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  • वे सत्य पर चलते रहते हैं
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2002
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2002
w02 7/15 पेज 20-25

वे सत्य पर चलते रहते हैं

“मुझे इस से बढ़कर और कोई आनन्द नहीं, कि मैं सुनूं, कि मेरे लड़के-बाले सत्य पर चलते हैं।”—3 यूहन्‍ना 4.

1. “सुसमाचार की सच्चाई” किस बारे में बताती है?

यहोवा सिर्फ उन लोगों से खुश होता है जो उसकी उपासना “आत्मा और सच्चाई से” करते हैं। (यूहन्‍ना 4:24) ये लोग सच्चाई यानी परमेश्‍वर के वचन में दी गयी सभी मसीही शिक्षाओं को स्वीकार करते हैं। “सुसमाचार की [यह] सच्चाई” बताती है कि कैसे यीशु मसीह और स्वर्गीय राज्य के ज़रिए यहोवा की हुकूमत बुलंद की जाएगी। (गलतियों 2:14) जो झूठ पसंद करते हैं, उनमें परमेश्‍वर “एक छली शक्‍ति को कार्यरत” होने देता है, मगर जो उद्धार पाना चाहते हैं उनके लिए सुसमाचार पर विश्‍वास करना और सत्य पर चलना ज़रूरी है।—2 थिस्सलुनीकियों 2:9-12, ईज़ी-टू-रीड वर्शन; इफिसियों 1:13, 14.

2. यूहन्‍ना को खासकर किस बात से आनन्द मिला, और गयुस के साथ उसका रिश्‍ता कैसा था?

2 राज्य का प्रचार करनेवाले ‘सत्य में’ एक-दूसरे के “सहकर्मी” हैं। प्रेरित यूहन्‍ना और उसके दोस्त गयुस की तरह वे सत्य को मज़बूती से थामे रहते हैं और उस पर चलते हैं। गयुस को ध्यान में रखकर, यूहन्‍ना ने लिखा: “मुझे इस से बढ़कर और कोई आनन्द नहीं, कि मैं सुनूं, कि मेरे लड़के-बाले सत्य पर चलते हैं।” (3 यूहन्‍ना 3-8) हालाँकि बुज़ुर्ग यूहन्‍ना ने गयुस को खुद सच्चाई नहीं सिखायी थी, फिर भी उस प्रेरित की उम्र, मसीही प्रौढ़ता और पिता जैसे प्यार के लिहाज़ से यह कहना सही था कि उससे कम उम्र का यह भाई, यूहन्‍ना के आध्यात्मिक बच्चों जैसा ही था।

मसीही उपासना के बारे में सच्चाई

3. शुरू के मसीहियों की सभाओं का मकसद क्या था, और इससे उन्हें कैसे फायदा होता था?

3 सच्चाई सीखने के लिए, शुरू के मसीही एक कलीसिया के रूप में अकसर किसी के घर पर मिलते थे। (रोमियों 16:3-5) इस तरह वे एक-दूसरे का हौसला बँधाते थे और एक-दूसरे को प्रेम और भले कामों के लिए उकसाते थे। (इब्रानियों 10:24, 25) बाद के वक्‍त के ईसाई कहलानेवालों के बारे में टर्टुलियन (जन्म लगभग सा.यु. 155–मृत्यु 220 के बाद) ने लिखा: “हम परमेश्‍वर की किताबों को पढ़ने के लिए इकट्ठे होते हैं . . . उन पवित्र वचनों से हम अपने विश्‍वास को बढ़ाते हैं, अपनी आशा को मज़बूत और अपने यकीन को पुख्ता करते हैं।”—अपॉलजी, अध्याय 39.

4. मसीही सभाओं में गीत गाने की क्या अहमियत रही है?

