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अपने घराने में शान्ति बनाए रखिएपारिवारिक सुख का रहस्य
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अध्याय ग्यारह
अपने घराने में शान्ति बनाए रखिए
१. कौन-सी कुछ बातें परिवारों में विभाजन का कारण बन सकती हैं?
सुखी हैं वे जो उन परिवारों से हैं जिनमें प्रेम, सहानुभूति, और शान्ति है। आशा करते हैं कि आपका परिवार ऐसा ही है। दुःख की बात है कि अनगिनत परिवार इस विवरण पर पूरे नहीं बैठते और एक-न-एक कारण से विभाजित हैं। कौन-सी बात घरानों को विभाजित करती है? इस अध्याय में हम तीन बातों पर चर्चा करेंगे। कुछ परिवारों में, सभी सदस्यों का धर्म एक नहीं होता। दूसरों में, बच्चों के जैविक माता-पिता शायद एक न हों। और दूसरों में, प्रतीत होता है कि जीविका कमाने का संघर्ष या और भौतिक वस्तुओं का मोह परिवार के सदस्यों को अलग कर देता है। फिर भी, जो परिस्थितियाँ एक घराने को विभाजित कर देती हैं वे शायद दूसरे को प्रभावित न करें। किस बात से फ़र्क पड़ता है?
२. पारिवारिक जीवन में मार्गदर्शन के लिए कुछ लोग कहाँ देखते हैं, लेकिन ऐसे मार्गदर्शन का सर्वोत्तम स्रोत क्या है?
२ दृष्टिकोण एक तत्व है। यदि आप सचमुच दूसरे व्यक्ति का दृष्टिकोण समझने की कोशिश करते हैं, तो इसकी संभावना अधिक है कि आप देख पाएँगे कि एक संयुक्त घराने को कैसे सुरक्षित रखें। दूसरा तत्व है आपके मार्गदर्शन का स्रोत। अनेक लोग सहकर्मियों, पड़ोसियों, समाचार-पत्रों के स्तंभ-लेखकों, या अन्य मानव मार्गदर्शकों की सलाह पर चलते हैं। लेकिन, कुछ लोगों ने पता लगाया है कि परमेश्वर का वचन उनकी स्थिति के बारे में क्या कहता है, और फिर जो उन्होंने सीखा उस पर अमल किया। ऐसा करना एक परिवार को घराने में शान्ति बनाए रखने में कैसे मदद दे सकता है?—२ तीमुथियुस ३:१६, १७.
यदि आपके पति का धर्म भिन्न है
दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश कीजिए
३. (क) भिन्न धर्म के व्यक्ति से विवाह करने के सम्बन्ध में बाइबल की सलाह क्या है? (ख) यदि एक विवाह-साथी विश्वासी है और दूसरा नहीं, तो कौन-से कुछ मूल सिद्धान्त लागू होते हैं?
३ बाइबल भिन्न धार्मिक विश्वास के व्यक्ति के साथ विवाह करने के विरुद्ध कड़ी सलाह देती है। (व्यवस्थाविवरण ७:३, ४; १ कुरिन्थियों ७:३९) परन्तु, हो सकता है कि आपने अपने विवाह के बाद बाइबल से सत्य सीखा है लेकिन आपके पति ने नहीं सीखा। तब क्या? निःसंदेह, विवाह-वचन फिर भी मान्य हैं। (१ कुरिन्थियों ७:१०) बाइबल विवाह बंधन के स्थायित्व पर बल देती है और विवाहित लोगों को प्रोत्साहित करती है कि अपने मतभेदों से दूर भागने के बजाय स्वयं मतभेदों को दूर भगाएँ। (इफिसियों ५:२८-३१; तीतुस २:४, ५) लेकिन, यदि आपका पति बाइबल के धर्म का पालन करने के लिए आपका कड़ा विरोध करता है, तब क्या? वह शायद आपको कलीसिया सभाओं में जाने से रोकने की कोशिश करे, या वह शायद कहे कि वह नहीं चाहता कि उसकी पत्नी घर-घर जाकर धर्म के बारे में बात करे। आप क्या करेंगी?
४. यदि उसके पति का धर्म भिन्न है, तो एक पत्नी किस रीति से समानुभूति दिखा सकती है?
४ अपने आपसे पूछिए, ‘मेरा पति ऐसा क्यों महसूस करता है?’ (नीतिवचन १६:२०, २३) यदि उसे वास्तव में यह नहीं समझ आता कि आप क्या कर रही हैं, तो वह शायद आपके बारे में चिन्ता करे। या उस पर शायद रिश्तेदारों की ओर से दबाव हो, क्योंकि अब आप अमुक प्रथाओं में हिस्सा नहीं लेतीं जो उनके लिए महत्त्वपूर्ण हैं। “घर में अकेले, मैं ने त्यागा हुआ महसूस किया,” एक पति ने कहा। इस पुरुष को लगा कि वह एक धर्म के हाथ अपनी पत्नी को खो रहा था। फिर भी घमंड ने उसे यह स्वीकार करने से रोका कि उसे अकेलापन खल रहा था। आपके पति को शायद इस आश्वासन की ज़रूरत हो कि यहोवा के प्रति आपके प्रेम का यह अर्थ नहीं कि अब आप अपने पति को पहले से कम प्रेम करती हैं। निश्चित ही उसके साथ समय बिताइए।
५. जिस पत्नी के पति का धर्म भिन्न है उसे कैसा संतुलन रखना चाहिए?
५ लेकिन, यदि आप स्थिति को बुद्धिमानी के साथ संभालने जा रही हैं, तो एक इससे भी महत्त्वपूर्ण बात पर विचार किया जाना चाहिए। परमेश्वर का वचन पत्नियों से आग्रह करता है: “जैसा प्रभु में उचित है, वैसा ही अपने अपने पति के आधीन रहो।” (कुलुस्सियों ३:१८) अतः, यह स्वतंत्रता की आत्मा के विरुद्ध चिताता है। इसके साथ-साथ, “जैसा प्रभु में उचित है” कहने के द्वारा, यह शास्त्रवचन सूचित करता है कि अपने पति के प्रति अधीनता में प्रभु के प्रति अधीनता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। एक संतुलन की ज़रूरत है।
६. एक मसीही पत्नी को कौन-से सिद्धान्त मन में रखने चाहिए?
६ एक मसीही के लिए, कलीसिया सभाओं में उपस्थित होना और अपने बाइबल-आधारित विश्वास के बारे में दूसरों को साक्षी देना सच्ची उपासना के महत्त्वपूर्ण पहलू हैं जिनकी उपेक्षा नहीं की जानी है। (रोमियों १०:९, १०, १४; इब्रानियों १०:२४, २५) फिर, यदि एक मनुष्य आपको परमेश्वर की एक सुनिश्चित माँग को पूरा न करने का सीधा आदेश देता, तो आप क्या करतीं? यीशु मसीह के प्रेरितों ने घोषित किया: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।” (प्रेरितों ५:२९) उनका उदाहरण एक सिद्धान्त के रूप में जीवन की अनेक स्थितियों में लागू होता है। क्या यहोवा के प्रति प्रेम आपको प्रेरित करेगा कि उसे वह भक्ति दें जो उचित ही उसे दी जानी चाहिए? साथ ही, क्या आपके पति के प्रति आपका प्रेम और आदर आपको यह भक्ति एक ऐसी रीति से करने की कोशिश करने के लिए प्रेरणा देगा जो आपके पति को स्वीकार्य है?—मत्ती ४:१०; १ यूहन्ना ५:३.
७. एक मसीही पत्नी का क्या दृढ़-निश्चय होना चाहिए?
७ यीशु ने बताया कि यह हमेशा संभव नहीं होता। उसने चिताया कि सच्ची उपासना के विरोध के कारण, कुछ परिवारों के विश्वासी सदस्य कटा-कटा महसूस करते, मानो उनके और बाक़ी के परिवार के बीच एक तलवार चल गयी हो। (मत्ती १०:३४-३६) जापान में एक स्त्री ने इसका अनुभव किया। उसके पति ने ११ साल उसका विरोध किया। वह कठोरता से उसके साथ दुर्व्यवहार करता था और प्रायः उसे घर के बाहर बंद कर देता था। लेकिन वह यत्न करती रही। मसीही कलीसिया में मित्रों ने उसकी मदद की। वह निरन्तर प्रार्थना करती रही और उसने १ पतरस २:२० से काफ़ी प्रोत्साहन प्राप्त किया। यह मसीही स्त्री विश्वस्त थी कि यदि वह दृढ़ रही, तो किसी दिन उसका पति उसके साथ मिलकर यहोवा की सेवा करेगा। और ऐसा ही हुआ।
८, ९. अपने पति के सामने अनावश्यक बाधाएँ नहीं डालने के लिए एक पत्नी को कैसे व्यवहार करना चाहिए?
८ अपने साथी की मनोवृत्ति को प्रभावित करने के लिए आप अनेक व्यावहारिक कार्य कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, यदि आपका पति आपके धर्म का विरोध करता है, तो अन्य क्षेत्रों में उसे शिक़ायत के उचित कारण मत दीजिए। घर को साफ़ रखिए। अपने व्यक्तिगत रूप की देखभाल कीजिए। बहुतायत में प्रेम और मूल्यांकन की अभिव्यक्तियाँ कीजिए। आलोचना करने के बजाय, समर्थन दीजिए। दिखाइए कि मुखियापन के लिए आप उसकी ओर देखती हैं। यदि आपको लागता है कि आपके साथ अन्याय किया गया है तो बदला मत लीजिए। (१ पतरस २:२१, २३) मानव अपरिपूर्णता को मत भूलिए, और यदि एक विवाद उठता है तो नम्रतापूर्वक पहले आप क्षमा माँगिए।—इफिसियों ४:२६.
९ सभाओं में आपकी उपस्थिति को उसे देर से भोजन देने का कारण मत बनने दीजिए। साथ ही, आप शायद मसीही सेवकाई में उस समय हिस्सा लेने का चुनाव करें जब आपका पति घर में नहीं होता है। जब पति नहीं सुनना चाहता, तो एक मसीही पत्नी के लिए यह बुद्धिमानी की बात है कि उसे प्रचार न करे। इसके बजाय, वह प्रेरित पतरस की सलाह को मानती है: “हे पत्नियो, तुम भी अपने पति के आधीन रहो। इसलिये कि यदि इन में से कोई ऐसे हों जो वचन को न मानते हों, तौभी तुम्हारे भय सहित चालचलन को देखकर बिना वचन के अपनी अपनी पत्नी के चालचलन के द्वारा खिंच जाएं।” (१ पतरस ३:१, २) मसीही पत्नियाँ परमेश्वर की आत्मा के फलों को और पूर्ण रीति से प्रदर्शित करने के लिए कार्य करती हैं।—गलतियों ५:२२, २३.
जब पत्नी एक सक्रिय मसीही नहीं है
१०. यदि पत्नी का धर्म भिन्न है, तो एक विश्वासी पति को उसके साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए?
१० यदि पति सक्रिय मसीही है और पत्नी नहीं, तब क्या? बाइबल ऐसी स्थितियों के लिए मार्गदर्शन देती है। वह कहती है: “यदि किसी भाई की पत्नी विश्वास न रखती हो, और उसके साथ रहने से प्रसन्न हो, तो वह उसे न छोड़े।” (१ कुरिन्थियों ७:१२) वह पतियों को यह प्रबोधन भी देती है: “अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो।”—कुलुस्सियों ३:१९.
११. यदि पत्नी एक सक्रिय मसीही नहीं है, तो एक पति कैसे समझदारी दिखा सकता है और व्यवहार-कुशलता से अपनी पत्नी पर मुखियापन चला सकता है?
११ यदि आप एक ऐसी पत्नी के पति हैं जिसका धर्म आपके धर्म से भिन्न है, तो इस बात पर ख़ासकर ध्यान दीजिए कि अपनी पत्नी को आदर दिखाएँ और उसकी भावनाओं का ध्यान रखें। एक वयस्क होने के नाते, वह इस योग्य है कि उसे अपने धार्मिक विश्वासों को मानने के लिए कुछ हद तक स्वतंत्रता दी जाए, यद्यपि आप उनसे सहमत नहीं हैं। जब पहली बार आप उससे अपने धर्म के बारे में बात करते हैं, तो अपेक्षा मत कीजिए कि वह कोई नयी बात अपनाने के लिए अपने पुराने विश्वासों को त्याग दे। एकदम से यह कहने के बजाय कि जिन प्रथाओं को वह और उसका परिवार एक लम्बे अरसे से प्रिय समझते आए हैं वे झूठी हैं, उसके साथ धैर्यपूर्वक शास्त्र में से तर्क करने का प्रयास कीजिए। यदि आप कलीसिया की गतिविधियों में बहुत समय लगाते हैं, तो हो सकता है कि वह उपेक्षित महसूस करती है। वह शायद यहोवा की सेवा करने के आपके प्रयासों का विरोध करे, लेकिन मूल संदेश शायद इतना ही हो: “मैं आपका अधिक समय चाहती हूँ!” धीरज धरिए। आपकी प्रेममय विचारशीलता से, समय आने पर उसे सच्ची उपासना को अपनाने में मदद मिल सकती है।—कुलुस्सियों ३:१२-१४; १ पतरस ३:८, ९.
बच्चों को प्रशिक्षण देना
१२. यदि पति-पत्नी का धर्म भिन्न है, तो भी उनके बच्चों के प्रशिक्षण में शास्त्रीय सिद्धान्तों को कैसे लागू किया जाना चाहिए?
१२ एक ऐसे घराने में जो उपासना में संयुक्त नहीं है, कभी-कभी बच्चों का धार्मिक शिक्षण एक वाद-विषय बन जाता है। शास्त्रीय सिद्धान्तों को कैसे लागू किया जाना चाहिए? बाइबल बच्चों को शिक्षा देने की मुख्य ज़िम्मेदारी पिता को सौंपती है, लेकिन माँ की भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। (नीतिवचन १:८. उत्पत्ति १८:१९; व्यवस्थाविवरण ११:१८, १९ से तुलना कीजिए।) यदि पिता मसीह के मुखियापन को स्वीकार नहीं करता, तो भी वह परिवार का सिर है।
१३, १४. यदि पति बच्चों को मसीही सभाओं में ले जाने या उनके साथ अध्ययन करने से अपनी पत्नी को रोकता है, तो वह क्या कर सकती है?
१३ यदि माँ बच्चों को धार्मिक बातों में शिक्षा देती है, तो कुछ अविश्वासी पिता इसका विरोध नहीं करते। दूसरे करते हैं। यदि आपका पति बच्चों को कलीसिया सभाओं में ले जाने की अनुमति नहीं देता अथवा आपको घर में भी उनके साथ बाइबल का अध्ययन नहीं करने देता, तब क्या? अब आपको कई बाध्यताओं के बीच संतुलन करना है—यहोवा परमेश्वर के प्रति, आपके पतिवत् सिर के प्रति, और आपके प्रिय बच्चों के प्रति आपकी बाध्यता। आप इनके बीच सामंजस्य कैसे बिठा सकती हैं?
१४ आप निश्चित ही इस विषय में प्रार्थना करेंगी। (फिलिप्पियों ४:६, ७; १ यूहन्ना ५:१४) लेकिन अंततः, आप ही को यह फ़ैसला करना है कि कौन-सा मार्ग लें। यदि आप व्यवहार-कुशलता से क़दम उठाती हैं, और अपने पति को यह स्पष्ट कर देती हैं कि आप उसके मुखियापन को चुनौती नहीं दे रही हैं, तो आगे चलकर उसका विरोध शायद कम हो जाए। यदि आपका पति आपको अपने बच्चों को सभाओं में ले जाने या उनके साथ औपचारिक बाइबल अध्ययन करने से रोकता है, तो भी आप उनको सिखा सकती हैं। अपने दैनिक वार्तालाप और अपने अच्छे उदाहरण के द्वारा, यत्नपूर्वक उन्हें कुछ हद तक सिखाने की कोशिश कीजिए कि यहोवा के लिए प्रेम, उसके वचन में विश्वास, माता-पिता के लिए आदर—जिसमें उनका पिता सम्मिलित है—दूसरे लोगों के लिए प्रेममय चिन्ता, और परिश्रमी कार्य आदतों के लिए मूल्यांकन दिखाएँ। कुछ समय बाद, पिता शायद अच्छे परिणामों को देखे और हो सकता है कि आपके प्रयासों के महत्त्व का मूल्यांकन करे।—नीतिवचन २३:२४.
१५. बच्चों की शिक्षा में एक विश्वासी पिता की क्या ज़िम्मेदारी है?
१५ यदि आप एक विश्वासी पति हैं और आपकी पत्नी विश्वासी नहीं, तो आपको “प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में” अपने बच्चों का पालन-पोषण करने की ज़िम्मेदारी उठानी है। (इफिसियों ६:४, NHT) जब आप ऐसा करते हैं, तब निःसंदेह आपको अपनी पत्नी के साथ व्यवहार करते समय कृपालु, प्रेममय, और कोमल होना चाहिए।
यदि आपका और आपके माता-पिता का धर्म भिन्न है
१६, १७. यदि बच्चे अपने माता-पिता के धर्म से भिन्न धर्म अपनाते हैं, तो उन्हें कौन-से बाइबल सिद्धान्त याद रखने चाहिए?
१६ अब यह बात असामान्य नहीं रही कि नाबालिग़ बच्चे भी अपने माता-पिता के धार्मिक विचारों से भिन्न धार्मिक विचार अपना लेते हैं। क्या आपने ऐसा किया है? यदि किया है, तो बाइबल आपके लिए सलाह देती है।
१७ परमेश्वर का वचन कहता है: “प्रभु में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। अपनी माता और पिता का आदर कर।” (इफिसियों ६:१, २) इसमें माता-पिता के प्रति हितकर आदर सम्मिलित है। लेकिन, जबकि माता-पिता का आज्ञापालन महत्त्वपूर्ण है, यह सच्चे परमेश्वर को ध्यान में रखे बिना नहीं किया जाना चाहिए। जब बच्चा इतना बड़ा हो जाता है कि वह फ़ैसले करना शुरू कर दे, तब उस पर अपने कार्यों का अधिक उत्तरदायित्व आ जाता है। यह लौकिक नियम के सम्बन्ध में ही नहीं, बल्कि ख़ासकर ईश्वरीय नियम के सम्बन्ध में भी सही है। “हम में से हर एक परमेश्वर को अपना अपना लेखा देगा,” बाइबल कहती है।—रोमियों १४:१२.
१८, १९. यदि बच्चों का धर्म उनके माता-पिता के धर्म से भिन्न है, तो वे उनके विश्वास को ज़्यादा अच्छी तरह से समझने में अपने माता-पिता की मदद कैसे कर सकते हैं?
