-
इत्तै—उसकी वफादारी की मिसाल पर चलिएप्रहरीदुर्ग—2009 | मई 15
-
-
से प्रीति रखता; और अपने भक्तों [‘वफादार जनों,’ NW] को न तजेगा।” (भज. 37:28) यहोवा हमें वफादार बने रहने में मदद भी देता है। यही वजह है कि उसने बाइबल में कई वफादार लोगों के बारे में लिखवाया है। ऐसी ही एक कहानी है गत शहर के रहनेवाले इत्तै की।
“विदेशी और निर्वासित”
इत्तै एक बहादुर योद्धा था जो शायद पलिश्तीन देश के जाने-माने शहर, गत का रहनेवाला था। गोलियत नाम का दानव और इसराएलियों के दूसरे कई खूँखार दुश्मन भी इसी शहर से थे। बाइबल में इत्तै का ज़िक्र पहली बार उस वाकये में आता है, जब अबशालोम अपने पिता राजा दाविद के खिलाफ बगावत करता है। उस वक्त इत्तै अपने 600 पलिश्ती साथियों के साथ यरूशलेम के पास के एक इलाके में रह रहा था, क्योंकि उन सभी को देशनिकाला दे दिया गया था।
इत्तै और उसके साथियों की हालत देखकर दाविद को शायद अपने वे दिन याद आए होंगे, जब वह 600 इसराएली सैनिकों के साथ अपने देश से दूर भागा-भागा फिर रहा था। और उसने पलिश्तियों के देश में गत के राजा आकीश के राज्य में शरण ली थी। (1 शमू. 27:2, 3) लेकिन अब जब अबशालोम ने दाविद के खिलाफ बगावत छेड़ दी थी, तो ऐसे में इत्तै और उसके साथी किसका साथ देते? अबशालोम का, जिसमें उनका फायदा हो सकता था या दाविद का जिससे उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ता? या फिर वे निष्पक्ष रहते?
ज़रा इस दृश्य की कल्पना कीजिए। दाविद यरूशलेम से भाग रहा है, वह बेतमेर्हक नाम की जगह पहुँचता है। वहाँ वह थोड़े समय के लिए रुकता है। बेतमेर्हक का मतलब है “दूर का घर।” शायद यह जैतून पहाड़ की ओर यरूशलेम का आखिरी घर था जो किद्रोन घाटी से पहले पड़ता था। (2 शमू. 15:17) यहाँ दाविद अपनी सेना का मुआयना करता है। तभी वह देखता है कि उसके सैनिकों में सिर्फ वफादार इसराएली ही नहीं, बल्कि सारे करेती और पलेती लोग भी हैं। और साथ में गत के लोग भी हैं, यानी इत्तै और उसके 600 सैनिक।—2 शमू. 15:18.
दाविद समझ सकता था कि इत्तै और उसके सैनिक किस हाल में हैं। इसलिए वह इत्तै से कहता है: “तू हमारे साथ क्यों जाए? लौट कर राजा [शायद उसके कहने का मतलब था, अबशालोम] के साथ रह। तू तो विदेशी और निर्वासित भी है। अपने स्थान को लौट जा। तू कल ही तो आया है, और क्या आज मैं तुझे अपने साथ भटकाऊं, जबकि मैं जहां जा सकूंगा वहीं घूमता फिरूंगा? लौट जा, और अपने भाइयों को वापस ले जा। करुणा और सच्चाई तेरे साथ हो।”—2 शमू. 15:19, 20, NHT.
इस पर इत्तै जो जवाब देता है, उससे पता चलता है कि वह हर हाल में दाविद का साथ देने को तैयार था। उसने कहा: “यहोवा के जीवन की शपथ, और मेरे प्रभु राजा के जीवन की शपथ, जिस किसी स्थान में मेरा प्रभु राजा रहेगा, चाहे मरने के लिये हो चाहे जीवित रहने के लिये, उसी स्थान में तेरा दास भी रहेगा।” (2 शमू. 15:21) इत्तै की इस बात से दाविद को अपनी परदादी रूत की याद आयी होगी कि उसने भी नाओमी से ऐसा ही कुछ कहा था। (रूत 1:16, 17) इत्तै की वफादारी दाविद के दिल को छू जाती है और वह उससे कहता है: मेरे साथ किद्रोन घाटी के “पार चल।” तब “गती इत्तै अपने समस्त जनों और अपने साथ के सब बाल-बच्चों समेत पार” चला जाता है।—2 शमू. 15:22.
“हमारी हिदायत के लिए”
रोमियों 15:4 कहता है, “जो बातें पहले लिखी गयी थीं, वे सब हमारी हिदायत के लिए लिखी गयी थीं।” इसलिए हमें खुद से पूछना चाहिए, इत्तै की मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं? सोचिए कि किस बात ने उसे दाविद का वफादार रहने के लिए उकसाया होगा? हालाँकि वह इसराएल देश में एक परदेशी और शरणार्थी था, फिर भी वह मानता था कि यहोवा ही जीवित परमेश्वर है और दाविद, यहोवा का अभिषिक्त जन है। उसने दाविद को अपना दुश्मन नहीं समझा, इसके बावजूद कि उस समय पलिश्तियों और इसराएलियों के बीच दुश्मनी चल रही थी और कई साल पहले दाविद ने पलिश्तियों के सूरमा गोलियत को और दूसरे कई पलिश्तियों को मार डाला था। (1 शमू. 18:6, 7) उसने दाविद के अच्छे गुणों को देखा और वह जानता था कि दाविद यहोवा से बहुत प्यार करता है। दाविद भी इत्तै का बहुत सम्मान करता था। यहाँ तक कि उसने अबशालोम के खिलाफ आखिरी लड़ाई में अपने एक-तिहाई सैनिकों को “गती इत्तै के, अधिकार में” भेज दिया।—2 शमू. 18:2.
