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  • न्याय सिंहासन के सामने आपकी स्थिति क्या होगी?
    प्रहरीदुर्ग—1995 | अक्टूबर 15
    • न्याय सिंहासन के सामने आपकी स्थिति क्या होगी?

      “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएंगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा।”—मत्ती २५:३१.

      १-३. न्याय के सम्बन्ध में हमारे पास आशावाद का क्या कारण है?

      ‘दोषी या निर्दोष?’ किसी मुक़द्दमे के बारे में रिपोर्टें सुनने पर अनेक लोगों में यह जिज्ञासा होती है। न्यायाधीश और जूरी-सदस्य शायद सत्यवादी होने की कोशिश करें, लेकिन क्या सामान्यतः न्याय का बोलबाला होता है? क्या आपने न्यायिक कार्यवाही में अन्याय और पक्षपात के बारे में नहीं सुना है? ऐसा अन्याय कोई नयी बात नहीं है, जैसे हम लूका १८:१-८ में दिए गए यीशु के दृष्टान्त में देखते हैं।

      २ मानव न्याय के साथ आपका अनुभव जो भी हो, यीशु के निष्कर्ष पर ध्यान दीजिए: “क्या परमेश्‍वर अपने चुने हुओं का न्याय न चुकाएगा, जो रात-दिन उस की दुहाई देते रहते . . . ? मैं तुम से कहता हूं; वह तुरन्त उन का न्याय चुकाएगा; तौभी मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्‍वास पाएगा?”

      ३ जी हाँ, यहोवा यह देखेगा कि अंततः उसके सेवकों को न्याय मिलता है। यीशु भी सम्मिलित है, ख़ासकर अभी क्योंकि हम वर्तमान दुष्ट व्यवस्था के “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। जल्द ही यहोवा अपने सामर्थी पुत्र को पृथ्वी से दुष्टता मिटाने के लिए प्रयोग करेगा। (२ तीमुथियुस ३:१; २ थिस्सलुनीकियों १:७, ८; प्रकाशितवाक्य १९:११-१६) यीशु द्वारा दिए गए एक अंतिम दृष्टान्त से, जिसे अकसर भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा कहा जाता है, हम यीशु की भूमिका में अंतर्दृष्टि पा सकते हैं।

      ४. भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा के समय के बारे में हमने क्या समझा है, लेकिन अब हम इस नीतिकथा पर ध्यान क्यों देंगे? (नीतिवचन ४:१८)

      ४ हमने लम्बे अरसे से समझा है कि उस नीतिकथा ने यह चित्रित किया कि १९१४ में यीशु राजा के रूप में बैठा और तब से न्याय कर रहा है—जो लोग भेड़-समान साबित होते हैं उनके लिए अनन्त जीवन, बकरियों के लिए स्थायी मृत्यु। लेकिन उस नीतिकथा पर एक पुनर्विचार उसके समय और वह क्या चित्रित करती है इसके बारे में एक समंजित समझ की ओर संकेत करता है। यह परिष्करण हमारे प्रचार कार्य के महत्त्व और लोगों की प्रतिक्रिया के अभिप्राय पर ज़ोर देता है। उस नीतिकथा की इस अधिक गहरी समझ के आधार को देखने के लिए, आइए इस पर विचार करें कि बाइबल राजाओं और न्यायियों दोनों के रूप में यहोवा और यीशु के बारे में क्या दिखाती है।

      यहोवा सर्वोच्च न्यायी के रूप में

      ५, ६. यहोवा को राजा और न्यायी दोनों के रूप में देखना क्यों उपयुक्‍त है?

      ५ यहोवा विश्‍व में सभी पर अधिकार के साथ शासन करता है। क्योंकि उसका कोई आदि और कोई अन्त नहीं है, वह “सनातन राजा” है। (१ तीमुथियुस १:१७; भजन ९०:२, ४; प्रकाशितवाक्य १५:३) उसके पास विधान, या नियम बनाने और उन्हें लागू करने का अधिकार है। लेकिन उसके अधिकार में एक न्यायी होना सम्मिलित है। यशायाह ३३:२२ कहता है: “यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा हाकिम, यहोवा हमारा राजा है; वही हमारा उद्धार करेगा।”

      ६ परमेश्‍वर के सेवकों ने लम्बे अरसे से यहोवा को मामलों और वाद-विषयों के न्यायी के रूप में स्वीकार किया है। उदाहरण के लिए, जब “सारी पृथ्वी का न्यायी” सदोम और अमोरा की दुष्टता के बारे में प्रमाण देख चुका, तब उसने न्याय किया कि वहाँ के निवासी विनाश के योग्य थे और उस धर्मी न्याय को पूरा भी किया। (उत्पत्ति १८:२०-३३; अय्यूब ३४:१०-१२) यह जानकर हमें निश्‍चित ही आश्‍वासन मिलना चाहिए कि यहोवा एक धर्मी न्यायी है जो हमेशा अपने न्याय को कार्यान्वित कर सकता है!

      ७. इस्राएल के साथ व्यवहार करते समय यहोवा ने न्यायी के रूप में कैसे कार्य किया?

      ७ प्राचीन इस्राएल में, कभी-कभी यहोवा ने सीधे ही न्याय किया। उस समय क्या आपने यह जानकर सांत्वना नहीं पायी होती कि एक परिपूर्ण न्यायी मामलों का निर्णय कर रहा था? (लैव्यव्यवस्था २४:१०-१६; गिनती १५:३२-३६; २७:१-११) परमेश्‍वर ने ‘नियम’ भी दिए जो न्याय करने के स्तरों के रूप में पूरी तरह से भले थे। (लैव्यव्यवस्था २५:१८, १९; नहेमायाह ९:१३; भजन १९:९, १०; ११९:७, ७५, १६४; १४७:१९, २०) वह “सारी पृथ्वी का न्यायी” है, सो हम सब प्रभावित होते हैं।—इब्रानियों १२:२३.

      ८. दानिय्येल को कौन-सा प्रासंगिक दर्शन मिला?

      ८ इस विषय से सम्बन्धित हमारे पास “आँखों देखी” गवाही है। भविष्यवक्‍ता दानिय्येल को खूँख़ार जन्तुओं का दर्शन दिया गया जिन्होंने सरकारों अथवा साम्राज्यों को चित्रित किया। (दानिय्येल ७:१-८, १७) उसने आगे कहा: “सिंहासन रखे गए, और कोई अति प्राचीन विराजमान हुआ; उसका वस्त्र हिम सा उजला” था। (दानिय्येल ७:९) नोट कीजिए कि दानिय्येल ने सिंहासन देखे “और कोई अति प्राचीन [यहोवा] विराजमान हुआ।” (तिरछे टाइप हमारे।) अपने आप से पूछिए, ‘क्या यहाँ दानिय्येल परमेश्‍वर को राजा बनते हुए देख रहा था?’

