अध्याय 29
आपकी आवाज़ कैसी है
लोगों पर ना सिर्फ कही गयी बात का बल्कि उसे कहने के ढंग का भी बहुत ज़्यादा असर होता है। क्या यह सच नहीं कि अगर बोलनेवाले की आवाज़ मीठी हो, स्नेह और प्यार भरी हो, तो आपको उसकी बातें सुनना अच्छा लगता है? लेकिन अगर उसकी आवाज़ रूखी या कठोर हो, तो शायद ही आप उसकी बात सुनना चाहेंगे।
अच्छी आवाज़ पैदा करने का मतलब सिर्फ इसकी तकनीक जानना नहीं है। इस पर काफी हद तक इंसान के स्वभाव का भी असर होता है। जैसे-जैसे एक इंसान बाइबल की सच्चाई का ज्ञान लेता है और उस पर अमल करता है, तो उसके बात करने का तरीका बदलने लगता है। प्रेम, आनंद और कृपा जैसे परमेश्वर के गुण, उसकी आवाज़ में उजागर होने लगते हैं। (गल. 5:22, 23) जब वह दूसरों की सच्चे दिल से परवाह करने लगता है, तो यह उसकी आवाज़ से ज़ाहिर होता है। जब वह हमेशा शिकायत करने की बुरी आदत छोड़कर एहसानमंदी की भावना पैदा करता है, तो यह उसकी बोली और बात करने के लहज़े में नज़र आने लगता है। (विला. 3:39-42; 1 तीमु. 1:12; यहू. 16) भले ही आप बोली जा रही भाषा न जानते हों, आप बोलनेवाले की आवाज़ से यह ज़रूर बता सकते हैं कि वह घमंडी, कट्टर, कठोर और नुक्ताचीनी करनेवाला है या फिर वह नम्र, सहनशील, रहमदिल और प्यार से पेश आनेवाला इंसान है।
कुछ लोगों की आवाज़ इसलिए खराब होती है क्योंकि शायद किसी बीमारी की वजह से उनका गला बिगड़ गया है या फिर उनके गले में कोई पैदाइशी नुक्स है। कुछ लोगों में ये समस्याएँ इतनी गंभीर होती हैं कि उनका इलाज इस पुरानी दुनिया में नहीं हो सकता है। लेकिन, ऐसे लोग भी अगर बोलने के अंगों का सही इस्तेमाल करना सीखें, तो उनकी आवाज़ में सुधार आ सकता है।
सबसे पहले तो यह समझना ज़रूरी है कि दुनिया के हर इंसान की आवाज़ की अपनी खासियत होती है। इसलिए आपका लक्ष्य, किसी दूसरे की आवाज़ की नकल करना नहीं होना चाहिए। इसके बजाय क्यों न आप जितना हो सके, अपनी आवाज़ के निरालेपन को निखारने की कोशिश करें? ऐसा करने में क्या बात आपकी मदद कर सकती है? इसके लिए दो खास बातें ज़रूरी हैं।
ठीक से साँस लीजिए। अच्छी आवाज़ पैदा करने के लिए, आपको भरपूर साँस लेने की ज़रूरत है और आपका साँस लेने-छोड़ने का तरीका भी सही होना चाहिए। अगर ऐसा न हो, तो आपकी आवाज़ मरियल-सी होगी और आपकी बातचीत कटी-कटी-सी होगी।
हमारे फेफड़ों का बड़ा हिस्सा, सीने के ऊपरी हिस्से में नहीं होता; हमारा सीना कंधों की हड्डियों की वजह से चौड़ा दिखायी देता है। दरअसल, फेफड़ों का सबसे बड़ा और चौड़ा भाग, डायफ्राम के थोड़े ऊपर होता है। डायफ्राम, नीचे की पसलियों से जुड़ा होता है और छाती और पेट के भाग को अलग करता है।