इत्तै से हम सीखते हैं कि हमें जाति, भाषा या राष्ट्र के नाम पर दूसरों से भेद-भाव या नफरत नहीं करनी चाहिए, बल्कि उनकी अच्छाइयों को देखना चाहिए। अगर हमने अपने दिल में किसी के लिए बैर पाल रखा है, तो उसे जड़ से उखाड़ फेंकने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। दाविद और इत्तै के बीच जो गहरा रिश्ता था, वह दिखाता है कि अगर हम यहोवा को अच्छी तरह जानेंगे और उससे प्यार करेंगे तो हम अपने अंदर से नफरत की हर दीवार को मिटा पाएँगे।
इत्तै की मिसाल पर गौर करते हुए हमें खुद से पूछना चाहिए: ‘जैसे इत्तै, दाविद का वफादार था वैसे ही क्या मैं भी महान दाविद, मसीह यीशु का वफादार हूँ? क्या मैं प्रचार और चेला बनाने का काम पूरे जोश के साथ करता हूँ और इस तरह अपनी वफादारी दिखाता हूँ?’ (मत्ती 24:14; 28:19, 20) ‘अपनी वफादारी साबित करने के लिए मैं किस हद तक त्याग करने को तैयार हूँ?’
इत्तै की वफादारी पर मनन करने से परिवार के मुखिया भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। इत्तै ने ठान लिया था कि वह परमेश्वर के अभिषिक्त राजा दाविद का वफादार रहेगा और उसके साथ-साथ जाएगा। उसके इस फैसले का उसके साथियों पर भी असर पड़ा। उसी तरह आज परिवार के मुखिया सच्ची उपासना को बढ़ावा देने के लिए जो फैसले करते हैं, उसका असर उनके परिवारों पर पड़ता है और हो सकता है कि इस वजह से उन्हें कुछ मुश्किलों का भी सामना करना पड़े। लेकिन हमें भरोसा दिलाया गया है कि ‘वफादार लोगों के साथ यहोवा वफादारी निभाता है।’—भज. 18:25, NW.
इत्तै का ज़िक्र सिर्फ दाविद और अबशालोम की लड़ाई के किस्से में आता है। बाइबल में और कहीं उसके बारे में नहीं लिखा है। मगर जो थोड़ी-बहुत जानकारी दी गयी है, उससे हम इत्तै के बारे में एक अच्छी बात सीखते हैं कि उसने दाविद के बुरे वक्त में उसका साथ दिया। परमेश्वर के प्रेरित वचन में इत्तै के नाम का होना ही अपने आप में एक सबूत है कि यहोवा वफादार लोगों की कदर करता है और उन्हें इनाम भी देता है।—इब्रा. 6:10.
-
-
“मसीह” के पीछे क्यों हो लें?प्रहरीदुर्ग—2009 | मई 15
-
-
“मसीह” के पीछे क्यों हो लें?
‘अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह खुद से इनकार करे और लगातार मेरे पीछे चलता रहे।’—लूका 9:23.
1, 2. “मसीह” के पीछे हो लेने की वजहों पर गौर करना क्यों ज़रूरी है?
यहोवा जब स्वर्ग से धरती पर अपने उपासकों की मंडली में दिलचस्पी दिखानेवाले आप नए लोगों और जवानों को देखता होगा, तो उसे कितनी खुशी होती होगी! लेकिन बाइबल का अध्ययन करने, मसीही सभाओं में हाज़िर होने और जीवन देनेवाली सच्चाई के ज्ञान में बढ़ते जाने के साथ-साथ आपके लिए ज़रूरी है कि आप यीशु के इस न्यौते को गंभीरता से लें: “अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह खुद से इनकार करे और अपनी यातना की सूली उठाए और दिन-ब-दिन लगातार मेरे पीछे चलता रहे।” (लूका 9:23) यीशु के कहने का मतलब है कि आपको खुद का इनकार करना चाहिए और उसका चेला बनना चाहिए। तो फिर, आइए देखें कि हमें क्यों “मसीह” के पीछे हो लेना चाहिए।—मत्ती 16:13-16.
2 लेकिन हममें से जो लोग पहले से यीशु मसीह के नक्शेकदम पर चल रहे हैं, हमारे बारे में क्या? पौलुस हमें उकसाता है कि हम ‘और भी पूरी तरह ऐसे चलते रहें।’ (1 थिस्स. 4:1, 2) चाहे हमने सच्चाई हाल ही में कबूल की हो या बरसों पहले, अगर हम मसीह के पीछे हो लेने की वजहों पर मनन करें तो हम पौलुस की सलाह के मुताबिक हर दिन पूरी तरह से यीशु के पीछे चल पाएँगे। आइए ऐसी पाँच वजहों पर गौर करें कि हमें क्यों मसीह के पीछे हो लेना चाहिए।
-