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  • आयतों को सही ज़ोर देकर पढ़ना
    परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
    • अध्याय 21

      आयतों को सही ज़ोर देकर पढ़ना

      आपको क्या करने की ज़रूरत है?

      उन शब्दों और वाक्य के हिस्सों पर ज़ोर दीजिए जिससे आपकी दलील साफ नज़र आ सके। सही भावना के साथ पढ़िए।

      इसकी क्या अहमियत है?

      आयतों की पूरी समझ तभी मिलती है, जब उन्हें सही ज़ोर देकर पढ़ा जाए।

      जब आप किसी अकेले व्यक्‍ति के साथ या फिर स्टेज से परमेश्‍वर के उद्देश्‍य के बारे में चर्चा करते हैं, तो यह चर्चा परमेश्‍वर के वचन पर आधारित होनी चाहिए। इसके लिए अकसर बाइबल से आयतें पढ़ना ज़रूरी होता है, और यह अच्छी तरह किया जाना चाहिए।

      सही शब्दों पर ज़ोर देने के लिए भावनाओं के साथ पढ़ना ज़रूरी है। आयतों को भावनाओं के साथ पढ़ा जाना चाहिए। कुछ उदाहरणों पर गौर कीजिए। जब आप भजन 37:11 को ऊँची आवाज़ में पढ़ते हैं, तो आपकी आवाज़ से यह साफ पता लगना चाहिए कि आप खुश हैं और बड़ी बेसब्री से ऐसी शांति के आने का इंतज़ार कर रहे हैं जिसका वादा इस आयत में किया गया है। जब आप प्रकाशितवाक्य 21:4 पढ़ते हैं कि दुःख-तकलीफ और मौत का अंत हो जाएगा, तो आपकी आवाज़ में उस शानदार छुटकारे की भविष्यवाणी के लिए एहसान की भावना ज़ाहिर होनी चाहिए। प्रकाशितवाक्य 18:2, 4, 5 को ऐसे लहज़े से पढ़ा जाना चाहिए, मानो आप लोगों से पाप में डूबे “बड़े बाबुल” से फौरन बाहर निकल भागने की फरियाद कर रहे हैं। बेशक, जो भी भावना आप व्यक्‍त करते हैं वह दिल से होनी चाहिए, मगर हद-से-ज़्यादा नहीं। किस हद तक भावनाओं का इज़हार करना सही होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कौन-सी आयत पढ़ते हैं और किस तरीके से पढ़ते हैं।

      सही शब्दों पर ज़ोर देना। अगर आप किसी आयत का एक भाग समझा रहे हैं, तो उस आयत को पढ़ते वक्‍त आपको सिर्फ उसी भाग पर ज़ोर देना चाहिए। उदाहरण के लिए, मत्ती 6:33 पढ़ते वक्‍त अगर आप ‘पहिले उसके राज्य की खोज’ करने पर ज़ोर देना चाहते हैं, तो आप ‘उसके धर्म’ और ‘सब वस्तुओं’ पर ज़्यादा ज़ोर नहीं देंगे।

      अगर आप सेवा सभा के अपने भाषण में मत्ती 28:19 पढ़ने की सोच रहे हैं, तो आपको किन शब्दों पर ज़ोर देना चाहिए? अगर आप घर पर बाइबल अध्ययन शुरू करने पर ज़ोर देना चाहते हैं, तो शब्द, “चेला बनाओ” पर ज़ोर दे सकते हैं। लेकिन अगर आप दूसरे देशों से आकर आपके इलाके में बसनेवाले लोगों को बाइबल की सच्चाई सुनाने की ज़िम्मेदारी पर ज़ोर देना चाहते हैं, या कुछ भाई-बहनों को ऐसी जगह सेवा करने के लिए उकसाना चाहते हैं, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है, तो आप “जाकर सब जातियों के लोगों” पर ज़ोर दे सकते हैं।

      कई बार, आयत का इस्तेमाल किसी सवाल का जवाब देने या किसी ऐसी बात को सच साबित करने के लिए किया जाता है, जो लोगों में विवाद का विषय है। अगर आप आयत की हर बात पर एक जैसा ज़ोर देंगे, तो सुननेवालों को आपकी बात और आयत के बीच कोई ताल्लुक नज़र नहीं आएगा। आप जो कहना चाहते हैं, वह आपके मन में स्पष्ट होगा, मगर सुननेवालों के नहीं।

      उदाहरण के लिए, अगर आप बाइबल से परमेश्‍वर का नाम बताने के लिए भजन 83:18 पढ़ रहे हैं और आप सारा ज़ोर “परमप्रधान” पर देंगे, तो जो बात आपको साफ-साफ समझ आ रही है वह शायद आपके सुननेवाले को समझ न आए कि परमेश्‍वर का अपना एक नाम है। इसलिए आपको परमेश्‍वर के नाम, “यहोवा” पर ज़ोर देना होगा। लेकिन जब आप यही आयत यह बताने के लिए इस्तेमाल करते हैं कि यहोवा ही सारे विश्‍व का महाराजा और मालिक है, तब आपको सबसे ज़्यादा ज़ोर “परमप्रधान” पर देना होगा। उसी तरह, जब आप विश्‍वास के साथ-साथ काम करने की अहमियत बताने के लिए याकूब 2:24 इस्तेमाल करते हैं, तो “कर्मों” के बजाय अगर आप “धर्मी ठहरता” है पर ज़ोर देंगे, तो सुननेवाले आपकी बात समझ नहीं पाएँगे।

