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  • वह रास्ता मत लीजिए जो आपको यहोवा से दूर ले जाएगा
    प्रहरीदुर्ग—2013 | जनवरी 15
    • वह रास्ता मत लीजिए जो आपको यहोवा से दूर ले जाएगा

      “आज चुन लो कि तुम किस की सेवा करोगे।”—यहो. 24:15.

      इन सवालों के जवाब दीजिए

      • आप कैसे नौकरी को सिर्फ उतनी अहमियत दे सकते हैं जितनी देनी चाहिए?

      • आप मनोरंजन के मामले में सही चुनाव कैसे कर सकते हैं?

      • अगर आपके परिवार का कोई सदस्य यहोवा को छोड़ देता है, तो आप अपने दुख से उबरने के लिए क्या कर सकते हैं?

      1-3. (क) यह क्यों कहा जा सकता है कि यहोशू ने ज़िंदगी में बिलकुल सही चुनाव किया? (ख) जब हमें कोई फैसला करना होता है, तो हमें क्या बात ध्यान में रखनी चाहिए?

      कल्पना कीजिए कि एक आदमी सड़क पर जा रहा है। चलते-चलते अचानक वह एक दोराहे पर पहुँचता है। अब उसे चुनना है कि वह कौन-सा रास्ता लेगा। अगर उसने मन में ठान लिया है कि उसे कहाँ जाना है, उसकी मंज़िल क्या है, तो वह वही रास्ता लेगा जो उसे मंज़िल तक पहुँचाएगा, न कि वह रास्ता जो मंज़िल से दूर ले जाएगा। जीवन की राह में भी कई बार हमारे सामने ऐसे मोड़ आते हैं जब हमें फैसला करना होता है कि हम कौन-सा रास्ता चुनेंगे। हर इंसान के पास मनचाहा फैसला करने की आज़ादी है और यह काफी हद तक उसके हाथ में होता है कि वह अपनी ज़िंदगी को किस रुख में ले जाना चाहेगा।

      2 बाइबल में हम ऐसे कई लोगों के बारे में पढ़ते हैं जिनकी ज़िंदगी में ऐसा वक्‍त आया जब उन्हें फैसला करना था कि वे क्या करेंगे। मिसाल के लिए, कैन को चुनाव करना था कि वह खुद पर संयम बरतेगा या फिर गुस्से से बेकाबू होकर पाप कर बैठेगा। (उत्प. 4:6, 7) यहोशू को चुनना था कि वह सच्चे परमेश्‍वर की सेवा करेगा या झूठे देवताओं की। (यहो. 24:15) यहोशू के मन में यह बात बिलकुल साफ थी कि वह हमेशा यहोवा के करीब बना रहेगा। इसलिए उसने सही चुनाव किया, उसने वह रास्ता चुना जो उसे यहोवा के करीब रहने में मदद देता। मगर कैन के मन में ऐसा मज़बूत इरादा नहीं था। इसलिए उसने वह रास्ता चुना जो उसे यहोवा से और भी दूर ले गया।

      3 जब हमारी ज़िंदगी में फैसला करने की घड़ी आती है, तब हमें भी अपनी मंज़िल ध्यान में रखनी चाहिए। हमारी मंज़िल या हमारा लक्ष्य है, सिर्फ ऐसे काम करना जिनसे यहोवा की महिमा हो और ऐसा कोई काम न करना जो हमें उससे दूर ले जा सकता है। (इब्रानियों 3:12 पढ़िए।) इस लेख में और अगले लेख में हम ज़िंदगी के सात मामलों पर गौर करेंगे जहाँ हमें सावधान रहना है कि कोई भी बात हमें यहोवा से दूर न ले जाए।

      नौकरी और करियर

      4. नौकरी-पेशा क्यों अहमियत रखता है?

      4 मसीहियों का फर्ज़ बनता है कि वे अपनी और अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करें। बाइबल इस बात की ओर इशारा करती है कि अगर एक मसीही अपने घर-परिवार की देखभाल नहीं करना चाहता तो वह एक अविश्‍वासी से भी बदतर है। (2 थिस्स. 3:10; 1 तीमु. 5:8) इससे साफ है कि नौकरी-पेशा हमारी ज़िंदगी में अहमियत रखता है। लेकिन अगर आप इस मामले में सावधान न रहें, तो नौकरी और करियर आपको यहोवा से दूर ले जा सकते हैं। वह कैसे?

      5. नौकरी के बारे में फैसला लेते वक्‍त हमें किन-किन बातों पर सोचना चाहिए?

      5 मान लीजिए आप एक नौकरी की तलाश में हैं। अगर आपके देश में नौकरी मिलना बहुत मुश्‍किल है, तो हो सकता है आपको जो भी नौकरी मिलती है, उसके लिए आप फौरन हाँ कहना चाहें। लेकिन अगर वह नौकरी बाइबल के उसूलों के खिलाफ है, तो आप क्या करेंगे? अगर आपको उस नौकरी में इतने ज़्यादा घंटे काम करने पड़ेंगे या इतना ज़्यादा सफर करना पड़ेगा कि आपको मसीही कामों के लिए या अपने परिवार के लिए बहुत कम वक्‍त मिलेगा, तो आप क्या फैसला लेंगे? यह सब जानते हुए भी क्या आपको वह नौकरी कबूल कर लेनी चाहिए, यह सोचकर कि बेरोज़गार बैठे रहने से तो अच्छा होगा कि मैं यही नौकरी कर लूँ? याद रखिए, अगर आपने गलत रास्ता चुना तो आप यहोवा से दूर जा सकते हैं। (इब्रा. 2:1) चाहे आप कोई नौकरी ढूँढ़ रहे हों या अपनी मौजूदा नौकरी बदलने की सोच रहे हों, आप सही फैसला कैसे ले सकते हैं?

      6, 7. (क) नौकरी-पेशे के बारे में एक इंसान के क्या लक्ष्य हो सकते हैं? (ख) कौन-सा लक्ष्य आपको यहोवा के करीब ले जाएगा? और क्यों?

      6 जैसे इस लेख के शुरू में बताया गया है, आपको सही फैसला लेने के लिए अपनी मंज़िल या लक्ष्य ध्यान में रखना चाहिए। खुद से पूछिए, ‘मैं एक नौकरी या करियर क्यों चाहता हूँ?’ अगर आप नौकरी के बारे में सही नज़रिया रखते हैं तो आपका लक्ष्य होगा, खुद की और अपने परिवार की देखभाल करना ताकि आप सब मिलकर यहोवा की सेवा कर पाएँ। तब यहोवा आपकी मेहनत पर आशीष देगा। (मत्ती 6:33) और अगर अचानक आपकी नौकरी छूट जाए या आपको आर्थिक मंदी का सामना करना पड़े, तो याद रखिए कि यहोवा ज़रूर आपकी मदद करेगा, उसका हाथ कभी छोटा नहीं पड़ता। (यशा. 59:1) वह “जानता है कि जो उसकी भक्‍ति करते हैं उन्हें परीक्षा से कैसे निकाले।”—2 पत. 2:9.

