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हर कहीं लोग चिंता में डूबे हुए हैं!प्रहरीदुर्ग—2015 | अक्टूबर 1
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पहले पेज का विषय | चिंताओं का कैसे करें सामना
हर कहीं लोग चिंता में डूबे हुए हैं!
“मैं खाना खरीदने गया, लेकिन वहाँ सिर्फ बिस्कुट मिल रहे थे, और उनका दाम 10,000 गुना ज़्यादा था! अगले दिन बाज़ार में खाने के लिए कुछ भी नहीं मिल रहा था।”—ज़िम्बाबवे में रहनेवाला पॉल
“मेरे पति ने मुझसे कहा कि वे हमें छोड़कर जा रहे हैं। वे मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? मेरे बच्चों का क्या होगा?”—अमरीका में रहनेवाली जैनट
“जब कभी साइरन बजते हैं और विस्फोट होते हैं, तो मैं छिपने के लिए भागती हूँ और ज़मीन पर लेट जाती हूँ। यह सब होने के कई घंटों बाद भी मेरे हाथ काँपते रहते हैं।”—इसराएल में रहनेवाली अलॉना
आज हमें बहुत-सी चिंताओं का सामना करना पड़ता है। पवित्र किताब बाइबल बताती है कि यह “संकटों से भरा ऐसा वक्त” है “जिसका सामना करना मुश्किल” है। (2 तीमुथियुस 3:1) कुछ लोग आर्थिक समस्या का सामना कर रहे हैं, तो कुछ परिवार के टूट जाने के गम से जूझ रहे हैं। और कई लोग युद्ध, जानलेवा महामारियों और भूकंप, बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपत्ति या इंसानों की गलती की वजह से आनेवाली विपत्तियों का सामना कर रहे हैं। इसके अलावा, हमारी खुद की भी कुछ चिंताएँ होती हैं। जैसे, शायद हमारे मन में ऐसे सवाल आएँ, ‘मेरे शरीर पर जो गाँठ है, कहीं वह कैंसर तो नहीं?’ या ‘इस दुनिया का अभी यह हाल है, तो आगे क्या होगा?’
कई बार चिंता करना जायज़ होता है। जैसे परीक्षा या नौकरी के लिए इंटरव्यू देने से पहले हर किसी को थोड़ी-बहुत चिंता होती है। चिंता करने के फायदे भी हैं। जैसे किसी मुश्किल में न पड़ने के डर से हम सावधान रहते हैं, जिससे कई बार मुसीबत टल जाती है। वहीं दूसरी तरफ, हद-से-ज़्यादा चिंता करने से हमें नुकसान हो सकता है। हाल ही में करीब 68,000 लोगों से पूछने पर पता चला कि जो लोग हर वक्त चिंता करते रहते हैं, उनकी वक्त से पहले मौत हो जाने का खतरा रहता है। तभी परमेश्वर के बेटे, यीशु ने कहा था “तुममें ऐसा कौन है जो चिंता कर एक पल के लिए भी अपनी ज़िंदगी बढ़ा सके?” बेशक, चिंता करने से उम्र नहीं बढ़ती। इसलिए यीशु ने सलाह दी कि “चिंता करना बंद करो।” (मत्ती 6:25, 27) क्या ऐसा हो सकता है?