      एक और अच्छा उदाहरण रोमियों 15:7-13 में मिलता है। यह प्रेरित पौलुस के लिखे खत का एक भाग है जो यहूदियों और दूसरी जातियों से बनी कलीसिया के नाम लिखा गया था। यहाँ पर प्रेरित पौलुस दलील देता है कि यीशु की सेवा से सिर्फ खतना-प्राप्त यहूदियों को फायदा नहीं होता बल्कि “अन्यजाति भी दया के कारण परमेश्‍वर की बड़ाई” कर पाएँगी। अन्यजातियों को मिलनेवाले इस मौके पर ध्यान दिलाते हुए पौलुस ने चार आयतों का हवाला दिया। पौलुस जो कहना चाह रहा था, उस पर ज़ोर देने के लिए आपको ये हवाले कैसे पढ़ने चाहिए? आप सही शब्दों पर ज़ोर देने के लिए निशान लगाना चाहते हैं, तो आप आयत 9 में “जाति जाति” पर, आयत 10 में “हे जाति जाति के सब लोगो,” आयत 11 में “हे जाति जाति के सब लोगो” और “हे राज्य राज्य के सब लोगो,” और आयत 12 में “अन्यजातियों” पर निशान लगा सकते हैं। इस तरह ज़ोर देकर रोमियों 15:7-13 को पढ़ने की कोशिश कीजिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो पौलुस जो कहना चाहता था वह लोगों को अच्छी तरह से समझा सकेंगे।

      ज़ोर देने के तरीके। विचारों को स्पष्ट करनेवाले शब्दों पर ज़ोर देने के कई तरीके हैं। आप चाहे जो भी तरीका अपनाएँ, उसे शास्त्रवचन के साथ और आपके भाषण की सैटिंग के साथ मेल खाना चाहिए। यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं।

      आवाज़ से ज़ोर देना। इससे आवाज़ में किसी किस्म का बदलाव लाकर वाक्य के खास शब्दों पर ज़ोर देकर उन्हें उभारा जा सकता है। आप ज़ोर देने के लिए अपनी आवाज़ को तेज़ या धीमा कर सकते हैं। कई भाषाओं में स्वर-बल में फेरबदल करने से ज़ोर दिया जा सकता है। लेकिन किसी-किसी भाषा में ऐसा करने से शब्द का कुछ और मतलब निकल सकता है। अगर खास शब्दों पर ज़ोर देने के लिए आवाज़ को धीमा किया जाता है, तो बात में और भी दम आ जाता है। जिन भाषाओं में आवाज़ के ज़रिए शब्दों पर ज़ोर देने की गुंजाइश नहीं होती, उन भाषाओं में ज़ोर देने का जो तरीका आम तौर पर अपनाया जाता है, वही अपनाया जाना चाहिए।

      ठहराव। वचन का खास भाग पढ़ने से पहले या उसके बाद या दोनों जगह ठहराव दिया जा सकता है। खास विचार पढ़ने से एकदम पहले ठहराव देने से दिलचस्पी जागती है और बाद में रुकने से कही गयी बात मन में गहराई तक उतर जाती है। लेकिन अगर ज़रूरत-से-ज़्यादा रुक-रुककर बात करेंगे, तो किसी भी बात पर ज़ोर नहीं पड़ेगा और कोई बात उभरकर सामने नहीं आएगी।

      दोहराना। किसी खास बात पर ज़ोर देने के लिए आप पढ़ते-पढ़ते बीच में ही रुककर खास शब्द या भाग को दोबारा पढ़ सकते हैं। एक और बेहतर तरीका है कि पहले आप पूरी आयत या वाक्य पढ़ लीजिए, फिर जिस पर ज़ोर देना हो सिर्फ उसी शब्द को दोबारा पढ़िए।

      हाव-भाव। हाव-भाव और चेहरे के भावों से शब्दों को भावनाओं के साथ पढ़ा जा सकता है।

      लहज़ा। कुछ भाषाओं में, कई बार शब्दों को ऐसे लहज़े में पढ़ा जाता है जिससे उनके मतलब पर फर्क पड़ता है और उन पर ज़ोर दिया जाता है। इस मामले में भी सावधानी बरतने की ज़रूरत है, खासकर व्यंग्य भरी या कड़वी बातें बोलते वक्‍त।

      जब दूसरे आयत पढ़ते हैं। जब घर-मालिक कोई आयत पढ़ता है, तो हो सकता है कि वह गलत शब्दों पर ज़ोर देकर पढ़े, या फिर किसी भी शब्द पर ज़ोर न दे। तब आप क्या कर सकते हैं? आम तौर पर सबसे बेहतरीन तरीका है कि आप आयत का मतलब समझाएँ। इसके बाद, आप सीधे-सीधे आयत के खास शब्दों पर ध्यान दिला सकते हैं।

      सही शब्दों पर ज़ोर देने की काबिलीयत कैसे पैदा करें

      • आप चाहे कोई भी आयत पढ़ने की सोच रहे हों, अपने आप से पूछिए: ‘इस आयत के शब्दों से किस तरह की भावना ज़ाहिर होती है? मुझे यह भावना किस तरह दिखानी चाहिए?’

