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अध्याय 24

शब्दों का चुनाव

आपको क्या करने की ज़रूरत है?

ऐसे शब्द इस्तेमाल कीजिए जिनमें आदर और प्यार झलके, जो आसानी से समझ आएँ, जो आपकी बातचीत में रंग भर दें और जिनसे सही जोश और भावनाएँ उभरकर सामने आएँ। शब्दों का इस्तेमाल, व्याकरण के नियमों के अनुसार कीजिए।

इसकी क्या अहमियत है?

इससे पता चलता है कि आप अपने संदेश की कदर करते हैं, साथ ही आप जिन लोगों से बात करते हैं, उनके बारे में कैसा महसूस करते हैं। शब्दों से तय होता है कि लोग आपकी बातें सुनकर आगे क्या करेंगे।

शब्दों से हम अपनी बात बड़े ही ज़बरदस्त तरीके से कह पाते हैं। लेकिन हमारे शब्द कोई खास मकसद तभी पूरा कर पाएँगे जब हम बहुत सोच-समझकर उनका चुनाव करेंगे। जो शब्द एक मौके पर सही लग सकता है, उसी शब्द का दूसरे हालात में इस्तेमाल करने से शायद गलत असर पड़े। एक शब्द भले ही मज़ेदार हो, लेकिन उसका भी अगर गलत इस्तेमाल किया जाए, तो वह “कटुवचन” बन सकता है। ऐसे शब्द बोलना यही दिखाएगा कि हम दूसरों की भावनाओं की कदर नहीं करते, उनका लिहाज़ नहीं करते। कुछ शब्द दोहरा अर्थ रखते हैं, जिनमें से एक अर्थ बुरा या अपमानजनक होता है। (नीति. 12:18; 15:1) दूसरी तरफ, “भली बात” या हौसला बढ़ानेवाला शब्द सुनने पर सुननेवाले का दिल खुश हो जाता है। (नीति. 12:25) सही शब्द ढूँढ़ने के लिए मेहनत की ज़रूरत होती है, फिर चाहे एक इंसान कितना भी बुद्धिमान क्यों न हो। बाइबल हमें बताती है कि बुद्धिमान राजा, सुलैमान को भी इस बात का एहसास था कि “मनभावने शब्द” और “सच्ची बातें” खोजना ज़रूरी है।—सभो. 12:10.

कई भाषाओं में, कुछ ऐसे शब्द होते हैं जो सिर्फ बड़े-बुज़ुर्गों या ऊँचे पद के लोगों से बात करते वक्‍त इस्तेमाल किए जाते हैं, जबकि अपने हमउम्र या छोटी उम्र के लोगों के लिए दूसरे शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं। और जो इस अदब-कायदे को नहीं मानते, उसे बदतमीज़ माना जाता है। साथ ही, एक इलाके में सिर्फ दूसरों को आदर दिखाने के लिए अगर कुछ शब्द इस्तेमाल करने का रिवाज़ है, तो उन्हें खुद के लिए इस्तेमाल करना तहज़ीब नहीं समझी जाती। दूसरों का आदर करने के मामले में, दुनिया के कायदे-कानून या रिवाज़ जो माँग करते हैं, बाइबल का स्तर उनसे कहीं ऊँचा है। बाइबल, मसीहियों को उकसाती है कि वे ‘सब का आदर करें।’ (1 पत. 2:17) जो लोग सच्चे दिल से, सबका आदर करते हैं, वे हर उम्र के लोगों से आदर की भावना के साथ बात करते हैं।