4 भजन गाना भी शुरू के मसीहियों की सभाओं की एक खासियत थी। (इफिसियों 5:19; कुलुस्सियों 3:16) प्रोफेसर हॆन्री चैडविक लिखते हैं कि ईसाई कहलानेवालों की नुक्‍ताचीनी करनेवाले दूसरी सदी के सेलसस को उनके सुरीले गीत “इतने अच्छे लगते थे कि वह असल में अपनी भावनाओं पर इन गीतों के असर से परेशान हो जाता था।” चैडविक आगे लिखते हैं: “सिकंदरिया के क्लैमेंट, पहले ऐसे ईसाई लेखक हैं, जिन्होंने इस विषय पर चर्चा की कि ईसाइयों के लिए किस किस्म का संगीत ठीक है। उनकी सलाह थी कि ईसाइयों का संगीत, कामुक नाच-गाने जैसा बिलकुल भी नहीं होना चाहिए।” (शुरू का चर्च, अँग्रेज़ी, पेज 274-5) ज़ाहिर है कि शुरू के मसीही जब इकट्ठा होते थे तो गीत गाते थे, उसी तरह यहोवा के साक्षी परमेश्‍वर और उसके राज्य की तारीफ में अकसर बाइबल के गीत गाते हैं, जिनमें शास्त्र से कई ज़बरदस्त पवित्र रचनाएँ भी होती हैं।

5. (क) शुरू की मसीही कलीसियाओं को आध्यात्मिक मामलों में सही राह कैसे दिखायी जाती थी? (ख) सच्चे मसीहियों ने मत्ती 23:8,9 में बताए यीशु के शब्द कैसे लागू किए?

5 शुरू की मसीही कलीसियाओं में, ओवरसियर या प्राचीन सच्चाई सिखाते थे और सहायक सेवक अपने मसीही भाई-बहनों की अलग-अलग तरीकों से मदद करते थे। (फिलिप्पियों 1:1) आध्यात्मिक मामलों में सही राह दिखाने के लिए एक शासी निकाय था, जो कोई भी फैसला करते वक्‍त परमेश्‍वर के वचन पर निर्भर रहता था और उसे पवित्र आत्मा का सहारा भी था। (प्रेरितों 15:6, 23-31) किसी को कोई धार्मिक उपाधियाँ नहीं दी जाती थीं, क्योंकि यीशु ने अपने चेलों को आज्ञा दी थी: “तुम रब्बी न कहलाना; क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है: और तुम सब भाई हो। और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है।” (मत्ती 23:8, 9) इन बातों के अलावा और भी कई तरीकों से यहोवा के साक्षी, पहली सदी के मसीहियों जैसे हैं।

सत्य का प्रचार करने के लिए सताए गए

6, 7. सच्चे मसीही शांति का संदेश सुनाते हैं, फिर भी उनके साथ कैसा सलूक किया गया है?

6 शुरू के मसीही, हालाँकि राज्य के बारे में शांति का संदेश सुनाते थे, फिर भी उन्हें यीशु की तरह ही सताया गया। (यूहन्‍ना 15:20; 17:14) इतिहासकार जॉन एल. फॉन मोशाइम ने पहली सदी के मसीहियों को “ऐसे आदमियों का समूह” कहा, “जिनके चरित्र से किसी को कोई नुकसान या तकलीफ नहीं पहुँच सकती थी, और जो कभी अपने मन में ऐसा कोई विचार या ख्वाहिश नहीं पालते थे जो देश के हित के खिलाफ हो।” डॉ. मोशाइम ने कहा कि “रोम के लोग मसीहियों की उपासना की सादगी देखकर उनसे चिढ़ते थे, क्योंकि उनकी उपासना दूसरे लोगों की रीति-रस्मों जैसी बिलकुल भी नहीं थी।” उन्होंने आगे कहा: “वे कोई बलिदान नहीं चढ़ाते थे, उनका कोई मंदिर नहीं था, मूर्तियाँ नहीं थीं, उनमें ज्योतिषियों या पुजारियों का कोई वर्ग नहीं था; और आम जनता को लगता था कि कोई भी धर्म ऐसा नहीं हो सकता जिनमें ये रीति-रस्म न हों, वे अपनी अज्ञानता की वजह से मसीहियों की निंदा करते थे। इसलिए मसीहियों को एक तरह के नास्तिक समझा जाता था; और रोमियों के कानून के मुताबिक जिन पर नास्तिक होने का इलज़ाम लगाया जाता था, उन्हें समाज के लिए अभिशाप समझा जाता था।”