      ९. सिंहासन पर ‘विराजमान होने’ का एक अर्थ क्या है? उदाहरण दीजिए।

      ९ जब हम पढ़ते हैं कि कोई सिंहासन पर “विराजमान हुआ,” तब हम उसके राजा बनने के बारे में सोच सकते हैं, क्योंकि बाइबल कभी-कभी ऐसी भाषा प्रयोग करती है। उदाहरण के लिए, “जब [जिम्री] राज्य करने लगा, तब गद्दी पर बैठते ही उस ने . . .।” (१ राजा १६:११; २ राजा १०:३०; १५:१२; यिर्मयाह ३३:१७) एक मसीहाई भविष्यवाणी ने कहा: “[वह] अपने सिंहासन पर विराजमान होकर प्रभुता करेगा।” (तिरछे टाइप हमारे।) अतः, “सिंहासन पर विराजमान” होने का अर्थ राजा बनना हो सकता है। (जकर्याह ६:१२, १३) यहोवा का वर्णन एक राजा के रूप में किया गया है जो सिंहासन पर विराजमान होता है। (१ राजा २२:१९; यशायाह ६:१; प्रकाशितवाक्य ४:१-३) वह “सनातन राजा” है। फिर भी, जब उसने सर्वसत्ता के एक नए पहलू को अपनाया, तो कहा जा सकता है कि वह राजा बना, मानो अपने सिंहासन पर नए रूप में बैठा हो।—१ इतिहास १६:१, ३१; यशायाह ५२:७; प्रकाशितवाक्य ११:१५-१७; १५:३; १९:१, २, ६.

      १०. इस्राएली राजाओं का एक प्रमुख कार्य क्या था? सचित्रित कीजिए।

      १० लेकिन एक मुख्य मुद्दा यह है: प्राचीन राजाओं का एक प्रमुख कार्य था कि मुक़द्दमों की सुनवाई करें और न्याय दें। (नीतिवचन २९:१४) सुलैमान का बुद्धिमत्तापूर्ण न्याय याद कीजिए जब दो स्त्रियों ने एक ही बच्चे का दावा किया। (१ राजा ३:१६-२८; २ इतिहास ९:८) उसका एक सरकारी भवन था “सिंहासन वाला एक बड़ा कक्ष . . . जहां उसे न्याय करना था,” वह “न्याय का कमरा” भी कहलाता था। (१ राजा ७:७, NHT) यरूशलेम का वर्णन ऐसे स्थान के रूप में किया गया जहाँ “न्याय के सिंहासन . . . धरे हुए हैं।” (भजन १२२:५) स्पष्टतः, ‘सिंहासन पर विराजमान होने’ का अर्थ न्यायिक अधिकार चलाना भी हो सकता है।—निर्गमन १८:१३; नीतिवचन २०:८.

      ११, १२. (क) दानिय्येल अध्याय ७ में उल्लिखित, यहोवा के विराजमान होने का क्या तात्पर्य था? (ख) अन्य शास्त्रवचन कैसे पुष्टि करते हैं कि यहोवा न्याय करने के लिए विराजमान होता है?

      ११ आइए अब उस दृश्‍य पर लौटते हैं जहाँ दानिय्येल ने ‘अति प्राचीन को विराजमान होते’ देखा। दानिय्येल ७:१० आगे कहता है: “न्यायी बैठ गए, और पुस्तकें खोली गईं।” जी हाँ, अति प्राचीन विश्‍व की प्रभुता के बारे में न्याय सुनाने और मनुष्य के पुत्र को राज्य करने के योग्य घोषित करने के लिए बैठा था। (दानिय्येल ७:१३, १४) उसके बाद तब हम पढ़ते हैं कि ‘अति प्राचीन आया और पवित्र लोगों का न्याय चुकाया गया,’ जिन्हें मनुष्य के पुत्र के साथ राज्य करने के लिए योग्य घोषित किया गया है। (दानिय्येल ७:२२, NHT) आख़िर में ‘न्यायी बैठे’ और अन्तिम विश्‍व शक्‍ति पर प्रतिकूल न्याय सुनाया।—दानिय्येल ७:२६.a

      १२ फलस्वरूप, दानिय्येल द्वारा परमेश्‍वर को ‘सिंहासन पर विराजमान होते’ देखने का अर्थ था न्याय सुनाने के लिए उसका आना। इससे पहले दाऊद ने गाया: “तू [यहोवा] ने मेरा न्याय और मुक़द्दमा चुकाया है; तू ने सिंहासन पर विराजमान होकर धर्म से न्याय किया।” (भजन ९:४, ७) और योएल ने लिखा: “जाति जाति के लोग उभरकर चढ़ जाएं और यहोशापात की तराई में जाएं, क्योंकि वहां मैं [यहोवा] . . . सारी जातियों का न्याय करने को बैठूंगा।” (योएल ३:१२. यशायाह १६:५ से तुलना कीजिए।) यीशु और पौलुस दोनों ही ऐसी न्यायिक स्थितियों में थे जिनमें एक मनुष्य मुक़द्दमा सुनने और न्याय चुकाने के लिए बैठा।b—यूहन्‍ना १९:१२-१६; प्रेरितों २३:३; २५:६.

      यीशु का पद

      १३, १४. (क) परमेश्‍वर के लोगों के पास क्या आश्‍वासन था कि यीशु राजा बनता? (ख) यीशु अपने सिंहासन पर कब बैठा, और सा.यु. ३३ से उसने किस अर्थ में राज्य किया?

      १३ यहोवा राजा और न्यायी दोनों है। यीशु के बारे में क्या? उसके जन्म की घोषणा करनेवाले स्वर्गदूत ने कहा: “प्रभु परमेश्‍वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा। . . . और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (लूका १:३२, ३३) यीशु दाऊद के राजत्व का स्थायी उत्तराधिकारी होता। (२ शमूएल ७:१२-१६) वह स्वर्ग से शासन करता, क्योंकि दाऊद ने कहा: “मेरे प्रभु [यीशु] से यहोवा की वाणी यह है, कि तू मेरे दहिने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणों की चौकी न कर दूं। तेरे पराक्रम का राजदण्ड यहोवा सिय्योन से बढ़ाएगा। तू अपने शत्रुओं के बीच में शासन कर।”—भजन ११०:१-४.

      १४ यह कब होता? मनुष्य के रूप में रहते समय यीशु ने शासन नहीं किया। (यूहन्‍ना १८:३३-३७) सामान्य युग ३३ में, वह मरा, पुनरुत्थित किया गया, और स्वर्ग पर चढ़ा। इब्रानियों १०:१२ कहता है: “यह व्यक्‍ति तो पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ाकर परमेश्‍वर के दहिने जा बैठा।” यीशु के पास क्या अधिकार था? ‘परमेश्‍वर ने उस को स्वर्गीय स्थानों में अपनी दहिनी ओर सब प्रकार की प्रधानता, और अधिकार, और सामर्थ, और प्रभुता के ऊपर बैठाया। और उसे सब वस्तुओं पर शिरोमणि ठहराकर कलीसिया को दे दिया।’ (इफिसियों १:२०-२२) क्योंकि तब यीशु के पास मसीहियों पर राज अधिकार था, पौलुस लिख सका कि यहोवा ने “हमें अन्धकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया।”—कुलुस्सियों १:१३; ३:१.

      १५, १६. (क) हम क्यों कहते हैं कि यीशु सा.यु. ३३ में परमेश्‍वर के राज्य का राजा नहीं बना? (ख) परमेश्‍वर के राज्य में यीशु ने शासन करना कब शुरू किया?

