता है, यहाँ तक कि उनके तानें भी बंद हो जाते है।

      यदि यह भयानक घटना एक कुकर्मी का अपने साथी को डाँटने और यीशु से उसे याद रखने की विनती से पहले होती है, तो यह उसके पश्‍चात्ताप का एक कारण हो सकता है। शायद इसी अंधकार के दौरान चार स्त्रियाँ, यानी, यीशु की माता और उसकी बहन शलोमी, मरियम मगदलीनी, और छोटे याकूब की माता मरियम, यातना स्तंभ के निकट आती हैं। यीशु का प्रिय प्रेरित, यूहन्‍ना, उनके साथ है।

      यीशु की माता का दिल किस तरह ‘वार पार छिदता’ है जब वह अपने बेटे को जिसे उसने दूध पिलाया और पालन-पोषण किया व्यथा में लटकते हुए देखती है! फिर भी यीशु अपनी पीड़ा की नहीं, परन्तु उसकी ख़ैरियत की सोचते हैं। बहुत चेष्टा के साथ, वे यूहन्‍ना की ओर सिर हिलाते हैं, और अपनी माता से कहते हैं: “हे नारी, देख! यह तेरा पुत्र है!” फिर, मरियम की ओर सिर हिलाते हुए, यूहन्‍ना से कहते हैं: “देख! यह तेरी माता है!”

      इस प्रकार यीशु अपनी माता, जो प्रत्यक्षतः अब एक विधवा है, की देखरेख अपने अतिप्रिय प्रेरित को सौंप देते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि अभी तक मरियम के अन्य पुत्रों ने उन पर विश्‍वास व्यक्‍त नहीं किया है। इस प्रकार अपनी माता की केवल भौतिक आवश्‍यकताओं का ही नहीं परन्तु आध्यात्मिक आवश्‍यक्‍ताओं का भी प्रबंध करने में वे एक उत्तम मिसाल प्रस्तुत करते हैं।

      दोपहर के लगभग तीन बजे, यीशु कहते हैं: “मैं प्यासा हूँ।” यीशु महसूस करते हैं कि उनके पिता ने, मानो, उन पर से अपनी सुरक्षा हटा ली है ताकि उनकी सत्यनिष्ठा पूरी हद तक आज़माया जा सके। इसलिए वे एक ऊँचे स्वर में पुकारते हैं: “हे मेरे परमेश्‍वर, हे मेरे परमेश्‍वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया है?” यह सुनने पर, पास खड़े हुए कुछ लोग चिल्लाते हैं: “वह तो एलिय्याह को पुकारता है।” उन में से एक तुरन्त भागता है और, सिरके में डुबोया गया स्पंज को जूफ़े के एक सरकण्डे पर रखकर, उन्हें पिलाता है। लेकिन अन्य जन कहते हैं: “रह जाओ! देखें, एलिय्याह उसे बचाने आता है कि नहीं।”

      जब यीशु सिरका लेता है, तो वह पुकारता है: “पूरा हूआ!” जी हाँ, उन्होंने वह सब काम पूरा किया जिसे करने उसके पिता ने उन्हें पृथ्वी पर भेजा था। अंत में, वह कहता है: “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” इस प्रकार यीशु अपनी जीवन-शक्‍ति परमेश्‍वर को इस भरोसे के साथ सौंपते हैं कि परमेश्‍वर इसे फिर से उन्हें लौटाएँगे। फिर वे अपना सर झुकाते हैं और मर जाते हैं।

      जिस पल यीशु अपनी अंतिम साँस लेते हैं, चट्टानों को चीरता हुआ, एक प्रचण्ड भूकंप होता है। यह भूकंप इतना शक्‍तिशाली है कि यरूशलेम के बाहर स्मारक क़ब्रें खुल जाती हैं और उन में से लाशें बाहर फेंकी जाती है। जो राही लाशों को खुली पड़ी हुई देखते हैं वे शहर में जाकर इसकी सूचना देते हैं।

      इसके अतिरिक्‍त, जिस लमहा यीशु मरते हैं, वह विशाल परदा, जो परमेश्‍वर के मंदिर में पवित्र को परम पवित्र से अलग करता है, ऊपर से नीचे तक फटकर दो हिस्सों में विभाजित होता है। प्रत्यक्षतः यह सुंदर तरीक़े से अलंकृत परदा लगभग १८ मीटर ऊँचा और बहुत भारी है! यह आश्‍चर्यजनक चमत्कार अपने पुत्र के क़ातिलों के प्रति परमेश्‍वर का केवल क्रोध ही ज़ाहिर नहीं करता लेकिन यह भी अर्थ रखता है कि परम पवित्र, स्वंय स्वर्ग, तक का मार्ग यीशु की मृत्यु के द्वारा अब मुमक़िन हुई है।

      खैर, जब लोग भूकंप को महसूस करते हैं और घटित हो रही घटनाओं को देखते हैं, वे बहुत भयभीत हो जाते हैं। मृत्युदंड पर कार्यभारी रोमी सूबेदार परमेश्‍वर की महिमा करता है। “बेशक यह परमेश्‍वर का पुत्र था,” वह घोषणा करता है। शायद वह उपस्थित था जब पीलातुस के सम्मुख यीशु के परीक्षण के दौरान दैवी पुत्रत्व के दावे पर बहस हो रही थी। और अब वह क़ायल है कि यीशु परमेश्‍वर के पुत्र हैं, जी हाँ, वाक़ई वे सर्वश्रेष्ठ मनुष्य हैं जो कभी जीवित रहा।

      अन्य लोग भी इन विस्मयकारी घटनाओं से पीड़ित होते हैं, और वे अपने गहरे शोक और लज्जा को ज़ाहिर करने अपनी छातियाँ पीटकर घर वापस जाते हैं। कुछ दूरी पर इस दृश्‍य को देखती हुई यीशु की कुछ चेलियाँ हैं जो इन महत्त्वपूर्ण घटनाओं से बहुत प्रभावित हुई हैं। प्रेरित यूहन्‍ना भी उपस्थित है। मत्ती २७:४५-५६; मरकुस १५:३३-४१, लूका २३:४४-४९; २:३४, ३५; यूहन्‍ना १९:२५-३०.

