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  • क्या ज़िंदगी का सफर मौत के बाद भी जारी रहता है?
    प्रहरीदुर्ग (जनता के लिए)—2017 | अंक 4
    • एक स्त्री जलती हुई मोमबत्तियों के सामने हाथों में माला पकड़े प्रार्थना कर रही है

      करीब-करीब सब धर्म के लोग मानते हैं कि इंसान में एक अमर आत्मा होती है

      पहले पेज का विषय | ज़िंदगी और मौत के बारे में पवित्र शास्त्र क्या कहता है?

      क्या ज़िंदगी का सफर मौत के बाद भी जारी रहता है?

      जीवन और मौत के बारे में बहुत-सी धारणाएँ हैं और सब एक-दूसरे से अलग हैं। कुछ लोगों को लगता है कि इंसान मरने के बाद भी किसी और रूप में या किसी और लोक में ज़िंदा रहता है। कई लोग मानते हैं कि उनका दोबारा जन्म होगा और उनकी ज़िंदगी पिछले जन्म से अलग होगी। वहीं कुछ यह भी मानते हैं कि मौत होने पर सबकुछ खत्म हो जाता है।

      जिस तरह आपकी परवरिश हुई या जिस संस्कृति में आप पले-बढ़े, उस वजह से शायद इस विषय पर आपकी भी अपनी राय होगी। जब लोगों की इतनी अलग-अलग राय है, तो सवाल उठता है कि मौत के बारे में हमें सच्चाई कौन बता सकता है या यह कहाँ से पता चल सकती है।

      सदियों से धर्मगुरु सिखाते आए हैं कि इंसान में अमर आत्मा होती है। ईसाई, मुस्लिम, यहूदी, हिंदू और दूसरे कई धर्म या यूँ कहें कि करीब-करीब सब धर्म के लोग मानते हैं कि इंसान में एक अमर आत्मा होती है, जो इंसान की मौत के बाद आत्मिक लोक में ज़िंदा रहती है। वहीं बौद्ध धर्म के लोग पुनर्जन्म और निर्वाण पर यकीन करते हैं। उनका मानना है कि जब एक इंसान को निर्वाण प्राप्त होता है, तो उसे सारी तकलीफों से मुक्‍ति मिल जाती है।

      कुछ लोग घर से बाहर अपने प्रिय जनों के लिए खाना रख रहे हैं, जो अब नहीं रहे

      इन सारी शिक्षाओं की वजह से दुनिया के ज़्यादातर लोग मानते हैं कि मरने पर एक इंसान को दूसरे लोक में जीने का मौका मिलता है। इसी के चलते बहुत-से लोग मानते हैं कि जीवन-चक्र में मौत एक अहम चरण है और उन्हें लगता है कि यह ईश्‍वर की ही मरज़ी है। लेकिन इस बारे में बाइबल में जो लिखा है, वह जानकर आप हैरान रह जाएँगे। क्यों न अगला लेख पढ़ें?

  • ज़िंदगी और मौत के बारे में बाइबल में क्या लिखा है?
    प्रहरीदुर्ग (जनता के लिए)—2017 | अंक 4
    • कब्र में रखा एक शव

      पहले पेज का विषय | ज़िंदगी और मौत के बारे में पवित्र शास्त्र क्या कहता है?

      ज़िंदगी और मौत के बारे में बाइबल में क्या लिखा है?

