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  • “उसके नक्शे-कदम पर चलो”
  • हमारी राज-सेवा—2008
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हमारी राज-सेवा—2008
km 4/08 पेज 3-4

“उसके नक्शे-कदम पर चलो”

1. हम एक कुशल प्रचारक कैसे बन सकते हैं?

यीशु ने रब्बियों के स्कूल में पढ़ाई नहीं की थी, मगर वह इतिहास का सबसे महान प्रचारक था। हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि यीशु की सेवा का लिखित रिकॉर्ड हमारे फायदे के लिए आज तक महफूज़ रखा गया है। अगर हम एक कुशल प्रचारक बनना चाहते हैं, तो हमें ‘उसके नक्शे-कदम पर चलने’ की ज़रूरत है।—1 पत. 2:21, किताब-ए-मुकद्दस।

2. क्या बात हमें लोगों के लिए मसीह के जैसा प्यार पैदा करने में मदद देगी?

2 लोगों के लिए प्यार दिखाइए: यीशु के दिल में लोगों के लिए प्यार और परवाह थी। और इसी बात ने उसे लोगों को सुसमाचार सुनाने के लिए उभारा। (मर. 6:30-34) आज हमारे प्रचार के इलाके में बहुत-से लोग “पीड़ाओं” या दुःख-तकलीफों में हैं और उन्हें सच्चाई जानने की सख्त ज़रूरत है। (रोमि. 8:22) जब हम इस बारे में सोचेंगे कि लोग किन बुरे हालात में जी रहे हैं, साथ ही यहोवा को उनसे कितना प्यार है और उनकी कितनी फिक्र है, तो यह बात हमें प्रचार में लगे रहने के लिए उभारेगी। (2 पत. 3:9) इसके अलावा, जब लोग यह देखेंगे कि हम उनकी सचमुच परवाह करते हैं, तो वे हमारे संदेश को खुशी-खुशी सुनेंगे।

3. यीशु ने किन मौकों पर लोगों को खुशखबरी सुनायी थी?

3 हर मौके पर गवाही दीजिए: यीशु ने हर मौके का फायदा उठाकर दूसरों को खुशखबरी सुनायी थी। (मत्ती 4:23; 9:9; यूह. 4:7-10) उसी तरह, हमें अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लोगों को सच्चाई के बारे में बताने के लिए तैयार रहना चाहिए। कुछ मसीही अपनी काम की जगह पर, स्कूल में, सफर या खरीदारी करते वक्‍त अपने साथ बाइबल और दूसरे साहित्य रखते हैं, ताकि मौका मिलने पर वे दूसरों को गवाही दे सकें।

4. हम प्रचार में राज्य को कैसे अपना खास विषय बना सकते हैं?

4 राज्य की तरफ ध्यान खींचिए: यीशु के प्रचार का खास विषय था, राज्य का सुसमाचार। (लूका 4:43) शायद हम घर-मालिक से बात करते वक्‍त फौरन या सीधे-सीधे राज्य का ज़िक्र न करें, लेकिन हमें उसे यह समझने में मदद देनी चाहिए कि परमेश्‍वर के राज्य की हमें कितनी ज़रूरत है। यही नहीं, जब हम लोगों से दुनिया के बुरे हालात पर बात करते हैं, जो अंतिम दिनों की निशानियाँ हैं, तब भी हम खासकर ‘अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाने’ पर ध्यान देते हैं।—रोमि. 10:15.

5. दूसरों को कुशलता से सिखाने में बाइबल की क्या भूमिका है?

5 परमेश्‍वर के वचन पर निर्भर रहिए: धरती पर अपनी सेवा के दौरान, यीशु ने लोगों को सिखाते वक्‍त हमेशा शास्त्र का इस्तेमाल किया। उसने अपनी तरफ से उन्हें कुछ नहीं सिखाया। (यूह. 7:16, 17) यीशु ने परमेश्‍वर के वचन की अच्छी समझ हासिल की। और जब शैतान ने उसकी परीक्षा ली, तो उसने शास्त्र से हवाला देकर उसे जवाब दिया। (मत्ती 4:1-4) अगर हम दूसरों को कुशलता से सिखाना चाहते हैं, तो हमें रोज़ बाइबल का अध्ययन करना चाहिए और सीखी हुई बातों को लागू करना चाहिए। (रोमि. 2:21) जब प्रचार में कोई हमसे कुछ सवाल पूछता है, तो हमें उसको बाइबल के आधार पर जवाब देना चाहिए। और जब भी मुमकिन हो, तो सीधे बाइबल से पढ़कर उसे बताना चाहिए। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम घर-मालिक पर ज़ाहिर करते हैं कि हम अपने विचार नहीं, बल्कि परमेश्‍वर के विचार सिखाते हैं।

6. यीशु ने अपने सुननेवालों के दिलों तक पहुँचने के लिए क्या किया?

