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क्या ऐसा सच में हुआ था?प्रहरीदुर्ग (जनता के लिए)—2016 | अंक 2
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पहले पेज का विषय | यीशु ने क्यों दुख-तकलीफें सहीं और अपनी जान दी?
क्या ऐसा सच में हुआ था?
आज से करीब दो हज़ार साल पहले ईसवी सन् 33 के वसंत ऋतु में यीशु को मार डाला गया। उस पर झूठे इलज़ाम लगाए गए, बुरी तरह पीटा गया और काठ पर कीलों से ठोंक दिया गया। आखिरकार वह दर्द से तड़प-तड़पकर मर गया, लेकिन फिर उसे ज़िंदा किया गया। इसके 40 दिन बाद वह परमेश्वर के पास स्वर्ग चला गया।
यीशु के बारे में ये बातें पवित्र किताब बाइबल के उस हिस्से में लिखी हैं, जिसे नया नियम कहा जाता है। पर अगर ये सारी बातें सिर्फ कथा-कहानियाँ हैं, तो मसीहियों की सारी शिक्षाएँ बेकार हैं और धरती पर हमेशा के लिए जीने की उनकी आशा बस एक सपना है। (1 कुरिंथियों 15:14) लेकिन अगर ये सचमुच में हुई थीं, तो इंसानों का भविष्य उज्जवल है। फिर सवाल उठता है कि आखिर सच क्या है?
सबूतों से क्या पता चलता है?
कथा-कहानियों से बिलकुल अलग यीशु के बारे में बाइबल में दर्ज़ घटनाएँ बिलकुल सही हैं और इन्हें काफी बारीकी से लिखा गया है। जैसे, इसमें ऐसी कई जगहों के बारे में बताया गया है, जो आज भी हैं। इसके अलावा, इस किताब में ऐसे लोगों का भी ज़िक्र है, जिनके बारे में इतिहास की कई किताबों में बताया गया है।—लूका 3:1, 2, 23.
बाइबल के अलावा यीशु के बारे में ऐसी कई किताबों में ज़िक्र किया गया है, जो यीशु के समय में लिखी गयी थीं या फिर उसके 100-150 साल बाद।a यीशु को मारने के लिए जो तरीका अपनाया गया था, उसी तरीके से उस ज़माने में रोम देश के लोग अपराधियों को मौत के घाट उतारते थे। इसके अलावा बाइबल में घटनाएँ बिलकुल वैसे ही बतायी गयी हैं, जैसे वे घटी थीं। उदाहरण के लिए, यीशु के शिष्यों की खामियाँ छिपायी नहीं गयीं, बल्कि उनके बारे में भी खुलकर बताया है। (मत्ती 26:56; लूका 22:24-26; यूहन्ना 18:10, 11) इन सारी बातों से साफ पता चलता है कि बाइबल में यीशु के बारे में जो लिखा गया है, वह सौ फीसदी सच है।
क्या यीशु सच में मरने के बाद ज़िंदा हुआ था?
आज कई लोगों का मानना है कि यीशु धरती पर जीया था और उसे मार दिया गया था। लेकिन जहाँ तक उसके ज़िंदा होने की बात है, इस पर कई लोग सवाल खड़ा करते हैं। यहाँ तक कि उसके कुछ शिष्यों ने भी शुरू में उसके जी उठने की बात पर यकीन नहीं किया था। (लूका 24:11) लेकिन जब उन्होंने और दूसरे शिष्यों ने जी उठे यीशु को कई मौकों पर खुद अपनी आँखों से देखा, तब जाकर उन्हें इस बात पर यकीन हुआ। एक मौके पर तो 500 लोगों ने यीशु को देखा।—1 कुरिंथियों 15:6.