      १५ लेकिन उस समय, यीशु ने अन्य जातियों पर राजा और न्यायी के रूप में कार्य नहीं किया। वह परमेश्‍वर के पास बैठा था, और उस समय की प्रतीक्षा कर रहा था जब वह परमेश्‍वर के राज्य के राजा के रूप में कार्य करता। उसके बारे में पौलुस ने लिखा: “स्वर्गदूतों में से उस ने किस से कब कहा, कि तू मेरे दहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पांवों के नीचे की पीढ़ी न कर दूं?”—इब्रानियों १:१३.

      १६ यहोवा के साक्षियों ने काफ़ी सबूत प्रकाशित किया है कि प्रतीक्षा करने का यीशु का समय १९१४ में समाप्त हुआ, जब वह अदृश्‍य स्वर्ग में परमेश्‍वर के राज्य का शासक बना। प्रकाशितवाक्य ११:१५, १६, १८ कहता है: “जगत का राज्य हमारे प्रभु का, और उसके मसीह का हो गया। और वह युगानुयुग राज्य करेगा।” “और अन्य-जातियों ने क्रोध किया, और तेरा प्रकोप आ पड़ा।” जी हाँ, अन्य जातियों ने प्रथम विश्‍व युद्ध के दौरान एक दूसरे पर अपना क्रोध व्यक्‍त किया। (लूका २१:२४) युद्ध, भुईंडोल, मरियाँ, खाद्य पदार्थों की कमी, और इसी क़िस्म की बातें जो हमने १९१४ से देखी हैं इस बात की पुष्टि करती हैं कि यीशु अब परमेश्‍वर के राज्य में शासन कर रहा है, और संसार का अन्तिम अन्त निकट है।—मत्ती २४:३-१४.

      १७. अब तक हम ने कौन-से मुख्य मुद्दे स्थापित कर लिए हैं?

      १७ एक संक्षिप्त पुनर्विचार के रूप में: कहा जा सकता है कि परमेश्‍वर राजा के रूप में सिंहासन पर बैठता है, लेकिन एक और अर्थ में वह अपने सिंहासन पर न्याय करने के लिए बैठ सकता है। सामान्य युग ३३ में, यीशु परमेश्‍वर के दहिने हाथ बैठा, और वह अब उस राज्य का राजा है। लेकिन क्या यीशु, जो अब राजा के रूप में शासन कर रहा है, न्यायी के रूप में भी कार्य करता है? और इससे हमें क्यों फ़र्क पड़ना चाहिए, ख़ासकर इस समय?

      १८. इसका क्या प्रमाण है कि यीशु न्यायी भी होता?

      १८ यहोवा ने, जिसके पास न्यायी नियुक्‍त करने का अधिकार है, यीशु को एक न्यायी के रूप में चुना, क्योंकि वह यहोवा के स्तरों पर ठीक बैठता है। यीशु ने यह दिखाया जब वह लोगों के आध्यात्मिक रूप से जीवित होने के बारे में बोल रहा था: “पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है।” (यूहन्‍ना ५:२२) फिर भी, यीशु की न्यायिक भूमिका में उस क़िस्म के न्याय से अधिक सम्मिलित है, क्योंकि वह जीवतों का और मरे हुओं का न्यायी है। (प्रेरितों १०:४२; २ तीमुथियुस ४:१) एक बार पौलुस ने कहा: “[परमेश्‍वर] ने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य [यीशु] के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उस ने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।”—प्रेरितों १७:३१; भजन ७२:२-७.

      १९. यीशु के बारे में यह बोलना क्यों सही है कि वह न्यायी के रूप में बैठता है?

      १९ अतः क्या हम यह निष्कर्ष निकालने में सही हैं कि न्यायी की विशिष्ट भूमिका में यीशु एक महिमा के सिंहासन पर बैठता है? जी हाँ। यीशु ने प्रेरितों से कहा: “नई उत्पत्ति से जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा के सिंहासन पर बैठेगा, तो तुम भी जो मेरे पीछे हो लिए हो, बारह सिंहासनों पर बैठकर इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करोगे।” (तिरछे टाइप हमारे।) (मत्ती १९:२८) हालाँकि यीशु अभी उस राज्य का राजा है, मत्ती १९:२८ में उल्लिखित उसकी अतिरिक्‍त गतिविधि में सहस्राब्दि के दौरान सिंहासन पर बैठकर न्याय करना सम्मिलित होगा। उस समय वह पूरी मानवजाति, धर्मी और अधर्मी दोनों का न्याय करेगा। (प्रेरितों २४:१५) इसे मन में रखना सहायक है क्योंकि अब हम यीशु की एक नीतिकथा की ओर अपना ध्यान मोड़ते हैं जो हमारे समय और हमारे जीवन से सम्बन्धित है।

      वह नीतिकथा क्या कहती है?

      २०, २१. यीशु के प्रेरितों ने क्या पूछा जो हमारे समय से सम्बन्ध रखता है, और इससे क्या प्रश्‍न उठता है?

      २० यीशु के मरने से कुछ ही समय पहले उसके प्रेरितों ने उससे पूछा: “ये बातें कब होंगी? और तेरे आने का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” (मत्ती २४:३) ‘अन्त आने’ से पहले पृथ्वी पर होनेवाली महत्त्वपूर्ण घटनाओं के बारे में यीशु ने पूर्वबताया। उस अन्त के कुछ ही समय पहले, राष्ट्र “मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ और ऐश्‍वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे।”—मत्ती २४:१४, २९, ३०.

      २१ लेकिन, उन राष्ट्रों के लोगों का क्या हश्र होगा जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आता है? आइए भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा से पता लगाते हैं, जो इन शब्दों के साथ शुरू होती है: “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएंगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा। और सब जातियां उसके साम्हने इकट्ठी की जाएंगी।”—मत्ती २५:३१, ३२.

      २२, २३. कौन-से मुद्दे दिखाते हैं कि भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा की पूर्ति १९१४ में नहीं शुरू हुई?

      २२ क्या यह नीतिकथा तब लागू होती है जब १९१४ में यीशु राज सत्ता में बैठा, जो कि हम लम्बे अरसे से समझते रहे हैं? मत्ती २५:३४ राजा के रूप में उसका उल्लेख करता है, तो यह तर्कसंगत है कि यह नीतिकथा १९१४ में यीशु के राजा बनने के समय से लागू होती है। लेकिन इसके तुरन्त बाद उसने कौन-सा न्याय किया? यह ‘सब जातियों’ का न्याय नहीं था। इसके बजाय, उसने अपना ध्यान ‘परमेश्‍वर का घर’ होने का दावा करनेवालों की ओर मोड़ा। (१ पतरस ४:१७ फुटनोट) मलाकी ३:१-३ के सामंजस्य में, यहोवा के संदेशवाहक के रूप में यीशु ने पृथ्वी पर बचे हुए अभिषिक्‍त मसीहियों की न्यायिक रूप से जाँच की। यह मसीहीजगत पर न्यायिक दण्ड का भी समय था, जिसने झूठमूठ ‘परमेश्‍वर का घर’ होने का दावा किया।c (प्रकाशितवाक्य १७:१, २; १८:४-८) फिर भी कोई बात यह नहीं दिखाती कि उस समय, या उसके बाद, यीशु अंततः भेड़ों या बकरियों के रूप में सब जातियों के लोगों का न्याय करने के लिए बैठा।

