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  • आदर्श प्रार्थना के मुताबिक ज़िंदगी जीओ—भाग एक
    प्रहरीदुर्ग—2015 | जून 15
    • एक बच्ची सोने से पहले प्रार्थना कर रही है और उसके माता-पिता ध्यान से सुन रहे हैं

      आदर्श प्रार्थना के मुताबिक ज़िंदगी जीओ—भाग एक

      “तेरा नाम पवित्र किया जाए।”—मत्ती 6:9.

      क्या आपको याद है?

      • शब्द “हे हमारे पिता” से हम क्या सीख सकते हैं?

      • हमें यह प्रार्थना क्यों करनी चाहिए कि परमेश्‍वर का नाम पवित्र हो?

      • क्या सिर्फ यह प्रार्थना करना काफी है कि धरती पर परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी हो? समझाइए।

      1. हम प्रचार के दौरान, मत्ती 6:9-13 में दर्ज़ यीशु की प्रार्थना का कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं?

      मत्ती 6:9-13 में दर्ज़ प्रार्थना बहुत-से लोगों को मुँह-ज़बानी याद है। अकसर प्रचार में हम इस प्रार्थना से लोगों को सिखाते हैं कि परमेश्‍वर का राज सचमुच की एक सरकार है। यह सरकार धरती को फिरदौस में बदल देगी। इस प्रार्थना में दर्ज़ शब्द “तेरा नाम पवित्र किया जाए” से हम लोगों को सिखाते हैं कि परमेश्‍वर का एक नाम है और हमें उस नाम को पवित्र समझना चाहिए।—मत्ती 6:9.

      2. यीशु नहीं चाहता था कि हम हर बार प्रार्थना करते वक्‍त आदर्श प्रार्थना को शब्द-ब-शब्द दोहराएँ। यह हम कैसे जानते हैं?

      2 यीशु ने प्रार्थना में जो शब्द इस्तेमाल किए थे, वही शब्द आज बहुत-से लोग प्रार्थना करते वक्‍त दोहराते हैं। लेकिन क्या यीशु चाहता था कि हम भी हर बार प्रार्थना करते वक्‍त वही शब्द दोहराएँ? नहीं। यीशु ने खुद कहा, “प्रार्थना करते वक्‍त, . . . बार-बार एक ही बात न दोहरा।” (मत्ती 6:7) एक और मौके पर यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि उन्हें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए। हालाँकि उसने वही प्रार्थना की, मगर इस मौके पर उसने दूसरे शब्द इस्तेमाल किए। (लूका 11:1-4) इस तरह यीशु यह समझाना चाहता था कि हमें किन बातों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और किस बात को कितनी अहमियत देनी चाहिए। इसलिए इसे आदर्श प्रार्थना कहना सही होगा।

      3. जब हम आदर्श प्रार्थना का अध्ययन करेंगे, उस दौरान हम खुद से कौन-से सवाल पूछ सकते हैं?

      3 इस लेख में और अगले लेख में हम यीशु की आदर्श प्रार्थना का गहराई से अध्ययन करेंगे। जब हम ऐसा करेंगे, उस दौरान खुद से पूछिए, ‘इस प्रार्थना की मदद से मैं अपनी प्रार्थनाएँ कैसे और बेहतर बना सकता हूँ? और इससे भी ज़रूरी, क्या मैं आदर्श प्रार्थना के मुताबिक जी रहा हूँ?’

      “हे हमारे पिता तू जो स्वर्ग में है”

      4. शब्द “हे हमारे पिता” से क्या पता चलता है? हम किस वजह से यहोवा को पिता कह सकते हैं?

      4 यीशु ने प्रार्थना की शुरूआत इस तरह की, “हे हमारे पिता।” इन शब्दों से पता चलता है कि पूरी दुनिया में जितने भी हमारे भाई-बहन हैं, यहोवा उन सबका पिता है। (1 पत. 2:17) जिन लोगों को यहोवा ने स्वर्ग में जीने के लिए चुना है, उन्हें उसने अपने बेटों के तौर पर गोद लिया है। इसलिए वह उनका एक खास मायने में पिता है। (रोमि. 8:15-17) जो लोग धरती पर हमेशा-हमेशा जीएँगे, वे भी यहोवा को “पिता” कह सकते हैं। वह इसलिए कि यहोवा उन्हें जीवन देता है और प्यार से उनकी ज़रूरतें पूरी करता है। जब वे सिद्ध हो जाएँगे और आखिरी परीक्षा के दौरान यहोवा के वफादार बने रहेंगे, तब उन्हें “परमेश्‍वर के बच्चे” कहा जाएगा।—रोमि. 8:21; प्रका. 20:7, 8.