      7 लेकिन अगर नौकरी करने के पीछे आपका लक्ष्य दौलत कमाना है, तो क्या हो सकता है? भले ही आप पैसा कमाने में कामयाब हो जाएँ लेकिन आपको इस कामयाबी की एक भारी कीमत भी चुकानी पड़ेगी। (1 तीमुथियुस 6:9, 10 पढ़िए।) दौलत और करियर को बहुत ज़्यादा अहमियत देना आपको यहोवा से दूर ही ले जाएगा।

      8, 9. नौकरी-पेशे के बारे में माता-पिताओं को किन बातों पर गौर करना चाहिए? समझाइए।

      8 अगर आप एक माँ या पिता हैं तो यह भी गौर कीजिए कि आप जो फैसला करते हैं उससे आपके बच्चे क्या सीखेंगे। वे आपमें क्या देखते हैं? आप अपनी ज़िंदगी में करियर को पहली जगह दे रहे हैं या यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को? अगर वे पाते हैं कि आप दौलत, शोहरत या ऊँचे रुतबे को पहली जगह दे रहे हैं, तो क्या वे भी आपकी देखा-देखी इस खतरनाक राह पर नहीं चल पड़ेंगे? क्या उनकी नज़रों में कुछ हद तक आपकी इज़्ज़त नहीं घट जाएगी? एक जवान बहन कहती है, “जब मैं बहुत छोटी थी, तब से मैंने देखा है कि पापा हमेशा काम में डूबे रहते हैं। शुरू में लगता था कि वे इतनी मेहनत इसलिए करते हैं ताकि हम एक आरामदायक ज़िंदगी बिता सकें। वे चाहते थे कि हमें कभी किसी चीज़ की कमी न हो। लेकिन बीते कुछ सालों से उनका नज़रिया कुछ बदल-सा गया है। वे दिन-रात काम ही करते रहते हैं और घर में ज़रूरत की चीज़ों से ज़्यादा ऐशो-आराम की चीज़ों का अंबार लगा देते हैं। इस वजह से हमारा परिवार दौलतमंद होने के लिए जाना जाता है, न कि ऐसा परिवार जिससे दूसरों को परमेश्‍वर की सेवा में लगे रहने का बढ़ावा मिले। मुझे ज़्यादा खुशी तब होगी जब पापा दौलत के लिए मेहनत करने के बजाय आध्यात्मिक कामों में मेहनत करेंगे ताकि हमें यहोवा के करीब बने रहने में मदद मिले।”

      9 माता-पिताओ, आप अपने करियर को ज़्यादा तवज्ज्‌ह देकर यहोवा से दूर जाने की गलती मत कीजिए। अपने बच्चों के लिए अच्छी मिसाल रखिए ताकि वे देख सकें कि आप सच्चे दिल से मानते हैं कि यहोवा के साथ अच्छा रिश्‍ता ही दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है, न कि रुपया-पैसा।—मत्ती 5:3.

      10. करियर के बारे में चुनाव करते वक्‍त एक नौजवान किन बातों को ध्यान में रख सकता है?

      10 अगर आप एक नौजवान हैं और अपने करियर के बारे में सोच रहे हैं तो आप सही रास्ता कैसे चुन सकते हैं? जैसे कि हमने पहले चर्चा की है, आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि आपकी ज़िंदगी की मंज़िल क्या है। आप जो करियर चुनने की सोच रहे हैं उसमें जिस तरह की ट्रेनिंग दी जाएगी और उससे जो नौकरी मिलेगी क्या वह आपको राज के कामों में अच्छी तरह हिस्सा लेने में मदद करेगी या फिर आपको यहोवा से दूर ले जाएगी? (2 तीमु. 4:10) आपका लक्ष्य क्या है? क्या आप उन लोगों की तरह बनना चाहेंगे जिनकी खुशी उनके बैंक खाते के बढ़ने-घटने के हिसाब से बढ़ती-घटती है? या आप दाविद की तरह बनना चाहेंगे जिसे यहोवा पर पूरा भरोसा था? उसने लिखा, “मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूं; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े मांगते देखा है।” (भज. 37:25) याद रखिए, एक रास्ता आपको यहोवा से दूर ले जाएगा, जबकि दूसरा आपको सबसे बेहतरीन ज़िंदगी देगा। (नीतिवचन 10:22; मलाकी 3:10 पढ़िए।) आप कौन-सा रास्ता चुनेंगे?a

      मनोरंजन

      11. बाइबल मनोरंजन के बारे में क्या कहती है? हमें क्या बात ध्यान में रखनी चाहिए?

      11 बाइबल मनोरंजन को गलत नहीं बताती, न ही यह कहती है कि मन-बहलाव करना वक्‍त की बरबादी है। पौलुस ने अपने खत में तीमुथियुस को लिखा, ‘शरीर की कसरत कुछ हद तक फायदेमंद होती है।’ (1 तीमु. 4:8) बाइबल यह भी कहती है कि ‘हंसने का’ और “नाचने का भी समय” होता है, साथ ही यह सुझाव देती है कि हमें आराम के लिए थोड़ा-बहुत समय निकालना चाहिए। (सभो. 3:4; 4:6) हालाँकि मनोरंजन फायदेमंद है लेकिन अगर आप इस मामले में सावधानी न बरतें, तो यह आपको यहोवा से दूर ले जा सकता है। इस खतरे से बचने के लिए आपको दो बातों का खास ध्यान रखना है। एक यह कि आप किस तरह का मनोरंजन पसंद करते हैं और दूसरा, आप उसमें कितना वक्‍त बिताते हैं।

      मनोरंजन सही किस्म का हो और हद में रहकर किया जाए तो यह आपको तरो-ताज़ा कर सकता है

      12. सही मनोरंजन चुनने के लिए आपको किन बातों पर गौर करना चाहिए?

