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  • वहाँ सेवा करना जहाँ मेरी ज़्यादा ज़रूरत थी
    प्रहरीदुर्ग—2001 | फरवरी 1
    • सन्‌ 1950 में हमारी पहली बच्ची, नन्ही डैरिल का जन्म हुआ। हमारे कुल पाँच बच्चे हुए। हमारा दूसरा बच्चा डॆरिक ढाई साल की उम्र में, स्पाइनल मेनिंगजाइटिस की वजह से चल बसा। लॆसली का जन्म 1956 में और इवरॆट का 1958 में हुआ। डॉरोथी और मैंने बाइबल सच्चाई के मुताबिक अपने बच्चों की परवरिश करने में कड़ी मेहनत की। हमने हर हफ्ते फैम्ली बाइबल स्टडी करने, और इसे बच्चों के लिए मज़ेदार बनाने की हमेशा कोशिश की। जब डैरिल, लॆसली और इवरॆट बस छोटे ही थे, तब हम उन्हें हर हफ्ते रिसर्च करने के लिए सवाल देते और अगले हफ्ते उसका जवाब पूछते। वे घर-घर के प्रचार के काम को नाटक के रूप में भी पेश करते थे। एक बड़ी-सी अलमारी में चला जाता और घरवाले का किरदार निभाता। दूसरा बाहर खड़ा होकर दरवाज़ा खटखटाता। वे पक्के घरवाले की तरह बातें करते और एक दूसरे को मुश्‍किल में भी डाल देते थे। इससे उनके दिल में प्रचार काम के लिए प्यार जाग गया। हम भी प्रचार में लगातार उनके साथ काम करते थे।

      सन्‌ 1973 में जब हमारे सबसे छोटे बेटे एल्टन का जन्म हुआ, तब डॉरोथी की उम्र लगभग 50 और मेरी लगभग 60 साल थी। कलीसिया के भाई-बहन हमें इब्राहीम और सारा बुलाया करते थे! (उत्पत्ति 17:15-17) हमारे दोनों बड़े बेटे एल्टन को अकसर अपने साथ प्रचार में ले जाते थे। जब अलग-अलग परिवार के सभी सदस्य एक साथ प्रचार के लिए निकलते हैं और दूसरों को बाइबल सच्चाई सुनाते हैं तो इससे लोगों को एक ज़बरदस्त गवाही मिलती है। एल्टन के बड़े भाई बारी-बारी से उसे अपने कंधे पर उठा लेते थे और उसके हाथ में एक ट्रैक्ट थमा देते थे। ज़्यादातर लोगों पर इसका अच्छा असर पड़ता था क्योंकि जब वे दरवाज़ा खोलते और इस नन्हे से प्यारे बच्चे को अपने भाई के कंधे पर बैठा देखते, तो अकसर हर व्यक्‍ति राज्य संदेश सुनता था। लड़कों ने एल्टन को सिखा रखा था कि बातचीत खत्म होने पर वह कुछ कहे और घरवाले को ट्रैक्ट दे। इसी तरह उसने प्रचार करना शुरू किया।

      इन सालों के दौरान हमने बहुत लोगों को यहोवा को जानने में मदद दी है। 1975 के बाद हम लूइविल से शलबीविल, कॆनटॆकी आ गए क्योंकि यहाँ की एक कलीसिया में मदद की ज़रूरत थी। जब हम वहाँ थे, तो हमने कलीसिया को न सिर्फ बढ़ते देखा, बल्कि हमने एक किंगडम हॉल के लिए जगह ढूँढ़ने और उसे बनाने में भी मदद की। बाद में हमें पास की एक दूसरी कलीसिया में सेवा करने के लिए कहा गया।

      परिवार के सदस्य कौन-सी राह पकड़े, इसका कोई भरोसा नहीं

      काश! मैं यह कह सकता कि हमारे सभी बच्चे आज भी यहोवा की राह पर चल रहे हैं, मगर अफसोस, ऐसा नहीं है। बड़े होने पर और घर से दूर जाने के बाद, हमारे चार में से तीन बच्चों ने सच्चाई की राह छोड़ दी। मगर, हमारे एक बेटे इवरॆट ने मेरी तरह पूरे समय की सेवकाई शुरू की। बाद में उसने न्यू यॉर्क में यहोवा के साक्षियों के वर्ल्ड हैडक्वार्टर में सेवा की और 1984 में गीलियड की 77वीं क्लास में हाज़िर होने का न्योता स्वीकार किया। वहाँ से ग्रैजुएट होने के बाद, वह सीएरा-लीओन, पश्‍चिम अफ्रीका में सेवा करने के लिए चला गया। 1988 में उसने मारिआन से शादी कर ली जो बेलजियम में पायनियरिंग कर रही थी। तब से वे दोनों मिशनरी सेवा कर रहे हैं।