बिलकुल! अगर हम समझ से काम लें, परमेश्वर पर विश्वास करें और एक अच्छे भविष्य की उम्मीद रखें, तो हमें हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं होगी। भले ही हम आज मुश्किल हालात का सामना न कर रहे हों, लेकिन हो सकता है हम भविष्य में इसका सामना करें। तो आइए देखें कि इन बातों ने पॉल, जैनट और अलॉना को चिंताओं का सामना करने में कैसे मदद की। (w15-E 07/01)
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पैसे की चिंताप्रहरीदुर्ग—2015 | अक्टूबर 1
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पहले पेज का विषय | चिंताओं का कैसे करें सामना
पैसे की चिंता
पॉल और उसकी पत्नी के दो बेटे हैं। वह कहता है, “जब हमारे देश में सभी चीज़ों के दाम एकदम से बढ़ गए, तो खाना बहुत महँगा हो गया और खाने की बहुत कमी हो गयी। हमें खाना लेने के लिए घंटों तक लाइन में खड़ा होना पड़ता था। कई बार ऐसा होता था कि जब तक हमारी बारी आती, खाना खत्म हो चुका होता था। भूख के मारे लोग बहुत कमज़ोर हो गए थे और कुछ लोग तो सड़कों पर बेहोश हो जाते थे। रोज़मर्रा काम में आनेवाली चीज़ों के दाम आसमान छूने लगे। पहले वे चीज़ें लाखों में बिकने लगीं और फिर करोड़ों में। और फिर हमारे देश के पैसे की कोई कीमत नहीं रह गयी। मेरे बैंक के खाते में जो पैसा था, बीमा और मेरी पेंशन सबकुछ बेकार हो गया, वह पैसा किसी काम का नहीं रहा।”
पॉल
पॉल समझ गया कि उसे अपने परिवार को ज़िंदा रखने के लिए समझदारी से काम लेना होगा। (नीतिवचन 3:21) वह बताता है, “मैं बिजली का काम करता था, लेकिन मुझे जो भी काम मिला, मैंने किया और वह भी बहुत कम पैसों में। कुछ लोग मुझे पैसे देने के बजाय खाना देते थे या घर में इस्तेमाल होनेवाली कोई चीज़ देते थे। अगर कोई मुझे चार टिकिया साबुन देता था, तो मैं दो रख लेता था और बाकी दो बेच देता था। फिर मैंने 40 मुर्गियों के चूज़े लिए। जब वे बड़े हुए, तो मैंने उन्हें बेचकर 300 और चूज़े खरीद लिए। कुछ समय बाद मैंने 50 मुर्गियों के बदले में किसी से 50-50 किलो के मकई के दो बोरे लिए। उनसे मैंने अपने परिवार और दूसरे कई परिवारों का काफी लंबे समय तक पेट पाला।”
पॉल यह भी जानता था कि ऐसे वक्त में सबसे ज़रूरी कदम जो हमें उठाना चाहिए, वह है परमेश्वर पर भरोसा रखना। जब हम परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं, तो वह हमारी मदद करता है। और जहाँ तक ज़िंदगी की ज़रूरतें पूरी करने का सवाल है, तो इस बारे में यीशु ने कहा था, “कशमकश में रहकर चिंता करना बंद करो, क्योंकि . . . तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें इन चीज़ों की ज़रूरत है।”—लूका 12:29-31.
अफसोस कि परमेश्वर के सबसे बड़े दुश्मन, शैतान ने इस दुनिया के ज़्यादातर लोगों को इस कदर गुमराह कर दिया है कि उनके लिए खाने-पहनने कि चीज़ें ही सबसे ज़्यादा मायने रखती हैं। लोग अपनी ज़रूरतों को लेकर हद-से-ज़्यादा चिंता करते हैं, फिर चाहे उन्हें असल में उनकी ज़रूरत हो या नहीं। और कई बार तो वे गैर-ज़रूरी चीज़ों को हासिल करने के लिए बहुत जद्दोजेहद करते हैं। कई लोग कर्ज़ में डूब जाते हैं। मुश्किल में फँसने के बाद उन्हें एहसास होता है कि “उधार लेनेवाला उधार देनेवाले का दास होता है।”—नीतिवचन 22:7.
