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मन की तड़पसजग होइए!—2018 | अंक 3
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अपनों को खोने का गम कैसे सहें?
मन की तड़प
“मेरी पत्नी सोनियाa एक लंबे समय तक बीमारी से जूझती रही, फिर मौत ने उसे मुझसे जुदा कर दिया। ज़िंदगी के 39 साल हमने साथ गुज़ारे थे। सोनिया से बिछड़ने का गम सहने में मेरे दोस्तों ने मेरी बहुत मदद की। मैं भी पूरी कोशिश करता था कि खुद को व्यस्त रखूँ ताकि दुख से उबर पाऊँ। फिर भी करीब एक साल तक मैं सदमे में ही रहा। अचानक उसकी यादों से मेरा दिल तड़प उठता था और खुद को सँभालना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाता था। आज करीब तीन साल बाद भी कभी-कभी वही यादें अचानक मुझे सताने लगती हैं और मैं बेबस हो जाता हूँ।”—अजय।
क्या आपने भी किसी अपने को खोया है? अगर हाँ, तो शायद आप अजय की भावनाओं को अच्छी तरह समझ सकते हैं। ज़िंदगी में शायद ही किसी और बात से इतना दुख होता है, जितना कि अपनों को खोने पर होता है, फिर चाहे वह जीवन-साथी हो या रिश्तेदार या फिर एक जिगरी दोस्त। यहाँ तक कि जानकारों का भी कहना है कि अज़ीज़ों की मौत का दुख ज़िंदगी का सबसे बड़ा दुख है। मनोरोग-विज्ञान पर एक जानी-मानी पत्रिका कहती है कि किसी की मौत का दर्द सहना बरदाश्त से बाहर होता है, क्योंकि एक इंसान कुछ ऐसा खो देता है, जो उसे दोबारा कभी नहीं मिल सकता। इसलिए जब एक इंसान के साथ यह हादसा होता है, तो उसके मन में इस तरह के सवाल आ सकते हैं, ‘क्या मुझे सारी ज़िंदगी इसी तरह घुट-घुटकर जीना होगा? क्या मैं फिर कभी खुश रह पाऊँगा? मैं इस दुख से कैसे उबर सकता हूँ?’
इन्हीं सवालों के जवाब इस पत्रिका में दिए गए हैं। अगले लेख में बताया जाएगा कि अगर आपने कुछ समय पहले किसी अज़ीज़ को खोया है, तो आपको शायद कैसी भावनाओं से जूझना पड़ सकता है। बाद के लेखों में कुछ सुझाव दिए गए हैं, जिन पर अमल करने से आपको दुख से उबरने में कुछ मदद मिलेगी।
हम उम्मीद करते हैं कि जिन लोगों ने अपनों को खोया है, उन्हें आगे के लेखों से दिलासा मिलेगा और इसमें दिए सुझावों से मदद मिलेगी।
a इन लेखों की शृंखला में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
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क्या हो सकता है?सजग होइए!—2018 | अंक 3
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अपनों को खोने का गम कैसे सहें?
क्या हो सकता है?
सब इंसान एक जैसे नहीं होते, इसलिए एक करीबी की मौत पर सबका दुख एक जैसा नहीं होता। कुछ लोग अपना गम सीने में ही दबा लेते हैं तो कुछ लोग लाख कोशिश करने पर भी खुद को रोक नहीं पाते। उन्हें दूसरों को अपने दिल का हाल बताने से ही राहत मिलती है। दर्द सहने का सिर्फ एक तरीका नहीं है जिसे आज़माने से हर कोई इससे उबर पाएगा। एक इंसान दुख से कैसे उबर पाता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी परवरिश किस संस्कृति में हुई, उसका स्वभाव कैसा है, उसकी ज़िंदगी अब तक कैसी रही है और उसके अज़ीज़ की मौत कैसे हुई।
सदमा कितना गहरा हो सकता है?
