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  • एक निर्णायक दिन की शुरुआत
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १०५

      एक निर्णायक दिन की शुरुआत

      जब यीशु सोमवार की शाम यरूशलेम से प्रस्थान करते हैं, वे जैतून पहाड़ की पूर्वी ढाल पर स्थित बैतनियाह को लौटते हैं। यरूशलेम में उनकी अंतिम सेवकाई के दो दिन पूरे हो चुके हैं। बेशक, यीशु दोबारा अपने दोस्त लाज़र के साथ रात बिताते हैं। शुक्रवार को यरीहो से आने के बाद, यह चौथी रात थी जो उन्होंने बैतनियाह में बितायी है।

      अब, मंगलवार के तड़के, नीसान ११ को, यीशु और उनके शिष्य फिर से सड़क पर हैं। यीशु की सेवकाई का यह एक निर्णायक और अब तक का सबसे व्यस्त दिन प्रमाणित होता है। मंदिर में दिखाई देनेवाला यह उनका आख़री दिन है। और उनकी परीक्षा और मृत्यु से पहले, यह उनकी आम सेवकाई का आख़री दिन है।

      जैतून पहाड़ के ऊपर से यीशु और उसके शिष्य उसी सड़क पर आते हैं जो यरूशलेम के तरफ जाती है। बैतनियाह से आनेवाली सड़क पर, पतरस उस पेड़ की तरफ ध्यान देता है जिसे यीशु ने पिछले सबेरे शाप दिया था। “हे रब्बी, देख!” वह चिल्लाता है, “वह अंजीर का पेड़ जिसे तू ने शाप दिया था, सूख गया है।”

      लेकिन यीशु ने उस पेड़ को क्यों नष्ट किया? कारण सूचित करते हुए वे आगे कहते हैं: “मैं तुम से सच कहता हूँ, अगर तुम विश्‍वास करो और संदेह न करो, तो केवल ये ही नहीं करोगे जो मैं ने अंजीर के पेड़ के साथ किया, बल्कि अगर तुम इस पहाड़ [जैतून पहाड़ जिस पर वे खड़े हैं] से कहो, ‘उखड़ कर समुद्र में गिर जा,’ तो वह हो जाएगा। और जो तुम विश्‍वास से प्रार्थना में माँगोगे, तो तुम्हें मिलेगा।”—NW.

      इसलिए उस पेड़ को मुरझाने के द्वारा, यीशु अपने शिष्यों को परमेश्‍वर में विश्‍वास की ज़रूरत पर एक उद्देश्‍यपूर्ण सबक़ दे रहे हैं। जैसे उन्होंने कहा: “जिन चीज़ों के लिए तुम प्रार्थना करते हो, तो विश्‍वास कर लो कि तुम्हें मिल गयी, और वह तुम्हें मिल जाएगी।” (NW) ख़ासकर उन जल्द आनेवाली विस्मयकारी परिक्षाओं को ध्यान में रखते हुए यह उनको सीखने के लिए क्या ही महत्त्वपूर्ण सबक़ है! फिर भी, अंजीर के पेड़ के मुरझाने और विश्‍वास के दर्जे में एक और सम्बन्ध है।

      इस्राएली राष्ट्र को, इसी अंजीर के पेड़ की तरह, एक भ्रामक रूप है। हालाँकि यह राष्ट्र परमेश्‍वर के साथ एक वाचा के रिश्‍ते में है और बाहर से यह उनकी नियमों को पालता हुआ दिखायी दे सकता है, वह अच्छे फलों को उत्पन्‍न करने में बांझ, और बिना विश्‍वास के साबित हुआ है। विश्‍वास की कमी के कारण, वह परमेश्‍वर के अपने बेटे को अस्वीकारने में है। इसलिए, फल न देनेवाले अंजीर के पेड़ को मुरझाने के द्वारा, यीशु स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर रहे हैं कि इस बांझ, अविश्‍वासी राष्ट्र का अन्तिम नतीजा क्या होगा।

      जल्द ही, यीशु और उसके शिष्य यरूशलेम में प्रवेश करते हैं, और जैसा उनका दस्तूर है, वे मंदिर जाते हैं, जहाँ यीशु शिक्षा देने लगते हैं। सर्राफों के ख़िलाफ़ यीशु की पिछले दिन की कार्यवाही को मन में रखते हुए, मुख्य याजक और लोगों के पुरनिए उनकी चुनौती करते हैं: “तू ये काम किस अधिकार से करता है? और तुझे यह अधिकार किस ने दिया है?”

      जवाब में यीशु कहते हैं: “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ। यदि वह मुझे बताओगे, तो मैं भी तुम्हें बताऊँगा कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ: यूहन्‍ना का बपतिस्मा, किस स्रोत से था? स्वर्ग की ओर से या मनुष्यों की ओर से था?”

      मुख्य याजक और पुरनिए आपस में परामर्श करने लगते हैं कि क्या जवाब दें। “यदि हम कहें, ‘स्वर्ग की ओर से,’ तो वह कहेगा, ‘फिर, तुम ने क्यों उसका यक़ीन नहीं किया?’ और यदि हम कहें, ‘मनुष्यों की ओर से,’ तो लोगों का डर है, क्योंकि वे सब यूहन्‍ना को भविष्यवक्‍ता जानते हैं।”—NW.

      अगुओं को समझ में नहीं आ रहा कि क्या जवाब दें। इसलिए वे यीशु को जवाब देते हैं: “हम नहीं जानते।”

      यीशु, क्रम से, कहते हैं: “मैं भी तुम्हें नहीं बताता कि में ये काम किस अधिकार से करता हूँ।” मत्ती २१:१९-२७; मरकुस ११:१९-३३; लूका २०:१-८.

      ▪ मंगलवार, नीसान ११, के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण है?

      ▪ अंजीर के पेड़ को मुरझाने के द्वारा, यीशु कौनसे सबक़ प्रदान करते हैं?

      ▪ यीशु उनको किस तरह का जवाब देता है जो उन से यह पूछते हैं कि वह किस अधिकार से यह काम करता है?

  • दाख़ की बारी के दृष्टान्तों द्वारा पर्दाफ़ाश
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १०६

      दाख़ की बारी के दृष्टान्तों द्वारा पर्दाफ़ाश

      यीशु मंदिर में है। उसने अभी-अभी धार्मिक अगुओं को उलझन में डाल दिया है जिन्होंने ये जानने की माँग की, कि वह किसके अधिकार से काम कर रहा है। इससे पहले कि वह इस उलझन से निकल पाते, यीशु उन से पूछते हैं: “तुम क्या सोचते हो?” और फिर एक दृष्टान्त के द्वारा, वह दिखाता है कि असल में वे किस तरह के मनुष्य हैं।

      “किसी मनुष्य के दो पुत्र थे,” यीशु वर्णन करते हैं। “उसने पहले के पास जाकर कहा, ‘हे पुत्र, आज दाख़ की बारी में काम कर।’ उसने जवाब दिया, ‘मैं जाता हूँ,’ परन्तु नहीं गया। तब उसने दूसरे के सामने भी यही कहा। जवाब में उसने कहा, ‘मैं नहीं जाऊँगा।’ परन्तु बाद में पछताया और गया। दोनों में से किसने अपने पिता की इच्छा पूरी की थी?” यीशु पूछते हैं।

      “दूसरे ने,” उसके विरोधी जवाब देते हैं।

      अतः यीशु समझाते हैं: “मैं तुम से सच कहता हूँ कि महसूल लेनेवाले और वेश्‍याएँ तुम से पहले परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश कर रहें हैं।’ (NW) महसूल लेनेवाले और वेश्‍याओं ने असल में पहले परमेश्‍वर की सेवा करने से इनक़ार किया। पर फिर, दूसरे पुत्र की तरह, उन्होंने पश्‍चात्ताप किया और उनकी सेवा की। दूसरी ओर, धार्मिक अगुओं ने पहले पुत्र की तरह, परमेश्‍वर की सेवा करने का दावा किया, लेकिन, जैसे यीशु ग़ौर करते हैं: “यूहन्‍ना [बपतिस्मा देनेवाला] धर्म के मार्ग से तुम्हारे पास आया, और तुमने उसका यक़ीन नहीं किया। पर, महसूल लेनेवाले और वेश्‍याओं ने उसका यक़ीन किया, और तुम यह देखकर पीछे भी न पछताए कि उसका यक़ीन कर लेते।”—NW.