कुछ लोग गलत फैसले ले लेते हैं, जिस वजह से उन्हें आगे चलकर बुरे नतीजे भुगतने पड़ते हैं। पॉल बताता है, “हमारे पड़ोस में रहनेवाले कई लोग अपने परिवार-दोस्तों को छोड़कर परदेस चले गए, यह सोचकर कि वहाँ जाकर बहुत पैसा कमाएँगे। कुछ लोग तो बिना सरकारी कागज़ात के ही बाहर चले गए और वहाँ उन्हें कोई काम नहीं मिला। वे अकसर पुलिस की नज़रों से छिपते-फिरते और सड़कों पर सोते। उन्होंने कभी परमेश्वर से मदद नहीं माँगी। लेकिन हमने फैसला किया कि हम परमेश्वर की मदद से अपनी आर्थिक समस्याओं का एक परिवार के तौर पर मिलकर सामना करेंगे।”
यीशु की सलाह मानना
पॉल बताता है कि “यीशु ने कहा था, ‘अगले दिन की चिंता कभी न करना, क्योंकि अगले दिन की अपनी ही चिंताएँ होंगी। आज के लिए आज की मुसीबत काफी है।’ इसलिए हर दिन मैं प्रार्थना करता था कि ‘आज के दिन की रोटी हमें दे,’ ताकि हम ज़िंदा रह सकें। और परमेश्वर ने हमारी मदद भी की, ठीक जैसे यीशु ने वादा किया था। हमें खाने के लिए हमेशा अपनी पसंद की चीज़ नहीं मिलती थी। एक बार ऐसा हुआ कि मैं खाना लेने के लिए लाइन में खड़ा था, लेकिन मैं नहीं जानता था कि वहाँ क्या बिक रहा है। और जब मेरी बारी आयी, तो मुझे पता चला कि यहाँ तो दही बेची जा रही है। मुझे दही बिलकुल भी पसंद नहीं। लेकिन कम-से-कम हमें खाने के लिए कुछ तो मिल रहा था, इसलिए उस रात हमने वही खाया। मैं परमेश्वर का बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि मुश्किल की उस घड़ी में भी मेरा परिवार एक दिन भी भूखे पेट नहीं सोया।”a
परमेश्वर ने वादा किया है, “मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, न ही कभी त्यागूंगा।”—इब्रानियों 13:5
“पहले के मुकाबले आज हमारी आर्थिक हालत काफी हद तक ठीक है। लेकिन हमने अपने अनुभव से सीखा है कि चिंता दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है परमेश्वर पर भरोसा रखना। यहोवा परमेश्वर हमेशा हमारी मदद करता है, अगर हम उसकी मरज़ी पूरी करें। (बाइबल के मुताबिक परमेश्वर का नाम यहोवा है।) भजन 34:8 में दिए इन शब्दों को हमने पूरा होते हुए देखा है, ‘परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह पुरुष जो उसकी शरण लेता है।’ नतीजा, अब हमें यह सोचकर डर नहीं लगता कि कल को अगर हमें फिर से आर्थिक समस्या का सामना करना पड़े, तो हमारा क्या होगा।”
ईश्वर अपने लोगों की ज़रूरतें पूरी करता है
“अब हमें यह बात अच्छी तरह समझ में आ गयी है कि इंसान को ज़िंदा रहने के लिए पैसे या नौकरी की ज़रूरत नहीं है, ज़रूरत है तो खाने की। हम बेसब्री से उस वक्त का इंतज़ार कर रहे हैं, जब यहोवा अपने इस वादे को पूरा करेगा कि धरती पर ‘बहुत सा अन्न होगा।’ जब तक वह दिन नहीं आता, ‘अगर हमारे पास खाना, कपड़ा और सिर छिपाने की जगह है, तो हम उसी में संतोष’ करेंगे। पवित्र किताब बाइबल में दिए इन शब्दों से हमें बहुत हिम्मत मिलती है, ‘तुम्हारे जीने के तरीके में पैसे का प्यार न हो, और जो कुछ तुम्हारे पास है उसी में संतोष करो। क्योंकि परमेश्वर ने कहा है: “मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, न ही कभी त्यागूंगा।” इसलिए हम पूरी हिम्मत रखें और यह कहें: “यहोवा मेरा मददगार है, मैं न डरूँगा।”’”b
पॉल और उसका परिवार जिस तरह परमेश्वर की बतायी राह पर चला, उसके लिए मज़बूत विश्वास का होना बहुत ज़रूरी है। (उत्पत्ति 6:9) अगर हम पॉल की तरह परमेश्वर पर विश्वास रखें और समझ से काम लें, तो फिर चाहे हम आज आर्थिक समस्या का सामना कर रहे हों, या भविष्य में हमें पैसे की चिंता सताए, हम इसका डटकर सामना कर पाएँगे।
अगर हमें परिवार की चिंता सता रही है, तो हम क्या कर सकते हैं? (w15-E 07/01)
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परिवार की चिंताप्रहरीदुर्ग—2015 | अक्टूबर 1
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पहले पेज का विषय | चिंताओं का कैसे करें सामना
परिवार की चिंता
जैनट बताती है, “मेरे पिता की मौत के कुछ ही समय बाद मेरे पति ने मुझसे कहा कि वे किसी और से प्यार करते हैं। इसके कुछ ही समय बाद उन्होंने अपना सामान बाँधा और हमें बिना कुछ बताए या अलविदा कहे, मुझे और हमारे दोनों बच्चों को छोड़कर चले गए।” जैनट को एक नौकरी मिल गयी, लेकिन उसकी तनख्वाह इतनी नहीं थी कि वह अपने घर की किश्त पूरी कर सके। पैसे के अलावा, उसकी और भी बहुत-सी चिंताएँ थीं। वह उस वक्त को याद करके कहती है, “अब मुझ पर कई नयी ज़िम्मेदारियों का बोझ था, जिन्हें मुझे अकेले ही सँभालना था। मेरा मन मुझे इस बात के लिए कचोटता रहता था कि मैं अपने बच्चों के लिए उतना नहीं कर पा रही हूँ, जितना कि दूसरे बच्चों के माता-पिता करते हैं। और अब भी मुझे इस बात की चिंता सताती है कि लोग मेरे और मेरे बच्चों के बारे में क्या सोचते हैं। क्या उन्हें ऐसा लगता है कि मैंने अपनी शादी के बंधन को मज़बूत करने के लिए वह सब नहीं किया जो मुझे करना चाहिए था?”