अपने अज़ीज़ को खोने पर कइयों को पता नहीं रहता कि आगे चलकर उन्हें कैसी भावनाओं से जूझना पड़ सकता है। मगर कुछ भावनाएँ और मुश्किलें ऐसी होती हैं जिनसे सबको गुज़रना पड़ता है और कई बार इसका अंदाज़ा भी लगाया जा सकता है। आइए इनमें से कुछ पर गौर करें।
खुद को सँभालना बहुत मुश्किल हो जाता है। कुछ लोग अचानक फूट-फूटकर रोने लगते हैं, अपने अज़ीज़ को देखने के लिए तरसते हैं और उनका मिज़ाज अचानक बदल जाता है। ऊपर से अज़ीज़ की यादें और रात को उनके बारे में आनेवाले सपने उनका दर्द और बढ़ा देते हैं। पर शुरू में जब उन्हें अपने अज़ीज़ की मौत के बारे में पता चलता है तो वे बिलकुल दंग रह जाते हैं और यकीन नहीं करते। टीना के पति तन्मय की अचानक मौत हो गयी थी। वह कहती है, “शुरू में तो मैं बिलकुल सुन्न हो गयी। मैं रो भी नहीं पा रही थी। कभी-कभी मेरी ऐसी हालत हो जाती कि मैं ठीक से साँस भी नहीं ले पाती थी। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वे अब नहीं रहे।”
चिंता, गुस्सा और दोष की भावना हावी हो जाती है। आइवन कहता है, “हमारा बेटा ऐरिक जब 24 साल का था, तब उसकी मौत हो गयी। इसके बाद मैं और मेरी पत्नी सूज़न काफी समय तक गुस्से में रहे। अपने अंदर यह बदलाव देखकर हम खुद हैरान रह गए क्योंकि हम दोनों स्वभाव से गुस्सैल नहीं थे। हम दोषी भी महसूस करने लगे, क्योंकि हमें लगता था कि अपने बेटे को बचाने के लिए शायद हम कुछ और भी कर सकते थे।” अभिषेक की पत्नी जब लंबी बीमारी के बाद गुज़र गयी, तो उसे भी दोष की भावना सताने लगी। वह कहता है, “शुरू में मुझे लगा कि मैं एक बुरा इंसान हूँ, तभी ईश्वर ने मुझ पर इतना दुख आने दिया है। फिर मैं दोषी महसूस करने लगा क्योंकि मेरे साथ जो हुआ उसके लिए मैं ईश्वर को कसूरवार ठहरा रहा था।” पिछले लेख में जिस अजय की बात की गयी है, वह कहता है, “कभी-कभी मुझे अपनी पत्नी सोनिया पर गुस्सा आता था कि वह क्यों मुझे छोड़कर चली गयी। मगर फिर मुझे बुरा लगता था कि मैं ऐसा क्यों सोच रहा हूँ। आखिर इसमें उसकी क्या गलती थी।”
ठीक से सोच नहीं पाते। अपनों की मौत का दर्द सहनेवाले कभी-कभार ठीक से सोच नहीं पाते या किसी बात पर ध्यान नहीं लगा पाते। उन्हें लगता है कि उनका अज़ीज़ यहीं कहीं आस-पास है, वे मानो उसकी आवाज़ सुन सकते हैं और उसे देख सकते हैं। उन्हें किसी बात पर ध्यान लगाना या कुछ याद रखना मुश्किल लगता है। टीना कहती है, “कभी-कभी ऐसा होता कि कोई मुझसे बात कर रहा होता और मैं उस पर ध्यान नहीं दे पाती थी। मेरा दिमाग कहीं और होता था। तन्मय की मौत के वक्त जो-जो हुआ, वही सब मेरे दिमाग में घूमता रहता था। इससे मैं और परेशान हो जाती थी कि मैं किसी भी बात पर ध्यान नहीं दे पा रही हूँ।”
