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w19 अप्रैल पेज 26-30
जवानी के दिनों में विंस्टन और पैम समुंदर किनारे एक चट्टान पर बैठे हैं

जीवन कहानी

हमें “बेशकीमती मोती” मिल गया!

विंस्टन और पैमला पेन के साथ बातचीत

भाई विंस्टन और बहन पैमला (पैम) ऑस्ट्रलेशिया शाखा दफ्तर में सेवा करते हैं। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में कई अच्छे पल देखे हैं। मगर उन्हें कुछ मुश्‍किलों से भी गुज़रना पड़ा। अलग-अलग संस्कृति और रहन-सहन में खुद को ढालना और अपने अजन्मे बच्चे की मौत का गम सहना, उनके लिए आसान नहीं था। फिर भी उन्होंने यहोवा और भाई-बहनों के लिए अपना प्यार कम नहीं होने दिया और न ही प्रचार सेवा के लिए अपनी खुशी कम होने दी। आइए कुछ देर के लिए उनसे बातें करें।

भाई विंस्टन, हमें पता है कि आप सच्चाई की तलाश कर रहे थे। इस बारे में हमें थोड़ा और बताएँगे?

मैं ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड में पला-बढ़ा। हमारा परिवार किसी धर्म को नहीं मानता था। हमारा एक बड़ा फार्म था और दूर-दूर तक कोई दूसरा घर नहीं था। इस वजह से घरवालों के सिवा किसी और से मिलना-जुलना नहीं होता था। जब मैं करीब 12 साल का हुआ, तो मेरे अंदर ईश्‍वर को जानने की इच्छा पैदा हुई। मैं उसके बारे में सच्चाई जानना चाहता था, इसलिए मैंने उससे प्रार्थना की। कुछ समय बाद मैं घर से दूर नौकरी की तलाश में गया और दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के ऐडिलेड शहर में मुझे नौकरी मिल गयी। फिर जब मैं छुट्टियाँ मनाने सिडनी गया, तो मेरी मुलाकात पैम से हुई, उस वक्‍त मैं 21 साल का था। पैम ने मुझे ब्रिटिश-इसराएल धार्मिक समूह के बारे में बताया। इस समूह का दावा है कि ब्रिटिश लोग इसराएल के दस गोत्रों से निकले हैं, जिनसे मिलकर उत्तर का राज्य बना था। इस राज्य के लोग ईसा पूर्व 740 में बँधुआई में चले गए थे। सिडनी से जब मैं वापस ऐडिलेड गया, तो एक दिन मैंने अपने साथ काम करनेवाले से इसी विषय पर बात की। वह यहोवा के साक्षियों से बाइबल अध्ययन कर रहा था। हमने कई घंटे बात की और उस दौरान हमारी ज़्यादातर चर्चा साक्षियों के विश्‍वास के बारे में हुई। कुछ ही घंटो में मैं समझ गया कि यह उसी प्रार्थना का जवाब है, जो मैंने बचपन में की थी। मुझे अपने सृष्टिकर्ता और उसके राज के बारे में सच्चाई पता चल गयी! मुझे जिस “बेशकीमती मोती” की तलाश थी, वह मुझे मिल ही गया!​—मत्ती 13:45, 46.

बहन पैम, आपको भी बचपन से सच्चाई की तलाश थी। आपको वह मोती कैसे मिला?

मैं न्यू साउथ वेल्स के कॉफ्स हार्बर कसबे में पली-बढ़ी। हमारा परिवार बहुत धार्मिक था। मेरे मम्मी-पापा और नाना-नानी ब्रिटिश-इसराएल धार्मिक समूह की शिक्षाएँ मानते थे। मुझे, मेरी बड़ी बहन, मेरे छोटे भाई, साथ ही मेरे मामा और मौसी के बच्चों को भी छुटपन से सिखाया गया था कि ब्रिटिश लोगों पर ईश्‍वर की खास आशीष रहती है। लेकिन मैं यह नहीं मानती थी और मैं अब भी ईश्‍वर को जान नहीं पायी थी। जब मैं 14 साल की हुई, तो मैं ऐंग्लिकन, बैपटिस्ट, सैवेन्थ-डे ऐडवेंटिस्ट, कई चर्चों में गयी, मगर ईश्‍वर को जानने की मेरी भूख फिर भी नहीं मिटी।