१८ यदि आपके विश्वास आपको अपने जीवन में परिवर्तन करने के लिए प्रेरित करते हैं, तो अपने माता-पिता के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश कीजिए। यदि आप बाइबल शिक्षाओं को सीखने और उन पर अमल करने के कारण, आपसे जो माँग वे करते हैं उसमें अधिक आदरपूर्ण, अधिक आज्ञाकारी, और अधिक परिश्रमी हो जाते हैं, तो संभवतः वे प्रसन्न होंगे। लेकिन, यदि आपका नया धर्म आपको उन विश्वासों और प्रथाओं को अस्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है जो व्यक्तिगत रूप से उन्हें प्रिय हैं, तो वे शायद महसूस करें कि आप उस विरासत को ठुकरा रहे हैं जो उन्होंने आपको देनी चाही। यदि जो आप कर रहे हैं वह समुदाय में लोकप्रिय नहीं है अथवा यदि वह ऐसे कार्यों से आपका ध्यान दूर करता है जो उनके विचार से आपको भौतिक रूप से समृद्ध होने में मदद दे सकते हैं, तो वे शायद आपके हित के लिए भी डरें। घमंड भी एक रुकावट हो सकती है। वे शायद महसूस करें कि आप असल में यह कह रहे हैं कि आप सही हैं और वे ग़लत हैं।
१९ इसलिए, यथाशीघ्र यह प्रबन्ध करने की कोशिश कीजिए कि आपके माता-पिता स्थानीय कलीसिया के कुछ प्राचीनों या अन्य प्रौढ़ साक्षियों से मिलें। अपने माता-पिता को प्रोत्साहित कीजिए कि एक राज्यगृह आएँ और स्वयं सुनें कि क्या चर्चा की जाती है और अपनी आँखों से देखें कि यहोवा के साक्षी किस क़िस्म के लोग हैं। कुछ समय बाद, आपके माता-पिता की मनोवृत्ति शायद नरम हो जाए। जब माता-पिता कड़ा विरोध करते हैं, बाइबल साहित्य नष्ट कर देते हैं, और बच्चों को मसीही सभाओं में जाने से रोक देते हैं, तब भी प्रायः कहीं और पढ़ने, संगी मसीहियों से बात करने, और दूसरों को अनौपचारिक रूप से साक्षी देने और उनकी मदद करने के अवसर होते हैं। आप यहोवा से प्रार्थना भी कर सकते हैं। इससे अधिक करने के लिए कुछ युवाओं को तब तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है जब तक कि वे इतने बड़े न हो जाएँ कि पारिवारिक घर से बाहर रह सकें। लेकिन, घर पर स्थिति चाहे जो भी हो, ‘अपनी माता और पिता का आदर करना’ मत भूलिए। घर की शान्ति में योग देने के लिए अपना भाग अदा कीजिए। (रोमियों १२:१७, १८) सबसे बढ़कर, परमेश्वर के साथ शान्ति का प्रयत्न कीजिए।
एक सौतेला-जनक होने की चुनौती
२०. यदि उनका पिता या माता सौतेली है, तो बच्चों में शायद कैसी भावनाएँ हों?
२० अनेक घरों में वह स्थिति जो सबसे बड़ी चुनौती प्रस्तुत करती है धार्मिक नहीं बल्कि जैविक है। आज अनेक घरानों में ऐसे बच्चे हैं जो एक या दोनों माता-पिता के पिछले विवाहों से हैं। एक ऐसे परिवार में, बच्चे शायद जलन और कुढ़न या संभवतः निष्ठाओं के अंतर्द्वन्द्व का अनुभव करें। फलस्वरूप, जब सौतेला-जनक एक अच्छा पिता या माता होने का निष्कपट प्रयास करता है, तब वे शायद उसे झिड़क दें। कौन-सी बात एक सौतेले-परिवार को सफल होने में मदद दे सकती है?
चाहे सगे जनक हों या सौतेले-जनक, मार्गदर्शन के लिए बाइबल पर भरोसा कीजिए
२१. अपनी ख़ास परिस्थितियों के बावजूद, सौतेले माता-पिताओं को मदद के लिए बाइबल में दिए गए सिद्धान्तों की ओर क्यों देखना चाहिए?
२१ इस बात को समझिए कि ख़ास परिस्थितियों के बावजूद, जिन बाइबल सिद्धान्तों से अन्य घरानों में सफलता मिलती है वे यहाँ भी लागू होते हैं। उन सिद्धान्तों की उपेक्षा करना शायद उस समय के लिए समस्या को सुलझाता प्रतीत हो, लेकिन संभवतः बाद में मनोव्यथा का कारण बनेगा। (भजन १२७:१; नीतिवचन २९:१५) बुद्धि और समझ विकसित कीजिए—दीर्घकालिक लाभों को ध्यान में रखते हुए ईश्वरीय सिद्धान्तों को लागू करने की बुद्धि, और यह पहचानने की समझ कि परिवार के सदस्य क्यों अमुक बात कहते और करते हैं। समानुभूति की भी ज़रूरत है।—नीतिवचन १६:२१; २४:३; १ पतरस ३:८.
२२. बच्चों को एक सौतेले-जनक को स्वीकार करना शायद क्यों कठिन लगे?
२२ यदि आप एक सौतेले-जनक हैं, तो आपको शायद याद हो कि परिवार के एक मित्र के रूप में बच्चे संभवतः आपका स्वागत करते थे। लेकिन जब आप उनके सौतेले-जनक बन गए, तो उनकी मनोवृत्ति शायद बदल गयी हो। उस जैविक जनक को याद करते हुए जो अब उनके साथ नहीं रह रहा है, बच्चों में शायद निष्ठाओं का अंतर्द्वन्द्व चल रहा हो। संभवतः वे महसूस करते हैं कि जो स्नेह उन्हें अनुपस्थित जनक के लिए है उसे आप छीनना चाहते हैं। कभी-कभी, वे शायद रुखाई से आपको याद दिला दें कि आप उनके पिता या उनकी माता नहीं हैं। ऐसे कथन चोट पहुँचाते हैं। फिर भी, ‘अपने मन में उतावली से क्रोधित न हों।’ (सभोपदेशक ७:९) बच्चों की भावनाओं से व्यवहार करने के लिए समझ और समानुभूति की ज़रूरत होती है।
२३. सौतेले बच्चों वाले परिवार में अनुशासन कैसे दिया जा सकता है?
२३ ये गुण अनुशासन देते समय महत्त्वपूर्ण हैं। संगत अनुशासन अत्यावश्यक है। (नीतिवचन ६:२०; १३:१) और क्योंकि बच्चे एक जैसे नहीं होते, अनुशासन बच्चों के हिसाब से शायद अलग-अलग हो। कुछ सौतेले-जनक पाते हैं कि कम-से-कम शुरूआत में, यदि पालन-पोषण के इस पहलू को जैविक जनक संभाले तो बेहतर हो। लेकिन, यह अत्यावश्यक है कि दोनों जनक अनुशासन पर सहमत हों और उसका समर्थन करें, वे अपनी संतान और सौतेले बच्चे के बीच भेद न करें। (नीतिवचन २४:२३) आज्ञाकारिता महत्त्वपूर्ण है, लेकिन अपरिपूर्णता को ध्यान में रखने की ज़रूरत है। अत्यधिक प्रतिक्रिया मत दिखाइए। प्रेम से अनुशासन दीजिए।—कुलुस्सियों ३:२१.
२४. एक सौतेले परिवार में विपरीत लिंग के सदस्यों के बीच नैतिक समस्याओं से बचने के लिए कौन-सी बात मदद दे सकती है?
२४ मुसीबत रोकने के लिए पारिवारिक चर्चाएँ काफ़ी योग दे सकती हैं। ये परिवार को जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण बातों पर ध्यान केंद्रित रखने में मदद दे सकती हैं। (फिलिप्पियों १:९-११ से तुलना कीजिए।) वे हरेक व्यक्ति को यह देखने में भी सहायता दे सकती हैं कि वह पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति में कैसे योग दे सकता है। इसके साथ-साथ, परिवार में खुलकर चर्चा करना नैतिक समस्याओं से बचा सकता है। लड़कियों को यह समझने की ज़रूरत है कि अपने सौतेले पिता और यदि कोई सौतेले भाई हैं तो उनके साथ होते समय कैसे कपड़े पहनना और कैसे व्यवहार करना है, और लड़कों को अपनी सौतेली माँ और यदि कोई सौतेली बहनें हैं तो उनके साथ उचित आचरण पर सलाह की ज़रूरत है।—१ थिस्सलुनीकियों ४:३-८.
२५. एक सौतेले परिवार में शान्ति रखने के लिए कौन-से गुण मदद कर सकते हैं?
२५ एक सौतेले-जनक होने की ख़ास चुनौती का सामना करते समय, धीरज धरिए। नए सम्बन्धों को विकसित करने में समय लगता है। उन बच्चों का प्रेम और आदर कमाना जिनके साथ आपका कोई जैविक बंधन नहीं है एक अति कठिन कार्य हो सकता है। लेकिन यह संभव है। एक बुद्धिमान और समझदार हृदय, साथ ही यहोवा को प्रसन्न करने की तीव्र इच्छा, एक सौतेले परिवार में शान्ति की कुंजी है। (नीतिवचन १६:२०) ऐसे गुण आपको अन्य स्थितियों से निपटने में भी मदद दे सकते हैं।
क्या भौतिक लक्ष्य आपके घर को विभाजित करते हैं?
२६. भौतिक वस्तुओं के सम्बन्ध में समस्याएँ और मनोवृत्तियाँ किन तरीक़ों से एक परिवार को विभाजित कर सकती हैं?
२६ भौतिक वस्तुओं के सम्बन्ध में समस्याएँ और मनोवृत्तियाँ अनेक तरीक़ों से परिवारों को विभाजित कर सकती हैं। दुःख की बात है कि कुछ परिवार पैसे और अमीर होने—या कम-से-कम थोड़ा और अमीर होने—की इच्छा पर बहस करते रहने के कारण भंग हो जाते हैं। विभाजन शायद तब होने लगें जब दोनों साथी नौकरी करते हैं और “मेरा पैसा, तुम्हारा पैसा” वाली मनोवृत्ति विकसित करते हैं। यदि बहस नहीं होती, तो भी जब दोनों साथी काम करते हैं तब उनकी सारणी शायद ऐसी हो कि उनके पास एक दूसरे के लिए कुछ समय ही न बचे। संसार में यह चलन बढ़ रहा है कि पिता लम्बे-लम्बे समय—महीनों या यहाँ तक कि सालों—तक अपने परिवारों से दूर रहते हैं ताकि वे उतना पैसा कमा सकें जितना कि वे घर पर रहकर कभी नहीं कमा सकते थे। यह बहुत गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है।
२७. कौन-से कुछ सिद्धान्त उस परिवार की मदद कर सकते हैं जो आर्थिक दबाव में है?
२७ इन स्थितियों से निपटने के लिए कोई नियम नहीं लगाए जा सकते, चूँकि अलग-अलग परिवारों को अलग-अलग दबावों और ज़रूरतों से निपटना पड़ता है। फिर भी, बाइबल सलाह मदद कर सकती है। उदाहरण के लिए, नीतिवचन १३:१० सूचित करता है कि ‘सम्मति मानने’ के द्वारा कभी-कभी अनावश्यक संघर्ष से बचा जा सकता है। इसमें मात्र अपने ही विचारों को व्यक्त करना नहीं, परन्तु सलाह लेना और यह पता लगाना भी सम्मिलित है कि दूसरे व्यक्ति का क्या दृष्टिकोण है। इसके अलावा, एक व्यावहारिक बजट बनाना परिवार को एक होकर प्रयास करने में मदद दे सकता है। ख़ासकर जब घर में बच्चे हैं या दूसरों की देखभाल की ज़िम्मेदारी है, तो कभी-कभी यह आवश्यक होता है—संभवतः कुछ समय के लिए—कि अतिरिक्त ख़र्च उठाने के लिए दोनों साथी घर के बाहर काम करें। जब ऐसी स्थिति होती है, तो पति अपनी पत्नी को आश्वस्त कर सकता है कि उसके पास अभी-भी पत्नी के लिए समय है। वह बच्चों के साथ मिलकर प्रेमपूर्वक कुछ काम में हाथ बँटा सकता है जो सामान्यतः वह शायद अकेले ही संभाल लेती।—फिलिप्पियों २:१-४.
२८. यदि उनका पालन किया जाए, तो कौन-से अनुस्मारक एक परिवार को एकता की ओर कार्य करने में मदद देंगे?
२८ लेकिन, यह ध्यान में रखिए कि जबकि इस रीति-व्यवस्था में पैसा एक आवश्यकता है, यह सुख नहीं लाता। यह निश्चित ही जीवन नहीं देता। (सभोपदेशक ७:१२) वास्तव में, भौतिक वस्तुओं पर अत्यधिक बल देना आध्यात्मिक और नैतिक तबाही का कारण बन सकता है। (१ तीमुथियुस ६:९-१२) कितना बेहतर है कि पहले परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज करें, जिसके साथ यह आश्वासन है कि जीवन की ज़रूरतों को प्राप्त करने के हमारे प्रयासों पर उसकी आशिष होगी! (मत्ती ६:२५-३३; इब्रानियों १३:५) आध्यात्मिक हितों को आगे रखने के द्वारा और सबसे पहले परमेश्वर के साथ शान्ति का प्रयत्न करने के द्वारा, आप शायद पाएँ कि संभवतः किन्हीं परिस्थितियों से विभाजित होने के बावजूद, आपका घराना एक ऐसा घराना बन जाए जो सबसे महत्त्वपूर्ण बातों में सचमुच संयुक्त है।
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आप उन समस्याओं को पार कर सकते हैं जो एक परिवार को हानि पहुँचाती हैंपारिवारिक सुख का रहस्य
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अध्याय बारह
आप उन समस्याओं को पार कर सकते हैं जो एक परिवार को हानि पहुँचाती हैं
१. कुछ परिवारों में कौन-सी छिपी हुई समस्याएँ होती हैं?
पुरानी कार को अभी-अभी धोकर पॉलिश किया गया है। पास से गुज़रने वालों को वह चमचमाती हुई, एकदम नयी-सी दिखती है। लेकिन सतह के नीचे, क्षयकारी ज़ंग गाड़ी के ढाँचे को खाए जा रहा है। कुछ परिवारों के साथ भी ऐसा ही है। हालाँकि बाहर से सब कुछ ठीक दिखता है, मुस्कराते चेहरे भय और पीड़ा को छिपा लेते हैं। बंद दरवाज़े के पीछे क्षयकारी तत्व परिवार की शान्ति को खाए जा रहे हैं। मद्यव्यसनता और हिंसा ऐसी दो समस्याएँ हैं जिनका यह प्रभाव हो सकता है।
मद्यव्यसनता के कारण हुई हानि
२. (क) शराब के प्रयोग के बारे में बाइबल का दृष्टिकोण क्या है? (ख) मद्यव्यसनता क्या है?
२ बाइबल शराब के संतुलित प्रयोग की निन्दा नहीं करती, परन्तु वह पियक्कड़पन की निन्दा अवश्य करती है। (नीतिवचन २३:२०, २१; १ कुरिन्थियों ६:९, १०; १ तीमुथियुस ५:२३; तीतुस २:२, ३) लेकिन, मद्यव्यसनता पियक्कड़पन से अधिक है; यह शराब पीने की पुरानी लत और उसे पीने के कारण नियंत्रण खो बैठना है। मद्यव्यसनी वयस्क हो सकते हैं। दुःख की बात है कि वे युवा भी हो सकते हैं।
३, ४. मद्यव्यसनी के विवाह-साथी पर और बच्चों पर मद्यव्यसनता के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
३ बाइबल ने बहुत पहले बताया कि शराब का दुरुपयोग परिवार की शान्ति भंग कर सकता है। (व्यवस्थाविवरण २१:१८-२१) मद्यव्यसनता के क्षयकारी प्रभाव समस्त परिवार पर पड़ते हैं। हो सकता है कि विवाह-साथी मद्यव्यसनी का पीना रोकने या उसके तरंगी बर्ताव से निपटने का प्रयास करने में डूब जाए।a वह दारू को ग़ायब करने, फेंकने, उसके पैसे छिपाने, और परिवार के प्रति, जीवन के प्रति, यहाँ तक कि परमेश्वर के प्रति उसके प्रेम को छूने की कोशिश करती है—लेकिन मद्यव्यसनी फिर भी पीता है। जब उसके पीने को नियंत्रित करने के पत्नी के प्रयास बार-बार निष्फल होते हैं, तो वह निराश और अयोग्य महसूस करती है। वह शायद भय, क्रोध, दोष, घबराहट, चिन्ता, और आत्म-सम्मान की कमी से पीड़ित हो जाए।
४ बच्चे जनक की मद्यव्यसनता के प्रभावों से नहीं बचते। कुछ पर शारीरिक रूप से प्रहार किया जाता है। दूसरों को लैंगिक रूप से उत्पीड़ित किया जाता है। वे जनक की मद्यव्यसनता के लिए स्वयं को भी दोषी मान सकते हैं। मद्यव्यसनी के असंगत बर्ताव के कारण प्रायः दूसरों पर भरोसा करने की उनकी क्षमता चूर हो जाती है। क्योंकि वे घर में हो रही बातों के बारे में आराम से बात नहीं कर सकते, बच्चे शायद अपनी भावनाओं को दबाना सीख लें, जिसके अकसर हानिकर शारीरिक परिणाम होते हैं। (नीतिवचन १७:२२) ऐसे बच्चे आत्म-विश्वास या आत्म-सम्मान की इस कमी को वयस्कता तक रख सकते हैं।
परिवार क्या कर सकता है?
५. मद्यव्यसनता को कैसे संभाला जा सकता है, और यह कठिन क्यों है?
५ हालाँकि अनेक विशेषज्ञ कहते हैं कि मद्यव्यसनता का कोई इलाज नहीं, अधिकतर इस पर सहमत हैं कि पूर्ण मद्यत्याग के कार्यक्रम से कुछ हद तक ठीक होना संभव है। (मत्ती ५:२९ से तुलना कीजिए।) लेकिन, मदद स्वीकार करने के लिए एक मद्यव्यसनी को मनाना बहुत मुश्किल है, चूँकि सामान्यतः वह इस बात से इनकार कर देता है कि उसे कोई समस्या है। फिर भी, जब परिवार के सदस्य मद्यव्यसनता के कारण उन पर पड़े प्रभाव से निपटने के लिए क़दम उठाते हैं, तब मद्यव्यसनी को शायद यह एहसास होने लगे कि उसे समस्या है। एक चिकित्सक ने, जिसे मद्यव्यसनियों और उनके परिवारों की मदद करने का अनुभव है, कहा: “मेरे विचार से सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि परिवार अपने भरसक सबसे हितकर रीति से अपना जीवन चलाता रहे। मद्यव्यसनी के सामने यह बात अधिकाधिक स्पष्ट होती जाती है कि उसके और बाक़ी के परिवार के बीच कितनी बड़ी विषमता है।”
६. ऐसे परिवारों के लिए जिनमें एक मद्यव्यसनी सदस्य है, सलाह का सर्वोत्तम स्रोत क्या है?