यह सच है कि बहुत-से लोग, जो सच्चे मसीही नहीं हैं, वे अपमानजनक और ओछी भाषा बोलते हैं। वे शायद सोचते हैं कि कठोर शब्द इस्तेमाल करने से उनकी बातचीत दमदार होगी। या हो सकता है उन्हें अपनी भाषा के तमाम शब्दों का सही ज्ञान ही न हो। जिन लोगों को, यहोवा के मार्गों के बारे में सीखने से पहले, ऐसी भाषा बोलने की आदत थी, उनके लिए अब ऐसी आदत छोड़ना बहुत मुश्‍किल हो सकता है। लेकिन, यह नामुमकिन नहीं है। परमेश्‍वर की आत्मा, एक इंसान को अपनी बातचीत का तौर-तरीका बदलने में ज़रूर मदद कर सकती है। लेकिन, खुद उस इंसान के अंदर भी यह इच्छा होनी चाहिए कि वह अच्छे शब्दों का ज्ञान बढ़ाए और ऐसे शब्द सीखे जो सलोने हों, जिनसे सुननेवालों की उन्‍नति हो। और फिर उसे इन शब्दों का अपनी बोली में बार-बार इस्तेमाल करना चाहिए।—रोमि. 12:2; इफि. 4:29; कुलु. 3:8.

आसानी से समझ आनेवाली भाषा। अच्छी भाषा का एक बुनियादी नियम यह है कि वह सुननेवालों को आसानी से समझ आनी चाहिए। (1 कुरि. 14:9) अगर आपके शब्द, सुननेवालों को आसानी से समझ नहीं आते, तो उन्हें ऐसा लगेगा मानो आप कोई विदेशी भाषा बोल रहे हैं।

कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो किसी एक पेशे के लोगों के लिए खास अर्थ रखते हैं। वे शायद अपने पेशे में उन शब्दों का रोज़ इस्तेमाल करते हों। लेकिन अगर आप उन्हीं शब्दों का गलत जगह पर इस्तेमाल करेंगे, तो शायद आपकी बात दूसरों को समझ न आए। इतना ही नहीं, बोलचाल की भाषा इस्तेमाल करते वक्‍त भी, अगर आप बारीकियों पर ध्यान देते-देते बेवजह उलझ जाएँगे, तो सुननेवाले किसी और बात के बारे में सोचने लगेंगे।

जो वक्‍ता अपने सुननेवालों की परवाह करता है, वह ऐसे शब्द इस्तेमाल करेगा जिन्हें कम पढ़े-लिखे लोग भी समझ सकें। यहोवा की मिसाल पर चलकर, वह “दीन हीन” का भी खयाल रखेगा। (अय्यू. 34:19, NW) अगर उसे कोई ऐसा शब्द बोलना ज़रूरी लगता है जिसका मतलब ज़्यादातर लोगों को नहीं मालूम, तो उसे सरल वाक्यों में उसका इस्तेमाल करना चाहिए ताकि उस शब्द का मतलब साफ ज़ाहिर हो।

सोच-समझकर, सरल शब्दों का इस्तेमाल करने से बातचीत ज़्यादा असरदार होती है। छोटे-छोटे वाक्य और सरल शब्द, समझने में आसान होते हैं। और बीच-बीच में आप लंबे वाक्य भी बोल सकते हैं ताकि बातचीत कटी-कटी-सी न लगे। लेकिन जो विचार आप खासकर चाहते हैं कि वे सुननेवालों को याद रह जाएँ, उन्हें सरल शब्दों और छोटे वाक्यों में बोलिए।

रंग भरनेवाले और सही अर्थ देनेवाले शब्दों का इस्तेमाल। अच्छे शब्दों की कोई कमी नहीं है। हर मौके पर एक ही तरह के शब्द बोलने के बजाय, अच्छा होगा अगर आप अलग-अलग किस्म के शब्दों का इस्तेमाल करें। तब आपकी बातचीत दिलचस्प और अर्थपूर्ण होगी। आप अपने शब्दों का ज्ञान कैसे बढ़ा सकते हैं?