कुछ समय बाद मेरा परिवार सिडनी जाकर बस गया। वहाँ मैं विंस्टन से मिली, जो छुट्टियाँ मनाने आए थे। जैसे इन्होंने बताया, धार्मिक विषयों पर हमारी बातचीत का नतीजा यह हुआ कि ये साक्षियों के साथ अध्ययन करने लगे। इसके बाद हम एक-दूसरे को खत लिखने लगे, लेकिन इनके खत आयतों से भरे होते थे! सच कहूँ तो शुरू-शुरू में मैं चिंता में पड़ गयी, मुझे इन पर गुस्सा भी आने लगा। मगर धीरे-धीरे मैं समझ गयी कि यह जो कह रहे हैं, वही सच्चाई है।

सन्‌ 1962 में मैं ऐडिलेड चली गयी, ताकि मैं विंस्टन के करीब रह सकूँ। इन्होंने मेरे रहने का इंतज़ाम टॉमस और जैनिस स्लोमन नाम के पति-पत्नी के साथ कर दिया। वे दोनों साक्षी थे और पापुआ न्यू गिनी में मिशनरी रह चुके थे। उन्होंने मेरी अच्छे-से देखभाल की। उस वक्‍त मैं सिर्फ 18 साल की थी, लेकिन उन्होंने यहोवा को जानने में मेरी बहुत मदद की। मैं भी बाइबल का अध्ययन करने लगी और जल्द ही मुझे यकीन हो गया कि मुझे सच्चाई मिल गयी है। फिर मेरी और विंस्टन की शादी हो गयी। शादी के फौरन बाद हम दोनों पूरे समय की सेवा करने लगे, जिससे हमें ढेरों आशीषें मिलीं। हालाँकि इस दौरान मुश्‍किलें तो आयीं, पर इस सेवा की वजह से सच्चाई के बेशकीमती मोती के लिए हमारी कदर और बढ़ गयी।

भाई विंस्टन, यहोवा की सेवा में आपका शुरूआती अनुभव कैसा रहा?

नक्शा जिसमें दिखाया गया है कि विंस्टन और पैम ने कहाँ-कहाँ सर्किट काम किया; कुछ द्वीपों के डाक टिकट; तूवालू में फ्यूनाफ्यूटी द्वीप

1. नक्शे में दिखाया गया है कि हमने कहाँ-कहाँ सर्किट काम किया

2. कुछ द्वीपों के डाक टिकट। किरिबाती और तुवालू को पहले गिल्बर्ट और एलिस द्वीप के नाम से जाना जाता था

3. तुवालू राष्ट्र में खूबसूरत फ्यूनाफ्यूटी द्वीप। हमने इस द्वीप का दौरा किया, उस वक्‍त तक यहाँ कोई मिशनरी नहीं था

यहोवा ने हमारे लिए ‘मौके के कई दरवाज़े’ खोले, ताकि हम बढ़-चढ़कर उसकी सेवा कर सकें। (1 कुरिं. 16:9) पहला दरवाज़ा शादी के कुछ ही समय बाद खुला। भाई जैक पोर्टर और उनकी पत्नी रौसलिन ने हमें पायनियर सेवा करने का बढ़ावा दिया। भाई जैक हमारी छोटी-सी मंडली के सर्किट निगरान थे। (आज मैं और भाई जैक ऑस्ट्रलेशिया की शाखा समिति में एक साथ सेवा कर रहे हैं।) मैंने और पैम ने पाँच साल तक पायनियर सेवा की और हमें उसमें खूब मज़ा आया। फिर 29 साल की उम्र में मुझे दक्षिण प्रशांत महासागर के द्वीपों में सर्किट निगरान के तौर पर सेवा करने के लिए कहा गया। ये द्वीप उस वक्‍त फिजी शाखा दफ्तर की निगरानी में आते थे। इन द्वीपों के नाम हैं, अमेरिकन समोआ, समोआ, किरिबाती, नौरू, निउ, टोकेलाऊ, टोंगा, तुवालू और वनुआतु।

उन दिनों दूर-दराज़ के कुछ द्वीपों में लोग साक्षियों को शक की नज़र से देखते थे। इस वजह से हमें सतर्क रहना पड़ता था और सूझ-बूझ से काम लेना होता था। (मत्ती 10:16) मंडलियाँ ज़्यादा बड़ी नहीं थीं, इसलिए कई जगह भाई-बहन हमें अपने घर नहीं ठहरा पाते थे। हमें द्वीप के दूसरे लोगों के साथ रहने का इंतज़ाम करना पड़ता था। अकसर वे तैयार हो जाते थे और हमारी अच्छी देखभाल करते थे।

आपको अनुवाद काम में काफी दिलचस्पी है। यह कैसे हुआ?