जैनट
प्रार्थना करने से जैनट को अपनी भावनाओं पर काबू पाने और परमेश्वर के साथ अपनी दोस्ती मज़बूत करने में मदद मिली है। वह कहती है कि उसके लिए रात काटना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि उस वक्त उसकी चिंताएँ उसे आ घेरती हैं। वह बताती है “प्रार्थना करने और बाइबल पढ़ने से ही मुझे नींद आती है। बाइबल की जो आयत मुझे सबसे अच्छी लगती है, वह है फिलिप्पियों 4:6, 7 जहाँ लिखा है, ‘किसी भी बात को लेकर चिंता मत करो, मगर हर बात में प्रार्थना और मिन्नतों और धन्यवाद के साथ अपनी बिनतियाँ परमेश्वर को बताते रहो। और परमेश्वर की वह शांति जो हमारी समझने की शक्ति से कहीं ऊपर है, तुम्हारे दिल के साथ-साथ तुम्हारे दिमाग की सोचने-समझने की ताकत की हिफाज़त करेगी।’ मैंने कई रातें प्रार्थना करने में गुज़ारी हैं और यहोवा ने मेरे मन को शांति देकर मुझे तसल्ली दी है।”
यीशु के इन शब्दों से हमें बहुत हिम्मत मिलती है, फिर चाहे हम किसी भी तरह की चिंता का सामना क्यों न कर रहे हों, “परमेश्वर जो तुम्हारा पिता है तुम्हारे माँगने से पहले जानता है कि तुम्हें किन चीज़ों की ज़रूरत है।” (मत्ती 6:8) लेकिन हमें परमेश्वर से प्रार्थना करके उससे मदद माँगने की भी ज़रूरत है। प्रार्थना एक अहम तरीका है जिससे हम “परमेश्वर के करीब” आ सकते हैं। और अगर हम उससे प्रार्थना करें, तो पवित्र शास्त्र कहता है कि “वह तुम्हारे करीब आएगा।”—याकूब 4:8.
बेशक, जब हम प्रार्थना करके परमेश्वर को अपनी सारी चिंताएँ बता देते हैं, तो हमारा मन हलका हो जाता है। लेकिन प्रार्थना करने का बस यही फायदा नहीं है। पवित्र शास्त्र में बताया है कि यहोवा परमेश्वर ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ है और जो उस पर विश्वास रखते हुए उसे पुकारते हैं वह उनकी मदद करता है। (भजन 65:2) इसलिए यीशु ने अपने शिष्यों से कहा था, ‘हमेशा प्रार्थना करते रहो और कभी हिम्मत न हारो।’ (लूका 18:1) हमें हमेशा परमेश्वर से मार्गदर्शन और उसकी मदद के लिए प्रार्थना करते रहना चाहिए और भरोसा रखना चाहिए कि वह हमारी प्रार्थनाओं को ज़रूर सुनेगा। हमें कभी ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि वह हमारी मदद नहीं करना चाहता या वह हमारी मदद करने के काबिल नहीं है। “लगातार प्रार्थना” करते रहने से हम दिखाएँगे कि हमें उस पर पूरा विश्वास है।—1 थिस्सलुनीकियों 5:17.