      5, 6. (क) माता-पिता अपने बच्चों को कौन-सा बेहतरीन तोहफा दे सकते हैं? (ख) हर बच्चे को अपनी तरफ से क्या कोशिश करनी चाहिए? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

      5 माता-पिता जब अपने बच्चों को प्रार्थना करना सिखाते हैं और उन्हें यह समझने में मदद देते हैं कि यहोवा स्वर्ग में रहनेवाला उनका पिता है, तो वे उन्हें बेहतरीन तोहफा दे रहे होते हैं। दक्षिण कोरिया में रहनेवाला एक सर्किट निगरान कहता है, ‘मैं अपनी बेटियों के जन्म से ही उनके साथ प्रार्थना करने लगा। मैं रोज़ रात को उनके साथ प्रार्थना करता था। हाँ, अगर मैं घर से दूर होता था, तो बात अलग है। हमारी बेटियाँ अकसर कहती हैं कि उस समय रात को प्रार्थना में कही बातें तो उन्हें याद नहीं हैं। मगर इतना ज़रूर याद है कि उस वक्‍त कैसा माहौल होता था और स्वर्ग में रहनेवाले पिता यहोवा से हम कितने आदर से बात करते थे। साथ ही, उस वक्‍त कैसी शांति और सुकून महसूस होता था। फिर जैसे ही उन्होंने बोलना सीखा, हमने उन्हें बढ़ावा दिया कि वे बोल-बोलकर यहोवा से प्रार्थना करें। इससे मैं उनकी प्रार्थना सुन सकता था और यह जान सकता था कि वे क्या सोचती हैं और कैसा महसूस करती हैं। या यूँ कहें कि मैं उनके दिल में झाँककर देख सकता था। इस वजह से मैं प्यार से उन्हें समझा पाता था कि वे अपनी प्रार्थना में आदर्श प्रार्थना की बातें भी शामिल करें। ऐसा मैं इसलिए करता था, ताकि वे और भी अच्छी तरह प्रार्थना कर सकें।’

      6 नतीजा, भाई की बेटियाँ बड़े होने पर भी यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करती गयीं। अब उनकी शादी हो गयी है और वे अपने-अपने पति के साथ पूरे समय की सेवा कर रही हैं। वाकई, माता-पिता अपने बच्चों को जो सबसे बढ़िया तोहफा दे सकते हैं, वह है अपने बच्चों को यह सिखाना कि यहोवा एक असल शख्स है और वे उसे अपना करीबी दोस्त बना सकते हैं। लेकिन हर बच्चे को अपनी तरफ से पूरी कोशिश करनी चाहिए कि वह परमेश्‍वर के साथ अपनी दोस्ती बनाए रखे, जिसमें यह भी शामिल है कि वह परमेश्‍वर के नाम से प्यार करना और उसके लिए गहरा आदर दिखाना सीखे।—भज. 5:11, 12; 91:14.

      “तेरा नाम पवित्र किया जाए”

      7. हमें क्या सम्मान मिला है और हमें क्या करना चाहिए?

      7 हमें परमेश्‍वर का नाम जानने और ऐसे लोग होने का सम्मान मिला है, जो उसके “नाम से पहचाने” जाते हैं। (प्रेषि. 15:14; यशा. 43:10) हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता से प्रार्थना करते हैं, “तेरा नाम पवित्र किया जाए।” इस वजह से हम यहोवा से प्रार्थना में मदद माँगते हैं कि हम ऐसा कोई काम न करें या ऐसी कोई बात न कहें जिससे उसके पवित्र नाम का अनादर हो सकता है। हमें पहली सदी के उन लोगों की तरह नहीं होना चाहिए, जो लोगों को सिखाते तो कुछ और थे, लेकिन करते कुछ और थे। पौलुस ने उन्हें लिखा, “तुम्हारी वजह से राष्ट्रों के बीच परमेश्‍वर के नाम की बदनामी हो रही है।”—रोमि 2:21-24.

      8, 9. एक उदाहरण देकर समझाइए कि कैसे यहोवा उन लोगों की मदद करता है, जो उसके नाम को पवित्र करना चाहते हैं।

      8 हमसे जितना हो सकता है हम यहोवा के नाम को पवित्र करने की कोशिश करते हैं। नॉर्वे की रहनेवाली एक बहन का बेटा जब दो साल का ही था, तब उसके पति की मौत हो गयी। पति की मौत के बाद वह बिलकुल अकेली पड़ गयी। वह कहती है, “यह मेरी ज़िंदगी का बहुत मुश्‍किल दौर था। मैं परमेश्‍वर से ताकत पाने के लिए रोज़ प्रार्थना करती थी, करीब-करीब हर घंटे ताकि मैं खुद को सँभाल सकूँ और कोई गलत फैसला न लूँ, न ही यहोवा से विश्‍वासघात करूँ। क्योंकि मैं शैतान को यहोवा पर ताने कसने का कोई मौका नहीं देना चाहती थी। मैं यहोवा के नाम को पवित्र करना चाहती थी और मैं चाहती थी कि मेरा बेटा फिरदौस में अपने पिता को फिर से देखे।”—नीति. 27:11.

      9 क्या यहोवा ने उसकी प्रार्थनाओं का जवाब दिया? हाँ। लगातार भाई-बहनों की संगति करने से उसका बहुत हौसला बढ़ा। पाँच साल बाद उस बहन ने एक प्राचीन से शादी की। अब उसका बेटा 20 साल का हो गया है और वह एक बपतिस्मा-शुदा भाई है। वह बहन कहती है, “मैं बहुत खुश हूँ कि मेरे पति ने मेरे बेटे की परवरिश करने में मेरी मदद की है।”

      10. परमेश्‍वर के नाम को पूरी तरह से पवित्र किए जाने के लिए क्या ज़रूरी है?

      10 यहोवा के नाम को पूरी तरह से पवित्र किए जाने और उस पर लगे सारे इलज़ाम मिटाने के लिए क्या ज़रूरी है? इसके लिए ज़रूरी है कि यहोवा उन सभी का वजूद मिटा दे, जो उसके नाम का अनादर करते हैं और उसे अपना राजा मानने से इनकार कर देते हैं। (यहेजकेल 38:22, 23 पढ़िए।) इसके बाद, धीरे-धीरे बाकी सभी इंसान सिद्ध हो जाएँगे। तब स्वर्ग में और धरती पर सभी यहोवा की उपासना करेंगे और उसके पवित्र नाम का आदर करेंगे। इस सबके बाद, हमारा प्यारा पिता “सबके लिए सबकुछ” होगा।—1 कुरिं. 15:28.