किसी से मिलना नहीं चाहते। उन्हें लोगों के बीच रहना कुछ अजीब-सा लगता है और वे चिढ़चिढ़े हो जाते हैं। अजय कहता है, “जब मेरे आस-पास शादीशुदा लोग होते, तो मुझे अजीब-सा लगता था। अविवाहित लोगों के बीच होते समय भी मुझे ऐसा ही महसूस होता था।” आइवन की पत्नी सूज़न कहती है, “जब लोग अपनी समस्याओं के बारे में शिकायत करते, तो मुझे वह सब सुनना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि हमारे मुकाबले उनकी समस्याएँ कुछ भी नहीं थीं। और जब लोग बताते कि उनके बच्चे कितनी तरक्की कर रहे हैं, तो मुझे खुशी तो होती थी, पर साथ ही अपने बेटे की याद से मन दुखी हो जाता था। हम दोनों जानते थे कि ज़िंदगी जैसे-तैसे चल जाएगी, पर लोगों की बातों से हम चिढ़ जाते थे, हमें अच्छा नहीं लगता था।”
सेहत बिगड़ जाती है। कई लोगों की भूख मिट जाती है, वज़न घट जाता है और ठीक से नींद नहीं आती। अरुण बताता है कि उसके पिता की मौत के एक साल तक उसके साथ क्या हुआ, “मुझे ठीक से नींद नहीं आती थी। हर रात एक ही समय पर आँख खुल जाती और मैं पापा की मौत के बारे में सोचने लगता था।”
अभिषेक की सेहत बिगड़ने लगी थी, मगर इसकी वजह साफ नज़र नहीं आ रही थी। वह कहता है, “एक डॉक्टर ने कई बार मेरी जाँच की और मुझे यकीन दिलाया कि मुझे कोई बीमारी नहीं है। मेरे शरीर में जो बीमारी के लक्षण दिख रहे थे, उसकी वजह शायद मेरी मायूसी थी।” धीरे-धीरे वे लक्षण दूर हो गए। मगर अभिषेक ने डॉक्टर से मिलकर सही किया। जो लोग दुखी होते हैं, उनमें रोग से लड़ने की ताकत कम हो जाती है, पहले से कोई बीमारी हो तो वह बढ़ जाती है या कोई नयी बीमारी लग जाती है।
ज़रूरी काम निपटाना मुश्किल लगता है। आइवन कहता है, “ऐरिक की मौत के बाद हमें काफी कुछ करना था। एक तो यह खबर अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को देनी थी और उसके बॉस और मकान-मालिक को भी बताना था। ढेर सारे कानूनी कागज़ात भी भरने थे। ऐरिक की एक-एक चीज़ के साथ क्या करें, क्या नहीं, यह सब सोचना था। हमें इतना कुछ करना था, मगर हम तन और मन से बिलकुल पस्त थे, हममें यह सब करने की हिम्मत नहीं थी।”
कुछ लोगों के लिए सबसे बड़ी मुश्किल तब आती है जब उन्हें वे काम करने होते हैं जो उनका अज़ीज़ करता था। टीना कहती है, “चाहे बैंक का काम हो या बिज़नेस का, सब तन्मय सँभालते थे। अब यह ज़िम्मेदारी मुझ पर आ गयी थी, जिससे मेरी चिंताओं का बोझ बढ़ गया। मैं सोचती थी, क्या मैं ये सारे काम ठीक से कर पाऊँगी?”
ऊपर बतायी गयी समस्याएँ पहाड़ जैसी लग सकती हैं, फिर चाहे बिगड़ती सेहत हो, मन का दुख हो या चिंताएँ। यह एक हकीकत है कि अपनों की मौत का दर्द सहना आसान नहीं होता, लेकिन जब हमें पहले से पता होता है कि कैसी मुश्किलें आ सकती हैं, तो दुख से उबरने में थोड़ी मदद मिल सकती है। यह भी याद रखिए कि यह दर्द सहनेवाले सब लोग एक-जैसी मुश्किलों का सामना नहीं करते। और कभी-कभी अपने अज़ीज़ की यादों से तड़प उठना भी स्वाभाविक है।
क्या मैं फिर कभी खुश रह पाऊँगा?