विश्वास रखने का असल में क्या मतलब है
विश्वास होने के लिए पहले हमें परमेश्वर को जानने की ज़रूरत है। (यूहन्ना 17:3) हम उसे कैसे जान सकते हैं? पवित्र किताब बाइबल से। इसमें बताया है कि परमेश्वर हममें से हरेक जन की फिक्र करता है और हमारी मदद करना चाहता है। लेकिन सच्चा विश्वास करने का मतलब सिर्फ परमेश्वर को जानना ही नहीं है। इसका यह भी मतलब है कि आपके मन में उसके लिए गहरा आदर हो और आप उसके साथ दोस्ती करें। लेकिन ठीक जैसे हम किसी इंसान के साथ रातों-रात दोस्ती नहीं कर सकते, उसी तरह परमेश्वर के साथ दोस्ती करने में भी वक्त लगता है। जैसे-जैसे हम परमेश्वर के बारे में सीखेंगे, वैसे काम करेंगे “जिससे वह खुश होता है” और यह अनुभव करेंगे कि वह हमारी मदद कर रहा है, तो हमारा विश्वास “बढ़ता” जाएगा। (2 कुरिंथियों 10:15; यूहन्ना 8:29) इसी तरह का विश्वास पैदा करने से जैनट को चिंताओं का सामना करने में मदद मिली।
जैनट कहती है, “यहोवा ने हर कदम पर मेरा साथ दिया है। इससे यहोवा पर मेरा विश्वास बहुत मज़बूत हुआ है। कई बार हमारे साथ नाइंसाफी हुई, जिसका सामना करना बहुत मुश्किल था। लेकिन हमने उस बारे में कई बार प्रार्थना की और यहोवा ने हर बार ऐसा हल निकाला, जो शायद मैं खुद कभी नहीं निकाल सकती थी। जब मैं उसका धन्यवाद करती हूँ, तो मुझे इस बात का एहसास होता है कि उसने मेरे लिए कितना कुछ किया है। उसने हमेशा सही वक्त पर हमारी मदद की है, कई बार तो उसने हमारी ऐन मौके पर मदद की है। और उसने हमें सच्चे दोस्त दिए हैं, जो सही मायने में परमेश्वर के उसूलों पर चलते हैं। वे हमेशा मेरी मदद करने के लिए तैयार रहते हैं और वे मेरे बच्चों के लिए अच्छी मिसाल हैं।”a
“मैं जानती हूँ कि यहोवा मलाकी 2:16 में ऐसा क्यों कहता है कि वह तलाक से नफरत करता है। जो साथी कसूरवार नहीं होता उसके लिए इसका गम सहना बहुत मुश्किल होता है। मेरे पति को मुझे छोड़े सालों बीत चुके हैं, लेकिन आज भी कई बार मैं खुद को अंदर से खाली महसूस करती हूँ। जब मुझे ऐसा लगता है, तो मैं किसी और की मदद करने की कोशिश करती हूँ और इस तरह मुझे भी मदद मिलती है।” जैनट पवित्र शास्त्र में दिए इस उसूल को मानती है कि हमें लोगों से दूरियाँ नहीं बनानी चाहिए और ऐसा करके वह अपनी चिंता कम कर पाती है।b—नीतिवचन 18:1.
परमेश्वर “अनाथों का पिता और विधवाओं का न्यायी है।”—भजन 68:5
जैनट कहती है “मुझे सबसे ज़्यादा तसल्ली यह जानने से मिली कि परमेश्वर ‘अनाथों का पिता और विधवाओं का न्यायी है।’ वह हमें कभी-भी नहीं छोड़ेगा, जैसे मेरे पति ने मुझे छोड़ दिया था।” (भजन 68:5) जैनट यह बात अच्छी तरह जानती है कि परमेश्वर “बुरी बातों से” हमारी परीक्षा नहीं लेता। इसके बजाय वह सभी को “उदारता से” बुद्धि देता है और “वह ताकत” देता है “जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है,” ताकि हम ज़िंदगी में आनेवाली चिंताओं का सामना कर सकें।—याकूब 1:5, 13; 2 कुरिंथियों 4:7.