      “तेरा राज आए”

      11, 12. सन्‌ 1876 में, यहोवा ने अपने लोगों को क्या समझने में मदद दी?

      11 यीशु के स्वर्ग लौटने से पहले, उसके चेलों ने उससे पूछा, “प्रभु, क्या तू इसी वक्‍त इसराएल के राज को फिर से बहाल करने जा रहा है?” यीशु ने उन्हें जवाब दिया कि अभी उनके लिए यह जानने का समय नहीं है कि परमेश्‍वर का राज कब शुरू होगा। उसने अपने चेलों को बताया कि वे प्रचार काम पर ध्यान दें जो बहुत ज़रूरी है। (प्रेषितों 1:6-8 पढ़िए।) लेकिन उसने उन्हें यह भी सिखाया कि वे परमेश्‍वर के राज के आने के लिए प्रार्थना करें और अपना पूरा ध्यान उस पर लगाएँ। इसलिए आज भी मसीही यह प्रार्थना करते हैं कि परमेश्‍वर का राज आए।

      12 जब यीशु के लिए परमेश्‍वर के राज की बागडोर सँभालने का समय करीब आ गया, तो यहोवा ने अपने लोगों को यह समझने में मदद दी कि ठीक किस साल ऐसा होगा। सन्‌ 1876 में, चार्ल्स टेज़ रसल ने एक लेख लिखा जिसका विषय था, “दूसरे राष्ट्रों का वक्‍त: यह कब खत्म होगा?” उस लेख में उन्होंने समझाया कि दानिय्येल की भविष्यवाणी में बताए “सात काल” और यीशु की भविष्यवाणी में बताया “राष्ट्रों के लिए तय किया हुआ वक्‍त” एक ही है। उन्होंने समझाया कि यह वक्‍त 1914 में खत्म हो जाएगा।a—दानि. 4:16; लूका 21:24.

      13. (क) सन्‌ 1914 में क्या हुआ? (ख) सन्‌ 1914 से दुनिया में हो रही घटनाएँ क्या साबित करती हैं?

      13 सन्‌ 1914 में, यूरोप में युद्ध छिड़ गया और बहुत जल्द पूरी दुनिया इसकी चपेट में आ गयी। इस युद्ध की वजह से भयानक अकाल पड़े। युद्ध के खत्म होते-होते, 1918 में दुनिया-भर में एक जानलेवा बीमारी फैल गयी। इस बीमारी से इतने लोगों की जान गयी, जितने तो युद्ध में भी नहीं मारे गए थे। यह सब घटनाएँ उस “निशानी” का हिस्सा थीं जो यीशु ने बतायी थी। इस निशानी से यह साबित हो गया कि यीशु 1914 में स्वर्ग में राजा बन गया था। (मत्ती 24:3-8; लूका 21:10, 11) उसी साल वह “जीत हासिल करता हुआ अपनी जीत पूरी करने निकला।” (प्रका. 6:2) यीशु ने शैतान और उसके दुष्ट दूतों को स्वर्ग से धरती पर फेंक दिया। उसके बाद से यह भविष्यवाणी पूरी होने लगी, “धरती और समुद्र, तुम पर हाय क्योंकि शैतान तुम्हारे पास नीचे आ गया है और बड़े क्रोध में है, क्योंकि वह जानता है कि उसका बहुत कम वक्‍त बाकी रह गया है।”—प्रका. 12:7-12.

      14. (क) हम क्यों आज भी यह प्रार्थना करते हैं कि परमेश्‍वर का राज आए? (ख) आज हमें कौन-सा ज़रूरी काम करना चाहिए?

      14 प्रकाशितवाक्य के अध्याय 12 में दर्ज़ भविष्यवाणी से हम यह समझ पाते हैं कि जब यीशु परमेश्‍वर के राज का राजा बना, तब से धरती पर क्यों दिल दहलानेवाली घटनाएँ घट रही हैं। हालाँकि आज यीशु स्वर्ग में राजा बनकर राज कर रहा है, मगर धरती पर अब भी शैतान का राज है। लेकिन जल्द ही यीशु धरती पर से हर तरह की बुराई खत्म कर देगा और इस तरह “अपनी जीत पूरी” करेगा। तब तक हम प्रार्थना करते रहेंगे कि परमेश्‍वर का राज आए। साथ ही, हम उस प्रार्थना के मुताबिक जीएँगे, यानी राज के बारे में लोगों को गवाही देते रहेंगे। हमारे इस ज़रूरी काम से यीशु की यह भविष्यवाणी पूरी हो रही है, “राज की इस खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार किया जाएगा ताकि सब राष्ट्रों पर गवाही हो; और इसके बाद अंत आ जाएगा।”—मत्ती 24:14.