क्या हो सकता है? शुरू में दुख बरदाश्त के बाहर लगता है, मगर धीरे-धीरे कम हो जाता है। इसका यह मतलब नहीं कि एक इंसान अपने दुख से पूरी तरह उबर जाता है या उसे फिर कभी अपने अज़ीज़ की याद नहीं आती। लेकिन शुरू-शुरू में अचानक उसकी यादों से जिस तरह दिल तड़प उठता था, वह धीरे-धीरे कम होने लगता है। पर यह भी है कि अचानक किसी बात से वही यादें फिर से ताज़ा हो जाती हैं या साल के किसी दिन उसकी याद सताने लगती है, जैसे शादी की सालगिरह या उसकी मौत की सालगिरह पर। पर वक्त के साथ-साथ कई लोग सँभल जाते हैं और रोज़मर्रा के कामों में दोबारा ध्यान दे पाते हैं। खासकर अगर परिवारवालों और दोस्तों का साथ हो और एक व्यक्ति ज़रूरी कदम उठाए, तो वह समय के चलते जीना सीख लेता है।
कितना समय लगेगा? कुछ लोग चंद महीनों में ही सँभल जाते हैं जबकि कई लोगों को एक-दो साल लग जाते हैं। कुछ लोगों को और भी ज़्यादा समय लगता है।a अभिषेक कहता है, “मैं करीब तीन साल तक गहरी निराशा में डूबा रहा।”
सब्र रखिए। एक दिन में उतना ही कीजिए जितना आपसे होगा, कल की चिंता मत कीजिए। याद रखिए कि शुरू में जो गहरा दर्द होता है वह हमेशा नहीं रहेगा। हालाँकि शुरू में बहुत दुख होता है, फिर भी आप कुछ ऐसे कदम उठा सकते हैं जिससे आपका दुख थोड़ा कम हो और आपको उबरने में ज़्यादा समय न लगे। आइए जानें कि आप क्या कर सकते हैं।
अपने अज़ीज़ की यादों से तड़प उठना स्वाभाविक है
a कुछ लोगों को इतना गहरा सदमा लगता है कि उससे उबरने में कई साल लग जाते हैं। उन्हें किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लेने की ज़रूरत पड़ सकती है।
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गम से उबरने के लिए आप क्या कर सकते हैं?सजग होइए!—2018 | अंक 3
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अपनों को खोने का गम कैसे सहें?
गम से उबरने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
दुख से उबरने के लिए अगर आपको सलाह चाहिए, तो आपको ढेर सारी सलाह मिल जाएगी। कुछ बातें शायद आपके बहुत काम आएँ और कुछ शायद आपके कोई काम न आएँ। यह इसलिए है क्योंकि हर कोई अलग-अलग तरह की भावनाओं से गुज़रता है। जो सुझाव एक व्यक्ति के काम आता है, वह शायद दूसरे के काम न आए।
लेकिन कुछ ऐसी बुनियादी बातें हैं जिन पर अमल करने से बहुत-से लोगों को फायदा हुआ है। ये बातें एक प्राचीन किताब बाइबल के कुछ सिद्धांतों पर आधारित हैं, जो कि हर दौर के लोगों के काम आए हैं। कई जानकार भी इन्हीं बातों की सलाह देते हैं।
1: दोस्तों और रिश्तेदारों को न मत कहिए
कुछ जानकारों का मानना है कि दुख से उबरने के लिए दोस्तों और रिश्तेदारों का साथ बहुत ज़रूरी है। लेकिन कभी-कभार आप शायद अकेले रहना चाहें। ऐसे में अगर कोई आपकी मदद करना चाहे, तो भी शायद आप चिढ़ जाएँ। ऐसा महसूस करना स्वाभाविक है।
यह मत सोचिए कि आपको हरदम लोगों से घिरे रहना चाहिए। पर यह भी ध्यान रखिए कि आप दूसरों से कटे-कटे न रहें। आगे चलकर आपको उनकी ज़रूरत पड़ सकती है। प्यार से दूसरों को बताइए कि फिलहाल आपकी क्या ज़रूरत है और क्या नहीं।
जब आपको दूसरों की ज़रूरत हो, तो उनके साथ समय बिताइए और जब आपको अकेले रहने का मन करे, तो अकेले रहिए।
सिद्धांत: ‘एक से भले दो हैं। अगर उनमें से एक गिर जाए, तो उसका साथी उसे उठा लेगा।’—सभोपदेशक 4:9, 10.