पढ़ाई करते वक्‍त, ऐसे शब्दों पर निशान लगाइए जिनका सही-सही मतलब आपको नहीं मालूम। और अगर आपकी भाषा में शब्दकोश है, तो उसमें इन शब्दों का मतलब देखिए। ऐसे चंद शब्द चुनकर, सही मौके पर अपनी बातचीत में उनका इस्तेमाल करने की पूरी कोशिश कीजिए। लेकिन ध्यान दें कि आप उनका सही उच्चारण करें और ऐसे हालात में उनका इस्तेमाल करें जब उनका मतलब आसानी से समझ आए, न कि सिर्फ लोगों का ध्यान आपकी तरफ खिंच जाए। अपने शब्दों का ज्ञान बढ़ाने से आपकी बातचीत में रंगत आ जाएगी। लेकिन सावधान, जब कोई शब्दों का गलत उच्चारण करता या उनका गलत इस्तेमाल करता है, तो लोगों को ऐसा लग सकता है कि वह जो कह रहा है, उसका मतलब उसे खुद नहीं मालूम।

हम अपने शब्दों का ज्ञान इसलिए नहीं बढ़ाना चाहते कि लोग हमारी तारीफ करें बल्कि इसलिए कि हम और भी बढ़िया तरीके से सिखा सकें। जब एक वक्‍ता घुमा-फिराकर बात करता है और लंबे-चौड़े शब्द बोलता है, तो लोगों का ध्यान भाषण से हटकर वक्‍ता पर चला जाता है। लेकिन हमारा मकसद है, सुननेवालों को ऐसी जानकारी देना जिससे उन्हें फायदा हो और वे मन लगाकर सुनें। बाइबल का यह नीतिवचन याद रखें: “बुद्धिमान की जीभ ज्ञान का उचित बयान करती है।” (नीति. 15:2, NHT) अच्छे और सही शब्दों का इस्तेमाल करने से लोग हमारी बात आसानी से समझ पाएँगे, और हमारी बातचीत नीरस और उबाऊ नहीं होगी बल्कि लोगों को ताज़गी देगी और उनमें जोश भर देगी।

शब्दों का ज्ञान बढ़ाने के साथ-साथ, सही शब्द का इस्तेमाल करने पर भी ध्यान दीजिए। हो सकता है, दो शब्दों का मिलता-जुलता मतलब हो, मगर उनमें हल्का-सा फर्क हो, इसलिए वे अलग-अलग हालात में इस्तेमाल होते हैं। अगर आप यह फर्क जान लेंगे, तो आपकी बोली साफ होगी और आप अपने शब्दों के इस्तेमाल से किसी को ठेस नहीं पहुँचाएँगे। अच्छी भाषा बोलनेवालों की बात ध्यान से सुनिए। कुछ शब्दकोश, हर शब्द के नीचे उसके पर्यायवाची शब्द (शब्द जिनका मतलब मिलता-जुलता है, मगर एक नहीं है) और विपरीत अर्थ रखनेवाले शब्द (जिनका मतलब काफी हद तक उलटा होता है) देते हैं। इसलिए आप एक ही विचार के लिए, न सिर्फ अलग-अलग शब्द बल्कि ऐसे कई शब्द पाएँगे जिनके अर्थ में हल्का-सा फर्क है। ये शब्द ऐसे वक्‍त पर बहुत काम आते हैं, जब आप किसी खास हालात के लिए सही शब्द की खोज कर रहे हों। किसी नए शब्द का इस्तेमाल शुरू करने से पहले, यह ज़रूर जानिए कि उसका मतलब क्या है, उसका उच्चारण कैसे किया जाता है और वह कब इस्तेमाल होता है।

