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“सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” सच्चा और फायदेमंद (2 इतिहास–यशायाह)
bsi06 पेज 5-7

बाइबल की किताब नंबर 15—एज्रा

लेखक: एज्रा

लिखने की जगह: यरूशलेम

लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु.पू. 460

कब से कब तक का ब्यौरा: सा.यु.पू. 537–लगभग 467

भविष्यवाणी के मुताबिक यरूशलेम को 70 साल तक उजाड़ पड़े रहना था, और अब वह मियाद पूरी होने जा रही थी। यह सच है कि बाबुल अपने गुलामों को कभी आज़ाद न करने के लिए मशहूर था, मगर अब यह साबित होनेवाला था कि यहोवा का कहा वचन बाबुल की ताकत से कहीं ज़्यादा शक्‍तिशाली है। यहोवा के लोगों का छुटकारा नज़दीक था। यहोवा का मंदिर जिसे तबाह कर दिया गया था वह दोबारा बनाया जाता और उसकी वेदी पर प्रायश्‍चित्त के बलिदान चढ़ाना फिर से शुरू होता। यरूशलेम में फिर से यहोवा के सच्चे उपासकों की जयजयकार और परमेश्‍वर की स्तुति के बोल सुनायी देते। यिर्मयाह ने भविष्यवाणी में बताया था कि यरूशलेम कितने समय तक उजाड़ पड़ा रहता और यशायाह ने बताया था कि बंधुओं का छुटकारा किस तरह मुमकिन होता। यशायाह ने तो फारस के राजा कुस्रू का नाम भी बताया था कि वह ‘यहोवा का ठहराया हुआ चरवाहा’ होगा, जो घमंडी बाबुल को, जी हाँ, बाइबल के इतिहास की तीसरी विश्‍वशक्‍ति को उसकी जगह से गिरा देगा।—यशा. 44:28; 45:1, 2; यिर्म. 25:12.

2 ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक सा.यु.पू. 539, अक्टूबर 5 की रात को बाबुल पर कहर टूटा। उस वक्‍त, बेलशस्सर और उसके प्रधान अपने पिशाच देवताओं का गुणगान करते हुए जाम पर जाम पीए जा रहे थे। झूठे देवताओं के नाम पर ऐयाशी के अलावा, वे यहोवा के मंदिर के पवित्र बर्तनों में शराब पी रहे थे! और उसी रात बाबुल के सर्वनाश की भविष्यवाणी को पूरा करते हुए कुस्रू बिलकुल सही वक्‍त पर बाबुल की शहरपनाह के बाहर आ पहुँचा!

3 यह तारीख, यानी सा.यु.पू. 539 एक ऐसी अहम तारीख है, जिसके बारे में दुनिया का इतिहास और बाइबल में दिया इतिहास दोनों एकमत हैं। कुस्रू ने बाबुल के शासक के नाते पहले साल के दौरान, “अपने समस्त राज्य में यह प्रचार करवाया” कि यहूदियों को यरूशलेम जाकर यहोवा का भवन दोबारा बनाने की इजाज़त है। ज़ाहिर है कि यह फरमान सा.यु.पू. 538 के आखिर में या सा.यु.पू. 537 की शुरूआत में जारी किया गया था।a यहूदी लोगों में से बचे हुए वफादार जन यरूशलेम वापस लौटे और सही वक्‍त पर उन्होंने वेदी खड़ी की और सा.यु.पू. 537 के ‘सातवें महीने’ में (यानी तिशरी, जो सितंबर-अक्टूबर का समय है) पहले बलिदान चढ़ाए। नबूकदनेस्सर ने जिस महीने यहूदा और यरूशलेम को उजाड़ दिया था, उसके पूरे 70 साल बाद ये बलिदान चढ़ाए गए।—एज्रा 1:1-3; 3:1-6.

4 बहाली! यही है एज्रा किताब का विषय। इस किताब का एक भाग ऐसे लिखा गया है जैसे लेखक आँखों देखा हाल बता रहा हो। यह भाग है अध्याय 7 की 27वीं आयत से लेकर अध्याय 9 तक। इससे साफ पता चलता है कि इस किताब का लेखक एज्रा ही था। पहला और दूसरा इतिहास किताब की तरह, इस किताब को भी लिखने के लिए एज्रा हर तरह से काबिल था। वजह यह है कि वह ‘मूसा की व्यवस्था का निपुण शास्त्री’ था और अपने विश्‍वास के मुताबिक काम करनेवाला इंसान था। उसने “यहोवा की व्यवस्था का अर्थ बूझ लेने, और उसके अनुसार चलने, और [इसे] सिखाने के लिये अपना मन लगाया था।” (एज्रा 7:6, 10) जहाँ इतिहास की किताब खत्म होती है, वहीं से एज्रा की किताब आगे की घटनाएँ बयान करती है। इसलिए माना जाता है कि यह किताब भी, इतिहास की दोनों किताबों की तरह सा.यु.पू. 460 के आस-पास ही लिखी गयी थी। इस किताब में 70 साल का इतिहास दर्ज़ है। यानी जब यहूदी जाति टूटकर यहाँ-वहाँ बिखर चुकी थी और “मौत की संतान” (NW, फुटनोट) होने का दंड भुगत रही थी, उस वक्‍त से लेकर मंदिर बनकर तैयार होने और एज्रा के यरूशलेम लौटने पर याजकवर्ग को शुद्ध किए जाने तक का इतिहास इस किताब में पाया जाता है।—एज्रा 1:1; 7:7; 10:17; भज. 102:20.