      “तेरी मरज़ी . . . धरती पर भी पूरी हो”

      15, 16. क्या सिर्फ यह प्रार्थना करना काफी है कि धरती पर परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी हो? समझाइए।

      15 आज से करीब 6,000 साल पहले धरती पर यहोवा की मरज़ी पूरी हो रही थी। इसीलिए यहोवा ने कहा कि सबकुछ “बहुत ही अच्छा है।” (उत्प. 1:31) फिर शैतान ने बगावत की और तब से ज़्यादातर लोग परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी नहीं कर रहे हैं। लेकिन आज करीब 80 लाख लोग यहोवा की सेवा कर रहे हैं। वे न सिर्फ यह प्रार्थना करते हैं कि धरती पर परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी हो, बल्कि इस प्रार्थना के मुताबिक जीते भी हैं। यानी वे इस तरह ज़िंदगी जीते हैं जिससे परमेश्‍वर खुश हो, साथ ही वे जोश के साथ दूसरों को राज के बारे में सिखाते हैं।

      1. एक परिवार प्रचार करने के लिए पेशकश की तैयारी कर रहा है; 2. एक लड़की प्रचार कर रही है और उसका पिता उसके साथ है

      क्या आप अपने बच्चों को परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करना सिखाते हैं? (पैराग्राफ 16 देखिए)

      16 उदाहरण के लिए, 80 साल की एक बहन पर गौर कीजिए। उसका बपतिस्मा 1948 में हुआ था और उसने अफ्रीका में मिशनरी के तौर पर सेवा की। वह कहती है, ‘मैं अकसर प्रार्थना करती हूँ कि सभी भेड़ समान लोगों तक खुशखबरी पहुँचे और उन्हें यहोवा को जानने में मदद मिले, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए। जब मैं किसी को गवाही देनेवाली होती हूँ, तो मैं प्रार्थना करती हूँ कि परमेश्‍वर मुझे बुद्धि दे ताकि मैं इस तरह गवाही दे सकूँ कि सच्चाई उसके दिल को छू जाए। साथ ही, मैं यह भी प्रार्थना करती हूँ कि जिन भेड़ समान लोगों तक खुशखबरी पहुँच चुकी है, उनकी मदद करने के लिए हम जो मेहनत करते हैं उस पर यहोवा आशीष दे।’ इस बुज़ुर्ग बहन ने यहोवा को जानने में कई लोगों की मदद की है। क्या आप ऐसे ही और बुज़ुर्ग भाई-बहनों को जानते हैं, जो जोश के साथ यहोवा की मरज़ी पूरी कर रहे हैं?—फिलिप्पियों 2:17 पढ़िए।

      17. भविष्य में यहोवा इंसानों और धरती के लिए जो करेगा, उस बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

      17 जब तक यहोवा धरती पर से अपने सभी दुश्‍मनों का सफाया नहीं कर देता, तब तक हम प्रार्थना करते रहेंगे कि धरती पर परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी हो। दुश्‍मनों का सफाया होने के बाद, धरती को फिरदौस में बदल दिया जाएगा और मौत की नींद सो रहे अरबों लोगों को दोबारा ज़िंदा किया जाएगा। यीशु ने कहा था कि “वह वक्‍त आ रहा है जब वे सभी जो स्मारक कब्रों में हैं उसकी आवाज़ सुनेंगे और बाहर निकल आएँगे।” (यूह. 5:28, 29) कल्पना कीजिए कि जब हम मौत में खो चुके अपने अज़ीज़ों को गले लगाएँगे, तो क्या ही खुशी का आलम होगा! परमेश्‍वर हमारी “आँखों से हर आँसू पोंछ देगा।” (प्रका. 21:4) दोबारा जी उठाए गए लोगों में से ज़्यादातर “अधर्मी” होंगे, यानी ऐसे लोग जिन्हें जीते-जी यहोवा और यीशु के बारे में सच्चाई जानने का कभी मौका नहीं मिला। हम उन्हें खुशी-खुशी परमेश्‍वर की मरज़ी के बारे में सिखाएँगे, ताकि वे भी “हमेशा की ज़िंदगी” पा सकें।—प्रेषि. 24:15, फुटनोट; यूह. 17:3.

      18. इंसान की सबसे बड़ी ज़रूरतें कौन-सी हैं?

      18 इंसान की सबसे बड़ी ज़रूरतें हैं, परमेश्‍वर का राज आना और उसके नाम को पवित्र किया जाना। साथ ही, उसकी मरज़ी धरती पर पूरी होना, यानी पूरे विश्‍व में सभी का एक होकर यहोवा की उपासना करना। और यही आदर्श प्रार्थना की पहली तीन बिनतियाँ हैं। जब परमेश्‍वर ये तीन बिनतियाँ पूरी करेगा, तो इंसान की सबसे बड़ी ज़रूरतें पूरी होंगी। अगले लेख में हम यह चर्चा करेंगे कि यीशु ने हमें और किन ज़रूरी बातों के लिए प्रार्थना करना सिखाया।

      a हम कैसे जानते हैं कि यह भविष्यवाणी 1914 में पूरी हुई? इस बारे में जानने के लिए बाइबल असल में क्या सिखाती है किताब के पेज 215-218 देखिए।

  • आदर्श प्रार्थना के मुताबिक ज़िंदगी जीओ—भाग दो
    प्रहरीदुर्ग—2015 | जून 15
    • आध्यात्मिक भोजन आज समय पर मिल रहा है

      आदर्श प्रार्थना के मुताबिक ज़िंदगी जीओ—भाग दो

      “तुम्हारा पिता . . . जानता है कि तुम्हें किन चीज़ों की ज़रूरत है।”—मत्ती 6:8.

      क्या आपको याद है?

      • यह बिनती करने में क्या शामिल है कि “इस दिन की रोटी हमें दे”?