      12 सबसे पहले ध्यान दीजिए कि हमें किस तरह का मनोरंजन करना चाहिए। बेशक आज ऐसे कई तरह के मनोरंजन हैं जिन्हें अच्छा मनोरंजन कहा जा सकता है लेकिन आज का ज़्यादातर मनोरंजन ऐसी बातों को बढ़ावा देता है जिनसे परमेश्‍वर नफरत करता है, जैसे खून-खराबा, जादू-टोना और अनैतिक यौन-संबंध। इसलिए आपको ध्यान से जाँचना होगा कि आप कैसी बातों से मन-बहलाव करते हैं। क्या उन्हें अच्छा मनोरंजन कहा जा सकता है? उनका आप पर कैसा असर हो रहा है? क्या ये आपके अंदर मार-पीट करने या होड़ लगाने का रवैया पैदा करते हैं या देश-भक्‍ति की भावना पैदा करते हैं? (नीति. 3:31) क्या आपका मनोरंजन आपकी जेब पर भारी पड़ता है? क्या इससे दूसरों को ठोकर लग सकती है? (रोमि. 14:21) आपका मनोरंजन आपको किन लोगों के संपर्क में लाता है? (नीति. 13:20) क्या आपका मनोरंजन आपमें बुरे काम करने की इच्छा पैदा करता है?—याकू. 1:14, 15.

      13, 14. यह ध्यान देना क्यों ज़रूरी है कि आप मनोरंजन में कितना वक्‍त बिताते हैं?

      13 आपको यह भी ध्यान देना चाहिए कि आप मनोरंजन करने में कितना वक्‍त बिताते हैं। खुद से पूछिए, ‘क्या मैं मन-बहलाव करने में इतना ज़्यादा समय बिता देता हूँ कि आध्यात्मिक कामों के लिए मेरे पास बिलकुल वक्‍त नहीं बचता?’ अगर आप मनोरंजन में ढेर सारा वक्‍त बिताएँगे तो पाएँगे कि मनोरंजन आपको उतनी ताज़गी नहीं देता। सच तो यह है कि जो लोग एक हद में रहकर मनोरंजन करते हैं वे उन लोगों से ज़्यादा ताज़गी पाते हैं जो इसमें बहुत सारा वक्‍त ज़ाया करते हैं। क्यों? क्योंकि वे ‘ज़्यादा अहमियत रखनेवाले’ काम पहले पूरे कर लेते हैं और बचे हुए थोड़े-बहुत समय में मन-बहलाव करते हैं। इसलिए उनका ज़मीर उन्हें दोषी नहीं ठहराता।—फिलिप्पियों 1:10, 11 पढ़िए।

      14 हालाँकि मन-बहलाव करने में ज़्यादा समय बिताना लुभावना लग सकता है मगर यह ऐसा रास्ता है जो आपको यहोवा से दूर ले जा सकता है। यह बात 20 साल की एक बहन, किम ने अपनी गलती से सीखी। वह कहती है, “मैं एक भी पार्टी नहीं छोड़ती थी। हर शुक्रवार, शनिवार और रविवार को कोई-न-कोई बड़ा प्रोग्राम होता था। लेकिन अब मैं देख सकती हूँ कि ज़िंदगी में ऐसी बहुत-सी बातें हैं जो पार्टियों से कहीं ज़्यादा मायने रखती हैं। मिसाल के लिए, एक पायनियर होने की वजह से प्रचार में जाने के लिए मैं सुबह छः बजे उठती हूँ। इसलिए मैं देर रात एक-दो बजे तक दोस्तों के साथ मौज-मस्ती नहीं कर सकती। मैं जानती हूँ कि हर तरह की पार्टियाँ और दोस्तों के साथ मिलना-झुलना बुरा नहीं होता, मगर ये काफी हद तक हमारा ध्यान भटका सकते हैं। जैसे हर चीज़ के लिए एक हद बाँधना ज़रूरी होता है, उसी तरह मनोरंजन के लिए भी एक हद तय करना ज़रूरी है।”

      15. माता-पिता अपने बच्चों के लिए सही किस्म का मनोरंजन कैसे चुन सकते हैं?

      15 माता-पिताओं की ज़िम्मेदारी है कि वे अपनी और बच्चों की खाने-पीने की ज़रूरतें और आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करने के साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखें कि परिवार में सबको भरपूर प्यार मिले और सब खुश रहें। परिवार की खुशी के लिए मन-बहलाव का इंतज़ाम करना भी ज़रूरी है। अगर आप एक माँ या पिता हैं, तो मनोरंजन पर पाबंदी मत लगा दीजिए मानो यह गलत है। आप अपने परिवार के लिए अच्छे मनोरंजन का इंतज़ाम कर सकते हैं। पर साथ ही आपको ऐसे मनोरंजन से अपने परिवार को दूर रखना है जो आपको नुकसान पहुँचा सकता है। (1 कुरिं. 5:6) अगर आप थोड़ा पहले से सोचें तो आप अच्छा मनोरंजन चुन सकते हैं जिससे आपका परिवार तरो-ताज़ा हो सके।b इस मामले में सही चुनाव करने से आप अपने बच्चों के साथ ऐसे रास्ते पर चल रहे होंगे जो आपको यहोवा के और करीब ले जाएगा।

      पारिवारिक रिश्‍ते

      16, 17. कई माँ-बाप किस दुख से गुज़र रहे हैं? हम कैसे जानते हैं कि यहोवा उनका दर्द समझता है?

      16 माँ-बाप और बच्चों के बीच रिश्‍ता इतना मज़बूत होता है कि यहोवा ने भी इस रिश्‍ते की मिसाल देकर समझाया कि वह अपने लोगों से कितना प्यार करता है। (यशा. 49:15) इसलिए ज़ाहिर-सी बात है कि जब किसी का बेटा या बेटी यहोवा को छोड़ देता है तो माँ-बाप को यह दुख बरदाश्‍त करना बहुत मुश्‍किल लग सकता है। एक बहन बताती है कि जब उसकी बेटी का मंडली से बहिष्कार किया गया तो उस पर क्या बीती। वह कहती है, “मैं पूरी तरह टूट गयी। मैं बार-बार यही सोचती रहती कि क्यों मेरी बेटी ने यहोवा को छोड़ दिया। मैं खुद को दोषी मानने लगी, मुझे लगा कि सारा कसूर मेरा है।”

      17 अगर आपके परिवार में ऐसा हुआ है तो यकीन मानिए, यहोवा आपका दुख समझता है। खुद यहोवा भी इस दुख से गुज़रा है। जब पहले इंसान ने और जलप्रलय से पहले बहुत-से लोगों ने बगावत की तो यहोवा को ‘मन में बहुत खेद हुआ।’ (उत्प. 6:5, 6) अपनी औलाद को सच्चाई से बाहर जाते देखना कितना दर्दनाक होता है यह सिर्फ वे माँ-बाप समझ सकते हैं जिनके साथ ऐसा हुआ है। हालाँकि यह दुख झेलना बहुत मुश्‍किल हो सकता है, फिर भी अपने बच्चे की गलती की वजह से आप निराश होकर यहोवा से दूर मत चले जाइए। ऐसा करना नासमझी होगी। इस दुख से उबरने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

      18. अपने बच्चे की गलती के लिए माँ-बाप को दोषी क्यों नहीं महसूस करना चाहिए?