लेकिन अगर हमें किसी अनहोनी को लेकर घबराहट हो रही है, तो हम क्या कर सकते हैं? (w15-E 07/01)
a 1 कुरिंथियों 10:13; इब्रानियों 4:16 देखिए।
b चिंताओं का सामना कैसे किया जाए, इसके कुछ और तरीके जानने के लिए अक्टूबर-दिसंबर 2014 की सजग होइए! के शुरूआती लेख “मुसीबत का दौर कैसे करें पार” पढ़िए। यह www.pr418.com पर उपलब्ध है।
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अनहोनी की चिंताप्रहरीदुर्ग—2015 | अक्टूबर 1
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पहले पेज का विषय | चिंताओं का कैसे करें सामना
अनहोनी की चिंता
अलॉना कहती है, “साइरन की आवाज़ सुनते ही मेरे दिल की धड़कने तेज़ हो जाती हैं और मैं विस्फोट से बचने के लिए भागकर छिपने की कोशिश करती हूँ। लेकिन वहाँ भी मुझे बेचैनी सी होती है। लेकिन जब मुझे छिपने की जगह नहीं मिलती, तब तो मेरी हालत उससे भी खराब हो जाती है। एक बार मैं सड़क पर चल रही थी और अचानक साइरन बजने लगा। मैं रोने लगी और मेरी साँस फूलने लगी। घंटों बाद जाकर मुझे कुछ राहत मिली। और उसके बाद फिर से साइरन बजने लगा।”
अलॉना
युद्ध के अलावा, आज ऐसी कई बातें हैं, जिनसे हमारी जान जाने का खतरा रहता है। उदाहरण के लिए, अगर आपको पता चले कि आपको या आपके किसी दोस्त या रिश्तेदार को एक जानलेवा बीमारी है, तो आपको बहुत गहरा सदमा पहुँच सकता है। दूसरे लोगों को शायद यह सोचकर चिंता हो कि भविष्य में क्या होगा। वे सोचते हैं, ‘क्या हमारे बच्चे या फिर उनके बच्चे ऐसे समय में जीएँगे जब हर तरफ युद्ध, अपराध, प्रदूषण, मौसम में तबदीली और महामारियाँ होंगी?’ हम ऐसी चिंताओं का सामना कैसे कर सकते हैं?
पवित्र शास्त्र में बताया है कि “बुद्धिमान मनुष्य” जानता है कि बुरी घटनाएँ हो सकती हैं, इसलिए वह ‘विपत्ति को आते देखकर छिप जाता है।’ (नीतिवचन 27:12) ठीक जैसे खतरा होने पर हम अपने शरीर की हिफाज़त करने के लिए कदम उठाते हैं, उसी तरह हमें इस बात का भी खयाल रखना चाहिए कि हमारे दिलो-दिमाग पर बुरा असर न पड़े। खून-खराबेवाले मनोरंजन और कई बार तो खबरों में भी ऐसी दिल-दहलानेवाली तसवीरें दिखायी जाती हैं, जो हमारे मन पर गहरी छाप छोड़ जाती हैं। इन्हें देखने से हमारी और हमारे बच्चों की चिंता बढ़ जाती है, इसलिए हमें ऐसी चीज़ें नहीं देखनी चाहिए। लेकिन ऐसी खबरों को न देखने का यह मतलब नहीं कि हम हकीकत से मुँह मोड़ रहे हैं। सच तो यह है कि परमेश्वर ने हमें इस तरह नहीं बनाया कि हम बुरी बातों पर ध्यान दें। इसके बजाय वह चाहता है कि हम अपने दिमाग को उन बातों से भरें, जो ‘सच्ची हैं, नेकी की हैं, पवित्र और साफ-सुथरी हैं, चाहने लायक हैं।’ अगर हम ऐसा करें, तो “शांति का परमेश्वर” हमें मन की शांति देगा।—फिलिप्पियों 4:8, 9.
प्रार्थना की अहमियत
परमेश्वर पर विश्वास होने से हमें चिंताओं का सामना करने में मदद मिलती है। पवित्र शास्त्र हमें बढ़ावा देता है कि हम “प्रार्थना करने के लिए चौकस” रहें। (1 पतरस 4:7) हम परमेश्वर से मदद की भीख माँग सकते हैं और उससे बुद्धि और हिम्मत माँग सकते हैं, ताकि हम मुश्किल हालात का सामना कर सकें। और हमें इस बात पर पूरा यकीन रखना चाहिए कि ‘हम जो भी माँगते हैं वह हमारी सुनता है।’—1 यूहन्ना 5:15.