      इसके बाद यीशु दिखाते हैं कि धार्मिक नेता केवल परमेश्‍वर की सेवा की उपेक्षा करने में ही नहीं चूके। नहीं, परन्तु वे दरअसल बुरे, दुष्ट व्यक्‍ति हैं। “एक गृहस्थ था,” यीशु वर्णन करते हैं, “जिसने दाख़ की बारी लगाई, और उसके चारों ओर बाड़ा बाँधा, और उस में रस का कुण्ड खोदा, और गुम्मट बनाया, और किसानों को उसका ठेका देकर परदेश चला गया। जब फल का समय निकट आया, तो उसने अपने दासों को उसका फल लेने के लिए किसानों के पास भेजा। पर किसानों ने उसके दासों को पकड़कर, किसी को पीटा, और किसी को मार डाला, और किसी को पत्थरवाह किया। फिर उसने और दासों को भेजा, जो पहलों से अधिक थे, और उन्होंने उन से भी वैसा ही किया।”

      “दास” भविष्यवक्‍ता हैं जिन्हें “गृहस्थ,” यहोवा परमेश्‍वर, ने अपनी “दाख़ की बारी” के “किसानों” के पास भेजा। ये किसान इस्राएली राष्ट्र के प्रमुख प्रतिनिधि हैं, और परमेश्‍वर की “दाख की बारी” की पहचान बाइबल इसी राष्ट्र से करती है।

      चूँकि “किसान” “दासों” के साथ बुरा व्यवहार करते हैं और उन्हें मार डालते हैं, यीशु व्याख्या करते हैं: “अन्त में उस [दाख़ की बारी के स्वामी] ने अपने पुत्र को उनके पास यह कह कर भेजा, ‘वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे।’ परन्तु “किसानों” ने पुत्र को देखकर आपस में कहा, ‘यह तो वारिस है; आओ, उसे मार डालें और उसकी मीरास ले लें।’ और उन्होंने उसे पकड़ा और दाख़ की बारी से बाहर निकालकर मार डाला।”

      अब धार्मिक अगुओं को संबोधित करते हुए, यीशु पूछते हैं: “जब दाख़ की बारी का स्वामी आएगा, वह उन किसानों के साथ क्या करेगा?”

      “क्योंकि वह बुरे हैं,” धार्मिक अगुए जवाब देते हैं, “वह उन बुरे लोगों को बुरी रीति से नाश करेगा और दाख़ की बारी का ठेका और किसानों को देगा, जो समय पर उसे फल दिया करेंगे।”

      इस प्रकार अज्ञानता से वे अपने ऊपर ही न्यायदण्ड की घोषणा करते हैं, क्योंकि यहोवा का इस्राएल की राष्ट्रीय “दाख़ की बारी” के इस्राएली “किसानों” में वे भी सम्मिलित किए गए हैं। यहोवा उन किसानों से जिस फल का अपेक्षा करते हैं, वह है उसके पुत्र, सच्चे मसीह, पर विश्‍वास। क्योंकि वे ऐसे फल लाने में विफल हुए, यीशु उन्हें चेतावनी देते हैं: “क्या तुमने कभी पवित्र शास्त्र में [भजन ११८:२२, २३ में] यह नहीं पढ़ा, ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था, वही कोने के सिरे का पत्थर हो गया? यह यहोवा की ओर से हुआ, और हमारे देखने में अद्‌भुत है’? इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्‍वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा, और ऐसी राष्ट्र को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा। जो इस पत्थर पर गिरेगा चकनाचूर हो जाएगा। और जिस पर वह गिरेगा, उसे पीस डालेगा।”—NW.

      फरीसी और मुख्य याजक अब समझ जाते हैं कि यीशु उनके विषय में बोल रहे हैं, और वे उनको, न्यायपूर्ण “वारिस” को, मार डालना चाहते हैं। एक राष्ट्र के तौर से परमेश्‍वर के राज्य में शासक होने का ख़ास अनुग्रह उनसे ले लिया जाएगा, और ‘दाख़ की बारी के किसानों’ की एक नई राष्ट्र सृजि जाएगी, जो उचित फल उत्पन्‍न करेगी।

      क्योंकि धार्मिक नेता भीड़ से डरते हैं, जो यीशु को भविष्यवक्‍ता के रूप में मानती है, वे उन्हें इस मौक़े पर मार डालने की कोशिश नहीं करते। मत्ती २१:२८-४६; मरकुस १२:१-१२; लूका २०:९-१९; यशायाह ५:१-७.

      ▪ यीशु के पहले दृष्टान्त में दो पुत्र किसे चित्रित करते हैं?

      ▪ दूसरे दृष्टान्त में, “गृहस्थ,” “दाख़ की बारी,” “किसान,” “दास” और “वारिस” से कौन चित्रित किए गए हैं?

      ▪ ‘दाख़ की बारी के किसानों’ का क्या होगा, और उनका स्थान कौन लेगा?

  • शादी की दावत का दृष्टान्त
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १०७

      शादी की दावत का दृष्टान्त

      दो दृष्टान्तों के ज़रिये, यीशु ने फरीसियों और महायाजकों का पर्दाफ़ाश किया, और वे उसे मार डालना चाहते हैं। पर यीशु द्वारा उनका पर्दाफ़ाश और भी बाकी है। वह उन्हें एक और दृष्टान्त देता है:

      “स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने पुत्र की शादी की दावत दिया। और उसने अपने दासों को भेजा, कि नेवताहारियों को शादी की दावत में बुलाए, परन्तु उन्होंने आना न चाहा।”—NW.

      यहोवा परमेश्‍वर वह राजा है जो अपने बेटे, यीशु मसीह, की शादी की दावत की तैयारी करते हैं। अन्त में, १,४४,००० अभिषिक्‍त अनुयायियों की दुल्हन यीशु मसीह के साथ स्वर्ग में मिल जाएगी। राजा की प्रजा वो इस्राएली लोग हैं, जिन्हें सा.यु.पू. वर्ष १५१३ में नियम की वाचा में लाने पर, “याजकों का राज्य” बनने का सुअवसर मिला। इसलिए, उस अवसर पर, उन्हें शादी की दावत का न्योता आदि में दिया गया।

      तथापि, आमंत्रित लोगों को पहला बुलावा सा.यु. वर्ष २९ के पतझड़ से पहले नहीं दिया गया, जब यीशु और उनके शिष्यों ने (राजा के दास) राज्य प्रचार का अपना कार्य आरंभ किया। लेकिन स्वाभाविक इस्राएली जिन्हें यह बुलावा दासों द्वारा सा.यु. वर्ष २९ से सा.यु. वर्ष ३३ तक दिया गया, आने को इच्छुक नहीं थे। इसलिए परमेश्‍वर ने आमंत्रित जनों का राष्ट्र को एक और मौक़ा दिया, जैसे यीशु आगे कहते हैं:

      “फिर उसने और दासों को यह कह कर भेजा, ‘नेवताहारियों से कहो: “देखो, मैं भोज तैयार कर चुका हूँ, मेरे बैल और पाले हुए पशु मारे गए हैं, और सब कुछ तैयार है। ब्याह के भोज में आओ।”’” यह दूसरा और अंतिम बुलावा उन आमंत्रित जनों के लिए सा.यु. वर्ष ३३ के पिन्तेकुस्त से शुरू हुआ, जब पवित्र आत्मा यीशु के शिष्यों पर उँडेला गया। यह बुलावा सा.यु. वर्ष ३६ तक जारी रहा।

      तथापि, अधिकांश इस्राएलियों ने इस बुलावे का भी तिरस्कार किया। “परन्तु वे बेपरवाई करके चल दिए,” यीशु कहते हैं, “कोई अपने खेत को, कोई अपने व्यापार को; पर औरों ने, जो बच रहे थे, उसके दासों को पकड़कर उनका अनादर किया और मार डाला।” “लेकिन,” यीशु आगे कहते हैं, “राजा ने क्रोध किया, और अपनी सेना भेजकर उन हत्यारों को नाश किया, और उनके नगर को फूँक दिया।” यह सा.यु. वर्ष ७० में हुआ, जब रोमियों ने यरूशलेम को पूरी तरह से नष्ट कर दिया, और वे हत्यारे भी मारे गए।

      इस बीच क्या हुआ उसका वर्णन यीशु करते हैं: “तब [राजा] ने अपने दासों से कहा, ‘शादी की दावत तो तैयार है, परन्तु नेवताहारी योग्य नहीं ठहरे। इसलिए चौराहों में जाओ, और जितने लोग तुम्हें मिले, सब को शादी की दावत में बुला लाओ।’” दासों ने ऐसा ही किया, और “ब्याह का घर मेहमानों से भर गया।”—NW.

      मेहमानों को आमंत्रित जनों के शहर से बाहर की सड़कों से इकट्ठा करने का काम सा.यु. वर्ष ३६ में शुरू हुआ। रोमी सेना का अफ़सर कुरनेलियुस और उसका परिवार इकट्ठे किए गए खतनारहित ग़ैर-यहूदियों में से पहले थे। इन ग़ैर-यहूदियों का इकट्ठा किया जाना, जिन में से सब के सब बुलावा को पहले इनक़ार करनेवालों के लिए बदलाव है, बीसवीं शताब्दी तक जारी रहा है।

      इस बीसवीं शताब्दी में ही ब्याह का घर भर जाता है। यीशु यह कहते हुए वर्णन करते हैं कि फिर क्या घटित होता है: “जब राजा मेहमानों को देखने भीतर आया, तो उसने वहाँ एक मनुष्य को देखा, जो ब्याह का वस्त्र पहने हुए न था। उसने उससे पूछा, ‘हे मित्र, तू विवाह का वस्त्र पहने बिना यहाँ क्यों आ गया?’ उसका मुँह बन्द हो गया। तब राजा ने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ-पाँव बाँधकर उसे बाहर अंधियारे में डाल दो, वहाँ उसका रोना और दांतों का पीसना होगा।”—NW.