      २३ यदि हम नीतिकथा में यीशु की गतिविधि का विश्‍लेषण करते हैं, तो हम उसे अंततः सब जातियों का न्याय करते हुए देखते हैं। नीतिकथा यह नहीं दिखाती कि यह न्याय-कार्य कई सालों की लम्बी अवधि तक चलेगा, मानो इन पिछले दशकों के दौरान मरनेवाले हर व्यक्‍ति का न्याय किया गया हो कि वह अनन्त मृत्यु के योग्य है या अनन्त जीवन के। ऐसा लगता है कि हाल के दशकों में मरनेवाले अधिकांश लोग मानवजाति की सामान्य क़ब्र में गए हैं। (प्रकाशितवाक्य ६:८; २०:१३) लेकिन, यह नीतिकथा उस समय के बारे में बताती है जब यीशु ‘सब जातियों’ के लोगों का न्याय करता है जो उस समय जीवित हैं और उसके न्यायदण्ड के कार्यान्वयन का सामना करते हैं।

      २४. भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा की पूर्ति कब होगी?

      २४ दूसरे शब्दों में, नीतिकथा भविष्य की ओर संकेत करती है जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा। वह उस समय जीवित लोगों का न्याय करने के लिए बैठेगा। उसका न्याय इस बात पर आधारित होगा कि इन लोगों ने अपने आपको किस रूप में दिखाया है। उस समय “धर्मी और दुष्ट का भेद” स्पष्ट रूप से स्थापित हो चुका होगा। (मलाकी ३:१८) न्यायदण्ड सुनाने और उसे कार्यान्वित करने का असल काम एक सीमित समय में पूरा किया जाएगा। यीशु, व्यक्‍तियों के बारे में जो प्रकट हो चुका है उस पर आधारित न्यायसंगत फ़ैसले सुनाएगा।—२ कुरिन्थियों ५:१० भी देखिए।

      २५. मनुष्य के पुत्र का महिमा के सिंहासन पर बैठने के बारे में बात करते समय मत्ती २५:३१ क्या चित्रित कर रहा है?

      २५ तो फिर, इसका अर्थ है कि यीशु का न्याय के लिए ‘अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होना,’ जो मत्ती २५:३१ में उल्लिखित है, उस भावी समय पर लागू होता है जब यह शक्‍तिशाली राजा राष्ट्रों पर न्यायदण्ड सुनाने और उसे कार्यान्वित करने के लिए बैठेगा। जी हाँ, मत्ती २५:३१-३३, ४६ का न्यायिक दृश्‍य, जिसमें यीशु सम्मिलित है दानिय्येल अध्याय ७ के दृश्‍य के तुल्य है, जहाँ न्यायी की अपनी भूमिका निभाने के लिए सत्ताधारी राजा, अति प्राचीन विराजमान हुआ।

      २६. इस नीतिकथा की कौन-सी नयी व्याख्या सामने आती है?

      २६ भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा को इस प्रकार समझना दिखाता है कि भेड़ों और बकरियों का न्याय सुनाया जाना भविष्य में होगा। यह मत्ती २४:२९, ३० में उल्लिखित “क्लेश” के शुरू होने और मनुष्य के पुत्र के ‘अपनी महिमा में आने’ के बाद होगा। (मरकुस १३:२४-२६ से तुलना कीजिए।) उस समय, जब सम्पूर्ण दुष्ट व्यवस्था अपने अन्त पर होगी, यीशु मुक़द्दमा चलाएगा और न्यायदण्ड सुनाएगा और कार्यान्वित करेगा।—यूहन्‍ना ५:३०; २ थिस्सलुनीकियों १:७-१०.

      २७. यीशु की अन्तिम नीतिकथा के बारे में हमें क्या जानने की दिलचस्पी होनी चाहिए?

      २७ यह यीशु की नीतिकथा के समय के बारे में हमारी समझ को स्पष्ट करता है, जो दिखाती है कि भेड़ों और बकरियों का न्याय कब होगा। लेकिन यह हम पर, जो जोश के साथ राज्य सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं, कैसे प्रभाव करता है? (मत्ती २४:१४) क्या यह हमारे कार्य को कम महत्त्वपूर्ण बना देता है, या क्या यह ज़िम्मेदारी का ज़्यादा भार लाता है? आइए अगले लेख में देखें कि हम कैसे प्रभावित होते हैं।

      [फुटनोट]

      a दानिय्येल ७:१०, २६ में “न्यायी” अनुवादित शब्द एज्रा ७:२६ और दानिय्येल ४:३७; ७:२२ में भी पाया जाता है।

      b मसीहियों द्वारा एक दूसरे को कचहरी ले जाने के सम्बन्ध में पौलुस ने पूछा: “क्या उन्हीं को बैठाओगे [अर्थात्‌, न्यायी ठहराओगे] जो कलीसिया में कुछ नहीं समझे जाते हैं?”—१ कुरिन्थियों ६:४.

      c वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित, प्रकाशितवाक्य—इसकी महान पराकाष्ठा निकट! (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ ५६, ७३, २३५-४५, २६० देखिए।

      क्या आपको याद है?

      ◻ यहोवा राजा और न्यायी दोनों के रूप में कैसे कार्य करता है?

      ◻ ‘सिंहासन पर विराजमान होने’ के कौन-से दो अर्थ हो सकते हैं?

      ◻ मत्ती २५:३१ के समय के बारे में हम पहले क्या कहते थे, लेकिन एक समंजित दृष्टिकोण का क्या आधार है?

      ◻ जैसा मत्ती २५:३१ संकेत करता है, मनुष्य का पुत्र अपने सिंहासन पर कब विराजमान होता है?

  • भेड़ों और बकरियों के लिए क्या भविष्य?
    प्रहरीदुर्ग—1995 | अक्टूबर 15
    • भेड़ों और बकरियों के लिए क्या भविष्य?

      “जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है, वैसा ही वह [लोगों को] एक दूसरे से अलग करेगा।”—मत्ती २५:३२.

      १, २. भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा में हमें दिलचस्पी क्यों होनी चाहिए?

      यीशु मसीह निश्‍चय ही पृथ्वी पर सर्वश्रेष्ठ शिक्षक था। (यूहन्‍ना ७:४६) उसके सिखाने का एक तरीक़ा था नीतिकथाओं, या दृष्टान्तों का प्रयोग। (मत्ती १३:३४, ३५) ये सरल थे फिर भी गहरी आध्यात्मिक और भविष्यसूचक सच्चाइयों को बताने में प्रभावशाली।

      २ भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा में यीशु ने उस समय की ओर संकेत किया जब वह एक ख़ास हैसियत से कार्य करता: “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और . . .।” (मत्ती २५:३१) हमें इसमें दिलचस्पी होनी चाहिए क्योंकि यह दृष्टान्त इस प्रश्‍न के बारे में यीशु के उत्तर का अन्तिम भाग है: “तेरी उपस्थिति का और रीति-व्यवस्था की समाप्ति का क्या चिन्ह होगा?” (मत्ती २४:३, NW) लेकिन इसका हमारे लिए क्या अर्थ है?

      ३. इससे पहले अपने उपदेश में, यीशु ने क्या कहा कि बड़े क्लेश के शुरू होने के तुरन्त बाद क्या होगा?