      18 अपने बच्चे की गलती के लिए आप खुद को दोषी मत ठहराइए। यहोवा ने हर इंसान को अपना रास्ता खुद चुनने की आज़ादी दी है और आपके परिवार में से जिस किसी ने अपना जीवन यहोवा को समर्पित करके बपतिस्मा लिया है, उसे ‘अपनी ज़िम्मेदारी का बोझ खुद उठाना’ है। (गला. 6:5) परिवार का जो सदस्य गलत राह चुनकर पाप करता है यहोवा उसी से लेखा लेगा, आपसे नहीं। (यहे. 18:20) पर साथ ही, दूसरों पर दोष मत डालिए। यहोवा ने मंडली में अनुशासन का जो इंतज़ाम किया है उसका आदर कीजिए। शैतान का विरोध कीजिए न कि प्राचीनों का, जो चरवाहों की तरह मंडली की देखभाल करते और उसकी हिफाज़त करते हैं।—1 पत. 5:8, 9.

      अपने बच्चे के बारे में यह उम्मीद लगाना गलत नहीं कि वह एक दिन यहोवा के पास लौट आएगा

      19, 20. (क) जिन माँ-बाप के बच्चों का बहिष्कार हो गया है वे अपने दुख से उबरने के लिए क्या कर सकते हैं? (ख) ऐसे माँ-बाप के लिए क्या आशा करना गलत नहीं है?

      19 लेकिन अगर आप यहोवा से नाराज़ हो जाते हैं, तो आप ऐसे रास्ते पर निकल पड़े हैं जो आपको यहोवा से दूर ले जाएगा। ऐसा करने के बजाय यहोवा के और करीब आने की कोशिश कीजिए। यह ज़रूरी है कि आपका बच्चा देख पाए कि आप सबसे ज़्यादा, यहाँ तक कि अपने परिवार के सदस्यों से भी ज़्यादा यहोवा से प्यार करते हैं। इसलिए यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत बनाए रखने की पूरी कोशिश कीजिए। अपने वफादार मसीही भाई-बहनों की संगति करना मत छोड़िए। (नीति. 18:1) प्रार्थना में अपने दिल का सारा हाल यहोवा को बताइए। (भज. 62:7, 8) अपने बेटे या बेटी से, जिसका बहिष्कार हो गया है, मेल-जोल बढ़ाने के बहाने मत ढूँढ़िए। मसलन, उससे ई-मेल या एस.एम.एस के ज़रिए संपर्क करने की कोशिश मत कीजिए। (1 कुरिं. 5:11) यहोवा की सेवा में व्यस्त रहिए। (1 कुरिं. 15:58) ऊपर हमने जिस बहन की बात की, वह कहती है, “मैं चाहती हूँ कि मैं यहोवा की सेवा में व्यस्त रहूँ और आध्यात्मिक बातों में मज़बूत बनी रहूँ ताकि जब मेरी बेटी यहोवा के पास लौट आए, तो मैं उसकी मदद कर सकूँ।”

      20 बाइबल कहती है कि प्यार “सब बातों की आशा रखता है।” (1 कुरिं. 13:4, 7) इसलिए अपने बच्चे के बारे में यह आशा करना गलत नहीं होगा कि वह एक दिन यहोवा के पास लौट आएगा। हर साल ऐसे बहुत-से लोग जिन्होंने पहले गलती थी, पश्‍चाताप करते हैं और यहोवा के संगठन में लौट आते हैं। जब वे पश्‍चाताप दिखाते हैं तो यहोवा उन्हें ठुकराता नहीं। वह उन्हें खुशी-खुशी “क्षमा” कर देता है।—भज. 86:5.

      सही चुनाव कीजिए

      21, 22. आपने चुनाव करने की आज़ादी का कैसे इस्तेमाल करने की ठान ली है?

      21 यहोवा ने हम इंसानों को अपना चुनाव खुद करने की आज़ादी दी है जो उसकी तरफ से एक बड़ा वरदान है। (व्यवस्थाविवरण 30:19, 20 पढ़िए।) मगर इसके साथ-साथ हम पर भारी ज़िम्मेदारी भी आती है कि हम इस आज़ादी का सही इस्तेमाल करें। हरेक मसीही को खुद से पूछना चाहिए: ‘मैंने कौन-सा रास्ता चुना है? क्या मैंने नौकरी-करियर, मनोरंजन या पारिवारिक रिश्‍तों के मामले में ऐसा रास्ता इख्तियार किया है जो मुझे यहोवा से दूर ले जा रहा है?’

      22 अपने लोगों के लिए यहोवा का प्यार कभी कम नहीं होता। वह कभी हमसे दूर नहीं जाता। सिर्फ एक ही चीज़ हमें यहोवा से दूर ले जा सकती है, और वह है हमारा गलत चुनाव। (रोमि. 8:38, 39) लेकिन आप चाहे तो ऐसे बुरे अंजाम से बच सकते हैं। ठान लीजिए कि आप ऐसा कोई चुनाव नहीं करेंगे जो आपको यहोवा से दूर ले जा सकता है। अगले लेख में हम और चार मामलों पर गौर करेंगे जहाँ हम दिखा सकते हैं कि हम कभी यहोवा से दूर नहीं जाएँगे।

      a करियर का चुनाव करने के बारे में और जानकारी के लिए ट्रैक्ट, नौजवानो—आप अपनी ज़िंदगी का क्या करेंगे? पढ़िए।

      b इस बारे में सुझाव के लिए अप्रैल-जून, 2012 की सजग होइए! के पेज 23-25 पढ़िए।

  • यहोवा के करीब बने रहिए
    प्रहरीदुर्ग—2013 | जनवरी 15
    • यहोवा के करीब बने रहिए

      “परमेश्‍वर के करीब आओ और वह तुम्हारे करीब आएगा।”—याकू. 4:8.

      क्या आप समझा सकते हैं?

      • हम कंप्यूटर जैसे इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों और सेहत के बारे में सही नज़रिया कैसे रख सकते हैं?

      • हम पैसे और गर्व की भावना के बारे में सही नज़रिया कैसे रख सकते हैं?

      • हम यहोवा के करीब कैसे बने रह सकते हैं?

