‘बुरे वक्त’ में सेवा करने के लिए मिली तालीम
1 हमारी राज-सेवा के पिछले कुछ अंकों को खास तौर से तैयार किया गया था, ताकि हम यह सीखें कि ‘बुरे वक्त’ में योग्य लोगों को कैसे ढूँढ़ा जा सकता है। (2 तीमु. 4:2) इनमें हमें समय के मुताबिक जो हिदायतें मिलीं, क्या उसके लिए हम एहसानमंद नहीं हैं? क्या आपने इनमें दिए किसी निर्देश को लागू करके देखा है? हमें सिखाया गया था कि हर घर-मालिक को बाइबल में दी खुशखबरी सुनने या ना सुनने का अधिकार है और हमें उसके अधिकार का सम्मान करना चाहिए। इसी में बुद्धिमानी है क्योंकि हम अलग-अलग धर्म के लोगों के घर बिन-बुलाए जाते हैं। अपनी पेशकश सुनाने से पहले हम यह तय करते हैं कि घर-मालिक हमारी बात सुनना चाहता है या नहीं। इस तरह हम उसे यह समझने में मदद देते हैं कि हम उसकी इच्छाओं का आदर करते हैं।
2 सतर्क रहने, सूझ-बूझ और कुशलता से काम लेने से हम मुश्किलों से दूर रहने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं। व्यवहार-कुशलता में यह जानना शामिल है कि हमें क्या बात नहीं कहनी चाहिए। (यूह. 16:12) जैसा कि हम जानते हैं हम किसी तरह का धर्म-युद्ध नहीं लड़ रहे हैं और न ही लोगों को ज़बरदस्ती या लालच देकर उनका धर्म-परिवर्तन करने की कोशिश कर रहे हैं। यीशु के चेले शांति और दिलासा का संदेश सुनाते हैं। मगर प्रचार इलाके में हर कोई हमारा संदेश नहीं सुनता और न ही हमारे नेक इरादों को समझता है। इसलिए मसीहियों को उन सभी से दूर रहने की ज़रूरत है, जो ज़ुल्म ढाते या भड़काने की कोशिश करते हैं। (मत्ती 10:23; प्रेषि. 14:5-7) हाल की महीनों में हमारे भाइयों ने जिन इलाकों में विरोध का सामना किया है उन्होंने यही तरीका अपनाया है और उन लोगों पर ध्यान दिया है जो सुनने के लिए दिलचस्पी दिखाते हैं। इसके उन्हें बढ़िया नतीजे मिले हैं। लेकिन हमें यह भी याद रखने की ज़रूरत है कि जो लोग पहले हमारा विरोध करते थे, हो सकता है वे आगे चलकर किसी वजह से हमारा संदेश सुनने कि लिए राज़ी हो जाएँ।
3 हमारे साहित्य में कई बार यह बताया जाता है कि जब लोग अपने धर्म को लेकर बहुत भावुक हो जाते हैं, तब हमें क्या करना चाहिए। प्राचीन जब इस जानकारी को बीच-बीच में मंडली को याद दिलाते रहते हैं, तो भाइयों को बहुत मदद मिलती है और वे इसकी कदर करते हैं। (2 पत. 3:1, 2) जनवरी से मई और अगस्त 2008 की हमारी राज्य सेवकाई के अंकों में दिए लेखों के कुछ मुद्दों को, जब भी मुनासिब हो सभा के भाग में और समूह को प्रचार में भेजने से पहले पेश किया जा सकता है। इससे सभी को पुराने तरीकों के साथ-साथ उन शब्दों का इस्तेमाल करने से दूर रहने में मदद मिलेगी, जिनका लोग गलत मतलब निकाल सकते हैं। और हम उस इंतज़ाम के अधीन रहकर काम कर रहे होंगे जो हमारे लिए किया गया है। जब प्रचार समूह को बराबर निर्देश दिए जाते रहते हैं तो वे सार्वजनिक जगहों में ज़ोर-ज़ोर से बात करने या दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींचने से बचे रहेंगे।
4 सबसे बढ़कर, हम में से हरेक को कोई परेशानी आने से पहले ही रोज़ाना परमेश्वर का वचन पढ़ने और प्रार्थना करने के ज़रिए अपने आप को तैयार कर लेना चाहिए। हमारा विश्वास मरा हुआ नहीं, ज़िंदा होना चाहिए और जो हमें हिम्मत के साथ काम करने के लिए उकसाए। (एज्रा 7:10; भज. 78:8; याकू. 2:17; प्रहरीदुर्ग 09 9/15 पेज 12-15 देखिए।) अगर कभी भीड़ हमें घेर लेती है, तो उस वक्त यहोवा पर भरोसा होने से हमें शांत रहने में मदद मिलेगी और हम आदर के साथ पुलिस अधिकारियों को अपने काम के बारे में समझा पाएँगे।
5 अगर कभी डर की वजह से आप प्रचार में ढीले पड़ गए हैं, तो हिम्मत मत हारिए। याद कीजिए कि यीशु की मौत के बाद सभी प्रेषितों ने कुछ समय के लिए प्रचार करना बंद कर दिया था, मगर जल्द-ही वे फिर से जोश के साथ प्रचार काम करने लगे। (मत्ती 26:56; प्रेषि. 5:28) हमें प्रेषितों 18:9, 10 में दर्ज़ यीशु के दिए दिलासे को हमेशा याद रखने की ज़रूरत है, खासकर तब जब हमारे संदेश को ठुकरा दिया जाता है। यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि वह आपको हिम्मत दे ताकि आप लोगों को खुशखबरी सुना सकें। (प्रेषि. 4:29) यह जानने की कोशिश कीजिए कि क्या बात आपके सुननेवालों के दिल को छू जाएगी। कभी मत भूलिए कि यहोवा लोगों का दिल पढ़ सकता है और नेकदिल लोगों को अपनी ओर खींच सकता है।—1 शमू. 16:7; यूह. 6:44.