2: खान-पान का ध्यान रखिए, थोड़ा व्यायाम कीजिए
संतुलित आहार लेने से तनाव कम होता है। कम वसावाला खाना और तरह-तरह की फल-सब्ज़ियाँ खाइए।
खूब पानी पीजिए और अच्छे तरल पदार्थ लीजिए।
अगर भूख नहीं लगती, तो कम अंतराल में थोड़ा-थोड़ा खाइए। आप डॉक्टर से पूछ सकते हैं कि आपको विटामिन वगैरह की गोलियाँ लेनी हैं या नहीं।a
तेज़ चलने या कोई और व्यायाम करने से आपको चिंता और गुस्से जैसी भावनाओं पर काबू पाने में मदद मिलेगी। व्यायाम करते वक्त आपको अपनी ज़िंदगी में हुए इस बदलाव के बारे में सोचने का वक्त मिल सकता है। या फिर आपके साथ जो हुआ है, उससे आप कुछ समय के लिए ध्यान हटा सकते हैं।
सिद्धांत: “कोई अपने शरीर से बैर नहीं करता। उल्टे, वह उसका पालन-पोषण करता है और उसकी देखभाल करता है।”—इफिसियों 5:29, वाल्द-बुल्के अनुवाद।
3: भरपूर नींद लीजिए
नींद लेना हर किसी के लिए ज़रूरी होता है लेकिन यह ऐसे लोगों के लिए और भी ज़रूरी है जो दुख से गुज़र रहे हैं, क्योंकि दुख की वजह से वे और ज़्यादा थक जाते हैं।
शराब और ऐसी चीज़ें बहुत कम लीजिए जिनमें कैफीन होता है जैसे चाय, कॉफी वगैरह। ये चीज़ें आपकी नींद पर बुरा असर कर सकती हैं।
सिद्धांत: “थोड़ा-सा आराम करना, बहुत ज़्यादा काम करने और हवा के पीछे भागने से कहीं अच्छा है।”—सभोपदेशक 4:6.
4: आपको जिस बात से मदद मिले, वह कीजिए
अपनों की मौत से जो दुख होता है, वह हर किसी का एक-जैसा नहीं होता। आपको अपने दुख से उबरने के लिए जिस बात से मदद मिल सकती है, वही कीजिए।
कइयों ने पाया है कि अपना दुख दूसरों को बताने से उन्हें कुछ हद तक सहने में मदद मिलती है। वहीं कुछ लोग अपना दर्द दूसरों को नहीं बताते। अपनी भावनाएँ दूसरों को बताने से दुख से उबरने में मदद मिलती है या नहीं, इस बारे में जानकारों की राय भी एक-जैसी नहीं है। अगर आप अपने दिल का हाल किसी को बताना चाहते हैं, मगर झिझक रहे हैं, तो किसी अच्छे दोस्त को थोड़ा-थोड़ा करके बता सकते हैं।
कुछ लोग रोने से अपने दुख से उबर पाते हैं, वहीं दूसरे इतना नहीं रोते फिर भी वे खुद को सँभाल लेते हैं।
सिद्धांत: “एक इंसान ही अपने दिल का दर्द जानता है।”—नीतिवचन 14:10.
5: बुरी आदतों में मत पड़िए
कुछ लोग अपने अज़ीज़ का गम भुलाने के लिए बहुत ज़्यादा शराब पीते हैं या ड्रग्स लेने लगते हैं। ऐसा करके वे अपने दुख पर काबू पाने के बजाय उसे और बढ़ा लेते हैं, क्योंकि ये चीज़ें भले ही पल-भर के लिए राहत दिलाएँ, मगर आगे चलकर इनके बुरे अंजाम हो सकते हैं। अपने मन का तूफान शांत करने के लिए कुछ ऐसा कीजिए जिससे आपको नुकसान न हो।
सिद्धांत: ‘आओ हम खुद को हर गंदगी से दूर करके शुद्ध करें।’—2 कुरिंथियों 7:1.