      वह व्यक्‍ति जो विवाह के वस्त्र के बिना था, ईसाई जगत के नकली मसीहियों को चित्रित करता है। परमेश्‍वर ने इनकी सही पहचान आत्मिक इस्राएल के रूप में कभी स्वीकार नहीं की। परमेश्‍वर ने इन्हें राज्य के वारिस के रूप में पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त नहीं किया। इसलिए उनको बाहर अंधेरे में फेंका गया जहाँ वे विनाश से पीड़ित होंगे।

      यीशु अपने दृष्टान्त को यह कहते हुए समाप्त करते हैं: “परन्तु बुलाए हुए तो बहुत हैं, परन्तु चुने हुए थोड़े हैं।” जी हाँ, मसीह की दुल्हन के सदस्य बनने के लिए इस्राएल राष्ट्र में से बहुतों को आमंत्रित किया गया, लेकिन सिर्फ़ थोड़े ही स्वाभाविक इस्राएली चुने गए हैं। १,४४,००० में से अधिकांश मेहमान जिन्हें स्वर्गीय इनाम मिलेगा, ग़ैर-इस्राएली हैं। मत्ती २२:१-१४; निर्गमन १९:१-६; प्रकाशितवाक्य १४:१-३.

      ▪ शादी की दावत को पहले आमंत्रित किए गए जन कौन हैं, और उन्हें कब यह न्योता दिया गया?

      ▪ आमंत्रित जनों को पहला बुलावा कब दिया गया, और ये दास कौन हैं जिन्हें बुलावा देने उपयोग किया जाता है?

      ▪ दूसरा बुलावा कब दिया गया, और बाद में किन्हें निमंत्रण दिया गया?

      ▪ बिना विवाह का वस्त्र के व्यक्‍ति किसे चित्रित करता है?

      ▪ बुलाए गए अनेक जन और चुने हुए थोड़े जन कौन हैं?

  • यीशु को फँसाने में वे विफल हुए
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १०८

      यीशु को फँसाने में वे विफल हुए

      क्यों कि यीशु मंदिर में शिक्षा दे रहे हैं और अभी-अभी उन्होंने अपने धार्मिक शत्रुओं को तीन दृष्टान्त बताया जो उनकी दुष्टता का पर्दाफ़ाश करता है, फरीसी क्रोधित हैं और योजना बनाते हैं कि उसे ऐसा कुछ कहने में फँसाए जिससे वे उसे गिरफ़्तार करवा सकते हैं। वे एक षड्यन्त्र रचते हैं और अपने शिष्यों को हेरोदियों के साथ भेजते हैं, ताकि उसकी भूल पकड़ सकें।

      ये मनुष्य कहते हैं, “हे गुरु, हम जानते हैं कि तू सच्चा है, और परमेश्‍वर का मार्ग सच्चाई से सिखाता है, और किसी की परवाह नहीं करता, क्योंकि तू मनुष्यों का मुँह देखकर बातें नहीं करता। इसलिए, हमें बता, तू क्या समझता है? कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं?”

      उनकी चापलूसी से यीशु धोखा नहीं खाता। वह समझ जाता है कि अगर वह कहें, ‘नहीं, कर देना नियमानुसार सही नहीं है,’ तो वह रोम के ख़िलाफ़ राजद्रोह का दोषी होगा। तथापि, अगर वह कहे, ‘हाँ, तुम्हें कर देना चाहिए,” तो यहूदी, जो रोम का उन पर अधीनता को तुच्छ समझते हैं, उसे नफ़रत करेंगे। इसलिए वह जवाब देता है: “हे कपटियों, मुझे क्यों परखते हो? कर का सिक्का मुझे दिखाओ।”

      जब वे उसके पास एक सिक्का ले आते हैं, तो वह पूछता है: “यह मूर्ति और नाम किसका है?”

      वे जवाब देते हैं, “कैसर का।”

      “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्‍वर का है, वह परमेश्‍वर को दो।” खैर, जब ये मनुष्य यीशु का यह प्रभावशाली जवाब सुनते हैं, वे ताज्जुब करते हैं। और उसे छोड़कर चले जाते हैं।

      यह देखकर कि फरीसी यीशु के ख़िलाफ़ कुछ करने में विफल हुए हैं, सदूकी, जो यह कहते हैं कि मरे हुओं का पुनरुत्थान नहीं है, उसके पास आकर पूछते हैं: “हे गुरु, मूसा ने कहा था, ‘यदि कोई बिना सन्तान मर जाए, तो उसका भाई उसकी पत्नी को ब्याह करके अपने भाई के लिए वंश उत्पन्‍न करें।’ अब हमारे यहाँ सात भाई थे; पहला ब्याह करके मर गया, और सन्तान न होने के कारण अपनी पत्नी को अपने भाई के लिए छोड़ गया। इसी प्रकार दूसरे और तीसरे ने भी किया, और सातवें तक यही हुआ। सब के बाद वह स्त्री भी मर गयी। सो जी उठने पर, वह उन सातों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि वह सब की पत्नी हो चुकी थी।”

      जवाब में यीशु कहते हैं: “क्या तुम इस कारण भूल में नहीं पड़े हो, कि तुम न तो पवित्र शास्त्र को जानते हो, और न ही परमेश्‍वर की सामर्थ को? क्योंकि जब वे मरे हुओ में से जी उठेंगे, तो उन में ब्याह शादी न होगी, पर स्वर्ग में दूतों की तरह होंगे। पर मरे हुओं के जी उठने के विषय में, क्या तुमने मूसा की पुस्तक में काँटे की झाड़ी की कथा में नही पढ़ा, कि परमेश्‍वर ने उससे कहा, ‘मैं इब्राहीम का परमेश्‍वर और इसहाक़ का परमेश्‍वर और याकूब का परमेश्‍वर हूँ’? परमेश्‍वर मरे हुओं का नहीं, बल्कि जीवतों का परमेश्‍वर है। तुम बड़ी भूल में पड़े हो।”—NW.

      यीशु के जवाब से भीड़ फिर से अचंभित है। यहाँ तक कि शास्त्रियों ने भी मंज़ूर किया: “गुरु, तू ने अच्छा कहा।”

      जब फरीसी यह देख लेते हैं, कि यीशु ने सूदकियों का मुँह बंद कर दिया है, तो वे एक साथ उसके पास आते हैं। और उन में से एक शास्त्री उसे और ज़्यादा परखने के लिए, पूछता है: “हे गुरु, व्यवस्था में कौनसी आज्ञा बड़ी है?”

      यीशु जवाब देते हैं: “सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है; ‘हे इस्राएल सुन, यहोवा हमारा परमेश्‍वर एक ही यहोवा है। और तू यहोवा अपने परमेश्‍वर से अपने सारे दिल और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि और अपनी सारी शाक्‍ति से प्रेम रखना।’ और दूसरी यह है, ‘तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।’ इससे बड़ी और कोई आज्ञा नहीं।” दरअसल, यीशु आगे कहते हैं: “ये ही दो आज्ञाएँ सारी व्यवस्था और भविष्यवक्‍ताओं का आधार है।”—NW.

      “हे गुरु, बहुत ठीक! तू ने सच कहा,” वह शास्त्री उन से सहमत है। “‘वह एक ही है, और उसे छोड़ और कोई नहीं’; और उससे सारे दिल और सारी बुद्धि और सारी शक्‍ति के साथ प्रेम रखना और पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना, सारे होमों और बलिदानों से बढ़कर है।”—NW.

      यह देखकर कि शास्त्री ने समझ से जवाब दिया, यीशु उसे कहते हैं: “तू परमेश्‍वर के राज्य से दूर नहीं।”

      रविवार, सोमवार और मंगलवार—तीन दिन से यीशु लगातार मंदिर में शिक्षा दे रहे हैं। लोगों ने उसे आनंद से सुना है, फिर भी धार्मिक अगुए उसे मार डालना चाहते हैं, लेकिन अभी तक उनके प्रयत्न विफल कर दिए गए हैं। मत्ती २२:१५-४०; मरकुस १२:१३-३४; लूका २०:२०-४०.

      ▪ यीशु को फँसाने के लिए फरीसियों ने कौनसा षड्यंत्र रचा, और उसके हाँ या ना जवाब देने से क्या नतीजा होगा?

      ▪ सदूकियों द्वारा फँसाने की कोशिश को यीशु कैसे विफल करते हैं?

      ▪ यीशु को परखने के लिए फरीसी और कौनसा प्रयत्न करते हैं, और क्या परिणाम होता है?

      ▪ यरूशलेम में अपनी अंतिम सेवकाई के दौरान, यीशु कितने दिन मंदिर में शिक्षा देते हैं, और इसका प्रभाव क्या है?