      बाइबल बताती है कि जब परमेश्‍वर ने विश्‍व की रचना की, तो उसने पहले इंसान आदम से कहा, “तू बाग के हरेक पेड़ से जी-भरकर खा सकता है। मगर अच्छे-बुरे के ज्ञान का जो पेड़ है उसका फल तू हरगिज़ न खाना, क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उस दिन ज़रूर मर जाएगा।” (उत्पत्ति 2:16, 17) इससे साफ पता चलता है कि अगर आदम परमेश्‍वर की आज्ञा मानता, तो वह कभी नहीं मरता और अदन बाग में हमेशा ज़िंदा रहता।

      बूढ़े आदम और हव्वा

      दुख की बात है कि आदम ने परमेश्‍वर की आज्ञा नहीं मानी। उसने अपनी पत्नी हव्वा के कहने पर वह फल खाया, जिसे खाने से मना किया गया था। इस तरह उसने हमेशा की ज़िंदगी के बजाय मौत को चुना। (उत्पत्ति 3:1-6) उसके आज्ञा न मानने के बुरे अंजाम हम आज भी भुगत रहे हैं। इसी बात को परमेश्‍वर के एक सेवक पौलुस ने इस तरह बताया, “एक आदमी से पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी और इस तरह मौत सब इंसानों में फैल गयी क्योंकि सबने पाप किया।” (रोमियों 5:12) बेशक यहाँ बताया “एक आदमी” और कोई नहीं, बल्कि आदम है। लेकिन पाप क्या है और इससे कैसे सबको मौत मिली?

      जानबूझकर परमेश्‍वर का कानून तोड़ना या उसकी आज्ञा न मानना पाप है। (1 यूहन्‍ना 3:4) परमेश्‍वर की आज्ञा न मानकर आदम ने पाप किया और पाप की सज़ा मौत है, जैसे परमेश्‍वर ने उसे बताया था। अगर आदम और उसके बच्चे परमेश्‍वर की आज्ञा मानते, तो वे पापी नहीं बनते और कभी मौत का मुँह नहीं देखते। असल में परमेश्‍वर ने इंसान को मरने के लिए नहीं, बल्कि जीने के लिए बनाया था, वह भी हमेशा के लिए।

      जैसे बाइबल में लिखा है कि मौत “सब इंसानों में फैल गयी” यानी सब मरते हैं, लेकिन इस पर सवाल नहीं है। सवाल इस बात पर है कि क्या इंसान के मरने के बाद उसके शरीर का कोई अंश ज़िंदा रहता है। बहुत-से लोग कहेंगे, ‘हाँ।’ वे इस अंश को आत्मा कहते हैं और मानते हैं कि वह अमर है। अगर मरने के बाद शरीर का कोई अंश दूसरे लोक में ज़िंदा रहता है, तब तो मौत पाप की सज़ा नहीं हुई, जैसे परमेश्‍वर ने कहा था। इसका मतलब तो यह होगा कि परमेश्‍वर ने आदम से झूठ बोला, जबकि बाइबल में लिखा है, “परमेश्‍वर का झूठ बोलना नामुमकिन है।” (इब्रानियों 6:18) दरअसल झूठ परमेश्‍वर ने नहीं शैतान ने बोला था, जिसने हव्वा से कहा, “तुम हरगिज़ नहीं मरोगे।”—उत्पत्ति 3:4.

      ऐसे में सवाल उठता है कि अगर अमर आत्मा की शिक्षा झूठ पर आधारित है, तो मरने पर असल में क्या होता है?

      बाइबल सुलझाती है सवालों की गुत्थी

      इंसान की रचना के बारे में बाइबल में लिखा है, “यहोवा परमेश्‍वर ने ज़मीन की मिट्टी से आदमी को रचा और उसके नथनों में जीवन की साँस फूँकी। तब वह जीता-जागता इंसान बन गया।” इब्रानी भाषा के जिस शब्द (नेफेश) का अनुवाद “जीता-जागता इंसान” किया गया है, उसका शाब्दिक मतलब है, “साँस लेनेवाला प्राणी।”—उत्पत्ति 2:7.