6: कभी-कभी दूसरी बातों में मन लगाइए
कई लोगों ने पाया है कि हर वक्त शोक में डूबे रहने के बजाय, कभी-कभी अपना ध्यान हटाने के लिए कुछ करें, तो उन्हें थोड़ी राहत मिलती है।
आप चाहे तो नए दोस्त बना सकते हैं, पुराने दोस्तों से ज़्यादा घुल-मिल सकते हैं, कोई नया हुनर सीख सकते हैं या फिर थोड़ा मन-बहलाव कर सकते हैं। इससे आपको कुछ देर के लिए राहत मिल सकती है।
समय के चलते हो सकता है आपका मन करे कि अपना ध्यान हटाने के लिए ऐसे काम और ज़्यादा करें। फिर धीरे-धीरे आपके मन के घाव अपने-आप भरते जाएँगे।
सिद्धांत: ‘हर चीज़ का एक समय होता है, रोने का समय और हँसने का समय, छाती पीटने का समय और नाचने का समय।’—सभोपदेशक 3:1, 4.
7: एक दिनचर्या का पालन कीजिए
जितनी जल्दी हो सके, पहले जैसी दिनचर्या शुरू कीजिए।
अगर आप नौकरी करने, सोने और दूसरे काम करने के लिए एक दिनचर्या का पालन करेंगे, तो आपकी ज़िंदगी दोबारा पटरी पर आ सकती है।
अगर आप अच्छे कामों में खुद को व्यस्त रखेंगे, तो आप काफी हद तक अपने दिल का दर्द सह पाएँगे।
सिद्धांत: “उसकी ज़िंदगी के दिन ऐसे बीत जाएँगे कि उसे पता भी नहीं चलेगा क्योंकि सच्चा परमेश्वर उसका ध्यान उन बातों पर लगाए रखेगा, जो उसके दिल को खुशी देती हैं।”—सभोपदेशक 5:20.
8: इतनी जल्दी बड़े-बड़े फैसले मत कीजिए
कई लोग अपने अज़ीज़ की मौत के बाद बहुत जल्द बड़े-बड़े फैसले कर लेते हैं। मगर बाद में उन्हें पछताना पड़ता है।
बड़े-बड़े फैसले करने के लिए हो सके तो कुछ समय इंतज़ार कीजिए। जैसे घर बदलने, नौकरी बदलने या अपने अज़ीज़ की चीज़ें दूसरों को देने या फेंकने में जल्दबाज़ी मत कीजिए।
सिद्धांत: “मेहनती की योजनाएँ ज़रूर सफल होंगी, लेकिन जल्दबाज़ी करनेवाले पर गरीबी छा जाएगी।”—नीतिवचन 21:5.
9: अपने अज़ीज़ की याद ताज़ा रखिए
कई लोगों ने पाया है कि अपने अज़ीज़ की याद ताज़ा रखने से उन्हें दुख पर काबू पाने में मदद मिलती है।
आप चाहे तो अपने अज़ीज़ की तसवीरें या उसकी याद दिलानेवाली चीज़ें इकट्ठी कर सकते हैं। या फिर एक डायरी में उससे जुड़ी घटनाओं या वाकयों के बारे में लिख सकते हैं, ताकि ये आपको याद रहें।
मीठी यादें ताज़ा करनेवाली चीज़ें एक जगह जमा कीजिए। बाद में जब आप थोड़ा सँभल जाएँगे, तो उन पर गौर कीजिए।
सिद्धांत: “ज़रा बीते दिन याद करो।”—व्यवस्थाविवरण 32:7.
10: कहीं घूमने जाइए
आप चाहे तो कहीं घूमने जा सकते हैं।
अगर ज़्यादा दिनों के लिए जाना मुमकिन नहीं है, तो आप एक-दो दिन के लिए कहीं जा सकते हैं। अपने मन को थोड़ा बहलाने के लिए दोस्तों के साथ पार्क जा सकते हैं या कहीं सैर पर जा सकते हैं।
चाहे थोड़े समय के लिए ही सही, रोज़मर्रा के कामों से हटकर कहीं जाने से आपके मन को थोड़ी राहत मिल सकती है।
सिद्धांत: “आओ, तुम सब अलग किसी एकांत जगह में चलकर थोड़ा आराम कर लो।”—मरकुस 6:31.