5 एज्रा एक इब्रानी नाम है और इसका मतलब है “मदद।” एज्रा और नहेमायाह की किताबें पहले एक ही किताब थीं। बाद में यहूदियों ने इस चर्मपत्र को दो भागों में बाँटा और उन्हें पहला एज्रा और दूसरा एज्रा नाम दिया। मगर आजकल की इब्रानी भाषा की बाइबलों में इन दो किताबों को एज्रा और नहेमायाह कहा जाता है और बाकी भाषाओं की बाइबलों में भी इन्हें यही नाम दिया गया है। एज्रा किताब का कुछ हिस्सा (4:8 से 6:18 और 7:12-26) अरामी भाषा में लिखा गया था और बाकी इब्रानी भाषा में। एज्रा को दोनों भाषाओं में महारत हासिल थी।

6 आज ज़्यादातर विद्वान इस बात को कबूल करते हैं कि एज्रा किताब में दिया इतिहास सच्चा है। बाइबल किताबों के संग्रह में इसकी जगह के बारे में, डब्ल्यू. एफ. एल्ब्राइट अपने लेख, पुरातत्व के बीस साल बाद बाइबल (अँग्रेज़ी) में लिखते हैं: “इस तरह पुरातत्व से मिली जानकारी से साबित हो गया है कि यिर्मयाह, यहेजकेल, एज्रा और नहेमायाह की किताबें पवित्रशास्त्र का हिस्सा हैं और इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है; इन किताबों में घटनाओं का जो ब्यौरा दिया गया है और जिस क्रम में इन्हें पेश किया गया है, उसे भी सच बताया गया है।”

7 हालाँकि मसीही यूनानी शास्त्र के लेखकों ने न तो एज्रा की किताब का कहीं हवाला दिया है, न ही सीधे-सीधे इसका ज़िक्र किया है, फिर भी बाइबल के संग्रह में इसकी जगह पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। इस किताब में, इतिहास के उस दौर तक यहूदियों के साथ यहोवा के व्यवहार का लेखा-जोखा है, जब इब्रानी भाषा में लिखी बाइबल की सभी किताबों को इकट्ठा करके उनकी एक सूची बनायी गयी थी। यहूदी परंपरा के मुताबिक यह काम काफी हद तक एज्रा ने ही किया था। इसके अलावा, एज्रा की किताब दिखाती है कि बहाली की सभी भविष्यवाणियाँ कैसे सच निकलीं और इस तरह यह किताब साबित करती है कि यह ईश्‍वर-प्रेरित शास्त्र का एक हिस्सा है और उनके साथ पूरी तरह से मेल भी खाती है। साथ ही, इस किताब में शुद्ध उपासना का सम्मान करने और यहोवा परमेश्‍वर के महान नाम की महिमा करने पर ज़ोर दिया गया है।

क्यों फायदेमंद है

14 सबसे पहले, एज्रा किताब इसलिए फायदेमंद है क्योंकि यह दिखाती है कि यहोवा की भविष्यवाणियों का एक-एक शब्द कैसे अचूक तरीके से पूरा होता है। यिर्मयाह ने यरूशलेम की तबाही की सही-सही भविष्यवाणी करने के अलावा, यह भी बताया था कि 70 साल बाद यह नगर फिर से बसाया जाएगा। (यिर्म. 29:10) सही वक्‍त पर, यहोवा ने अपनी निरंतर प्रेम-कृपा दिखायी और बचे हुए वफादार यहूदियों को वादा किए गए देश में वापस ले आया ताकि वे वहाँ पर सच्ची उपासना जारी रख सकें।