विंस्टन पेन समोआ में प्राचीनों का एक स्कूल चलाते हुए

समोआ में प्राचीनों का एक स्कूल चलाते हुए

उस समय टोंगा द्वीप पर भाइयों के पास टोंगन भाषा में हमारी कुछ ही पुस्तिकाएँ और परचे थे। वे प्रचार में लोगों के साथ सत्य जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है  की अँग्रेज़ी किताब से अध्ययन करते थे। इस वजह से जब चार हफ्तों के लिए प्राचीनों का एक स्कूल चला, तो यह तय हुआ कि इस किताब का टोंगन भाषा में अनुवाद किया जाएगा। द्वीप के तीन प्राचीन इस काम के लिए तैयार हो गए, इसके बावजूद कि उनकी अँग्रेज़ी ज़्यादा अच्छी नहीं थी। पैम ने अनुवाद की हुई पूरी किताब टाइप की और फिर हमने छपाई के लिए उसे अमरीका के शाखा दफ्तर भेज दिया। उस पूरे काम में करीब आठ हफ्ते लगे। हालाँकि उस किताब का अनुवाद बहुत अच्छा नहीं था, फिर भी उससे टोंगन बोलनेवाले बहुत-से लोगों ने सच्चाई सीखी। मैं और पैम अनुवादक तो नहीं हैं, लेकिन उस अनुभव से अनुवाद काम में हमारी दिलचस्पी बढ़ गयी।

बहन पैम, क्या द्वीपों पर रहना ऑस्ट्रेलिया के जैसा ही था?

विंस्टन और पैम एक बस के पास खड़े हैं, वे सर्किट काम के दौरान इस बस में भी रहे

सर्किट काम के दौरान हम इस बस में भी रहे

बिलकुल नहीं, बहुत बड़ा फर्क था! कुछ द्वीपों पर मच्छर, चूहे, सड़ी गरमी, उमस, बीमारी, बहुत कुछ सहना पड़ता था। कभी-कभी भरपेट खाना मिलना भी मुश्‍किल होता था। लेकिन हर दिन शाम को जब हम अपने फाले  से दूर-दूर तक फैला समुंदर देखते थे, तो काफी सुकून मिलता था। फाले  दरअसल समोअन भाषा में छप्परवाले घर को कहते हैं, जिसमें दीवारें नहीं होतीं। चाँदनी रात में नारियल के पेड़ दूर से दिखायी देते थे और समुंदर में चाँद की परछाई देखकर दिल खुश हो जाता था। हमें मनन करने और यहोवा से प्रार्थना करने का अच्छा मौका मिलता था। इस तरह हम अपना मन अपनी परेशानियों से हटाकर अच्छी बातों पर लगा पाते थे।

हमें बच्चों से बहुत प्यार था। उनके साथ हमें बड़ा मज़ा आता था। वे खासकर दूसरे देशों से आए गोरे लोगों को देखकर हैरान रह जाते थे और उन्हें घेर लेते थे। एक बार हम निउ द्वीप में मंडली का दौरा करने आए थे। एक छोटे लड़के ने विंस्टन के हाथ पर अपना हाथ फेरते हुए कहा, “आपके रोएँ बहुत अच्छे हैं।” दरअसल उसने पहले कभी किसी के हाथ पर इतने बाल नहीं देखे थे, इसलिए उसने “बाल” कहने के बजाय “रोएँ” कह दिया।

वहाँ लोगों की गरीबी देखकर हम तड़प उठते थे। वे इतनी खूबसूरत जगह में रहते थे, लेकिन उनके पास न तो इलाज की अच्छी सुविधा थी, न ही पीने के लिए साफ पानी। फिर भी हमारे भाई-बहन इन बातों को लेकर ज़्यादा चिंता नहीं करते थे। वे इस बात से खुश रहते थे कि उनका परिवार उनके साथ है, उनके पास उपासना की जगह है और वे यहोवा की तारीफ कर पाते हैं। उनसे हमने सीखा कि हमें ज़रूरी बातों को ज़िंदगी में पहली जगह देना है और अपना जीवन सादा रखना है।

बहन पैम, कभी-कभी आपको खुद पानी भरना और खाना बनाना होता था। यह आप कैसे कर पाए?