11: दूसरों की मदद कीजिए
दूसरों की मदद करने से आपको अच्छा लगेगा, फिर चाहे आप उनके लिए कोई छोटा-सा काम क्यों न करें।
आप सबसे पहले अपने दोस्तों और रिश्तेदारों की मदद कर सकते हैं, क्योंकि वे भी आपके अज़ीज़ की मौत से दुखी होंगे और उन्हें आपके जैसे हमदर्द की ज़रूरत होगी।
दूसरों की मदद करने और उन्हें दिलासा देने से आपको फिर से खुशी मिलेगी और आपको ऐसा नहीं लगेगा कि आपके जीने का कोई फायदा नहीं।
सिद्धांत: “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।”—प्रेषितों 20:35.
12: दोबारा सोचिए कि ज़िंदगी में क्या बातें मायने रखती हैं
जब हमारे अज़ीज़ की कमी खलती है, तो हम यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि ज़िंदगी में क्या बातें सच में मायने रखती हैं।
एक बार गहराई से सोचिए कि आप अब तक अपनी ज़िंदगी कैसे जीते आए हैं।
अगर आपको सही बातों को अहमियत देने के लिए कुछ फेरबदल करने हैं, तो कीजिए।
सिद्धांत: “दावतवाले घर में जाने से अच्छा है मातमवाले घर में जाना। क्योंकि मौत हर इंसान का अंत है और ज़िंदा लोगों को यह बात याद रखनी चाहिए।”—सभोपदेशक 7:2.
यह सच है कि दुनिया की कोई भी चीज़ आपका दर्द पूरी तरह मिटा नहीं सकती। लेकिन आपके जैसे कई लोगों ने जब अपने दुख से उबरने के लिए कुछ ज़रूरी कदम उठाए, तो उन्हें काफी दिलासा मिला। उन्हीं में से कुछ सुझाव इस लेख में बताए गए हैं। हालाँकि इसमें वे सारे सुझाव नहीं बताए गए हैं जिन्हें आज़माने से एक इंसान का दुख कम हो सकता है, फिर भी इनमें से कुछ बातों पर अमल करने से आपके दुखी मन को थोड़ी राहत ज़रूर मिलेगी।
a सजग होइए! किसी एक किस्म के इलाज का बढ़ावा नहीं देती।
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दुखी लोगों के लिए सच्चा दिलासासजग होइए!—2018 | अंक 3
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अपनों को खोने का गम कैसे सहें?
दुखी लोगों के लिए सच्चा दिलासा
अपनों को खोने का दर्द क्या होता है, इस बारे में हाल ही में कई लोगों ने खोजबीन की। जैसे हमने पहले देखा था, लोग कई तरह की सलाह देते हैं कि हम दुख से कैसे उबर सकते हैं। मगर देखा गया है कि सबसे बढ़िया सलाह वह है जो बाइबल के सिद्धांतों से मेल खाती है। इससे पता चलता है कि इस प्राचीन किताब की सलाह हर दौर के लिए फायदेमंद है। इसमें न सिर्फ दुख से उबरने के लिए अच्छी सलाह दी गयी है, बल्कि कुछ ऐसी जानकारी भी है, जो कहीं और नहीं मिलती। इससे दुखी लोगों को काफी दिलासा मिल सकता है।
हमारे अज़ीज़ कहीं दुख से तड़प नहीं रहे
शास्त्र कहता है, “मरे हुए कुछ नहीं जानते।” (सभोपदेशक 9:5) ‘उनके सारे विचार मिट गए हैं।’ (भजन 146:4) शास्त्र में मौत की तुलना गहरी नींद से की गयी है।—यूहन्ना 11:11.