स्पष्ट और पक्की जानकारी देनेवाले शब्दों से सुननेवालों के सामने एक साफ तसवीर उभर आती है, जबकि अस्पष्ट शब्दों से ऐसा नहीं होता। एक वक्‍ता शायद कहे: “उस वक्‍त, बहुत-से लोग बीमार पड़ गए थे।” या वह यूँ कह सकता है: “पहले विश्‍वयुद्ध के बाद, कुछ ही महीनों के अंदर, करीब 2,10,00,000 लोग स्पैनिश इन्फ्लुएंज़ा के शिकार होकर मर गए थे।” तो देखिए कि जब एक वक्‍ता साफ-साफ बताता है कि “उस वक्‍त” का मतलब किस वक्‍त है, “बहुत-से लोग” का मतलब कितने लोग हैं और लोग किस वजह से “बीमार पड़ गए,” तो इन जानकारी से कितना फर्क पड़ता है! इस ढंग से अपनी बात कहने के लिए आपको अपने विषय से जुड़ी घटनाओं की सही जानकारी होनी चाहिए, साथ ही आपको शब्दों का ध्यान से चुनाव करना चाहिए।

सही शब्द इस्तेमाल करने से आप, बहुत सारे शब्द बोले बिना ही सीधे अपनी बात कह सकेंगे। बहुत सारे शब्दों से अकसर असली बात छिप जाती है। सरल भाषा की वजह से अहम जानकारी को समझना और उसे याद रखना आसान हो जाता है। इससे सही जानकारी देने में मदद मिलती है। यीशु मसीह जब सिखाता था, तो उसकी खासियत यह थी कि वह अपनी बात सरल भाषा में बताता था। उसकी मिसाल से सीखिए। (मत्ती 5:3-12 और मरकुस 10:17-21 में दर्ज़ मिसालें देखिए।) सोच-समझकर, चंद शब्दों में अपनी बात कहने की आदत डालिए।

शब्द जो जोश, भावनाएँ ज़ाहिर करें और जान डाल दें। शब्दों का ज्ञान बढ़ाते वक्‍त न सिर्फ नए शब्द खोजिए बल्कि ऐसे शब्द भी ढूँढ़िए जिनके खास मतलब होते हैं। मिसाल के लिए, ऐसी क्रियाएँ जिनसे जोश ज़ाहिर हो; ऐसे विशेषण जो भाषण में जान डाल दें; ऐसे शब्द जिनसे प्यार दिखे, दया का एहसास मिले या बात की गंभीरता नज़र आए।

बाइबल में, ऐसी अर्थपूर्ण भाषा इस्तेमाल करने की ढेरों मिसालें दर्ज़ हैं। भविष्यवक्‍ता आमोस के ज़रिए, यहोवा ने आग्रह किया: “हे लोगो, बुराई को नहीं, भलाई को ढूंढ़ो . . . बुराई से बैर और भलाई से प्रीति रखो।” (आमो. 5:14, 15) भविष्यवक्‍ता शमूएल ने राजा शाऊल के सामने यह ऐलान किया: “आज यहोवा ने इस्राएल के राज्य को फाड़कर तुझ से छीन लिया।” (1 शमू. 15:28) यहेजकेल से बात करते वक्‍त, यहोवा ने ऐसे ज़बरदस्त शब्द इस्तेमाल किए कि उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता: “इस्राएल का सारा घराना ढीठ और कठोर मन का है।” (यहे. 3:7) इस्राएल ने कैसा घोर पाप किया है, इस पर ज़ोर देते हुए यहोवा ने सवाल किया: “क्या मनुष्य परमेश्‍वर को लूट सकता है? फिर भी तुम मुझे लूटते हो!” (मला. 3:8, NHT) दानिय्येल ने बाबुल में हुई विश्‍वास की एक परीक्षा का वर्णन बड़े ही जानदार शब्दों में किया जब शद्रक, मेशक और अबेदनगो ने नबूकदनेस्सर की बनायी मूरत की उपासना करने से इनकार कर दिया, तो “नबूकदनेस्सर का क्रोध भड़क उठा” (NHT) और उसने यह आज्ञा दी कि उन तीनों को बाँधकर “धधकते हुए भट्ठे” में डाल दिया जाए। हमें इसका एहसास दिलाने के लिए कि वह भट्ठा कितना गरम था, दानिय्येल कहता है कि राजा ने अपने आदमियों को हुक्म दिया कि वे भट्ठे को ‘सातगुणा अधिक धधका दें,’ इसलिए वह भट्ठा इतना गरम हो गया कि राजा के आदमी उसके पास जाते ही भस्म हो गए। (दानि. 3:19-22) यीशु ने अपनी मौत के कुछ ही दिन पहले, यरूशलेम के लोगों से दर्द भरे दिल से कहा: “कितनी ही बार मैं ने चाहा कि जैसे मुर्ग़ी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे कर लूं, परन्तु तुम ने न चाहा। देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है।”—मत्ती 23:37, 38; सभी तिरछे टाइप हमारे।