6 सिखाते वक्‍त लोगों के दिल तक पहुँचिए: एक बार महायाजकों और फरीसियों ने यीशु को पकड़ने के लिए सिपाही भेजे, मगर वे खाली हाथ लौट आए। जब उन्होंने इसकी वजह पूछी, तो सिपाहियों ने कहा, “किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न कीं।” (यूह. 7:46) यीशु सिखाते वक्‍त सिर्फ जानकारी ही नहीं देता था, बल्कि वह इस ढंग से सिखाता था कि उसकी बातें लोगों के दिल में उतर जाती थीं। (लूका 24:32) वह ऐसे दृष्टांत इस्तेमाल करता था, जो लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी से ताल्लुक रखते थे, ताकि वे उसकी बातें आसानी से समझ सकें। (मत्ती 13:34) यीशु अपने सुननेवालों को एक बार में ही ढेर सारी जानकारी नहीं देता था, जिससे वे सकपका जाएँ। (यूह. 16:12) वह सिखाते वक्‍त लोगों का ध्यान अपनी तरफ नहीं, बल्कि यहोवा की तरफ खींचता था। यीशु की तरह, अगर हम एक अच्छे शिक्षक बनना चाहते हैं, तो हमें ‘अपनी शिक्षाओं पर विशेष ध्यान देने’ की ज़रूरत है।—1 तीमु. 4:16, NHT.

7. किस वजह से यीशु अपनी सेवा में लगा रहा?

7 बेरुखी और विरोध के बावजूद प्रचार में लगे रहिए: हालाँकि यीशु ने बहुत-से चमत्कार किए, फिर भी कई लोगों ने उसकी बातों पर कान नहीं दिया। (लूका 10:13) यहाँ तक कि यीशु के परिवार के लोगों को लगा कि ‘वह पागल हो गया है।’ (मर. 3:21, नयी हिन्दी बाइबिल) इसके बावजूद, वह अपनी सेवा में लगा रहा। उसने सही नज़रिया बनाए रखा क्योंकि उसे पूरा यकीन था कि उसके पास सच्चाई है, जो इंसानों को झूठी शिक्षाओं से आज़ाद कर सकती है। (यूह. 8:32) यीशु की तरह हम भी यहोवा की मदद से प्रचार में लगे रहेंगे, फिर चाहे हमारे सामने कैसे भी हालात क्यों न आएँ।—2 कुरि. 4:1.

8, 9. सुसमाचार की खातिर त्याग करने के बारे में हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

8 प्रचार में ज़्यादा-से-ज़्यादा हिस्सा लेने के लिए ज़रूरी त्याग कीजिए: यीशु ने अपनी सेवा की खातिर सुख-सुविधा की चीज़ों का त्याग किया। (मत्ती 8:20) वह प्रचार में खूब मेहनत करता था, कभी-कभी तो वह दिन ढल जाने तक उसमें लगा रहता था। (मर. 6:35, 36) वह जानता था कि उसे जो काम सौंपा गया है, उसे पूरा करने के लिए उसके पास बहुत थोड़ा वक्‍त है। यीशु की मिसाल पर चलते हुए हमें भी अपनी ज़िंदगी में त्याग करने की ज़रूरत है। हमें अपना समय, ताकत और दूसरे साधनों को परमेश्‍वर की सेवा में लगाना है, क्योंकि “समय कम किया गया है।”—1 कुरि. 7:29-31.

9 पहली सदी के मसीही कुशल प्रचारक थे, क्योंकि उन्होंने यीशु से तालीम पायी थी। (प्रेरि. 4:13) हम भी अपनी सेवा को पूरा कर सकते हैं, बशर्ते हम इतिहास के सबसे महान प्रचारक यीशु की मिसाल पर चलें।—2 तीमु. 4:5.

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