  • यीशु अपने विरोधियों का भर्त्सना करते हैं
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १०९

      यीशु अपने विरोधियों का भर्त्सना करते हैं

      यीशु ने धार्मिक विरोधियों को इतना बख़ूबी से चकरा दिया है कि वे उसे कुछ और पूछने से डरते हैं। इसलिए वह उनकी अज्ञानता का पर्दाफ़ाश करना आरंभ करता है: “मसीह के विषय में तुम क्या समझते हो?” वह पूछता है। “वह किसका सन्तान है?”

      “दाऊद का,” फरीसी जवाब देते हैं।

      यद्यपि यीशु यह इनक़ार नहीं करते कि दाऊद मसीहा, या ख्रीस्त, का शारीरिक पूर्वज है, वह पूछता है: “तो दाऊद आत्मा में होकर [भजन संहिता ११० में] उसे ‘प्रभु’ क्यों कहता है? ‘यहोवा ने मेरे प्रभु से कहा: “मेरे दाहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों के नीचे न कर दूँ।”’ भला, जब दाऊद उसे प्रभु कहता है, तो वह उसका पुत्र कैसे हो सकता है?”—NW.

      फरीसी ख़ामोश हैं, क्योंकि वे ख्रीस्त, या अभिषिक्‍त जन, की सच्ची पहचान नहीं जानते। मसीहा दाऊद का मानवी वंश ही नहीं, जैसे फरीसी प्रत्यक्ष रूप से विश्‍वास करते हैं, परन्तु वह स्वर्ग में अस्तित्व में था और दाऊद का प्रवर, या प्रभु था।

      भीड़ और अपने शिष्यों की ओर मुड़कर, यीशु शास्त्रियों और फरीसियों के बारे में चेतावनी देते हैं। चूँकि ये “मूसा की गद्दी पर बैठे हैं,” वे परमेश्‍वर का नियम पढ़ाते हैं, यीशु उकसाते हैं: “ये तुम से जो कहें वह करना, और मानना।” परन्तु वह आगे कहता है, “उनके काम के अनुसार मत करना, क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं।”—NW.

      वे कपटी हैं, और यीशु उनकी भर्त्सना उसी तरह की भाषा में करते हैं जिसे उसने कुछ महीने पहले एक फरीसी के यहाँ भोजन करते समय किया था। “वे अपने सब काम,” वह कहता है, “लोगों को दिखाने के लिए करते हैं।” और वह यह ग़ौर करते हुए उदाहरण प्रदान करता है:

      “वे अपने शास्त्रों से समाया हुआ तावीज़ों को चौड़ा करते हैं जिन्हें वे सुरक्षा के तौर पर पहनते हैं।” (NW) ये छोटे तावीज़ में, जो माथे पर या बाँह पर पहने जाते हैं, नियम के चार हिस्से रहते हैं: निर्गमन १३:१-१०, ११-१६; और व्यवस्थाविवरण ६:४-९; ११:१३-२१. लेकिन फरीसी इन तावीज़ों का आकार बढ़ाते हैं, ताकि दूसरों को प्रभावित कर सकें कि वे नियम के प्रति उत्साही हैं।

      यीशु आगे कहते हैं कि “वे अपने वस्त्रों की कोरें बढ़ाते हैं।” गिनती १५:३८-४० में इस्राएलियों को अपने वस्त्र पर झब्बा बनाने का आज्ञा दिया गया था, परन्तु फरीसी अपने झब्बों को औरों से ज़्यादा बड़ा बनाते हैं। सब कुछ दिखावे के लिए ही किया जाता है! “वे मुख्य-मुख्य जगहें पसंद करते हैं,” यीशु घोषणा करते हैं।

      दुःख की बात ये है कि उसके शिष्य भी इस विशिष्टता की आकांक्षा से प्रभावित हुए हैं। इसलिए वह सलाह देता है: “परन्तु तुम रब्बी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है, और तुम सब भाई हो। और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है। और ‘स्वामी’ भी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही स्वामी है, अर्थात मसीह।” शिष्यों ने अव्वल होने की आकांक्षा को अपने आप में से दूर करना चाहिए! “जो तुम में बड़ा हो, वह तुम्हारा सेवक बने,” यीशु निर्देश देते हैं।

      उसके बाद वह शास्त्रियों और फरीसियों पर धिक्कार की श्रृंखला का घोषणा करता है, और बार-बार उन्हें कपटी कहता है। वे “मनुष्यों के विरोध में स्वर्ग के राज्य का द्वार बंद करते हैं,” और वह कहता है, “वे विधवाओं के घरों को खा जाते हैं और दिखाने के लिए बड़ी देर तक प्रार्थना करते हैं।”

      “हे अंधे अगुवों, तुम पर हाय,” यीशु कहते हैं। वह फरीसियों का आध्यात्मिक मूल्यों की कमी के लिए भर्त्सना करता है, जो उनके द्वारा किए गए निरंकुश भेदों से साबित होता है। उदाहरण के लिए, वे कहते हैं, ‘यदि कोई मंदिर की शपथ खाए तो कुछ नहीं, परन्तु यदि कोई मंदिर के सोने की सौगंध खाए तो उससे बंध जाएगा।’ (NW) उस उपासना का जगह की आध्यात्मिक क़ीमत पर ज़ोर देने के बजाय, वे मंदिर के सोने पर ज़ोर देते हैं, और अपना नैतिक अंधापन भी दिखाते हैं।

      फिर, जैसे उन्होंने पहले किया था, यीशु फरीसियों को “व्यवस्था की गम्भीर बातें, अर्थात, न्याय और दया और विश्‍वास” की उपेक्षा करने के लिए निन्दा करते हैं, जबकि वे तुच्छ जड़ी-बूटियाँ का दसमांश, या दसवाँ अंश, अदा करने में ज़्यादा ध्यान देते हैं।

      यीशु फरीसियों को “अंधे अगुवे” कहकर बुलाते हैं, जो “मच्छर को तो छान डालते हैं, परन्तु ऊँट को निगल जाते हैं!” वे अपने दाख़रस से मच्छर को छान डालते हैं, एक कीडा होने के वजह से नहीं लेकिन इसलिए कि वह रैतिक रूप से अशुद्ध है। फिर भी, उनके द्वारा नियम की गम्भीर बातों का अवहेलना ऊँट को निगलने के बराबर है, जो रैतिक रूप से अशुद्ध जानवर है। मत्ती २२:४१-२३:२४; मरकुस १२:३५-४०; लूका २०:४१-४७; लैव्यव्यवस्था ११:४, २१-२४.

      ▪ फरीसियों को भजन संहिता ११० में दाऊद द्वारा कही बातों के बारे में जब यीशु सवाल करते हैं, तो वे ख़ामोश क्यों रह जाते हैं?

      ▪ क्यों फरीसी अपने शास्त्र से समाए हुए तावीज़ों को चौड़ा करते और अपने वस्त्र की झब्बों को बढ़ाते हैं?

      ▪ यीशु अपने शिष्यों को क्या सलाह देते हैं?

      ▪ फरीसी क्या निरंकुश भेद करते हैं, और किस तरह यीशु उन्हें गम्भीर बातों की उपेक्षा के लिए निन्दा करते हैं?

  • मंदिर में सेवकाई पूरी हुई
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय ११०

      मंदिर में सेवकाई पूरी हुई

      यीशु आख़री बार मंदिर में दिखाई देते हैं। दरअसल, अपने परीक्षण और मृत्यु दंड की घटनाओं को छोड़, जो भविष्य में तीन दिन बाद है, वे पृथ्वी पर अपनी आम सेवकाई ख़त्म कर रहे हैं। अब वे शास्त्रियों और फरीसियों को फटकारने का अपना काम जारी रखते हैं।

      तीन बार वह चिल्लाता है: “हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों, तुम पर हाय!” पहले, वह उन पर धिक्कार का घोषणा करता है क्योंकि वे “कटोरे और थाली को ऊपर-ऊपर से मांजते हैं, परन्तु भीतर अन्धेर और असयंम से भरे हुए हैं।” इसलिए वह डाँटता है: “पहले कटोरे और थाली को भीतर से मांज, कि वह बाहर से भी स्वच्छ हो।”

      इसके बाद वह शास्त्रियों और फरीसियों के भीतरी सड़न और दुर्गन्ध के लिए धिक्कारता है जिसे वे बाहरी ईश्‍वर-भक्‍ति से छिपाने की कोशिश करते हैं। “तुम चूना फिरी क़ब्रों के समान हो जो ऊपर से तो सुंदर दिखाई देती है, परन्तु भीतर मुर्दों की हड्डियों और सब प्रकार की मलिनता से भरी है।”—NW.

      अन्त में, उनका ढोंग भविष्यवक्‍ताओं के लिए क़ब्र बनाने और सजाने की तत्परता से ज़ाहिर होता है जिससे वे अपनी दानशीलता के कर्मों के प्रति ध्यान आकर्षित कर सकते हैं। तो भी, जैसे यीशु प्रकट करते हैं, वे “भविष्यवक्‍ताओं के घातकों की सन्तान” हैं। सचमुच, जो उनकी ढोंग का पर्दाफ़ाश करते हैं वे ख़तरे में है!