यीशु के शिष्यों ने हर किसी को बताया कि यीशु ज़िंदा किया गया है, हालाँकि इसके लिए उन्हें जेल की सज़ा, या फिर मौत की सज़ा भी हो सकती थी। शिष्यों ने उन लोगों को भी यीशु के बारे में बताया, जिन्होंने उसे मरवा डाला था। (प्रेषितों 4:1-3, 10, 19, 20; 5:27-32) अगर उन्हें इस बात का पूरा यकीन नहीं होता कि यीशु सचमुच ज़िंदा किया गया है, तो क्या वे इस तरह सरेआम सबको उसके बारे में बताते? सच तो यह है कि यीशु जी उठाया गया था, तभी तो उस ज़माने में बहुत-से लोगों ने यीशु की शिक्षाएँ मानीं और आज भी काफी बड़ी तादाद में लोग ऐसा कर रहे हैं।
यीशु की मौत के बारे में और उसे ज़िंदा किए जाने के बारे में बाइबल में जो लिखा है, वह एक सच्ची ऐतिहासिक घटना है। इन ब्यौरों को ध्यान से पढ़ने पर आपको यकीन हो जाएगा कि ये घटनाएँ वाकई घटी थीं। और जब आप समझ जाएँगे कि ये घटनाएँ क्यों घटीं, तो यीशु पर आपका यकीन और भी पक्का हो जाएगा। इस बारे में और जानने के लिए अगला लेख पढ़िए। (w16-E No.2)
a इनमें से एक किताब टैसीटस नाम के इतिहासकार ने लिखी थी, जिसका जन्म ईसवी सन् 55 में हुआ था। उसने यीशु मसीह के बारे में लिखा कि उसके नाम से ही मसीहियों का नाम पड़ा। उसने यह भी लिखा कि सम्राट तिबिरियुस के राज में गवर्नर पुन्तियुस पीलातुस ने यीशु को मौत की सज़ा दी थी। इतिहासकार सूटोनियस (जन्म ईसवी सन् 69), यहूदी इतिहासकार जोसीफस (जन्म ईसवी सन् 37 या 38) और बितूनिया प्रदेश के राज्यपाल, प्लीनी द यंगर (जन्म ईसवी सन् 61 या 62) ने भी यीशु के बारे में लिखा।
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यीशु ने क्यों दुख-तकलीफें सहीं और अपनी जान दी?प्रहरीदुर्ग (जनता के लिए)—2016 | अंक 2
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पहले पेज का विषय
यीशु ने क्यों दुख-तकलीफें सहीं और अपनी जान दी?
“एक आदमी [आदम] से पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी, और इस तरह मौत सब इंसानों में फैल गयी क्योंकि सबने पाप किया।”—रोमियों 5:12.
अगर कोई आपसे पूछे, “क्या आप हमेशा के लिए जीना चाहते हैं?” तो आप क्या कहेंगे? ज़्यादातर लोग शायद कहें कि वे जीना चाहते हैं, लेकिन उनका मानना है कि ऐसा तो हो ही नहीं सकता, क्योंकि जो इस दुनिया में आया है, उसे एक-न-एक दिन जाना ही है।
अब ज़रा सोचिए अगर आपसे यह सवाल किया जाए, “क्या आप कभी मरना चाहेंगे?” तब आप क्या कहेंगे? अगर सबकुछ ठीक हो, तो ज़्यादातर लोग कहेंगे “नहीं।” इसका मतलब है कि हम मरना नहीं चाहते, फिर चाहे हम कितनी ही तकलीफों से क्यों न गुज़र रहे हों। पवित्र शास्त्र में भी यही लिखा है कि परमेश्वर ने इंसानों को इसी इच्छा के साथ बनाया है।—सभोपदेशक 3:11.
सच तो यह है कि इंसान हमेशा तक ज़िंदा नहीं रह पाता। क्यों? आखिर क्या हुआ? और क्या परमेश्वर ने हमें मौत से बचाने का कोई रास्ता निकाला है? पवित्र किताब बाइबल इन सवालों के जवाब देती है और इनसे हम यह भी जान पाएँगे कि यीशु ने क्यों दुख-तकलीफें सहीं और अपनी जान दी।
इंसान मरता क्यों है?