      1, 2. (क) शैतान की ‘चालबाज़ियाँ’ क्या हैं? (ख) परमेश्‍वर के करीब बने रहने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

      यहोवा परमेश्‍वर ने हम इंसानों को इस तरह बनाया है कि हमारे लिए उसके करीब रहना बेहद ज़रूरी है। लेकिन शैतान चाहता है कि उसकी तरह हम भी यह मानें कि हमें यहोवा की ज़रूरत नहीं है। मगर यह बात झूठ है। अदन बाग में शैतान ने हव्वा से यही झूठ कहकर उसे गुमराह किया था। (उत्प. 3:4-6) तब से लेकर आज तक शैतान यही झूठ फैलाकर इंसानों को गुमराह कर रहा है। और सदियों से लोगों ने इस बात पर यकीन करके बार-बार वही गलती दोहरायी है जो हव्वा ने की थी।

      2 हालाँकि शैतान हमें गलत फैसले करने के लिए फुसलाता है ताकि हम यहोवा से दूर हो जाएँ, मगर हम उसके झाँसे में आने से बच सकते हैं। “हम उसकी चालबाज़ियों से अनजान नहीं” हैं। (2 कुरिं. 2:11) पिछले लेख में हमने देखा कि करियर, मनोरंजन और पारिवारिक रिश्‍तों के मामले में हम चाहे तो सही चुनाव कर सकते हैं। इस लेख में हम कंप्यूटर और दूसरे इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों, साथ ही सेहत, पैसे और गर्व की भावना के बारे में चर्चा करेंगे। हम देखेंगे कि “परमेश्‍वर के करीब” बने रहने के लिए हम कैसे इन बातों को सिर्फ उतनी अहमियत दे सकते हैं जितनी सही है।—याकू. 4:8.

      कंप्यूटर और इलैक्ट्रॉनिक उपकरण

      3. मिसाल देकर समझाइए कि कंप्यूटर और दूसरे इलैक्ट्रॉनिक उपकरण कैसे फायदा या नुकसान कर सकते हैं?

      3 आज दुनिया-भर में नयी-से-नयी तकनीक के कंप्यूटर और दूसरे इलैक्ट्रॉनिक उपकरण आम हो गए हैं। अगर इनका सही इस्तेमाल किया जाए तो ये बहुत फायदेमंद साबित हो सकते हैं। वहीं इनका गलत इस्तेमाल हमें यहोवा से दूर ले जा सकता है। कंप्यूटर की ही बात लीजिए। यह बहुत काम की चीज़ है। यह पत्रिका जिसे आप पढ़ रहे हैं, कंप्यूटर की ही मदद से लिखी गयी और प्रकाशित की गयी थी। कंप्यूटर खोजबीन करने और एक जगह से दूसरी जगह जानकारी पहुँचाने में काफी मददगार होता है और कभी-कभी यह अच्छे मनोरंजन का भी ज़रिया बन सकता है। लेकिन अगर हम सावधान न रहें तो हम पर कंप्यूटर का जुनून सवार हो सकता है। बाज़ार में जब भी कोई नया उपकरण आता है तो विज्ञापनों से लोगों को कायल किया जाता है कि उन्हें वह चीज़ हर हाल में खरीदनी चाहिए। एक जवान लड़के पर एक खास किस्म का टैबलेट कंप्यूटर खरीदने का ऐसा नशा चढ़ गया कि उसने पैसे के लिए चोरी-छिपे अपना एक गुरदा बेच दिया। एक इंसान दीवानगी की इस हद तक जा सकता है कि वह कल के बारे में सोचे बिना अपने शरीर का एक अंग बेच दे!

      4. एक मसीही ने कंप्यूटर की लत छोड़ने के लिए क्या किया?

      4 अगर आप कंप्यूटर या दूसरे इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों का गलत इस्तेमाल करेंगे या उनमें बहुत ज़्यादा समय बिताएँगे तो आपको इससे भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। हो सकता है आप यहोवा के साथ अपनी गहरी दोस्ती का सौदा कर बैठें। अट्ठाइस साल का एक जवान भाई, यॉनa कहता है, “मैं जानता हूँ कि बाइबल कहती है हमें आध्यात्मिक बातों के लिए ‘वक्‍त खरीदना’ चाहिए। लेकिन मैं कंप्यूटर पर इतना वक्‍त बरबाद कर देता था कि इस मामले में मैं खुद अपना सबसे बड़ा दुश्‍मन बन गया।” यॉन कई बार देर रात तक इंटरनेट से लगा रहता था। वह कहता है, “मुझे कंप्यूटर पर चैट करने और छोटे-छोटे वीडियो देखने की लत लग गयी थी। कुछ वीडियो बुरे किस्म के भी होते थे। मैं जितना ज़्यादा थका होता मुझे कंप्यूटर बंद करना उतना ही मुश्‍किल लगता था।” अपनी लत से छुटकारा पाने के लिए यॉन ने कंप्यूटर को ऐसे सेट किया कि जब उसके सोने का वक्‍त हो जाता तो कंप्यूटर खुद-ब-खुद बंद हो जाता।—इफिसियों 5:15, 16 पढ़िए।

      माता-पिताओ, अपने बच्चों को इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों के इस्तेमाल में सावधानी बरतना सिखाइए

      5, 6. (क) माता-पिताओं का क्या फर्ज़ बनता है? (ख) वे कैसे पक्का कर सकते हैं कि उनके बच्चे सिर्फ अच्छे लोगों की संगति करें?

      5 माता-पिताओ, आपको अपने बच्चों पर चौबीसों घंटे नज़र रखने की तो ज़रूरत नहीं है मगर जब वे कंप्यूटर के सामने होते हैं, तो आपको ज़रूर उन पर कड़ी नज़र रखनी है। इंटरनेट पर अनैतिक काम, हिंसा से भरे वीडियो गेम और भूत-विद्या के कार्यक्रम आसानी से मिलते हैं साथ ही बुरी सोहबत का भी खतरा रहता है। इसलिए यह सोचकर बच्चों को कंप्यूटर के हवाले मत कीजिए कि वे उसके साथ लगे रहेंगे तो आपको परेशान नहीं करेंगे और आप शांति से अपना काम कर सकते हैं। अगर आप ऐसा करेंगे तो वे इंटरनेट पर बुरी बातें भी देखेंगे और मान बैठेंगे कि ‘मम्मी-पापा ने मुझे मना नहीं किया है, तो इसे देखना गलत नहीं होगा।’ माता-पिता होने के नाते, अपने बच्चों की हिफाज़त करना आपका फर्ज़ है, फिर चाहे वे किशोर उम्र के क्यों न हों। आपको उन्हें ऐसी हर चीज़ से बचाए रखना है जो उन्हें यहोवा से दूर ले जा सकती है। यहाँ तक कि जानवरों में भी देखा जाता है कि वे अपने बच्चों को खतरे से बचाने के लिए हरदम तैयार रहते हैं। मिसाल के लिए, सोचिए कि जब एक रीछनी के बच्चों को कोई खतरा होता है तो वह कैसे उनकी हिफाज़त करती है!—होशे 13:8 से मिलाकर देखिए।

      6 अपने बच्चों के लिए ऐसे भाई-बहनों के साथ संगति करने का इंतज़ाम कीजिए जो अच्छी मिसाल रखते हैं। इसमें हर उम्र के भाई-बहनों को शामिल कीजिए। और याद रखिए कि आपके बच्चों को आपके साथ वक्‍त बिताने की ज़रूरत है! उनके लिए वक्‍त निकालिए ताकि आप उनके साथ हँस-खेल सकें, कुछ काम कर सकें और आध्यात्मिक बातों में भी शरीक हो सकें ताकि आप साथ मिलकर ‘परमेश्‍वर के करीब आ’ सकें।b

      सेहत

      7. हम सब क्यों अच्छी सेहत बनाए रखना चाहते हैं?