7 पुजारी, कलाकार और ऐसे दूसरे लोग जिनकी कमाई मूर्तियों से होती थी, जनता को मसीहियों के खिलाफ भड़काते थे क्योंकि मसीही मूर्तिपूजा नहीं करते थे। (प्रेरितों 19:23-40; 1 कुरिन्थियों 10:14) टर्टुलियन ने लिखा: “उनको लगता है कि देश पर आनेवाली हर आफत, लोगों के साथ होनेवाली हर दुर्घटना के लिए मसीही ज़िम्मेदार हैं। अगर टाइबर नदी में बाढ़ आए और उसका पानी शहरपनाह तक पहुँच जाए, अगर नील नदी खेतों को न सींचे, अगर पानी न बरसे, अगर भूकम्प आ जाए, भुखमरी या महामारी फैल जाए, तो तुरंत यही पुकार सुनायी पड़ती है: ‘मसीहियों को शेरों के सामने फेंक दो!’” मगर, अंजाम की परवाह न करते हुए, सच्चे मसीही आज भी “अपने आप को मूरतों से बचाए” रखते हैं।—1 यूहन्‍ना 5:21.

धार्मिक त्योहारों के बारे में सच्चाई

8. सत्य पर चलनेवाले क्रिसमस क्यों नहीं मनाते?

8 सत्य पर चलनेवाले ऐसे त्योहार नहीं मनाते जिनका आधार बाइबल में नहीं है, क्योंकि ‘ज्योति और अन्धकार की संगति’ नहीं हो सकती। (2 कुरिन्थियों 6:14-18) मिसाल के लिए, वे दिसंबर 25 को क्रिसमस नहीं मनाते। द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया स्वीकार करती है, “किसी को भी मसीह के जन्म की सही-सही तारीख पता नहीं है।” दी इनसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना (1956 का संस्करण) कहती है: “रोम के लोगों का त्योहार सैटरनेलिया, दिसंबर महीने के बीच मनाया जाता था और इसी त्योहार के रिवाज़ों की रंग-रलियों के मुताबिक क्रिसमस के रिवाज़ मनाए जाने लगे।” मैक्लिंटॉक और स्ट्रॉन्ग की साइक्लोपीडिया कहती है: “क्रिसमस का त्योहार, परमेश्‍वर की तरफ से नहीं है, न ही इसकी शुरूआत नए नियम से हुई है।” और यीशु के ज़माने में रोज़मर्रा ज़िंदगी (अँग्रेज़ी) किताब कहती है: “मवेशियों के झुंड . . . जाड़ों में अंदर ही रहते थे; और इसी एक बात से देखा जा सकता है कि जाड़ों में क्रिसमस की पारंपरिक तारीख सही नहीं हो सकती, क्योंकि सुसमाचार की किताब कहती है कि उस वक्‍त चरवाहे मैदानों में अपने मवेशियों के साथ थे।”—लूका 2:8-11.

9. शुरू के मसीही और आज यहोवा के सेवक ईस्टर का त्योहार क्यों नहीं मनाते?

9 कहा जाता है कि ईस्टर का त्योहार, मसीह के पुनरुत्थान की याद में मनाया जाता है, मगर कई जाने-माने सूत्रों से पता चला है कि यह त्योहार झूठी उपासना से जुड़ा है। द वेस्टमिन्स्टर डिक्शनरी ऑफ द बाइबल कहती है कि ईस्टर का त्योहार “दरअसल वसंत ऋतु का त्योहार था, जिसे पहले जर्मन जातियों की प्रकाश और वसंत की देवी के सम्मान में मनाया जाता था, और इस देवी को एंग्लो-सैक्सन लोग ईस्ट्र [या, इयोस्ट्र] नाम से जानते थे।” ईस्टर की शुरूआत चाहे जैसे भी हुई हो, इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका (11वाँ संस्करण) कहती है: “नए नियम में कहीं भी ईस्टर का त्योहार मनाए जाने का संकेत नहीं मिलता।” तो ज़ाहिर है कि ईस्टर शुरू के मसीहियों का त्योहार नहीं था, इसलिए आज भी यहोवा के लोग इसे नहीं मनाते।

10. यीशु ने किस स्मारक की शुरूआत की, और आज कौन इसे सही तरीके से मनाते हैं?