अपने पति अवी के साथ
पवित्र शास्त्र बताता है कि परमेश्वर नहीं, बल्कि परमेश्वर का दुश्मन शैतान “इस दुनिया का राजा” है और “सारी दुनिया शैतान के कब्ज़े में पड़ी हुई है।” (यूहन्ना 12:31; 1 यूहन्ना 5:19) तभी यीशु ने अपने शिष्यों को इस तरह प्रार्थना करना सिखाया, “हमें उस दुष्ट शैतान से बचा।” (मत्ती 6:13) अलॉना कहती है, “जब भी साइरन बजता है, तो मैं अपने डर पर काबू पाने के लिए यहोवा से प्रार्थना करती हूँ। और मेरे पति भी मुझे फोन करते हैं और मेरे साथ प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना करने से वाकई मदद मिलती है।” पवित्र शास्त्र में भी यही बताया है कि जो “यहोवा को पुकारते हैं, अर्थात् जितने उसको सच्चाई से पुकारते हैं, उन सभों के वह निकट रहता है।”—भजन 145:18.
अच्छे भविष्य की उम्मीद
यीशु ने अपने शिष्यों को इस तरह प्रार्थना करना सिखाया था, “तेरा राज आए।” (मत्ती 6:10) परमेश्वर का राज हर तरह की चिंता को हमेशा के लिए जड़ से मिटा देगा। पवित्र शास्त्र में यीशु को “शान्ति का राजकुमार” कहा गया है और उसके ज़रिए यहोवा परमेश्वर “पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को” मिटा देगा। (यशायाह 9:6; भजन 46:9) पवित्र शास्त्र में यह भी बताया है कि परमेश्वर सभी ‘देशों के लोगों का न्याय करेगा। तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध तलवार फिर न चलाएगी; और लोग युद्ध-विद्या न सीखेंगे। कोई उनको न डराएगा।’ (मीका 4:3, 4) सभी परिवार खुशी से रहेंगे और वे “घर बनाकर उन में बसेंगे; वे दाख की बारियाँ लगाकर उनका फल खाएँगे।” (यशायाह 65:21) और उस वक्त कोई भी बीमार नहीं होगा।—यशायाह 33:24.
आज हम चाहे कितनी भी एहतियात क्यों न बरतें, हम हर बार अनहोनी को नहीं टाल सकते। हो सकता है कि हम गलत समय पर गलत जगह पर हों और इस वजह से किसी हादसे का शिकार हो जाएँ। (सभोपदेशक 9:11) और जैसा सदियों से होता आया है, युद्ध, हिंसा और बीमारी की वजह से लाखों बेकसूर लोग अपनी जान गवाँ बैठते हैं। क्या ये बेकसूर लोग दोबारा ज़िंदगी का मज़ा ले पाएँगे?
अनगिनत लोग दोबारा ज़िंदा किए जाएँगे, जिनकी गिनती सिर्फ परमेश्वर ही जानता है। हालाँकि वे फिलहाल मौत की नींद सो रहे हैं, लेकिन परमेश्वर उन्हें भूला नहीं है और एक दिन ऐसा आएगा जब “वे सभी जो स्मारक कब्रों में हैं . . . बाहर निकल आएँगे।” (यूहन्ना 5:28, 29) मौत की नींद सो रहे इन लोगों के दोबारा जी उठने के बारे में पवित्र शास्त्र कहता है, “यह आशा हमारी ज़िंदगी के लिए एक लंगर है, जो पक्की और मज़बूत है।”(इब्रानियों 6:19) परमेश्वर ने यीशु को “मरे हुओं में से ज़िंदा कर सब इंसानों के लिए एक गारंटी दे दी है” कि वह मरे हुओं को दोबारा ज़रूर जी उठाएगा।—प्रेषितों 17:31.
लेकिन जब तक कि वह वक्त नहीं आता, हम सभी को चिंताओं का सामना करना होगा, उन्हें भी जो परमेश्वर को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं। पॉल, जैनट और अलॉना ने चिंताओं का सामना करने के लिए प्रार्थना करके परमेश्वर से दोस्ती की, पवित्र शास्त्र में दी भविष्य के लिए उम्मीद पर अपना विश्वास मज़बूत किया और कुछ कारगर कदम उठाए। और आज वे इनका डटकर सामना कर पा रहे हैं। ठीक जैसे यहोवा ने उनकी मदद की, हमारी “दुआ है कि आशा देनेवाला परमेश्वर, तुम्हारे विश्वास करने की वजह से तुम्हें सारी खुशी और शांति से भर दे।”—रोमियों 15:13. ▪ (w15-E 07/01)
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