६ यदि आपके परिवार में एक मद्यव्यसनी है, तो बाइबल की उत्प्रेरित सलाह यथासंभव हितकर रीति से जीने में आपकी मदद कर सकती है। (यशायाह ४८:१७; २ तीमुथियुस ३:१६, १७) कुछ सिद्धान्तों पर विचार कीजिए जिन्होंने मद्यव्यसनता से सफलतापूर्वक निपटने में परिवारों की मदद की है।
७. यदि परिवार का एक सदस्य मद्यव्यसनी है, तो कौन ज़िम्मेदार है?
७ सारा दोष लेना बंद कर दीजिए। बाइबल कहती है: “हर एक व्यक्ति अपना ही बोझ उठाएगा,” और “हम में से हर एक परमेश्वर को अपना अपना लेखा देगा।” (गलतियों ६:५; रोमियों १४:१२) मद्यव्यसनी शायद यह जताने की कोशिश करे कि परिवार के सदस्य ज़िम्मेदार हैं। उदाहरण के लिए, वह शायद कहे: “यदि तुम मेरे साथ बेहतर व्यवहार करते, तो मैं नहीं पीता।” यदि दूसरे दिखाते हैं कि वे उससे सहमत हैं, तो वे उसको और पीने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। लेकिन यदि हम परिस्थितियों या दूसरे लोगों द्वारा पीड़ित हैं, तो भी हम सभी—मद्यव्यसनी भी—जो हम करते हैं उसके लिए ज़िम्मेदार हैं।—फिलिप्पियों २:१२ से तुलना कीजिए।
८. कौन-से कुछ तरीक़ों से मद्यव्यसनी को उसकी समस्या के परिणामों का सामना करने के लिए मदद दी जा सकती है?
८ ऐसा मत महसूस कीजिए कि आपको हमेशा मद्यव्यसनी को उसके पीने के परिणामों से बचाना है। एक क्रोधित व्यक्ति के बारे में एक बाइबल नीतिवचन मद्यव्यसनी पर भी उतना ही लागू हो सकता है: “यदि तू उसे बचाए, तो बारम्बार बचाना पड़ेगा।” (नीतिवचन १९:१९) मद्यव्यसनी को अपने पीने के परिणाम भुगतने दीजिए। पीने के बाद जो गंदगी उसने फैलायी है उसे ख़ुद साफ़ करने दीजिए या अगली सुबह अपने मालिक को ख़ुद फ़ोन करने दीजिए।
पारिवारिक समस्याओं को सुलझाने में मसीही प्राचीन मदद का एक बड़ा स्रोत हो सकते हैं
९, १०. मद्यव्यसनियों के परिवारों को क्यों मदद स्वीकार करनी चाहिए, और उन्हें ख़ासकर किसकी मदद माँगनी चाहिए?
९ दूसरों से मदद स्वीकार कीजिए। नीतिवचन १७:१७ कहता है: “[“सच्चा,” NW] मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।” जब आपके परिवार में एक मद्यव्यसनी है, तो विपत्ति है। आपको मदद की ज़रूरत है। सहारे के लिए ‘सच्चे मित्रों’ पर भरोसा रखने से मत झिझकिए। (नीतिवचन १८:२४) उनके साथ बात करने से जो समस्या को समझते हैं या जिन्होंने मिलती-जुलती स्थिति का सामना किया है, आपको इस बारे में व्यावहारिक सुझाव मिल सकते हैं कि क्या करें और क्या न करें। लेकिन संतुलित रहिए। उनके साथ बात कीजिए जिन पर आप भरोसा रखते हैं, जो आपका “भेद” छिपा रखेंगे।—नीतिवचन ११:१३.
१० मसीही प्राचीनों पर भरोसा करना सीखिए। मसीही कलीसिया में प्राचीन मदद का एक बड़ा स्रोत हो सकते हैं। ये प्रौढ़ पुरुष परमेश्वर के वचन में शिक्षित और उसके सिद्धान्तों के अनुप्रयोग में अनुभवी हैं। वे “मानो आंधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़ . . . या निर्जल देश में जल के झरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया” साबित हो सकते हैं। (यशायाह ३२:२) मसीही प्राचीन न सिर्फ़ सामूहिक रूप से कलीसिया को हानिकर प्रभावों से बचाते हैं बल्कि वे उन व्यक्तियों को भी सांत्वना और विश्राम देते, और उनमें व्यक्तिगत रुचि लेते हैं जिनको समस्याएँ हैं। उनकी मदद का पूरा लाभ उठाइए।
११, १२. मद्यव्यसनियों के परिवारों के लिए सबसे बड़ी मदद कौन प्रदान करता है, और वह सहारा कैसे दिया जाता है?
११ सबसे बढ़कर, यहोवा से शक्ति प्राप्त कीजिए। बाइबल हमें स्नेहपूर्ण आश्वासन देती है: “यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।” (भजन ३४:१८) परिवार में एक मद्यव्यसनी सदस्य के साथ रहने के दबाव के कारण यदि आपका मन टूट गया है या आप पिसा हुआ महसूस करते हैं, तो जान लीजिए कि ‘यहोवा समीप है।’ वह समझता है कि आपकी पारिवारिक स्थिति कितनी कठिन है।—१ पतरस ५:६, ७.
१२ यहोवा अपने वचन में जो कहता है उस पर विश्वास करना आपको चिन्ता से निपटने में मदद दे सकता है। (भजन १३०:३, ४; मत्ती ६:२५-३४; १ यूहन्ना ३:१९, २०) परमेश्वर के वचन का अध्ययन करना और उसके सिद्धान्तों के अनुरूप जीना आपको परमेश्वर की पवित्र आत्मा की मदद प्राप्त करने में समर्थ करता है, जो आपको एक-एक दिन करके स्थिति से निपटने के लिए “असीम सामर्थ” दे सकती है।—२ कुरिन्थियों ४:७.b
१३. दूसरी समस्या कौन-सी है जो अनेक परिवारों को हानि पहुँचाती है?
१३ शराब का दुष्प्रयोग एक और समस्या की ओर ले जा सकता है जो अनेक परिवारों को हानि पहुँचाती है—घरेलू हिंसा।
घरेलू हिंसा के कारण हुई हानि
१४. घरेलू हिंसा कब शुरू हुई, और आज स्थिति क्या है?
१४ मानव इतिहास की पहली हिंसक क्रिया कैन और हाबिल, दो भाइयों से सम्बन्धित घरेलू हिंसा की घटना थी। (उत्पत्ति ४:८) तभी से मानवजाति हर प्रकार की घरेलू हिंसा से ग्रस्त रही है। ऐसे पति हैं जो पत्नियों को मारते-कूटते हैं, पत्नियाँ हैं जो पतियों पर हमला करती हैं, माता-पिता हैं जो क्रूरता से अपने छोटे बच्चों की पिटाई करते हैं, और सयाने बच्चे हैं जो अपने वृद्ध माता-पिताओं के साथ दुर्व्यवहार करते हैं।
१५. घरेलू हिंसा के कारण परिवार के सदस्य भावात्मक रूप से कैसे प्रभावित होते हैं?
१५ घरेलू हिंसा के कारण हुई हानि शारीरिक चोटों से कहीं अधिक होती है। एक मरी-कुटी पत्नी ने कहा: “आपको काफ़ी दोष-भावना और लज्जा सहनी पड़ती है। ज़्यादातर सुबह, आप बस बिस्तर में पड़ी रहना चाहती हैं, और सोचती हैं कि काश वह बस एक बुरा सपना होता।” जब वे बच्चे बड़े होते और अपना घर बसाते हैं जो घरेलू हिंसा देखते या अनुभव करते हैं, तब वे ख़ुद भी शायद हिंसक बनें।
१६, १७. भावात्मक दुर्व्यवहार क्या है, और इसके कारण परिवार के सदस्य कैसे प्रभावित होते हैं?
१६ घरेलू हिंसा शारीरिक दुर्व्यवहार तक सीमित नहीं होती है। अकसर प्रहार मौखिक होता है। नीतिवचन १२:१८ कहता है: “ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोच-विचार का बोलना तलवार की नाईं चुभता है।” घरेलू हिंसा में जो बातें ‘चुभती’ हैं उनमें गाली देना और चिल्लाना, साथ ही हमेशा आलोचना करना, अपमान करना, और शारीरिक हिंसा की धमकियाँ देना सम्मिलित है। भावात्मक हिंसा के घाव अदृश्य होते हैं और अकसर उन पर दूसरों का ध्यान नहीं जाता।
१७ एक बच्चे की भावात्मक मार-कूट—बच्चे की योग्यताओं, अक़्ल, या एक व्यक्ति के रूप में उसके मूल्य की निरन्तर आलोचना करना और नीचा दिखाना—ख़ासकर दुःख की बात है। ऐसा मौखिक दुर्व्यवहार बच्चे के आत्म-विश्वास को नष्ट कर सकता है। यह सच है कि सभी बच्चों को अनुशासन की ज़रूरत होती है। लेकिन बाइबल पिताओं को निर्देश देती है: “अपने बालकों को तंग न करो, न हो कि उन का साहस टूट जाए।”—कुलुस्सियों ३:२१.
घरेलू हिंसा से कैसे दूर रहें
जो मसीही साथी एक दूसरे को प्रेम करते और आदर देते हैं वे समस्याओं को सुलझाने के लिए तुरन्त कार्य करेंगे
१८. घरेलू हिंसा कहाँ शुरू होती है, और बाइबल के अनुसार इसे रोकने का क्या तरीक़ा है?
१८ घरेलू हिंसा हृदय और मन में शुरू होती है; पहले जैसा हम सोचते हैं फिर वैसा हम व्यवहार करते हैं। (याकूब १:१४, १५) हिंसा रोकने के लिए, दुर्व्यवहार करनेवाले को अपने सोचने का ढंग बदलने की ज़रूरत है। (रोमियों १२:२) क्या यह संभव है? जी हाँ। परमेश्वर के वचन में लोगों को बदलने की शक्ति है। यह ‘मज़बूती से जमे हुए’ विनाशक विचारों को भी जड़ से उखाड़ सकता है। (२ कुरिन्थियों १०:४, NW; इब्रानियों ४:१२) बाइबल का यथार्थ ज्ञान लोगों में इतना बड़ा परिवर्तन लाने में मदद कर सकता है कि कहा गया है कि वे नया मनुष्यत्व धारण करते हैं।—इफिसियों ४:२२-२४; कुलुस्सियों ३:८-१०.
१९. एक मसीही को विवाह-साथी को किस दृष्टि से देखना और उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?
१९ विवाह-साथी के प्रति दृष्टिकोण। परमेश्वर का वचन कहता है: “पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है।” (इफिसियों ५:२८) बाइबल यह भी कहती है कि पति को अपनी पत्नी को “निर्बल पात्र जानकर उसका आदर” करना चाहिए। (१ पतरस ३:७) पत्नियों को प्रबोधन दिया गया है कि “अपने पतियों . . . से प्रीति रखें” और उनका “गहरा आदर” करें। (तीतुस २:४; इफिसियों ५:३३, NW) निश्चित ही, परमेश्वर का भय माननेवाला कोई पति सच्चाई से यह नहीं कह सकता कि वह वास्तव में अपनी पत्नी का आदर करता है यदि वह शारीरिक या मौखिक रूप से उस पर प्रहार करता है। और कोई पत्नी जो अपने पति पर चिल्लाती है, उसे ताने मारकर बुलाती है, या हमेशा उसे डाँटती है यह नहीं कह सकती कि वह सचमुच उसको प्रेम करती और आदर देती है।
२०. अपने बच्चों के लिए माता-पिता किसके सामने उत्तरदायी हैं, और माता-पिताओं को अपने बच्चों से अत्यधिक अपेक्षाएँ क्यों नहीं करनी चाहिए?
२० बच्चों के प्रति उचित दृष्टिकोण। बच्चे अपने माता-पिता के प्रेम और ध्यान के योग्य हैं, जी हाँ, उन्हें इसकी ज़रूरत है। परमेश्वर का वचन बच्चों को “यहोवा के दिए हुए मीरास” और “प्रतिफल” कहता है। (भजन १२७:३, NHT फुटनोट) उस मीरास की देखभाल करने के लिए माता-पिता यहोवा के सामने उत्तरदायी हैं। बाइबल ‘बालकों की बातों’ और लड़कपन की “मूढ़ता” के बारे में बोलती है। (१ कुरिन्थियों १३:११; नीतिवचन २२:१५) यदि माता-पिता अपने बच्चों में मूर्खता पाते हैं तो उन्हें चकित नहीं होना चाहिए। युवजन वयस्क नहीं हैं। माता-पिता को एक बच्चे की उम्र, पारिवारिक पृष्ठभूमि, और योग्यता के हिसाब से जितना उपयुक्त है उससे अधिक की माँग नहीं करनी चाहिए।—उत्पत्ति ३३:१२-१४ देखिए।
२१. वृद्ध माता-पिताओं के प्रति दृष्टिकोण का और उनके साथ व्यवहार का ईश्वरीय तरीक़ा क्या है?
२१ वृद्ध माता-पिताओं के प्रति दृष्टिकोण। लैव्यव्यवस्था १९:३२ कहता है: “पक्के बालवाले के साम्हने उठ खड़े होना, और बूढ़े का आदरमान करना।” इस प्रकार परमेश्वर की व्यवस्था ने वृद्धजनों के लिए आदर और उच्च सम्मान को बढ़ावा दिया। यह एक चुनौती हो सकती है जब एक वृद्ध जनक अत्यधिक माँग करता प्रतीत होता है या बीमार है और संभवतः जल्दी से हिलता-डुलता या सोचता नहीं। फिर भी, बच्चों को याद दिलाया गया है कि ‘अपने माता-पिता को उन का हक्क दें।’ (१ तीमुथियुस ५:४) इसका अर्थ होता उनके साथ गरिमा और आदर से व्यवहार करना, संभवतः आर्थिक रूप से भी उनका भरण-पोषण करना। शारीरिक या अन्य रीति से वृद्ध माता-पिताओं के साथ दुर्व्यवहार करना, जिस प्रकार बाइबल हमें व्यवहार करने को कहती है उसके बिलकुल विपरीत है।
२२. घरेलू हिंसा पर जीत पाने का एक मुख्य गुण क्या है, और इसे कैसे प्रयोग किया जा सकता है?
२२ आत्म-संयम विकसित कीजिए। नीतिवचन २९:११ कहता है: “मूर्ख अपने सारे मन की बात खोल देता है, परन्तु बुद्धिमान अपने मन को रोकता, और शान्त कर देता है।” आप अपना संयम कैसे रख सकते हैं? ग़ुबार को अन्दर ही अन्दर भरने देने के बजाय, जब समस्याएँ उठती हैं तो उन्हें सुलझाने के लिए जल्दी से क़दम उठाइए। (इफिसियों ४:२६, २७) यदि आपको लगता है कि आप अपना संयम खो रहे हैं तो वहाँ से चले जाइए। प्रार्थना कीजिए कि परमेश्वर की पवित्र आत्मा आप में आत्म-संयम उत्पन्न करे। (गलतियों ५:२२, २३) पैदल घूमने जाना या कोई शारीरिक व्यायाम करना आपे में रहने के लिए आपकी मदद कर सकता है। (नीतिवचन १७:१४, २७) “विलम्ब से क्रोध करनेवाला” बनने की कोशिश कीजिए।—नीतिवचन १४:२९.
अलग हो जाएँ या एकसाथ रहें?
२३. यदि मसीही कलीसिया का एक सदस्य बार-बार और बिना पछतावा किए हिंसक क्रोध में आ जाता है, जिसमें संभवतः अपने परिवार के साथ शारीरिक दुर्व्यवहार सम्मिलित हो, तो क्या हो सकता है?
२३ “बैर, झगड़ा, . . . क्रोध” की गिनती बाइबल उन कामों में करती है जिनकी परमेश्वर निन्दा करता है, और कहती है कि “ऐसे ऐसे काम करनेवाले परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे।” (गलतियों ५:१९-२१) इसलिए, एक मसीही होने का दावा करनेवाला कोई व्यक्ति जो बार-बार और बिना पछतावा किए हिंसक क्रोध में आ जाता है, जिसमें संभवतः विवाह-साथी या बच्चों के साथ शारीरिक दुर्व्यवहार सम्मिलित हो, वह मसीही कलीसिया से बहिष्कृत किया जा सकता है। (२ यूहन्ना ९, १० से तुलना कीजिए।) इस रीति से कलीसिया को दुर्व्यवहारी व्यक्तियों से साफ़ रखा जाता है।—१ कुरिन्थियों ५:६, ७; गलतियों ५:९.
२४. (क) जिन विवाह-साथियों के साथ दुर्व्यवहार किया गया है वे क्या करने का चुनाव कर सकते हैं? (ख) चिन्तित मित्र और प्राचीन दुर्व्यवहार किए गए विवाह-साथी को कैसे सहारा दे सकते हैं, लेकिन उन्हें क्या नहीं करना चाहिए?
२४ उन मसीहियों के बारे में क्या जो अभी ऐसे दुर्व्यवहारी विवाह-साथी द्वारा मारे-कूटे जा रहे हैं जो कि बदलने का नाम नहीं लेता? कुछ लोगों ने एक-न-एक कारण से दुर्व्यवहारी विवाह-साथी के साथ रहने का चुनाव किया है। दूसरों ने छोड़ने का चुनाव किया है, उन्हें लगा कि उनका शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य—संभवतः उनका जीवन भी—ख़तरे में है। इन परिस्थितियों में घरेलू हिंसा से पीड़ित व्यक्ति क्या करने का चुनाव करता है वह यहोवा के सामने एक व्यक्तिगत फ़ैसला है। (१ कुरिन्थियों ७:१०, ११) शुभ-चिंतक मित्र, सम्बन्धी, या मसीही प्राचीन शायद मदद और सलाह देना चाहें, लेकिन उन्हें पीड़ित व्यक्ति पर कोई ख़ास मार्ग लेने का दबाव नहीं डालना चाहिए। वह उसका अपना फ़ैसला है।—रोमियों १४:४; गलतियों ६:५.
हानिकारी समस्याओं का अन्त
२५. परिवार के लिए यहोवा का उद्देश्य क्या है?
२५ जब यहोवा विवाह में आदम और हव्वा को एकसाथ लाया, तब उसका उद्देश्य यह बिलकुल भी नहीं था कि परिवारों को मद्यव्यसनता या हिंसा जैसी हानिकारी समस्याओं का ज़ंग खा जाए। (इफिसियों ३:१४, १५) परिवार को वह स्थान होना था जहाँ प्रेम और शान्ति की बहुतायत होती और हर सदस्य की मानसिक, भावात्मक, और आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी की जातीं। लेकिन, पाप के आने से पारिवारिक जीवन जल्दी ही बिगड़ गया।—सभोपदेशक ८:९ से तुलना कीजिए।
२६. जो यहोवा की माँगों के सामंजस्य में जीने की कोशिश करते हैं उनका भविष्य कैसा होगा?