      बाइबल से साफ पता चलता है कि पहले पुरुष आदम में आत्मा जैसी कोई चीज़ नहीं डाली गयी, जो अमर होती है, बल्कि परमेश्‍वर ने उसमें जीवन की साँस फूँकी, जिससे वह “जीता-जागता इंसान” बन गया। आप बाइबल में कहीं भी “अमर आत्मा” शब्द नहीं पाएँगे।

      बाइबल में अमर आत्मा की शिक्षा नहीं दी गयी है, लेकिन दुनिया के ज़्यादातर धर्मों में यही सिखाया जाता है। आखिर इस शिक्षा की शुरूआत कहाँ से हुई? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें मिस्र के इतिहास के पन्‍ने पलटने होंगे।

      अमर आत्मा की शिक्षा फैलती गयी

      आज से करीब 2,500 साल पहले यूनानी इतिहासकार हिरोडोटस ने कहा था कि सबसे पहले मिस्र के लोगों ने अमर आत्मा की शिक्षा की पैरवी की। इस शिक्षा के बारे में प्राचीन शहर बैबिलोन के लोग भी कुछ ऐसा ही सोचते थे। ईसा पूर्व 332 के आते-आते जब सिकंदर महान ने मध्य पूर्वी इलाके पर कब्ज़ा कर लिया, तब तक यूनानी विद्वानों ने यह शिक्षा काफी प्रचलित कर दी थी। जल्द ही अमर आत्मा की शिक्षा पूरे यूनानी साम्राज्य में फैल गयी।

      आप बाइबल में कहीं भी “अमर आत्मा” शब्द नहीं पाएँगे

      पहली सदी में दो जाने-माने यहूदी पंथ थे, इसीन और फरीसी। इन पंथों की एक शिक्षा थी कि इंसान का शरीर मर जाता है, लेकिन आत्मा ज़िंदा रहती है। द ज्यूइश एनसाइक्लोपीडिया में लिखा है, “यहूदियों में अमर आत्मा की शिक्षा यूनानी विचार-धारा से आयी, खासकर प्लेटो के फलसफों से।” उसी तरह पहली सदी के यहूदी इतिहासकार जोसीफस ने कहा कि यह शिक्षा यूनान की देन है और वहाँ की कथा-कहानियों पर आधारित है। उसने ऐसा कभी नहीं कहा कि यह शिक्षा शास्त्र से ली गयी है।

      समय के चलते यूनानी सभ्यता का असर बढ़ता गया और अमर आत्मा की शिक्षा ईसाइयों ने भी अपना ली। इतिहासकार योना लेंडरिंग ने कहा, “प्लेटो की सोच थी कि हमारी आत्मा पहले बहुत अच्छी जगह थी और अब ऐसी दुनिया में आ गयी है, जो काफी हद तक गिर चुकी है। इस सोच की वजह से ईसाइयों के लिए प्लेटो का फलसफा अपनाना आसान हो गया।” इस तरह अमर आत्मा की शिक्षा ईसाई धर्म की एक बुनियादी शिक्षा बन गयी।

      “सच्चाई तुम्हें आज़ाद करेगी”

      पहली सदी में परमेश्‍वर के सेवक पौलुस ने यह चेतावनी दी, “परमेश्‍वर की प्रेरणा से कहे गए वचन साफ-साफ बताते हैं कि आगे ऐसा वक्‍त आएगा जब कुछ लोग गुमराह करनेवाले प्रेरित वचनों और दुष्ट स्वर्गदूतों की शिक्षाओं पर ध्यान देने की वजह से विश्‍वास को छोड़ देंगे।” (1 तीमुथियुस 4:1) उसकी यह चेतावनी एकदम सच साबित हुई। अमर आत्मा की शिक्षा “दुष्ट स्वर्गदूतों की शिक्षाओं” में से एक है। यह बाइबल में नहीं पायी जाती, बल्कि यह दूसरे धर्मों की शिक्षा है और इंसानी फलसफों पर आधारित है।