      • जो भी आयत आप पढ़ने जा रहे हैं, पहले ध्यान से उन्हें जाँचिए। हरेक आयत के बारे में अपने आप से पूछिए: ‘इस आयत को पढ़ने से क्या हासिल होगा? इसके लिए मुझे किन शब्दों पर ज़ोर देना होगा?’

      अभ्यास: (1) जो आयत आप प्रचार में इस्तेमाल करना चाहते हैं, पहले उसे ध्यान से पढ़ और समझ लीजिए। फिर सही भावनाओं के साथ उसे पढ़ने का अभ्यास कीजिए। जिस तरह आप आयत को इस्तेमाल करना चाहते हैं, उसे मन में रखते हुए इसे ऊँची आवाज़ में पढ़िए और सही शब्दों पर ज़ोर दीजिए। (2) फिलहाल जिस साहित्य का अध्ययन किया जा रहा है, उससे एक ऐसा पैराग्राफ चुनिए जिसमें आयतों के हवाले लिखे हों। ध्यान से देखिए कि किस तरह आयतों को इस्तेमाल किया गया है। और विचारों को स्पष्ट करनेवाले शब्दों पर निशान लगा लीजिए। पूरा पैराग्राफ ऊँची आवाज़ में और इस तरह पढ़िए कि आयतों के सही हिस्सों पर ज़ोर पड़े।

  • आयतों को सही तरीके से लागू करना
    परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
    • अध्याय 22

      आयतों को सही तरीके से लागू करना

      आपको क्या करने की ज़रूरत है?

      इस बात का ध्यान रखिए कि आप आयत का जो मतलब समझा रहे हैं या इसे जिस तरह लागू कर रहे हैं, वह आस-पास की आयतों से और पूरी बाइबल से मेल खाए। और इस आयत का मतलब, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए प्रकाशित जानकारी के मुताबिक भी होना चाहिए।

      इसकी क्या अहमियत है?

      दूसरों को परमेश्‍वर के वचन से सिखाना एक गंभीर बात है। परमेश्‍वर की इच्छा है कि लोग “सत्य को भली भांति पहचान लें।” (1 तीमु. 2:3, 4) इससे हम पर यह ज़िम्मेदारी आ जाती है कि हम परमेश्‍वर का वचन सही-सही सिखाएँ।

      जब हम दूसरों को सिखाते हैं, तो आयतों को पढ़ने के अलावा, कुछ और भी ज़रूरी है। प्रेरित पौलुस ने अपने साथी तीमुथियुस को लिखा: “अपने आप को परमेश्‍वर का ग्रहणयोग्य और ऐसा काम करनेवाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।”—तिरछे टाइप हमारे; 2 तीमु. 2:15.

      ऐसा करने का मतलब है कि हम जिस तरीके से आयत को लागू करके समझाते हैं, वह बाइबल की शिक्षाओं से मेल खाना चाहिए। आयत के जो भाग हमें अच्छे लगते हैं, उन्हें चुनकर और उनके साथ अपने विचार जोड़कर बताने के बजाय, यह ज़रूरी है कि हम आस-पास की आयतों पर भी ध्यान दें। यहोवा ने अपने भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह के ज़रिए उन भविष्यवक्‍ताओं के बारे में लोगों को चेतावनी दी जो दावा तो करते थे कि वे परमेश्‍वर के मुख की बात बोल रहे हैं, मगर असल में “अपने ही मन की बातें कहते” थे। (यिर्म. 23:16) प्रेरित पौलुस ने भी परमेश्‍वर के वचन में इंसान के तत्त्वज्ञान की मिलावट करने के खिलाफ मसीहियों को आगाह किया। उसने लिखा: “हम ने लज्जा के गुप्त कामों को त्याग दिया, और न चतुराई से चलते, और न परमेश्‍वर के वचन में मिलावट करते हैं।” उन दिनों, दाखमधु बेचनेवाले बेईमान व्यापारी दाखमधु में पानी मिलाकर उसकी मात्रा बढ़ा देते थे जिससे वह ज़्यादा समय तक चले और इसे बेचकर वे ज़्यादा पैसा कमा सकें। हम परमेश्‍वर के वचन में इंसानी तत्त्वज्ञान की मिलावट नहीं करते। पौलुस ने कहा: “हम उन बहुतों के समान नहीं, जो परमेश्‍वर के वचन में मिलावट करते हैं; परन्तु मन की सच्चाई से, और परमेश्‍वर की ओर से परमेश्‍वर को उपस्थित जानकर मसीह में बोलते हैं।”—2 कुरि. 2:17; 4:2.