      ३ यीशु ने पूर्वबताया कि बड़े क्लेश के शुरू होने के “बाद तुरन्त” असाधारण घटनाएँ होंगी, घटनाएँ जिनकी हम प्रतीक्षा करते हैं। उसने कहा कि तब “मनुष्य के पुत्र का चिन्ह” दिखाई देगा। इससे “पृथ्वी के सब कुलों के लोग” अत्यधिक प्रभावित होंगे जो “मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ और ऐश्‍वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे।” मनुष्य का पुत्र “अपने दूतों” के साथ आएगा। (मत्ती २४:२१, २९-३१)a भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा के बारे में क्या? आधुनिक बाइबलें इसे अध्याय २५ में डालती हैं, लेकिन यह यीशु के उत्तर का भाग है, जो महिमा में उसके आगमन के बारे में अधिक विवरण देता है और उसका ‘सब जातियों’ के न्याय करने पर केंद्रित है।—मत्ती २५:३२.

      नीतिकथा में प्रतीक

      ४. भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा की शुरूआत में यीशु के बारे में क्या उल्लेख किया गया है, साथ ही और किसका उल्लेख किया गया है?

      ४ यीशु यह कहकर नीतिकथा को शुरू करता है: “जब मनुष्य का पुत्र . . . आएगा।” आप संभवतः जानते हैं कि “मनुष्य का पुत्र” कौन है। सुसमाचार पुस्तकों के लेखकों ने अकसर यह अभिव्यक्‍ति यीशु के लिए प्रयोग की। स्वयं यीशु ने भी प्रयोग की, और निःसंदेह उसके मन में दानिय्येल का दर्शन था जिसमें उसने “प्रभुता, महिमा और राज्य” पाने के लिए “मनुष्य के सन्तान सा कोई” अति प्राचीन के पास आते देखा। (दानिय्येल ७:१३, १४; मत्ती २६:६३, ६४; मरकुस १४:६१, ६२) जबकि इस नीतिकथा में यीशु मुख्य पात्र है, वह अकेला नहीं है। जैसा मत्ती २४:३०, ३१ में उद्धृत है, इस उपदेश में पहले उसने कहा कि जब मनुष्य का पुत्र ‘बड़ी सामर्थ और ऐश्‍वर्य के साथ आएगा,’ तो उसके स्वर्गदूत एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे। उसी प्रकार, भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा दिखाती है कि जब यीशु न्याय करने के लिए ‘अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होता है’ तब उसके साथ स्वर्गदूत हैं। (मत्ती १६:२७ से तुलना कीजिए।) परन्तु न्यायी और उसके स्वर्गदूत स्वर्ग में हैं, तो क्या इस नीतिकथा में मनुष्यों की चर्चा की गयी है?

      ५. हम यीशु के “भाइयों” की पहचान कैसे कर सकते हैं?

      ५ इस नीतिकथा पर एक झलक तीन समूह प्रकट करती है जिनकी हमें पहचान करनी है। भेड़ों और बकरियों के अलावा, मनुष्य का पुत्र वह तीसरा समूह जोड़ता है जिसकी पहचान भेड़ों और बकरियों की पहचान करने के लिए अत्यावश्‍यक है। यीशु इस तीसरे समूह को अपने आत्मिक भाई कहता है। (मत्ती २५:४०, ४५) उनका सच्चे उपासक होना ज़रूरी है, क्योंकि यीशु ने कहा: “जो कोई मेरे . . . पिता की इच्छा पर चले, वही मेरा भाई और बहिन और माता है।” (मत्ती १२:५०; यूहन्‍ना २०:१७) और भी प्रासंगिक यह बात है कि पौलुस ने उन मसीहियों के बारे में लिखा जो “इब्राहीम के वंश” के भाग हैं और जो परमेश्‍वर के पुत्र हैं। उसने इन्हें यीशु के ‘भाई’ और “स्वर्गीय बुलाहट में भागी” कहा।—इब्रानियों २:९-३:१; गलतियों ३:२६, २९.

      ६. यीशु के भाइयों में ‘छोटे से छोटे’ कौन हैं?

      ६ यीशु ने अपने भाइयों में से ‘छोटे से छोटे’ का उल्लेख क्यों किया? ये शब्द उसे प्रतिध्वनित करते हैं जो प्रेरितों ने यीशु को पहले कहते हुए सुना। यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाला यीशु से पहले मरा और इस कारण उसे पार्थिव आशा थी। उसकी विषमता उनके साथ करते समय जिन्हें स्वर्गीय जीवन प्राप्त होता, यीशु ने कहा: “यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले से कोई बड़ा नहीं हुआ; पर जो स्वर्ग के राज्य में छोटे से छोटा है वह उस से बड़ा है।” (मत्ती ११:११) प्रेरितों की तरह, स्वर्ग जानेवाले कुछ लोग शायद कलीसिया में प्रमुख रहे हों, और अन्य लोग उतने नहीं, लेकिन वे सभी यीशु के आत्मिक भाई हैं। (लूका १६:१०; १ कुरिन्थियों १५:९; इफिसियों ३:८; इब्रानियों ८:११) अतः, चाहे कुछ लोग पृथ्वी पर महत्त्वहीन ही क्यों न प्रतीत हुए हों, वे उसके भाई थे और उनके साथ उसी हिसाब से व्यवहार किया जाना था।

      भेड़ें और बकरियाँ कौन हैं?

      ७, ८. यीशु ने भेड़ों के बारे में क्या कहा, सो हम उनके बारे में क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं?

      ७ हम भेड़ों के न्याय के बारे में पढ़ते हैं: “[यीशु] अपनी दहिनी ओर वालों से कहेगा, हे मेरे पिता के धन्य लोगो, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है। क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को दिया; मैं पियासा था, और तुम ने मुझे पानी पिलाया, मैं परदेशी था, तुम ने मुझे अपने घर में ठहराया। मैं नंगा था, तुम ने मुझे कपड़े पहिनाए; मैं बीमार था, तुम ने मेरी सुधि ली, मैं बन्दीगृह में था, तुम मुझ से मिलने आए। तब धर्मी उस को उत्तर देंगे कि हे प्रभु, हम ने कब तुझे भूखा देखा, और खिलाया? या पियासा देखा, और पिलाया? हम ने कब तुझे परदेशी देखा और अपने घर में ठहराया या नंगा देखा, और कपड़े पहिनाए? हम ने कब तुझे बीमार या बन्दीगृह में देखा और तुझ से मिलने आए? तब राजा उन्हें उत्तर देगा, मैं तुम से सच कहता हूं, कि तुम ने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया।” (तिरछे टाइप हमारे।)—मत्ती २५:३४-४०.