अगर साँस लेते समय, सिर्फ आपके फेफड़ों के ऊपरी हिस्से में हवा भरेगी, तो जल्द ही आपकी साँस फूलने लगेगी। आपकी आवाज़ में दम नहीं होगा और आप जल्दी थक जाएँगे। ठीक से साँस लेने के लिए आपको सीधे तनकर बैठना या खड़ा होना चाहिए और कंधों को पीछे करना चाहिए। इस बात का खास ध्यान रखें कि जब आप बात करने के लिए साँस लेते हैं, तो अपनी छाती के सिर्फ ऊपरी हिस्से को न फुलाएँ। सबसे पहले, फेफड़ों के निचले हिस्से को हवा से भरिए। जब यह हिस्सा भर जाएगा, तो आपकी पसलियों का निचला हिस्सा दाएँ-बाएँ फैलेगा। इसके साथ-साथ, डायफ्राम नीचे की तरफ जाएगा और पेट और अंतड़ियों को हल्के-से दबाएगा। इसलिए आप महसूस करेंगे कि आपका बेल्ट और कपड़े, पेट पर ज़्यादा कस रहे हैं और दबाव डाल रहे हैं। लेकिन फेफड़े, पेट की तरफ नहीं हैं बल्कि पसलियों के बीच हैं। इसकी जाँच खुद करने के लिए, अपने दाएँ और बाएँ हाथ को पसलियों के निचले हिस्सों पर दोनों तरफ रखिए। अब गहरी साँस लीजिए। अगर आप सही तरह से साँस लेते हैं, तो आपका पेट अंदर की तरफ नहीं भिंचेगा और आपके कंधे ऊपर की तरफ नहीं उठेंगे; बल्कि आप पसलियों को धीरे-धीरे ऊपर और बाहर की तरफ खुलता हुआ महसूस करेंगे।
इसके बाद, साँस छोड़ने का अभ्यास कीजिए। गहरी साँस लेने के बाद जल्दी से साँस छोड़कर हवा को बर्बाद मत कीजिए, बल्कि उसे धीरे-धीरे बाहर निकालिए। हवा पर काबू पाने की कोशिश में गले की पेशियों को कड़ा मत कीजिए, वरना आपकी आवाज़ खिंची-खिंची-सी या हद-से-ज़्यादा पैनी निकलेगी। पेट और पसलियों के बीच की माँस-पेशियों से आनेवाले दबाव की वजह से हवा बाहर निकलती है, जबकि डायफ्राम, हवा के बाहर निकलने की रफ्तार को काबू करता है।
जिस तरह एक दौड़नेवाला, दौड़ के लिए अभ्यास करता है, उसी तरह एक वक्ता भी अभ्यास के ज़रिए साँस पर काबू रखना सीख सकता है। कंधों को पीछे करके सीधे खड़े रहिए, इस तरीके से साँस लीजिए कि आपके फेफड़ों का निचला हिस्सा हवा से भर जाए, और फिर आहिस्ता-आहिस्ता साँस छोड़ते वक्त, धीरे-धीरे गिनती गिनिए और देखिए कि एक साँस में आप कितनी गिनती गिन सकते हैं। इसके बाद, इसी तरीके से साँस लेते हुए ऊँची आवाज़ में पढ़ने का अभ्यास कीजिए।
तनी हुई पेशियों को तनाव-मुक्त कीजिए। अच्छी आवाज़ के लिए एक और ज़रूरी बात है, तनाव-मुक्त होना। आप यह देखकर वाकई दंग रह जाएँगे कि बात करते वक्त पेशियों को तनाव-मुक्त करने से आपकी आवाज़ में कितना बढ़िया सुधार हो सकता है। आपका मन और शरीर, दोनों को तनाव-मुक्त होना चाहिए क्योंकि मानसिक तनाव से माँस-पेशियाँ कस जाती हैं।