      कभी-कभी आप कोई सिद्धांत समझाने के लिए आयत दिखा सकते हैं। पूरी बाइबल, सिद्धांतों से भरी पड़ी है जिनमें तरह-तरह के हालात का सामना करने की एक-से-एक बढ़िया सलाह दी गयी है। (2 तीमु. 3:16, 17) लेकिन आपको इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि आप आयत को जिस तरीके से लागू करते हैं, वह सही है और आप उसका गलत इस्तेमाल नहीं कर रहे जिससे ऐसा लगे कि आप जो कहना चाहते हैं, आयतें भी वही कह रही हैं। (भज. 91:11, 12; मत्ती 4:5, 6) आप जिस तरीके से आयत को लागू करते हैं, वह यहोवा के उद्देश्‍य के मुताबिक होना चाहिए और पूरी बाइबल से मेल खाना चाहिए।

      ‘सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाने’ का मतलब यह भी है कि बाइबल में जो लिखा है, वह किस भावना से लिखा है यह समझना। यह कोई ऐसा “सोंटा” नहीं जिससे लोगों को डराया-धमकाया जाए। यीशु के ज़माने के धर्मगुरू जो यीशु का विरोध करते थे, वे भी शास्त्र का हवाला देते थे। लेकिन जो बातें ज़्यादा गंभीर थीं, जैसे न्याय, दया और वफादारी जिनकी माँग परमेश्‍वर भी करता है, उन्हें वे नज़रअंदाज़ कर देते थे। (मत्ती 22:23, 24; 23:23, 24) लेकिन जब यीशु, परमेश्‍वर का वचन सिखाता था, तो वह दिखाता था कि उसके पिता परमेश्‍वर की शख्सियत कैसी है। यीशु में सच्चाई के लिए जोश और उन लोगों के लिए प्यार था जिन्हें वह सिखाता था। हमें भी उसकी मिसाल पर चलने की कोशिश करनी चाहिए।—मत्ती 11:28.

      हम कैसे जान सकते हैं कि हम बाइबल के किसी वचन को सही तरीके से लागू कर रहे हैं या नहीं? नियमित रूप से बाइबल पढ़ने से हमें यह जानने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, परमेश्‍वर ने पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त जनों के निकाय यानी “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए अपने सभी वफादार सेवकों के लिए आध्यात्मिक भोजन का जो इंतज़ाम किया है, उसके लिए भी हमें कदरदानी दिखाने की ज़रूरत है। (मत्ती 24:45) अगर हम निजी अध्ययन करते रहें और बिना नागा कलीसिया की सभाओं में हाज़िर हों, साथ ही उनमें हिस्सा लें, तो विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग से मिलनेवाली हिदायतों से हमें फायदा होगा।

      अगर रीज़निंग फ्रॉम द स्क्रिप्चर्स्‌ किताब आपकी भाषा में हो और आप उसका अच्छा इस्तेमाल करना सीख लें, तो आप यह जानकारी चुटकियों में हासिल कर सकते हैं कि प्रचार में अकसर इस्तेमाल होनेवाली सैकड़ों आयतों को सही तरीके से कैसे लागू करें। अगर आप ऐसी आयत इस्तेमाल करने की सोच रहे हैं, जिसके बारे में आपको ज़्यादा ज्ञान नहीं है, तो आप उस पर खोजबीन करते हुए अपनी नम्रता का सबूत दे रहे होंगे। इससे जब आप सिखाएँगे, तो आप परमेश्‍वर के वचन को ठीक रीति से काम में ला रहे होंगे।—नीति. 11:2.

      साफ-साफ समझाइए कि आयत कैसे लागू होती है। दूसरों को सिखाते वक्‍त इस बात का ध्यान रखिए कि उन्हें आपके विषय और आप जो आयत पढ़ रहे हैं, उनके बीच का संबंध साफ-साफ समझ आए। अगर आप आयत पढ़ने से पहले सवाल पूछते हैं, तो सुननेवालों को आयत पढ़ने से उसका जवाब मिलना चाहिए। कई बार आप अपनी बात की सच्चाई दिखाने के लिए आयत पढ़ते हैं। ऐसे में इस बात का ध्यान रखिए कि सुननेवाला भी यह समझ पाए कि आयत से आपकी बात कैसे सच साबित होती है।

      महज़ शास्त्रवचन पढ़ना, चाहे ज़ोर देकर ही पढ़ा जाए, हमेशा काफी नहीं होता। याद रखिए कि एक आम इंसान बाइबल के बारे में नहीं जानता और सिर्फ एक बार शास्त्रवचन पढ़ने से शायद उसे आपकी बात समझ में न आए। इसिलए आयत का जो भाग आपके विषय से सीधे ताल्लुक रखता है, उस पर उनका ध्यान दिलाइए।

      आम तौर पर यह ज़रूरी होता है कि आप खास शब्दों को अलग करके उन पर ज़ोर दें। और इसका सबसे आसान तरीका है, उन खास शब्दों को दोहराना। अगर आप किसी एक शख्स से बात कर रहे हैं, तो आप उससे ऐसे सवाल पूछिए जिससे वह खास शब्द आसानी से पहचान सके। लोगों के समूह से बात करते वक्‍त खास शब्दों पर ज़ोर देने के लिए, कुछ वक्‍ता उसी अर्थ के और भी कई शब्द इस्तेमाल करते हैं या दूसरे शब्दों में वही बात फिर से कहते हैं। लेकिन अगर आप ऐसा करते हैं, तो ध्यान रहे कि सुननेवाले ये न भूल जाएँ कि आयत में जो शब्द उन्होंने पहले पढ़े वे विषय से कैसे जुड़े हुए हैं।