२६ ख़ुशी की बात है कि यहोवा ने परिवार के लिए अपना उद्देश्य त्यागा नहीं है। वह एक ऐसा शान्तिपूर्ण नया संसार लाने की प्रतिज्ञा करता है जिसमें लोग “निडर रहेंगे, और उनको कोई न डराएगा।” (यहेजकेल ३४:२८) उस समय, मद्यव्यसनता, घरेलू हिंसा, और अन्य सभी समस्याएँ जो आज परिवारों को हानि पहुँचाती हैं बीती बात होंगी। लोग मुस्कराएँगे, भय और पीड़ा छिपाने के लिए नहीं, बल्कि इसलिए कि वे “बड़ी शान्ति के कारण आनन्द” मना रहे हैं।—भजन ३७:११.
a हालाँकि हमने एक पुरुष को मद्यव्यसनी मानकर उल्लेख किया है, यहाँ दिए गए सिद्धान्त तब भी उतने ही लागू होते हैं जब मद्यव्यसनी एक स्त्री है।
b कुछ देशों में, ऐसे उपचार केंद्र, अस्पताल, और स्वास्थ्य-लाभ कार्यक्रम हैं जो विशेष रूप से मद्यव्यसनियों और उनके परिवारों को मदद देने के लिए हैं। ऐसी मदद लें या नहीं यह एक व्यक्तिगत फ़ैसला है। वॉच टावर सोसाइटी किसी ख़ास उपचार का समर्थन नहीं करती। लेकिन, ध्यान रखने की ज़रूरत है ताकि मदद लेते समय, व्यक्ति ऐसे कार्यों में न उलझ जाए जिनमें शास्त्रीय सिद्धान्तों का समझौता होता है।
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यदि विवाह टूटने पर हैपारिवारिक सुख का रहस्य
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अध्याय तेरह
यदि विवाह टूटने पर है
१, २. जब विवाह दबाव में होता है, तब कौन-सा प्रश्न पूछा जाना चाहिए?
वर्ष १९८८ में लूचीआ नाम की एक इटालियन स्त्री बहुत हताश थी।a दस साल के बाद उसके विवाह का अन्त हो रहा था। कई बार उसने अपने पति के साथ मेल-मिलाप करने की कोशिश की थी, लेकिन काम बना ही नहीं। सो अनुरूपता न होने के कारण वह अलग हो गयी और अब उसे अकेले ही दो पुत्रियों को पालना था। पीछे उस समय की ओर देखते हुए, लूचीआ याद करती है: “मैं निश्चित थी कि कुछ भी हमारे विवाह को नहीं बचा सकता।”
२ यदि आपको वैवाहिक समस्याएँ हो रही हैं, तो आप शायद समझ सकें कि लूचीआ को कैसा लगता है। शायद आपके विवाह में मुश्किलें हों और आप सोच रहे हों कि क्या इसे अब भी बचाया जा सकता है। यदि ऐसा है, तो आप इस प्रश्न पर विचार करना सहायक पाएँगे: विवाह को सफल बनाने में मदद देने के लिए परमेश्वर ने बाइबल में जितनी भी अच्छी सलाह दी है क्या मैं ने वह सब मानी है?—भजन ११९:१०५.
३. जबकि तलाक़ प्रचलित हो गया है, अनेक तलाक़शुदा लोगों और उनके परिवारों की कैसी प्रतिक्रिया की रिपोर्ट मिली है?
३ जब पति-पत्नी के बीच अत्यधिक तनाव होता है, तब विवाह को तोड़ देना सबसे सरल मार्ग प्रतीत हो सकता है। लेकिन, जबकि अनेक देशों ने टूटे परिवारों में भयानक वृद्धि देखी है, हाल के अध्ययन दिखाते हैं कि उन तलाक़शुदा पुरुषों और स्त्रियों की संख्या कम नहीं जिनको इस विच्छेद पर पछतावा है। इनमें से कई लोग उनकी तुलना में जो अपना विवाह बनाए रखते हैं, अधिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं। ये समस्याएँ दोनों शारीरिक और मानसिक हो सकती हैं। तलाक़शुदा माता-पिता के बच्चों की उलझन और उनका दुःख अकसर सालों तक रहता है। टूटे परिवार के माता-पिता और मित्र भी पीड़ित होते हैं। और परमेश्वर, विवाह का आरंभक स्थिति को जिस दृष्टि से देखता है उसके बारे में क्या?
४. विवाह में समस्याओं से कैसे निपटा जाना चाहिए?
४ जैसा पिछले अध्यायों में बताया गया है, परमेश्वर का उद्देश्य था कि विवाह जीवन-भर का बंधन हो। (उत्पत्ति २:२४) तो फिर, इतने सारे विवाह क्यों टूटते हैं? यह शायद रातोंरात न हो। प्रायः चेतावनी-चिन्ह दिखते हैं। विवाह में छोटी-छोटी समस्याएँ बढ़ती चली जा सकती हैं जब तक कि वे अलंघ्य न दिखने लगें। लेकिन यदि बाइबल की सहायता से इन समस्याओं से तुरन्त निपटा जाए, तो अनेक विवाह टूटने से बचाए जा सकते हैं।
व्यावहारिक बनिए
५. किसी भी विवाह में व्यावहारिक रूप से किस स्थिति का सामना किया जाना चाहिए?
५ एक तत्व जो कभी-कभी समस्याओं का कारण बनता है वह है एक या दोनों विवाह-साथियों की अव्यावहारिक अपेक्षाएँ। प्रेम-कथाएँ, लोकप्रिय पत्रिकाएँ, टॆलीविज़न कार्यक्रम, और फ़िल्में ऐसी आशाएँ और सपने जगा सकती हैं जो वास्तविक जीवन से कहीं परे होते हैं। जब ये सपने सच नहीं होते, तब व्यक्ति को ऐसा लग सकता है कि उसके साथ धोखा हुआ है, वह असंतुष्ट, यहाँ तक कि कटु महसूस कर सकता है। परन्तु, दो अपरिपूर्ण व्यक्ति विवाह में सुख कैसे पा सकते हैं? एक सफल सम्बन्ध बनाने में परिश्रम लगता है।
६. (क) बाइबल विवाह के बारे में कौन-सा संतुलित दृष्टिकोण देती है? (ख) विवाह में मतभेदों के कुछ कारण क्या हैं?
६ बाइबल व्यावहारिक है। वह विवाह के आनन्द को स्वीकार करती है, लेकिन वह चेतावनी भी देती है कि जो विवाह करते हैं उन्हें “शारीरिक दुख होगा।” (१ कुरिन्थियों ७:२८) जैसे बताया जा चुका है, दोनों साथी अपरिपूर्ण हैं और पाप करने को प्रवृत्त हैं। प्रत्येक साथी की मानसिक और भावात्मक रचना और पालन-पोषण भिन्न होता है। दम्पति कभी-कभी पैसे, बच्चों, और ससुराल वालों के बारे में असहमत होते हैं। एकसाथ कार्य करने के लिए समय की कमी और लैंगिक समस्याएँ भी झगड़े का स्रोत हो सकती हैं।b ऐसे मामलों को संभालने में समय लगता है, लेकिन ढाढ़स बाँधिए! अधिकांश विवाहित दम्पति ऐसी समस्याओं का सामना करने में समर्थ होते हैं और ऐसे हल निकाल लेते हैं जो परस्पर स्वीकार्य हों।
मतभेदों पर चर्चा कीजिए
समस्याओं को जल्द सुलझाइए। सूर्य अस्त होने तक आपका क्रोध न रहे
७, ८. यदि विवाह-साथियों के बीच कटु भावनाएँ या ग़लतफ़हमियाँ हैं, तो उन्हें दूर करने का शास्त्रीय तरीक़ा क्या है?
७ कटु भावनाओं, ग़लतफ़हमियों, या व्यक्तिगत कमियों के बारे में चर्चा करते समय अनेक लोग शान्त रहना कठिन पाते हैं। सीधे-सीधे यह कहने के बजाय: “आपने मुझे समझा नहीं,” एक विवाह-साथी भावात्मक होकर समस्या को बढ़ा-चढ़ा सकता है। अनेक लोग कहेंगे: “आपको सिर्फ़ अपनी परवाह है,” या “आपको मुझसे प्रेम नहीं।” क्योंकि दूसरा विवाह-साथी बहस में नहीं पड़ना चाहता, वह शायद कोई प्रतिक्रिया न दिखाए।
८ बाइबल की यह सलाह मानना बेहतर मार्ग है: “क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे।” (इफिसियों ४:२६) अपनी शादी की ६०वीं सालगिरह तक पहुँचने पर, एक सुखी विवाहित दम्पति से उनके सफल विवाह का रहस्य पूछा गया। पति ने कहा: “हमने सीखा कि मतभेदों को दूर करने से पहले नहीं सोएँ, चाहे वे कितने भी छोटे क्यों न हों।”
९. (क) शास्त्र में किस बात की पहचान संचार के एक महत्त्वपूर्ण भाग के रूप में करायी गयी है? (ख) चाहे इसके लिए साहस और नम्रता चाहिए, तोभी अकसर विवाह-साथियों को क्या करने की ज़रूरत होती है?
९ जब एक पति-पत्नी असहमत होते हैं, तो प्रत्येक को “सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा” होने की ज़रूरत है। (याकूब १:१९) ध्यानपूर्वक सुनने के बाद, दोनों साथी शायद क्षमा माँगने की ज़रूरत समझें। (याकूब ५:१६) निष्कपटता से यह कहने के लिए कि “आपको चोट पहुँचाने के लिए क्षमा कीजिए,” नम्रता और साहस चाहिए। लेकिन इस ढंग से मतभेदों को दूर करना एक विवाहित दम्पति को न सिर्फ़ अपनी समस्याओं को सुलझाने में बल्कि वह स्नेह और अंतरंगता विकसित करने में भी बहुत मदद देगा जिससे वे एक दूसरे की संगति का और भी आनन्द उठाएँगे।
वैवाहिक हक्क पूरा करना
१०. पौलुस ने कुरिन्थ के मसीहियों को बचाव की कौन-सी सलाह दी जो आज एक मसीही पर लागू हो सकती है?
१० जब प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखा, तब उसने विवाह की सलाह दी ‘क्योंकि व्यभिचार का प्रचलन’ था। (१ कुरिन्थियों ७:२, NW) आज संसार प्राचीन कुरिन्थ के जितना बुरा है, अथवा उससे भी बदतर है। वे अनैतिक विषय जिन पर संसार के लोग खुलकर बात करते हैं, उनका अश्लील पहनावा, तथा पत्रिकाओं और पुस्तकों में, टीवी पर, और फ़िल्मों में प्रस्तुत की गयी उत्तेजक कहानियाँ, सभी मिलकर अनुचित काम-वासना जगाते हैं। समान वातावरण में रह रहे कुरिन्थियों को प्रेरित पौलुस ने कहा: “विवाह करना कामातुर रहने से भला है।”—१ कुरिन्थियों ७:९.
११, १२. (क) पति-पत्नी एक दूसरे को क्या देने के लिए बाध्य हैं, और यह किस आत्मा से दिया जाना चाहिए? (ख) यदि वैवाहिक हक्क को कुछ समय तक नहीं दिया जाना है, तो स्थिति से कैसे निपटा जाना चाहिए?
११ इसलिए, बाइबल विवाहित मसीहियों को आज्ञा देती है: “पति अपनी पत्नी का हक्क पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का।” (१ कुरिन्थियों ७:३) ध्यान दीजिए कि यहाँ बल देने पर है—माँग करने पर नहीं। यदि प्रत्येक साथी दूसरे की भलाई के बारे में चिन्ता करता है तभी विवाह में शारीरिक अंतरंगता सचमुच संतोषप्रद होती है। उदाहरण के लिए, बाइबल पतियों को आज्ञा देती है कि अपनी पत्नियों के साथ “बुद्धिमानी से” व्यवहार करें। (१ पतरस ३:७) यह ख़ासकर वैवाहिक हक्क देने और लेने के बारे में सच है। यदि एक पत्नी के साथ कोमलता से व्यवहार नहीं किया जाता, तो उसके लिए विवाह के इस पहलू का आनन्द उठाना शायद मुश्किल हो।
१२ ऐसे समय होते हैं जब विवाह-साथियों को एक दूसरे को वैवाहिक हक्क से वंचित रखना पड़ सकता है। यह पत्नी के बारे में महीने के अमुक समय में या जब वह बहुत थकान महसूस करती है तब सच हो सकता है। (लैव्यव्यवस्था १८:१९ से तुलना कीजिए।) यह पति के बारे में सच हो सकता है जब वह कार्य-स्थल में किसी गंभीर समस्या का सामना कर रहा है और भावात्मक रूप से शक्तिहीन महसूस करता है। कुछ समय तक वैवाहिक हक्क पूरा न करने के ऐसे मामलों से निपटने का सबसे अच्छा तरीक़ा होता है कि दोनों साथी खुलकर स्थिति पर चर्चा करें और “आपस की सम्मति” से सहमत हों। (१ कुरिन्थियों ७:५) यह दोनों में से किसी भी साथी को ग़लत निष्कर्ष पर कूदने से रोकेगा। लेकिन, यदि पत्नी सोच-समझ कर अपने पति को वंचित करती है या यदि पति जानबूझकर प्रेममय रीति से वैवाहिक हक्क पूरा करने से चूकता है, तो साथी प्रलोभन में पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में, एक विवाह में समस्याएँ उठ सकती हैं।
१३. मसीही अपने सोच-विचार को शुद्ध रखने के लिए किस प्रकार कार्य कर सकते हैं?
१३ सभी मसीहियों की तरह, परमेश्वर के विवाहित सेवकों को अश्लील चित्रण से दूर रहना चाहिए, जो अशुद्ध और अस्वाभाविक अभिलाषाएँ उत्पन्न कर सकता है। (कुलुस्सियों ३:५) उन्हें विपरीत लिंग के सभी सदस्यों के साथ व्यवहार करते समय अपने विचारों और कार्यों पर भी ध्यान रखना है। यीशु ने चेतावनी दी: “जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।” (मत्ती ५:२८) सॆक्स के सम्बन्ध में बाइबल की सलाह को मानने से दम्पतियों को प्रलोभन में पड़ने और व्यभिचार करने से बचने में समर्थ होना चाहिए। वे विवाह में आनन्दप्रद अंतरंगता का मज़ा लेते रह सकते हैं जिसमें सॆक्स को विवाह के आरंभक, यहोवा की ओर से एक हितकर उपहार के रूप में संजोया जाता है।—नीतिवचन ५:१५-१९.
तलाक़ के लिए बाइबलीय आधार
१४. कभी-कभी कौन-सी दुःखद स्थिति आ जाती है? क्यों?
१४ ख़ुशी की बात है कि अधिकांश मसीही विवाहों में, जो भी समस्याएँ उठती हैं उनसे निपटा जा सकता है। लेकिन, कभी-कभी ऐसा नहीं होता। क्योंकि मनुष्य अपरिपूर्ण हैं और एक पापमय संसार में रहते हैं जो कि शैतान के वश में है, कुछ विवाह टूटने की हद तक पहुँच जाते हैं। (१ यूहन्ना ५:१९) मसीहियों को ऐसी कष्टकर स्थिति से कैसे निपटना चाहिए?
१५. (क) तलाक़ का वह एकमात्र शास्त्रीय आधार क्या है जिसके बाद पुनःविवाह किया जा सकता है? (ख) कुछ लोगों ने एक विश्वासघाती विवाह-साथी से तलाक़ लेने का चुनाव क्यों नहीं किया है?
१५ जैसा इस पुस्तक के अध्याय २ में उल्लेख किया गया है, व्यभिचार तलाक़ का वह एकमात्र शास्त्रीय आधार है जिसके बाद पुनःविवाह किया जा सकता है।c (मत्ती १९:९) यदि आपके पास पक्का सबूत है कि आपके विवाह-साथी ने विश्वासघात किया है, तो आपके सामने एक कठिन फ़ैसला है। क्या आप विवाह बनाए रखेंगे या तलाक़ ले लेंगे? कोई नियम नहीं हैं। कुछ मसीहियों ने सच्चा पश्चाताप करनेवाले साथी को पूरी तरह से क्षमा कर दिया है, और सुरक्षित रखा गया विवाह ठीक निकला है। कुछ लोगों ने बच्चों के कारण तलाक़ नहीं लेने का फ़ैसला किया है।
१६. (क) कौन-सी कुछ बातों ने कुछ लोगों को प्रेरित किया है कि अपने पथभ्रष्ट विवाह-साथी से तलाक़ लें? (ख) जब एक निर्दोष साथी तलाक़ लेने का या नहीं लेने का फ़ैसला करता है, तो किसी को उसके फ़ैसले की आलोचना क्यों नहीं करनी चाहिए?
१६ दूसरी ओर, पापमय कार्य के कारण शायद गर्भ ठहर गया हो या लैंगिक रूप से फैलनेवाली कोई बीमारी हो गयी हो। या संभवतः बच्चों को लैंगिक रूप से दुर्व्यवहारी जनक से बचाने की ज़रूरत है। स्पष्टतया, फ़ैसला करने से पहले काफ़ी बातों पर विचार किया जाना है। लेकिन, यदि आप अपने विवाह-साथी की निष्ठाहीनता के बारे में जानने के बाद उसके साथ फिर से लैंगिक सम्बन्ध रखते हैं, तो इस प्रकार आप दिखाते हैं कि आपने अपने साथी को क्षमा कर दिया है और विवाह को बनाए रखने की इच्छा रखते हैं। अब तलाक़ लेकर पुनःविवाह करने के शास्त्रीय आधार नहीं रहे। किसी को दस्तंदाज़ होने और आपके फ़ैसले को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, और जब आप फ़ैसला करते हैं, तब न ही किसी को आपके फ़ैसले की आलोचना करनी चाहिए। जो फ़ैसला आप करते हैं उसके परिणामों के साथ आपको जीना होगा। “हर एक व्यक्ति अपना ही बोझ उठाएगा।”—गलतियों ६:५.
अलगाव के आधार
१७. यदि व्यभिचार नहीं हुआ है, तो शास्त्र अलगाव या तलाक़ के साथ कौन-से प्रतिबन्ध जोड़ता है?
१७ क्या ऐसी स्थितियाँ हैं जो विवाह-साथी के व्यभिचार न करने पर भी उससे अलगाव या संभवतः तलाक़ को उचित ठहरा सकती हैं? जी हाँ, लेकिन ऐसी स्थिति में, एक मसीही पुनःविवाह के विचार से किसी दूसरे व्यक्ति के साथ प्रसंग रखने के लिए स्वतंत्र नहीं है। (मत्ती ५:३२) जबकि बाइबल ऐसे अलगाव की रिआयत देती है, वह निर्धारित करती है कि अलग होनेवाला व्यक्ति “बिन दूसरा ब्याह किए रहे; या . . . फिर मेल कर ले।” (१ कुरिन्थियों ७:११) कौन-सी कुछ नितांत स्थितियाँ हैं जिनमें अलगाव उचित प्रतीत हो सकता है?
