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अध्याय 33

व्यवहार-कुशलता के साथ, मगर दृढ़ता से

आपको क्या करने की ज़रूरत है?

दूसरों से क्या कहना चाहिए, कब और कैसे कहना चाहिए, इसमें समझदारी से काम लीजिए ताकि आप बेवजह किसी को न भड़काएँ।

इसकी क्या अहमियत है?

अगर आप व्यवहार-कुशलता से बात करेंगे, तो लोग बिना किसी संकोच के सुसमाचार सुनना चाहेंगे। मसीही भाई-बहनों के साथ पेश आते वक्‍त भी व्यवहार-कुशलता से काम लेने से आप उनके साथ अच्छा रिश्‍ता बनाए रख सकेंगे।

व्यवहार-कुशलता, दूसरों को बेवजह ठेस पहुँचाए बिना उनके साथ सही तरह से पेश आने की काबिलीयत है। इसके लिए आपको यह जानने की ज़रूरत है कि उनसे कब और कैसे बात करना सही होगा। मगर इसका मतलब सच कहने से मुकरना या हकीकत को घुमा-फिराकर पेश करना नहीं है। और व्यवहार-कुशलता का मतलब, इंसान से खौफ खाना तो हरगिज़ नहीं है।—नीति. 29:25.

आत्मा के फल, व्यवहार-कुशलता दिखाने में बहुत मददगार हैं। जिस इंसान के दिल में दूसरों के लिए प्रेम होगा, वह दूसरों को खीज नहीं दिलाएगा बल्कि उनकी मदद करना चाहेगा। जो कृपालु और नम्र होगा वह दूसरों के साथ कोमलता से पेश आएगा। मेल या शांति कायम करनेवाला, हमेशा दूसरों के साथ मधुर रिश्‍ता बनाए रखने की कोशिश करेगा। और जो धीरज रखता है, वह ऐसे वक्‍त पर भी शांत रहेगा जब दूसरे उसके साथ कठोरता से पेश आते हैं।—गल. 5:22, 23.

लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं कि आप उन्हें बाइबल का संदेश कितने ही बढ़िया तरीके से क्यों न बताएँ, उन्हें वह बुरा ही लगेगा। जैसे पहली सदी के ज़्यादातर यहूदी मन से दुष्ट थे, इसलिए यीशु मसीह उनके लिए “ठेस लगने का पत्थर और ठोकर खाने की चटान” साबित हुआ। (1 पत. 2:7, 8) यीशु ने राज्य का ऐलान करने के अपने काम के बारे में कहा: “मैं पृथ्वी पर आग लगाने आया हूं।” (लूका 12:49) आज भी यह जलता हुआ मसला इंसान के सामने है कि क्या वह अपने सिरजनहार यहोवा की हुकूमत और उसके राज्य को स्वीकार करेगा, जिसका संदेश आज हर तरफ फैलाया जा रहा है। बहुत-से लोगों को यह संदेश अच्छा नहीं लगता कि जल्द ही परमेश्‍वर का राज्य इस दुष्ट संसार का नामो-निशान मिटा देगा। फिर भी, हम इसके बारे में प्रचार करना नहीं छोड़ते क्योंकि इसकी आज्ञा हमें परमेश्‍वर ने दी है। लेकिन प्रचार करते वक्‍त, हम बाइबल की इस सलाह को भी मन में रखते हैं: “जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो।”—रोमि. 12:18.

गवाही देते वक्‍त व्यवहार-कुशलता। दूसरों को अपने विश्‍वास के बारे में बताने के लिए हमें बहुत-से मौके मिलते हैं। हम प्रचार में तो गवाही देते ही हैं, पर इसके अलावा हम अपने रिश्‍तेदारों, साथ काम करनेवालों और स्कूल के साथियों को भी गवाही देने के सही मौके ढूँढ़ते हैं। इन सभी हालात में, हमें व्यवहार-कुशलता से काम लेने की ज़रूरत है।

अगर हम दूसरों को राज्य का संदेश इस तरीके से सुनाएँ कि उनको लगे कि हम उन्हें लेक्चर झाड़ रहे हैं, तो शायद वे नाराज़ हो जाएँगे। उन्होंने हमसे कोई सलाह नहीं माँगी है और शायद उन्हें इसकी ज़रूरत भी महसूस न हो, इसलिए अगर हम उन्हें यह एहसास दिलाएँ कि उन्हें खुद को सुधारने की ज़रूरत है तो वे बुरा मान सकते हैं। लोग हमारी बातों का गलत मतलब न निकालें, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं? इसके लिए ज़रूरी है, दोस्ताना अंदाज़ में बात करने का हुनर सीखना।