      ८ प्रत्यक्षतः, भेड़ें जो यह न्याय पाती हैं कि वे सम्मान और अनुग्रह के यीशु के दहिनी ओर होने के योग्य हैं मनुष्यों के एक वर्ग को चित्रित करती हैं। (इफिसियों १:२०; इब्रानियों १:३) उन्होंने क्या और कब किया? यीशु कहता है कि उन्होंने कृपा, आदर, और उदारता के साथ उसे खाने, पीने और पहनने के लिए दिया, जब वह बीमार था या बन्दीगृह में था तब उसकी मदद की। जब भेड़ें कहती हैं कि उन्होंने यीशु के साथ व्यक्‍तिगत रूप से ऐसा नहीं किया है, तो वह बताता है कि उन्होंने उसके आत्मिक भाइयों, अभिषिक्‍त मसीहियों के शेषजनों को समर्थन दिया, सो इस अर्थ में उन्होंने यह उसके साथ किया।

      ९. यह नीतिकथा सहस्राब्दि के दौरान क्यों नहीं लागू होती?

      ९ यह नीतिकथा सहस्राब्दि के दौरान नहीं लागू होती, क्योंकि तब अभिषिक्‍त जन भूख, प्यास, बीमारी, या क़ैद से पीड़ित, मनुष्य नहीं होंगे। लेकिन, उनमें से अनेकों ने इस रीति-व्यवस्था की समाप्ति के दौरान इनका अनुभव किया है। जब से शैतान को पृथ्वी पर गिरा दिया गया है, उसने शेषजनों को अपने क्रोध का ख़ास निशाना बना रखा है, उन पर उपहास, यातना, और मृत्यु लाता है।—प्रकाशितवाक्य १२:१७.

      १०, ११. (क) यह सोचना क्यों तर्कसंगत नहीं है कि वह हर व्यक्‍ति जो यीशु के भाइयों के साथ एक कृपा का कार्य करता है भेड़ों में सम्मिलित है? (ख) भेड़ें उपयुक्‍त रीति से किसे चित्रित करती हैं?

      १० क्या यीशु यह कह रहा है कि उसके किसी एक भाई पर कोई छोटी-सी कृपा करनेवाला, जैसे एक टुकड़ा रोटी या एक ग्लास पानी देनेवाला हर व्यक्‍ति इनमें से एक भेड़ होने के योग्य ठहरता है? माना कि ऐसी कृपा दिखाना शायद मानवी कृपा प्रदर्शित करे, लेकिन वास्तव में यह प्रतीत होता है कि इस नीतिकथा की भेड़ों में इससे काफ़ी ज़्यादा सम्मिलित है। उदाहरण के लिए, यीशु निश्‍चित ही नास्तिकों या पादरियों का ज़िक्र नहीं कर रहा था जो उसके किसी एक भाई के साथ शायद कोई कृपा का कार्य करें। इसके विपरीत, यीशु ने भेड़ों को दो बार “धर्मी” कहा। (मत्ती २५:३७, ४६) अतः भेड़ें वे लोग होंगे जिन्होंने कुछ समय तक मसीह के भाइयों की सहायता की—सक्रिय रूप से समर्थन दिया—और उस हद तक विश्‍वास रखा है कि परमेश्‍वर के सामने उन्हें एक धर्मी स्थिति प्राप्त होती है।

      ११ सदियों के दौरान अनेकों ने एक धर्मी स्थिति का आनन्द लिया है, उनमें से एक था इब्राहीम। (याकूब २:२१-२३) नूह, इब्राहीम, और अन्य विश्‍वासी जन ‘अन्य भेड़ों’ में सम्मिलित हैं जो परमेश्‍वर के राज्य के अधीन परादीस में जीवन के वारिस होंगे। हाल के समय में लाखों और लोगों ने अन्य भेड़ों के रूप में सच्ची उपासना शुरू की है और अभिषिक्‍त जनों के साथ “एक ही झुण्ड” बन गए हैं। (यूहन्‍ना १०:१६; प्रकाशितवाक्य ७:९) पार्थिव आशावाले ये लोग यीशु के भाइयों को उस राज्य के राजदूत मानते हैं और इसलिए इन्होंने उनकी सहायता की है—आक्षरिक और आध्यात्मिक रूप से। अन्य भेड़ें पृथ्वी पर यीशु के भाइयों के लिए जो करती हैं उसे वह अपने प्रति किया गया कार्य मानता है। जब वह जातियों का न्याय करने आता है तब जीवित ऐसे व्यक्‍ति भेड़ घोषित किए जाएँगे।

      १२. भेड़ें शायद क्यों पूछें कि उन्होंने यीशु को कैसे कृपा दिखायी थी?

      १२ यदि अभी अन्य भेड़ें अभिषिक्‍त जनों के साथ सुसमाचार का प्रचार कर रही हैं और उनकी सहायता कर रही हैं, तो वे यह क्यों पूछतीं: “प्रभु, हम ने कब तुझे भूखा देखा और खिलाया? या पियासा देखा, और पिलाया?” (मत्ती २५:३७) इसके विभिन्‍न कारण हो सकते हैं। यह एक नीतिकथा है। इसके माध्यम से, यीशु अपने आत्मिक भाइयों के प्रति अपनी गहरी चिन्ता दिखाता है; वह उनके साथ महसूस करता है, उनके साथ दुःख उठाता है। यीशु ने पहले कहा था: “जो तुम्हें ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।” (मत्ती १०:४०) इस दृष्टान्त में, यीशु इस सिद्धान्त को विस्तृत करता है, और दिखाता है कि जो कुछ (भला या बुरा) उसके भाइयों के साथ किया जाता है स्वर्ग में भी पहुँच जाता है; यह ऐसा है मानो वह स्वर्ग में उसके साथ किया जाता है। साथ ही, यहाँ यीशु न्याय करने के यहोवा के स्तर पर ज़ोर देता है, और यह स्पष्ट करता है कि परमेश्‍वर का न्याय चाहे अनुकूल हो या दण्डात्मक, मान्य और उचित होता है। बकरियाँ यह बहाना नहीं बना सकतीं, ‘काश हम ने तुझे आमने-सामने देखा होता।’

      १३. बकरी-समान लोग यीशु को शायद “प्रभु” क्यों पुकारें?

      १३ यह समझने के बाद कि इस नीतिकथा में बताया गया न्याय कब सुनाया जाता है, हम ज़्यादा अच्छी तरह देख पाते हैं कि बकरियाँ कौन हैं। इसकी पूर्ति होती है जब “मनुष्य के पुत्र का चिन्ह आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे; और मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ और ऐश्‍वर्य के साथ . . . आते देखेंगे।” (तिरछे टाइप हमारे।) (मत्ती २४:२९, ३०) बड़े बाबुल पर आए क्लेश के उत्तरजीवी, जिन्होंने राजा के भाइयों के साथ विद्वेष से व्यवहार किया है अब शायद इस आशा में कि उनका जीवन बच जाए, हार मानकर न्यायी को “प्रभु” कहेंगे।—मत्ती ७:२२, २३. प्रकाशितवाक्य ६:१५-१७ से तुलना कीजिए।

      १४. यीशु भेड़ों और बकरियों का किस आधार पर न्याय करेगा?

      १४ लेकिन, यीशु का न्याय पहले गिरजा जानेवालों, नास्तिकों, या अन्य व्यक्‍तियों की तीव्र पुकारों पर आधारित नहीं होगा। (२ थिस्सलुनीकियों १:८) इसके बजाय, न्यायी उसके “छोटे से छोटों में से किसी एक [भाई]” के प्रति लोगों की हृदय स्थिति और गत कार्यों पर पुनर्विचार करेगा। यह सही है कि पृथ्वी पर बचे अभिषिक्‍त मसीहियों की संख्या कम होती जा रही है। लेकिन, जब तक अभिषिक्‍त, जिनसे “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” बना है, आध्यात्मिक भोजन और निर्देशन देना जारी रखते हैं, भावी भेड़ों के पास दास वर्ग के साथ भलाई करने का अवसर है, जैसे ‘हर एक जाति, और कुल, और लोग की बड़ी भीड़’ ने किया है।—प्रकाशितवाक्य ७:९, १४.