१८, १९. कौन-सी कुछ नितांत स्थितियाँ हैं जिनके कारण एक विवाह-साथी कानूनी अलगाव या तलाक़ के औचित्य पर विचार कर सकता है, हालाँकि पुनःविवाह नहीं किया जा सकता है?
१८ पति के सरासर आलस और बुरी आदतों के कारण परिवार शायद दरिद्र हो जाए।d वह शायद परिवार की आमदनी को जुए में उड़ा दे अथवा उसे नशीले पदार्थों या शराब की लत में फूँक दे। बाइबल कहती है: “यदि कोई . . . अपने घराने की चिन्ता न करे, तो वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है।” (१ तीमुथियुस ५:८) यदि ऐसा पुरुष अपने तौर-तरीक़े बदलने से इनकार कर देता है, संभवतः अपनी बुरी लतों का ख़र्च भी उस पैसे से उठाता है जो उसकी पत्नी कमाती है, तो पत्नी कानूनी अलगाव लेने के द्वारा अपने और अपने बच्चों के हित की रक्षा करने का चुनाव कर सकती है।
१९ ऐसी कानूनी कार्यवाही पर तब भी विचार किया जा सकता है यदि एक विवाह-साथी अपने साथी के प्रति अत्यधिक हिंसक है, संभवतः उसको बार-बार इतना पीटता है कि उसका स्वास्थ्य और यहाँ तक कि जीवन भी ख़तरे में है। इसके अतिरिक्त, यदि एक विवाह-साथी निरन्तर दूसरे विवाह-साथी को किसी तरह से परमेश्वर की आज्ञाएँ तोड़ने के लिए मजबूर करने की कोशिश करता है, तो ख़तरे में पड़ा साथी भी अलगाव पर विचार कर सकता है, ख़ासकर तब यदि बात इस हद तक पहुँच गयी है कि आध्यात्मिक जीवन को ख़तरा है। जो साथी जोख़िम में है वह शायद इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन” करने का एकमात्र तरीक़ा है कानूनी अलगाव लेना।—प्रेरितों ५:२९.
२०. (क) परिवार टूटने की स्थिति में, प्रौढ़ मित्र और प्राचीन क्या दे सकते हैं, और उन्हें क्या नहीं देना चाहिए? (ख) क्या करने के लिए बहाने के रूप में विवाहित व्यक्तियों को अलगाव और तलाक़ के बारे में बाइबल के हवालों का प्रयोग नहीं करना चाहिए?
२० विवाह-साथी द्वारा नितांत दुर्व्यवहार के सभी मामलों में, किसी को भी निर्दोष साथी पर अलग होने के लिए या साथ रहने के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए। जबकि प्रौढ़ मित्र और प्राचीन सहारा और बाइबल-आधारित सलाह दे सकते हैं, वे एक पति-पत्नी के बीच में क्या होता है उसका हर विवरण नहीं जान सकते। वह केवल यहोवा देख सकता है। निःसंदेह, एक मसीही पत्नी परमेश्वर के विवाह प्रबन्ध का आदर नहीं कर रही होती यदि वह विवाह तोड़ने के लिए तुच्छ बहाने बनाती। लेकिन यदि एक अत्यधिक ख़तरनाक स्थिति बनी रहती है, और ऐसे में यदि वह अलग होने का चुनाव करती है तो किसी को उसकी आलोचना नहीं करनी चाहिए। एक ऐसे मसीही पति के सम्बन्ध में भी बिलकुल यही बातें कही जा सकती हैं जो अलगाव चाहता है। “हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के साम्हने खड़े होंगे।”—रोमियों १४:१०.
कैसे एक टूटा विवाह बचाया गया
२१. कौन-सा अनुभव दिखाता है कि विवाह पर बाइबल की सलाह काम करती है?
२१ पहले उल्लिखित लूचीआ को अपने पति से अलग हुए तीन महीने हुए थे जब वह यहोवा के साक्षियों से मिली और उनके साथ बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया। “मैं बहुत हैरान हुई,” वह समझाती है, “बाइबल ने मेरी समस्या का व्यावहारिक हल प्रदान किया। मात्र एक सप्ताह अध्ययन करने के बाद, मैं तुरन्त अपने पति के साथ मेल करना चाहती थी। आज मैं यह कह सकती हूँ कि यहोवा जानता है कि संकट में पड़े विवाहों को कैसे बचाना है क्योंकि उसकी शिक्षाएँ साथियों को एक दूसरे का सम्मान करना सीखने में मदद देती हैं। जैसा कि कुछ लोग दावा करते हैं, यह सच नहीं है कि यहोवा के साक्षी परिवारों को विभाजित करते हैं। मेरे किस्से में, इसका बिलकुल विपरीत सच निकला।” लूचीआ ने अपने जीवन में बाइबल सिद्धान्तों को लागू करना सीखा।
२२. सभी विवाहित दम्पतियों को किस में विश्वास रखना चाहिए?
२२ लूचीआ कोई अपवाद नहीं है। विवाह को एक आशिष होना चाहिए, भार नहीं। ऐसा होने के लिए, यहोवा ने अब तक लिखी गयी वैवाहिक सलाह का सबसे उत्तम स्रोत प्रदान किया है—उसका अनमोल वचन। बाइबल “साधारण लोगों को बुद्धिमान” बना सकती है। (भजन १९:७-११) इसने अनेक विवाहों को बचाया है जो टूटने पर थे और अन्य अनेकों को सुधारा है जिनमें गंभीर समस्याएँ थीं। ऐसा हो कि सभी विवाहित दम्पति उस वैवाहिक सलाह में पूरा विश्वास रखें जो यहोवा परमेश्वर प्रदान करता है। वह सचमुच काम करती है!
a नाम बदल दिया गया है।
b इनमें से कुछ क्षेत्रों पर पिछले अध्यायों में चर्चा की गयी थी।
c “व्यभिचार” अनुवादित बाइबल पद में परस्त्रीगमन, समलिंगकामुकता, पशुगमन, और गुप्तांगों के प्रयोग से सम्बन्धित दूसरे ज्ञानकृत अनुचित कार्य सम्मिलित हैं।
d इसमें ऐसी स्थितियाँ सम्मिलित नहीं हैं जिनमें पति अपने नेक इरादों के बावजूद, अपने परिवार का भरण-पोषण करने में समर्थ नहीं है क्योंकि कारण उसके बस से बाहर हैं, जैसे कि बीमारी या रोज़गार के अवसरों की कमी।
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ढलती उम्र में साथ-साथपारिवारिक सुख का रहस्य
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अध्याय चौदह
ढलती उम्र में साथ-साथ
१, २. (क) जैसे-जैसे बुढ़ापा पास आता है कौन-से परिवर्तन होते हैं? (ख) बाइबल समय के धर्म-परायण लोगों ने बुढ़ापे में संतुष्टि कैसे पायी?
जैसे-जैसे हमारी उम्र ढलती है कई परिवर्तन होते हैं। शारीरिक कमज़ोरी हमारी ताक़त को चूस लेती है। आईना देखो तो नयी-नयी झुर्रियाँ नज़र आती हैं, धीरे-धीरे बाल सफ़ेद होते जाते हैं और झड़ने भी लगते हैं। हमारी याददाश्त कमज़ोर पड़ सकती है। नए सम्बन्ध विकसित होते हैं जब बच्चे विवाह करते हैं, और फिर जब नाती-पोते आते हैं। नौकरी से निवृत्ति के बाद, कुछ लोगों की जीवन-चर्या बदल जाती है।
२ असल में, बढ़ती उम्र कष्टदायी हो सकती है। (सभोपदेशक १२:१-८) फिर भी, बाइबल समय में परमेश्वर के सेवकों पर विचार कीजिए। हालाँकि वे अंततः मर गए, उन्होंने बुद्धि और समझ दोनों को प्राप्त किया, जिससे बुढ़ापे में उनको बहुत संतुष्टि मिली। (उत्पत्ति २५:८; ३५:२९; अय्यूब १२:१२; ४२:१७) वे ढलती उम्र में ख़ुश रहने में कैसे सफल हुए? निश्चित ही उन सिद्धान्तों के सामंजस्य में जीने के द्वारा जिन्हें हम आज बाइबल में अभिलिखित पाते हैं।—भजन ११९:१०५; २ तीमुथियुस ३:१६, १७.
३. पौलुस ने वृद्ध पुरुषों और स्त्रियों के लिए कौन-सी सलाह दी?
३ तीतुस को लिखी अपनी पत्री में, प्रेरित पौलुस ने उनके लिए ठोस मार्गदर्शन दिया जिनकी उम्र ढल रही है। उसने लिखा: “बूढ़े पुरुष, सचेत [“मिताचारी,” NW] और गम्भीर और संयमी हों, और उन का विश्वास और प्रेम और धीरज पक्का हो। इसी प्रकार बूढ़ी स्त्रियों का चाल चलन पवित्र लोगों सा हो, दोष लगानेवाली और पियक्कड़ नहीं; पर अच्छी बातें सिखानेवाली हों।” (तीतुस २:२, ३) इन शब्दों को मानना आपको ढलती उम्र की चुनौतियों का सामना करने में मदद दे सकता है।
अपने बच्चों के स्वतंत्र जीवन के अनुसार बदलाव कीजिए
४, ५. जब उनके बच्चे घर छोड़ते हैं तब अनेक माता-पिता कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं, और कुछ लोग नयी स्थिति के अनुसार बदलाव कैसे करते हैं?
४ बदलती भूमिकाएँ बदलाव की माँग करती हैं। यह कितना सच साबित होता है जब सयाने बच्चे विवाह करके घर छोड़ देते हैं! अनेक माता-पिताओं को तब जाकर पहली बार पता चलता है कि वे बूढ़े हो रहे हैं। हालाँकि माता-पिता ख़ुश होते हैं कि उनके बच्चे बड़े हो गए हैं, वे अकसर चिन्ता करते हैं कि बच्चों को स्वतंत्र जीवन के लिए तैयार करने में उन्होंने अपना भरसक किया है या नहीं। और उनको बच्चों का घर में न होना खल सकता है।
५ स्वाभाविक है कि माता-पिता अपने बच्चों के हित की चिन्ता करना नहीं छोड़ते, बच्चों के घर छोड़ने के बाद भी। “काश मुझे उनके बारे में अकसर समाचार मिलता रहे, जिससे कि मैं आश्वस्त हो जाऊँ कि वे ठीक-ठाक हैं—मेरी ख़ुशी इसी में है,” एक माँ ने कहा। एक पिता कहता है: “जब हमारी पुत्री ने घर छोड़ा, तब बहुत कठिनाई हुई। उससे हमारे परिवार में एक बड़ा खालीपन आ गया क्योंकि हमने हमेशा हर काम एकसाथ किया था।” इन माता-पिताओं ने अपने बच्चों के अभाव का सामना कैसे किया है? अनेक किस्सों में, आगे बढ़कर दूसरे लोगों की मदद करने के द्वारा।
६. पारिवारिक सम्बन्धों के प्रति उचित दृष्टिकोण रखने में कौन-सी बात मदद करती है?
६ जब बच्चे विवाह कर लेते हैं, तो माता-पिताओं की भूमिका बदल जाती है। उत्पत्ति २:२४ कहता है: “पुरुष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे।” (तिरछे टाइप हमारे।) मुखियापन और सुव्यवस्था के बारे में ईश्वरीय सिद्धान्तों को स्वीकार करना माता-पिताओं को उचित दृष्टिकोण रखने में मदद देगा।—१ कुरिन्थियों ११:३; १४:३३, ४०.
७. एक पिता ने कौन-सी उत्तम मनोवृत्ति विकसित की जब उसकी पुत्रियाँ विवाह करके घर छोड़ गयीं?
७ एक दम्पति की दो पुत्रियों के विवाह करके चले जाने के बाद, उस दम्पति ने अपने जीवन में एक रिक्तता अनुभव की। शुरू-शुरू में, पति को अपने दामादों से चिढ़ थी। लेकिन जब उसने मुखियापन के सिद्धान्त पर विचार किया, तब उसे एहसास हुआ कि उसकी पुत्रियों के पति अब अपने अपने घराने के लिए ज़िम्मेदार थे। इसलिए, जब उसकी पुत्रियाँ सलाह माँगतीं, तब वह उनसे पूछता कि उनके पतियों का क्या विचार है, और फिर वह निश्चित करता कि भरसक सहारा दे। अब उसके दामाद उसे मित्र समझते हैं और उसकी सलाह का स्वागत करते हैं।
८, ९. कुछ माता-पिताओं ने अपने सयाने बच्चों के स्वतंत्र जीवन के अनुसार कैसे बदलाव किया है?
८ यदि नव-विवाहित वह नहीं करते जो माता-पिता के विचार से सर्वोत्तम है, हालाँकि वे कोई अशास्त्रीय काम नहीं करते, तब क्या? “हम हमेशा उन्हें यहोवा का दृष्टिकोण देखने में मदद देते हैं,” एक दम्पति समझाते हैं जिनके बच्चे विवाहित हैं, “लेकिन यदि हम उनके किसी फ़ैसले से सहमत नहीं होते, तो हम उसे स्वीकार कर लेते हैं और उन्हें अपना समर्थन और प्रोत्साहन देते हैं।”
९ अमुक एशियाई देशों में, कुछ माताओं को ख़ासकर यह स्वीकार करना कठिन लगता है कि उनके पुत्रों का अपना स्वतंत्र जीवन है। लेकिन, यदि वे मसीही व्यवस्था और मुखियापन का आदर करती हैं, तो वे पाती हैं कि बहुओं के साथ उनका मनमुटाव बहुत कम हो जाता है। एक मसीही स्त्री का अनुभव है कि पारिवारिक घर से उसके पुत्रों का जाना “सदा-बढ़ते आभार का स्रोत” साबित हुआ है। अपनी नयी गृहस्थी चलाने की उनकी योग्यता को देखकर वह अति प्रसन्न है। क्रमशः, इससे उनकी ढलती उम्र में, उसका और उसके पति का शारीरिक और मानसिक बोझ हलका हुआ है।
अपने वैवाहिक बंधन को नव-शक्ति देना
जैसे-जैसे आपकी उम्र ढलती है, एक दूसरे के लिए अपने प्रेम की पुनःपुष्टि कीजिए
१०, ११. कौन-सी शास्त्रीय सलाह अधेड़ उम्र के कुछ फन्दों से बचने में लोगों की मदद करेगी?
१० अधेड़ उम्र तक पहुँचने पर लोग तरह-तरह से प्रतिक्रिया दिखाते हैं। कुछ पुरुष उम्र से छोटा दिखने के प्रयास में अपना पहनावा बदल लेते हैं। अनेक स्त्रियाँ उन परिवर्तनों के बारे में चिन्ता करती हैं जो रजोनिवृत्ति से आते हैं। दुःख की बात है कि कुछ अधेड़ उम्र के लोग विपरीत लिंग के युवा सदस्यों के साथ इश्कबाज़ी करने के द्वारा अपने साथियों में चिढ़ और जलन भड़काते हैं। लेकिन, धर्म-परायण वृद्ध पुरुष “संयमी” होते हैं, वे अनुचित कामनाओं को वश में कर लेते हैं। (१ पतरस ४:७) उसी प्रकार प्रौढ़ स्त्रियाँ अपने विवाह की स्थिरता को बनाए रखने के लिए मेहनत करती हैं क्योंकि वे अपने पतियों से प्रेम करती हैं और यहोवा को प्रसन्न करना चाहती हैं।
११ उत्प्रेरणा के अधीन, राजा लमूएल ने “भली पत्नी” की प्रशंसा का अभिलेख किया जो अपने पति से ‘अपने जीवन के सारे दिनों में बुरा नहीं, वरन भला ही व्यवहार करती है।’ एक मसीही पति इस बात का मूल्यांकन करने से नहीं चूकेगा कि उसकी पत्नी अपनी अधेड़ उम्र में आयी किसी भावात्मक उलझन से कैसे निपटने की कोशिश करती है। उसका प्रेम उसे ‘पत्नी की प्रशंसा’ करने के लिए उकसाएगा।—नीतिवचन ३१:१०, १२, २८.
१२. जैसे-जैसे साल बीतते हैं दम्पति एक दूसरे के और निकट कैसे आ सकते हैं?
१२ शिशु-पालन के व्यस्त सालों में, आप दोनों ने शायद अपने बच्चों की ज़रूरतों पर ध्यान देने के लिए ख़ुशी-ख़ुशी अपनी व्यक्तिगत इच्छाएँ एक किनारे की हों। उनके जाने के बाद अब समय है अपने वैवाहिक जीवन पर फिर से ध्यान केंद्रित करने का। “जब मेरी पुत्रियों ने घर छोड़ा,” एक पति कहता है, “मैं ने अपनी पत्नी के साथ फिर से प्रणय-याचन शुरू कर दिया।” एक और पति कहता है: “हम एक दूसरे के स्वास्थ्य पर नज़र रखते हैं और एक दूसरे को व्यायाम करने की ज़रूरत के बारे में ध्यान दिलाते हैं।” जिससे कि उनको अकेलापन न महसूस हो, वह और उसकी पत्नी कलीसिया के अन्य सदस्यों का अतिथि-सत्कार करते हैं। जी हाँ, दूसरों में दिलचस्पी दिखाना आशिषें लाता है। इसके अलावा, यह यहोवा को प्रसन्न करता है।—फिलिप्पियों २:४; इब्रानियों १३:२, १६.
१३. जैसे-जैसे एक दम्पति की उम्र साथ-साथ ढलती है, तब स्पष्टता और निष्कपटता क्या भूमिका निभाती हैं?
१३ अपने और अपने विवाह-साथी के बीच संचार की खाई न बनने दीजिए। एकसाथ खुलकर बात कीजिए। (नीतिवचन १७:२७) “हम परवाह करने और विचारशील होने के द्वारा एक दूसरे के बारे में अपनी समझ गहरी करते हैं,” एक पति टिप्पणी करता है। उसकी पत्नी सहमत है, वह कहती है: “जैसे-जैसे हमारी उम्र ढली है, हमने एकसाथ चाय पीने, बातचीत करने, और एक दूसरे को सहयोग देने का आनन्द लेना सीखा है।” आपका स्पष्ट और निष्कपट होना आपके वैवाहिक बंधन को मज़बूत करने में मदद दे सकता है, उसको वह शक्ति दे सकता है जो विवाह के विध्वंसक, शैतान के हमलों को निष्फल करेगी।
अपने नाती-पोतों का आनन्द लीजिए
१४. एक मसीही के रूप में तीमुथियुस के पालन-पोषण में उसकी नानी ने प्रत्यक्षतः क्या भूमिका निभायी?
१४ नाती-पोते बुज़ुर्गों की “शोभा” हैं। (नीतिवचन १७:६) नाती-पोतों की संगति सचमुच आनन्दमय हो सकती है—जीवंत और स्फूर्तिदायी। बाइबल लोइस की प्रशंसा करती है, जो एक ऐसी नानी थी जिसने अपनी पुत्री यूनीके के साथ मिलकर अपना विश्वास अपने नन्हे नाती तीमुथियुस के साथ बाँटा। वह युवा यह जानते हुए बड़ा हुआ कि उसकी माता और उसकी नानी, दोनों ने बाइबल सत्य को मूल्यवान समझा।—२ तीमुथियुस १:५; ३:१४, १५.