10 यीशु ने अपने चेलों को न तो अपना जन्मदिन मनाने, न ही पुनरुत्थान का दिन याद करने की आज्ञा दी थी। मगर जब उसकी ज़िंदगी बलिदान के रूप में चढ़ायी जानेवाली थी, तब उसने अपनी इस मौत के स्मारक की शुरूआत ज़रूर की। (रोमियों 5:8) दरअसल, यही एक घटना है जिसे यीशु ने अपने चेलों को याद रखने की आज्ञा दी थी। (लूका 22:19, 20) आज इस सालाना घटना को प्रभु का संध्या भोज भी कहा जाता है, और यहोवा के साक्षी इसे आज भी मनाते हैं।—1 कुरिन्थियों 11:20-26.

सारी दुनिया में, सत्य का ऐलान किया गया

11, 12. सत्य पर चलनेवालों ने कैसे हमेशा अपने प्रचार काम को बढ़ाया है?

11 सत्य को जाननेवाले लोग, इस खुशखबरी का प्रचार करने में अपना वक्‍त, अपनी ताकत और दूसरे साधन लगाने को बहुत बड़ा सम्मान समझते हैं। (मरकुस 13:10) शुरू के मसीहियों का प्रचार काम, दान के उन पैसों से चलता था जो लोग खुशी-खुशी देते थे। (2 कुरिन्थियों 8:12; 9:7) इस बारे में टर्टुलियन ने लिखा: “हालाँकि पैसों के लिए एक बक्स रखा जाता है, मगर इस धर्म में सभाओं में दाखिले के लिए पैसे नहीं लिए जाते, क्योंकि धर्म कोई व्यापार नहीं है। हर आदमी महीने में एक बार, या जब भी चाहे थोड़े-बहुत पैसे लाता है। अगर उसके पास देने की इच्छा और हैसियत है, तभी वह देता है; किसी पर कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की जाती; यह दान अपनी मरज़ी से दिया जाता है।”—अपॉलजी, अध्याय 39.

12 यहोवा के साक्षियों का दुनिया भर में चल रहा प्रचार काम भी दान के उन पैसों से चलाया जाता है जो लोग अपनी मरज़ी से देते हैं। साक्षियों के अलावा, सच्चाई में दिलचस्पी लेनेवाले ऐसे लोग भी हैं जो इस काम की कदर करते हुए इसके लिए दान देना, एक बड़ा सम्मान समझते हैं। इस मामले में भी यहोवा के साक्षी शुरू के मसीहियों जैसे हैं।

सच्चाई और हमारा चालचलन

13. चालचलन के मामले में, पतरस की किस सलाह को यहोवा के साक्षी मानते हैं?

13 सत्य पर चलते हुए, शुरू के मसीहियों ने प्रेरित पतरस की इस सलाह को माना: “अन्यजातियों में तुम्हारा चालचलन भला हो; इसलिये कि जिन जिन बातों में वे तुम्हें कुकर्मी जानकर बदनाम करते हैं, वे तुम्हारे भले कामों को देखकर; उन्हीं के कारण कृपा दृष्टि के दिन परमेश्‍वर की महिमा करें।” (1 पतरस 2:12) यहोवा के साक्षी भी अपनी ज़िंदगी में इन शब्दों पर अमल करते हैं।

14. मसीही, अनैतिकता से भरे मनोरंजन को किस नज़र से देखते हैं?

14 धर्मत्याग की शुरूआत के बाद भी, ईसाई कहलानेवाले लोग अनैतिक कामों से दूर रहे। चर्च का इतिहास सिखानेवाले प्रोफेसर, डब्ल्यू. डी. किलन ने लिखा: “दूसरी और तीसरी सदियों में, हर बड़े नगर की नाट्यशाला लोगों को अपनी तरफ खींचती थी; इसके ज़्यादातर कलाकार अनैतिकता में लिप्त रहते थे, और उनके भड़कीले नाटक उस ज़माने के लोगों की वासनाओं को पूरा करते थे। . . . सभी सच्चे मसीही थिएटर से घृणा करते थे। . . . उसकी निर्लज्जता उन्हें घिनौनी लगती थी; और इसमें झूठे देवी-देवताओं से बार-बार प्रार्थना की जाती थी, जो उनके धार्मिक विश्‍वासों के एकदम खिलाफ था।” (प्राचीन चर्च, अँग्रेज़ी, पेज 318-19) यीशु के सच्चे चेले आज भी ऐसे मनोरंजन के कार्यक्रमों से दूर रहते हैं, जो बेहूदा और अनैतिकता से भरे हुए होते हैं।—इफिसियों 5:3-5.