      १५. (क) अनेक लोगों ने कैसे अपने आपको बकरियों के समान दिखाया है? (ख) हमें यह कहने से क्यों दूर रहना चाहिए कि एक व्यक्‍ति भेड़ है या बकरी?

      १५ मसीह के भाइयों और उनके साथ एक झुण्ड के रूप में जुड़ी लाखों अन्य भेड़ों से कैसा व्यवहार किया गया है? अनेक लोगों ने शायद व्यक्‍तिगत रूप से मसीह के प्रतिनिधियों पर हमला न किया हो, लेकिन उन्होंने उसके लोगों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार भी नहीं किया है। दुष्ट संसार को ज़्यादा पसन्द करते हुए, बकरी-समान लोग राज्य संदेश को ठुकराते हैं, चाहे प्रत्यक्ष रूप से सुना हो अथवा अप्रत्यक्ष रूप से। (१ यूहन्‍ना २:१५-१७) निःसंदेह अंततः, वह यीशु ही है जिसे न्याय करने के लिए नियुक्‍त किया गया है। यह निर्धारित करना हमारा काम नहीं कि कौन भेड़ें हैं और कौन बकरियाँ।—मरकुस २:८; लूका ५:२२; यूहन्‍ना २:२४, २५; रोमियों १४:१०-१२; १ कुरिन्थियों ४:५.

      हरेक समूह के लिए क्या भविष्य?

      १६, १७. भेड़ों का क्या भविष्य होगा?

      १६ यीशु ने भेड़ों के बारे में अपना यह न्याय दिया: “हे मेरे पिता के धन्य लोगो, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिये तैयार किया हुआ है।” क्या ही हार्दिक आमंत्रण—“आओ”! किस लिए? अनन्त जीवन के लिए, जैसा उसने सारांश में कहा: “धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।”—मत्ती २५:३४, ४६.

      १७ तोड़ों की नीतिकथा में, यीशु ने दिखाया कि उनसे क्या माँग की जाती है जो उसके साथ स्वर्ग में राज्य करेंगे, लेकिन इस नीतिकथा में वह दिखाता है कि राज्य की प्रजा से क्या अपेक्षा की जाती है। (मत्ती २५:१४-२३) प्रासंगिक रूप से, यीशु के भाइयों के प्रति उनके एकनिष्ठ समर्थन के कारण, भेड़ें उसके राज्य के पार्थिव क्षेत्र में स्थान पाती हैं। वे एक परादीस पृथ्वी पर जीवन का आनन्द लेंगी—वह प्रत्याशा जो परमेश्‍वर ने उनके लिए उद्धार्य मनुष्यों के “जगत की उत्पत्ति से” तैयार की है।—लूका ११:५०, ५१.

      १८, १९. (क) यीशु बकरियों को क्या न्याय सुनाएगा? (ख) हम कैसे निश्‍चित हो सकते हैं कि बकरियाँ अनन्त पीड़ा नहीं सहेंगी?

      १८ बकरियों को दिया गया न्याय कितना विपरीत है! “तब वह बाईं ओर वालों से कहेगा, हे स्रापित लोगो, मेरे साम्हने से उस अनन्त आग में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिये तैयार की गई है। क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को नहीं दिया, मैं पियासा था, और तुम ने मुझे पानी नहीं पिलाया। मैं परदेशी था, और तुम ने मुझे अपने घर में नहीं ठहराया; मैं नंगा था, और तुम ने मुझे कपड़े नहीं पहिनाए; बीमार और बन्दीगृह में था, और तुम ने मेरी सुधि न ली। तब वे उत्तर देंगे, कि हे प्रभु, हम ने तुझे कब भूखा, या पियासा, या परदेशी, या नंगा, या बीमार, या बन्दीगृह में देखा, और तेरी सेवा टहल न की? तब वह उन्हें उत्तर देगा, मैं तुम से सच कहता हूं कि तुम ने जो इन छोटे से छोटों में से किसी एक के साथ नहीं किया, वह मेरे साथ भी नहीं किया।”—मत्ती २५:४१-४५.

      १९ बाइबल विद्यार्थी जानते हैं कि इसका अर्थ यह नहीं हो सकता कि बकरी-समान लोगों के अमर प्राण अनन्त आग में पीड़ित होंगे। जी नहीं, क्योंकि मनुष्य स्वयं प्राण हैं; उनके पास अमर प्राण नहीं है। (उत्पत्ति २:७; सभोपदेशक ९:५, १०; यहेजकेल १८:४) बकरियों को “अनन्त आग” का दण्ड देने के द्वारा, न्यायी का अर्थ है भावी आशा से वंचित विनाश, जो कि इब्‌लीस और उसके पिशाचों का भी स्थायी अन्त होगा। (प्रकाशितवाक्य २०:१०, १४) अतः, यहोवा का न्यायी विपरीत न्याय सुनाता है। वह भेड़ों को कहता है, “आओ”; और बकरियों को, “मेरे साम्हने से . . . चले जाओ।” भेड़ें “अनन्त जीवन” की वारिस होंगी। बकरियाँ “अनन्त दण्ड” पाएँगी।—मत्ती २५:४६.b

      इसका हमारे लिए क्या अर्थ है?

      २०, २१. (क) मसीहियों के पास करने के लिए कौन-सा महत्त्वपूर्ण कार्य है? (ख) अभी कौन-सा विभाजन हो रहा है? (ग) जब भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा की पूर्ति होना शुरू होगी तब लोगों की क्या स्थिति होगी?

      २० जिन चार प्रेरितों ने यीशु की उपस्थिति और रीति-व्यवस्था की समाप्ति के चिन्ह के बारे में उसका जवाब सुना, उनके पास विचार करने के लिए काफ़ी कुछ था। उन्हें जागते और सतर्क रहने की ज़रूरत होती। (मत्ती २४:४२) उन्हें मरकुस १३:१० में उल्लिखित साक्षी कार्य करने की भी ज़रूरत होती। आज यहोवा के साक्षी उस कार्य में कर्मठता के साथ लगे हुए हैं।

      २१ लेकिन, भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा की इस नयी समझ का हमारे लिए क्या अर्थ है? लोग अभी से अपनी स्थिति ले रहे हैं। कुछ लोग ‘चाकल मार्ग पर हैं जो विनाश को पहुंचाता है,’ जबकि अन्य ‘जीवन को पहुंचाने वाले सकरे मार्ग’ पर रहने की कोशिश करते हैं। (मत्ती ७:१३, १४) लेकिन वह समय जब यीशु इस नीतिकथा में चित्रित भेड़ों और बकरियों पर अन्तिम न्याय घोषित करेगा अभी भविष्य है। जब मनुष्य का पुत्र न्यायी की भूमिका में आता है, तब वह पाएगा कि अनेक सच्चे मसीही—असल में समर्पित भेड़ों की ‘एक बड़ी भीड़’—“बड़े क्लेश” के अन्तिम भाग से बचकर नए संसार में जाने के लिए योग्य ठहरेगी। यह प्रत्याशा अभी आनन्द का स्रोत होनी चाहिए। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १४) दूसरी ओर, ‘सब जातियों’ में से बड़ी संख्या में लोगों ने स्वयं को हठीली बकरियाँ साबित किया होगा। वे “अनन्त दण्ड भोगेंगे।” पृथ्वी के लिए क्या ही राहत!