टोंगा द्वीप में पैम एक टब और बाल्टी की मदद से कपड़े धो रही है

टोंगा में पैम कपड़े धो रही है

मैं अपने पिताजी की शुक्रगुज़ार हूँ, उन्होंने मुझे कई बातें सिखायीं जो आगे चलकर मेरे बहुत काम आयीं। जैसे, खाना बनाने के लिए आग जलाना और फिर उस पर खाना बनाना। उन्होंने मुझे कम चीज़ों में गुज़ारा करना भी सिखाया। एक बार हम किरिबाती में थे। हम छप्परवाले एक छोटे-से घर में ठहरे हुए थे। वहाँ की दीवारें बाँस की बनी थीं और फर्श पिसे हुए मूंगों से बना था। खाना बनाने के लिए मैंने ज़मीन में एक गड्‌ढा खोदा और उसके अंदर नारियल के छिलके डालकर आग जलायी। पानी के लिए मुझे दूसरी औरतों के साथ कतार में खड़े रहना होता था। ये औरतें पानी निकालने के लिए छ: फुट लंबा डंडा इस्तेमाल करती थीं, जिसकी छोर पर एक रस्सी लगी होती थी। यह दिखने में मछली पकड़नेवाली बंसी जैसा था। फर्क बस इतना था कि इसके आखिर में काँटे के बजाय एक डिब्बा लगा होता था। सभी औरतें बारी-बारी से यह डंडा पानी में डालती थीं और सही मौके पर अपना हाथ इस तरह घुमाती थीं कि डिब्बा एक तरफ पलट जाता था और उसमें पानी भर जाता था। मुझे लगा कि यह आसान है, लेकिन जब मेरी बारी आयी तब मुझे पता चला कि यह कितना मुश्‍किल है। मैंने कई बार कोशिश की, लेकिन हर बार डिब्बा पानी पर तैरने लगता था। यह देखकर सारी औरतें हँसने लगीं, मगर फिर उनमें से एक ने मेरी मदद की। वहाँ के लोग बहुत अच्छे थे और हमेशा मदद करने के लिए तैयार रहते थे।

द्वीपों में सेवा करने से आप दोनों को बहुत खुशी मिली। कुछ खास यादें हैं जो आप हमें बताना चाहेंगे?

विंस्टन: हमें वहाँ के कुछ दस्तूर सीखने में वक्‍त लगा। उदाहरण के लिए, जब भाई-बहन हमें खाने पर बुलाते थे, तो हमारे सामने सारा खाना परोस देते थे। शुरू-शुरू में हमें पता नहीं था कि हमें कुछ खाना उनके लिए छोड़ना है। इस वजह से हमारे सामने जो कुछ रखा जाता था, हम सब खा लेते थे। लेकिन बाद में जब हमें वहाँ का दस्तूर समझ में आया, तो हम उनके लिए भी खाना छोड़ देते थे। उस दौरान हमसे कई भूल हुईं, लेकिन भाई-बहनों ने उन्हें अनदेखा किया। जब हम हर छ: महीने बाद सर्किट दौरे पर उनसे मिलते थे, तो वे हमें देखकर बहुत खुश होते थे। उन दिनों, उन्हें अपनी मंडली और हमारे अलावा दूसरे भाई-बहनों से संगति करने के ज़्यादा मौके नहीं मिलते थे।

निउ द्वीप पर विंस्टन प्रचार समूह की अगुवाई कर रहे हैं और सभी लोग मोटर-साइकिल पर हैं

निउ द्वीप पर प्रचार की अगुवाई करते हुए

हमारे दौरे से द्वीप के लोगों को भी अच्छी गवाही मिली। पहले उन्हें यकीन नहीं होता था कि यहोवा के साक्षी दुनिया-भर में फैले हैं। लेकिन जब उन्होंने देखा कि हम विदेशी द्वीप के साक्षियों से मिलने आए हैं, तो उन्हें एहसास हुआ कि साक्षी वाकई सब जगह फैले हैं और एक-दूसरे की परवाह करते हैं। इस बात का उन पर अच्छा असर हुआ।

पैम: मेरी कुछ मीठी यादें किरिबाती द्वीप से जुड़ी हैं। वहाँ की मंडली में बहुत कम भाई-बहन थे और उसमें सिर्फ एक प्राचीन था, जिसका नाम सीनाकाई मटेरा था। वह हमारी देखभाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ता था। एक दिन वह छोटी टोकरी में मुर्गी का एक अंडा ले आया। उसने कहा, “यह खास आप लोगों के लिए है।” उन दिनों मुर्गी का अंडा खाना, दावत खाने जैसा था! उस भाई की दरियादिली हमारे दिल को छू गयी।

बहन पैम, हमें पता है कि आपने अपना बच्चा खोया है। उस मुश्‍किल घड़ी का सामना आपने कैसे किया?