      हमारे लिए क्या ही खुशी की बात है कि हम पवित्र शास्त्र से सच्चाई जान सकते हैं। यीशु ने कहा था “तुम सच्चाई को जानोगे और सच्चाई तुम्हें आज़ाद करेगी।” (यूहन्‍ना 8:32) अगर हम पवित्र शास्त्र की शिक्षाओं का सही-सही ज्ञान लें, तो हम परमेश्‍वर का अनादर करनेवाली उन शिक्षाओं और परंपराओं से आज़ाद हो सकते हैं, जो दुनिया के ज़्यादातर धर्मों में सिखायी जाती हैं। पवित्र शास्त्र से मौत के बारे में सच्चाई जानकर हम उससे जुड़े रीति-रिवाज़ और अंधविश्‍वास से भी छुटकारा पा सकते हैं।—“जो अब नहीं रहे, वे किस दशा में हैं?” नाम का बक्स देखिए।

      दुनिया के बनानेवाले ने यह नहीं चाहा था कि इंसान इस धरती पर सिर्फ 70 या 80 साल जीए और फिर हमेशा के लिए किसी दूसरे लोक में चला जाए। वह चाहता था कि इंसान उसकी आज्ञा माने और धरती पर हमेशा जीए। उसका यह बढ़िया मकसद इंसानों के लिए उसके प्यार का सबूत है और यह मकसद कोई नाकाम नहीं कर सकता। (मलाकी 3:6) परमेश्‍वर ने अपने एक सेवक के ज़रिए हमें इस बात का यकीन दिलाया, “नेक लोग धरती के वारिस होंगे और उस पर हमेशा की ज़िंदगी जीएँगे।”—भजन 37:29.

      ज़िंदगी और मौत के बारे में शास्त्र में क्या लिखा है, इस बारे में और जानने के लिए बाइबल हमें क्या सिखाती है? किताब का अध्याय 6 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है, जो www.pr418.com पर उपलब्ध है।

      क्या इंसान हमेशा जी सकता है?

      हाल ही में वैज्ञानिकों ने समुद्र में कुछ पौधे खोज निकाले हैं। उनका मानना है कि ये पौधे हज़ारों साल से जीवित हैं और शायद ही धरती पर कोई पौधा या जीव इतने लंबे समय से मौजूद हो। ये पौधे पोसेडोनीआ ओशीऐनिका प्रजाति के हैं। यह एक किस्म की समुद्री घास है, जो स्पेन और कुप्रुस के बीच भूमध्य सागर के तल पर काफी बड़े इलाके में बिछी हुई है।

      अगर पौधे इतने लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं, तो क्या इंसान नहीं रह सकते? जीवों की उम्र का अध्ययन करनेवाले कुछ वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इंसानों की उम्र बढ़ायी जा सकती है। जैसे, इस विषय पर लिखी एक किताब में वैज्ञानिकों की कई आधुनिक खोजों के बारे में बताया गया है। उनकी खोज से इंसानों की उम्र बढ़ पाएगी या नहीं, यह तो वक्‍त ही बताएगा।

      जहाँ तक हमेशा जीने की बात है, यह वैज्ञानिकों की खोज पर निर्भर नहीं करता। शास्त्र बताता है कि यह सृष्टिकर्ता यहोवा के हाथ में है, जिसके बारे में लिखा है, “तू ही जीवन देनेवाला है।” (भजन 36:9) एक बार यीशु ने यहोवा से कहा, “हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए ज़रूरी है कि वे तुझ एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को जिसे तूने भेजा है, जानें।” (यूहन्‍ना 17:3) इसका मतलब है कि अगर हम परमेश्‍वर यहोवा और उसके बेटे यीशु को जानें और उनका कहा मानें, तो हम हमेशा जी पाएँगे और ढेरों खुशियाँ पाएँगे।

      समुद्री घास

      वैज्ञानिकों का मानना है कि समुद्री घास की इस प्रजाति के कुछ पौधे हज़ारों साल से जीवित हैं

      जो अब नहीं रहे, वे किस दशा में हैं?