      • यहोवा ‘हमारे कर्ज़ माफ कर’ दे, इसके लिए हमें क्या करना चाहिए?

      • “जब हम पर परीक्षा आए तो हमें गिरने न दे,” हमारी इस बिनती का जवाब यहोवा कैसे देता है?

      1-3. एक बहन को क्यों यह यकीन है कि यहोवा जानता था कि उसे किस तरह की मदद चाहिए?

      लॉनॉ नाम की एक पायनियर बहन 2012 में जर्मनी घूमने गयी। वहाँ उसके साथ जो घटना घटी उसे वह कभी नहीं भूल सकती। वह महसूस करती है कि यहोवा ने उसकी दो प्रार्थनाओं का जवाब दिया। कैसे? जब वह ट्रेन से हवाई-अड्डे की तरफ जा रही थी, तब उसने यहोवा से प्रार्थना की कि उसे कोई ऐसा व्यक्‍ति मिल जाए, जिसे वह गवाही दे सके। जब वह हवाई-अड्डे पहुँची तो उसे पता चला कि उसका हवाई जहाज़ एक दिन की देरी से उड़ान भरेगा। इससे लॉनॉ परेशान होने लगी कि वह कहाँ रात गुज़ारेगी, क्योंकि उसके करीब-करीब सारे पैसे खर्च हो चुके थे। इसलिए उसने फिर से परमेश्‍वर से प्रार्थना की और उससे मदद माँगी।

      2 लॉनॉ ने प्रार्थना बस खत्म ही की थी कि तभी उसे किसी ने आवाज़ दी, “अरे लॉनॉ, तुम यहाँ क्या कर रही हो?” यह आवाज़ उस लड़के की थी जो उसके साथ स्कूल में पढ़ता था। उस लड़के के साथ उसकी माँ और दादी भी थीं, जो उसे छोड़ने आयी थीं। वह दक्षिण अफ्रीका जा रहा था। जब लॉनॉ ने उन्हें अपनी हालत के बारे में बताया, तो उस लड़के की माँ और दादी ने उससे कहा कि वह उनके घर रुक सकती है। उन्होंने उसके विश्‍वास और वह पायनियर के तौर पर जो सेवा कर रही थी, उस बारे में उससे कई सवाल पूछे।

      3 अगली सुबह नाश्‍ते के बाद, लॉनॉ ने बाइबल के बारे में उनके और भी सवालों के जवाब दिए। उसने उनसे उनका फोन नंबर वगैरह लिया, ताकि आगे भी कोई उनके सवालों के जवाब दे सके। लॉनॉ अपने सफर से सही-सलामत घर वापस आयी और वह अब भी पायनियर सेवा कर रही है। उसे लगता है कि यहोवा ने उसकी प्रार्थनाओं का जवाब दिया, वह जानता था कि उसे किस तरह की मदद चाहिए और उसने उसे वह मदद दी।—भज. 65:2.

      4. इस लेख में हम किन ज़रूरी बातों के बारे में चर्चा करेंगे?

      4 जब अचानक हमारे सामने कोई समस्या आ जाती है, तो हम बड़ी आसानी से यहोवा से मदद माँगते हैं और वह खुशी-खुशी हमारी सुनता है। (भज. 34:15; नीति. 15:8) लेकिन आदर्श प्रार्थना में यीशु ने हमें सिखाया कि कुछ और भी ज़रूरी बातें हैं जिनके लिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए। इस लेख में हम आदर्श प्रार्थना की आखिरी चार बिनतियों पर गौर करेंगे और देखेंगे कि कैसे उन बिनतियों से हमें यहोवा के वफादार बने रहने में मदद मिल सकती है।—मत्ती 6:11-13 पढ़िए।

      “आज के इस दिन की रोटी हमें दे”

      5, 6. यीशु ने यह क्यों सिखाया कि हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि परमेश्‍वर ‘हमें रोटी’ दे, भले ही हमारे पास खाने की कमी न हो?

      5 गौर कीजिए इस प्रार्थना में सिखाया गया है कि हमें यह गुज़ारिश करनी चाहिए कि आज के इस दिन की रोटी “हमें” दे, न सिर्फ “मुझे” दे। अफ्रीका का रहनेवाला एक सर्किट निगरान कहता है, ‘मैं अकसर सच्चे दिल से यहोवा का शुक्रिया अदा करता हूँ कि मुझे और मेरी पत्नी को यह फिक्र नहीं करनी पड़ती कि हमें अगली बार खाना कहाँ से मिलेगा। और न ही हमें यह चिंता करनी पड़ती है कि कौन हमारे ठहरने का किराया देगा। हमारे भाई हर दिन बड़े प्यार से हमारी देखभाल करते हैं। लेकिन मैं दुआ करता हूँ कि जो हमारी मदद करते हैं, उन्हें कोई तंगी न हो।’

      6 हमारे पास शायद खाने की कोई कमी न हो। लेकिन हमारे बहुत-से भाई-बहन ऐसे हैं जिनका गुज़ारा बड़ी मुश्‍किल से चलता है। कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने किसी कुदरती आफत की मार सही है। ऐसे भाई-बहनों के लिए हमें न सिर्फ प्रार्थना करनी चाहिए, बल्कि उनकी मदद भी करनी चाहिए। मिसाल के लिए, हमारे पास जो है, उसमें से कुछ हम अपने ज़रूरतमंद भाई-बहनों को दे सकते हैं। यही नहीं, हम पूरी दुनिया में हो रहे काम के लिए लगातार दान भी दे सकते हैं। क्योंकि हम जानते हैं, हमारे दान से ज़रूरतमंद भाई-बहनों की मदद की जाती है।—1 यूह. 3:17.