      आगे, यीशु भर्त्सना के अपने सबसे कड़े शब्दों का उच्चारण करते हैं। “हे साँपों, हे करैतों के बच्चों,” उन्होंने कहा, “तुम गेहन्‍ना के दण्ड से कैसे बचोगे?” (NW) गेहन्‍ना वह घाटी है जो यरूशलेम का कूड़ाखाना के जैसे इस्तेमाल किया जाता है। अतः यीशु कह रहे हैं कि शास्त्री और फरीसी अपने दुष्ट चालचलन को जारी रखने के वजह से अनन्त विनाश भुगतेंगे।

      जिन्हें यीशु अपने प्रतिनिधी के रूप में भेजते हैं, उनके बारे में वे कहते हैं: “तुम उन में से कितनों को मार डालोगे, और स्तंभ पर चढ़ाओगे, और कितनों को अपनी सभाओं में कोड़े मारोगे और एक नगर से दूसरे नगर में सताते फिरोगे; जिससे धर्मी हाबील से लेकर बिरिक्याह [दूसरे इतिहास में यहोयादा कहा गया] के पुत्र जकर्याह तक, जिसे तुम ने मंदिर और वेदी के बीच में मार डाला था, जितने धर्मियों का लोहू पृथ्वी पर बहाया गया है, वह सब तुम्हारे सिर पर पड़ेगा। मैं तुम से सच कहता हूँ, ये सब बातें इस समय की पीड़ी पर आ पड़ेगी।”—NW.

      क्योंकि जकर्याह ने इस्राएल के अगुओं को दण्ड फरमाया, “उन्होंने उस से द्रोह की गोष्ठी करके, राजा की आज्ञा से यहोवा के भवन के आंगन में उसको पत्थरवाह किया।” लेकिन, जैसे यीशु पूर्वबतलाते हैं, इस्राएल ऐसे बहाए गए सब धार्मिक लोहू को चूकाएगा। वे ३७ सालों बाद सा.यु. वर्ष ७० में चुकाते हैं, जब रोमी फ़ौज यरूशलेम को नाश करती है और दस लाख से ज़्यादा यहूदी मर जाते हैं।

      जैसे यीशु इस भयंकर स्थिती पर विचार करते हैं, वे दुःखी होते हैं। “यरूशलेम, यरूशलेम,” वे एक बार फिर घोषणा करते हैं, “कितनी ही बार मैं ने चाहा कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठा कर लूँ! परन्तु तुम ने न चाहा। देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिए उजाड़ छोड़ा जाता है।”

      फिर यीशु आगे कहते हैं: “तुम मुझे अब से फिर कभी न देखोगे जब तक तुम नहीं कहोगे, ‘धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है!’” (NW) वह दिन मसीह की उपस्थिती पर होगा जब वे अपने स्वर्गीय राज्य में आएँगे और लोग उन्हें विश्‍वास की आँखों से देखेंगे।

      यीशु अब ऐसी जगह पर चले जाते हैं जहाँ से वे मंदिर में रखी कोष पेटी को और भीड़ को उन में पैसे डालते देख सकते हैं। अमीर लोग बहुत सिक्कों को डालते हैं। लेकिन तब एक गरीब विधवा आती है और बहुत कम क़ीमत के दो छोटे सिक्के डालती है।

      अपने शिष्यों को बुलाकर, यीशु कहते हैं: “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मंदिर के भण्डार में डालने वालों में से इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है।” वे ताज्जुब करते हैं कि यह कैसे हो सकता। इसलिए यीशु समझाते हैं: “उन सब ने अपनी बढ़ती में से डाला है, पर इसने अपनी घटी में से जो कुछ उसका था, अर्थात्‌ अपनी सारी जीविका डाल दी है।” इन सब बातों को कहने के बाद, यीशु आख़री बार मंदिर से चले जाते हैं।

      मंदिर का आकार और सुन्दरता पर आश्‍चर्य करते हुए, उसका एक शिष्य चिल्ला उठता है: “हे गुरु, देख! कैसे-कैसे पत्थर और कैसे-कैसे भवन है!” वाक़ई, पत्थर ११ मीटर लम्बे, ५ मीटर से ज़्यादा चौड़े, और ३ मीटर ऊँचे हैं!

      “क्या तुम यह बड़े-बड़े भवन देखते हो?” यीशु जवाब देते हैं। “यहाँ पर पत्थर पर पत्थर भी बचा न रहेगा जो ढाया न जाएगा।”

      इन सब बातों को कहने के बाद, यीशु और उनके प्रेरित किद्रोन घाटी को पार करते हैं और जैतून पहाड़ पर चढ़ जाते हैं। यहाँ से वे नीचे शानदार मंदिर देख सकते हैं। मत्ती २३:२५-२४:३; मरकुस १२:४१-१३:३; लूका २१:१-६; २ इतिहास २४:२०-२२.

      ▪ मंदिर की अपनी आख़री भेंट के दौरान यीशु क्या करते हैं?

      ▪ शास्त्रियों और फरीसियों का ढोंग किस तरह ज़ाहिर होता है?

      ▪ “गेहन्‍ना के दण्ड” का अर्थ क्या है?

      ▪ यीशु क्यों कहते हैं कि विधवा ने अमीरों से ज़्यादा दान दिया?

  • आख़री दिनों का चिह्न
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय १११

      आख़री दिनों का चिह्न

      अब मंगलवार की दोपहर हुई है। जैसे यीशु जैतुन के पहाड़ पर बैठकर नीचे मंदिर को देख रहे हैं, पतरस, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्‍ना अकेले में उनके पास आते हैं। वे मंदिर के बारे में चिंतित हैं, क्योंकि यीशु ने अभी-अभी पूर्वबतलाया कि उस में पत्थर पर पत्थर भी नहीं छोड़ा जाएगा।

      लेकिन जैसे वे यीशु के पास आते हैं स्पष्टतया उनके मन में और भी कुछ है। कुछ हफ़्तों पहले, उसने अपनी “उपस्थिति” के बारे में बतलाया, जिसके दौरान “मनुष्य का पुत्र प्रकट होना था।” और इससे भी पहले अवसर पर, उसने उनको “इस रीति-व्यवस्था के अन्त” (NW) के बारे में बताया था। इसलिए प्रेरित काफी जिज्ञासु हैं।

      वे कहते हैं, “हम से कह कि ये बातें कब होंगी [जिसका परिणाम यरूशलेम और उसके मंदिर का नाश है], और तेरी उपस्थिति का, और इस रीति-व्यवस्था के अन्त का क्या चिह्न होगा?” (NW) दरअसल, उनका सवाल का तीन भाग हैं। पहला, वे यरूशलेम और उसके मंदिर के अन्त के बारे में, फिर राज्य सत्ता में यीशु की उपस्थिति के बारे में, और आख़िर में समस्त रीति-व्यवस्था के अन्त के बारे में जानना चाहते हैं।

      अपने विस्तृत जवाब में, यीशु सवाल के तीनों हिस्सों को जवाब देते हैं। वे एक चिह्न देते हैं जो यहूदी रीति-व्यवस्था के अन्त की पहचान करता है; लेकिन वे इससे भी ज़्यादा बताते हैं। वे ऐसा एक चिह्न भी देते हैं जो उनके भावी शिष्यों को चौकन्‍न करेगा ताकि वे जान सकें कि वे उनकी उपस्थिति के दौरान और समस्त रीति-व्यवस्था के अन्त के निकट जी रहे हैं।

      जैसे-जैसे साल बीतते जाते हैं, प्रेरित यीशु की भविष्यवाणी की पूर्ति देखते हैं। जी हाँ, जो कुछ उन्होंने पूर्वबतलाया था वे उनके ही दिनों में घटित होने लगते हैं। इस प्रकार, जो मसीही ३७ साल बाद, सा.यु. वर्ष ७० में ज़िन्दा हैं, वे यहूदी रीति-व्यवस्था का मंदिर सहित नाश से अनजान पकड़े नहीं जाते।

      बहरहाल, मसीह की उपस्थिति और रीति-व्यवस्था का अन्त सा.यु. वर्ष ७० में नहीं होता है। राज्य सत्ता में उनकी उपस्थिति काफ़ी समय बाद होती है। लेकिन कब? यीशु की भविष्यवाणी पर ग़ौर करने से यह प्रकट होता है।

      यीशु पूर्वबतलाते हैं कि “लड़ाई और लड़ाइयों की चर्चा” होगी। वे कहते हैं, “राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा,” और अकाल, भूकम्प और महामरियाँ होंगी। उनके शिष्यों से नफरत की जाएगी और वे मारे जाएँगे। झूठे भविष्यवक्‍ता उठेंगे और बहुतों को बहकाएँगे। अधर्म बढ़ेगा, और बहुतों का प्रेम ठंडा हो जाएगा। उसी समय पर, परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सब राष्ट्रों को गवाही के जैसे प्रचार किया जाएगा।