      यीशु लाज़र को ज़िंदा कर रहा है

      बाइबल बताती है कि जिनकी मौत होती है, वे मिट्टी में मिल जाते हैं, मगर एक दिन उन्हें ज़िंदा किया जाएगा। (उत्पत्ति 3:19; यूहन्‍ना 5:28, 29) उन्हें कोई दर्द या तकलीफ नहीं होती, क्योंकि “मरे हुए कुछ नहीं जानते।” (सभोपदेशक 9:5) यीशु ने बताया कि मौत गहरी नींद की तरह है। (यूहन्‍ना 11:11-14) इस वजह से जो अब नहीं रहे, उनसे न तो हमें डरना है, न ही कोई भेंट चढ़ाकर उन्हें खुश करना है। वे हमारी कोई मदद नहीं कर सकते और हमें कोई नुकसान भी नहीं पहुँचा सकते, क्योंकि ‘कब्र में न कोई काम है, न सोच-विचार, न ज्ञान, न ही बुद्धि।’ (सभोपदेशक 9:10) जो मौत की नींद सो रहे हैं, उन्हें ज़िंदा कर परमेश्‍वर मौत को हमेशा के लिए खत्म कर देगा।—1 कुरिंथियों 15:26, 55; प्रकाशितवाक्य 21:4.

      हम बाइबल पर क्यों भरोसा कर सकते हैं?

      हम कैसे पूरा यकीन कर सकते हैं कि बाइबल में जो लिखा है, वह भरोसे के लायक है? आइए नीचे दी बातों पर गौर करें:

      • स्याही की दवात और पंख की कलम

        अनोखा लेखक: बाइबल में कुल 66 किताबें हैं, जिसे करीब 40 इंसानों ने 1,600 साल (ईसा पूर्व 1513 से ईसवी सन्‌ 98) के दौरान लिखा। इसके बावजूद हर किताब आपस-में मेल खाती है। इससे साबित होता है कि बाइबल का असली लेखक सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर है। उसने इंसानों को जो बताया, वही उन्होंने लिखा।

      • एक स्तंभ

        इतिहास के हिसाब से सही: बाइबल में दर्ज़ घटनाएँ इतिहास की घटनाओं से मेल खाती हैं। अँग्रेज़ी में लिखी किताब (एक वकील बाइबल की जाँच करता है) बताती है, ‘प्रेम-कहानियों, पौराणिक कथाओं और झूठे बयानों में बहुत एहतियात बरतकर घटनाओं के समय और जगह के बारे में मोटे तौर पर जानकारी दी जाती है, लेकिन बाइबल में एकदम ठीक-ठीक बताया गया है कि कोई घटना कब और कहाँ हुई।’

      • एक परमाणु

        विज्ञान के हिसाब से सही: बाइबल विज्ञान की किताब तो नहीं, लेकिन इसमें विज्ञान से जुड़ी बातों के बारे में बहुत पहले ही एकदम सही जानकारी दी गयी थी। जैसे, लैव्यव्यवस्था की किताब के अध्याय 13 और 14 में इसराएलियों को साफ-सफाई के बारे में और कुछ बीमार व्यक्‍तियों को दूसरों से अलग रखने के बारे में हिदायतें दी गयी थीं। इसके काफी सालों बाद जाकर लोगों को कीटाणुओं और बीमारियों के फैलने के बारे में पता चला। बाइबल में यह भी बताया गया है कि पृथ्वी गोल है और बिना सहारे के लटकी हुई है, जबकि वैज्ञानिकों को यह सच्चाई सदियों बाद पता चली।—अय्यूब 26:7; यशायाह 40:22.

      ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं, जो बाइबल के इस दावे को सच साबित करते हैं कि ‘पूरा शास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा गया है और सिखाने, समझाने, टेढ़ी बातों को सीध में लाने के लिए फायदेमंद है।’—2 तीमुथियुस 3:16.

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