      7 “अब आपकी तबियत कैसी है?” यह एक आम सवाल है जो हमें एक कड़वी सच्चाई का एहसास दिलाता है। हमारे पहले माता-पिता ने शैतान की सुनकर यहोवा से दूर जाने का चुनाव किया था, इसलिए हम सब पर बीमारी का खतरा मंडराता रहता है। जब हम बीमार पड़ जाते हैं तो शैतान खुश होता है क्योंकि बीमारी हमारे लिए यहोवा की सेवा करना मुश्‍किल बना देती है। और अगर बीमारी के कारण हमारी मौत हो जाए तो बेशक हम यहोवा की सेवा नहीं कर पाएँगे। (भज. 115:17) इसलिए अच्छी सेहत बनाए रखने के लिए अपनी तरफ से जो बन पड़ता है वह हमें करना चाहिए।c साथ ही, अपने मसीही भाई-बहनों की सेहत की भी परवाह करनी चाहिए।

      8, 9. (क) हम सेहत के बारे में बहुत ज़्यादा चिंता करने से कैसे दूर रह सकते हैं? (ख) अपनी खुशी बढ़ाने के क्या फायदे हैं?

      8 लेकिन हमें सेहत के बारे में बहुत ज़्यादा चिंता भी नहीं करनी चाहिए। देखा गया है कि कुछ भाई-बहनों ने अच्छी सेहत के लिए किसी खास तरह के खान-पान, इलाज या दवाइयों के बारे में दूसरों को कायल करने में इतना जोश दिखाया है जितना वे राज का प्रचार करने में भी नहीं दिखाते। वे शायद सच्चे दिल से मानते हों कि ऐसा करके वे दूसरों की मदद कर रहे हैं। लेकिन हमें ध्यान रखना है कि राज-घर की सभाओं, सम्मेलन और अधिवेशन कार्यक्रमों से पहले या बाद में भाई-बहनों से मुलाकात करते वक्‍त इलाज के तरीकों, दवाइयों या सौंदर्य प्रसाधनों के बारे में सलाह देना सही नहीं है। ऐसा क्यों?

      9 सभाओं और सम्मेलनों में जाने का मकसद होता है आध्यात्मिक बातों पर चर्चा करना और अपनी खुशी बढ़ाना, जो कि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति से पैदा किया जानेवाला एक गुण है। (गला. 5:22) ऐसे मौकों पर चाहे किसी के पूछने पर या खुद पहल करके अगर हम दूसरों को सेहत या दवाइयों और प्रसाधनों के बारे में सलाह देते हैं, तो हम सभाओं के मकसद से अपना ध्यान हटा रहे होंगे और भाइयों की वह खुशी छीन रहे होंगे जो आध्यात्मिक बातों पर ध्यान देने से मिलती है। (रोमि. 14:17) सेहत एक ऐसा मामला है जिसमें हर किसी को अपना फैसला खुद करना है। और-तो-और, ऐसा कोई नहीं है जो सभी बीमारियों का हल बता सके। अच्छे-से-अच्छे डॉक्टर भी बुढ़ापे, बीमारी और मौत से बच नहीं सकते। और अपनी सेहत के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता करने से हम अपनी उम्र बढ़ा नहीं सकते। (लूका 12:25) इसके बजाय, “मन का आनन्द” हमारे लिए “अच्छी औषधि” या दवा का काम करता है।—नीति. 17:22.

      10. (क) कौन-से गुण हमें यहोवा की नज़र में खूबसूरत बनाते हैं? (ख) हमें हर बीमारी से निजात कब मिलेगी?

      10 उसी तरह, हालाँकि अपने रूप-रंग की देखभाल करना गलत नहीं है, मगर बढ़ती उम्र की हर निशानी मिटाने के लिए बहुत ज़्यादा जतन करना सही नहीं होगा। बढ़ती उम्र की निशानियाँ एक इंसान के तजुरबे, उसकी गरिमा और अंदरूनी खूबसूरती के बाहरी सबूत हैं। उदाहरण के लिए बाइबल कहती है, “पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं।” (नीति. 16:31) बुढ़ापे को यहोवा इसी नज़र से देखता है और हमें भी यही नज़रिया अपनाना चाहिए। (1 पतरस 3:3, 4 पढ़िए।) तो फिर खुद को जवान और खूबसूरत दिखाने के लिए क्या ऐसे ऑपरेशन या इलाज करवाना सही होगा जो गैर-ज़रूरी हैं और खतरनाक साबित हो सकते हैं? “यहोवा का आनन्द” यानी उससे मिलनेवाली खुशी सही मायनों में हमें खूबसूरत बनाती है, फिर चाहे हमारी उम्र या सेहत जैसी भी हो। (नहे. 8:10) हर बीमारी से निजात पाना और अपनी जवानी और खूबसूरती दोबारा पाना, नयी दुनिया में ही मुमकिन होगा। (अय्यू. 33:25; यशा. 33:24) तब तक आइए हम सेहत के मामले में समझदारी से काम लें और यहोवा के वादों पर विश्‍वास बनाए रखें, ताकि आज भी हम खुशी-खुशी जी सकें और यहोवा के करीब बने रहें।—1 तीमु. 4:8.

      पैसा

      11. पैसा हमारे लिए फंदा कैसे बन सकता है?

      11 पैसा अपने आप में बुरा नहीं है, न ही ईमानदारी से व्यापार करना गलत है। (सभो. 7:12; लूका 19:12, 13) लेकिन अगर हम ‘पैसे से प्यार’ करने लगें, तो यह तय है कि हम यहोवा से दूर चले जाएँगे। (1 तीमु. 6:9, 10) “इस ज़माने की ज़िंदगी की चिंता” यानी ज़रूरत की चीज़ों के बारे में दिन-रात फिक्र करना हमें आध्यात्मिक तौर पर दबा सकता है। उसी तरह “भ्रम में डालनेवाली पैसे की ताकत,” यानी यह गलत सोच कि पैसा होने से हम सच्ची खुशी और सुरक्षा पा सकते हैं, हमें दबा सकती है। (मत्ती 13:22) यीशु ने साफ शब्दों में कहा था कि “कोई भी” परमेश्‍वर का दास होने के साथ-साथ धन-दौलत की गुलामी नहीं कर सकता।—मत्ती 6:24.