      आयत पढ़ते वक्‍त खास शब्दों को अलग करके या उन पर ज़ोर देकर आपने एक अच्छी बुनियाद डाल दी है। अब इसी बुनियाद पर आगे काम कीजिए। क्या आपने आयत का परिचय देते वक्‍त बताया था कि आप यह आयत क्यों पढ़ रहे हैं? अगर हाँ, तो दिखाइए कि सुननेवालों को आपने जिस बात पर गौर करने के लिए कहा था, वह उन शब्दों से कैसे समझ में आती है जिन पर आपने ज़ोर दिया है। और फिर, जो बात आप समझाना चाहते हैं, वह साफ-साफ समझाइए। अगर आपने आयत का परिचय खोलकर ना भी दिया हो, फिर भी यह ज़रूरी है कि आयत पढ़ने के बाद आप अपनी बात साफ-साफ समझाएँ।

      फरीसियों ने सोचा कि वे यीशु से बहुत ही मुश्‍किल सवाल पूछने जा रहे हैं। उन्होंने पूछा: “क्या हर एक कारण से अपनी पत्नी को त्यागना उचित है?” यीशु ने उत्पत्ति 2:24 के आधार पर जवाब दिया। ध्यान दीजिए कि उसने आयत के सिर्फ एक भाग पर ज़ोर दिया और उसने उस भाग को लागू करके उनको जवाब दिया। यह बताने के बाद कि पुरुष और उसकी पत्नी “एक तन” होंगे, यीशु ने यह कहकर अपनी बात खत्म की: “इसलिये जिसे परमेश्‍वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।”—मत्ती 19:3-6.

      एक आयत किस तरह लागू होती है, यह आपको किस हद तक समझाना चाहिए? यह इस बात से तय होगा कि आपके सुननेवाले कौन हैं और आप जो कह रहे हैं, वह कितना ज़रूरी है। सरल शब्दों में और सीधे-सीधे अपनी बात कहने का लक्ष्य रखिए।

      सीधे शास्त्र से तर्क करना। प्रेरित पौलुस के थिस्सलुनीकिया में प्रचार काम के बारे में प्रेरितों 17:2, 3 कहता है कि वह “पवित्र शास्त्रों से उनके साथ विवाद” करता था। विवाद करना या तर्क करना ऐसा हुनर है जो यहोवा के हर सेवक को अपने अंदर पैदा करना चाहिए। उदाहरण के लिए, पौलुस ने यीशु और उसकी सेवा के बारे में कई बातें बतायीं और दिखाया कि ये बातें पहले ही इब्रानी शास्त्र में लिखी जा चुकी हैं। उसके बाद, उसने अपनी बात बड़े दमदार तरीके से यह कहते हुए खत्म की: “यही यीशु जिस की मैं तुम्हें कथा सुनाता हूं, मसीह है।”

      पौलुस ने इब्रानियों को लिखते वक्‍त बार-बार इब्रानी शास्त्र से हवाले दिए। किसी मुद्दे पर ज़ोर देने के लिए या बात को साफ-साफ समझाने के लिए, वह अकसर एक शब्द या वाक्य के एक हिस्से को अलग कर देता था और फिर उसकी अहमियत समझाता था। (इब्रा. 12:26, 27) जो वृत्तांत इब्रानियों के अध्याय 3 में पाया जाता है, उसमें पौलुस ने भजन 95:7-11 से हवाले दिए। ध्यान दीजिए कि उसने इन शास्त्रवचनों के तीन हिस्सों को विस्तार से समझाया: (1) उसने मन का ज़िक्र किया (इब्रा. 3:8-12), (2) “आज के दिन,” इन शब्दों का अर्थ समझाया (इब्रा. 3:7, 13-15; 4:6-11), और (3) इस वाक्य का मतलब समझाया: “वे मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाएंगे” (इब्रा. 3:11, 18, 19; 4:1-11)। तो आप भी इसी तरह आयत को लागू करने की मिसाल पर चलने की कोशिश कीजिए।

      ध्यान दीजिए कि यीशु ने लूका 10:25-37 के वृत्तांत में, कैसे शास्त्रवचनों से तर्क किया। एक व्यवस्थापक ने यीशु से पूछा: “हे गुरु, अनन्त जीवन का वारिस होने के लिये मैं क्या करूं?” जवाब में सबसे पहले तो यीशु ने उस मामले पर खुद उसकी राय पूछी और फिर कहा कि परमेश्‍वर के वचन में जो लिखा है, उस पर अमल करना ज़रूरी है। जब यह ज़ाहिर हो गया कि वह आदमी यीशु की बात समझ नहीं रहा, तो उसने आयत के एक ही शब्द, “पड़ोसी” के बारे में अच्छी तरह समझाया। उस शब्द की परिभाषा देने के बजाय यीशु ने एक दृष्टांत दिया जिससे वह आदमी खुद सही जवाब तक पहुँच पाया।

      इससे पता चलता है कि यीशु जब सवाल का जवाब देता था, तब वह सीधे ऐसी आयतों के हवाले नहीं देता था जिनमें जवाब साफ ज़ाहिर होता था। वह आयत पर बड़े ध्यान से सोचता था और फिर पूछे गए सवाल पर उसे लागू करता था।

      जब पुनरुत्थान की आशा पर सदूकियों ने सवाल उठाया, तो यीशु ने उनका ध्यान निर्गमन 3:6 के खास हिस्से पर दिलाया। लेकिन आयत बताने के बाद वह चुप नहीं रहा। उसने तर्क किया और दिखाया कि पुनरुत्थान, परमेश्‍वर के उद्देश्‍य का एक हिस्सा है।—मर. 12:24-27.