परमेश्वर पर विश्वास होने से दिलासा मिलता है
बाइबल कहती है, “यहोवाa की आँखें नेक लोगों पर लगी रहती हैं और उसके कान उनकी मदद की पुकार सुनते हैं।” (भजन 34:15) प्रार्थना करना अपने मन का बोझ हलका करने या सोच पर काबू पाने का महज़ एक नुस्खा नहीं है। परमेश्वर को दिल का हाल बताने से धीरे-धीरे उसके साथ एक रिश्ता बनेगा और वह हमें दिलासा देगा।
आनेवाला कल सुनहरा होगा
शास्त्र में लिखा है कि आज जो लोग मौत की नींद सो रहे हैं, उन्हें भविष्य में धरती पर ज़िंदा किया जाएगा। यह बात शास्त्र में कई बार बतायी गयी है। उस वक्त परमेश्वर हमारी “आँखों से हर आँसू पोंछ देगा और न मौत रहेगी, न मातम, न रोना-बिलखना, न ही दर्द रहेगा।”—प्रकाशितवाक्य 21:3, 4.
कई लोगों ने यहोवा के इस वादे पर भरोसा किया है कि उनके अज़ीज़ दोबारा ज़िंदा होंगे। इस बात से उन्हें अपना दुख सहने की ताकत मिलती है। ऐन की मिसाल लीजिए, जिसके पति की मौत हो गयी थी। उन्होंने ज़िंदगी के 65 साल साथ गुज़ारे थे। ऐन कहती है, “बाइबल पढ़कर मुझे यकीन हो गया कि हमारे अज़ीज़ों को कहीं तड़पाया नहीं जा रहा है बल्कि वे परमेश्वर की याद में महफूज़ हैं और वह उन्हें एक दिन फिर से ज़िंदा करेगा। जब भी मुझे अपने पति की याद आती है, तो इन्हीं बातों से मुझे हिम्मत मिलती है। यही वजह है कि मैं अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा गम सह पा रही हूँ।”
टीना, जिसका ज़िक्र पहले किया गया था, कहती है, “तन्मय के जाने के बाद से मैंने हमेशा महसूस किया है कि यहोवा मुझे सहारा दे रहा है। दुख की घड़ी में परमेश्वर ने मुझे अपने हाथों से थाम लिया। मुझे उसके इस वादे पर पूरा यकीन है कि वह हमारे अज़ीज़ों को दोबारा ज़िंदा करेगा। इसी से मुझे जीने का हौसला मिलता है ताकि मैं उस दिन तक खुद को सँभाल सकूँ जब मैं अपने तन्मय को दोबारा देखूँगी।”
लाखों लोगों ने बाइबल में बतायी बातों से दिलासा पाया है। उन्हें पूरा भरोसा है कि इसमें लिखी बातें सच हैं। शायद आपको लगे कि ये सब खयाली बातें हैं, ये सच नहीं हो सकतीं। लेकिन इस बात के पक्के सबूत हैं कि बाइबल में दी गयी सलाह और इसमें लिखे वादे भरोसे के लायक हैं। क्यों न आप इन सबूतों को जानने की कोशिश करें? क्या पता आपको भी अपना गम सहने की ताकत मिले!
जानिए कि हमारे जो अपने नहीं रहे, उन्हें कैसी ज़िंदगी मिलेगी?
हमारी वेबसाइट jw.org में इस विषय पर कुछ वीडियो हैं
बाइबल में लिखा है कि एक दिन हम अपने बिछड़े हुए अज़ीज़ों को दोबारा अपनी बाँहों में भर लेंगे
मरने के बाद इंसान का क्या होता है? बाइबल इस बारे में जो सिखाती है उसे जानकर बहुत दिलासा मिलता है
क्या आप खुशखबरी सुनना चाहेंगे?
आज हर कहीं बुरी खबरें ही सुनने को मिलती हैं। ऐसे में क्या हमें कहीं कोई खुशखबरी सुनने को मिल सकती है?
शास्त्र से जानिए > सुख और शांति में देखिए
a बाइबल के मुताबिक परमेश्वर का नाम यहोवा है।
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