१५. नाती-पोतों के सम्बन्ध में, दादा-दादी क्या मूल्यवान योग दे सकते हैं, लेकिन उन्हें किस बात से दूर रहना चाहिए?
१५ तो, यह एक ख़ास क्षेत्र है जिसमें दादा-दादी एक सबसे मूल्यवान योग दे सकते हैं। दादा-दादियों, आप अपने बच्चों के साथ यहोवा के उद्देश्यों के बारे में अपना ज्ञान पहले ही बाँट चुके हैं। अब आप उसी प्रकार एक और पीढ़ी के साथ भी कर सकते हैं! बहुत-से छोटे बच्चे रोमांचित हो उठते हैं जब उनके दादा-दादी उन्हें बाइबल कहानियाँ सुनाते हैं। निःसन्देह, अपने बच्चों को यत्नपूर्वक बाइबल सत्य सिखाने की पिता की ज़िम्मेदारी को आप अपने ऊपर नहीं ले लेते। (व्यवस्थाविवरण ६:७) इसके बजाय, आप उसमें सहायता करते हैं। ऐसा हो कि भजनहार की प्रार्थना आपकी भी हो: “हे परमेश्वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगों को तेरा बाहुबल और सब उत्पन्न होनेवालों को तेरा पराक्रम सुनाऊं।”—भजन ७१:१८; ७८:५, ६.
१६. दादा-दादी अपने परिवार में तनाव पैदा होने का कारण बनने से कैसे दूर रह सकते हैं?
१६ दुःख की बात है कि कुछ दादा-दादी नन्हे-मुन्नों को इतना सिर पर चढ़ा लेते हैं कि दादा-दादी और उनके सयाने बच्चों के बीच तनाव पैदा हो जाता है। लेकिन, आपकी निश्छल कृपा संभवतः आपके नाती-पोतों के लिए यह आसान बना दे कि जब अपने माता-पिता को कोई बात बताने का उनका मन नहीं होता तब वे भरोसे के साथ आपको बताएँ। कभी-कभी बच्चे आशा करते हैं कि उनके नरम दादा-दादी उनका पक्ष लेंगे, उनके माता-पिता का नहीं। तब क्या? बुद्धि से काम लीजिए और अपने नाती-पोतों को प्रोत्साहित कीजिए कि अपने माता-पिता से खुलकर बात करें। आप समझा सकते हैं कि यह यहोवा को प्रसन्न करता है। (इफिसियों ६:१-३) यदि आवश्यक हो, तो आप प्रस्ताव रख सकते हैं कि आप पहले से उनके माता-पिता से बात करके बच्चों के लिए उन तक पहुँच का रास्ता बना देंगे। आपने सालों के दौरान जो सीखा है उसके बारे में अपने नाती-पोतों को साफ़-साफ़ बताइए। आपकी निष्कपटता और स्पष्टवादिता उनकी मदद कर सकती है।
उम्र के साथ-साथ बदलाव कीजिए
१७. बूढ़े होते मसीहियों को भजनहार के किस दृढ़-संकल्प का अनुकरण करना चाहिए?
१७ जैसे-जैसे साल गुज़रते हैं, आप पाएँगे कि आप वह सब कुछ नहीं कर पाते जो आप किया करते थे या जो आप करना चाहते हैं। बूढ़े होने की प्रक्रिया के साथ व्यक्ति समझौता कैसे करे? अपने मन में आप शायद ३० साल का अनुभव करें, लेकिन आईना देखने पर एक अलग सच्चाई सामने आती है। निरुत्साहित मत होइए। भजनहार ने यहोवा से निवेदन किया: “बुढ़ापे के समय मेरा त्याग न कर; जब मेरा बल घटे तब मुझ को छोड़ न दे।” भजनहार के दृढ़-संकल्प का अनुकरण करने का दृढ़-निश्चय कीजिए। उसने कहा: “मैं तो निरन्तर आशा लगाए रहूंगा, और तेरी स्तुति अधिक अधिक करता जाऊंगा।”—भजन ७१:९, १४.
१८. एक प्रौढ़ मसीही सेवा-निवृत्ति का लाभकारी प्रयोग कैसे कर सकता है?
१८ अनेक लोगों ने नौकरी से निवृत्ति के बाद यहोवा की अधिक स्तुति करने के लिए पहले से तैयारी की है। “मैं ने पहले से सोच लिया था कि जब हमारी पुत्री स्कूल छोड़ेगी तब मैं क्या करूँगा,” एक पिता समझाता है जो अब सेवा-निवृत्त है। “मैं ने दृढ़-संकल्प किया कि मैं पूर्ण-समय प्रचार सेवकाई करना शुरू करूँगा, और मैं ने अपना कारोबार बन्द कर दिया ताकि और पूर्ण रूप से यहोवा की सेवा करने के लिए खाली हो सकूँ। मैं ने परमेश्वर के निर्देशन के लिए प्रार्थना की।” यदि आपकी उम्र सेवा-निवृत्ति की हो रही है, तो हमारे महान सृष्टिकर्ता की घोषणा से सांत्वना प्राप्त कीजिए: “तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं वैसा ही बना रहूंगा और तुम्हारे बाल पकने के समय तक तुम्हें उठाए रहूंगा।”—यशायाह ४६:४.
१९. जो बूढ़े हो रहे हैं उनके लिए क्या सलाह दी गयी है?
१९ नौकरी से निवृत्ति होने पर बदलाव करना शायद आसान न हो। प्रेरित पौलुस ने बूढ़े पुरुषों को सलाह दी कि “मिताचारी” हों। यह सामान्य नियंत्रण की माँग करता है, कि आराम का जीवन जीने की प्रवृत्ति के आगे नहीं झुकें। सेवा-निवृत्ति के बाद नित्यक्रम और आत्म-अनुशासन की ज़रूरत शायद पहले से और भी ज़्यादा हो। तो व्यस्त रहिए, ‘प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाइए, क्योंकि यह जानते हैं कि आपका परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है।’ (१ कुरिन्थियों १५:५८) दूसरों की मदद करने के लिए अपनी गतिविधियाँ फैलाइए। (२ कुरिन्थियों ६:१३) अनेक मसीही एक सीमित गति से जोश के साथ सुसमाचार का प्रचार करने के द्वारा ऐसा करते हैं। जैसे-जैसे आपकी उम्र ढलती है, आपका “विश्वास और प्रेम और धीरज पक्का हो।”—तीतुस २:२.
अपने विवाह-साथी के अभाव का सामना करना
२०, २१. (क) वर्तमान रीति-व्यवस्था में, एक विवाहित दम्पति को अंततः कौन-सी चीज़ अलग कर देती है? (ख) हन्नाह शोकित विवाह-साथियों के लिए कैसे एक उत्तम उदाहरण प्रदान करती है?
२० यह दुःखद परन्तु सच्ची बात है कि वर्तमान रीति-व्यवस्था में मृत्यु अंततः विवाहित दम्पतियों को अलग कर देती है। शोकित मसीही विवाह-साथी जानते हैं कि उनके प्रियजन अब सो रहे हैं, और वे विश्वस्त हैं कि वे उन्हें दुबारा देखेंगे। (यूहन्ना ११:११, २५) लेकिन अभाव दुःखदायी तो होता ही है। जीवित साथी उससे कैसे निपट सकता है?a
२१ यह याद करना कि अमुक बाइबल पात्र ने क्या किया मदद देगा। हन्नाह विवाह के मात्र सात साल बाद विधवा हो गयी थी, और जब हम उसके बारे में पढ़ते हैं, तब वह ८४ साल की थी। हम निश्चित हो सकते हैं कि अपने पति को खोने पर उसने दुःख मनाया। उसने कैसे सामना किया? उसने रात-दिन मंदिर में यहोवा परमेश्वर की पवित्र सेवा की। (लूका २:३६-३८) इसमें कोई संदेह नहीं कि हन्नाह का प्रार्थनापूर्ण सेवा से भरा जीवन उस शोक और अकेलेपन के लिए एक बड़ा पीड़ाहारी था, जो उसने एक विधवा के रूप में महसूस किया।
२२. कुछ विधवाओं और विधुरों ने अकेलेपन का सामना कैसे किया है?
२२ “बात करने के लिए कोई साथी न होना मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है,” एक ७२-वर्षीय स्त्री समझाती है जो दस साल पहले विधवा हो गयी। “मेरे पति एक अच्छे सुननेवाले थे। हम कलीसिया के और मसीही सेवकाई में अपने हिस्से के बारे में बात करते।” एक और विधवा कहती है: “हालाँकि समय घाव भर देता है, मैं ने यह कहना ज़्यादा सही पाया है कि व्यक्ति अपने समय के साथ क्या करता है वह घाव भरने में मदद करता है। आप दूसरों की मदद करने के लिए ज़्यादा अच्छी स्थिति में हैं।” एक ६७-वर्षीय विधुर इससे सहमत है, वह कहता है: “शोक से निपटने का एक अत्युत्तम तरीक़ा है दूसरों को सांत्वना देने में अपने आपको लगा देना।”
बुढ़ापे में परमेश्वर को मूल्यवान
२३, २४. बाइबल बूढ़े लोगों के लिए कौन-सी बड़ी सांत्वना देती है, ख़ासकर उनको जिनका विवाह-साथी मर गया है?
२३ जबकि मृत्यु एक प्रिय साथी को दूर कर देती है, यहोवा हमेशा साथ रहता है, हमेशा सच्चा है। “एक वर मैं ने यहोवा से मांगा है,” प्राचीन समय के राजा दाऊद ने गाया, “उसी के यत्न में लगा रहूंगा; कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में रहने पाऊं, जिस से यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रहूं, और उसके मन्दिर में ध्यान किया करूं।”—भजन २७:४.
२४ “उन विधवाओं का जो सचमुच विधवा हैं आदर कर,” प्रेरित पौलुस आग्रह करता है। (१ तीमुथियुस ५:३) इस उपदेश के बाद दी गयी सलाह दिखाती है कि ऐसी योग्य विधवाओं को जिनके नज़दीकी रिश्तेदार नहीं थे, शायद कलीसिया की ओर से भौतिक सहायता की ज़रूरत पड़ी हो। लेकिन, “आदर कर” उपदेश के अर्थ में उनको मूल्यवान समझने का विचार सम्मिलित है। धर्म-परायण विधवाएँ और विधुर इस ज्ञान से कितनी सांत्वना पा सकते हैं कि यहोवा उनको मूल्यवान समझता है और उनको संभालेगा!—याकूब १:२७.
२५. बुज़ुर्गों के लिए अब भी कौन-सा लक्ष्य है?
२५ “बूढ़ों की शोभा उनके पक्के बाल हैं,” परमेश्वर का उत्प्रेरित वचन कहता है। वे “शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; [जब] वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं।” (नीतिवचन १६:३१; २०:२९) तो, चाहे विवाहित हों या फिर से अकेले, यहोवा की सेवा को अपने जीवन में प्रथम स्थान देना जारी रखिए। इस प्रकार आपका परमेश्वर के साथ अभी एक अच्छा नाम होगा और एक ऐसे संसार में सनातन जीवन की प्रत्याशा होगी जहाँ बुढ़ापे की पीड़ाएँ नहीं होंगी।—भजन ३७:३-५; यशायाह ६५:२०.
a इस विषय की अधिक विस्तृत चर्चा के लिए, वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित ब्रोशर जब आपका कोई प्रियजन मर जाता है (अंग्रेज़ी) देखिए।
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अपने वृद्ध माता-पिताओं को सम्मान देनापारिवारिक सुख का रहस्य
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अध्याय पंद्रह
अपने वृद्ध माता-पिताओं को सम्मान देना
१. हम पर अपने माता-पिता के कौन-से ऋण हैं, और इसलिए उनके प्रति हमारी भावना और व्यवहार कैसा होना चाहिए?
“अपने जन्मानेवाले की सुनना, और जब तेरी माता बुढ़िया हो जाए, तब भी उसे तुच्छ न जानना,” प्राचीन समय के बुद्धिमान पुरुष ने सलाह दी। (नीतिवचन २३:२२) ‘मैं तो ऐसा कभी नहीं करूँगा!’ आप शायद कहें। अपनी माताओं—या अपने पिताओं—को तुच्छ समझने के बजाय हम में से अधिकांश जन उनके प्रति गहरा प्रेम भाव रखते हैं। हम स्वीकार करते हैं कि हम उनके बहुत ऋणी हैं। सबसे पहले, हमारे माता-पिता ने हमें जीवन दिया। जबकि यहोवा जीवन का सोता है, अपने माता-पिता के बिना हम अस्तित्व में होते ही नहीं। हम अपने माता-पिता को ऐसा कुछ भी नहीं दे सकते जो स्वयं जीवन के जितना अनमोल हो। फिर, उस आत्म-त्याग, गहरी चिन्ता, ख़र्च, और प्रेममय परवाह के बारे में सोचिए जो एक बच्चे को शिशुपन से वयस्कता के मार्ग तक मदद करने में सम्मिलित है। इसलिए, यह कितना तर्कसंगत है कि परमेश्वर का वचन सलाह देता है: “अपनी माता और पिता का आदर कर . . . कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे”!—इफिसियों ६:२, ३.
भावात्मक ज़रूरतों को समझना
२. सयाने बच्चे अपने माता-पिता को “उन का हक्क” कैसे दे सकते हैं?
२ प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को लिखा: “[बच्चे या नाती-पोते] पहिले अपने ही घराने के साथ भक्ति का बर्ताव करना और अपने माता-पिता आदि को उन का हक्क देना सीखें, क्योंकि यह परमेश्वर को भाता है।” (१ तीमुथियुस ५:४) माता-पिता और दादा-दादी ने सालों तक उन्हें प्रेम दिया, उनके लिए काम किया और उनकी परवाह की, इसके लिए मूल्यांकन दिखाने के द्वारा सयाने बच्चे उन्हें “उन का हक्क” देते हैं। यह समझने के द्वारा कि अन्य सभी की तरह, वृद्धजनों को प्रेम और आश्वासन की ज़रूरत होती है—अकसर बहुत ज़्यादा होती है—बच्चे ऐसा कर सकते हैं। हम सभी की तरह, उन्हें यह महसूस करने की ज़रूरत होती है कि उन्हें मूल्यवान समझा जाता है। उन्हें यह महसूस करने की ज़रूरत होती है कि उनका जीवन उपयोगी है।
३. हम माता-पिता और दादा-दादी को सम्मान कैसे दे सकते हैं?
३ सो हम अपने माता-पिता और दादा-दादी को यह बताने के द्वारा उनको सम्मान दे सकते हैं कि हम उनसे प्रेम करते हैं। (१ कुरिन्थियों १६:१४) यदि हमारे माता-पिता हमारे साथ नहीं रहते, तो हमें याद रखना चाहिए कि हमारा समाचार मिलना उनके लिए बहुत महत्त्व रख सकता है। प्रसन्न करनेवाली चिट्ठी, फ़ोन, या भेंट उनके आनन्द में बहुत योग दे सकते हैं। जापान में रहनेवाली, मीयो ने ८२ साल की उम्र में लिखा: “मेरी पुत्री [जिसका पति एक सफ़री सेवक है] मुझसे कहती है: ‘माँ, कृपया हमारे साथ “सफ़र” कीजिए।’ वह मुझे हर सप्ताह का अपना नियोजित मार्ग और फ़ोन नम्बर भेजती है। मैं अपना नक़शा खोलकर कह सकती हूँ: ‘हूँ। अब वे यहाँ हैं!’ एक ऐसी बच्ची पाने की आशिष के लिए मैं हमेशा यहोवा का धन्यवाद करती हूँ।”
भौतिक ज़रूरतों में मदद देना
४. यहूदी धार्मिक परंपरा ने वृद्ध माता-पिताओं के प्रति निष्ठुरता को कैसे प्रोत्साहन दिया?
४ क्या अपने माता-पिता को सम्मान देने में उनकी भौतिक ज़रूरतों का ध्यान रखना भी सम्मिलित हो सकता है? जी हाँ। अकसर ऐसा होता है। यीशु के दिनों में यहूदी धार्मिक अगुवों ने इस परंपरा को बढ़ावा दिया कि यदि एक व्यक्ति यह घोषित कर दे कि उसका पैसा या सम्पत्ति ‘परमेश्वर को चढ़ाई भेंट’ थी, तो वह इसे अपने माता-पिता की सेवा में प्रयोग करने की ज़िम्मेदारी से मुक्त था। (मत्ती १५:३-६) कितने निष्ठुर! वास्तव में, वे धार्मिक अगुवे लोगों को प्रोत्साहन दे रहे थे कि अपने माता-पिताओं को सम्मान न दें बल्कि स्वार्थपूर्वक उनकी ज़रूरतें न पूरी करने के द्वारा हीनता से उनके साथ व्यवहार करें। हम कभी-भी वैसा नहीं करना चाहते!—व्यवस्थाविवरण २७:१६.
५. कुछ देशों की सरकारों द्वारा किए गए प्रबन्धों के बावजूद, अपने माता-पिता को सम्मान देने में कभी-कभी आर्थिक सहायता देना क्यों सम्मिलित होता है?
५ आज अनेक देशों में, सरकार द्वारा चलाए गए सामाजिक कार्यक्रम वृद्धजनों की कुछ भौतिक ज़रूरतों को पूरा करते हैं, जैसे रोटी, कपड़ा, और मकान। इसके अलावा, वृद्धजन ख़ुद शायद अपने बुढ़ापे के लिए कुछ साधन जुटाने में समर्थ हुए हों। लेकिन यदि उनके साधन ख़त्म हो जाते हैं या पर्याप्त नहीं होते, तो बच्चे माता-पिता की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अपना भरसक करने के द्वारा उनको सम्मान देते हैं। असल में, बूढ़े माता-पिताओं की सेवा करना ईश्वरीय भक्ति, अर्थात् पारिवारिक प्रबन्ध के आरंभक, यहोवा परमेश्वर के प्रति एक व्यक्ति की भक्ति का प्रमाण है।
प्रेम और आत्म-त्याग
६. अपने माता-पिताओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कुछ लोगों ने कौन-से निवास प्रबन्ध किए हैं?
६ अनेक सयाने बच्चों ने अपने अशक्त माता-पिताओं की ज़रूरतों के प्रति प्रेम और आत्म-त्याग के साथ प्रतिक्रिया दिखायी है। कुछ अपने माता-पिताओं को अपने घर ले गए हैं या उनके पास होने के लिए घर बदल लिया है। दूसरे अपने माता-पिता के घर में उनके साथ रहने लगे हैं। प्रायः, ऐसे प्रबन्ध माता-पिता और बच्चों, दोनों के लिए एक आशिष साबित हुए हैं।
७. यह क्यों अच्छा है कि वृद्ध माता-पिताओं के सम्बन्ध में फ़ैसले करने में जल्दबाज़ी न करें?