      शास्त्रवचनों की सही-सही समझ देना और असरदार तरीके से उन पर तर्क करना, एक कुशल शिक्षक बनने की तरफ बहुत बड़ा कदम है।

      यह हुनर कैसे हासिल करें

      • नियमित रूप से बाइबल पढ़िए। ध्यान से प्रहरीदुर्ग का अध्ययन कीजिए और दूसरी सभाओं की अच्छी तैयारी कीजिए।

      • ध्यान रखिए जिस आयत का आप हवाला देने जा रहे हैं, उसका सही मतलब आपको मालूम हो। ध्यान से आयत पढ़िए ताकि आप अच्छी तरह समझ सकें कि उसमें क्या कहा है।

      • संस्था के साहित्य में ज़्यादा खोजबीन करने की आदत डालिए।

      अभ्यास: दूसरा पतरस 3:7 का मतलब क्या है, इस पर तर्क कीजिए। क्या इसका मतलब यह है कि पृथ्वी, आग से नाश की जाएगी? (“पृथ्वी” क्या है, इसका मतलब समझाते वक्‍त, ध्यान दीजिए कि “आकाश” का मतलब क्या है। कौन-सी आयतें दिखाती हैं कि “पृथ्वी” शब्द का लाक्षणिक अर्थ हो सकता है? जैसा आयत 7 में बताया है, कौन या किस चीज़ का असल में विनाश किया जाएगा? यह नूह के दिनों की घटनाओं से कैसे मेल खाता है, जिनके बारे में आयत 5 और 6 में बताया गया है?)

  • जानकारी पर अमल करने के फायदे साफ-साफ बताना
    परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
    • अध्याय 23

      जानकारी पर अमल करने के फायदे साफ-साफ बताना

      आपको क्या करने की ज़रूरत है?

      सुननेवालों को यह समझाइए कि आप जिस विषय पर बात कर रहे हैं, उसका उनकी ज़िंदगी से क्या ताल्लुक है या उस पर अमल करने से उन्हें क्या फायदा होगा।

      इसकी क्या अहमियत है?

      अगर लोग यह नहीं समझ पाएँगे कि आप उन्हें जो बता रहे हैं, उस पर अमल करने से उन्हें क्या फायदा होगा, तो वे शायद आपसे कह दें कि उन्हें आपकी बात नहीं सुननी या फिर वे आपकी बात सुनेंगे तो सही मगर उनका ध्यान यहाँ-वहाँ भटकने लगेगा।

      आप चाहें किसी एक आदमी से बात कर रहे हों या बहुत सारे लोगों से, आपका यह मानना सही नहीं होगा कि आपको अपने विषय में जितनी दिलचस्पी है वैसी ही दिलचस्पी दूसरों को भी होगी। आपका संदेश है तो ज़रूरी, लेकिन अगर आप लोगों को उस पर चलने के फायदे साफ-साफ नहीं बताएँगे, तो उनका ध्यान आपकी बात पर ज़्यादा देर तक नहीं रहेगा।

      यह बात तब भी सच है जब आप किंगडम हॉल में कोई भाग पेश करते हैं। अगर आप कोई ऐसा दृष्टांत या अनुभव बताएँगे, जिसे लोगों ने पहले कभी नहीं सुना है, तो वे शायद ध्यान लगाकर सुनें। लेकिन अगर आप सिर्फ जाने-पहचाने मुद्दे ही बताएँगे और उनके बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं देंगे, तो लोगों का ध्यान भटक सकता है। इसलिए उन्हें यह समझाना ज़रूरी है कि आप जो बता रहे हैं, उससे उन्हें क्यों और कैसे सही मायनों में फायदा होगा।

      बाइबल हमें फायदेमंद बातें यानी खरी बुद्धि की बातों के बारे में सोचने का बढ़ावा देती है। (नीति. 3:21) यहोवा ने बपतिस्मा देनेवाले यूहन्‍ना के ज़रिए लोगों का ध्यान “धार्मिकों की बुद्धि” की तरफ दिलाया था जो फायदेमंद है। (लूका 1:17, नयी हिन्दी बाइबिल) यह ऐसी बुद्धि है जो यहोवा के लिए सही किस्म का भय होने पर मिलती है। (भज. 111:10) जो इस बुद्धि की अहमियत समझते हैं, वे आज ज़िंदगी के हालात का सही तरह से सामना कर पाते हैं और भविष्य में मिलनेवाले सत्य जीवन यानी हमेशा की ज़िंदगी को वश में कर लेते हैं।—1 तीमु. 4:8; 6:19.