      ▪ क्यों उस तीन घंटे के अंधकार के लिए कोई सूर्यग्रहण ज़िम्मेदार नहीं हो सकता?

      ▪ अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले, यीशु वृद्ध माता-पिता वालों के लिए क्या अच्छा मिसाल प्रस्तुत करते हैं?

      ▪ मृत्यु से पहले यीशु के अंतिम चार कथन क्या हैं?

      ▪ भूकंप क्या पूरा करता है, और मंदिर के परदे का दो हिस्सों में फटने का क्या महत्त्व है?

      ▪ मृत्युदंड पर कार्यभारी सूबेदार पर चमत्कारों का कैसा असर होता है?

  • शुक्रवार को दफ़नाया गया—रविवार को खाली क़ब्र
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १२७

      शुक्रवार को दफ़नाया गया—रविवार को खाली क़ब्र

      अब तक शुक्रवार दोहपर ढल चुकी है, और निसान १५ का सब्त सूर्यास्थ से आरंभ होगा। यीशु का शव स्तंभ पर निर्जीव लटक रहा है, लेकिन उनकी बगल में दोनों डाकू अभी भी ज़िंदा हैं। शुक्रवार दोपहर को तैयारी कहा जाता है क्योंकि इस अवसर पर लोग भोजन तैयार करते हैं और ऐसे अत्यावश्‍यक कार्य को पूरा करते हैं जो सब्त के बाद तक नहीं रुक सकता।

      शीघ्र आरंभ होनेवाला सब्त सिर्फ़ एक नियमित सब्त ही नहीं (सप्ताह का सातवाँ दिन) परन्तु एक दुगुना, या “बड़ा” सब्त भी है। उसे ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि निसान १५, जो सात दिनों का अख़मीरी रोटी के पर्व का पहला दिन है (और हमेशा सब्त होता है, चाहे सप्ताह के किसी भी दिन पर क्यों न आए), नियमित सब्त के दिन पर ही पड़ता है।

      परमेश्‍वर के नियम के मुताबिक, लाशों को रात भर स्तंभ पर लटका हुआ नहीं छोड़ना चाहिए। सो यहूदी पीलातुस से कहते हैं कि दंडित व्यक्‍तियों की मौत उनकी टाँगे तोड़कर जल्दी लाया जाए। इसलिए लशकरी उन दो डाकुओं की टाँगे तोड़ते हैं। पर चूँकि यीशु मरा लगता है, उनकी टाँगे नहीं तोड़ी जाती। इससे उस शास्त्रपद की पूर्ति होती है: “उसकी कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी।”

      फिर भी, यीशु असल में मरा है या नहीं यह शक दूर करने, एक सैनिक उनके शरीर की भुजा में भाला भोंकता है। भाला उनका हृदय के पास छेदता है, और तुरन्त लहू और पानी निकलता है। प्रेरित यूहन्‍ना, जो एक चश्‍मदीद गवाह है, बताते हैं कि यह एक और शास्त्रपद की पूर्ति है: “जिसे उन्होंने बेधा है, उस पर दृष्टि करेंगे।”

      अरिमतिया शहर का यूसुफ, महासभा का एक सम्मानित सदस्य, भी घात के जगह पर उपस्थित है। उसने यीशु के ख़िलाफ़ महासभा के अन्यायपूर्ण कार्यवाही के पक्ष में मत देने से इनकार किया था। दरअसल यूसुफ यीशु का एक शिष्य है, हालाँकि वह अपना पहचान करवाने से डरता था। फिर भी, अब, वह हिम्मत के साथ पीलातुस के पास जाकर यीशु की देह माँगता है। पीलातुस कार्यभारी सूबेदार को बुलाता है, और सूबेदार से यीशु की मृत्यु की पुष्टि करने के पश्‍चात पीलातुस देह दिला देता है।

      दफ़न की तैयारी में यूसुफ देह को लेकर साफ पतली चादर में लपेटता है। महासभा का एक अन्य सदस्य, निकुदेमुस उसकी सहायता करता है। अपना पद खो देने के डर से निकुदेमुस भी यीशु में अपना विश्‍वास प्रकट करने में विफल रहा। परन्तु अब वह लगभग सौ रोमी पाउण्ड (३३ किलोग्राम) गंधरस और महँगा मुसब्बर लाता है। यहूदियों की लाशों का दफ़न की तैयारी का दस्तूर के अनुसार, यीशु की देह को इन मसालों से भरे पट्टियों में लपेटा जाता है।

      फिर देह को पास ही की बाग़ में चट्टान में खोदी गई यूसुफ की नयी स्मारक क़ब्र में रखा जाता है। आख़िरकार, क़ब्र के सामने एक बड़ा पत्थर लुढ़काया जाता है। दफ़न को सब्त से पहले ही पूरा करने के लिए देह की तैयारी हड़बड़ी से किया जाता है। इसलिए, मरियम मगदलीनी और छोटे याकूब की माता मरियम, जो संभवतः तैयारी में मदद कर रही हैं, और अधिक मसाला और सुगंधित तेल तैयार करने जल्दी घर जाती है। सब्त के बाद, वे यीशु की देह को और अधिक समय तक बनाए रखने के लिए उसे और ज़्यादा संसाधित करने की योजना बनाते हैं।

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