      हालाँकि सा.यु. वर्ष ७० में यरूशलेम के नाश से पहले यीशु की भविष्यवाणी की सीमित पूर्ति होती है, उसकी मुख्य पूर्ति उनकी उपस्थिति और रीति-व्यवस्था के अन्त के दौरान होती है। १९१४ से जगत की घटनाओं का पूनरीक्षण प्रकट करता है कि उस साल से यीशु की महत्त्वपूर्ण भविष्यवाणी की मूख्य पूर्ति हो रही है।

      यीशु का चिह्न का एक और हिस्सा “उजाड़नेवाली घृणित वस्तु” का प्रकटन है। सा.यु. वर्ष ६६ में यह घृणित वस्तु रोम की ‘डेरा डाली हुई सेना’ के रूप में दिखाई देती है जो यरूशलेम को घेर लेकर मंदिर की दिवार नष्ट करती है। “घृणित वस्तु” वहाँ खड़ी है जहाँ उसे नहीं होना चाहिए।

      चिह्न की मुख्य पूर्ति में, घृणित वस्तु राष्ट्र संघ और इसका उत्तराधिकारी, संयुक्‍त राष्ट्र संघ है। ईसाई जगत विश्‍व शांति के लिए इस संगठन को परमेश्‍वर के राज्य का बदलाई मानती है। कितना घृणित! इसलिए, ऐन वक़्त पर, संयुक्‍त राष्ट्र संघ के साथ संबंधित राजनीतिक शक्‍तियाँ ईसाईजगत (प्रतिरूपी यरूशलेम) पर हमला करेंगी और उसे उजाड़ देंगी।

      इसलिए यीशु पूर्वबतलाते हैं: “उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरंभ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा।” सामान्य युग ७० में यरूशलेम का नाश सचमुच एक बड़ा क्लेश है, जिस में दस लाख से भी अधिक लोग मारे गए। यीशु की भविष्यवाणी के इस हिस्से की मुख्य पूर्ति अत्यधिक बड़ी होगी।

      आख़री दिनों के दौरान भरोसा

      जैसे-जैसे मंगलवार, नीसान ११, ढल रहा है, यीशु राज्य सत्ता में अपनी उपस्थिति और रीति-व्यवस्था के अन्त के चिह्न के विषय में अपने प्रेरितों के साथ विचार-विमर्श जारी रखते हैं। वे उन्हें झूठे मसीह का पीछा करने के बारे में चेतावनी देते हैं। वे कहते हैं, “यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा देने” की कोशिशें की जाएँगीं। लेकिन, दूरदर्शी ऊकाबों की तरह, यह चुने हुए जन वहाँ इकट्ठे होंगे जहाँ सच्चा आध्यात्मिक भोजन पाया जाता है, अर्थात, सच्चे मसीह के साथ उनकी अदृश्‍य उपस्थिति में। वे झूठे मसीह के साथ एकत्रित होकर भरमाए नहीं जाएँगे।

      झूठे मसीहा सिर्फ़ एक दृश्‍य प्रकटन कर सकते हैं। इसकी तुलना में, यीशु की उपस्थिति अदृश्‍य होगी। यीशु कहते हैं कि क्लेश के आरंभ होने के बाद: “सूरज अन्धेरा हो जाएगा, और चाँद अपना प्रकाश नहीं देगा।” (NW) हाँ, यह मानवीय अस्तित्व का सबसे अंधकारमय समय होगा। ऐसा प्रतीत होगा मानो दिन के समय सूरज अँधेरा बन गया है, और मानो रात के समय चाँद अपनी रोशनी नहीं देता है।

      “आकाश की शक्‍तियाँ हिलाई जाएँगी,” यीशु आगे कहते हैं। इस प्रकार वे सूचित करते हैं कि प्राकृतिक स्वर्ग एक शकुनात्मक रूप लेंगे। पिछले मानवीय इतिहास में अनुभव किया हुआ किसी भी डर और हिंसा से यह कहीं ज़्यादा होगा।

      परिणामस्वरूप, यीशु कहते हैं, “देश देश के लोगों को संकट होगा, क्योंकि वे समुद्र के गरजने और लहरों के कोलाहल से घबरा जाएँगे, और भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते-देखते लोगों के जी में जी न रहेगा।” वाक़ई, जैसे-जैसे मानवीय अस्तित्व का यह सबसे अंधकारमय समय अपनी समाप्ति के निकट आता है, “मनुष्य के पुत्र का चिह्न आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे।”

      परन्तु जब इस दुष्ट रीति-व्यवस्था को नाश करने ‘मनुष्य का पुत्र बड़ी सामर्थ के साथ आएगा,’ तब हर व्यक्‍ति विलाप नहीं करते रहेंगे। “चुने हुए,” १,४४,००० जो मसीह के साथ उनके स्वर्गीय राज्य में सहभागी होंगे, विलाप नहीं करेंगे, न ही उनके साथी, जिन्हें यीशु ने कुछ समय पहले “अन्य भेड़ें” पुकारा था। मानवीय इतिहास के सबसे अन्धकारमय समय के दौरान रहते हुए भी, यह लोग यीशु के प्रोत्साहन की ओर प्रतिक्रिया दिखाते हैं: “जब ये बातें होने लगें, तो सीधे होकर अपने सिर ऊपर उठाना, क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट है।”

      ताकि आख़री दिनों के दौरान जीनेवाले उनके शिष्य अन्त की निकटता को पहचान सकें, यीशु यह दृष्टान्त देते हैं: “अंजीर के पेड़ और सब पेड़ों को देखो: ज्योंही उन की कोंपले निकलती है, तो तुम देखकर आप ही जान लेते हो कि गरमी नज़दीक है। इसी रीति से जब तुम ये बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्‍वर का राज्य निकट है। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें न हो ले, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी।”—NW.

      इसलिए, जब उनके शिष्य चिह्न के अनेक निराले लक्षणों को पूरा होते देखते हैं, तो उनको यह समझ लेना चाहिए कि रीति-व्यवस्था का अन्त नज़दीक है और परमेश्‍वर का राज्य जल्द ही सारी दुष्टता को मिटा देगा। दरअसल, अंत यीशु ने पूर्वबतलायी हुई सभी बातों की पूर्ति देखनेवाले लोगों के जीवन-काल में ही घटित होगी! उस महत्त्वपूर्ण आख़री दिनों के दौरान जीवित शिष्यों को चेतावनी देते हुए, यीशु कहते हैं:

      “सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन और जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएँ, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े। क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा। इसलिए जागते रहो, और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के सामने खड़े होने के योग्य बनो।”

      समझदार और मूर्ख कुँवारियाँ

      यीशु राज्य सत्ता में अपनी उपस्थिति का चिह्न के लिए अपनी प्रेरितों की विनती का जवाब दे रहे हैं। अब वे चिह्न के अतिरिक्‍त लक्षणों को तीन दृष्टान्त, या उदाहरणों में देते हैं।

      उनकी उपस्थिति के दौरान जी रहे लोग हर एक दृष्टान्त की पूर्ति को देख सकेंगे। वे पहले दृष्टांत का परिचय इन शब्दों से करते हैं: “तब स्वर्ग का राज्य उन दस कुँवारियों के समान होगा जो अपनी मशालें लेकर दूल्हे से भेंट करने को निकलीं। उन में पाँच मूर्ख और पाँच समझदार थीं।”

      “स्वर्ग का राज्य दस कुँवारियों के समान होगा,” इस अभिव्यक्‍ति से यीशु का कहने का मतलब यह नहीं कि स्वर्गीय राज्य के उत्तराधिकारी में से आधे मूर्ख और आधे समझदार होंगे! नहीं, बल्कि उनका कहने का मतलब यह है कि स्वर्ग के राज्य के संबंध में, इसके या उसके जैसे विशेषता है, या राज्य से संबंधित मामले अमुक वस्तु के जैसे होंगे।

      दस कुँवारियाँ उन सब मसीहियों का प्रतीक हैं जो स्वर्गीय राज्य में जाने की स्थिति में हैं या जाने का दावा कर रहे हैं। सा.यु. वर्ष ३३ के पिन्तेकुस्त में मसीही कलीसिया पुनरुत्थित, महिमान्वित दूल्हा, यीशु मसीह को विवाह में प्रतिज्ञा किया गया। लेकिन विवाह भविष्य में किसी अनिर्दिष्ट समय पर स्वर्ग में होनेवाला था।

      इस दृष्टान्त में, दस कुँवारियाँ दूल्हे का स्वागत करने और विवाह के जुलूस में शामिल होने के उद्देश्‍य से जाती हैं। जब वह पहुँचेगा, वे अपनी मशालों से जुलूस के मार्ग को प्रकाशमान्‌ करेंगी, और इस प्रकार वे दूल्हे का आदर करती हैं जैसे वह अपनी दूल्हन को उस के लिए बनाए घर में लाता है। तथापि, यीशु व्याख्या करते हैं: “मूर्खों ने अपनी मशालें तो लीं, परन्तु अपने साथ तेल नहीं लिया। परन्तु समझदारों ने अपनी मशालों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी भर लिया। जब दूल्हे के आने में देर हुई, तो वे सब ऊँघने लगीं, और सो गईं।”

      अधिक समय तक दूल्हे की देर सूचित करती है कि शासन करनेवाले राजा के रूप में मसीह की उपस्थिति दूर भविष्य में होगी। आख़िरकार, वर्ष १९१४ में वे अपने सिंहासन पर आते हैं। उससे पहले लम्बी रात के दौरान, सारी कुँवारियाँ सो जाती हैं। लेकिन उन्हें इस के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता है। मूर्ख कुँवारियों की कुप्पियों में तेल न होने के कारण उन्हें दोषी ठहराया जाता है। यीशु व्याख्या करते हैं कि किस तरह दूल्हे के पहुँचने से पहले कुँवारियाँ जाग जाती हैं: “आधी रात को धूम मची, ‘देखो, दूल्हा आ रहा है, उस से भेंट करने के लिए चलो।’ तब वे सब कुँवारियाँ उठकर अपनी मशालें ठीक करने लगीं। मूर्खों ने समझदारों से कहा, ‘अपने तेल में से कुछ हमें भी दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझी जाती हैं।’ समझदारों ने उत्तर दिया, ‘कदाचित हमारे और तुम्हारे लिए पूरा न हो। भला तो यह है, कि तुम बेचनेवालों के पास जाकर अपने लिए मोल ले लो!’”