      7. यीशु ने कैसे सिखाया कि हमें ‘अगले दिन की चिंता कभी नहीं करनी’ चाहिए?

      7 आदर्श प्रार्थना सिखाने के बाद, यीशु ने सिखाया कि हमें पैसा या खाने-पहनने जैसी ज़रूरतों के बारे में हद-से-ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए। उसने कहा कि यहोवा जब जंगली फूलों को शानदार कपड़े पहनाता है, “तो अरे, कम विश्‍वास रखनेवालो, क्या वह तुम्हें न पहनाएगा? इसलिए कभी-भी चिंता न करना, न ही यह कहना, . . . ‘हम क्या पहनेंगे?’” उसने फिर से कहा, “अगले दिन की चिंता कभी न करना।” (मत्ती 6:30-34) हमें कल की चिंता नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय, अगर आज हमारी बुनियादी ज़रूरतें पूरी हो रही हैं, तो हमें उसी में संतुष्ट रहना चाहिए। जैसे, हम यह प्रार्थना कर सकते हैं कि हमारे पास सिर छिपाने की जगह और परिवार की देखभाल करने के लिए कोई नौकरी-पेशा हो। साथ ही, हम दुआ कर सकते हैं कि परमेश्‍वर हमें बुद्धि दे ताकि हम सेहत से जुड़े सही फैसले ले सकें। लेकिन कुछ और भी ज़रूरी बात है जिसके लिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए।

      8. यीशु ने रोटी के बारे में जो बात कही, उससे हमें कौन-सी बात याद आती है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

      8 यीशु ने रोटी के बारे में जो बात कही, उससे हमें एक और बात याद आती है। उसने कहा, “इंसान सिर्फ रोटी से ज़िंदा नहीं रह सकता, बल्कि उसे यहोवा के मुँह से निकलनेवाले हर वचन से ज़िंदा रहना है।” (मत्ती 4:4) इसलिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए कि यहोवा हमें लगातार सिखाता रहे और ज़रूरी हिदायतें देता रहे, ताकि हम उसके करीब बने रहें।

      ‘हमारे कर्ज़ माफ कर’

      9. हमारे पाप कर्ज़ की तरह क्यों हैं?

      9 यीशु ने कहा, “हमारे पापों को [“हमारे कर्ज़,” फुटनोट] माफ कर।” (मत्ती 6:12; लूका 11:4) हमारे पाप कर्ज़ की तरह हैं। कैसे? सन्‌ 1951 की एक प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) में बताया गया था कि हमें यहोवा से प्यार करना है और उसकी आज्ञा माननी है। लेकिन जब हम पाप करते हैं, तो मानो हम यहोवा के कर्ज़दार हो जाते हैं, क्योंकि तब हम उसे वह नहीं दे रहे होते जिसे पाने का वह हकदार है। ऐसे में, यहोवा चाहे तो हमारे साथ अपना रिश्‍ता तोड़ सकता है। प्रहरीदुर्ग आगे बताती है, “पाप करके हम परमेश्‍वर के लिए प्यार नहीं दिखाते।”—1 यूह. 5:3.

      10. (क) यहोवा हमारे पापों को किस आधार पर माफ करता है? (ख) और हमें उस बारे में कैसा महसूस करना चाहिए?

      10 हम यहोवा के कितने एहसानमंद हैं कि उसने हमारे पापों की माफी के लिए यीशु का छुड़ौती बलिदान दिया! हमें हर दिन यहोवा से माफी पाने की ज़रूरत है। हालाँकि यीशु ने आज से करीब 2,000 साल पहले हमारे लिए अपनी जान दी, मगर हम आज भी उसके बलिदान से फायदा पा सकते हैं। इस कीमती तोहफे के लिए हमें हमेशा यहोवा का धन्यवाद करना चाहिए। क्योंकि कोई असिद्ध इंसान अपना बलिदान देकर हमें पाप और मौत से नहीं छुड़ा सकता था। (भजन 49:7-9; 1 पतरस 1:18, 19 पढ़िए।) आदर्श प्रार्थना में बताए शब्द “हमारे पापों को माफ कर” हमें याद दिलाते हैं कि ठीक जिस तरह हमें छुड़ौती की ज़रूरत है, उसी तरह हमारे भाई-बहनों को भी है। यहोवा चाहता है कि हम भाई-बहनों के बारे में और यहोवा के साथ उनके रिश्‍ते के बारे में भी सोचें। और वह यह भी चाहता है कि जब वे हमारे खिलाफ कुछ गलत कर देते हैं, तो हमें उन्हें फौरन माफ कर देना चाहिए। आम तौर पर ये गलतियाँ छोटी होती हैं, इसलिए जब हम उन्हें माफ कर देते हैं तो हम साबित करते हैं कि हमें उनसे प्यार है। माफ करके हम यह भी ज़ाहिर करते हैं कि यहोवा से मिलनेवाली माफी के लिए हम उसके एहसानमंद हैं।—कुलु. 3:13.

      1. एक पत्नी अपने पति से नाराज़ है; 2. पति अपनी पत्नी से बात करता है और उससे माफी माँगता है; 3. पत्नी अपने पति को माफ कर देती है

      अगर आप चाहते हैं कि परमेश्‍वर आपको माफ करे, तो हमेशा दूसरों को माफ कीजिए (पैराग्राफ 11 देखिए)

      11. दूसरों को माफ करना हमारे लिए क्यों ज़रूरी है?