सन्‌ 1973 में मुझे पता चला कि मैं माँ बननेवाली हूँ। उस वक्‍त हम दक्षिण प्रशांत महासागर के द्वीपों में सेवा कर रहे थे। हमने वापस ऑस्ट्रेलिया जाने का फैसला किया। वहाँ चार महीने बाद मैंने गर्भ में पल रहे अपने बच्चे को खो दिया। मुझे बहुत धक्का लगा और विंस्टन भी बहुत दुखी हुए। धीरे-धीरे यह दर्द कम तो होने लगा, पर पूरी तरह से नहीं। फिर कुछ सालों बाद जब मैंने 15 अप्रैल, 2009 की प्रहरीदुर्ग  पढ़ी, तब जाकर मैं अपने गम से उबर पायी। उसमें “पाठकों के प्रश्‍न” लेख में यह सवाल दिया गया था: “अगर कोई बच्चा माँ के गर्भ में ही मर जाता है, तो क्या उसके पुनरुत्थान की कोई आशा है?” हमें भरोसा मिला कि यह मामला यहोवा के हाथ में है, जो हमेशा सही काम करता है। जब वह अपने बेटे को “शैतान के कामों को नष्ट” करने का हुक्म देगा, तब वह हमारे सभी ज़ख्म भरेगा, जो इस दुष्ट दुनिया ने हमें दिए हैं। (1 यूह. 3:8) उस लेख से सच्चाई के “बेशकीमती मोती” के लिए हमारे दिल में कदरदानी और बढ़ गयी। सच में, अगर हमारे पास परमेश्‍वर के राज की आशा न होती, तो पता नहीं हम क्या करते?

इस दर्दनाक हादसे के बाद हमने दोबारा पूरे समय की सेवा शुरू की। पहले हम कुछ महीनों के लिए ऑस्ट्रेलिया बेथेल में थे, फिर हमने दोबारा सर्किट काम शुरू किया। चार साल तक हमने सिडनी और न्यू साउथ वेल्स के दूर-दूराज़ इलाकों की मंडलियों का दौरा किया। फिर 1981 में हमें ऑस्ट्रेलिया शाखा दफ्तर में बुलाया गया और हम तब से यहीं सेवा कर रहे हैं।

भाई विंस्टन, दक्षिण प्रशांत महासागर के द्वीपों में आपने जो सेवा की, क्या उससे आपको ऑस्ट्रलेशिया शाखा समिति में सेवा करने में कोई मदद मिली?

बहुत मदद मिली। दरअसल पहले ऑस्ट्रेलिया को निर्देश दिया गया कि वह अमेरिकन समोआ और समोआ द्वीपों की निगरानी करे। फिर न्यूज़ीलैंड के शाखा दफ्तर को ऑस्ट्रेलिया से मिला दिया गया और यह ऑस्ट्रलेशिया शाखा दफ्तर के नाम से जाना गया। अब इस शाखा दफ्तर की निगरानी में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिकन समोआ, समोआ, कुक द्वीप-समूह, न्यूजीलैंड, निउ, तिमोर-लेस्टे, टोकेलाऊ और टोंगा आते हैं। इनमें से कई जगहों में मुझे सेवा करने का सम्मान मिला था। वहाँ के वफादार भाई-बहनों के साथ काम करके मैंने उनके बारे में बहुत कुछ जाना। इस वजह से मैं आज शाखा समिति में अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभा पाता हूँ।

ऑस्ट्रलेशिया शाखा दफ्तर में विंस्टन और पैम पेन

ऑस्ट्रलेशिया शाखा दफ्तर में विंस्टन और पैम

आखिर में मैं एक बात कहना चाहता हूँ। इन सालों के दौरान मुझे और पैम को एहसास हुआ है कि सच्चाई के “बेशकीमती मोती” की तलाश बड़े लोग ही नहीं, नौजवान भी करते हैं। कई बार उनकी यह तलाश तब भी जारी रहती है, जब परिवार का कोई और सदस्य दिलचस्पी नहीं दिखाता। (2 राजा 5:2, 3; 2 इति. 34:1-3) हमें पूरा यकीन है कि यहोवा हम सबसे बहुत प्यार करता है और चाहता है कि बूढ़े-जवान सभी ज़िंदगी पाएँ।

करीब 50 साल पहले जब मैंने और पैम ने सच्चाई की तलाश शुरू की थी, तब हमें पता नहीं था कि इससे हमें कितनी आशीषें मिलेंगी। सच्चाई का यह मोती सचमुच बेशकीमती है और दुनिया का कोई भी खज़ाना इसकी बराबरी नहीं कर सकता। हमने ठान लिया है कि हम इस अनमोल मोती को हमेशा संजोकर रखेंगे।

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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