      तेल उस चीज़ का प्रतीक है, जो सच्चे मसीहों को प्रदीपकों के जैसे चमकते रखती है। यह परमेश्‍वर का उत्प्रेरित वचन है, जिसे सच्चे मसीही कसकर पकड़े रहते हैं, और साथ ही पवित्र आत्मा है, जो इस वचन को समझने में उनकी मदद करती है। शादी की दावत को जानेवाली जुलूस के दौरान दूल्हे के स्वागत में रोशनी फैलाने के लिए यह आध्यात्मिक तेल समझदार कुँवारियाँ को समर्थ करता है। पर मूर्ख कुँवारी वर्ग में, अपनी कुप्पियों में, वह आवश्‍यक आध्यात्मिक तेल नहीं है। क्या हो रहा है इसका वर्णन यीशु करते हैं:

      “जब [मूर्ख कुँवारियाँ तेल] मोल लेने जा रही थीं, तो दूल्हा आ पहुँचा, और जो तैयार थीं, वे उसके साथ ब्याह के घर में चली गईं, और द्वार बन्द किया गया। इसके बाद वे दूसरी कुँवारियाँ भी आकर कहने लगीं, ‘हे स्वामी, हमारे लिए द्वार खोल दे! उसने उत्तर दिया, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता।”

      मसीह अपने स्वर्गीय राज्य में आने के बाद, सच्चे अभिषिक्‍त मसीहियों का समझदार कुँवारी वर्ग, आए हुए दूल्हे के स्तुति में इस अन्धकारमय जगत में रोशनी फैलाने के अपने ख़ास अनुग्रह के लिए जागते हैं। लेकिन जो मूर्ख कुँवारियों द्वारा चित्रित किए गए, इस अभिनंदनीय स्तुति देने के लिए तैयार नहीं हैं। इसलिए जब समय आता है, मसीह उनको स्वर्ग में हो रहे शादी की दावत को दरवाज़ा नहीं खोलते। वे इनको जगत की सबसे गहरी रात के अन्धेरे में, सब अधर्म के श्रमिकों के साथ नाश होने के लिए बाहर छोड़ देते हैं। “इसलिए जागते रहो,” यीशु अन्त में कहते हैं, “क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को।”

      तोड़ों का दृष्टान्त

      यीशु एक और दृष्टान्त, तीन दृष्टान्तों की श्रृंख्ला में दूसरा, देने के द्वारा जैतून पहाड़ पर अपने प्रेरितों के साथ विचार-विमर्श जारी रखते हैं। कुछ दिनों पहले, जब वे यरीहो में थे, उन्होंने मुहरों का दृष्टान्त दिया यह दिखाने कि राज्य के आने में काफी समय बाकी है। अभी सुनाया जानेवाला दृष्टान्त, जिस में काफी मिलता-जुलता विशेषताएँ हैं, अपनी पूर्ति में राज्य सत्ता में मसीह की उपस्थिती के दौरान गतिविधियों का वर्णन करती है। यह सचित्र करता है कि जब तक उसके शिष्य इस पृथ्वी पर हैं, उनको ‘उसकी सम्पत्ति’ बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए।

      यीशु शुरू करते हैं: “क्योंकि यह [अर्थात, राज्य के साथ मिला हुआ हालात] उस मनुष्य की सी दशा है जिस ने परदेश को जाते समय अपने दासों को बुलाकर, अपनी सम्पत्ति उन को सौंप दी।” वह मनुष्य यीशु है जो, स्वर्ग में जाने से पहले, अपने दासों को—स्वर्गीय राज्य में जाने की स्थिति में शिष्यों को—अपनी सम्पत्ति सौंपता है। यह सम्पत्ति भौतिक सम्पत्ति नहीं, पर उस पोषित क्षेत्र को चित्रित करती है जिस में उसने और अधिक शिष्यों को ले आने की संभावना तैयार किया है।

      यीशु स्वर्ग जाने से कुछ समय पहले अपनी सम्पत्ति अपने दासों को सौंपते हैं। वे ऐसा कैसे करते हैं? उनको पृथ्वी के छोर तक राज्य संदेश प्रचार करने के द्वारा वे पोषित क्षेत्र में काम करते रहने का आदेश देते हैं। जैसे यीशु कहते हैं: “उसने एक को पाँच तोड़े, दूसरे को दो, तीसरे को एक, हर एक का उसकी सामर्थ के अनुसार दिया, और वह परदेश चला गया।”

      इस प्रकार आठ तोड़े—मसीह की सम्पत्ति—दासों की क़ाबिलियत, या आध्यात्मिक सम्भावनाओं के अनुसार बाँटे गए। दासों का अर्थ, शिष्यों के वर्ग हैं। पहली शताब्दी में, वह वर्ग जिसे पाँच तोड़े दिए गए स्पष्टतया प्रेरितों को शामिल करता है। यीशु आगे बताते हैं कि पाँच और दो तोड़े दिए गए दासों ने अपने राज्य के प्रचार और शिष्य बनाने के काम से तोड़ों को दुगना किया। लेकिन, एक तोड़ा दिया गया दास ने उसे ज़मीन में छुपा दिया।

      “बहुत दिनों के बाद,” यीशु आगे कहते हैं, “दासों का स्वामी आया और उन से लेखा लेने लगा।” इस २०वीं शताब्दी में, लगभग १,९०० साल बाद, यीशु लेखा लेने वापस आए, सो यह सचमुच, “बहुत दिनों के बाद” था। फिर यीशु व्याख्या करते हैं:

      “जिस को पाँच तोड़े मिले थे, उस ने पाँच तोड़े और लाकर कहा, ‘हे स्वामी, तू ने मुझे पाँच तोड़े सौंपे थे; देख, मैं ने पाँच तोड़े और कमाए हैं।’ उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य हे अच्छा और विश्‍वासयोग्य दास! तू थोड़े में विश्‍वासयोग्य रहा, मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा, अपने स्वामी के आनंद मे सम्भागी हो।’” जिस दास ने दो तोड़े पाए उसने भी उसी प्रकार अपने तोड़ों को दुगना किया, और उसने भी वैसा ही सराहना और इनाम पाया।

      लेकिन, कैसे ये विश्‍वासी दास अपने स्वामी के आनंद में शरीक होते हैं? उनके स्वामी, यीशु मसीह, का आनंद राज्य पाने में है जब वे परदेश अपने पिता के पास स्वर्ग में चले गए थे। आधुनिक समयों में, विश्‍वासयोग्य दास को राज्य की और भी ज़िम्मेदारियाँ सौंपे जाने में बड़ी ख़ुशी है, और जैसे वे अपनी पार्थिव अवधि पूरी करते हैं, उन्हें स्वर्गीय राज्य को पुनरुत्थित होने की पराकाष्ठा तक पहुँचनेवाली ख़ुशी है। पर तीसरे दास के बारे में क्या?

      “हे स्वामी, मैं जानता था कि तू कठोर मनुष्य है,” वह दास शिकायत करता है। “सो मैं डर गया और जाकर तेरा तोड़ा मिट्टी में छिपा दिया। देख, जो तेरा है वह यह है।” दास ने जानबूझकर प्रचार करने और शिष्य बनाने के द्वारा पोषित क्षेत्र में काम करने से इनक़ार कर दिया। इसलिए स्वामी उसे “दुष्ट और आलसी दास” पुकारकर उस पर न्याय सुनाते हैं: “वह तोड़ा उससे ले लो . . . और इस निकम्मे दास को बाहर अन्धेरे में फेंक दो, जहाँ उसका रोना और दाँत पीसना होगा।” जो इस दुष्ट दास वर्ग के हैं, बाहर फेंके जाने के कारण, किसी भी आध्यात्मिक आनंद से वंचित कर दिए गए हैं।

      यह उन सब के लिए एक गंभीर सबक़ है जो मसीह के अनुयायी होने का दावा करते हैं। अगर वे उनका सराहना और इनाम का आनंद उठाना चाहते हैं, और बाहर के अन्धकार में फेंके जाने और आख़िरी नाश से बचना चाहते हैं, उन्होंने प्रचार कार्य में पूरा हिस्सा लेने से अपने स्वर्गीय स्वामी की सम्पत्ति का बढ़ावे के लिए काम करना चाहिए। क्या आप इस संबंध में अध्यवसायी हैं?