      11 असिद्ध होने की वजह से हमारे लिए उन लोगों को माफ करना कभी-कभी मुश्‍किल हो जाता है, जिन्होंने हमारे खिलाफ कुछ किया है। (लैव्य. 19:18) उन्होंने हमारे साथ जो किया है, उस बारे में अगर हम मंडली में दूसरों को बताएँगे तो शायद वे हमारा पक्ष लें। नतीजा, मंडली की एकता भंग हो सकती है। अगर हम ऐसा करें तो हम दिखा रहे होंगे कि हम यहोवा की दया और उसकी तरफ से मिले फिरौती बलिदान की कदर नहीं करते। इससे हमें उस तोहफे से मिलनेवाले फायदे नहीं मिलेंगे। (मत्ती 18:35) अगर हम दूसरों को माफ नहीं करेंगे, तो यहोवा भी हमें माफ नहीं करेगा। (मत्ती 6:14, 15 पढ़िए।) और हाँ, अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमें माफ करे, तो हमें गंभीर पाप करते रहने से भी बचना चाहिए।—1 यूह. 3:4, 6.

      “जब हम पर परीक्षा आए तो हमें गिरने न दे”

      12, 13. (क) यीशु के बपतिस्मे के बाद उसके साथ क्या हुआ? (ख) अगर हम लुभानेवाले हालात में पड़कर गलत काम कर बैठते हैं, तो हमें दूसरों पर दोष क्यों नहीं लगाना चाहिए? (ग) मौत तक वफादार रहकर यीशु ने क्या साबित किया?

      12 आदर्श प्रार्थना के शब्द “जब हम पर परीक्षा आए तो हमें गिरने न दे,” हमें याद दिलाते हैं कि यीशु के बपतिस्मे के कुछ ही समय बाद उसके साथ क्या हुआ। परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के असर में यीशु वीराने में गया। “वहाँ शैतान ने उसकी परीक्षा लेने के लिए उसे फुसलाने की कोशिश की।” (मत्ती 4:1; 6:13) यहोवा ने ऐसा क्यों होने दिया? यह समझने के लिए हमें जानना होगा कि परमेश्‍वर ने यीशु को धरती पर क्यों भेजा। उसे वह मसला सुलझाने के लिए भेजा था जो तब खड़ा हुआ था, जब आदम और हव्वा ने यहोवा की हुकूमत को ठुकरा दिया था। इससे जो सवाल उठे, उनके जवाब देने के लिए काफी वक्‍त की ज़रूरत थी। उदाहरण के लिए, यहोवा ने इंसान की जिस तरह सृष्टि की, क्या उसमें कोई कमी थी? क्या “दुष्ट शैतान” के बहकाए जाने पर भी सिद्ध इंसान यहोवा का वफादार रह सकता है? और क्या इंसान खुद हुकूमत करके खुश रह सकता है? (उत्प. 3:4, 5) भविष्य में जब इन सब सवालों के जवाब यहोवा की उम्मीदों के मुताबिक दिए जा चुके होंगे, तब स्वर्ग और धरती पर सभी यह जान जाएँगे कि यहोवा के हुकूमत करने का तरीका ही सबसे बढ़िया है।

      13 यहोवा पवित्र परमेश्‍वर है, इसलिए वह कभी किसी को बुरी बातों से फुसलाकर उसकी परीक्षा नहीं लेता। “फुसलानेवाला” तो शैतान है। (मत्ती 4:3) शैतान हमारे सामने ऐसे हालात पैदा कर सकता है, जो हमें गलत काम करने के लिए लुभाते हैं। लेकिन फैसला हममें से हरेक के हाथ में है कि हम लुभाए जाने पर गलत काम करेंगे या नहीं। (याकूब 1:13-15 पढ़िए।) जब शैतान ने यीशु को फुसलाने की कोशिश की, तो यीशु ने फौरन परमेश्‍वर के वचन का हवाला देकर उसका विरोध किया। यीशु परमेश्‍वर का वफादार बना रहा। लेकिन शैतान ने भी हार नहीं मानी। उसने यीशु को फुसलाने के लिए “कोई और सही मौका मिलने तक” इंतज़ार किया। (लूका 4:13) शैतान की लाख कोशिशों के बावजूद यीशु ने यहोवा को ही अपना राजा माना और हमेशा उसकी आज्ञा मानी। उसने यह साबित कर दिया कि मुश्‍किल-से-मुश्‍किल घड़ी में भी सिद्ध इंसान यहोवा का वफादार रह सकता है। मगर शैतान, यीशु के चेलों को फुसलाने की कोशिश करता है ताकि वे यहोवा की आज्ञा न मानें और उनमें आप भी शामिल हैं।

      14. अगर हम गलत काम करने से बचना चाहते हैं तो हमें क्या करना होगा?