जब आप किसी से बात करना चाहते हैं, तो किसी ऐसे विषय का ज़िक्र कीजिए जिसमें उसे दिलचस्पी हो। अगर आप अपने किसी रिश्‍तेदार, साथ काम करनेवाले या स्कूल के साथी से बात कर रहे हैं, तो आपको शायद पहले से मालूम होगा कि उसे किस तरह के विषयों में दिलचस्पी है। और अगर आप किसी अजनबी से बात करते हैं, तो आप किसी ऐसी खबर का ज़िक्र कर सकते हैं जो आपने समाचार में सुनी है या अखबार में पढ़ी है। ये विषय ज़्यादातर ऐसे होते हैं जिनके बारे में लोग चिंता करते हैं। जब आप घर-घर प्रचार करने जाते हैं, तो आस-पास के माहौल को ध्यान से देखिए। घर की साज-सजावट, आँगन में या घर के फर्श पर पड़े खिलौने, धार्मिक चीज़ें या गाड़ी पर लगे स्टिकर वगैरह से आपको कुछ सुराग मिल सकता है कि घर-मालिक को किन चीज़ों में दिलचस्पी है। और जब घर-मालिक दरवाज़े पर आता है और बात करता है, तो ध्यान से उसकी सुनिए। उसकी बातों से आपको मालूम होगा कि आपने उसकी दिलचस्पी और उसके विचारों के बारे में जो अंदाज़ा लगाया था, वह सही है या नहीं। और आप यह भी जान सकेंगे कि उसे गवाही देते वक्‍त किन-किन बातों का ध्यान रखना अच्छा होगा।

जब घर-मालिक से बातचीत आगे बढ़ती है, तो आप बाइबल और बाइबल के साहित्य से अपने विषय के बारे में कुछ मुद्दे बता सकते हैं। लेकिन सिर्फ आप ही मत बोलते जाइए। (सभो. 3:7) अगर घर-मालिक अपनी राय बताना चाहता है, तो उसे भी बोलने का मौका दीजिए। उसके विचार और उसकी धारणाएँ भी जानिए। इनके ज़रिए व्यवहार-कुशलता से पेश आने के लिए आपको और भी कुछ सुराग मिलेंगे।

इससे पहले कि आप कुछ कहें, सोचिए कि आपकी बात सामनेवाले को कैसी लगेगी। नीतिवचन 16:23 में ‘मुंह पर बुद्धिमानी प्रगट’ करनेवाले की सराहना की गयी है। मूल इब्रानी पाठ में इस आयत में इस्तेमाल किया गया शब्द तब इस्तेमाल होता है जब गहरी समझ और होशियारी का ज़िक्र आता है। यह दिखाता है कि बुद्धिमानी से काम लेनेवाला इंसान, पहले किसी मामले के बारे में अच्छी तरह सोच लेता है और फिर बड़ी सावधानी से वही बात कहता है जिसे कहने में अक्लमंदी हो। नीतिवचन 12:18 हमें सावधान करता है कि “बिना सोचविचार का बोलना तलवार की नाईं चुभता है।” मगर दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाए बिना, उन्हें बाइबल की सच्चाई बताना ज़रूर मुमकिन है।

अगर आप शब्दों का चुनाव करते वक्‍त समझदारी से काम लें, तो बेवजह कोई रुकावट खड़ी करने से बच सकते हैं। जो लोग “बाइबल” शब्द सुनते ही हमारा संदेश सुनना नहीं चाहते, उनसे बात करते वक्‍त आप ऐसे शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे “पवित्र ग्रंथ” या फिर “एक ऐसी किताब जो आज 2,000 से ज़्यादा भाषाओं में पायी जाती है।” अगर आप बाइबल से कोई आयत पढ़कर सुनाते हैं, तो आप उनसे पूछ सकते हैं कि बाइबल के बारे में उनकी क्या राय है और फिर उनके विचारों के मुताबिक आप बातचीत को आगे बढ़ा सकते हैं।

व्यवहार-कुशलता से काम लेने के लिए अकसर अपनी बात कहने का सही अवसर ढूँढ़ना ज़रूरी होता है। (नीति. 25:11) हो सकता है कि आप, सामनेवाले के कुछ विचारों से सहमत न हों क्योंकि वे बाइबल के मुताबिक सही नहीं हैं, मगर फिर भी आपको उसकी हर बात पर बहस करने की ज़रूरत नहीं है। उसे सारी बातें एक ही बार में बताने की कोशिश मत कीजिए। यीशु ने अपने चेलों से कहा था: “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते।”—यूह. 16:12.