७ लेकिन, कभी-कभी ऐसे प्रबन्धों का परिणाम अच्छा नहीं निकलता। क्यों? संभवतः इसलिए कि फ़ैसले बहुत जल्दबाज़ी में किए जाते हैं या केवल भावनाओं पर आधारित होते हैं। “चतुर मनुष्य समझ बूझकर चलता है,” बाइबल बुद्धिमानी से चिताती है। (नीतिवचन १४:१५) उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आपकी वृद्ध माँ को अकेले रहने में कठिनाई हो रही है और आप सोचते हैं कि आपके साथ आकर रहने में उन्हें लाभ हो सकता है। समझ बूझकर चलने में, आप निम्नलिखित बातों पर विचार कर सकते हैं: उनकी असली ज़रूरतें क्या हैं? क्या निजी या सरकार द्वारा प्रायोजित सहायता सेवाएँ हैं जो एक स्वीकार्य वैकल्पिक समाधान पेश करती हैं? क्या वह आपके पास आकर रहना चाहती हैं? यदि चाहती हैं, तो उनका जीवन किन तरीक़ों से प्रभावित होगा? क्या उन्हें मित्र पीछे छोड़ने पड़ेंगे? इसका भावात्मक रूप से उन पर कैसा प्रभाव पड़ सकता है? क्या आपने इन चीज़ों के बारे में उनके साथ बात की है? उनका आपके साथ रहना आपको, आपके साथी को, और स्वयं आपके बच्चों को कैसे प्रभावित कर सकता है? यदि आपकी माँ को देखरेख की ज़रूरत है, तो वह कौन करेगा? क्या ज़िम्मेदारी को बाँटा जा सकता है? क्या आपने इस विषय पर उन सभी के साथ चर्चा की है जो प्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित हैं?
८. यह फ़ैसला करते समय कि अपने वृद्ध माता-पिता की मदद कैसे करें आप किससे सलाह ले सकते हैं?
८ चूँकि देखरेख की ज़िम्मेदारी परिवार के सभी बच्चों पर है, तो एक पारिवारिक बैठक बुलाना बुद्धिमानी की बात हो सकती है ताकि फ़ैसले करने में सभी भाग ले सकें। मसीही कलीसिया में प्राचीनों से या उन मित्रों से बात करना भी सहायक हो सकता है जिन्होंने मिलती-जुलती स्थिति का सामना किया है। “बिना सम्मति की कल्पनाएं निष्फल हुआ करती हैं,” बाइबल चेतावनी देती है, “परन्तु बहुत से मंत्रियों की सम्मति से बात ठहरती है।”—नीतिवचन १५:२२.
समानुभूति और समझदारी दिखाइए
अपने जनक से पहले बात किए बिना उसके लिए फ़ैसले करना बुद्धिमानी की बात नहीं है
९, १०. (क) उनकी ढलती उम्र के बावजूद, वृद्धजनों के प्रति कैसी विचारशीलता दिखायी जानी चाहिए? (ख) एक सयाना बच्चा अपने माता-पिता के हित में चाहे जो भी क़दम उठाए, उसे हमेशा उनको क्या देना चाहिए?
९ अपने वृद्ध माता-पिताओं को सम्मान देना समानुभूति और समझदारी की माँग करता है। जैसे-जैसे उम्र अपना क़हर ढाती है, वृद्धजनों के लिए चलना, खाना, और याद रखना अधिकाधिक कठिन हो सकता है। उन्हें मदद की ज़रूरत हो सकती है। अकसर बच्चे ज़्यादा ही ध्यान देने लगते हैं और मार्गदर्शन देने की कोशिश करते हैं। लेकिन वृद्धजन वयस्क हैं जिनके पास जीवन-भर की बटोरी हुई बुद्धि और अनुभव है, जीवन-भर उन्होंने अपनी देखरेख की है और अपने फ़ैसले ख़ुद किए हैं। उनकी पहचान और आत्म-सम्मान शायद माता-पिताओं और वयस्कों के रूप में उनकी भूमिका पर केंद्रित हो। जो माता-पिता ऐसा महसूस करते हैं कि उन्हें अपने जीवन की बागडोर अपने बच्चों के हाथ करनी है, वे हताश या क्रुद्ध हो सकते हैं। कुछ लोग ऐसी बातों से चिढ़ते और उनका विरोध करते हैं जो उन्हें उनसे उनका स्वतंत्र जीवन छीनने के प्रयास दिखती हैं।
१० ऐसी समस्याओं के कोई सरल समाधान नहीं हैं, लेकिन वृद्ध माता-पिताओं को जहाँ तक हो सके अपनी देखरेख ख़ुद करने देना और ख़ुद अपने फ़ैसले करने देना कृपालुता है। पहले अपने माता-पिता से बात किए बिना ये फ़ैसले करना कि उनके लिए सर्वोत्तम क्या है बुद्धिमानी की बात नहीं है। वे शायद काफ़ी कुछ खो चुके हों। जो उनके पास बचा है वह उन्हें रखने दीजिए। आप शायद पाएँ कि जितना कम आप अपने माता-पिता के जीवन को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं, आपका उनके साथ उतना ही बेहतर सम्बन्ध होगा। वे ज़्यादा ख़ुश होंगे, और आप भी। यदि उनके भले के लिए कुछ बातों पर हठ करने की ज़रूरत है, तो भी अपने माता-पिता को सम्मान देना माँग करता है कि आप उन्हें वह गरिमा और आदर दें जिसके वे योग्य हैं। परमेश्वर का वचन सलाह देता है: “पक्के बालवाले के साम्हने उठ खड़े होना, और बूढ़े का आदरमान करना।”—लैव्यव्यवस्था १९:३२.
सही मनोवृत्ति बनाए रखना
११-१३. यदि एक सयाने बच्चे का अतीत में अपने माता-पिता के साथ सम्बन्ध अच्छा नहीं रहा है, तो भी वह उनके बुढ़ापे में उनकी सेवा करने की चुनौती का सामना कैसे कर सकता है?
११ अपने बूढ़े माता-पिताओं को सम्मान देने में सयाने बच्चों के सामने कभी-कभी जो समस्या आती है वह उस सम्बन्ध से जुड़ी होती है जो उनका अपने माता-पिताओं के साथ छुटपन में था। शायद आपके पिता भावशून्य और प्रेमरहित थे, आपकी माँ रोबीली और कठोर थीं। आप शायद अब भी निराश, क्रुद्ध, या चोट खाया हुआ महसूस करते हैं क्योंकि वे ऐसे माता-पिता नहीं थे जैसे आप चाहते थे कि वे हों। क्या आप ऐसी भावनाओं पर जीत पा सकते हैं?a
१२ बॉसॆ, जो फिनलैंड में बड़ा हुआ, बताता है: “मेरे सौतेले-पिता नात्ज़ी जर्मनी में एक SS अफ़सर थे। उन्हें बड़ी जल्दी गुस्सा आ जाता था, और फिर वह ख़तरनाक हो जाते थे। उन्होंने मेरी आँखों के सामने कई बार मेरी माँ को पीटा। एक बार जब वह मुझसे गुस्सा थे, तो उन्होंने अपना बॆल्ट खींचकर मुझे मारा और उसका बकसुआ मेरे मुँह पर लगा। वह मुझे इतनी ज़ोर से लगा कि मैं पलंग पर लुढ़क गया।”
१३ फिर भी, तस्वीर का एक और पहलू था। बॉसॆ आगे कहता है: “दूसरी ओर, वह बड़ी मेहनत करते थे और भौतिक रूप से परिवार की देखरेख करने से पीछे नहीं हटते थे। उन्होंने कभी मुझे पिता का स्नेह नहीं दिया, लेकिन मैं जानता था कि वह भावात्मक रूप से ज़ख़्मी थे। उनकी माँ ने बचपन में ही उन्हें घर से निकाल दिया था। वह लड़ते हुए बड़े हुए और जवानी में युद्ध में प्रवेश किया। मैं कुछ हद तक समझ सकता था और उनको दोषी नहीं ठहराता था। जब मैं बड़ा हो गया, तब मैं उनकी मृत्यु तक अपने भरसक उनकी मदद करना चाहता था। यह आसान नहीं था, लेकिन मैं जो कर सका मैं ने किया। मैं ने अन्त तक एक अच्छा पुत्र होने की कोशिश की, और मैं सोचता हूँ कि उन्होंने मुझे ऐसा ही माना।”
१४. कौन-सा शास्त्रवचन हर स्थिति में लागू होता है, उन में भी जो वृद्ध माता-पिता की सेवा करते समय उठती हैं?
१४ दूसरे मामलों की तरह, पारिवारिक स्थितियों में भी बाइबल की सलाह लागू होती है: “बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो। और यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।”—कुलुस्सियों ३:१२, १३.
परिचारकों को भी परिचर्या की ज़रूरत है
१५. माता-पिता की सेवा करना कभी-कभी दुःखदायी क्यों होता है?
१५ एक अशक्त जनक की सेवा करना मेहनत का काम है, जिसमें अनेक काम और काफ़ी ज़िम्मेदारी होती है, और बहुत समय लगता है। लेकिन सबसे कठिन काम अकसर भावात्मक होता है। अपने माता-पिता को स्वास्थ्य, याददाश्त, और स्वतंत्र जीवन खोते देखना दुःखदायी होता है। पोर्ट रीको की रहनेवाली, सैन्डी बताती है: “मेरी माँ हमारे परिवार का केंद्र थीं। उनकी सेवा करना बहुत पीड़ादायी था। पहले वह लँगड़ाने लगीं; फिर उन्हें एक छड़ी की ज़रूरत पड़ी, फिर एक वॉकर की, और फिर एक पहिया-कुर्सी की। उसके बाद उनकी हालत बिगड़ती चली गयी जब तक कि वह गुज़र नहीं गयीं। उन्हें हड्डियों का कैंसर हो गया और रात-दिन—निरन्तर देखरेख की ज़रूरत पड़ी। हम उन्हें नहलाते, खिलाते और उनके लिए पढ़ते थे। यह बहुत कठिन था—ख़ासकर भावात्मक रूप से। जब मुझे एहसास हो गया कि मेरी माँ मर रही थीं, तो मैं रोयी क्योंकि मैं उनसे बहुत प्रेम करती थी।”
१६, १७. कौन-सी सलाह एक परिचारक को संतुलित दृष्टिकोण रखने में मदद दे सकती है?
१६ यदि आप स्वयं को एक मिलती-जुलती स्थिति में पाते हैं, तो सामना करने के लिए आप क्या कर सकते हैं? बाइबल पठन के द्वारा यहोवा की सुनना और प्रार्थना के द्वारा उससे बात करना आपकी बहुत मदद करेगा। (फिलिप्पियों ४:६, ७) एक व्यावहारिक रीति से, निश्चित कीजिए कि आप पौष्टिक भोजन खाते हैं और पर्याप्त नींद पाने की कोशिश कीजिए। ऐसा करने से, आप अपने प्रियजन की सेवा करने के लिए दोनों, भावात्मक और शारीरिक रूप से बेहतर अवस्था में होंगे। संभवतः आप प्रबन्ध कर सकते हैं कि कभी-कभी आपको दैनिक नित्यक्रम से छुट्टी मिल सके। यदि एक छुट्टी संभव नहीं है, तो भी विश्राम के लिए कुछ समय अलग रखना बुद्धिमानी की बात है। आप शायद यह प्रबन्ध कर पाएँ कि कोई और आपके बीमार जनक के साथ रहे, ताकि आपको कुछ समय मिल सके।
१७ यह सामान्य बात है कि वयस्क परिचारक अपने आपसे ज़रूरत से ज़्यादा अपेक्षाएँ करते हैं। लेकिन जो आप नहीं कर सकते उसके लिए अपने को दोषी मत मानिए। कुछ परिस्थितियों में आपको अपने प्रियजन को एक नर्सिंग होम की देखरेख में सौंपने की ज़रूरत पड़ सकती है। यदि आप एक परिचारक हैं, तो आपको अपने आपसे उतना ही करने की अपेक्षा करनी चाहिए जितना की व्यावहारिक है। आपको न सिर्फ़ अपने माता-पिता की बल्कि अपने बच्चों की, अपने विवाह-साथी की, और अपनी ज़रूरतों के बीच भी संतुलन बनाना है।
असीम सामर्थ
१८, १९. यहोवा ने सहारा देने की कौन-सी प्रतिज्ञा की है, और कौन-सा अनुभव दिखाता है कि वह इस प्रतिज्ञा को पूरा करता है?
१८ अपने वचन, बाइबल के द्वारा यहोवा प्रेमपूर्वक मार्गदर्शन प्रदान करता है जो बूढ़े होते माता-पिता की सेवा करने में एक व्यक्ति को बहुत मदद दे सकता है, लेकिन वह यही एकमात्र मदद नहीं प्रदान करता है। “जितने यहोवा को पुकारते हैं . . . उन सभों के वह निकट रहता है,” भजनहार ने उत्प्रेरणा के अधीन लिखा। “वह . . . उनकी दोहाई सुनकर उनका उद्धार करता है।” अति कठिन स्थितियों में भी यहोवा अपने वफ़ादार जनों का उद्धार करेगा, या उन्हें बचाएगा।—भजन १४५:१८, १९.
१९ फिलिपींस में मर्ना ने अपनी माँ की सेवा करते समय यह जाना, जो एक दौरे के कारण असहाय हो गयी थी। “अपने प्रियजन को पीड़ित देखने से ज़्यादा हताश करनेवाली और कोई बात नहीं हो सकती, जो आपको बता भी नहीं पाता कि दर्द कहाँ है,” मर्ना लिखती है। “यह उन्हें तिल तिल करके डूबते हुए देखने के जैसा था, और मैं कुछ भी नहीं कर सकती थी। कई बार मैं अपने घुटने टेककर यहोवा से बात करती कि मैं कितनी थक गयी थी। मैं दाऊद की तरह रोयी, जिसने यहोवा से निवेदन किया कि उसके आँसुओं को एक कुप्पी में रख ले और उसे याद रखे। [भजन ५६:८] और जैसे यहोवा ने प्रतिज्ञा की है, उसने मुझे आवश्यक शक्ति दी। ‘यहोवा मेरा आश्रय बना।’”—भजन १८:१८.
२०. कौन-सी बाइबल प्रतिज्ञाएँ परिचारकों को आशावादी रहने में मदद देती हैं, चाहे वह व्यक्ति मर भी जाए जिसकी देखरेख वे कर रहे हैं?
२० यह कहा गया है कि बूढ़े होते माता-पिता की सेवा करने की “कहानी का अन्त सुखद नहीं है।” भरसक कोशिश के साथ सेवा करने के बावजूद, वृद्धजन शायद मर जाएँ, जैसे मर्ना की माँ। लेकिन जो यहोवा पर भरोसा रखते हैं वे जानते हैं कि मृत्यु कहानी का अन्त नहीं है। प्रेरित पौलुस ने कहा: “[मैं] परमेश्वर से आशा रखता हूं . . . कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” (प्रेरितों २४:१५) जिनके वृद्ध माता-पिता मर गए हैं वे पुनरुत्थान की आशा, साथ ही परमेश्वर के बनाए हुए एक आनन्दपूर्ण नए संसार की प्रतिज्ञा से सांत्वना प्राप्त करते हैं जिसमें “मृत्यु न रहेगी।”—प्रकाशितवाक्य २१:४.
२१. वृद्ध माता-पिताओं को सम्मान देने से कौन-से अच्छे परिणाम मिलते हैं?
२१ परमेश्वर के सेवक अपने माता-पिताओं का गहरा आदर करते हैं, चाहे वे बूढ़े ही क्यों न हो गए हों। (नीतिवचन २३:२२-२४) वे उनको सम्मान देते हैं। ऐसा करने में, वे उत्प्रेरित नीतिवचन की सत्यता का अनुभव करते हैं: “तेरे कारण माता-पिता आनन्दित, और तेरी जननी मगन होए।” (नीतिवचन २३:२५) और सबसे बढ़कर, जो अपने वृद्ध माता-पिताओं को सम्मान देते हैं वे यहोवा परमेश्वर को भी प्रसन्न करते और सम्मान देते हैं।
a यहाँ हम उन स्थितियों की चर्चा नहीं कर रहे हैं जिनमें माता-पिता अपनी शक्ति और धरोहर के अत्यधिक दुष्प्रयोग के दोषी थे, जिससे कि उन्हें अपराध का दोषी समझा जा सकता है।
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अपने परिवार के लिए स्थायी भविष्य सुरक्षित कीजिएपारिवारिक सुख का रहस्य
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अध्याय सोलह
अपने परिवार के लिए स्थायी भविष्य सुरक्षित कीजिए
१. पारिवारिक प्रबन्ध के लिए यहोवा का उद्देश्य क्या था?
जब यहोवा ने आदम और हव्वा को विवाह में जोड़ा, तब आदम ने अभिलिखित सबसे पुरानी इब्रानी कविता कहने के द्वारा अपना आनन्द व्यक्त किया। (उत्पत्ति २:२२, २३) लेकिन, सृष्टिकर्ता के मन में अपने मानव बच्चों को मात्र सुख देने से अधिक था। वह चाहता था कि विवाहित दम्पति और परिवार उसकी इच्छा पर चलें। उसने पहले जोड़े से कहा: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।” (उत्पत्ति १:२८) वह कितनी बड़ी, फलदायी कार्य-नियुक्ति थी! वे और उनके भावी बच्चे कितने सुखी रहते यदि आदम और हव्वा पूर्ण आज्ञाकारिता से यहोवा की इच्छा पर चले होते!
२, ३. आज परिवार सबसे बड़ा सुख कैसे पा सकते हैं?
२ आज भी, परिवार सबसे सुखी तब होते हैं जब वे परमेश्वर की इच्छा पर चलने के लिए एकसाथ कार्य करते हैं। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “भक्ति सब बातों में लाभदायक है, क्योंकि इस पर वर्तमान और आने वाले जीवन की प्रतिज्ञा निर्भर है।” (१ तीमुथियुस ४:८, NHT) जो परिवार ईश्वरीय भक्ति के साथ जीता है और जो बाइबल में दिए गए यहोवा के मार्गदर्शन पर चलता है वह ‘वर्तमान जीवन’ में सुख पाएगा। (भजन १:१-३; ११९:१०५; २ तीमुथियुस ३:१६) यदि परिवार का केवल एक सदस्य बाइबल सिद्धान्तों पर अमल करता है, तो भी स्थिति उससे तो बेहतर होती है जब कोई नहीं करता।
३ इस पुस्तक में अनेक बाइबल सिद्धान्तों पर चर्चा की गयी है जो पारिवारिक सुख में योग देते हैं। संभवतः आपने ध्यान दिया होगा कि उनमें से कुछ सिद्धान्त पूरी पुस्तक में बार-बार आते हैं। क्यों? क्योंकि वे शक्तिशाली सच्चाइयों को चित्रित करते हैं जो पारिवारिक जीवन के विभिन्न पहलुओं में सभी के भले के लिए काम करती हैं। जो परिवार इन बाइबल सिद्धान्तों पर अमल करने का प्रयास करता है वह पाता है कि वास्तव में ईश्वरीय भक्ति पर ‘वर्तमान जीवन की प्रतिज्ञा निर्भर है।’ आइए उन में से चार महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों को फिर से देखते हैं।
आत्म-संयम का महत्त्व
४. विवाह में आत्म-संयम अति-महत्त्वपूर्ण क्यों है?