      12. आजकल पैसा बनाने की कौन-सी तरकीबें बहुत आम हैं? हम उनसे कैसे बच सकते हैं?

      12 पैसे के बारे में गलत नज़रिया रखने से हम गलत फैसले ले सकते हैं। (नीति. 28:20) हमारे कुछ भाई रातों-रात आसानी से अमीर बनने की स्कीमों की तरफ लुभाए गए हैं जिस वजह से उन्होंने लॉटरी की टिकटें खरीदी हैं या ऐसी स्कीमों में पैसा लगाया है जिनमें शर्त होती है कि वे जितने ज़्यादा लोगों को सदस्य बनाएँगे उन्हें उतना ज़्यादा मुनाफा होगा। कुछ भाइयों ने तो मंडली के दूसरे भाई-बहनों को भी सदस्य बना लिया। दूसरों ने आँख मूँदकर ऐसी स्कीमों में पैसा लगाया है जिनमें बहुत ज़्यादा ब्याज के साथ मुनाफा पाने का लालच दिया जाता है। मगर ऐसी स्कीमों से आखिर में धोखा ही खाना पड़ता है। इसलिए लालच से बचिए, सोच-समझकर फैसले लीजिए। अगर आपको किसी स्कीम पर यकीन करना मुश्‍किल लगता है कि इसमें इतना ज़्यादा मुनाफा कैसे हो सकता है, तो समझिए दाल में कुछ काला है।

      13. पैसे के बारे में यहोवा का नज़रिया दुनिया की सोच से कैसे अलग है?

      13 जब हम परमेश्‍वर के ‘राज को और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है’ उसे पहली जगह देते हैं, तो हम भरोसा रख सकते हैं कि अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करने में हमारी मेहनत पर यहोवा ज़रूर आशीष देगा। (मत्ती 6:33; इफि. 4:28) यहोवा नहीं चाहता कि हम रात-दिन काम करते रहने की वजह से सभाओं में ऊँघने लगें या फिर राज-घर में बैठे पैसों की चिंता करते रहें। लेकिन दुनिया मानती है कि दिन-रात काम करने से ही हम इतना कमा सकेंगे कि कल को अचानक कोई मुसीबत आ जाए तो हम उसका सामना कर पाएँगे और बुढ़ापा भी आराम से काट सकेंगे। वे अकसर अपने बच्चों को भी ऐसा ही करने का बढ़ावा देते हैं। लेकिन यीशु ने समझाया कि ऐसा सोचना बेवकूफी है। (लूका 12:15-21 पढ़िए।) इस तरह का रवैया हमें गेहजी की याद दिलाता है जो सोच बैठा था कि वह दौलत बटोरने के साथ-साथ यहोवा की नज़र में अच्छा नाम भी बनाए रख सकता है।—2 राजा 5:20-27.

      14, 15. हमें क्यों पैसे पर पूरा भरोसा नहीं रखना चाहिए? एक अनुभव बताइए।

      14 पैसे का लालच एक इंसान को कैसे डुबा सकता है, इसे समझने के लिए एक मिसाल पर गौर कीजिए। कुछ तरह के उकाबों के बारे में देखा गया कि उन्होंने समुद्र से इतनी बड़ी मछली पंजों में जकड़ ली कि उसे लेकर उड़ना मुश्‍किल हो गया और क्योंकि उन्होंने मछली को नहीं छोड़ा इसलिए वे खुद समुद्र में डूब गए। क्या एक मसीही के साथ भी कुछ ऐसा हो सकता है? एलिक्स नाम का एक प्राचीन बताता है, “जहाँ तक हो सके मैं किफायत बरतने की कोशिश करता हूँ। अगर सिर धोने के लिए मेरे हाथ में ज़्यादा शैम्पू आ जाए तो मैं थोड़ा वापस बोतल में डाल देता हूँ।” मगर गौर कीजिए कि ऐसी किफायत बरतनेवाले एलिक्स के साथ भी क्या हुआ। उसने शेयर बाज़ार में पैसा लगाना शुरू किया। उसने सोचा कि मैं थोड़ा पैसा बना लूँगा और फिर जल्दी से अपनी नौकरी छोड़कर पायनियर सेवा शुरू कर दूँगा। वह शेयर खरीदने-बेचने के बारे में खोजबीन करने लगा और दिन-ब-दिन इसी में मसरूफ होता गया। उसने अपनी बचत से और शेयर-दलालों से उधार लिए पैसों से शेयर खरीद लिए। जानकारों ने बताया था कि उनकी कीमत देखते-ही-देखते बढ़ जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उलटा उनमें ज़बरदस्त गिरावट आ गयी। एलिक्स कहता है, “मैंने ठान लिया कि मैं अपना खोया हुआ पैसा वापस पाकर ही दम लूँगा। मुझे लगा कि अगर मैं थोड़ा इंतज़ार करूँ, तो शेयर की कीमत दोबारा बढ़ जाएगी।”

      15 कई महीनों तक एलिक्स शेयर बाज़ार के बारे में ही सोचता रहा। वह आध्यात्मिक बातों को पहली जगह नहीं दे पा रहा था और उसकी रातों की नींद उड़ गयी। मगर शेयर की कीमत बढ़ी नहीं। एलिक्स की सारी जमा-पूँजी खत्म हो गयी और उसे अपना घर बेचना पड़ा। वह कहता है, “मैंने अपने परिवार को बहुत दुख दिया।” मगर उसने एक ज़रूरी सबक सीखा। वह कहता है, “अब मैं जान गया हूँ कि जो शैतान की व्यवस्था पर भरोसा रखता है, उसे घोर निराशा ही हाथ लगेगी।” (नीति. 11:28) अगर हम अपनी जमा-पूँजी पर या किसी कारोबार में लगाए पैसे पर पूरा भरोसा करेंगे या फिर पैसा कमाने की अपनी काबिलीयत पर भरोसा रखेंगे तो हम दरअसल “इस दुनिया की व्यवस्था के ईश्‍वर” शैतान पर भरोसा कर रहे होंगे। (2 कुरिं. 4:4; 1 तीमु. 6:17) एलिक्स अब “खुशखबरी की खातिर” एक सादगी भरी ज़िंदगी जीता है। इस वजह से आज वह और उसका परिवार बहुत खुश है और वे यहोवा के करीब आ पाए हैं।—मरकुस 10:29, 30 पढ़िए।

      गर्व की भावना

      16. गर्व करने और घमंड करने में क्या फर्क है?