      भाषण को फायदेमंद बनाइए। आपके भाषण से लोगों को तभी फायदा होगा, जब आप भाषण की तैयारी करते वक्‍त न सिर्फ जानकारी के बारे में, बल्कि सुननेवालों के बारे में भी ध्यान से सोचें। उन्हें एक भीड़ मत समझिए। उस भीड़ में अलग-अलग लोग और परिवार हैं। उनमें छोटे-छोटे बच्चे, किशोर, बालिग और बुज़ुर्ग भी हो सकते हैं। दिलचस्पी दिखानेवाले नए लोग, साथ ही ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो तब से यहोवा की सेवा करते आ रहे हैं जब आप शायद पैदा भी नहीं हुए थे। कुछ लोग आध्यात्मिक मायनों में प्रौढ़ होंगे, तो कुछ ऐसे होंगे जिन पर शायद अब भी संसार के रवैए और तौर-तरीकों का ज़बरदस्त असर हो। इसलिए खुद से पूछिए: ‘मैं जो चर्चा करने जा रहा हूँ, उससे सुननेवालों को क्या फायदा होगा? मैं उन्हें भाषण का असली मुद्दा कैसे समझा सकता हूँ?’ आप चाहें तो ऊपर बताए किसी एक या दो श्रेणी के लोगों पर खास ध्यान देने की सोच सकते हैं। लेकिन आप बाकी लोगों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ मत कीजिए।

      अगर आपको बाइबल की किसी बुनियादी शिक्षा पर भाषण सौंपा जाता है, तो आप क्या कर सकते हैं? आप अपने भाषण से सुननेवालों में उन लोगों को कैसे फायदा पहुँचा सकते हैं, जो इस बुनियादी शिक्षा पर पहले से विश्‍वास करते हैं? इस शिक्षा पर उनका विश्‍वास मज़बूत करने की कोशिश कीजिए। कैसे? इसके बारे में बाइबल में दिए सबूतों पर तर्क करने से। इसके अलावा, आप बाइबल की इस शिक्षा के लिए उनकी कदरदानी भी बढ़ा सकते हैं। आप दिखा सकते हैं कि यह शिक्षा कैसे बाइबल की दूसरी सच्चाइयों से और यहोवा के गुणों से मेल खाती है। ऐसे कुछ उदाहरण, या हो सके तो सच्चे अनुभव बताइए जिसमें यह दिखाया गया हो कि इस शिक्षा की सही समझ पाकर कैसे लोगों को फायदा हुआ है और भविष्य के बारे में उनका नज़रिया बदल गया है।

      जानकारी पर अमल करके फायदा कैसे पाएँ, इस बारे में भाषण के आखिर में सिर्फ चंद शब्द कहना काफी नहीं है। भाषण की शुरूआत से ही, सुननेवाले हरेक जन को यह महसूस होना चाहिए कि “यह बात मुझ पर लागू होती है।” शुरूआत में ऐसी बुनियाद डालने के बाद, भाषण का हर खास मुद्दा समझाते वक्‍त और फिर समाप्ति में बताइए कि इस जानकारी पर अमल करना क्यों फायदेमंद है।

      कोई जानकारी किस तरह लागू होती है, इस बारे में बताते वक्‍त ध्यान रखिए कि यह बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक हो। इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है, जानकारी को इस तरह लागू करना जिससे नज़र आए कि आप लोगों से प्यार करते हैं और उनके हमदर्द हैं। (1 पत. 3:8; 1 यूह. 4:8) प्रेरित पौलुस ने थिस्सलुनीके की कलीसिया की पेचीदा समस्याओं के बारे में बात करते वक्‍त भी, उस कलीसिया के मसीही भाई-बहनों की आध्यात्मिक तरक्की की अच्छी बातों पर ज़ोर दिया। उसने यह भी भरोसा ज़ाहिर किया कि वह जिस मामले पर चर्चा कर रहा था, उस पर वे सही कदम उठाने को ज़रूर तैयार होंगे। (1 थिस्स. 4:1-12) यह हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल है!

      क्या आपके भाषण का मकसद, सुसमाचार के प्रचार और सिखाने के काम के लिए दूसरों में जोश पैदा करना है? तो इस काम के लिए सुननेवालों के दिल में उत्साह और इस बड़े सम्मान के लिए कदरदानी जगाइए। लेकिन, ऐसा करते वक्‍त याद रखिए कि प्रचार में हर कोई एक-बराबर हिस्सा नहीं ले पाता, कुछ ज़्यादा हिस्सा ले पाते हैं, तो कुछ कम और बाइबल भी इस बात को मानती है। (मत्ती 13:23) इसलिए अपने भाइयों को दोषी मत महसूस करवाइए कि वे ज़्यादा प्रचार नहीं कर रहे हैं। इब्रानियों 10:24 हमसे “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये” गुज़ारिश करता है। अगर हम लोगों के अंदर प्रेम की भावना जगाएँगे, तो वे अपने आप ही नेक इरादे से काम करेंगे। सबके लिए एक ही स्तर तय करने के बजाय, यह बात ध्यान में रखिए कि यहोवा हमसे चाहता है कि हम ‘विश्‍वास से आज्ञा मानें।’ (रोमि. 16:26) इसलिए, हमें अपना और अपने भाइयों का भी विश्‍वास मज़बूत करना चाहिए।