४ राजा सुलैमान ने कहा: “जिस मनुष्य की आत्मा उसके वश में नहीं, वह उस ध्वस्त नगर के समान है जिसकी दीवारें ढह गयीं।” (नीतिवचन २५:२८, NHT; २९:११) ‘अपनी आत्मा वश में करना,’ आत्म-संयम रखना उनके लिए अति-महत्त्वपूर्ण है जो एक सुखी विवाह चाहते हैं। क्रोध या अनैतिक कामुकता जैसे विनाशक भावों में आ जाना ऐसी हानि पहुँचाएगा जिसकी पूर्ति में सालों लगते हैं—यदि पूर्ति की कोई संभावना है भी।
५. एक अपरिपूर्ण मनुष्य आत्म-संयम कैसे विकसित कर सकता है, और इसके लाभ क्या हैं?
५ निःसंदेह, आदम का कोई वंशज पूरी तरह से अपने अपरिपूर्ण शरीर को वश में नहीं कर सकता। (रोमियों ७:२१, २२) फिर भी, आत्म-संयम आत्मा का एक फल है। (गलतियों ५:२२, २३) अतः, यदि हम इस गुण के लिए प्रार्थना करते हैं, यदि हम उपयुक्त सलाह पर अमल करते हैं जो शास्त्र में दी गयी है, और यदि हम उनके साथ संगति करते हैं जो इसे दर्शाते हैं और उनसे दूर रहते हैं जो इसे नहीं दर्शाते, तो परमेश्वर की आत्मा हमारे अन्दर आत्म-संयम उत्पन्न करेगी। (भजन ११९:१००, १०१, १३०; नीतिवचन १३:२०; १ पतरस ४:७) ऐसा मार्ग हमें उस समय भी ‘व्यभिचार से बचे रहने’ में मदद देगा जब हम पर प्रलोभन आते हैं। (१ कुरिन्थियों ६:१८) हम हिंसा को ठुकराएँगे और मद्यव्यसनता से दूर रहेंगे अथवा उस पर विजय पाएँगे। और हम उत्तेजित किए जाने पर तथा कठिन स्थितियों में अधिक शान्ति से व्यवहार करेंगे। ऐसा हो कि सभी—बच्चे भी—आत्मा के इस अति-महत्त्वपूर्ण फल को विकसित करना सीखें।—भजन ११९:१, २.
मुखियापन के प्रति उचित दृष्टिकोण
६. (क) मुखियापन का ईश्वरीय रूप से स्थापित क्रम क्या है? (ख) यदि एक पुरुष के मुखियापन से उसके परिवार को सुख मिलना है तो उसे क्या याद रखना चाहिए?
६ दूसरा महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है मुखियापन को स्वीकार करना। पौलुस ने उचित क्रम का वर्णन किया जब उसने कहा: “मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि हर एक पुरुष का सिर मसीह है: और स्त्री का सिर पुरुष है: और मसीह का सिर परमेश्वर है।” (१ कुरिन्थियों ११:३) इसका अर्थ है कि परिवार में पुरुष अगुवाई लेता है, उसकी पत्नी निष्ठा के साथ समर्थन करती है, और बच्चे अपने माता-पिता की आज्ञा मानते हैं। (इफिसियों ५:२२-२५, २८-३३; ६:१-४) लेकिन, ध्यान दीजिए कि मुखियापन सुख का कारण केवल तब बनता है जब उसे उचित रीति से चलाया जाता है। जो पति ईश्वरीय भक्ति के साथ जीते हैं वे जानते हैं कि मुखियापन तानाशाही नहीं है। वे अपने सिर, यीशु की नक़ल करते हैं। हालाँकि यीशु को “सब वस्तुओं पर शिरोमणि” होना था, वह “इसलिये नहीं आया कि उस की सेवा टहल किई जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे।” (इफिसियों १:२२; मत्ती २०:२८) समान रीति से, एक मसीही पुरुष स्वयं को लाभ पहुँचाने के लिए नहीं, बल्कि अपनी पत्नी और बच्चों के हितों की चिन्ता करने के लिए मुखियापन चलाता है।—१ कुरिन्थियों १३:४, ५.
७. कौन-से शास्त्रीय सिद्धान्त एक पत्नी को परिवार में अपनी परमेश्वर-नियुक्त भूमिका को पूरा करने में मदद देंगे?
७ अपनी भूमिका में, जो पत्नी ईश्वरीय भक्ति के साथ जीती है वह अपने पति के साथ होड़ नहीं लगाती या उस पर प्रभुत्व नहीं करना चाहती। वह उसे समर्थन देने में और उसके साथ काम करने में सुखी है। बाइबल कभी-कभी पत्नी के बारे में कहती है कि वह अपने पति की “सम्पत्ति” है, जिससे कोई संदेह नहीं रह जाता कि वह उसका सिर है। (उत्पत्ति २०:३, NW) विवाह के द्वारा वह अपने “पति की व्यवस्था” के अधीन आ जाती है। (रोमियों ७:२) साथ ही, बाइबल उसे एक “सहायक” और एक “सम्पूरक” कहती है। (उत्पत्ति २:२०, NW) वह उन गुणों और योग्यताओं को प्रदान करती है जिनकी कमी उसके पति में है, और वह उसे आवश्यक सहारा देती है। (नीतिवचन ३१:१०-३१) बाइबल यह भी कहती है कि पत्नी एक “संगिनी” है, जो अपने विवाह-साथी के साथ-साथ काम करती है। (मलाकी २:१४) ये शास्त्रीय सिद्धान्त एक पति-पत्नी को मदद देते हैं कि एक दूसरे के पद की क़दर करें और एक दूसरे से उचित आदर और गरिमा के साथ व्यवहार करें।
“सुनने के लिये तत्पर”
८, ९. कुछ सिद्धान्त समझाइए जो परिवार में सभी को अपने संचार कौशल सुधारने में मदद देंगे।
८ इस पुस्तक में संचार की ज़रूरत को बारंबार विशिष्ट किया गया है। क्यों? क्योंकि काम ज़्यादा अच्छी तरह बनता है जब लोग एक दूसरे से बात करते और सचमुच एक दूसरे की सुनते हैं। इस बात पर बार-बार ज़ोर दिया गया था कि संचार दोतरफ़ा होता है। शिष्य याकूब ने इसे इस प्रकार व्यक्त किया: “हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा . . . हो।”—याकूब १:१९.
९ इस बारे में सतर्क रहना भी महत्त्वपूर्ण है कि हम कैसे बोलते हैं। अविचारित, अप्रिय, या अति आलोचनात्मक वचनों से सफल संचार नहीं होता। (नीतिवचन १५:१; २१:९; २९:११, २०) जब हमारी बात सही होती है तब भी, यदि हम उसे क्रूर, घमंडी, या रूखे ढंग से व्यक्त करते हैं, तो यह संभव है कि भला कम बुरा ज़्यादा होगा। हमारी बोली रुचिपूर्ण, ‘सलोनी’ होनी चाहिए। (कुलुस्सियों ४:६) हमारे वचन “चान्दी की टोकरियों में सोनहले सेब” के समान होने चाहिए। (नीतिवचन २५:११) जो परिवार अच्छी तरह संचार करना सीखते हैं उन्होंने सुख प्राप्त करने की ओर एक बड़ा डग भरा है।
प्रेम की अति-महत्त्वपूर्ण भूमिका
१०. विवाह में किस क़िस्म का प्रेम अति-महत्त्वपूर्ण है?
१० शब्द “प्रेम” इस पूरी पुस्तक में बार-बार आता है। क्या आपको याद है कि मुख्यतः किस क़िस्म के प्रेम का उल्लेख किया गया है? यह सच है कि विवाह में रोमानी प्रेम (यूनानी, ईरॉस) एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और सफल विवाहों में पति-पत्नी के बीच बहुत स्नेह और मित्रता (यूनानी, फिलीआ) बढ़ जाती है। लेकिन यूनानी शब्द अगापे द्वारा चित्रित प्रेम और भी महत्त्वपूर्ण है। यह वह प्रेम है जो हम यहोवा, यीशु, और अपने पड़ोसी के लिए विकसित करते हैं। (मत्ती २२:३७-३९) यह वह प्रेम है जो यहोवा मानवजाति के प्रति व्यक्त करता है। (यूहन्ना ३:१६) कितना अद्भुत है कि हम अपने विवाह-साथी और बच्चों के लिए इसी क़िस्म का प्रेम दिखा सकते हैं!—१ यूहन्ना ४:१९.
११. प्रेम एक विवाह के भले के लिए कैसे काम करता है?
११ विवाह में यह उन्नत प्रेम सचमुच “एकता का सिद्ध बन्ध है।” (कुलुस्सियों ३:१४, NHT) यह एक दम्पति को एकसाथ बाँधता है और उन्हें वह करने की चाह देता है जो एक दूसरे के लिए और उनके बच्चों के लिए सर्वोत्तम है। जब परिवार कठिन परिस्थितियों का सामना करते हैं, तब प्रेम एक होकर स्थिति से निपटने में उनकी मदद करता है। जैसे-जैसे दम्पति की उम्र ढलती है, प्रेम एक दूसरे को सहारा देने और सम्मान देना जारी रखने में उनकी मदद करता है। “प्रेम . . . अपनी भलाई नहीं चाहता, . . . वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। प्रेम कभी टलता नहीं।”—१ कुरिन्थियों १३:४-८.
१२. विवाहित दम्पति का परमेश्वर के लिए प्रेम उनके विवाह को क्यों मज़बूत बनाता है?
१२ विवाह बंधन ख़ासकर मज़बूत होता है जब वह मात्र विवाह-साथियों के बीच प्रेम के द्वारा नहीं बल्कि मुख्यतः यहोवा के लिए प्रेम के द्वारा जुड़ा होता है। (सभोपदेशक ४:९-१२) क्यों? क्योंकि प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें।” (१ यूहन्ना ५:३) अतः, एक दम्पति को अपने बच्चों को ईश्वरीय भक्ति में प्रशिक्षित करना चाहिए मात्र इसलिए नहीं कि वे अपने बच्चों से गहरा प्रेम करते हैं बल्कि इसलिए कि यह यहोवा की आज्ञा है। (व्यवस्थाविवरण ६:६, ७) उन्हें अनैतिकता से दूर रहना चाहिए सिर्फ़ इसलिए नहीं कि वे एक दूसरे से प्रेम करते हैं बल्कि मुख्यतः इसलिए कि वे यहोवा से प्रेम करते हैं, जो “व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियों का न्याय करेगा।” (इब्रानियों १३:४) यदि एक साथी विवाह में बड़ी समस्याएँ उत्पन्न करता है, तो भी यहोवा के लिए प्रेम दूसरे को प्रेरित करेगा कि बाइबल सिद्धान्तों पर चलता रहे। सचमुच, सुखी हैं वे परिवार जिनमें एक दूसरे के लिए प्रेम को यहोवा के लिए प्रेम के द्वारा मज़बूत किया गया है!
परमेश्वर की इच्छा पर चलनेवाला परिवार
१३. परमेश्वर की इच्छा पर चलने का दृढ़-निश्चय व्यक्तियों की मदद कैसे करेगा कि अपनी आँखें सचमुच महत्त्वपूर्ण बातों पर रखें?
१३ एक मसीही का पूरा जीवन परमेश्वर की इच्छा पूरी करने पर केंद्रित होता है। (भजन १४३:१०) ईश्वरीय भक्ति का वास्तव में यही अर्थ है। परमेश्वर की इच्छा पर चलना परिवारों की मदद करता है कि अपनी आँखें सचमुच महत्त्वपूर्ण बातों पर रखें। (फिलिप्पियों १:९, १०) उदाहरण के लिए, यीशु ने चिताया: “मैं तो आया हूं, कि मनुष्य को उसके पिता से, और बेटी को उस की मां से, और बहू को उस की सास से अलग कर दूं। मनुष्य के बैरी उसके घर ही के लोग होंगे।” (मत्ती १०:३५, ३६) यीशु की चेतावनी सही निकली क्योंकि उसके अनेक अनुयायियों को परिवार के सदस्यों द्वारा सताया गया है। कितनी दुःखद, पीड़ादायी स्थिति! परन्तु, पारिवारिक बंधनों को यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह के लिए हमारे प्रेम से अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं होना चाहिए। (मत्ती १०:३७-३९) यदि एक व्यक्ति पारिवारिक विरोध के बावजूद धीरज धरता है, तो ईश्वरीय भक्ति के अच्छे प्रभाव देखने पर विरोधी शायद बदल जाएँ। (१ कुरिन्थियों ७:१२-१६; १ पतरस ३:१, २) यदि ऐसा नहीं होता है, तो भी विरोध के कारण परमेश्वर की सेवा करना छोड़ने से कोई स्थायी लाभ नहीं होता।
१४. परमेश्वर की इच्छा पर चलने की अभिलाषा माता-पिताओं की मदद कैसे करेगी कि अपने बच्चों के हित में कार्य करें?
१४ परमेश्वर की इच्छा पर चलना सही फ़ैसले करने में माता-पिताओं की मदद करता है। उदाहरण के लिए, कुछ समुदायों में माता-पिता अकसर बच्चों को अपनी पूँजी समझते हैं, और वे अपने बच्चों पर भरोसा करते हैं कि उनके बुढ़ापे में वे उनकी सेवा करेंगे। जबकि सयाने बच्चों के लिए यह सही और उचित है कि अपने बूढ़े होते माता-पिताओं की सेवा करें, इसका यह अर्थ नहीं कि माता-पिता अपने बच्चों पर एक भौतिकवादी जीवन-शैली अपनाने के लिए दबाव डालें। यदि माता-पिता अपने बच्चों को इस प्रकार बड़ा करते हैं कि वे भौतिक सम्पत्ति को आध्यात्मिक बातों से अधिक महत्त्व दें, तो वे उनका भला नहीं करते।—१ तीमुथियुस ६:९.
१५. तीमुथियुस की माँ, यूनीके किस प्रकार एक ऐसी जनक का अत्युत्तम उदाहरण थी जो परमेश्वर की इच्छा पर चली?
१५ इस सम्बन्ध में पौलुस के युवा मित्र तीमुथियुस की माँ, यूनीके एक उत्तम उदाहरण है। (२ तीमुथियुस १:५) हालाँकि वह एक अविश्वासी से विवाहित थी, यूनीके ने तीमुथियुस की नानी, लोइस के साथ मिलकर सफलतापूर्वक तीमुथियुस को बड़ा किया कि ईश्वरीय भक्ति का पीछा करे। (२ तीमुथियुस ३:१४, १५) जब तीमुथियुस बड़ा हो गया, तब यूनीके ने उसे पौलुस के मिशनरी साथी के रूप में राज्य-प्रचार कार्य करने के लिए घर छोड़कर जाने दिया। (प्रेरितों १६:१-५) वह कितनी प्रसन्न हुई होगी जब उसका पुत्र एक उल्लेखनीय मिशनरी बना! एक वयस्क के रूप में उसकी ईश्वरीय भक्ति ने दिखाया कि उसे अच्छा प्रारंभिक प्रशिक्षण मिला था। निश्चित ही, यूनीके को तीमुथियुस की विश्वासयोग्य सेवकाई के समाचार मिलने पर संतुष्टि और आनन्द मिला, जबकि संभवतः उसे घर में उसका अभाव खटकता हो।—फिलिप्पियों २:१९, २०.
परिवार और आपका भविष्य
१६. एक पुत्र होने के नाते, यीशु ने कैसी उचित चिन्ता दिखायी, लेकिन उसका मुख्य उद्देश्य क्या था?
१६ यीशु का पालन-पोषण एक धर्म-परायण परिवार में हुआ, और वयस्क होने पर उसने अपनी माँ के लिए एक पुत्र की उचित चिन्ता दिखायी। (लूका २:५१, ५२; यूहन्ना १९:२६) लेकिन, यीशु का मुख्य उद्देश्य था परमेश्वर की इच्छा पूरी करना, और उसके लिए इसमें यह सम्मिलित था कि मनुष्यों के लिए अनन्त जीवन का आनन्द लेने का मार्ग खोले। उसने यह तब किया जब उसने पापी मानवजाति के लिए एक छुड़ौती के रूप में अपना परिपूर्ण मानव जीवन दे दिया।—मरकुस १०:४५; यूहन्ना ५:२८, २९.
१७. जो परमेश्वर की इच्छा पर चलते हैं उनके लिए यीशु के विश्वासी मार्ग ने कौन-सी शानदार प्रत्याशाएँ संभव बनायीं?
१७ यीशु की मृत्यु के बाद, यहोवा ने उसे स्वर्गीय जीवन के लिए जी उठाया और उसे बड़ा अधिकार दिया, अंततः उसे स्वर्गीय राज्य में राजा के रूप में बिठाया। (मत्ती २८:१८; रोमियों १४:९; प्रकाशितवाक्य ११:१५) यीशु के बलिदान ने कुछ मनुष्यों के लिए यह संभव बनाया कि वे उस राज्य में उसके साथ शासन करने के लिए चुने जाएँ। इसने बाक़ी की सत्हृदयी मानवजाति के लिए भी एक परादीसीय स्थिति में पुनःस्थापित पृथ्वी पर परिपूर्ण जीवन का आनन्द लेने का मार्ग खोला। (प्रकाशितवाक्य ५:९, १०; १४:१, ४; २१:३-५; २२:१-४) आज हमारे पास एक सबसे बड़ा विशेषाधिकार यह है कि अपने पड़ोसियों को यह शानदार सुसमाचार दें।—मत्ती २४:१४.
१८. परिवारों और व्यक्तियों, दोनों को कौन-सा अनुस्मारक और क्या प्रोत्साहन दिया गया है?
१८ जैसा प्रेरित पौलुस ने दिखाया, ईश्वरीय भक्ति का जीवन जीना यह प्रतिज्ञा देता है कि लोग “आने वाले” जीवन में इन आशिषों को प्राप्त कर सकते हैं। निश्चित ही, यह सुख पाने का सर्वोत्तम मार्ग है! याद रखिए, “संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।” (१ यूहन्ना २:१७) अतः, चाहे आप एक बच्चे हैं या जनक, पति हैं या पत्नी, अथवा एकल वयस्क हैं जिसके पास बच्चे हैं या नहीं, परमेश्वर की इच्छा पर चलने की कोशिश कीजिए। जब आप दबाव में हैं या नितांत कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, तब भी यह कभी मत भूलिए कि आप जीवते परमेश्वर के सेवक हैं। अतः, ऐसा हो कि आपके कार्य यहोवा को आनन्द लाएँ। (नीतिवचन २७:११) और ऐसा हो कि आपके आचरण से आपको अभी सुख मिले और आनेवाले नए संसार में अनन्त जीवन!
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