      जब मसीह राज्य सत्ता में आते हैं

      यीशु अभी भी अपने प्रेरितों के साथ जैतून के पहाड़ पर हैं। उनकी उपस्थिती और रीति-व्यवस्था के अन्त का चिह्न के लिए उनकी विनती के जवाब में, वे अब उन्हें इन तीन दृष्टान्तों की श्रृंखला में आख़री दृष्टान्त बताते हैं। “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्गदूत उसके साथ आएँगे,” यीशु आरंभ करते हैं, “तब वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा।”

      इंसान स्वर्गदूतों को उनकी स्वर्गीय महिमा में नहीं देख सकते। तो स्वर्गदूतों के साथ मनुष्य के पुत्र, यीशु मसीह, का आगमन मानवी आँखों को अदृष्य होगा। आगमन वर्ष १९१४ में होता है। लेकिन किस उद्देश्‍य के लिए? यीशु समझाते हैं: “सब जातियाँ उसके सामने इकट्ठी की जाएँगीं; और जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। और वह भेड़ों को अपनी दहिनी ओर और बकरियों को बाईं ओर खड़ी करेगा।”

      कृपापात्र पक्ष के तरफ अलग रखे हुओं का क्या होगा, इसका वर्णन करते हुए यीशु कहते हैं: “तब राजा अपनी दहिनी ओर वालों से कहेगा, ‘हे मेरे पिता के धन्य लोगों, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिए तैयार किया हुआ है।’” इस दृष्टान्त की भेड़ें मसीह के साथ स्वर्ग में राज्य नहीं करेंगी, लेकिन वे पार्थिव प्रजा बनने से राज्य के अधिकारी होंगे। “जगत की आदि” तब हुई जब आदम और हव्वा ने पहले बच्चों को उत्पन्‍न किया, जो मनुष्यजाति की छुड़ौती के परमेश्‍वरीय प्रबंध से लाभ उठा सकते हैं।

      लेकिन क्यों भेड़ों को राजा के कृपापात्र दाहिनी ओर अलग किया गया? “क्योंकि मैं भूखा था,” राजा जवाब देते हैं, “और तुम ने मुझे खाने को दिया; मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी पिलाया। मैं परदेशी था, तुम ने मुझे अपने घर में ठहराया। मैं नंगा था, तुम ने मुझे कपड़े पहनाए। मैं बीमार था, तुम ने मेरी सुधि ली। मैं बन्दीगृह में था, तुम मुझ से मिलने आए।”

      चूँकि भेड़ें पृथ्वी पर हैं, वे जानना चाहते हैं कि कैसे उन्होंने स्वर्गीय राजा के लिए ऐसे भले काम किए। “हे प्रभु, हम ने कब तुझे भूखा देखा और खिलाया,” वे पुछते हैं, “या प्यासा देखा, और पिलाया? हम ने कब तुझे परदेशी देखा और अपने घर में ठहराया या नंगा देखा और कपड़े पहिनाए? हम ने कब तुझे बीमार या बन्दीगृह में देखा और तुझ से मिलने आए?”

      “मैं तुझ से सच कहता हूँ,” राजा जवाब देते हैं, “तुम ने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया।” १,४४,००० में से पृथ्वी पर शेष जन मसीह के भाई हैं जो उनके साथ स्वर्ग में राज्य करेंगे। यीशु कहते हैं कि उन भाइयों को भला करना उनको भला करने के बराबर है।

      इसके बाद, राजा बकरियों को संबोधित करते हैं। “हे स्रापित लोगों, मेरे सामने से उस अनन्त आग में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गई है। क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को नहीं दिया, मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी नहीं पिलाया। मैं परदेशी था, और तुम ने मुझे अपने घर में नहीं ठहराया; मैं नंगा था, और तुम ने मुझे कपड़े नहीं पहनाए; बीमार और बन्दीगृह में था, और तुम ने मेरी सुधि न ली।”

      लेकिन, बकरियाँ शिकायत करती हैं: “हे प्रभु, हम ने तुझे कब भूखा, या प्यासा, या परदेशी, या नंगा, या बीमार, या बन्दीगृह में देखा, और तेरी सेवा टहल न की?” बकरियों का प्रतिकूल दृष्टि से न्याय उसी आधार पर किया गया जिस तरह भेड़ों को अनुकूल दृष्टि से न्याय किया जाता है। “तुम ने जो [मेरे इन भाइयों से] इन छोटों से छोटों में से किसी एक के साथ नहीं किया,” यीशु जवाब देते हैं, “वह मेरे साथ भी नहीं किया।”

      इसलिए मसीह की राज्य सत्ता में उपस्थिति, बड़े क्लेश में इस दुष्ट रीति-व्यवस्था के अन्त से कुछ समय पहले, न्याय का समय होगा। बकरियाँ “अनन्त दण्ड में जाएँगे, परन्तु धर्मी [भेड़ें] अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।” मत्ती २४:२-२५:४६; १३:४०, ४९; मरकुस १३:३-३७; लूका २१:७-३६; १९:४३, ४४; १७:२०-३०; २ तीमुथियुस ३:१-५; यूहन्‍ना १०:१६; प्रकाशितवाक्य १४:१-३.

      ▪ क्या प्रेरितों का सवाल को सुझाता है, लेकिन स्पष्टतया उनके मनों में और क्या है?

      ▪ सा.यु. ७० में यीशु की भविष्यवाणी का कौनसा हिस्सा पूरा होता है, लेकिन तब क्या घटित नहीं होता है?

      ▪ यीशु की भविष्यवाणी की पहली पूर्ति कब है, और उसकी प्रमुख पूर्ति कब है?

      ▪ अपनी पहली और आख़री पूर्ति में घृणित वस्तु क्या है?

      ▪ बड़े क्लेश की आख़री पूर्ति यरूशलेम के नाश के साथ क्यों नहीं है?

      ▪ जगत की कौनसी हालतें मसीह की उपस्थिति को चिह्नित करती हैं?

      ▪ कब ‘पृथ्वी के सब कुल के लोग अपनी छाती पीटेंगे,’ लेकिन मसीह के अनुयायी क्या करते होंगे?

      ▪ अपने भावी शिष्यों को अन्त की निकटता समझने में मदद करने के लिए यीशु क्या दृष्टान्त देते हैं?

      ▪ अपने उन शिष्यों को जो अन्त के दिनों में जी रहे होंगे यीशु क्या चेतावनी देते हैं?

      ▪ दस कुँवारियाँ किसकी प्रतीक हैं?

      ▪ दूल्हे को विवाह में मसीही कलीसिया कब वादा किया गया, लेकिन शादी की दावत में अपनी दुल्हन को ले जाने दूल्हा कब पहुँचता है?

      ▪ तेल किसे चित्रित करता है, और उसका होना समझदार कुँवारियों को क्या करने के क़ाबिल बनाता है?

      ▪ शादी की दावत कहाँ होती है?

      ▪ मूर्ख कुँवारियाँ कौनसे शानदार इनाम को खो देती हैं, और उनकी दशा क्या है?

      ▪ तोड़ों का दृष्टान्त कौनसा सबक़ देता है?

      ▪ दास कौन हैं, और वह सम्पत्ति क्या है जिससे वे सौंपे गए हैं?

      ▪ स्वामी लेखा लेने कब आते हैं, और वह क्या पाता है?

      ▪ वह आनंद क्या है जिस में विश्‍वासयोग्य दास प्रवेश करते हैं, और दुष्ट, तीसरा दास, के साथ क्या होता है?

      ▪ मसीह की उपस्थिति क्यों अदृश्‍य होना चाहिए, और उस समय वे क्या काम करते हैं?

      ▪ किस अर्थ में भेड़ें राज्य के वारिस होते हैं?

      ▪ “जगत की आदि” कब हुई?

      ▪ लोगों का भेड़ या बकरी होने का न्याय किस आधार पर किया जाता है?

  • यीशु की आख़री फसह क़रीब है
    वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
    • अध्याय ११२

      यीशु की आख़री फसह क़रीब है

      जैसे मँगलवार, निसान ११, समाप्त हो रहा है, यीशु जैतून के पहाड़ पर शिष्यों को शिक्षा देना ख़त्म करते हैं। यह कितना व्यस्त, कठिन दिन था! अब, शायद रात के लिए बैतनियाह को लौटते समय, वे अपने प्रेरितों को बताते हैं: “तुम जानते हो, कि दो दिन के बाद फसह का पर्व होगा, और मनुष्य का पुत्र स्तंभ पर चढ़ाए जाने के लिए पकड़वाया जाएगा।”—NW.

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