      16 सही बातों पर गर्व करना अच्छा हो सकता है। उदाहरण के लिए, हमें यहोवा के साक्षी होने पर गर्व महसूस करना चाहिए। (यिर्म. 9:24) आत्म-सम्मान की भावना हमें सही फैसले करने और चालचलन के ऊँचे स्तरों पर चलते रहने का बढ़ावा देती है। पर साथ ही हमें सावधान रहना है कि हम घमंड में आकर अपने विचारों को बहुत ज़्यादा तवज्जह न दें क्योंकि ऐसा करने से हम यहोवा से दूर जा सकते हैं।—भज. 138:6; रोमि. 12:3.

      मंडली में ज़िम्मेदारी के पद के लिए तरसने के बजाय प्रचार का पूरा-पूरा आनंद लीजिए!

      17, 18. (क) बाइबल में बताए कुछ नम्र लोगों और घमंडी लोगों की मिसाल दीजिए। (ख) एक भाई ने क्या किया ताकि घमंड उसे यहोवा से दूर न ले जाए?

      17 बाइबल में कुछ घमंडी लोगों की और कुछ नम्र लोगों की मिसालें दी गयी हैं। राजा दाविद एक नम्र इंसान था जिसने मार्गदर्शन के लिए यहोवा की ओर देखा और यहोवा ने उसे आशीष दी। (भज. 131:1-3) मगर यहोवा ने घमंडी राजा नबूकदनेस्सर और बेलशस्सर को नम्रता का सबक सिखाया। (दानि. 4:30-37; 5:22-30) अगर हममें घमंड हो, तो ज़िंदगी के कुछ हालात का सामना करना हमारे लिए मुश्‍किल हो सकता है। बत्तीस साल का एक सहायक सेवक रायन एक नयी मंडली के इलाके में जा बसा था। वह कहता है, “मैंने सोचा था कि प्राचीन की ज़िम्मेदारी के लिए बहुत जल्द मेरी सिफारिश की जाएगी। मगर एक साल बीत गया और कुछ नहीं हुआ।” क्या रायन ने यह सोचकर मन में गुस्सा या कड़वाहट पाल ली कि प्राचीनों ने मेरा आदर नहीं किया? क्या उसने सभाओं में जाना बंद कर दिया और घमंड से भरकर यहोवा से और उसके लोगों से दूर चला गया? अगर आप रायन की जगह होते तो क्या करते?

      18 रायन कहता है, “मैंने हमारी किताबों-पत्रिकाओं में इस बारे में दी सारी जानकारी पढ़ी कि जब हमारी कोई उम्मीद पूरी नहीं होती तो हमें क्या करना चाहिए।” (नीति. 13:12) वह आगे कहता है, “मैंने जाना कि मुझे सब्र से काम लेने और नम्रता बढ़ाने की ज़रूरत है। यहोवा मुझे कुछ सिखा रहा है और मुझे खुद को उसके हाथों सौंप देना होगा।” रायन ने अपना ध्यान खुद से हटाकर दूसरों की सेवा करने पर लगाया। वह मंडली के भाई-बहनों और प्रचार में दूसरों की मदद करने पर ध्यान देने लगा। कुछ ही समय के अंदर उसे ऐसे कई बाइबल अध्ययन मिले जो अच्छी तरक्की करने लगे। वह कहता है, “डेढ़ साल बाद जब मुझे प्राचीन ठहराया गया तो मैं खुशी से फूला न समाया क्योंकि मैंने उस वक्‍त इसकी उम्मीद नहीं की थी। मैंने इस बारे में चिंता करना छोड़ दिया था, क्योंकि मुझे अपनी सेवा में बहुत खुशी मिल रही थी।”—भजन 37:3, 4 पढ़िए।

      यहोवा के करीब बने रहिए!

      19, 20. (क) हम कैसे पक्का कर सकते हैं कि रोज़मर्रा ज़िंदगी की बातें हमें यहोवा से दूर न ले जाएँ? (ख) हम यहोवा के करीब रहनेवाले किन लोगों की मिसाल पर चल सकते हैं?

      19 हमने पिछले लेख में और इस लेख में जितने भी मामलों पर चर्चा की उन सबकी हमारी ज़िंदगी में अपनी एक जगह है। हम यहोवा के सेवक होने पर गर्व महसूस करते हैं। खुशहाल परिवार और अच्छी सेहत यहोवा के बेहतरीन तोहफों में से हैं। हम इस बात को समझते हैं कि अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए नौकरी और पैसा ज़रूरी है। हम यह भी जानते हैं कि मनोरंजन हमें तरो-ताज़ा कर सकता है और कंप्यूटर जैसे इलैक्ट्रॉनिक उपकरण फायदेमंद हो सकते हैं। लेकिन किसी भी चीज़ का गलत वक्‍त पर इस्तेमाल करना या हद-से-ज़्यादा इस्तेमाल करना या हमारी उपासना की जगह उसे अहमियत देना हमें यहोवा से दूर ले जा सकता है।

      कोई भी चीज़ आपको यहोवा से दूर न ले जाए!

      20 शैतान यही चाहेगा कि हम यहोवा से दूर हो जाएँ। लेकिन आप चाहें तो खुद को और अपने परिवार को ऐसी मुसीबत से बचा सकते हैं। (नीति. 22:3) यहोवा के करीब आइए और उसके करीब बने रहिए। इस मामले में हम बाइबल में बताए कई अच्छे लोगों से सीख सकते हैं। हनोक और नूह ‘परमेश्‍वर के साथ साथ चलते रहे।’ (उत्प. 5:22; 6:9) मूसा “अदृश्‍य परमेश्‍वर को मानो देखता हुआ डटा रहा।” (इब्रा. 11:27) यीशु ने हमेशा वही काम किया जो उसके पिता यहोवा को खुश करता है इसलिए परमेश्‍वर ने उसकी मदद की। (यूह. 8:29) आप भी इन अच्छी मिसालों पर चलिए। ‘हमेशा खुश रहिए। लगातार प्रार्थना करते रहिए। हर बात के लिए धन्यवाद देते रहिए।’ (1 थिस्स. 5:16-18) और सावधान रहिए कि कोई भी चीज़ आपको यहोवा से दूर न ले जाए!

      a नाम बदल दिए गए हैं।

      b अक्टूबर-दिसंबर 2011 की सजग होइए! पढ़िए जिसका शीर्षक है, “कैसे बनाएँ बच्चों को ज़िम्मेदार।”

      c जुलाई-सितंबर 2011 की सजग होइए! में “अच्छी सेहत पाने के पाँच सुझाव” पढ़िए।

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