      हमारे संदेश की अहमियत समझने में दूसरों की मदद करना। जब आप लोगों को गवाही देते हैं, तब उन्हें यह ज़रूर बताइए कि सुसमाचार को कबूल करने के क्या-क्या फायदे हैं। इसके लिए यह जानना ज़रूरी है कि आपके प्रचार के इलाके में लोगों को ज़्यादातर किन बातों की चिंता रहती है। यह आप कैसे जान सकते हैं? रेडियो या टी.वी. पर समाचार सुनिए। अखबार की खास-खास खबरें पढ़िए। इसके अलावा, लोगों को बातचीत में शामिल करने की कोशिश कीजिए और जब वे बोलते हैं, तब ध्यान से सुनिए। आप शायद पाएँ कि वे ऐसी गंभीर समस्याओं से संघर्ष कर रहे हैं, जैसे कि वे नौकरी से हाथ धो बैठे हैं, उन्हें घर का किराया भरने की परेशानी है, वे बीमार हैं, उनके परिवार में किसी सदस्य की मौत हो गयी है, वे अपराध के खतरे को लेकर चिंतित हैं, उन्होंने किसी ऊँचे अधिकारी के हाथों नाइंसाफी झेली है, उनका परिवार टूट गया है, उन्हें जवान बच्चों को अनुशासन में रखने की समस्या है, वगैरह। क्या बाइबल इन समस्याओं से निपटने में उनकी मदद कर सकती है? बेशक कर सकती है।

      किसी से बातचीत शुरू करते वक्‍त, आप शायद एक विषय को मन में रखकर बात करें। लेकिन जब सामनेवाला यह ज़ाहिर करता है कि वह किसी और बात को लेकर परेशान है, तब मुमकिन हो तो उसी बात पर चर्चा कीजिए। या फिर बताइए कि आप उस विषय पर कुछ फायदेमंद जानकारी लेकर उसके पास दोबारा आएँगे। यह सच है कि हमारा मकसद, ‘दूसरों की बातों में टाँग अड़ाना’ नहीं है, लेकिन बाइबल जो बढ़िया सलाह देती है, उसे दूसरों को बताने में हमें खुशी मिलती है। (2 थिस्स. 3:11, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इसमें कोई शक नहीं कि लोगों पर ऐसी सलाह का ज़्यादा असर होता है, जो उनकी ज़िंदगी से ताल्लुक रखती हो।

      अगर लोग यह नहीं समझ पाएँगे कि हमारे संदेश का उनकी ज़िंदगी से क्या नाता है, तो वे शायद फौरन बातचीत रोक दें। और अगर उन्होंने बातचीत ना भी रोकी, तब भी अगर हम उन्हें अपने संदेश से होनेवाले फायदे न बताएँ, तो हमारे संदेश का उनकी ज़िंदगी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। दूसरी तरफ, अगर हम अपने संदेश से होनेवाले फायदे साफ-साफ बताएँ, तो हमारी बातचीत लोगों की ज़िंदगी को पूरी तरह बदल सकती है।

      दूसरों को बाइबल का अध्ययन कराते वक्‍त, उन्हें हमेशा बताइए कि सीखी हुई बातों पर वे कैसे अमल कर सकते हैं। (नीति. 4:7) उन्हें बाइबल की सलाह, सिद्धांत और उदाहरण समझाइए जिनसे वे सीख सकते हैं कि उन्हें यहोवा के मार्गों पर कैसे चलना चाहिए। यहोवा के मार्गों पर चलने से होनेवाले फायदों पर ज़ोर दीजिए। (यशा. 48:17, 18) इससे अपनी ज़िंदगी में ज़रूरी बदलाव करने की उनमें इच्छा पैदा होगी। उनके दिल में यहोवा के लिए प्रेम और उसे खुश करने की इच्छा बढ़ाइए और कोशिश कीजिए कि वे परमेश्‍वर के वचन की सलाह पर चलने के लिए दिल से प्रेरित हों।

      यह कैसे करें

      • भाषण तैयार करते वक्‍त, सिर्फ पेश की जानेवाली जानकारी को नहीं बल्कि अपने सुननेवालों को भी ध्यान में रखिए। भाषण इस ढंग से दीजिए कि सुननेवालों को सचमुच फायदा हो।

      • जानकारी पर अमल करने के फायदे सिर्फ समाप्ति में नहीं बल्कि आपको पूरे भाषण के दौरान बताने चाहिए।

      • लोगों को गवाही देने की तैयारी करते वक्‍त, ध्यान दीजिए कि आपके प्रचार के इलाके में ज़्यादातर लोग किन बातों को लेकर चिंतित हैं।

      • गवाही देते वक्‍त दूसरों की बात ध्यान से सुनिए और उसके मुताबिक अपनी बातचीत का विषय बदलिए।

      अभ्यास: हमारी राज्य सेवकाई के जो भी अंक आपके पास मौजूद हैं, उन्हें पढ़िए और उनमें से एक या दो ऐसे सुझाव चुनिए जो खासकर आपके इलाके के लिए कारगर हो सकते हैं। उन सुझावों को प्रचार में आज़माकर देखिए।

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