15 मंदिर के दोबारा बनने से, यहोवा के लोगों के बीच उसकी उपासना को फिर से वह गौरव मिला जो पहले कभी हुआ करता था। और यह मंदिर इस बात का सबूत था कि जो लोग यहोवा के पास लौट आते हैं और सच्ची उपासना करने की मनसा रखते हैं, वह उन पर दया दिखाता है और बड़े ही हैरतअँगेज़ तरीके से उन्हें आशीषें देता है। हालाँकि यह मंदिर, सुलैमान के मंदिर जैसा आलीशान नहीं था, फिर भी इससे परमेश्‍वर की मरज़ी ज़रूर पूरी हुई। इस मंदिर में पहले मंदिर जितना सोना-चाँदी नहीं लगाया गया था। आध्यात्मिक मायने में भी इस मंदिर की शान पहले के मंदिर से कम थी, क्योंकि इसमें वाचा के संदूक जैसी कुछ खास चीज़ें नहीं थीं।b सुलैमान के मंदिर का उद्‌घाटन जितनी शानो-शौकत से किया गया था, वैसे जरुब्बाबेल के बनाए इस मंदिर का उद्‌घाटन नहीं किया गया। सुलैमान के मंदिर में जितने गाय-बैल और भेड़ों का बलिदान चढ़ाया जाता था, उसका एक प्रतिशत भी इस मंदिर में नहीं चढ़ाया जाता था। पिछला मंदिर परमेश्‍वर की महिमा के बादल से भर गया था और यहोवा ने आग भेजकर होमबलियों को भस्म किया था, मगर इस मंदिर में ऐसा कुछ नहीं हुआ। फिर भी, दोनों मंदिरों ने सच्चे परमेश्‍वर यहोवा की उपासना को गौरव और महिमा देने का खास मकसद पूरा किया।

16 मूसा ने जो निवासस्थान बनाया, सुलैमान, जरुब्बाबेल और हेरोदेस ने जो मंदिर बनवाए और उनमें जो खासियतें थीं वे किसी और चीज़ की महज़ एक तसवीर थीं। वे उस “सच्चे तम्बू” की छाया थीं “जिसे किसी मनुष्य ने नहीं, बरन प्रभु [यहोवा] ने खड़ा किया था।” (इब्रा. 8:2) आत्मिक मंदिर, मसीह के प्रायश्‍चित्त करनेवाले बलिदान की बिना पर यहोवा के पास आकर उसकी उपासना करने का इंतज़ाम है। (इब्रा. 9:2-10, 23) यहोवा के महान आत्मिक मंदिर की महिमा अपने आप में अनूठी है, इसकी खूबसूरती और मनोहरता का कोई जवाब नहीं। इसका गौरव कभी कम नहीं होगा क्योंकि यह ईंट-पत्थर के किसी भवन से कहीं ज़्यादा महान है।

17 एज्रा की किताब में ऐसे सबक हैं जो मसीहियों के लिए आज बहुत अहमियत रखते हैं। इसमें दिखाया है कि यहोवा के लोगों ने उसके काम के लिए कैसे दिल खोलकर दान दिया था। (एज्रा 2:68; 2 कुरि. 9:7) यह देखकर हमारे हौसले बुलंद होते हैं कि जब परमेश्‍वर के लोग उसकी महिमा करने के लिए इकट्ठे होते हैं, तो परमेश्‍वर की आशीष उन पर होती है और वह हर हाल में उनकी ज़रूरतें पूरी करता है। (एज्रा 6:16, 22) नतिनों और यहोवा को माननेवाले दूसरे विदेशियों ने बहुत बढ़िया मिसाल रखी, क्योंकि वे बचे हुए यहूदियों के साथ मिलकर यरूशलेम की ओर चल पड़े ताकि यहोवा की उपासना को अपनी तरफ से पूरा-पूरा समर्थन दे सकें। (2:43, 55) यह भी गौर कीजिए कि जब यहूदियों को बताया गया कि पड़ोसी देश की विधर्मी लड़कियों से शादी करके उन्होंने बहुत बड़ा पाप किया है, तो उन्होंने नम्रता से पश्‍चाताप किया। (10:2-4) बुरी सोहबत की वजह से यहूदियों को परमेश्‍वर की नाराज़गी सहनी पड़ी। (9:14, 15) दूसरी तरफ, परमेश्‍वर का काम हर्ष और जोश से करने पर उन्हें उसकी मंज़ूरी और आशीष मिली।—6:14, 21, 22.

18 हालाँकि बहाली के बाद, यहोवा की तरफ से यरूशलेम में उसके सिंहासन पर कोई राजा नहीं बैठा, फिर भी इस बहाली ने अपने वतन लौटनेवाले यहूदियों में यह उम्मीद जगायी कि वक्‍त आने पर यहोवा अपने वादे के मुताबिक दाऊद के वंश से एक राजा खड़ा करेगा। अपने वतन में बहाल होने पर अब यहूदियों के लिए यह मुमकिन था कि वे पवित्र वचनों की और यहोवा की उपासना की तब तक हिफाज़त करें जब तक मसीहा प्रकट नहीं होता। अगर ये शेष यहूदी पूरे विश्‍वास के साथ अपने वतन नहीं लौटते, तो मसीहा किसके पास आता? वाकई, एज्रा की किताब इतिहास की वे खास घटनाएँ बयान करती है जिनकी वजह से मसीहा और राजा का प्रकट होना मुमकिन हुआ! इस किताब का अध्ययन हमारे लिए बहुत ही फायदेमंद है।

[फुटनोट]

a इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌, भाग 1, पेज 452-4, 458.

b इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌, भाग 2, पेज 1079.

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