सही शब्दों का चुनाव करने से आप सुननेवालों के मन में साफ तसवीर बना पाएँगे। अगर आप ऐसे शब्द इस्तेमाल करेंगे जिनसे सुननेवालों की इंद्रियाँ जाग उठें, तो आप जिन चीज़ों के बारे में कहते हैं, उसे वे मानो खुद “देख” और “छू” सकेंगे, आप खाने की जिन चीज़ों की बात करते हैं, उन्हें वे “चख” और “सूँघ” सकेंगे, आप जिन आवाज़ों का वर्णन करते हैं, जिन लोगों के कहे शब्दों का हवाला देंगे उन्हें वे “सुन” सकेंगे। इस तरह जब आप एक जीती-जागती तसवीर पेश करेंगे, तो सुननेवाले आपकी बातों में खो जाएँगे।

जिन शब्दों में किसी बात की जीती-जागती तसवीर पेश की जा सकती है, ऐसे शब्द लोगों को हँसा या रुला सकते हैं। ऐसे शब्दों से एक हताश इंसान के दिल में उम्मीद की किरण और जीने की तमन्‍ना जाग सकती है और उसका दिल अपने सिरजनहार के लिए प्यार से भर सकता है। बाइबल में भजन 37:10, 11, 34; यूहन्‍ना 3:16; प्रकाशितवाक्य 21:4, 5 जैसी आयतों के शब्द भविष्य के लिए आशा देते हैं और इन शब्दों ने दुनिया भर में बहुत-से लोगों की ज़िंदगी कायापलट कर दी है।

जब आप बाइबल और उन साहित्यों को पढ़ते हैं, जिन्हें “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने तैयार किया है, तब आप पाएँगे कि उनमें तरह-तरह के शब्द और वाक्यांश इस्तेमाल किए जाते हैं। (मत्ती 24:45) ऐसे शब्दों को सिर्फ पढ़कर भूल मत जाइए। उनमें से ऐसे शब्द चुनिए जो आपको बहुत अच्छे लगते हैं और रोज़मर्रा की बातचीत में उनका इस्तेमाल कीजिए।

व्याकरण के नियमों के मुताबिक बोलना। कुछ लोग पाते हैं कि उनकी बोली कभी-कभी व्याकरण के नियमों के मुताबिक सही नहीं होती। वे अपने व्याकरण में सुधार कैसे कर सकते हैं?

अगर आप किसी स्कूल में पढ़ते हैं, तो आपके पास अभी बढ़िया मौका है कि अच्छा व्याकरण और शब्दों का बढ़िया चुनाव करना सीखें, इस मौके का पूरा-पूरा इस्तेमाल कीजिए। अगर आप व्याकरण के किसी नियम की वजह ठीक-ठीक नहीं जानते, तो अपने टीचर से पूछिए। सिर्फ उतनी ही जानकारी मत लीजिए जितनी से आपका काम चल जाए। व्याकरण सीखने के लिए आपके पास एक ऐसा कारण है जो दूसरे विद्यार्थियों के पास नहीं है। वह ये कि आप सुसमाचार प्रचार करने में माहिर होना चाहते हैं।