बाइबल में उत्पत्ति की किताब के पहले तीन अध्यायों में बताया गया है कि जब परमेश्वर ने पहले इंसान आदम और हव्वा को बनाया, तो वह चाहता था कि वे हमेशा तक जीएँ। लेकिन इसके लिए उन्हें परमेश्वर की आज्ञा माननी थी। जब वे ऐसा करने से चूक गए, तो उन्होंने हमेशा के लिए जीने का मौका गँवा दिया। इस घटना को इतने कम शब्दों में बताया गया है कि लोगों को यह एक मनगढ़ंत कहानी लगती है। सुसमाचार की किताबों की तरह, उत्पत्ति की किताब में दर्ज़ बातें भी सच्ची और भरोसेमंद हैं।
जब आदम ने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी, तो क्या हुआ? बाइबल बताती है, “एक आदमी [आदम] से पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी, और इस तरह मौत सब इंसानों में फैल गयी क्योंकि सबने पाप किया।” (रोमियों 5:12) परमेश्वर की आज्ञा न मानकर आदम और हव्वा ने पाप किया। इस वजह से उन्होंने हमेशा के लिए जीने का मौका गँवा दिया और आखिर में बूढ़े होकर मर गए। हम उन्हीं के बच्चे हैं, इसलिए हम भी बीमार होते हैं और बूढ़े होकर एक दिन मर जाते हैं। हममें बीमारी, बुढ़ापे और मौत का आना ठीक उस तरह है जैसे माता-पिता के कुछ गुण बच्चों में पैदाइश से आ जाते हैं। क्या परमेश्वर ने हमें यूँ ही छोड़ दिया है, या फिर पाप और मौत के शिकंजे से छुड़ाने का कोई रास्ता निकाला है?
परमेश्वर ने क्या किया है?
आदम की वजह से उसके बच्चों ने हमेशा के लिए जीने का मौका गँवा दिया, लेकिन परमेश्वर ने उन्हें फिर से यह मौका दिया है। कैसे?
बाइबल में लिखा है, “पाप जो मज़दूरी देता है वह मौत है।” (रोमियों 6:23) इसका मतलब है कि पाप की वजह से ही मौत आयी है। आदम ने पाप किया, इसलिए वह मर गया। आज हम भी पाप की वजह से मरते हैं। लेकिन इसमें हमारी कोई गलती नहीं है, क्योंकि हमें तो पैदाइश से पाप मिला है। परमेश्वर हमसे बहुत प्यार करता है, इसलिए उसने हमारे ‘पाप की मज़दूरी’ का भुगतान करने के लिए अपने बेटे यीशु को भेजा। लेकिन सवाल उठता है कि यीशु यह कैसे कर सकता था?
यीशु ने हमारे लिए अपनी जान देकर खुशियों से भरी हमेशा की ज़िंदगी का रास्ता खोल दिया
सबसे पहला इंसान आदम सिद्ध था, यानी उसमें कोई खोट नहीं था। उसने आज्ञा न मानकर हमें पाप और मौत की खाई में ढकेल दिया। वहीं दूसरी तरफ, एक दूसरे सिद्ध आदमी ने अपनी मौत तक वफादार रहकर हमें इस खाई में से निकाला। इसे बाइबल में इस तरह बताया गया है, “जैसे एक आदमी के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, उसी तरह एक आदमी के आज्ञा मानने से बहुत लोग नेक ठहरेंगे।” (रोमियों 5:19) यह दूसरा सिद्ध “आदमी” और कोई नहीं, बल्कि यीशु था। वह इस धरती पर एक सिद्ध इंसानa के तौर पर पैदा हुआ था। परमेश्वर ने उसे स्वर्ग से धरती पर भेजा, ताकि वह हमारी खातिर अपनी जान दे। उसकी कुरबानी की वजह से हम परमेश्वर के दोस्त बन सकते हैं और भविष्य में हमेशा की ज़िंदगी जी सकते हैं।
यीशु ने क्यों दुख-दर्द सहा और अपनी जान दे दी?
हमें पाप और मौत के चंगुल से आज़ाद करने के लिए यीशु को अपनी जान देने की क्या ज़रूरत थी? क्या परमेश्वर ऐसा कोई फरमान जारी नहीं कर सकता था कि आदम के बच्चे हमेशा जीवित रहें? बेशक, वह ऐसा कर सकता था। लेकिन अगर वह ऐसा करता, तो वह अपने ही ठहराए इस नियम को दरकिनार करता कि पाप की मज़दूरी मौत है। परमेश्वर का यह नियम कोई मामूली सी बात नहीं, जिसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है या जिसे अपनी सहूलियत के हिसाब से जब चाहे बदल दिया जाए। सच्चा न्याय यही माँग करता है कि इस नियम में कोई फेरबदल न किया जाए।—भजन 37:28.