बातचीत के दौरान, जब मुनासिब लगे तब आप सामनेवाले की सच्चे दिल से सराहना कर सकते हैं। अगर वह बहुत ज़्यादा बहस करता है तब भी आप उसके किसी एक विचार के लिए उसकी सराहना कर सकते हैं। प्रेरित पौलुस ने अथेने के अरियुपगुस में तत्त्वज्ञानियों से बात करते वक्‍त ऐसा ही किया था। वे तत्त्वज्ञानी उससे “तर्क-वितर्क” (NHT) कर रहे थे। तब पौलुस ने उनका गुस्सा भड़काए बिना अपनी बात कैसे कही? इससे पहले पौलुस ने देखा था कि अथेने के लोगों ने अपने देवी-देवताओं के लिए बहुत-सी वेदियाँ बना रखी थीं। तो पौलुस ने उनकी मूर्ति-पूजा की निंदा करने के बजाय, बड़ी व्यवहार-कुशलता के साथ धर्म पर उनकी गहरी आस्था के लिए उनकी तारीफ की। उसने कहा: “मैं देखता हूं, कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े माननेवाले हो।” यह तरीका अपनाने की वजह से, सच्चे परमेश्‍वर के बारे में उनको गवाही देने का रास्ता तैयार हुआ। और नतीजा यह हुआ कि कुछ लोग विश्‍वासी बन गए।—प्रेरि. 17:18, 22, 34.

जब कोई आपकी बात पर एतराज़ करता है, तो उत्तेजित मत होइए। शांत रहिए। और सोचिए कि इस तरह आपको उस इंसान के सोच-विचार से वाकिफ होने का मौका मिला है। आप चाहें तो उसे अपनी राय बताने के लिए धन्यवाद दे सकते हैं। लेकिन अगर वह आपको बीच में टोकते हुए कहता है कि “मेरा अपना एक धर्म है,” तो आप क्या कह सकते हैं? आप व्यवहार-कुशलता के साथ उससे पूछ सकते हैं: “क्या आप बचपन से ही धर्म को मानते आए हैं?” फिर उसका जवाब सुनने के बाद आप आगे कह सकते हैं: “क्या आपको लगता है कि ऐसा वक्‍त कभी आएगा जब सभी इंसान एक ही धर्म के माननेवाले होंगे?” इससे आगे बात करने का रास्ता खुल सकता है।

खुद के बारे में सही नज़रिया रखने से भी हमें व्यवहार-कुशलता से काम करने में मदद मिल सकती है। हमें पक्का विश्‍वास है कि यहोवा के मार्ग ही सही हैं और उसका वचन सच्चा है। इसलिए हम इनके बारे में पूरे यकीन के साथ दूसरों को बताते हैं। जहाँ तक हमारी बात है, तो हमारे पास यह मानने की कोई वजह नहीं है कि हम बहुत धर्मी और पवित्र हैं। (सभो. 7:15, 16) हम इस बात के लिए एहसानमंद हैं कि हमें सच्चाई मिली है और यहोवा की आशीषें हम पर हैं, लेकिन हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि यहोवा के अनुग्रह और मसीह पर विश्‍वास रखने की वजह से ही हमें यहोवा की मंज़ूरी मिली है, न कि इसलिए कि हम धर्मी हैं। (इफि. 2:8, 9) हम जानते हैं कि हमारे लिए ‘अपने आप को परखते रहना’ ज़रूरी है कि हम ‘विश्‍वास में हैं या नहीं।’ (2 कुरि. 13:5) इसलिए जब हम लोगों को बताते हैं कि उन्हें परमेश्‍वर के मार्गों के मुताबिक खुद को बदलने की ज़रूरत है, तो हम नम्रता से यह मानते हैं कि बाइबल की सलाह हम पर भी लागू होती है। दूसरों का न्याय करने का अधिकार हमें नहीं है। यहोवा ने “न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है” और यीशु के न्याय के सिंहासन के सामने हमें भी अपने कामों का जवाब देना होगा।—यूह. 5:22; 2 कुरि. 5:10.

परिवार और दूसरे मसीहियों के साथ। ऐसा नहीं है कि हमें सिर्फ प्रचार में व्यवहार-कुशलता दिखानी चाहिए। यह गुण, इस बात का सबूत है कि हम परमेश्‍वर की आत्मा के फल दिखा रहे हैं, इस वजह से हमें अपने परिवार के लोगों के साथ भी व्यवहार-कुशलता से पेश आना चाहिए। हम उनसे प्यार करते हैं, इसलिए हम ज़रूर उनकी भावनाओं की कदर करेंगे। रानी एस्तेर का पति, यहोवा का एक उपासक नहीं था। फिर भी, जब एस्तेर को यहोवा के सेवकों से जुड़ा मामला अपने पति को बताना पड़ा, तो वह उसके साथ आदर से पेश आयी और उसने बड़ी समझदारी से अपनी बात कही। (एस्ते., अध्या. 3-8) हमारे परिवार के जो सदस्य साक्षी नहीं हैं, उनके साथ व्यवहार-कुशलता से पेश आने के लिए, कभी-कभी ज़रूरी होता है कि हम अपने विश्‍वास के बारे में उनको समझाने के बजाय, अपने चालचलन से साबित कर दिखाएँ कि सच्चाई की राह पर चलना कितना फायदेमंद है।—1 पत. 3:1, 2.