सच्चाई और ‘प्रधान अधिकारी’

15, 16. ‘प्रधान अधिकारी’ कौन हैं, और सत्य पर चलनेवाले उन्हें किस नज़र से देखते हैं?

15 शुरू के मसीहियों के अच्छे चालचलन के बावजूद, रोम के ज़्यादातर सम्राटों ने उनके बारे में गलत राय कायम की। इतिहासकार ई. जी. हार्डी कहते हैं कि सम्राट “उनके जोश से घृणा करते थे।” बिथुनिया के गर्वनर, प्लिनी द यंगर और सम्राट ट्रेजन की एक-दूसरे को लिखी चिट्ठियाँ दिखाती हैं कि आम तौर पर हुकूमत करनेवालों को मसीहियत के असली स्वरूप के बारे में सही-सही पता नहीं था। आज मसीही, सरकार को किस नज़र से देखते हैं?

16 यीशु के शुरू के चेलों की तरह, यहोवा के साक्षी भी कुछ मामलों में सरकार के “प्रधान अधिकारियों” के अधीन रहते हैं। (रोमियों 13:1-7) अगर इंसानों की माँग, परमेश्‍वर की मरज़ी से मेल नहीं खाती तो वे इस नियम पर चलते हैं: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।” (प्रेरितों 5:29) यीशु के बाद—मसीहियत की जीत (अँग्रेज़ी) किताब कहती है: “मसीही, सम्राट की उपासना नहीं करते थे, फिर भी वे भीड़ को भड़कानेवाले नहीं थे, और उनका धर्म चाहे सबसे अलग था और कभी-कभी विधर्मियों को घिनौना भी लगता था, फिर भी इससे साम्राज्य को कोई खतरा नहीं था।”

17. (क) शुरू के मसीही किस सरकार के समर्थक थे? (ख) मसीह के सच्चे चेले आज यशायाह 2:4 के शब्दों पर कैसे अमल करते हैं?

17 शुरू के मसीही, परमेश्‍वर के राज्य का समर्थन करते थे, वैसे ही जैसे कुलपिता इब्राहीम, इसहाक और याकूब का यह विश्‍वास था कि वह वादा किया हुआ “नगर” ज़रूर आएगा ‘जिसका बनानेवाला परमेश्‍वर’ है। (इब्रानियों 11:8-10) अपने स्वामी की तरह, यीशु के चेले भी इस “संसार के नहीं” थे। (यूहन्‍ना 17:14-16) और जहाँ युद्धों और संघर्ष की बात आती है, उन्होंने “अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल” बना लिए थे और इस तरह शांति कायम रखते थे। (यशायाह 2:4) चर्च के इतिहास के लेक्चरर, जेफ्री एफ. नटॉल ने बताया कि पहले के मसीहियों का युद्ध के बारे में जो रुख था, वही आज भी कुछ लोगों में पाया जा सकता है: “यह बात हमारे गले नहीं उतरती, मगर यह हकीकत है कि शुरू के मसीहियों का युद्ध को लेकर जो रवैया था, वही आज उन लोगों का रवैया है जो खुद को यहोवा के साक्षी कहते हैं।”

18. ऐसा हम क्यों कहते हैं कि किसी भी सरकार को यहोवा के साक्षियों से कोई खतरा नहीं है?