लेकिन अगर आप बड़े हैं और फिलहाल आप एक ऐसी भाषा बोल रहे हैं जो आपकी मातृभाषा नहीं है, तो आप क्या कर सकते हैं? या हो सकता है, आपको अपनी भाषा में स्कूल में ज़्यादा पढ़ने का मौका ना मिला हो। अगर ऐसा है, तो निराश मत होइए। इसके बजाय, सुसमाचार की खातिर अपनी भाषा में सुधार करने के लिए जी-जान से मेहनत कीजिए। व्याकरण के ज़्यादातर नियमों के बारे हम, दूसरों को बात करते सुनकर ही सीखते हैं। इसलिए जब तजुर्बेकार भाई भाषण देते हैं, तो ध्यान से सुनिए। बाइबल और बाइबल की समझ देनेवाले साहित्य पढ़ते वक्‍त गौर कीजिए कि वाक्यों की रचना कैसी है, किन शब्दों को एक-साथ इस्तेमाल किया गया है और किस संदर्भ में उनका इस्तेमाल किया गया है। फिर ऐसी अच्छी मिसालों के मुताबिक अपनी बातचीत को ढालिए।

जाने-माने फिल्मी सितारे और गायकार ऐसे शब्द और ऐसी बोली इस्तेमाल करते हैं जो व्याकरण के नियमों के मुताबिक सही नहीं होते। और लोग अकसर उन्हीं की तरह बोलने लगते हैं। अकसर ड्रग्स बेचनेवालों और दूसरे अपराधी या बदचलन लोगों की अपनी एक अलग भाषा होती है और उनके लिए कुछ आम शब्दों का अलग ही मतलब होता है। हम मसीहियों के लिए इनमें से किसी भी तरह के लोगों की बोली अपनाना सही नहीं होगा। वरना हमारी गिनती भी उन्हीं दुनियावी लोगों में होगी और ऐसा दिखेगा मानो हमारी ज़िंदगी भी उन्हीं के जैसी है।—यूह. 17:16.

हर रोज़ अच्छी भाषा बोलने की आदत डालिए। अगर आप रोज़मर्रा की बातचीत में लापरवाही दिखाएँगे, तो आप खास मौकों पर अच्छे ढंग से बोलने की उम्मीद भी नहीं कर सकते। लेकिन अगर आप हर दिन की ज़िंदगी में अच्छी भाषा बोलेंगे, तो स्टेज से भाषण देते वक्‍त या दूसरों को सच्चाई की गवाही देते वक्‍त भी बड़ी आसानी और सहजता से अच्छी भाषा बोल सकेंगे।

सुधार कैसे करें

  • इस पाठ में दिए सुझावों में से सिर्फ एक चुनिए और फिर एक महीने या उससे ज़्यादा समय तक उस पर अमल करने का लक्ष्य रखिए।

  • जब आप पढ़ाई कर रहे हों, तब इसी लक्ष्य को हमेशा मन में रखिए। किसी तजुर्बेकार वक्‍ता का भाषण सुनते वक्‍त भी यह लक्ष्य ध्यान में रखिए। ऐसे शब्दों को लिख लीजिए जिन्हें आप अपनी बातचीत में शामिल करना चाहेंगे। एक-दो दिन के अंदर, उनमें से हर शब्द का इस्तेमाल कीजिए।

अभ्यास: इस हफ्ते के प्रहरीदुर्ग अध्ययन या कलीसिया के पुस्तक अध्ययन की तैयारी करते वक्‍त, ऐसे चंद शब्द चुनिए जिनका मतलब आपको ठीक से नहीं मालूम। अगर आपके पास शब्दकोश है, तो उसमें उनका मतलब देखिए या फिर किसी ऐसे शख्स के साथ उनके बारे में चर्चा कीजिए जो शब्दों का अच्छा ज्ञान रखता है।

शब्द जिन्हें मैं अपनी रोज़ की बातचीत में शामिल करना चाहता हूँ

बातचीत में रंग भरने और सही अर्थ देने के लिए

बातचीत में जोश, भावनाएँ ज़ाहिर करने या जान डालने के लिए

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