उसी तरह, अपनी कलीसिया के सदस्यों से हमारी जान-पहचान होने का यह मतलब नहीं कि हम उनके साथ रूखाई से बात कर सकते हैं। हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि वे तजुर्बेकार और प्रौढ़ हैं, इसलिए उन्हें हमारी बात बुरी नहीं लगनी चाहिए बल्कि उन्हें बर्दाश्‍त कर लेना चाहिए। ना ही हमें यह कहकर खुद को जायज़ ठहराना चाहिए कि “मैं क्या करूँ, मेरा स्वभाव ही ऐसा है।” अगर हम पाते हैं कि हमारे बात करने के तरीके से दूसरों को ठेस लगती है, तो हमें खुद को बदलने का पक्का इरादा कर लेना चाहिए। “एक दूसरे से अधिक प्रेम” होने से हम “विश्‍वासी भाइयों के साथ” ज़रूर “भलाई” करेंगे।—1 पत. 4:8, 15; गल. 6:10.

सभा के सामने बात करते वक्‍त। स्टेज से भाग पेश करनेवालों के लिए भी व्यवहार-कुशलता से बात करना ज़रूरी है। हाज़िर लोग, तरह-तरह के माहौल में पले-बढ़े हैं और उनके हालात भी एक जैसे नहीं होते। सभी की आध्यात्मिक तरक्की भी एक समान नहीं होती। हो सकता है, कुछ लोग किंगडम हॉल में पहली बार आए हों। दूसरे शायद ऐसी तकलीफ से गुज़र रहे हों जिसके बारे में शायद भाषण देनेवाले को खबर न हो। तो फिर एक वक्‍ता अपने सुननेवालों को ठेस पहुँचाए बिना अपनी बात कैसे कह सकता है?

प्रेरित पौलुस ने तीतुस को जो सलाह दी थी, उसी पर चलने का लक्ष्य आप भी रखिए कि “किसी की निन्दा न करें,” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) बल्कि “कोमल स्वभाव के हों, और सब मनुष्यों के साथ बड़ी नम्रता के साथ रहें।” (तीतु. 3:2) दुनिया के लोगों की तरह किसी जाति, भाषा या देश के लोगों को नीचा दिखानेवाले शब्द मत बोलिए। (प्रका. 7:9, 10) यहोवा के नियमों के बारे में लोगों को खोलकर बताइए और समझाइए कि उन पर चलने में क्यों अक्लमंदी है; मगर ऐसे लोगों की निंदा मत कीजिए जो अभी तक यहोवा के मार्ग पर पूरी तरह नहीं चल रहे हैं। इसके बजाय, सभी को बढ़ावा दीजिए कि वे परमेश्‍वर की मरज़ी जानें, और वह काम करें जो उसे मंज़ूर है। सलाह देते वक्‍त अपने शब्दों का तीखापन कम करने के लिए, सुननेवालों की प्यार से और सच्चे दिल से तारीफ कीजिए। अपने बात करने के तरीके और आवाज़ से भाईचारे का प्रेम दिखाइए क्योंकि यही हम सभी में एक-दूसरे के लिए होना चाहिए।—1 थिस्स. 4:1-12; 1 पत. 3:8.

यह कैसे करें

  • लोगों को लेक्चर झाड़ने के बजाय उनके साथ बातचीत कीजिए।

  • कुछ कहने से पहले, सोचिए कि आपकी बात सामनेवाले को कैसी लगेगी।

  • अपनी बात कहने से पहले देखिए कि क्या इस बारे में बात करने का यह सही अवसर है या नहीं।

  • जब मुनासिब लगे, तब सच्चे दिल से सराहना कीजिए।

  • जब कोई आपकी बात पर एतराज़ करता है, तो उत्तेजित मत होइए।

  • खुद को धर्मी और पवित्र समझने के रवैए से दूर रहिए; दूसरों का न्याय मत कीजिए।

अभ्यास: बाइबल में दर्ज़ इन घटनाओं को ध्यान से पढ़िए: 2 शमूएल 12:1-9; प्रेरितों 4:18-20. हर किस्से पर गौर कीजिए कि उनमें (1) किस तरह व्यवहार-कुशलता से बात की गयी और (2) यहोवा के धर्मी मार्गों पर दृढ़ बने रहने के बारे में कैसे साफ-साफ बताया गया।

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