18 शुरू के मसीही, राजनीति के मामलों में निष्पक्ष रहते थे और “प्रधान अधिकारियों” के अधीन रहते थे। वे किसी भी सरकार के लिए खतरा नहीं थे। आज यहोवा के साक्षी भी उन्हीं की तरह हैं। उत्तर अमरीका के एक अखबार के लेखक ने लिखा: “सिर्फ एक बंददिमाग, और किसी पर भरोसा न करनेवाला इंसान ही यह सोच सकता है कि यहोवा के साक्षी, सरकार के लिए किसी किस्म का खतरा पैदा कर सकते हैं। यहोवा के साक्षी ठीक वैसे ही हैं, जैसे एक धार्मिक समूह को होना चाहिए, वे विद्रोह करनेवाले नहीं बल्कि शांति-प्रेमी हैं।” जो सरकारी अधिकारी साक्षियों को जानते हैं, उन्हें पता है कि यहोवा के साक्षियों से उन्हें कोई खतरा नहीं है।

19. कर चुकाने के मामले में, शुरू के मसीहियों और यहोवा के साक्षियों के बारे में क्या कहा जा सकता है?

19 शुरू के मसीहियों के लिए, “प्रधान अधिकारियों” का आदर करने का एक तरीका था उनके कर अदा करना। रोम के सम्राट, एन्टोनिनस पायस (जन्म सा.यु. 138-मृत्यु 161) को लिखते वक्‍त जस्टिन मार्टर ने अपना यह विचार ज़ाहिर किया कि सब लोगों में सिर्फ मसीही “ऐसे लोग थे जो बिना ना-नुकुर किए” अपने कर अदा करते थे। (फर्स्ट अपॉलजी, अध्याय 17) और टर्टुलियन ने रोम पर हुकूमत करनेवालों से कहा कि उनके राज्य के कर वसूलनेवालों को “मसीहियों का एहसान मानना चाहिए” क्योंकि वे पूरी ईमानदारी से अपने कर चुकाते थे। (अपॉलजी, अध्याय 42) मसीहियों को पैक्स रोमाना, या रोम के शांति-युग से फायदा हुआ, क्योंकि उस दौरान कानून और व्यवस्था का पालन किया जाता था, सड़कें अच्छी थीं और समुद्र से यात्रा करना भी काफी हद तक सुरक्षित था। उन्हें इस बात का एहसास था कि वे समाज के कर्ज़दार थे, इस वजह से वे यीशु के ये शब्द मानते थे: “जो कैसर का है वह कैसर को, और जो परमेश्‍वर का है परमेश्‍वर को दो।” (मरकुस 12:17) आज भी यहोवा के लोग इस सलाह को मानते हैं और इसलिए कर चुकाने के अलावा और मामलों में भी उनकी ईमानदारी की तारीफ की गयी है।—इब्रानियों 13:18.

सत्य—एकता का बंधन

20, 21. शांति से प्रेम करनेवाले भाईचारे के मामले में, शुरू के मसीहियों और आज यहोवा के सेवकों के बारे में सच्चाई क्या है?

20 सत्य पर चलने की वजह से, शुरू के सभी मसीही, शांति और एकता के बंधन में एक-दूसरे से बंधे थे। वैसे ही आज यहोवा के साक्षियों का भाईचारा है। (प्रेरितों 10:34, 35) द मॉस्को टाइम्स्‌ में छपे एक खत में लिखा था: “यह जानी-मानी बात है कि [यहोवा के साक्षी] बहुत ही अच्छे, भले और नम्र लोग हैं। उनके साथ काम करना बहुत आसान है, वे दूसरों पर कभी कोई दबाव नहीं डालते और दूसरों के साथ व्यवहार करते वक्‍त हमेशा शांति बनाए रखने की कोशिश करते हैं . . . उनके बीच रिश्‍वतखोर, शराबी या ड्रग्स लेनेवाले नहीं हैं, और इसकी वजह बिलकुल सीधी-सी है: उनकी कोशिश यही रहती है कि वे जो कुछ कहें या करें, वह बाइबल से उनके विश्‍वासों के मुताबिक सही हो। अगर सारी दुनिया के लोग, यहोवा के साक्षियों की तरह बाइबल के मुताबिक जीने की कोशिश करें, तो हमारी इस बेरहम दुनिया की कायापलट हो जाए।”