मन का तनाव या घबराहट दूर करने के लिए आपको अपने सुननेवालों के बारे में सही नज़रिया रखने की ज़रूरत है। अगर आप प्रचार में लोगों से मिलते हैं, तो याद रखें कि चाहे आपको बाइबल का अध्ययन शुरू किए कुछ महीने ही हुए हैं, फिर भी आपको यहोवा के मकसद के बारे में ऐसी अनमोल जानकारी है जो आप दूसरों को दे सकते हैं। और आप इसलिए उनसे मिलने आए हैं, क्योंकि उन्हें आपकी मदद की ज़रूरत है, फिर चाहे उन्हें इस बात का एहसास हो या न हो। और अगर आप किंगडम हॉल में कोई भाग पेश करते हैं, तो याद रखें कि सुननेवालों में से ज़्यादातर जन यहोवा के सेवक हैं। वे आपके दोस्त हैं और चाहते हैं कि आप कामयाब हों। हम किंगडम हॉल में बार-बार जिस तरह के लोगों के सामने बात करते हैं, उस तरह के कदरदान और प्यार करनेवाले श्रोता दुनिया में कहीं नहीं मिलेंगे।
गले की माँस-पेशियों को तनाव-मुक्त करने के लिए अपना ध्यान उन पर लगाइए और उनका तनाव कम करने की भरसक कोशिश कीजिए। याद रखिए कि जब हवा आपके वाक्-तंतुओं (vocal cords) से गुज़रती है, तो उनमें कंपन होता है। ठीक जैसे एक गिटार या वाइलिन के तारों को कसने या ढीला करने पर उसकी आवाज़ में बदलाव आता है, वैसे ही जब गले की पेशियाँ सख्त या तनाव-मुक्त होंगी तो उसी के मुताबिक आपकी आवाज़ में उतार-चढ़ाव आएगा। जब आप अपने वाक्-तंतुओं को ढीला करेंगे, तो स्वर धीमा हो जाएगा। गले की माँस-पेशियों को ढीला करने से नाक की नलियाँ भी खुली रहेंगी और इसका आपकी आवाज़ पर ज़रूर अच्छा असर पड़ेगा।
अपने पूरे शरीर को यानी अपने घुटनों, हाथों, कंधों और गरदन को तनाव-मुक्त कीजिए। इससे वह गुंजन पैदा होगी जो आपकी आवाज़ को दूर-दूर तक पहुँचाने के लिए ज़रूरी है। आवाज़ में गुंजन तब पैदा होता है जब पूरा शरीर आवाज़ की तेज़ी को बढ़ाने का काम करता है। लेकिन तनाव की वजह से आवाज़ में रुकावट आ जाती है। ध्वनि-बक्स (larynx) से निकलनेवाली आवाज़, न सिर्फ नाक की नलियों से बल्कि छाती की हड्डियों, दाँतों, तालू और शिरानाल (sinuses) जैसे अंगों से भी टकराकर गूँज उठती है। ये सारे अंग, आवाज़ के सही तरह से गूँजने में मददगार होते हैं। अगर आप एक गिटार के साउंडबोर्ड पर कोई भारी चीज़ रख देंगे, तो उसकी आवाज़ दब जाएगी। साउंडबोर्ड पर किसी भी तरह का भार नहीं होना चाहिए तभी उसमें बिना किसी रुकावट के कंपन होगा और आवाज़ सही तरह से गूँजेगी। उसी तरह, हमारे शरीर के हड्डीवाले अंगों पर अगर बहुत ज़्यादा तनी हुई पेशियों की वजह से दबाव पड़े, तो आवाज़ दबी-दबी-सी निकलेगी। गुंजन से आप अपनी आवाज़ में सही तरह से उतार-चढ़ाव ला पाएँगे और तरह-तरह की भावनाएँ ज़ाहिर कर पाएँगे। भारी तादाद में सुननेवालों के सामने भी आप बिना चिल्लाए आराम से बोल पाएँगे।