अगर इस मामले में परमेश्वर अपने ही नियम का पालन नहीं करता, तो लोग सोचते कि शायद बाकी मामलों में भी वह ऐसा ही करे। मिसाल के लिए, जब परमेश्वर यह तय करेगा कि आदम के संतानों में से किसे हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी, तब क्या उसका फैसला सही होगा? क्या हम उस पर भरोसा कर सकते हैं कि वह अपने वादे पूरे करेगा? हमें पाप और मौत से छुटकारा दिलाने के लिए परमेश्वर ने खुद जिस तरह अपने नियमों का पालन किया है, इससे हमें यकीन हो जाता है कि वह हमेशा वही करता है, जो सही है।
परमेश्वर ने अपने बेटे की कुरबानी देकर हमारे लिए धरती पर हमेशा की ज़िंदगी का रास्ता खोल दिया। ध्यान दीजिए कि बाइबल में लिखा है, “परमेश्वर ने दुनिया से इतना ज़्यादा प्यार किया कि उसने अपना इकलौता बेटा दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास दिखाता है, वह नाश न किया जाए बल्कि हमेशा की ज़िंदगी पाए।” (यूहन्ना 3:16) यीशु की कुरबानी देकर परमेश्वर ने न सिर्फ अपने न्याय का सबूत पेश किया, बल्कि उससे भी बढ़कर उसने इंसानों के लिए अपना प्यार जताया।
जैसे सुसमाचार की किताबों में बताया है, यीशु को इतना दुख-दर्द क्यों सहना पड़ा और उसकी इतनी दर्दनाक मौत क्यों हुई? इसका जवाब जानने के लिए आदम ने जो किया, उस पर ध्यान दीजिए। जब परमेश्वर के दुश्मन शैतान के उकसाने पर सिद्ध इंसान आदम ने पाप किया, तब शैतान ने यह दावा किया कि इंसान परमेश्वर का वफादार नहीं रह सकता है, खासकर तब जब उस पर ज़ुल्म ढाए जाएँ। अब ज़रा यीशु पर ध्यान दीजिए, जो आदम की ही तरह सिद्ध इंसान था। उस पर बहुत ज़ुल्म किए गए, फिर भी वह आखिरी साँस तक परमेश्वर का वफादार बना रहा। (1 कुरिंथियों 15:45) इस तरह उसने शैतान के इस दावे को हमेशा के लिए झूठा साबित किया कि मुसीबतें आने पर इंसान परमेश्वर का वफादार नहीं रह सकता और यह भी कि अगर आदम चाहता, तो वह भी परमेश्वर की आज्ञा मान सकता था। (अय्यूब 2:4, 5) परीक्षाओं में वफादार बने रहकर यीशु ने हमारे लिए एक आदर्श रखा। (1 पतरस 2:21) यीशु ने हर काम वैसे ही किया, जैसे परमेश्वर चाहता था, इसलिए परमेश्वर ने उसे स्वर्ग में अमर जीवन का वरदान दिया।
इससे आपको क्या फायदा होगा?
यीशु की मौत सचमुच में हुई थी। इस वजह से हम सब के लिए हमेशा की ज़िंदगी का रास्ता खुल गया है। क्या आप हमेशा के लिए जीना चाहते हैं? यीशु ने बताया कि इसके लिए हमें क्या करना होगा। उसने कहा, “हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए ज़रूरी है कि वे तुझ एकमात्र सच्चे परमेश्वर का और यीशु मसीह का, जिसे तू ने भेजा है, ज्ञान लेते रहें।”—यूहन्ना 17:3.
हम आपको बढ़ावा देना चाहते हैं कि आप यहोवा परमेश्वर और उसके बेटे यीशु मसीह के बारे में और जानें। (पवित्र शास्त्र के मुताबिक परमेश्वर का नाम यहोवा है।) इस बारे में आपके इलाके में रहनेवाले यहोवा के साक्षी खुशी-खुशी आपको बताएँगे। आप हमारी वेबसाइट www.pr418.com से भी जानकारी ले सकते हैं। ▪ (w16-E No.2)
a परमेश्वर ने चमत्कार करके अपने बेटे का जीवन स्वर्ग से धरती पर मरियम के गर्भ में डाल दिया। परमेश्वर की शक्ति की वजह से यीशु में मरियम से पैदाइश से कोई पाप नहीं आया।—लूका 1:31, 35.
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