21 शुरूआत की मसीहियत का विश्‍वकोश (अँग्रेज़ी) कहता है: “शुरू का चर्च, खुद को एक ऐसा नया समाज मानता था, जिसमें पहले जो एक-दूसरे के दुश्‍मन थे, यानी यहूदी और अन्यजातियों के लोग अब शांति से मिल-जुलकर रह सकते थे।” यहोवा के साक्षी भी, सारी दुनिया में फैली ऐसी बिरादरी हैं जो अमन-पसंद हैं और सही मायनों में नयी दुनिया का समाज हैं। (इफिसियों 2:11-18; 1 पतरस 5:9; 2 पतरस 3:13) दक्षिण अफ्रीका में प्रिटोरिया शो ग्राऊंड्‌स के सुरक्षा बल के प्रमुख ने देखा कि कैसे सब जातियों के साक्षी वहाँ अधिवेशन के लिए शांति से इकट्ठा हुए थे। उन्होंने कहा: “हर कोई बहुत ही इज़्ज़त से पेश आ रहा था और अब भी ऐसा ही है, लोग एक-दूसरे से प्यार से बात कर रहे थे। इन पिछले कुछ दिनों में आपके लोगों ने जो रवैया दिखाया, उससे यही साबित होता है कि आपके समाज के लोग कितने महान आदर्शों पर चलते हैं और सब मिल-जुलकर एक खुशहाल परिवार की तरह रहते हैं।”

सत्य सिखाने की वजह से आशीष पायी

22. सत्य को प्रकट करने की वजह से आज मसीहियों को क्या नतीजा मिल रहा है?

22 पौलुस और दूसरे मसीही अपने चालचलन और प्रचार से “सत्य को प्रगट” कर रहे थे। (2 कुरिन्थियों 4:2) क्या आप इस बात से सहमत नहीं कि यहोवा के साक्षी भी आज यही कर रहे हैं और सब देशों को सत्य सिखा रहे हैं? उनके ऐसा करने का नतीजा यह है कि सारी दुनिया में लोग सच्ची उपासना को अपना रहे हैं और ‘यहोवा के भवन के पर्वत’ की तरफ धारा की तरह चले आ रहे हैं, और उनकी गिनती दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। (यशायाह 2:2, 3) हर साल, हज़ारों लोग अपने समर्पण को ज़ाहिर करने के लिए बपतिस्मा लेते हैं, और इस वजह से बहुत-सी नयी कलीसियाएँ बनती हैं।

23. सब देशों को सत्य सिखानेवालों के बारे में आप क्या सोचते हैं?

23 यहोवा के लोग अलग-अलग संस्कृतियों से आए हैं, मगर फिर भी वे मिल-जुलकर सच्ची उपासना करते हैं। वे जो प्यार दिखाते हैं, उसी से यीशु के चेलों के रूप में उनकी पहचान होती है। (यूहन्‍ना 13:35) क्या आप देख सकते हैं कि ‘परमेश्‍वर सचमुच उनके बीच में है’? (1 कुरिन्थियों 14:25) क्या आप भी उन लोगों के पक्ष में खड़े हैं जो सब देशों को सत्य सिखा रहे हैं? अगर हाँ, तो हमारी दुआ है कि आप इस सत्य के लिए हमेशा-हमेशा एहसानमंद हों और इसमें सदा तक चलते रहने की आशीष पाएँ।

आप क्या जवाब देंगे?

• उपासना करने के तरीके में, शुरू के मसीहियों और यहोवा के साक्षियों के बीच क्या समानता है?

• सत्य पर चलनेवाले सिर्फ किस धार्मिक त्योहार को मानते हैं?

• ‘प्रधान अधिकारी’ कौन हैं, और मसीहियों का उनके बारे में क्या नज़रिया है?

• सत्य कैसे एकता का बंधन है?

[पेज 21 पर तसवीर]

मसीही सभाएँ, सत्य पर चलनेवालों के लिए हमेशा एक आशीष रही हैं

[पेज 23 पर तसवीरें]

यीशु ने अपने चेलों को बलिदान के रूप में उसकी मौत का स्मारक मनाने की आज्ञा दी

[पेज 24 पर तसवीर]

शुरू के मसीहियों की तरह, यहोवा के साक्षी “प्रधान अधिकारियों” का आदर करते हैं

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