      अपने बच्चे को सच्चाई की राह से दूर जाते देख हर माता-पिता का दिल टूट जाता है। हमारा भी वही हाल हुआ जब हमने अपने तीन बच्चों को उस राह से दूर जाते हुए देखा जिस पर चलने से आज ज़िंदगी को संतुष्टि मिलती है और भविष्य में पृथ्वी पर हमेशा-हमेशा जीने की आशा। कभी-कभी तो इसके लिए मैं खुद को ही दोषी मानता हूँ। मगर फिर मुझे इस बात से तसल्ली मिलती है कि खुद यहोवा के ही कुछ आत्मिक बेटों या स्वर्गदूतों ने उसकी सेवा करनी छोड़ दी थी, हालाँकि यहोवा ने उन्हें प्यार से ताड़ना दी, उन्हें दया दिखायी थी। और यहोवा तो कभी गलती ही नहीं करता। (व्यवस्थाविवरण 32:4; यूहन्‍ना 8:44; प्रकाशितवाक्य 12:4, 9) इससे मैंने यह सीखा कि यहोवा की राह के मुताबिक माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश करने की चाहे कितनी भी कोशिश और मेहनत क्यों न करें, इसके बावजूद भी कुछ बच्चे सच्चाई को अपनाने से इंकार कर सकते हैं।

      जिस तरह तेज़ हवा चलने पर एक पेड़ थोड़ा-बहुत झुक जाता है, उसी तरह जब हम अलग-अलग दुःख-तकलीफों और समस्याओं का सामना करते हैं, तो हमें भी कभी-कभी स्थिति के मुताबिक अपनी ज़िंदगी में फेरबदल करना पड़ता है। कई सालों के दौरान मुझे यह एहसास हुआ है कि लगातार बाइबल स्टडी करने से और सभाओं में हाज़िर होने से मुझे ज़रूरत पड़ने पर इस तरह झुकने और आध्यात्मिक रूप से ज़िंदा और मज़बूत बने रहने में मदद मिली है। जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ती है और मैं अपनी पिछली गलतियों के बारे में सोचता हूँ, तो मैं उनमें कुछ फायदों को देखने की कोशिश करता हूँ। अगर हम बस वफादार बने रहते हैं, तो ये अनुभव हमारे आध्यात्मिक विकास के लिए मददगार साबित होते हैं। अगर हम अपनी गलतियों से सीखने की कोशिश करते हैं, तो ज़िंदगी के कटु अनुभवों से भी हम मीठे फल पा सकते हैं।—याकूब 1:2, 3.

      अब मैं और डॉरोथी यहोवा की सेवा में उतना नहीं कर पा रहे हैं जितना करने की हमें इच्छा है, क्योंकि हमारी पहली जैसी न सेहत रही, ना ही ताकत। मगर हम अपने अज़ीज़ मसीही भाई-बहनों के सहारे के लिए बेहद शुक्रगुज़ार हैं। लगभग हर मीटिंग में, भाई-बहन हमें यह बताते हैं कि वे हमारी मौजूदगी की कितनी कदर करते हैं। और वे हर तरह से हमारी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, चाहे ये घर की या कार की मरम्मत करने जैसे काम ही क्यों न हों।

      कभी-कभार हम ऑक्जिलियरी पायनियरिंग कर पाते हैं और दिलचस्पी दिखानेवाले लोगों के साथ बाइबल स्टडी करते हैं। सबसे ज़्यादा खुशी तो हमें तब होती है जब हमें अफ्रीका में सेवा कर रहे अपने बेटे से कोई खबर मिलती है। आज भी हम फैमिली बाइबल स्टडी करते हैं, बस फरक इतना है कि आजकल इसमें सिर्फ हम दोनों ही होते हैं। यहोवा की सेवा में हम इतने साल बिता पाए हैं, इससे हमें बेहद खुशी होती है। और यहोवा की यह बात हमारा हौसला बुलंद करती है कि वह ‘हमारे काम, और उस प्रेम को नहीं भूलेगा, जो हम ने उसके नाम के लिये दिखाया है।’—इब्रानियों 6:10.

  • एक ऑप्टीशियन ने बीज बोया
    प्रहरीदुर्ग—2001 | फरवरी 1
    • एक ऑप्टीशियन ने बीज बोया

      लवीफ, यूक्रेन में रहनेवाले एक ऑप्टीशियन ने जो मेहनत की थी, उसका लगभग 2000 किलोमीटर दूर हाइफा, इस्राएल में रूसी भाषा बोलनेवाले यहोवा के साक्षियों की कलीसिया की शुरुआत के साथ क्या लेना-देना है? यह ऐसी कहानी है जो बाइबल के सभोपदेशक 11:6 में कही गयी इस बात को सही साबित करती है कि “भोर को अपना बीज बो, और सांझ को भी अपना हाथ न रोक; क्योंकि तू नहीं जानता कि कौन सुफल होगा।”

      यह कहानी सन्‌ 1990 में शुरू हुई जब इला नाम की एक यहूदी युवती, लवीफ में रहती थी। इला और उसका परिवार यूक्रेन छोड़कर, इस्राएल में जाकर बसने की तैयारी कर रहा था। वहाँ जाने से कुछ हफ्ते पहले, इला एक ऑप्टीशियन के पास गयी। वह ऑप्टीशियन यहोवा का एक साक्षी था। उस समय यूक्रेन में साक्षियों के काम पर प्रतिबंध लगा हुआ था। इसके बावजूद, उस ऑप्टीशियन ने पहल की और इला को बाइबल और अपने विश्‍वास के बारे में बताया। जब उसने कहा कि परमेश्‍वर का एक नाम है तो इला

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