      २२, २३. चूँकि नीतिकथा का पूरा होना अभी भविष्य है, आज हमारा प्रचार कार्य क्यों अति महत्त्वपूर्ण है?

      २२ जबकि इस नीतिकथा में वर्णित न्याय निकट भविष्य में होना है, अभी भी एक अति महत्त्वपूर्ण कार्य हो रहा है। हम मसीही एक संदेश सुनाने का जीवन-रक्षक कार्य कर रहे हैं जो लोगों के बीच विभाजन करता है। (मत्ती १०:३२-३९) पौलुस ने लिखा: “क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा। फिर जिस पर उन्हों ने विश्‍वास नहीं किया, वे उसका नाम क्योंकर लें? और जिस की नहीं सुनी उस पर क्योंकर विश्‍वास करें? और प्रचारक बिना क्योंकर सुनें?” (रोमियों १०:१३-१५) हमारी जन सेवकाई २३० से ज़्यादा देशों में परमेश्‍वर के नाम और उद्धार के लिए उसके संदेश के साथ लोगों के पास पहुँच रही है। मसीह के अभिषिक्‍त भाई अभी भी इस कार्य में अगुआई ले रहे हैं। लगभग ५० लाख अन्य भेड़ें अब उनके साथ मिल गयी हैं। और यीशु के भाइयों द्वारा घोषित संदेश के प्रति संसार-भर से लोग अनुकूल प्रतिक्रिया दिखा रहे हैं।

      २३ अनेक लोगों को हमारा संदेश मिलता है जब हम घर-घर जाकर अथवा अनौपचारिक रूप से प्रचार करते हैं। अन्य लोग शायद हमें अज्ञात तरीक़ों से यहोवा के साक्षियों के बारे में और हम किस बात का प्रतिनिधित्व करते हैं इस विषय में जानें। जब न्याय का समय आता है, तब यीशु किस हद तक सामुदायिक उत्तरदायित्व और पारिवारिक पुण्य को ध्यान में रखेगा? हम नहीं कह सकते, और अटकलें लगाना व्यर्थ है। (१ कुरिन्थियों ७:१४ से तुलना कीजिए।) अनेक लोग आज परमेश्‍वर के लोगों को कान नहीं देते, उनका ठट्ठा करते हैं, अथवा उन्हें खुलेआम सताने में भाग लेते हैं। अतः, यह निर्णायक समय है; ऐसे व्यक्‍ति शायद वे लोग बन रहे हों जिन्हें यीशु बकरियाँ घोषित करेगा।—मत्ती १०:२२; यूहन्‍ना १५:२०; १६:२, ३; रोमियों २:५, ६.

      २४. (क) व्यक्‍तियों के लिए हमारे प्रचार के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाना क्यों महत्त्वपूर्ण है? (ख) इस अध्ययन ने आपको व्यक्‍तिगत रूप से अपनी सेवकाई के प्रति कैसी मनोवृत्ति रखने के लिए मदद दी है?

      २४ लेकिन, ख़ुशी की बात है कि अनेक लोग अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाते हैं, परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करते हैं, और यहोवा के साक्षी बन जाते हैं। कुछ लोग जो अभी बकरी-समान लगते हैं शायद बदल जाएँ और भेड़-समान बन जाएँ। बात यह है कि वे लोग जो अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाते हैं और मसीह के शेष भाइयों का सक्रिय रूप से समर्थन करते हैं इस प्रकार अभी प्रमाण दे रहे हैं। यह प्रमाण एक आधार देगा कि जब, निकट भविष्य में यीशु न्याय करने के लिए अपने सिंहासन पर बैठे तब वे उसकी दहिनी ओर किए जाएँ। इन्हें आशिष मिल रही है और मिलती रहेगी। अतः, इस नीतिकथा से हमें मसीही सेवकाई में ज़्यादा जोशपूर्ण गतिविधि के लिए उत्तेजित होना चाहिए। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हम राज्य का सुसमाचार घोषित करने के लिए अपनी भरसक कोशिश करना चाहते हैं और इस प्रकार दूसरों को प्रतिक्रिया दिखाने का अवसर देते हैं। फिर न्याय देना यीशु पर है, दण्डात्मक या अनुकूल।—मत्ती २५:४६.

      [फुटनोट]

      a फरवरी १, १९९४ की प्रहरीदुर्ग के पृष्ठ २६-३१ देखिए।

      b एल इवानहॆलयो दि मातिओ नोट करता है: “अनन्त जीवन स्थायी जीवन है; उसका विपरीत है स्थायी दण्ड। यूनानी विशेषण आयोनियोस मुख्यतः अवधि को नहीं, बल्कि गुणवत्ता को सूचित करता है। स्थायी दण्ड है सदा के लिए मृत्यु।”—सेवानिवृत्त प्रोफ़ॆसर क्वान मातिऑस (धर्माध्यक्षीय बाइबलीय संस्था, रोम) और प्रोफ़ॆसर फरनान्डो कामाचो (धर्मविज्ञान केंद्र, सॆविल), मैड्रिड, स्पेन, १९८१.

      क्या आपको याद है?

      ◻ मत्ती २४:२९-३१ और मत्ती २५:३१-३३ के बीच क्या समान्तर दिखाते हैं कि भेड़ों और बकरियों की नीतिकथा भविष्य में लागू होती है, और वह समय कब है?

      ◻ यीशु के भाइयों में ‘छोटे से छोटे’ कौन हैं?

      ◻ यीशु द्वारा अभिव्यक्‍ति “धर्मी” का प्रयोग हमें यह पहचान करने में कैसे मदद देता है कि ये किनको चित्रित करते हैं और ये किनको चित्रित नहीं करते?

      ◻ जबकि यह नीतिकथा भविष्य में पूरी होगी, हमारा प्रचार करना अभी क्यों महत्त्वपूर्ण और अत्यावश्‍यक है?

      [पेज 24 पर बक्स/तसवीर]

      समान्तरों पर ध्यान दीजिए

      मत्ती २४:२९-३१ मत्ती २५:३१-३३

      बड़े क्लेश के शुरू होने के बाद, मनुष्य का पुत्र आता है

      मनुष्य का पुत्र आता है

      बड़े ऐश्‍वर्य के साथ आता है माहिमा के साथ आता है और

      अपने महिमा के सिंहासन पर

      विराजमान होता है

      दूत उसके साथ हैं स्वर्गदूत उसके साथ आते हैं

      पृथ्वी के सब कुलों के लोग उसे देखते हैं सब जातियाँ इकट्ठी की जाती हैं;

      अन्ततः बकरियों का न्याय किया जाता है

      (बड़े क्लेश का अन्त होता है)

      [चित्र का श्रेय]

      Garo Nalbandian

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