      14 यहोवा की हुकूमत पर उठाए गए सवालों के जवाब देना अब भी बाकी है। इसलिए यहोवा ने अब तक शैतान को हमें फुसलाने की छूट दी है। यहोवा हम पर परीक्षा नहीं लाता यानी वह हमें गलत काम करने के लिए नहीं फुसलाता। इसके बजाय, उसे तो यकीन है कि हम उसके वफादार रह सकते हैं। यही नहीं, इस मामले में वह हमारी मदद भी करना चाहता है। लेकिन वह कभी-भी हमसे सही काम करवाने की ज़बरदस्ती नहीं करता। वह हमारी आज़ाद मरज़ी की कदर करता है। इसलिए उसने यह हम पर छोड़ा है कि हम खुद तय करें कि हम उसके वफादार रहेंगे या नहीं। अगर हम गलत काम करने से बचना चाहते हैं तो हमें दो काम करने होंगे: पहला, हमें यहोवा के करीब बने रहना होगा और दूसरा, मदद के लिए लगातार उससे प्रार्थना करनी होगी। ऐसे हालात में यहोवा कैसे हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है?

      एक माँ और उसका बेटा एक आदमी को खुशखबरी सुना रहे हैं

      यहोवा के करीब बने रहिए और जोश के साथ प्रचार करते रहिए (पैराग्राफ 15 देखिए)

      15, 16. (क) ऐसे कुछ लुभानेवाले हालात या परीक्षाएँ क्या हैं जिनसे हमें बचना चाहिए? (ख) अगर हम परीक्षा में पड़ जाते हैं तो इसके लिए कौन दोषी है?

      15 यहोवा हमें अपनी पवित्र शक्‍ति देता है, ताकि उसकी मदद से हम लुभानेवाले किसी भी हालात का डटकर विरोध कर सकें। वह हमें अपने वचन बाइबल और मंडली के ज़रिए भी खतरों से सावधान करता है। उदाहरण के लिए, वह हमें खबरदार करता है कि हम अपना ज़्यादातर वक्‍त, पैसा और ताकत ऐसी चीज़ों पर न लगाएँ जिनकी हमें ज़रूरत नहीं है। ऐसपन और यॉन, यूरोप के एक अमीर देश में रहते हैं। कई सालों तक इस जोड़े ने देश के एक ऐसे इलाके में पायनियर सेवा की, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। जब उनके घर में एक नन्हा मेहमान आया तो उन्हें अपनी यह सेवा छोड़नी पड़ी। कुछ समय बाद उनका एक और बच्चा हुआ। ऐसपन कहता है, ‘अब हम परमेश्‍वर की सेवा में उतना वक्‍त नहीं दे पाते जितना हम पहले दिया करते थे। इसलिए हम अकसर यहोवा से प्रार्थना करते हैं कि हम परीक्षा में न पड़ें। हम यहोवा से दुआ करते हैं कि उसके साथ हमारा रिश्‍ता कमज़ोर न हो और न ही प्रचार सेवा के लिए हमारा जोश ठंडा हो।’

      16 एक और परीक्षा का हमें सामना करना पड़ता है और वह है गंदी तसवीरें या वीडियो देखना। अगर हम इस परीक्षा में पड़ जाते हैं, तो हम शैतान पर दोष नहीं लगा सकते। क्यों? क्योंकि शैतान और उसकी दुनिया हमसे ज़बरदस्ती गलत काम नहीं करवा सकती। कुछ लोग गंदी तसवीरें या वीडियो इसलिए देखते हैं क्योंकि वे मन में बुरे खयाल आने पर उन्हें निकालते नहीं। लेकिन हमारे बहुत-से भाई-बहनों ने खुद को इस परीक्षा में पड़ने से बचाया है और हम भी ऐसा कर सकते हैं।—1 कुरिं. 10:12, 13.

      “हमें उस दुष्ट शैतान से बचा”

      17. (क) अगर हम इस बिनती के मुताबिक जीना चाहते हैं कि यहोवा हमें “दुष्ट शैतान से बचा” ले, तो हमें क्या करना चाहिए? (ख) जल्द ही हमें किस बात की शांति मिलनेवाली है?

      17 अगर हम इस बिनती के मुताबिक जीना चाहते हैं कि यहोवा हमें “दुष्ट शैतान से बचा” ले, तो हमें क्या करना चाहिए? हमें शैतान की “दुनिया के नहीं” होना चाहिए और न ही शैतान की “दुनिया और दुनिया की चीज़ों से प्यार करनेवाले” बनना चाहिए। (यूह. 15:19; 1 यूह. 2:15-17) जब यहोवा शैतान को इस दुनिया से हटा देगा और सभी दुष्ट लोगों का नाश कर देगा, तब कितनी शांति होगी! लेकिन तब तक हमें याद रखना चाहिए कि शैतान “बड़े क्रोध में है, क्योंकि वह जानता है कि उसका बहुत कम वक्‍त बाकी रह गया है।” यहोवा की उपासना करने से हमें रोकने के लिए वह कोई कसर नहीं छोड़ेगा। इसलिए हमें प्रार्थना करते रहना चाहिए कि यहोवा हमें शैतान से बचाए।—प्रका. 12:12, 17.

      18. अगर आप शैतान की दुनिया के नाश से बचना चाहते हैं तो आपको क्या करना चाहिए?

      18 क्या आप ऐसी दुनिया में जीना चाहते हैं जहाँ शैतान नहीं होगा? तो फिर लगातार प्रार्थना करते रहिए कि परमेश्‍वर का राज आए, परमेश्‍वर का नाम पवित्र किया जाए और उसकी मरज़ी धरती पर पूरी हो। यहोवा पर भरोसा रखिए। वह आपका खयाल रखेगा और उसके वफादार बने रहने के लिए आपको जो मदद चाहिए, वह देगा। और हाँ, आदर्श प्रार्थना के मुताबिक जीने के लिए अपनी तरफ से कोई कसर मत छोड़िए।

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